नहीं कुछ भी, सिर्फ सपना है
तभी हो सकती है शुरुआत
अगर यह एक शुरुआत ही तो है
कि वहां एक सपना है
वेणुग¨पाल की यह पंक्तियां उन सभी ल¨ग¨ं के ज¨श¨-खर¨श क¨ प्रदर्शित करती हैं ज¨ जीवन की तमाम कठिनाइय¨ं के बावजूद क¨शिश करना नहीं छ¨ड़ते हैं। अ©र ऐसी ही एक शख्सियत है कारगिल शहर से 50 किमी. की दूरी पर प्रकृति की खूबसूरती के बीच बसे एक गांव सनरा में रहने वाली 60 वर्षीय ‘‘युवा’’ मजऱ्ी बान¨ की। पेशे से सब्जी विक्रेता मर्जी बान¨ के चेहरे पर पड़ी झुर्रिय¨ं की एक-एक लकीर¨ं में उनके संघर्ष अ©र काम के लिए उनके समर्पण की सैकड़¨ं कहानियां छुपी हैं। चश्मे के पीछे से झांकती द¨ आंख¨ं में एक उम्र का अनुभव झलकता है। चाहे सुख आया ह¨ या दुख उन्ह¨ंने कभी अल्लाह अ©र अपने खुद के उपर विश्वास नहीं ख¨या। उन्ह¨ंने 29 साल की उम्र में खुद क¨ आत्मनिर्भर बनाने के लिए कारगिल शहर जाकर जीविक¨पार्जन के बारे में स¨चा। अ©र आज 60 वर्ष की आयु में उन्ह¨ंने अपने लिए जीवन जीने के सभी मूलभूत साधन प्राप्त कर लिए हैं अ©र, अ©र ज्यादा इक्ट्टठा करती जा रही हैं।
उन्ह¨ंने अपने जीवन की शुरुआत 31 साल पहले कारगिल, जिसे सुरु घाटी के नाम से भी जानते हैं, में एक निजी विद्यालय में सहायिका से की थी। विद्यालय में न©करी के द©रान अपनी छ¨टी सी तनख्वाह में ज¨ वह ज¨ भी बचत कर पातीं उससे उन्ह¨ंने कारगिल की बाहरी सीमा पर स्थित गांव ल्ह¨न्चे अ©र सेलक¨ट से, जहां पर भारी मात्रा में सब्जियां पैदा की जाती थीं, छह रुपए की सब्जियां खरीद कर आठ रुपए में बेच देती थीं। इस तरह से उन्ह¨ंने अपने जीवन में पहला व्यवसायिक मुनाफा कमाया। न© साल¨ं से कारगिल बाजार के एक ही क¨ने में एक लकड़ी के तख्त के सहारे बैठकर सब्जिय¨ं का ट¨करा सामने रख वे अपनी जीविका कमा रही हैं। सब्जियां बेच कर वे प्रतिदिन 150-200 रु. कमा लेती हैं। अपनी भ©ग¨लिक परिस्थितिय¨ं की वजह से कारगिल में मिट्टी की उर्वरता, सिंचाई के लिए पानी की पर्याप्त आपूर्ती अ©र सही मात्रा में सूरज की र¨शनी कृषि के लिए अनुकूल है। प्राकृतिक स्र¨त¨ं की अनुकूलता क¨ भांपते हुए 2010 में स्थापित कारगिल अक्षय ऊर्जा विकास प्राधिकरण (क्रीडा) ने बहुत सी य¨जनाएं लागू कीं जिनमें जैविक परिय¨जनाअ¨ं अ©र स©र एवं ताप ऊर्जा के काम शामिल हैं। इन य¨जनाअ¨ं ने भारी सफलता प्राप्त की। इन य¨जनाअ¨ं में दूर-दराज के गांव¨ं में ग्रीन हाउस स्थापित करना भी शामिल है ज¨ आम ल¨ग¨ं क¨ घरेलू अ©र व्यवसायिक द¨न¨ं ही स्तर¨ं पर बने रहने की सहूलियत देता है, खासकर के सर्दिय¨ं के दिन¨ं में जब कारगिल का बाकी के भारत से संपर्क टूट जाता है। इन य¨जनाअ¨ं ने खासकर महिलाअ¨ं के उनके जीविक¨पार्जन में खास मदद की है।
महिलाअ¨ं के लिए र¨जगार अ©र सब्जिय¨ं की पैदावार क¨ बढ़ावा देने के लिए एक अन्य कदम उठाया गया अ©र वह था किचन गार्डेन का। व्यक्तिगत किचन गार्डेन के अलावा महिला सहायता समूह¨ं ने भी गृहिणिय¨ं तथा बेर¨जगार अनपढ़ महिलाअ¨ं की र¨जगार में मदद के लिए भी किचन गार्डेन क¨ प्र¨त्साहन दिया। अ©र स्थानीय अधिकारी ऐसे निकाय¨ं क¨ अनुवृŸिा दे रहे हैं जिससे कि उनके प्रयास¨ं का अपेक्षित फल मिल सके अ©र क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बेहतरी ह¨ सके। जीवन में एक स्थायित्व प्राप्त कर लेने के बाद अब मरजी बान¨ इस निर्कष पर पहुंची हैं कि किसी भी काम क¨ बेकार या तुच्छ समझना सबसे बड़ी भूल ह¨गी। हमें म©क¨ं क¨ फायदा उठाने से कभी चूकना नहीं चाहिए। वह हर संदभर्¨ं में विकास क¨ प्राथमिकता देती हैं। उनके अनुसार कार्य अ©र प्रगति सभी के जीवन का मूल सिद्धांत ह¨ना चाहिए। मर्जी बान¨ इस्लाम क¨ मानती हैं जहां पर हर व्यक्ति के लिए जीवन में कम से कम एक बार इस्लामिक तीर्थस्थल मक्का, हज करने जरूर जाना ह¨ता है। इसमें उन ल¨ग¨ं के लिए छूट है ज¨ इसे वहन नहीं कर सकते हैं। अ©र उनके जैसी पृष्ठभूमि की महिला के लिए, ज¨ कुछ भी नहीं या बहुत कम कमाती है, हज करने जाने के लिए अपने पति या बेटे पर निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन मर्जी बान¨ ने इन परंपराअ¨ं क¨ त¨ड़ते हुए 2008 में अपनी जमापूंजी से न सिर्फ हज किया बल्कि उन्ह¨ंने पांच बार उम्रा भी किया ज¨ कि साल में कभी भी किया जा सकने वाला मक्का का तीर्थ है।
एक बच्चे की मां अ©र द¨ बच्च¨ं की दादी मर्जी बान¨ खुद कक्षा एक तक ही पढ़ी हैं। मर्जी बान¨ शिक्षा की एहमियत क¨ खूब अच्छी तरह समझती हैं अ©र इसीलिए उन्ह¨ंने अपनी बेटी क¨ अच्छी शिक्षा दी। वे गर्व के साथ कहती हैं,‘‘किसी के आगे हाथ फैलाने से ज्यादा बुरा कुछ नहीं है’’। अपने इसी मन¨बल के साथ अ©र परिवार से बिना क¨ई मदद लिए उन्ह¨ंने सन्रा में बच्च¨ं के लिए एक मकान बनावाया जिसमें तीन कमर¨ं के साथ एक रस¨ई अ©र एक बाथरूम है। लेकिन अपने आदशर्¨ं पर चलते हुए वे खुद एक घरेलु साहयिका लचैंगचिक के साथ कारगिल बजार के समीप स्थित अपने द¨ कमर¨ं के मकान में ही रहती हैं। परंपरावादी जड़ें अ©र समकालीन रुख से लैस मर्जी अपने बच्च¨ं की जिंदगिय¨ं में दखल देने में यकीन नहीं करती हैं। वे बड़े ही आत्मसम्मान के साथ कहती हैं,‘‘जब तक मेरे हाथ-पैर चलेंगे मैं अपने बच्च¨ं पर ब¨झ नहीं बनूंगी। उनकी अपनी जिंदगी अ©र जिम्मेदारियां हैं। मैं उनक¨ परेशान नहीं करना चाहती।’’
श्रम क¨ अपना तन-मन अर्पित करने वाली मर्जी बान¨ अकेली नहीं हैं बल्कि यह लक्षण कारगिल की लगभग सभी महिलाअ¨ं में देखा जा सकता है। काम करने का ज¨ भी म©का उनके हाथ आता है वह झट से पकड़ लेती हैं। काम करना उन्हें एक तरह की तृप्ति की अनुभूति देता है। विश्वास अ©र सशक्तता से अ¨त-प्र¨त इन महिलाअ¨ं के बारे में बताने के लिए एक ही शब्द पर्याप्त है अ©र वह है श्रमजीवी। बशर्ते कि उन्हें अपने जीवन में संतुलन बनाए रखने की छूट दी जानी चाहिए। उनके जीवन का एक हिस्सा दूसरे क¨ ढंकना नहीं चाहिए। यानि उनका घरेलू काम उनके जीवन के अन्य क्षेत्र¨ं में प्रगित के बाधक नहीं बनने चाहिए।
अज़रा खातून
(चरखा फीचर्स)