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आलेख : दान वही जो दाता बनाए ...!!

भारतीय संस्कृति में दान का चाहे जितना ही महत्व हो, लेकिन यह विडंबना ही है कि दान समर्थ की ही शोभा पाती है। मैं जिस जिले में रहता हूं, वहां एक शिक्षक महोदय एेसे थे , जिन्होंने अपने सेवा काल में एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली, औऱ रिटायर होने पर जीवन भर की सारी कमाई उसी शिक्षण संस्थान को दान कर दी, जिसमें वे पढ़ाते थे। लेकिन इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई। कई गरीब परिवार के लोगों को भी मैने स्कूल - कालेज के लिए रुपए व जमीन आदि का दान करते देखा है। 

लेकिन उनके इस महान दान को भी किसी ने ज्यादा भाव नहीं दिया। दान तो तथाकथित बड़े लोगों यानी सेलीब्रिटीज की ही चर्चा में आ पाती है। अभी  कुछ दिन पहले अखबार में पढ़ा कि फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने मरणोपरांत नेत्र दान का फैसला किया है। दूसरे दिन की सुर्खिया रही कि बंगला फिल्म जगत की प्रख्यात अभिनेत्री ऋतुपर्णा सेनगुप्ता ने मरणोपरांत देहदान की घोषणा की है। मुझे याद है कुछ साल पहले महानायक अमिताभ बच्चन द्वारा अपने गृह उत्तर प्रदेश में स्कूल - कालेज के लिए जमीन दान देने पर खासा विवाद हुआ था। लेकिन दान तो वास्तव में एेसे हस्तियों की ही चर्चा में आ पाती है। 

अब देखिए ना, कुछ साल पहले जब बाबा रामदेव की वजह से योग देश - दुनिया में प्रसिद्धि पा रहा था, तब नेत्रदान का फैसला करने वाली अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने चुस्त कपड़ों में योग करते हुए इसका वीडियो बनवा कर तहलका मचा दिया। इस वीडियो से किसकी कितनी कमाई हुई, यह तो बनाने वाले ही जाने। लेकिन इससे कई एेसे लोगों की रुचि भी योग  के प्रति जगने लगी, जो इसके नाम पर पहले  नाक - भौं सिकोड़ते थे। मेरे शहर की राजनीति से जुड़े एक कथित बड़े आदमी की दानवीरता के बड़े चर्चे सुने थे। परिस्थितवश एक दिन मैने उनके सामने एक बेहद तुच्छ राशि के दान का प्रस्ताव रख दिया । जिसे सुनते ही उस नेता को मानो सांप सुंघ गया। एेसा लगा मानो  किसी भिखारी ने राजा से उसका राज - पाट मांग लिया हो। काफी  ना - नुकुर व आर्थिक परेशानियों पर बड़ा सा लेक्चर पिलाने के बाद वे सामान्य राशि के दान को तैयार तो हुए , लेकिन उसे वसूलने में मुझे कई  चप्पलों की कुर्बानी देनी पड़ गई। 

एक एेसे ही दूसरे नेता के मामले में भी मुझे कुछ एेसा ही अनुभव हुआ। उसके बारे में सुन रखा था कि उसने कई मंदिर औऱ श्मशान घाट बनवाए हैं। लेकिन इस मामले में भी वही हुआ। एक सार्थक कार्य  के लिए छोटी सी राशि दानस्वरूप मांगते ही मानो दाता के  पांव तले से जमीन खिसकने लगी। वह रूआंसा हो गया। दुनिया की नजरों में बड़ा आदमी होने के बावजूद उसने अपनी आर्थिक परेशानियों का रोना शुरू किया, जिसे सुन कर मेरी आंखों से आंसू निकल गए।  इस तरह  उससे भी दान की राशि वसूलने में मुझे महीनों लग गए। बहरहाल दो अभिनेत्रियों के दान की चर्चा सुन कर मेरे मन में भी कुछ दान करने की प्रबल इच्छा जगने लगी है। लेकिन  जीवन की दूसरी इच्छाओं की तरह यहां भी मन मसोस कर ही रह जाना पड़ रहा है। 






तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934 
​लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।

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