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आलेख : अजीब कबाड़ी हैं ये किताबों और कतरनों के

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आदमियों की जात में कई प्रजातियों का मेल-बेमेल घालमेल सदियों से रहा है, और रहेगा ही। इसमें न विधाता कुछ कर सकता है न हम। इन्हीं अनगिनत किस्मों के बीच एक ऎसी प्रजाति है जो किताबों की मित्र भी कही जा सकती है और दुश्मन भी।

इन लोगों की भी कई उप प्रजातियां हैं। एक वे हैं जो पुस्तकों को संदर्भ या संग्रह के रूप में सहेज कर रखते हैं और जरूरत के समय इन पुस्तकों का उपयोग कर लिया करते हैं अथवा औरों को इनका लाभ दिलाते रहते हैं। एक वे हैं जिनके लिए पुस्तकों का कोई उपयोग नहीं है मगर इनके जीवन का एकसूत्री एजेण्डा होता है पुस्तकों का संग्रह। इस किस्म के लोग कभी खरीद कर पुस्तक नहीं लेते। पुस्तकें खरीदना इनके लिए अधर्म से भी बढ़कर है। ये लोग या तो पुस्तकों को चुराते हैं अथवा मांग कर ले जाते हैं और फिर अपने घर में संग्रह करते चले जाते हैं।

इस किस्म के लोग किताबों के कबाड़ियों से कम नहीं होते जिनका काम ही कबाड़ जमा करना होता है। इनके द्वारा जमा की गई पुस्तकों का न ये खुद कभी उपयोग करते हैं न किसी और को इनका उपयोग करने देते हैं।
इस किस्म के लोगों के यहां जमा किताबें दीमकों का भोजन ही होती हैं अथवा इनके मरने के बाद किसी नहर या नदी में चुपचाप विसर्जन के योग्य होती हैं या कि घटिया रद्दी वालों के हवाले हो जाया करती हैं।

हर इंसान को भगवान ने अन्यतम बनाया हुआ है और उसी के अनुरूप उसकी आदतें भी अलग ही किस्म की हुआ करती हैं। इन्हीं में हैं ये कबाड़ी, जिनकी जिंदगी किताबों का संग्रह करते-करते ही निकल जाया करती है।
इन्हीं के सहोदर माने जा सकते हैं वे लोग जो कतरनों के संसार के बीच रहने को ही जिंदगी समझ बैठे हैं। इनके जीवन का लक्ष्य इतना विराट और व्यापक होता है कि पूरी दुनिया से लेकर ब्रह्माण्ड तक की जानकारी भरी कतरनों को अपने यहां जमा करते रहते हैं, भले ही इन्हें पूरी जिंदगी में कभी दुबारा देखने का मौका मिले या न मिले। न ये कतरनें ये किसी को देखने देते हैं न और कोई उपयोग हो पाता है। इन कतरनों को देखकर रद्दी वाले भी नौक भौं सिकोड़ते हैं और साफ इंकार कर दिया करते हैं।

जहाँ कहीं किताबें या कतरनें अथवा और कोई सामग्री बिना उपयोग के पड़ी रहती है उनमें से लगातार नकारात्मक ऊर्जा का स्फुरण होता रहता है और इस वजह से उन लोगों की जिंदगी अभिशप्त हो जाया करती है जो लोग बिना उपयोग या आवश्यकता के अपने यहां भण्डारण करने की बुरी आदत पाल लिया करते हैं।

सामग्री का यथोचित उपयोग करें, न कर पाएं तो योग्य व्यक्तियों और उन पात्र लोगों तक इसे पहुँचा दें जो इनका समाज और देश हित में उपयोग कर पाने में सक्षम हैं। बिना वजह किसी प्रकार की सामग्री को अपने पास संग्रह न कर रखें। बिना उपयोग के अपने घर में पड़ी सामग्री श्राप देती है और इससे हमारे मन-मस्तिष्क और शरीर पर खराब असर पड़ता है।

कई बार हमारे जीवन में समस्याओं का अपने आप अंबार लग जाया करता है,  दिमागी और शारीरिक उलझनें बनी रहती हैं और लाख उपाय करने के बाद भी राहत नहीं मिल पाती है। इसका कारण यही है कि हमारे पास फालतू का कबाड़ जमा हो जाता है। फिर चाहे वे पुस्तकें हों या और कुछ सामग्री।

हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि पुस्तकें ज्ञानियों और विद्वानों के लिए हुआ करती हैं, कबाड़ियों और व्यवसायिक बुद्धि वालों के लिए नहीं। बिना कारण कबाड़ जमा करते रहने की आदत से अपने आपको बचाएँ वरना अपने लिए किसी काम की नहीं रहने वाली इस सामग्री के पड़ी रहने से जो अभिशाप सामने आएगा, उससे कोई बचा नहीं पाएगा। हर सामग्री अपना उपयोग चाहती है फिर चाहे वह जड़ हो या चेतन। पंचतत्वों की प्रकृति ही नित नवीन परिवर्तन में रमी हुई होती है उसे जड़ता में कैद रखने की भूल कभी न करें।






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---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com


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