दिल्ली के एक न्यायाधीश ने फांसी की सजा को अमानवीय कृत्य बताते हुए एक किताब में कहा है कि यही वक्त है, जब भारत में कैदियों को मृत्युदंड देने के दूसरे विकल्पों पर गौर किया जाना चाहिए। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश गिरीश कठपालिया का कहना है कि फांसी की सजा इतनी क्रूरतम है कि कई सारे देशों में फांसी को बंद करके गोली मारने या नसों में जहरीला इंजेक्शन लगाकर मृत्युदंड देने की शुरुआत कर दी गई है।
न्यायाधीश ने 262 पन्नों की किताब 'क्रिमिनोलॉजी एंड प्रिजन रिफॉर्म्स'में लिखा है, "जहरीले इंजेक्शन को अब दुनिया भर में मानवीय एवं स्वीकृत मृत्युदंड के रूप में मान्यता मिल गई है। इस पद्धति से व्यक्ति को मृत्युदंड की प्रक्रिया में अपेक्षाकृत कम तकलीफ होती है।"कठपालिया कहते हैं कि ज्यादातर देश फांसी की सजा को खत्म कर रहे हैं, क्योंकि यह अमानवीय और अभद्र है और इसमें व्यक्ति को असहनीय तकलीफ होती है।
किताब में विशेषज्ञों की राय और न्यायिक फैसलों के माध्यम से फांसी की अमानवीय प्रकृति की व्याख्या की गई है। फांसी की सजा मिलने के एक दिन पहले फंदा तैयार करने के लिए जब कैदी के गले और शरीर की नाप ली जाती है, तब वह असहनीय मानसिक तकलीफ और भयावह अनुभव से गुजरता है।
परामर्श पत्र के अनुसार जहरीले इंजेक्शन की प्रक्रिया में व्यक्ति के प्राण जाने में पांच से नौ मिनटों का समय लगता है, जबकि फांसी की प्रक्रिया में 40 मिनटों के संघर्ष के बाद व्यक्ति के प्राण जाते हैं।जहरीले इंजेक्शन की प्रक्रिया में व्यक्ति के शरीर में कोई विकृति नहीं आती, यह दर्दरहित होता है और मृत्युदंड का सबसे आसान और उपयुक्त तरीका है। किताब में लिखा गया, "यही वक्त है जब भारतीय न्याय व्यवस्था को भी फांसी के बजाय मृत्युदंड देने के लिए दूसरे विकल्पों पर गौर करना चाहिए।"