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विशेष : युवाओं के आदर्शस्वामी विवेकानंद

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युवाओं के लिए व्यक्तित्व विकास के सभी प्रकार के आदर्शों और नैतिक चरित्र के लिए प्रेरणा का कोई एकमात्र स्रोत है तो वह स्वामी विवेकानंद ही हो सकते हैं जिनसे प्रेरणा प्राप्त कर युवा अपने आपको चिर युवा रखकर पूरे उत्साह से जीवनयापन कर सकते हैं। खुद को रौशन भी कर सकते हैं तथा औरों की जिन्दगी से लेकर दुनिया के धु्रवों तक को रोशनी से नहला सकने का सामथ्र्य प्राप्त कर सकते हैं। व्यक्तित्व विकास की प्रेरणा के मामले में दुनिया के सभी किस्मों के लेखकों और संतों, मार्गदर्शकों को एक तरफ रख दिया जाए और दूसरी तरफ स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व हो, तो अकेले विवेकानंद का आदर्श जीवन और कर्मयोग कई गुना भारी पड़ता है।

विवेकानंद ने जिन आदर्शों, मूल्योें और सिद्धान्तों को जीया, उनका प्रचार-प्रसार किया और हजारों-करोड़ों भारतवासियों के मन में  नई चेतना का उदय किया वह अपने आप में युगीन परिवर्तन की महानतम घटना है। स्वामी विवेकानंद को हुए इतने लम्बे समय बाद भी लगता है कि उनका दिव्य और सूक्ष्म व्यक्तित्व और विचार ही हैं जो हमें आज भी जीवंत और आन्दोलित करते हुए लगते हैं।

यह विवेकानंद जैसे युगपुरुष ही हो सकते हैं जिनके जाने के इतने समय बाद आज भी उनकी सूक्ष्म उपस्थिति का अहसास जनमानस कर रहा है। उनके दिव्य और मेधावी व्यक्तित्व ने पूरी दुनिया को जता दिया कि भारतीय संस्कृति, इसकी परंपराओं और आदर्शों में वह दम है कि यह विश्वगुरु के पद पर स्वतः प्रतिष्ठित रहा है, उसे किसी विदेशी संस्था या विदेशियों के समूहों से प्रमाण पत्र की कोई जरूरत नहीं है। मातृभूमि के प्रति उनका समर्पण और युवाओं के माध्यम से दुनिया को बदल डालने का संदेश हर युग में जनमानस को उत्तेजित और जागृत करता रहा है। अकेले विवेकानंद के जीवन चरित्र को ही यदि अपना लिया जाए तो युवा शक्ति अपने भीतर वह सामथ्र्य पैदा कर सकती है जो न केवल भारतवर्ष बल्कि संसार को बदल दे।

आज के समय में देश और दुनिया जिस दौर से गुजर रहे हैं उनमें स्वामी विवेकानंद के जीवन से प्रेरणा पाने और उनके उपदेशों को आत्मसात करने की महती आवश्यकता है। आज की तरुणाई मरी-मरी सी और ओज हीन होती जा रही है। कई युवाओं को देखें तो लगता है जैसे असमय बुढ़ापा घर करता जा रहा है। दूसरी ओर आज भी कई बुजुर्ग ऎसे हैं जो युवाओं को भी पीछे छोड़  देने का सामथ्र्य रखते हैं। आज की युवा पीढ़ी दिशाहीन होती जा रही है, पाश्चात्य अप संस्कृति के खतरे सर उठा रहे हैं और ऎसे में अपनी भारतीय संस्कृति और विवेकानंद को अपनाकर ही हम तरुणाई की रक्षा करते हुए सुदृढ़ और सुपुष्ट यौवन को प्राप्त कर सकते हैं। जो व्यक्ति खुद समर्थ नहीं है वह न खुद आगे बढ़ सकता है, न औरों को आगे बढ़ा सकता है।

शक्तिहीनता और आत्महीनता के दौर से गुजर रही वर्तमान पीढ़ी को इनसे उबारने के लिए विवेकानंद के जीवन चरित्र से रूबरू कराने की जरूरत है तभी हम युवाओं के व्यक्तित्व विकास के उद्देश्यों को प्राप्त कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व में वे सारे गुण हैं जिनकी आज की पीढ़ी को जरूरत है। इसके लिए विवेकानंद के साहित्य का घर-घर में प्रचार-प्रसार होना जरूरी है तभी नई पीढ़ी विवेकानंद को जान सकती है, अपना सकती है और अपना आदर्श मानकर आगे बढ़ सकती है।

देश का दुर्भाग्य यह है कि शिक्षा पद्धति में भारतीय संस्कृति और महान आदर्शों, महापुरुषों का भरपूर समावेश नहीं हो पाया है और इस कारण से नई पीढ़ी की बुनियाद में विदेशी दासत्व, विदेशियों के हर कर्म को महान समझने की भूल और भ्रम, नैतिक मूल्यों और आदर्श चरित्र की कमी, पाश्चात्य चकाचौंध के साथ वे सारी बुराइयां भारतीय जनमानस में घर करती जा रही हैं जिनसे आज का युवा दिग्भ्रमित होने के साथ ही अपने मन, मस्तिष्क और तन की शक्तियों को क्षीण करता जा रहा है।

हम ज्यादा पीछे नहीं जाएं और केवल चार दशक पहले के युवाओं को देखें तो आज का युवा उनके मुकाबले शक्तिहीन, वीर्यहीन और ओज हीन हो गया है। लोगों के चेहरों से तेज और दमक गायब है। तेज रोशनी वाली आँखों की बजाय मोटे चश्मे चढ़े हुए हैं, शारीरिक संतुलन से लेकर मानसिक संतुलन तक में कहीं न कहीं उतार-चढ़ाव नज़र आता है। जो पढ़े-लिखे हैं वे  भी, और जो अनपढ़ हैं वे भी, और आधे अधूरे पढ़े-लिखे भी, अपनी पूरी जिन्दगी का मकसद पैसा कमाना और पैसा बनाना ही समझ बैठे हैं। मन-मस्तिष्क और शरीर की ओर कोई ध्यान देने की बजाय सिर्फ भौतिक सुख-विलासिता, चरम भोगवाद और शक्ति खोने के तमाम जतनों में जुटे हुए हैं। और ऎसे में हमारी युवा पीढ़ी निरन्तर उस दिशा में जा रही है जहां क्षणिक चकाचौंध के साथ अंधकार का साम्राज्य व्याप्त है और हम लोग उस दिशा में जा रहे हैं जिस दिशा में मुद्रा और स्वच्छन्द भोग विलास के आगे सब कुछ गौण होता जा रहा है।

हमारे आस-पास से लेकर परिवेश और दूर-दूर तक जो अनचाही घटनाएं हो रही हैं उन सभी का मूल कारण हमारा संस्कृति की जड़ों से कट जाना ही है और जब तक हम इन दुरावस्थाओं से अपने आपको मुक्त नहीं कर लेंगे तब तक हमारा भविष्य न सुनहरा हो सकता है, न रोशनी की कल्पना ही। हमारा सौभाग्य है कि स्वामी विवेकानंद ने इस पुण्य भूमि पर अवतार लिया और दुनिया में भारत का नाम रौशन किया और यह जता दिया कि भारत ही है जो विश्व भर का गुरु रहा है और रहेगा। दूसरी ओर यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम विवेकानंद को अपने जीवन में अपनाने की बात तो दूर है, विवेकानंद के बारे में अपनी कोई समझ तक नहीं रखते। 

अभी पानी सर से ऊपर नहीं गुजरा है, अब भी यदि हम अपने जीवन में स्वामी विवेकानंद को थोड़ा भी अपना लें तो हम खुद को बदल सकते हैं और दुनिया को भी बदल डालने का वो सामथ्र्य भी पा सकते हैं जो स्वामी विवेकानंद ने प्राप्त किया था। हमें यह भी सोचना होगा कि जिस विवेकानंद ने थोड़ी आयु में इतना सब कुछ करिश्मा कर दिखाया वो हम उनसे भी ज्यादा आयु पाकर भी कुछ नहीं दिखा पा रहे हैं। यही हमारे आत्मचिन्तन में हमेशा होना चाहिए तभी हमारी वृत्तियां पिंड से ब्रह्माण्ड परिवर्तन का सामथ्र्य पा सकती हैं।





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--- डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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