सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस राधाकृष्णन ने इस बात का खुलासा किया है कि उन पर सहारा समूह के मुखिया सुब्रतो रॉय के केस की सुनवाई और उसका संचालन करने में काफी ज्यादा दबाव था। वह इस इसे डील करते समय बेहद परेशान थे और खुद को लाचार महसूस कर रहे थे। जस्टिस राधाकृष्णन 15 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
राधाकृष्णन के मुताबिक कोर्ट में काफी सारे केस पेंडिंग पड़े रहते हैं। उनका भी दबाव उन पर था लेकिन सुब्रत रॉय के केस को डील करते समय उन्हें और जस्टिस जगदीश सिंह को जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा वह इतनी ज्यादा अकल्पनीय थीं कि उन्हें बयां कर पाना काफी मुश्किल है। यहां तक कि इस केस का दबाव उनकी पत्नी और पूरे परिवार पर नजर आ रहा था। उनके मुताबिक वह इस केस पर और ज्यादा नहीं बोल सकते हैं। गुरुवार को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में जस्टिस राधाकृष्णन के सम्मान में कुछ वकीलों की ओर से एक विदाई समारोह आयोजित किया गया था।
उधर वरिष्ठ वकील माजिद मेमन ने इस मुद्दे पर कहा है कि जस्टिस राधाकृष्णन को ऐसे मसलों पर कुछ भी कहने से बचना चाहिए।माजिद का कहना है कि इस तरह की बातों से न्याय देने की प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज पर भी दबाव डालने और उसे प्रभावित करने की कोशिशें की जाती हैं। पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया केजी बालाकृष्णन के साथ ही कुछ और जज भी जस्टिस राधाकृष्णन के विदार्इ समारोह के दौरान मौजूद थे। गौरतलब है कि सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय चार मार्च से ही पुलिस हिरासत में है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस राधाकृष्णन और जस्टिस खेहार की बेंच ने उन्हें निवेशकों का पैसा वापस लौटाने वाले प्रस्ताव के तहत असफल पाया था और उन्हें हिरासत में भेजा था।
सुब्रत रॉय की याचिका को ठुकरात हुए जस्टिस राधाकृष्णन और जस्टिस खेहार ने कहा था 'यह याचिका योग्य नहीं है और पहले ही जैसी है और ऐसे में इसे खारिज किया जाता है।' 21 अप्रैल को जस्टिस राधाकृष्णन और जस्टिस खेहार ने सुब्रत रॉय और दूसरे समूहों के निदेशकों को पर सेबी को निवेशकों के 10,000 करोड़ के तहत की जाने वाली रकम की अदायगी से जुड़ा अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। ऐसे में सुब्रत रॉय को फिलहाल जेल में दिन बिताने पड़ रहे हैं।