उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. बी.एस. चौहान ने कहा कि घृणापूर्ण भाषण (हेट स्पीच) और इस तरह की कृत्य को रोकने के लिए देश में पर्याप्त कानून है। जरूरत है इसे सही ढंग से लागू करने की। न्यायमूर्ति चौहान गुरुवार शाम डॉ. आनंदस्वरूप गुप्ता स्मारक व्याख्यान के तहत 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और घृणापूर्ण भाषण : पुलिस और सिविल सोसाइटी की भूमिका'विषय पर बोल रहे थे।
ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (बीपीआरएंडडी) द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में न्यायमूर्ति चौहान ने कहा कि ऐसे भाषणों पर पाबंदी के लिए संवैधानिक व्यवस्था है, साथ ही दंड संहिता में भी पर्याप्त इंतजाम हैं। इसलिए जिस व्यक्ति को भी ऐसे कृत्य से परेशानी हो, उन्हें इसके तहत निदान मिलना चाहिए।
न्यायाधीश डॉ. बी. एस. चौहान ने कहा कि इस समस्या की जड़ यह नहीं है कि इसके लिए कानून में प्रावधान नहीं है, बल्कि समस्या यह है कि दोषियों के खिलाफ पर्याप्त कदम नहीं उठाए जाते। उन्होंने कहा कि अधिकारियों के साथ-साथ सिविल सोसाइटी को अपनी भूमिका सही तरह से निभानी चाहिए ताकि ऐसे कृत्य पर रोक लग सके।
उन्होंने कहा कि सभी स्तर पर ऐसे भाषण देने वालों के खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई होनी चाहिए। इसके साथ ही पुलिस एवं कानून को लागू करने वाली अन्य एजेंसियां भी सुनिश्चित करें कि भविष्य में भी कानून की अवहेलना न हो।
इस कृत्य पर रोक लगाने के लिए उन्होंने मीडिया की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बताया। उनके मुताबिक प्रेस की भूमिका एक 'सोशल साइंटिस्ट'की है जो आलोचना करता है, किसी कार्य का मूल्यांकन करता है, किसी योजना के बारे में नए-नए सुझाव देता है और इसके साथ ही समाज के गरीब और शोषित लोगों को न्याय दिलाने में मदद करता है।