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मानव मात्र में होती है दैव बनने की मौलिक संभावनाएं - महंत हरिओमदासजी

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  • लालीवाव मठ में भागवत कथा महोत्सव के तीसरे दिन श्रद्धालुओं का जमघट लगा

prawachan
बाँसवाड़ा, 7 जुलाई/लालीवाव मठ के पीठाधीश्वर एवं श्रीमद्भागवतमर्मज्ञ महंत हरिओमशरणदास महाराज ने कहा है कि मानव मात्र में जन्म से ही दैव बनने की मौलिक प्रतिभाएं होती हैं। इन अनन्त संभावनाओं को जो जान लेता है वही ईश्वरत्व को प्राप्त कर लेता है। महंत हरिओमशरणदास महाराज ने सदियों पुराने ऎतिहासिक लालीवाव तीर्थ में गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष में हो रही भागवत कथा के तीसरे दिन बड़ी संख्या में उमड़े श्रद्धालुओं को श्रीमद्भागवत कथा अमृतपान कराते हुए यह उद्गार व्यक्त किए।

छिपे गुणों को प्रकट करती है भागवत
महंतश्री ने कहा कि मनुष्य की सीमाएं व इच्छाएं अनंत हैं, लेकिन यह गुण पशु-पक्षियों व अन्य जीवों में नहीं है । मनुष्य  जीवन के दो मुख्य तथ्य हैं, पहला कर्म की स्वायत्तता व दूसरा चिन्तन की स्वतंत्रता । ये दोनों प्रतिभाएं सिर्फ मनुष्य को जन्म से ही प्राप्त होती है  और उसके  अंदर छिपी रहती है । मनुष्य जब सत्य को ढूंढ़ने के लिए निकलता है, तो उसे भक्ति अपने अंदर ही मिल जाती है । भागवत कथा हमारे भीतर छिपे गुणों को जागृत करती है । भागवत कथा ऎसा संवाद है जो कि मनुष्य के लिए अपने आपको सत्य का भान कराने वाला है।
       
भक्ति के बिना सारे कर्म बेकार
महंतश्री ने कहा कि मनुष्य के समस्त भटकाव  भागवत कथा से कम होते हैं और उसे सहज रूप में ईश्वरीय मार्ग प्राप्त होता है। इसलिए मनुष्य को सतत भगवान का ध्यान करना चाहिए,  उसके साकार रूप को जानना चाहिए। महंत ने कहा कि संसार का रास्ता पूछने पर प्रत्येक व्यक्ति बता देगा, लेकिन भगवान का रास्ता पूछने पर संसारी व्यक्ति नहीं बता सकता है । भगवान का रास्ता कोई सद्गुरु व महापुरुष ही बता सकता है । सद्गुरु के बताये मार्ग पर चलने से मानव को परमात्मा की प्राप्ति होती है । उन्होंने कहा कि भागवत कथा श्रवण मात्र से हृदय में ऎसी भावनाएं समाहित होती हैं, जिससे व्यक्ति मन, वाणी व कर्म से प्रभु में लीन हो जाता है । धर्म जगत में जितने भी योग, यज्ञ, तप व अनुष्ठान आदि किये जाते हैं, उन सबका लक्ष्य भगवान की भक्ति पाना होता है । भक्ति के बिना कोई भी कर्म बेकार है ।
       
ध्यान से रुकेगा मन का भटकाव
भागवत कथाचार्य श्रीमहंत हरिओमदास महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के मर्म पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि ईश्वर में ध्यान लगाकर मन के भटकाव को रोका जा सकता है । यह तभी संभव होगा, जब मनुष्य भक्ति में लीन हो जाए । श्रीमद्भागवतमर्मज्ञ संत श्री हरिओमशरणदास महाराज ने कहा कि ईश्वर का अपने हृदय में निवास स्थिर करने के लिए ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना जरूरी है।  भूतकाल को भूलाकर वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए, सृष्टि में बदलाव लाना चाहिए। जैसा भाव होगा वैसी दृष्टि बनेगी, ब्रह्म दृष्टि बनने पर सभी में ईश्वर दिखता है । भगवान से हमें मुक्ति का पद मांगना चाहिए । संसार में सभी जीव परमात्मा के अंश हैं । सभी में परमात्मा को देखने वाला विद्वान होता है । जिसकी दृष्टि में शुद्धता नहीं होती है वह इस संसार में पूजा नहीं जाता है अर्थात् शुद्धता से ही सबका प्रिय बना जा सकता है । मनुष्य की सभी वासनाएँ परिपूर्ण नहीं होती हैं  लेकिन केवल भगवान को प्राप्त होने से प्राणी तृप्त हो जाता है । अश्वत्थामा की कथा का उद्धरण देते हुए महाराजश्री ने कहा कि पाण्डवों के पुत्रों का वध तक कर देने वाले अश्वत्थामा को द्रौपदी ने ब्राह्मण पुत्र एवं गुरु पुत्र हो जाने से क्षमा कर दिया और दया को अपनाया, इसीलिये भगवान की वह कृपा पात्र बनी रही।
       
हर क्षण रहे परमात्मा का स्मरण
उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए तभी जीवनयात्रा की सफलता संभव है। दुःखों में ही भगवान को याद करने और सुखों में भूल जाने की प्रवृत्ति ही वह कारक है जिसकी वजह से आत्मीय आनंद छीन जाता है। कुंती ने इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण से मांगा कि जीवन में सदैव दुःख ही दुःख मिलें ताकि भगवान का स्मरण दिन-रात बना रहे।
       
दुष्टों का अन्न-जल त्यागें
पापकर्म में रत और पापी व्यक्ति के अन्न को त्यागने पर बल देते हुए लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज ने पितामह भीष्म और द्रौपदी के संवाद का उदाहरण दिया और कहा कि स्वयं पितामह ने स्पष्ट किया था कि पापी दुर्योधन का अन्न खाने से उनकी मति भ्रष्ट हो गई थी। इसलिए जो व्यक्ति दुष्ट है, पापी है उससे संबंध होने का अर्थ है भगवान से दूरी, ज्ञान और विवेक से दूरी। ऎसे दुष्ट व्यक्तियों का संग किसी को भी, कभी भी डूबो दे सकता है। सज्जनों को चाहिए कि दुष्ट व्यक्तियों के संग और व्यवहार से दूरी बनाए रखे। महंतश्री ने कहा कि ‘पापियों के संग में मुफ्त में खाने-पीने से लेकर सारी सुविधाएं तक अच्छी लगती हैं लेकिन जीवन के लक्ष्य से मनुष्य भटक जाता है और यह विवेक तभी जगता है जब संसार से विदा होने का समय आता है। इसलिए अभी से सचेत हो जाओ और दुष्टाेंं-पापियों से दूर रहकर अच्छे काम करो, ईश्वर का चिंतन करो।’

भजनों ने किया मंत्रमुग्ध
कथा के दौरान वाद्यों की संगत पर भजनों की भावपूर्ण प्रस्तुतियों ने भावविभोर कर दिया। इस दौरान रामचरण अनुराग है, तेरी बिगड़ी बनेगी..’’, तथा ‘‘मिलता है सच्चा सुख केवल भगवान तुम्हारे चरणों में ’’ की सुमधुर गायकी पर रसिक श्रोता झूम उठे। संचालन शांतिलाल भावसार ने किया। आरंभ में श्री अभिरामदास महाराज, छगनलाल पंचाल, सुभाष अग्रवाल, सुखलाल सोलंकी, महेश राणा, दीपक तेली, गोपालसिंह, शांतिलाल भावसार आदि द्वारा माल्यार्पण एवं व्यासपीठ का पूजन किया गया । पार्थिव शिव पूजन पं. घनश्याम जोशी व साथियों द्वारा विधि विधान से किया गया ।
       
पार्थिव लिंगों से बने यंत्रों ने जगाया आकर्षण
लालीवाव मठ में चल रहे आठ दिवसीय गुरुपूर्णिमा महोत्सव के अन्तर्गत सोमवार को मिट्टी के बने पार्थेश्वर शिवलिंगों से निर्मित यंत्र और अन्य देव प्रतिमाओं एवं यंत्रों के पूजन के लिए श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहा। पं. ललित पाठक के सान्निध्य में साधकों के समूहों ने यंत्र का निर्माण किया। ये मिट्टी से बने ये यंत्र आकर्षण का केन्द्र बने रहे।
       
आज मनेगा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव
महाराज श्री ने बताया की कृष्ण जन्मोत्सव बड़ी धूम धाम से मंगलवार को मनाया जायेगा । इसके लिए मठ में व्यापक तैयारियां की गई हैं।

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