अंधा होना अपने आपमें कुदरत का भयंकर अभिशाप है। इसकी व्यथा वे ही जान सकते हैं जिनकी आँखें नहीं है अथवा आँखों की रोशनी गायब हो चुकी है और अब अपनी आँखों से संसार को देखना शायद ही संभव हो पाए।
अंधेपन के मामले में प्रतिशत काम करता है। कुछ लोग शत-प्रतिशत अंधे हैं, कुछ कम-ज्यादा। कुछ के लिए बिना चश्मों के अंधापन ही रहता है, कुछ लोग चश्मों के बावजूद अंधत्व के शिकार बने रहते हैं और काफी सारे ऎसे हैं जो चश्मों की सहायता से अपने अंधत्व को दूर कर पाने का अहसास कर लिया करते हैं। कुछ ऎसे हैं जिनकी आँखें भी हैं, रोशनी भी है लेकिन जानबूझकर अंधे ही बने हुए हैं और अंधे ही बने रहना चाहते हैं। ये लोग ‘अंधेरा कायम रहे’ वाले संप्रदाय से हैं।
यों देखा जाए तो रोशनी वाले वे ही लोग हैं जो बिना चश्मों की सहायता से सारे काम कर लिया करते हैं और उन्हें चश्मों की जरूरत नहीं है। इन सारी स्थितियों के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है बल्कि हम ही उत्तरदायी हैं जिन्होंने ऎसे-ऎसे आत्मघाती कदम उठा रखें हैं कि जिससे हमारी रोशनी को लंबे समय तक बरकरार रखे रखना अब मुश्किल ही हो गया है।
उसका एक कारण तो यह है कि हमारी दिनचर्या का संतुलन गड़बड़ा गया है। आँखों का सीधा संबंध सूर्य से है और जितनी देर तक सूर्य रहता है उतने ही घण्टे हमारी आँखों का ओज-तेज बना रहता है।
यह पूरी प्रक्रिया सौर ऊर्जा की ही तरह है जहाँ जितना अधिक सूर्य का सान्निध्य होगा उतनी अधिक ऊर्जा का संग्रहण होता रहेगा। और निर्धारित घण्टों से ज्यादा यदि उपयोग ले लिया तो फिर ये ऊर्जा भी जवाब दे जाएगी। हमारे साथ लगभग इसी प्रकार की स्थितियां हैं।
पहले लोग सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही काम किया करते थे इसलिए उन्हें दिन भर सूर्य की रश्मियों से अपनी आँखों के लिए ऊर्जा मिलती रहती थी और दिन ढलने के बाद लोग उन कामों में ज्यादा माथापच्ची नहीं करते थे जिनमें आँखों और बुद्धि को कोई ज्यादा जोर देना पड़े।
जल्दी सोने और जल्दी जगने की आदत से सूर्य और रोशनी का सीधा संबंध था और इस कारण कुछ दशकों पहले तक हमारी आँखों की रोशनी बरकरार थी। अब हम पर मशीन की तरह काम करते हुए कम समय में अधिक से अधिक पैसा बनाने का भूत सवार है और इस कारण जीवनचर्या रात्रि की ओर ज्यादा घूम गई है। हमने स्वेच्छा से निशाचरी को अपना लिया है। यह भूत हमारे शरीर और आनंद से ऊपर है जिसके लिए हमने अपने सारे संतुलनों को पछाड़ दिया है।
जिन लोगों के लिए रात्रि के काम विहित हैं उनकी बात छोड़ भी दें तो दिनचर्या का ग्लोब रात की ओर अनावश्यक रूप से ज्यादा ही घूम चुका है। हममें से अधिकांश लोग बिना बात के रात को देर तक जगते हैं और इस वजह से सवेरा होने के बाद भी देर तक सोते रहते हैं।
इस कारण से हमारी रोशनी का पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है क्योंकि हम सूर्य का बहुत ही कम घण्टों का सान्निध्य पा रहे हैं और इसमें भी सूरज की रोशनी से दूर एयरकण्डीशण्ड कमरों में कैद होकर दिन गुजार देने वालों की संख्या भी कोई कम नहीं है।
इस वजह से प्रकृति के पंच तत्वों का दैनिक पुनर्भरण तक भी अपेक्षित मात्रा में नहीं हो पा रहा है और नाश्ते की तरह दवाइयों का सेवन करने को हम विवश हैं। रात को देर तक जगने और सवेरे सूरज निकलने के बाद देर तक सोते रहने की आदत के कारण हमारा शरीर भी बीमारियों का सुरक्षित घर होता जा रहा है।
इसी प्रकार आजकल वाहनों में फ्लड़ लाईट, फोगिंग लाईट और जाने कैसी-कैसी हैड़ लाईटस का जमाना आ गया है। हर कोई चाहता है कि उसके वाहन की हैडलाईट ऎसी हो कि सामने वालों की आँखें चुँधिया जाएं और कुछ दिखे ही नहीं।
आपराधिक और फैशनी दोनों प्रकार के वाहनधारियों के लिए यह आज का सबसे बड़ा शौक हो गया है। एक जमाना था जब वाहनों की हैडलाईट पर ऊपर की तरफ एक चौथाई चन्द्रकार काला किया जाता था ताकि सीधी रोशनी सामने से आने वाले वाहनों के चालक और बैठे लोगों की आँखों पर न जाए। इसकी काट के रूप में डीपर आ गए लेकिन हम सारे के सारे लोग इतने अनुशासनहीन और नालायक हैं कि डीपर देते ही नहीं।
यही कारण है कि तेज रोशनी किसी घातक और मारक रोशनी की तरह लगती है और दुर्घटनाओं का ग्राफ बढ़ता ही चला जा रहा है। इस तेज और मारक रोशनी का दूसरा प्रभाव यह पड़ रहा है कि वाहनचालकों की आँखें समय से पहले ही नाकारा होने लगी हैं।
हम भी इन वाहनचालकों में ही शुमार हैं जिनके पास दुपहिया से लेकर किसम-किसम के वाहन हैं और रात्रि में वाहन चलाते हुए हम सभी यह अनुभव करते ही हैं कि तेज रोशनी नुकसान करती है।
बात हमारी ही नहीं पूरे देश की है जहाँ करोड़ों लोग वाहन चलाते हैं और उन्हें हर क्षण इस मारक रोशनी को अनचाहे ही सहन करना पड़ रहा है। इससे सीधा नुकसान हमारे देश का हो रहा है जहाँ अरबों आँखों का भविष्य अंधकार से घिरता जा रहा है।
इसके लिए हम सभी को चाहिए कि किसी के भरोसे नहीं रहें। जो हमारी आँखों के लिए अच्छा नहीं है, हमारी रोशनी छीन लेता है, दुर्घटनाएं करा देता है, उस कारक को समाप्त करें। हम सभी अपने नागरिक दायित्वों को अच्छी तरह समझें और यह प्रण लें कि हमारे वाहनों पर तेज रोशनी नहीं लगाएंगे जिससे कि सामने वालों की आँखें चुंधिया जाएं और दुर्घटनाएं घटित हो जाएं।
हमें यह भी चाहिए कि खुद इस बात की पहल करें कि अपने वाहनों की हैडलाईट पर काली पट्टी लगाएं ताकि हमारे देश की आँखें सुरक्षित रहकर सुनहरे भविष्य और प्रगतिशील भारत के सुनहरे रंगों को अपनी आँखों से देख सकें।
हमारी स्थिति आजकल यह हो गई है कि दूसरे की आँखों को फोड़ देने में भी हमें सुकून मिलता है। और यही कारण है कि इस छोटी सी लेकिन करोड़ों लोगों के जीवन से जुड़ी इस त्रासदी के प्रति भी हम बेपरवाह बने हुए हैं।
आईये देश की आँखों को सुरक्षित एवं स्वस्थ रखने का बीड़ा उठायें। अभी कुछ कर पाएं तो ठीक है वरना जान लें कि अपनी आँखों का कोई भविष्य नहीं है। नेत्रदान के नारों, अंधत्व निवारण की बातों से भी बढ़कर है यह सामाजिक सरोकार।
---डॉ. दीपक आचार्य---
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