विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य आचार्य धर्मेद्र ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में एक विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि कोई डेढ़ पसलीवाला, बकरी का दूध पीने और सूत कातने वाला व्यक्ति भारत का राष्ट्रपिता नहीं हो सकता। अमरकंटक के मृत्युंजय आश्रम में आचार्य धर्मेद्र ने सत्संग के दौरान कहा, "हम भारत को 'मां'मानते हैं और ऐसे में महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का संबोधन देना सर्वथा गलत है। गांधीजी भारत मां के बेटे हो सकते हैं, लेकिन राष्ट्रपिता का ओहदा उन्हें नहीं दिया जा सकता।"
उन्होंने कहा कि भारत देवताओं की भूमि है। महज 100 वर्षो के भीतर कोई इस महान देश का पिता कैसे हो सकता है। देश में बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए गांधीजी की तस्वीर वाले नोटों को जिम्मेदार बताते हुए आचार्य ने कहा कि भारत की करंसी में महात्मा गांधी के बजाय भगवान गणेश की तस्वीर छापी जानी चाहिए। अगर ऐसा किया जाएगा तो ये नोट नहीं, प्रसाद हो जाएंगे।
उन्होंने कहा, "सरकार अगर नोटों पर भगवान गणेश की तस्वीर छापने का फैसला लेती है तो भ्रष्टाचार मिटाने के लिए किसी जन लोकपाल कानून की जरूरत नहीं पड़ेगी। भ्रष्टाचार स्वत: मिट जाएगा।"आचार्य धर्मेद्र ने कहा कि अंग्रेजी ने हमारे शिव को शिवा, कृष्ण को कृष्णा, राम को रामा और योग को योगा बना दिया है। दुनिया में अंग्रेजी से बढ़कर कोई कंजर और बदतमीज भाषा दूसरी नहीं है। इसमें औरतों को ब्यूटीफुल और आदमियों को हैंडसम कहा जाता है। अब तो अंग्रेजी संस्कृति का प्रभाव हावी होता जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अब लोग 'बर्थडे'भी रात में निशाचरों की तरह केक काटकर मनाते हैं। होना यह चाहिए कि सुबह मंदिर में भगवान के दर्शन कर मोदक के लड्डू बांटें। लड्डू को बांधा जाता है, जबकि इसके विपरीत केक को काटा जाता है। साफ है कि अंग्रेजियत इंसानों को काटना सिखाती है और भारतीय संस्कृति जोड़ना।