Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

अच्छे दिन तभी, जब पूर्वांचल राज्य बनें

$
0
0
banaras ghat
अब अच्छे दिन आने वाले है, को आत्मसात कर पुरबियों ने अपना काम कर दिया। एक-दो नहीं बल्कि पूरे 65 सीटों पर बटन दबाकर दिल्ली की कुर्सी पर बैठाने में महती जिम्मेदारी भी निभा दी। अब बारी है इस स्लोगन की दुहाई देने वाले नरेन्द्र मोदी की, जिन्हें पूरबियों की पिछड़ेपन को दूर करना है। बेशक एक अरसे से विकास की बांट जोह रहे पुरबियों की मुश्किलें एक झटके में दूर कर पाना आसान नहीं। पर मोदी के मजबूत इरादें व निर्भिकतापूर्वक काम करने की शैली के आगे मुश्किल भी नहीं। इसके लिए पूरबियों की मुश्किलों को उन्हें चुनौती के रुप में लेना होगा। भदोही का कालीन, बनारसी साड़ी, मिर्जापुर का पीतल-पत्थर, मउ का हैंडलूम, नैनी-इलाहाबाद व सतहरिया जौनपुर के दम तोड़ते उद्योग-कलकारखानों में जान फंूकना होगा। गंगा सफाई, दरकती घाटों का मरम्मतिकरण, बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्चास्थ्य, परिवहन, सिंचाई व गांव-गांव में कुटीर उद्योगों का संजाल, बंद पड़ी चीनी मिलों को चालू कराने, पर्यटक व पर्यटकों के लिए बेहतरीन होटलों का निर्माण, हाड़तोड़ मेहनतकश बुनकरों के लिए ठोस कल्याणकारी योजनाओं को लागू करनी होगी। हथकरघा उद्योग को आधुनिक बनाने व इसके वैल्यू एडिशन करने के लिए कच्चे माल से लेकर उत्पाद की मार्केटिंग सुधारनी होगी। गन्ना किसानों की बदहाली, लाखों युवाओं की बेरोजगारी दूर करनी होगी। सुरक्षा इंतजमात को चाक-चैबंद करना होगा, जिससे सुबह का निकला व्यक्ति शाम तक घर पहुंच जाय। यह तभी संभव है जब पूर्वांचल अलग राज्य बनें। 

शुरुवात मां गंगा से ही करते है, जिसकी शान में खुद नरेन्द्र मोदी ने कहा- मैं किसी के कहने पर नहीं, बल्कि मां गंगा ने बुलाया इसलिए सोमनाथ की धरती से आया हूं। मां ने बुलाया तो उनकी मनोकामना भी पूरी कर दी। अब मां गंगा के आंचल में दूर-दूर तक पसरी गंदगी, दरकते घाटों का सौन्दर्यीकरण, अविरल प्रवाह बनाएं रखने की जरुरत है। इसके लिए तीन दशक पूर्व गठित गंगा एक्शन प्लान को और अधिक विराट व सार्थक बनाने होंगे। कूड़ा प्रबंधन के साथ ही आक्सीडेसन द्वारा गंगा में मिलने वाले प्रदूषित जल का शुद्विकरण करके गंगा का निर्मलीकरण करना होगा। वरुणा व अस्सी नदी के समागम से ही काशी का नाम वाराणसी पड़ा है। वरुणा का अस्तित्व तो है लेकिन अस्सी नदी पर सवाल पूछिए तो शायद ही संतोषप्रद जवाब सुनने को मिले। हां अस्सी घाट से थोड़ी बढ़े तो गंदा नाला गंगा में जाता जरुर दिख जायेगा। इतना ही नहीं गंगा के साथ-साथ यमुना, घाघरा, गोमती, तमसा, राप्ती, सरयू, सई-बसूही व वरुणा की भी दशा सुधारनी होगी। 

प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से बीस लाख से भी अधिक लोगों का दो जून की रोटी का जरिया व 35 सौ करोड़ से अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित कराकर भारत सरकार की आर्थिक दशा मजबूत करने में महती भूमिका अदा करने वाला कारपेट इंडस्टी आज बदहाल हो चली है। काम के अभाव में 5 लाख से भी अधिक बुनकर पलायन कर गए। 600 से अधिक कालीन फैक्टियों में ताला लग चुका है तो 300 से अधिक निर्यातक दिल्ली, पानीपत व हरियाणा में शिफट हो गए। कुछ इसी तरह बनारस के साड़ी कारोबार है। मंदी व मार्केटिंग प्रणाली ठीक न होने से धंधा चैपट हो चला है। बुनकर दो वक्त की रोटी के लिए त्राही-त्राही कर रहे है। बनासरस में ढाई लाख से अधिक बुनकर है। और इन्हीं बुनकरों से बनारस मेंहर दिन 5 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। वर्तमान में बनारस में 40 हजार हैंडलूम व 1 लाख 60 हजार पावरलूम है। एक साड़ी हथकरघे पर बनाने में सप्ताहभर लग जाते है और इस पर मजदूरी सिर्फ 1000 ही मिलती है, जो डेढ़ सौ से भी कम है। जबकि यह साड़ी बाजार में 4000 तक बिकती है। इसलिए बुनकरों की मजदूरी भी निर्धारित करनी होगी। साड़ी कारोबार को नया बाजार देना होगा। 

मिर्जापुर का पीतल उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच चुका है। जबकि इस उद्योग का आधुनिकीकरण कर बचाया जा सकता है। मिर्जापुर में पर्यटक को बढ़ावा देकर विकसित किया जा सकता है, लेकिन सरकार मौन है। चीनी मिटटी के बर्तन के कारोबार को भी बढ़ाने की अपार संभावनाएं है। इसके अलावा मउ का मैनेचेस्टर कहा जाने वाला हैंडलूम उद्योग की बदहाली के चलते लाखों बुनकर भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके है। गोरखपुर का फर्टीलाइजर, भदोही औराई का सहकारी चीनी मिल बंद पड़ा है। इलाहाबाद-नैनी के कुटीरपरक उद्योग बंदी के कगार पर है। गन्ना किसानों का भुगतान न होने से उनके दिल टूट रहे है। गन्ना खेती से अगर किसानों का मो भंग हुआ तो उप्र के चीनी वाले जनपदों में संकट के बादल छा जायेंगे। 

यहां का स्वास्थ्य व्यवस्था भी लचर है। सरकारी अस्पतालें सिर्फ मेडिकल मुआयना तक सीमित होकर रह गए है। 10 प्रतिशत से अधिक बच्चे अपना 5वां जन्मदिन मनाने से पहले ही काल के ग्रास में चले जाते है। पोषण व बुनियादी चिकित्सा के अभाव भी क्षेत्र से हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं गर्भावस्था व प्रशव के दौरान दम तोड़ देती है। यहां मातृ मृत्यु दर 304 366 जबकि अंतराष्टीय स्तर पर 140 व 258 है। इंसेफिलाइटिस से हर माह एक हजार बच्चे काल के गाल में समा जाते है। 1700 लोगों पर केवल एक ही डाक्टर है। जबकि हर जनपद में एक एम्स होना चाहिए। 100 लोगों पर एक डाक्टर होना चाहिए। जीवन रक्षक दवाईयां मुफत मिलना चाहिए। शहरी इलाकों में हाईस्पीड सड़कों का निर्माण होना चाहिए। बाईपास व रिंगरोड या फलाईओवर बनना चाहिए। इसके कड़ा कानून बनाकर भ्रष्टाचारियों को जेल भेजना होगा। सब्सिडी खत्म कर लोगों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा। 

शिक्षा बद से बदतर हो चला है। प्राथमिक विद्यालयों में ढाई लाख से अधिक शिक्षकों की कमी है।  परिषदीय व माध्यमिक विद्यालयों में 30 प्रतिशत अध्यापकों की कमी है। कक्षा एक से आठ तक के साढे 19 प्रतिशत बच्चे अपना नाम नहीं लिख पाते। साढे 15 प्रतिशत बच्चे गिनती नहीं जानते। 60 प्रतिशत स्कूलों में खेल के मैदान नहीं है। जबकि शिक्षा का स्तर शत् प्रतिशत होना चाहिए। हर बच्चे का दाखिला होना चाहिए। जबकि 50 प्रतिशत बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। उपजाउ जमीन वाले पूर्वांचल के प्रति व्यक्ति का औसत सालाना आय 10-13 हजार है जबकि सबसे पिछड़ा बुंदेलखंड का 18 हजार। पूर्वांचल का सामाजिक आर्थिक ताना-बाना भी लेकिन इस बार जनता के रुख से अंदाजा मिलने लगा है कि अब काशी और पूर्वांचल की दावेदारी विकास व विकास करने की क्षमता पर ही तौली जायेगी। किसान व विचैलियों की दूरी खत्म करनी होगी। सिंचाई सुविधा देने के साथ ही मंडी तक पहुंचने के लिए टांसपोटेशन व्यवस्था भी ठीकठाक हो। 

पूर्वांचल का हर सख्श राह तो दूर अपने बेडरुम में भी असुरक्षित है। आएं दिन लूट हत्या, डकैती, बलात्कार की घटनाएं हो रही है। महिलाओं का सड़क पर चलना दूभर है। औसतन 1000 की आबादी पर एक पुलिस है। जबकि हर सख्श को सुरक्षित लौटने की जिम्मेदारी सरकार की है। न्याय प्रक्रिया लचर है। सालभर के अंदर मुकदमों का निपटारा होना चाहिए। पूर्वांचल का 45 फीसदी युवा बेरोजगार है। जबकि हर परिवार में एक व्यक्ति के रोजगार की गारंटी होनी चाहिए। 250 दिन के काम की गारंटी होना चाहिए। बिजली कम से कम 22 घंटे मिले, क्योंकि किसी भी जनपद या उद्योग कल-कारखाने बिजली के बगैर नहीं चल सकते। बिजली उत्पादन में वृधि व हर क्षेत्र में विद्युतीकरण होना चाहिए। ग्रामीण व शहरी इलाकों में ब्राडबैंड का बेहतर होना चाहिए। शहरी इलाकों में पानी निकासी व्यवस्था, सीवर व स्वच्छ पेयजलापूर्ति बेहतर होनी चाहिए। बाढ़ व कटान से होने वाली क्षति को रोकना होगा। ठेले वाले, रिक्शा वाले, भूमिहीन, कृषि व बगैर कृषि मजदूर, भट्ठों पर काम करने वालों, झाडू लगाने वालों, दूध बेचने वाले गरीबों पर भी विशेष ध्यान देना होगा। महंगाई पर लगाम लगाने के लिए मांग और आपूर्ति के असंतुलन को दूर करने की जरुरत है। इसके लिए खाद्य कानून व अन्य पदार्थो की प्र्याप्त मात्रा में उपलब्धता सुनिश्चित करना होगा। यह तभी संभव है, जब कृषि पर जोर दिया जाएं और सिंचाई सुविधाओं का विकास किया जाय। 



suresh gandhi

सुरेश गांधी 
बनारस 

    



Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>