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आलेख : चमत्कारीक स्वयं-भू मंदिर हे नरसिंह देवला

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  • निरापराध आदमी कि टूटती हे बेडीया

narsingh-mandir-jhabua
झाबूआ-(अनिल श्रीवास्तव)--मालवंचल के इन्दोर संभाग मे धार जिले के राजगड सरदारपूर तहसील से करिब पांच किलोमीटर दूर हे बदनावर मार्ग पर माही नदी के किनारे भगवान विष्णू के अवतार नरसिंह भगवान की आदम कद प्रतिमा का चमत्कारीक स्वंयभू मदिर हे जहा पर निरअपराध आदमी बेडीया अपने आप टूट जाती हे। मालवा,गूजरात,राजस्थान व महाराष्ट्र के लोगो की धार्मिक आस्था का केन्द्र हे नरसिंह धाम जहा प्रतिदिन सैकडो श्रद्धालू दशर्नाथ आते हे दर्शन लाभ लेकर अपनी मन्नत पूरी करते हे।मंदिर का संचालन वर्तमान मे यहा पर विराजित महंत श्री श्यामदास जी महाराज व ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा हे। यही से माही नदी का उदगम स्थल करिब 20 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा मे ग्राम मिण्डा के नाम से जाना जाता हे यही से प्रवाहीत होकर माही नदी भोपावर,सरदारपूर,नरसिंह देवला से श्रृगंेश्वर धाम से होति हूई मध्यप्रदेश के पश्चिम दिशा से गूजरात मे प्रवेश करती हे जहा ये माही सागर के नाम से जानी जाती हे।

ऐतिहासिक हे मंदिर---

narsingh-mandir-jhabua
सरदार पूर राजगड का सम्पूर्ण क्षेत्र द्वापर कालीन हे महाभारत के समय यह क्षेत्र खण्डव प्रस्थ के नाम से जना जाता था इस क्षेत्र मे भगवान श्रीकृष्ण कि कई निशानिया व दंत कथाए आम लोगो कि जूबान पर आज भी मोजूद हे  मंदिर के ट्रस्टी व आसपास के ग्रामिण बताते हे कि  भगवान नरसिंह के मंदिर का इतिहास बहूत हि प्राचीन हे करिब पांच हजार वर्ष पूराना हे यह स्थान उक्त नरसिंह भगवान कि मूर्ति यहा कब केसे आई इसका कोई प्रमाण नही हे ग्रामिणो के कथनानूसार यह मूर्ति स्वयं ही हजारो वर्ष पूर्व यहा प्रकट हूई हे तब से यह नरसिह भगवान कि आदम कद मूर्ति यहा खूले मे ही सभी ऋतू मे अटल खडी थी।

ऐसे हूआ मंदिर का निर्माण----
करिब 300 वर्ष पूर्व  इस क्षेत्र मे चारो ओर घना जंगल व आसपास पहाडीया थी पहाडीयो कि पचासो फिट गहरी तल हटी मे माही का कल कल करता बहता था तब एक बार ग्वालियर राज घराने के महाराजा श्रीमंत सिधिंया अमझेरा के राजा राणा बख्तावर सिह के साथ यहा शिकार करने आए थे उनके साथ मे छकडे आदी भी थे नदी को पार करते हूए एक छकडे का पहीया फंस गया साथा आए नोकर चाकरो ने बहूतेरे प्रयास किए लेकिन पहीया नही निकला तब नोकर चाकर जेसे तेसे उपर आए ओ र देखा कि निकट ही एक महात्मा जी तपस्या मे लिन हे वही उनके समीप दो गोवंश के बछडे खडे हे उन्होने महात्मा से सहायता मांगी व कहा कि महात्मन हमारा छकडा नीचे फंस गया हे आप कृपा कर इन बछडो को हमारी सहायता के लिए भेज दिजिए महात्मा कूछ जवाब दे उसके पूर्व ही बेसब्र सेवको ने बछडो को हाथ लगाया ही था कि दोनो बछडे शेर बन गए उन सेवको कि तरफ दोडे घबरा कर सेवक दोडते हूए अपने महाराज के पास पूहूचे व सारी बात बताई यह सूनकर महारज स्वयं महात्मा जी के पास गए व क्षमा मांगी तब देखते ही देखते दोनो शेर पूनः बछडे बन गए।तब राजा ने महात्मा से कहा की हमारे योग्य कोई सेवा होतो बताइयंें।तब महात्मा ने कहा कि हमे तो इस दूनिया कि मोह माया से से कूछ लेना देना नही हे अगर सेवा ही करनी हेतो भगवान नरसिंह कि करो यह प्रतिमा यहा धुप मे विराजित हे इसलिए मंदिर का निर्माण करवा दीजीए।तब मंदिर निर्माण के साथ साथ महाराज सिंधिया ने माही नदी पर पूल का निर्माण भी करवाया ताकी किसी राहगीर या दर्शनार्थीयो को मंदिर आने जाने मे परेशानी न हो।महात्माजी ने अपना सम्पूर्ण जिवन भगवान नरसिह के चरण कमलो मे समर्पित कर दिया व मोक्ष प्रप्ती कर अपना नाम महंत श्री 1008 श्री लक्ष्मणाचार्य महाराज के नाम से अमर कर गए के जो आज भी भाटो कि पोथी मे दर्ज हे। 

इन संतो का रहा मार्ग दर्शन---
 महंत श्री1008 श्री लक्ष्मणाचार्य जी महाराज के बाद महंत रामप्रप्रन जी महाराज ने भगवान नरसिह कि सेवा मे अपना जिवन लगा दीया इसी बिच भगवान कि कृपा से महंत श्री को एक शिषय कि प्राप्ती हूई प्रभू भक्ति मे लिन महंत 108 कि उपाधी प्राप्त कर वेकून्ठधाम को प्राप्त हूए पश्चात भगवान कि सेवा मे रामफेरदास जी महाराज ने सेवा की व भगवान के आर्शिवाद से घनंे जंगलो मे एक गांव का निर्माण करवाया भगवान का भजन करते हूए मंदिर कि व्यवस्था व दूर दराज से आए दशर्नार्थियो की सेवा से मंदिर का जिर्णोद्वार करवाकर आसपास के भक्तो से सहयोग लेकर मंदिर का निर्माण कार्य शूरू कर सभा मण्डप,शिव दरबार मंदिर व नदी के घाटो का निर्माण करवाया साथ ही एक मंदिर समिति बनाई व महाराज के सानिध्य मे एक बालक के लालन पालन हूआ सन् 1993 मे महंत रामफेर दास जी महाराज ने अपनी देह त्यागदी व महत श्री के समय से भगवान कि पूजा अर्चना करने वाले बालक श्यामदास को सभी लागो व समिति ने पुजारी के पद पर नियूक्त कर दिया। श्यामदास जी ने1995 मे मंदिर के लिए भव्य ट्रस्ट का बनाई वर्ष 2008 मे ट्रस्ट ने पूजारी के सानिध्य मे जगतगुरू रामानन्दाचार्य जन्म जयंती महोत्सव भव्य रूप से मनाई गई इस अवसर पर समस्त ट्रस्टी व सदस्यगण की मोजूदगी मे संत रत्न महंत श्री 108 श्री दयाराम दास जी महाराज व जगतगूरू रामस्वरूपाचार्य जी महाराज के सानिघ्य मे मंदिर पूजारी श्यामदास जी को महंत कि पदवी दे कर चादर विधि करवाई।महतं कि पदवी मिलने के बाद श्याम दास जी महाराज ने 6 माह तक अखण्ड रामचरित्र मानस का पाठ करवाया तत्पश्चात भक्तो कि इच्छा से मंदिर परिसर मे आज तक अखण्ड राम धून संर्कीतन जारी हे वही भक्तो के तन मन धन के सहयोग से मंदिर का जिर्णोद्धार का कार्य किया जा रहा हे।

ये हो रहा निर्माण कार्य---
भगवान नरसिंह के मंदिर के जिर्णोद्धार मे भव्य रूप से मंदिर के गर्भ गृह का निर्माण,भव्य सभा मण्डप का निर्माण,आखण्ड रामधून संर्कीतन भवन का निर्माण,धर्माशला व यज्ञ शाला का निर्माण के साथ साथ सूंदर नक्षत्र वाटीका भी हजारो एकड भुमी पर बनाई जावेगी। वर्तमान मे यहा पर दो से तिन हजार आदमीयो के खाने के लिए भोजन शाला हे वही दो सो से तिन सो आदमीयो के विश्राम कि व्यवस्था हे।

यहाॅ होते हे धार्मिक कार्यक्रम व सामूहिक विवाह--
यहा प्रतिवर्ष वेशाख की तेरस को नरसिंह जयंति मनाई जाती हे।पूर्णिमा को मेला लगता हे वही जूलाई माह मे गुरूपूर्णिमा महोत्सव मनाया जाता हे। कार्तिक माह मे दिपावली के बाद तेरस को रात्री जागरण चैदस को सूबह भगवान नरसिह को छप्पन भेाग लगा कर अन्नकूट मनाया जाता हे।वही प्रति माह मे पूर्णिमा की चैदस को हवन पूजन किया जाता हे। वही मारू समाज के द्वारा भव्य रूप से सामूहिक विवाह का आयोजन भी यही पर प्रति वर्ष किया जाता हे।जिसमे सैकडो कि तादात मे विवाह योग्य यूवक यूवतियो का विवाह मारू समाज द्वारा किया जाता है

निरापराध मन्नत धारी कि टूटती हे बेडीया---
सम्पूर्ण भारत मे यह एक मात्र ऐसा स्थान हे जहा निरापराध मन्नत घारी व्यक्ति कि बेडीया टूट जाति हे। बताया जाता हे कि निरापराध मन्न्त घारी व्यक्ति को माही नदी से नहाकर निकलने पर नारीयल व अगरवती हाथ मे देकर उसे बेडीया बांध दी जाती हे पश्चात मंहत जी द्वारा मंदिर मे आकर घण्टी बजाई जाती हे अगर निरापराध व्यक्ति सच्चा हे तो उसकी बेडीया अपने आप टूट जाती हे। इस तरह की घटनाओ के कई बार आस पास के भक्त सहीत कलेक्टर,कमिशनर व जज सहीत कई आला अधिकारी साक्षी रहे हे।उक्त मन्नत उतारने के लिए कांेई विशेष दिन निश्चित नही हे इस प्रकार का आयोजन वर्ष भर ही चलता रहता हे।

यह हे ट्रस्टी गण---
मंदिर संचालन के लिए 1995 मे ट्रस्ट का गठन किया गया जिसमे अध्यक्ष राजा राजवर्धनसिह दत्तीगाॅव,अध्यक्ष प्रतिनिधि पटेल रामाजी टाॅण्डा खेडा, रणछोड चेाधरी,ठाकूरलाल पटेल,सेठ रूघनाथ जी,कन्हैयालाल पटेल,चाॅदमल सोनी,धन्नाजी बागडी।

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