लोक सभा चुनाव-2014 में पार्टी की करारी हार के बाद झारखण्ड विकास मोर्चा सुप्रिमों व पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मराण्डी का यह बयान कि आसन्न विधानसभा चुनाव की ओर पार्टी का पूरा ध्यान केन्द्रित है, संताल परगना क्षेत्र की जनता के लिये भटकाने वाली बात साबित हो रही। पिछले 5 वर्षों से लगातार संताल परगना का दौरा करने व तमाम 3 लोक सभाई क्षेत्रों सहित 18 विधानसभाई क्षेत्रों में लोकसभा स्तरीय, विधानसभास्तरीय, जिलास्तरीय व प्रखण्डस्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन के लगातार आयोजनों के बाद भी संताल परगना की जनता ने उनकी पार्टी को तीसरे पायदान पर रखा। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का यह बयान कि चारों खाने चित्त पार्टी की इस करारी हार पर गंभीर मंथन किया जाऐगा, पार्टी कार्यकर्ताओं के लिये राहत भरा सबब हो सकता है, किन्तु आम-अवाम परिचित हो चुकी है नेताओं की चुनावी रणनीति, उनके दिशाहीन भाषणों-आश्वासनों की लम्बी फेहरिस्त से। भविष्य में होने वाले असर के अंजाम से। पार्टी के अन्दर से यह भी बात सामने आई कि देश में भाजपा के स्टार प्रचारक नरेन्द्र भाई मोदी की लहर का यह नतीजा रहा।
संताल परगना क्षेत्र की तीनों लोकसभाई सीटों दुमका, गोड्डा व राजमहल में उनकी पार्टी के प्रत्याशी तीसरे-चैथे पायदान पर खड़े दिखे। गोड्डा व राजमहल की बात छोड़ भी दी जाय तो दुमका में भी उन्हें कोई तरजीह नहीं दी गई, जबकि पार्टी सुप्रिमों बाबू लाल मराण्डी चुनावी समर में खुद खड़े थे। दुमका में लड़ाई वैसे झामुमों-भाजपा के बीच ही थी। संताल परगना क्षेत्र से झामुमों प्रत्याशी की लोकप्रियता में कमी तो देखी गई किन्तु उन्हें नकारा नहीं गया, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने जब से पार्टी कमान खुद संभालना शुरु, उनकी अपनी रणनीति बड़े काम की रही जिसका परिणाम 16 मई को देखने को देखने को मिला। दुमका संसदीय क्षेत्र की जनता ने नरेन्द्र मोदी की लहर के बाद भी 70 के दशक से झारखण्ड में आदिवासियों के हक-हकुक की लड़ाई करने वाले आदिवासी नेता शिबू सोरेन को ही अपना नेता चुना। झारखण्ड में डोमिसाईल व वर्ष 1932 के खतियान के सवाल पर दुमका की जनता ने श्री मराण्डी को समर्थन दिया अथवा नहंी यह मंथन का विषय हो सकता है किन्तु श्री मराण्डी ने इस क्षेत्र में अपनी बनी जमीन का जो हवाला सार्वजनिक किया था वह मिट्टीपलित हो गई।
संताल परगना क्षेत्र की दुमका लोकसभा सीट से पार्टी झाविमों सुप्रिमों बाबूलाल मराण्डी जहाँ एक ओर खुद चुनावी अखाड़े में खड़े हुए थे, वहीं गोड्डा से पार्टी प्रधान महासचिव प्रदीप यादव व राजमहल संसदीय क्षेत्र से डाॅ0 अनिल मुर्मू को खड़ा किया गया था। उपरोक्त तीनों प्रत्याशी अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र में मतों के हिसाब से तीसरे-चैथे पायदान पर रहे। जहाँ तक संताल परगना प्रमण्डल अन्तर्गत तमाम जिलोंः-दुमका, देवधर, गोड्डा, पाकुड़, जामताड़ा व साहेबगंज की बात है तो उपरोक्त तमाम जिलों में विधानसभा सीटों की कुल संख्या 18 हैं। दुमका संसदीय सीट के अन्तर्गत कुल छः विधानसभा क्षेत्र हैंः-दुमका, जामा, शिकारीपाड़ा, (सभी आरक्षित) नाला, जामताड़ा व सारठ (अनारक्षित) वहीं अलग-अलग विधान सभा क्षेत्र का नेतृत्व वर्तमान में हेमन्त सोरेन (दुमका) सीता सोरेन (जामा) नलिन सोरेन (शिकारीपाड़ा) शशांक शेखर भोक्ता (सारठ) व विष्णु भैया (जामताड़ा) अपने-अपने कर रहे हैं। दुमका संसदीय सीट का एकमात्र विधानसभा क्षेत्र है नाला जो भाजपा के हिस्से में है और इस विस क्षेत्र से सत्यानंद झा बाटुल विधायक हैं।
गोड्डा संसदीय क्षेत्रान्तर्गत गोड्डा, देवघर, मधुपुर, पोड़ेयाहाट, महगामा व जरमुण्डी विस क्षेत्र की बात की जाय तो गोड्डा से संजय प्र0 यादव, महगामा से राजेश रंजन,, देवघर से सुरेश पासवान, पोड़ेयाहाट से प्रदीप यादव, मधुपुर से हाजी हुसैन अंसारी व जरमुण्डी से हरिनारायण राय (निर्दलिय) विधायक हैं। राजमहल संसदीय क्षेत्रान्तर्गत राजमहल विस क्षेत्र से अरुण मंडल, बोरियो से लोबिन हेम्ब्रम, बरहेट से हेमलाल मुर्मू, लिट्टीपाड़ा से साईमन मराण्डी, पाकुड़ से अकिल अख्तर व महेशपुर से मिस्त्री सोरेन विधायक हैं। संताल परगना की उपरोक्त तमाम विस सीटों में से अधिकाधिक सीटें झामुमों के कब्जे में है। पोड़ेयाहाट से प्रदीप यादव व लिट्टीपाड़ा से मिस्त्री सोरेन को छोड़कर संताल परगना में झाविमों कहीं नजर नहंी आता। भाजपा की स्थिति संताल परगना में और भी खस्ताहाल है। नाला विस क्षेत्र से भाजपा के एक मात्र विधायक सत्यानन्द झा बाटुल विधान सभा में अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। झारखण्ड विधानसभा में विधायकों के लिये कुल 81 सीटें हैं। आने वाले विधान सभा चुनाव में झाविमों तमाम सीटों पर प्रत्याशी उतारती है तो उसे सोंच-समझ कर कदम उठाना होगा। ऐसा नहीं कि लोक सभा की तरह ही विधान सभा चुनाव में उसकी भद्द पिट जाऐ। दूसरों की देखादेखी और उतावलेपन में की गई राजनीति का परिणाम अच्छा नहीं होता इसके लिये सतत् मेहनत की आवश्यकता होती है। रही जनता-जर्नादन की बात तो यह सत्य है जिस सूबे की अधिसंख्य आबादी गैर आदिवासी समुदाय से आती हो और जिसके विरुद्ध एक साजिश के तहत किया गया काम उसकी अस्मिता पर ही सवाल खड़ी करती हो तो वैसी स्थिति में वह भी अपना फैसला सुनाने के लिये स्वतंत्र होगी। जनता का विश्वास हासिल करना व सूबे की साढ़े तीन करोड़ जनता के लिये समान विचारधारा रखने वाली पार्टी ही आने वाले समय में इस राज्य की सत्ता पर अपना हक साबित करने में सफल हो सकती है।
राजनीतिक अखाड़े में दांव-पेंच के माहिर फनकार शिबू सोरेन यूँ तो जीवन के सांध्य पड़ाव पर विराजमान हैं और राजनीति के दैनिक क्रिया-कलापों से अलग-थलग देखे भी जा रहे, तथापि जल-जंगल, जमीन व आदिवासियों के हक-हकुक की लड़ाई के पुराने दिनों के स्मरण मात्र से उनमें अद्भूत किस्म की उर्जा का संचार हो जाता है और वे जनता-जर्नादन से पूर्व की तरह ही मिलने-जुलने को आकुल-व्याकुल दिखलाई पड़ जाते हैं, किन्तु झामुमों की पूरी राजनीति अपने हाथों संभाल रहे मुख्यमंत्री पुुत्र व पार्टी के युवा नेता हेमन्त सोरेन के इशारों पर चलने वाले शिबू सोरेन ने पूरे देश में नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की लहर के बावजूद अपनी सीट को बचाऐ रखा तो यह कम बड़ी बात नहीं।
गठबंधन धर्म का पालन करते हुए मात्र चार लोक सभा सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा करने वाली पार्टी झामुमों ने दुमका सीट के अलावे राजमहल सीट को भी अपने कब्जे में कर यह साबित कर दिया कि पार्टी से पुराने खिलाडि़यों के बाहर होने के बाद भी यह किसी की मोहताज नहीं। अलबत्ता संताल परगना क्षेत्र से जिसने भी झामुमों को दरकिनार किया वह राजनीति के कुरुक्षेत्र से दूर-अति दूर होता चला गया। इतना ही नहीं भाजपा छोड़ जिन राजनीतिक दलों ने इस इलाके में पैर पसारने की कोशिशें की उन्हें भी अपनी प्रतिष्ठा से दो-चार होना पड़ा। लोकसभा चुनाव-2014 में अपनी पार्टी के प्रत्याशियों सहित गठबंधन के तहत काँग्रेस व राजद उम्मीदवारों के लिये जिस तरह चुनावी प्रचार अभियान में शिबू सोरेन ने खुद को व्यस्त करते हुए चुनावी जनसभाओं को संबोधित तथा नुक्कड़ कार्यक्रमों को संबोधित किया उससे यह स्पष्ट हो गया कि उम्र की ढलती शाम से लगातार थकान महसूस करते रहने के बावजूद शिबू सोरेन ने मन-आत्मा से अपनी स्वस्थता का परिचय दिया तथा पार्टी निर्णय के अनुसार खुद का कोल्हू के बैल की तरह प्रयोग किया। यह दिगर बात है किसी कार्यक्रम में भाग लेते-लेते निद्रा में आ जाने की बीमारी के भी वे इस दौरान शिकार होते रहे।
अमरेन्द्र सुमन
झारखण्ड