उत्तर भारत में इन दिनों आसमान से आग बरस रही है। बढ़ते पारे के साथ बढ़ती तपन ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। दिल्ली, जयपुर, नागपुर, भोपाल समेत कई षहरों में गर्मी के रिकार्ड टूटे। बढ़ती गर्मी के बीच बढ़ते बिजली संकट ने पूरे देष में हाहाकार मचा रखा है। षायद ही देष का कोई ऐसा राज्य होगा जो इन दिनों बिजली की समस्या से अछूता हो। देष की राजधानी दिल्ली में भी लोग बिजली की समस्या से दो चार हैं। बिजली न आने की वजह से यहां लोगों की जिंदगी थम सी गई है। बिजली संकट से निपटने के लिए दिल्ली के ज़्यादातर क्षेत्रों में इन दिनों बिजली की घोशित कटौती की जा रही है। दिल्ली में इन दिनों 4,600 से 4,700 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है जबकि तापमान में लगातार इज़ाफे से बिजली की मांग 6 हज़ार मेगावाट के आस पास पहुंच गयी है। यह हाल तो देष की राजधानी का है। ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बिजली की समस्या को लेकर देष के दूर दराज ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को कितनी परेषानी का सामना करना पड़ता होगा। बिजली की समस्या को देकर सीमावर्ती क्षेत्रों का हाल तो और ज़्यादा बेहाल है।
राजीव गांधी ग्राम विद्युतीकरण योजना की षुरूआत भारत सरकार के ज़रिए दूर दराज़ के इलाकों तक बिजली पहुंचाने के साथ साथ विद्युतीकरण अभियान को गति प्रदान करने के मकसद अप्रैल 2005 में की गई थी। यह स्कीम दूर दराज़ के इलाकों तक बिजली पहुंचाने में मील का पत्थर साबित हुई। बावजूद इसके आज भी देष में ऐसे गांवों की कमी नहीं हैं, जहां के लोगों के लिए बिजली आज भी एक सपना बनी हुई है। ऐसे गांवों में आज भी लोग रात के अंधेरे में ही जिंदगी गुज़ारने को मजबूर हैं। जिन गांवों में बिजली पहुंच भी गई है, वहां बिजली का पहुंचना न होने के बराबर ही है। इस स्कीम के तहत 2020 तक देष के ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह मकसद पूरा हो पाएगा, क्या मुल्क के सभी ग्रामीण इलाकों में यह स्कीम पहुंच पाएगी? ग्रामीण इलाकों में बिजली की मौजूदा स्थिति को देखते हुए इसके संभव होने के आसार कम ही नज़र आ रहे हैं। सीमावर्ती इलाकों में तो बिजली संकट और ज़्यादा कहर बरपा रखा है।
जम्मू एवं कष्मीर के सीमावर्ती जि़ले पुंछ में बिजली की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए मैंने तहसील मेंढ़र के बलनोई गांव का दौरा किया। इस गांव की आबादी तकरीबन 3,500 है। यहां की वादियों को देखकर दिल बाग बाग हो जाता है। लेकिन इस गांव में तमाम बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। गांव में बिजली की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है। हां गांव में कभी कभी लोगों को बिजली के दीदार ज़रूर हो जाते हैं। गांव में बिजली की समस्या की सही स्थिति जानने के लिए मैंने घर घर जाकर लोगों से बात की। इस दौरान मैं बाबूहान जी के घर पहुंचा, बाबूहान जी उस वक्त घर पर नहीं थे। बिजली की समस्या के बारे में उनकी पत्नी मातयां बी (55) ने मुझे बताया कि यहां बिजली सिर्फ षुक्रवार के दिन ही आती है। इस बारे में जब बाबूहान जी की बेटी से मेरी बात हुई तो उसने बताया कि जब भी हम खाना खाने बैठते हैं तो बिजली नहीं होती है। इसके अलावा गांव में कई स्थानों पर बिजली के खंभे नहीं हैं। जिसके कारण कहीं कहीं पेड़ों से बांधकर बिजली की तारों को ले जाया गया है। इसकी वजह से लोगों और जानवरों की जान को बहुत खतरा रहता है। यहां के लोग अपने पैसे खर्च कर तारें लगाते हैं, फिर भी बिजली नहीं आती। सबसे चैंकाने वाली बात यह है कि गांव में बिजली वक्त से नहीं आती है, मगर बिजली के बिल समय से आ जाते हैं।
गांव में बिजली पर जब मैं सरपंच, मियां अब्दुन गनी के घर गया, तो वह घर पर नहीं थे, किसी षादी में गए हुए थे। बिजली के बारे में जब मेरी उनकी पत्नी मुनीरा बी से बात हुई तो उनका कहना था कि बिजली एक दिन आती है। मैंने उनसे कहा कि आपके पति सरपंच हैं, उन्होंने बिजली की समस्या को लेकर किसी अधिकारी से षिकायत क्यों नहीं की, तो इस पर उनका कहना था कि कई बार अधिकारियों से उन्होंने कहा लेकिन अधिकारियों ने उनकी नहीं सुनी। इस वजह से लोगों ने बिजली की समस्या को लेकर उनके पास आना बंद कर दिया है। गांव में बिजली न होने की वजह से छात्र-छात्राओं की पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाती है। बलनोई गांव की जनता सरकार से अपील करते हुए कहती है, क्या कभी हमें हमारे हिस्से की बिजली मिल पाएगी, क्या कभी हमारे घरों में भी उजाला होगा? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि देष मे नव निर्वाचित सरकार सीमा पर बसे लोगों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरती है। फिलहाल तो मजबूर बेबस इस गांव के लोग इस आस के साथ कि कभी तो गांव में बिजली की व्यवस्था ठीक होगी, जिंदगी के सफर में आगे बढ़ रहे हैं।
एजाज़ अहमद
(चरखा फीचर्स)