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देवर्षि नारद जयंती विशेष : आद्य पत्रकार देवर्षि नारद

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narad jayanti
साधारण जीवन में सत्य वही है जिसे हम जानना चाहते हैं जिससे हमारी जिज्ञासा का शमन होता है .जिज्ञासा मानव ने जन्म काल से ही अपने में अंकुरित कर रखा था और उसी जिज्ञासा का उतरोतर समाधान आज विकास के रूप में विश्व में परिलक्षित है किन्तु विकास के इस क्रम में मानव जिज्ञासा की शान्ति का जो सर्वाधिक निकट था वह था – संवाद या समाचार . जब मानव लिखना–पढ़ना भी नहीं सीखा था तब भी वह अपने संवाद को  एक स्थान से दुसरे स्थान तक विभिन्न माध्यमों से संप्रेषित करता रहा है. जैसे जैसे विकास का क्रम चलता गया संवाद के तरीकों में भी बदलाव होता गया.

विश्व में यदि संवाद प्रश्न की व्यवस्था को सर्वाधिक कल्याणकारी रूप में प्रस्तुत किया तो वह थे – देवर्षि नारद .इनके नाम की व्याख्या करते हुए व्याख्याकार कहते है – “नारं ददाति स: नारद:”.अर्थात जो अनवरत ज्ञान का दान करता हुआ जगत के कल्याण में रत हो वही नारद है . इनके सम्बन्ध में और भी कहा गया है –“गीत-विद्या प्रभावेन देवर्षिनार्रदो महान . मान्यो वैष्णवलोके वे श्रीशम्भोच्श्चतिवल्ल्भ:”. तीनो लोकों में निर्वाध निरंतर भ्रमण करने वाले देवर्षि नारद जी हर उस समाचार या संवाद को इधर से लेकर उधर पहुचाने में अव्वल थे,क्या देवता क्या दानव, क्या गंधर्व क्या मानव हर ज़गह यदि किन्ही की पहुच थी तो वे देवर्षि नारद ही थे .

बाल्मिकीय रामायण में एक प्रसंग आता है --- देवर्षि नारद देवलोक से देखते है, कि मर्त्यलोक में किस प्रकार रावण नरसंहार कर रहा था .वह उस नरसंहार को रोकने हेतु उस स्थान पर जाते और लंकेश को समझाते है की उसे मर्त्यलोक के प्राणियो को व्यर्थ पीड़ित करने की अपेक्षा यमराज को ही परास्त कर अपने दिग्विजय का डंका बजाना चाहिए.लंकेश नारदजी के इस बात में आ जाता है और वह यमराज को परास्त करने युद्धरत हो जाता है, तब नारदजी सोचते है की क्यों नहीं अब लंकेश के साथ यमराज का युद्ध देखा जाय क्योंकि उस युद्ध के बारे में देवताओं को भी तो बताना है.और इस युद्ध का समाचार देने देवलोक में चले जाते हैं.उपरोक्त संवाद में एक सवाददाता के हर लोक कल्याणकारी पहलु दृष्टिगोचर होती है. भारतीय बांगमय में देवर्षि नारद के बारे में अनेक उदाहरण मिलते है और ऐसा माना जाता है की भारत ही नहीं बल्कि विश्व के परिदृश्य में देवर्षि नारद प्रथम संवाददाता थे. भारतीय साहित्य के अनुसार इस आद्य पत्रकार का जन्म जेष्ठ कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि ( जो इस साल १५ मई २०१४ को है ) को हुआ था. स्मरण हो की इसी दिन जेष्ठ कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि सम्बत-१८८३ (तदनुसार ३० मई १८२६) को कोलकाता से “उदत्त-मार्तण्ड” नामक साप्ताहिक भारत की पहली पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था. 

सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मानस पुत्र देवर्षि नारद अत्यल्प समय में हर उस स्थान पर उपस्थित रहते जहां से संवाद की गुन्जाईस होती.अपने मधुर और विनोदी स्वभाव से हर प्राणी को सम्मोहित करनेबाले देवर्षि नारद संवाद के हर सूत्र को प्राप्त करने की अद्भुत प्रवृति रखते थे .उनके लोक-कल्याणकारी सोच और धर्म स्थापना के स्त्याधारित सामजिक चिंतन उन्हें देवर्षि जैसे सम्मान से सम्मानित करता है.देवर्षि नारद सिर्फ घटनाओं को देखते और सुनाते भर नही थे बल्कि उन्हें एक साकारात्मक और सृजनात्मक दिशा देने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते थे .वे कहीं जाने के लिए आमंत्रण की प्रतीक्षा नही करते और ना ही अपने मान-सम्मान की चिंता करते बल्कि लोक कल्याणकारी धर्माधारित समाज की रचना के लिए अपने संवाद सम्प्रेष्ण करते.

अगर पुराणों के आख्यानो को ध्यान से पढ़े तो देवर्षि नारद सदैव चालायमान यानी कभी एक स्थान पर टिके नही रहते और एक संवाद सम्प्रेष्णकर्ता ही नहीं बल्कि एक अद्भुत श्रोता के रूप में भी इनकी प्रतिभा दृष्टिगोचर होती है .देवर्षि नारद महाभारत के शान्ति पर्व में एक उपदेशक के रूप में तो उद्योग पर्व में कर्तव्यों के प्रति इनकी जो व्यख्या है वह इन्हें एक विशिष्ट व्याख्याकार के रूप में प्रस्तुत करती है.जनसंपर्क के अत्यंत मधुर नेटबर्क से हर संवाद सूत्र को प्राप्त करने वाले देवर्षि नारद जहां एक सफल श्रोता और वक्ता तो थे ही किन्तु ए अद्भुत अध्ययन शील और तप कर्ता भी थे .अपने ज्ञान को सदैव अपडेट करते रहने वाले देवर्षि नारद हमें कम्पुटर के सॉफ्टवेयर की अपडेट का स्मरण कराते है. 

हर लोककल्याणकारी कार्य को करवाने में आगे रहने बाले देवर्षि नारद कभी भी किसी कार्य का क्रेडिट इन्होने स्वयं नही लिया. पुराणों में एक उदहारण है –हिरण्यकश्यप की पत्नी कपाटू को देवर्षि नारद ने ही शरण दिया उन्ही के शरण में भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ और इन्होने ही प्रहलाद को नारायण के प्रति समर्पण की शिक्षा दी और प्रहलाद के तप से नरसिंह रूप धारण कर नारायण ने हिरण्यकश्यप का नाश कर उसके ताप से समाज को मुक्त किया.कितनी दीर्घकालीन सोच थी और कितनी धीमी प्रक्रिया रही किन्तु देवर्षि नारद ने इसका श्रेय स्वम् नही लिया.देवर्षि नारद की भक्ति और नीति सूत्र वास्तव में पत्रकारिता के अभिनव मापदंड है. नारदीय संवाद सम्प्रेष्ण की परम्परा ही हिन्दुस्तान में “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना को विकसित कर समाज में धर्म और नैतिकता का प्रगटीकरण किया.बास्तव में यदि कहा जाय की –सच्चाई की तह तक जाने की प्रतिबध्यता जिस हृदय को आंदोलित कर दे वह हृदय पत्रकार का ही हो सकता है और इसका जीवंत पर्तिमुर्ती देवर्षि नारद थे .इतनी विशेषताओं के वाबजूद हमने देवर्षि नारद को एक नाकारात्मक स्वरूप को ही समाज के सामने रखने का प्रयास किया था इसका कारण है हज़ारों बर्षो की गुलामी ने हमें अपने संस्कार और स्वाभिमान को शून्य कर रखा है .

देवर्षि नारद जी के चरित्र का यदि मूल्यांकन हो तो हमारी युवा पीढ़ी को एक नया आयाम मिले जिसकी अवधारना लोककल्याणकारी होगी और इसी लोककल्याण कारी राज्य की कल्पना भारत का संविधान हमें देता है .देवर्षि नारद ने सदैव सत्य और धर्म, मानव कल्याण और जगत के उद्धार के पक्ष में काम किया है आज के संवाददाताओं को यदि देवर्षि नारद की संज्ञा दी जाय तो अभीष्ट यही है की वे भी इस महर्षि की तरह समाचारों के संकलन और वितरण में दक्षता प्राप्त करें और उनकी सारी गतिविधियाँ मूलत: समाज कल्याण के आदर्श और रचनात्मक दृष्टिकोण से अनुप्राणित हों.देवर्षि नारद के चरित्र के मूल्यांकन के आधार पर यह स्पष्ट है की भारत ही नही बल्कि विश्व में सवाद सम्प्रेष्ण की अद्भुत कला को यदि किसी ने प्रतिपादित किया तो वह देवर्षि नारद ही थे जिन्हें विश्व के आद्य पत्रकार के रूप में अपनी विशिष्टता हासिल है और आज हम यदि उनके मूल नीतिओ को आत्मसात कर पत्रकारिता में एक नये मानदंड की स्थापना करें तो वास्तव में संवाद और संवाददाता की विश्वसनीयता के लिए मील का पत्थर सावित होगी . 
           



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संजय कुमार आज़ाद
फोन : ९४३११६२५८९ 
रांची-८३४००२ 
मेल -azad4sk@gmail.com

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