देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र पत्रकारों के लिए काम करने के लिहाज से सबसे खतरनाक जगह बन गया है। भारतीय प्रेस परिषद के एक सदस्य के अनुसार पिछले 12 वर्षो में यहां 26 पत्रकारों की जान गई है। प्रेस परिषद उपसमिति के सदस्य अमरनाथ कंसुरी ने पत्रकारों को बताया कि नए बन रहे कानून के अनुसार, काम के दौरान मारे गए पत्रकारों के परिवार के लिए मुआवजे के अलावा नौकरी का भी प्रावधान होगा। यह उपसमिति भारत में पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए प्रस्तावित एक विशेष कानून के निर्माण पर काम कर रही है।
कंसुरी ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान बताया, "पिछले तीन साल में त्रिपुरा में चार और मणिपुर में तीन पत्रकारों की हत्या हुई है। कुल मिलाकर इस क्षेत्र में 12 सालों में 26 पत्रकारों की जान गई है। वहीं असम में 12 जबकि जम्मू-कश्मीर में 25 पत्रकार मारे गए।"उन्होंने आगे कहा, "सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन सब मामलों में अब तक किसी को भी आरोपी नहीं बनाया गया है।"
प्रस्तावित कानून के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इसका मुख्य मकसद जल्द से जल्द पत्रकारों को न्याय दिलाना होगा। कंसुरी ने कहा, "पत्रकारों पर हमले से जुड़ा केस फास्ट ट्रैक अदालतों में जाना चाहिए। मुंबई में एक महिला पत्रकार से हुए दुष्कर्म के मामले में शीघ्र न्याय संभव हो पाया, क्योंकि उसे फास्ट ट्रैक अदालत में भेजा गया था। वहीं मिड-डे के पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या के मामले में ऐसा नहीं हो पाया है।"
उन्होंने कहा, "हम प्रस्तावित कानून में कम से कम 10 लाख रुपये के मुआवजे और सरकारी नौकरी की सिफारिश करने जा रहे हैं।"