Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

आलेख : नीयत साफ हो, तभी अच्छी बरसात

$
0
0
हर तरफ वृष्टि न होने की फिकर घर करती जा रही है। लोग मानसून का बेसब्री से इंतजार कई दिनों से कर रहे हैं और मानसून है कि लोगों को गाँठ ही नहीं रहा। कहीं त्राहि-त्राहि मच रही है, गर्मी और उमस के मारे लोग और मवेशी, पेड़-पौधे सभी परेशान हैं, हर तरफ पानी सूख गया है, कहीं पानी रहा ही नहीं, जहाँ पानी होने की संभावनाएं मानी जाती हें वे भी मृगतृष्णा के शिकार हैं। सूखा और अकाल जैसी स्थितियों से हम सभी दो-चार हो रहे हैं।

पंच तत्वों में से प्रमुख तत्व जल अब हमारा नहीं रहा। कुछ दशकों पहले तक जो सहज ही उपलब्ध था वो अब दुर्लभ हो गया है। जब से हमने सागर और नदियों को तिरस्कृत कर बोतलों को स्वीकार लिया है तभी से जल तत्व हमसे रूठा हुआ है या उसे अहसास हो चला है कि हमारे लिए नदियों और सागर की बजाय बोतलें ही काफी हैं जिन्हें चाहे जहाँ उठा की ले जा सकते हैं और प्यास बुझा सकते हैं।ये बोतलें ही हैं जो हमारा स्टेटस सिम्बोल हो चली हैं।

विराट से सूक्ष्म के इस सफर ने हमारी व्यापक संभावनाओं और अनंत उपलब्धता को करीब-करीब विराम लगाने की तैयारी ही कर ली है।  सागर और नदी-नालों, कूओं-बावड़ियों, तालाबों और परंपरागत जलाशयों की जबसे हमने कद्र करनी बंद कर दी है तभी से जलदेवता हमसे रूठे हुए हैं और शायद अब उन्हें कभी खुश नहीं किया जा सकता।

हमें बोतलों पर ही बसर करने को विवश होना पड़ सकता है। तभी कहा जा रहा है कि अगला विश्वयुद्ध पानी पर लड़ा जाएगा। बरसात नहीं होने पर हम सारे के सारे आप्त होकर प्रार्थना करने लगते हैं लेकिन असलियत यह है कि हमारी प्रार्थना को ईश्वर आजकल स्वीेकार नहीं करता। कारण यह कि हम न मन से शुद्ध हैं, न मस्तिष्क से, और न शरीर से।

भगवान उसी की सुनते हैं जिसका चित्त शुद्ध हो, वाणी और व्यवहार में शुचिता हो, और दृष्टि जगत कल्याण की हो।  इनसे में हमारे पास कुछ नहीं बचा है। यही कारण है कि हमारी प्रार्थना सिर्फ आडम्बरों से घिर कर रह गई है और हमारा उद्देश्य अभिनय से कुछ ज्यादा नहीं रह गया है। हम जो कुछ कर रहे हैं वह वास्तविक प्रार्थना न होकर दिखावा मात्र है और वह भी मनुष्यों के लिए ही, भगवान के लिए नहीं। भगवान के नाम पर हम लोगों को दिखा रहे हैं कि हम कुछ कर रहे हैं, फिर सारी पब्लिसिटी बटारेने के जतन भी करते रहते हैं ताकि हमारे सामाजिक सरोकारों का अभिनय पूरा हो सके और हमारी प्रतिष्ठा या कि लोकप्रियता को संबल प्राप्त हो सके।

वर्षा लाने के नाम पर टोने-टोटके, अनुष्ठान, पूजा-पाठ और हवन आदि कितने ही जतन हम कर लें, कुछ फर्क इसलिए नहीं पड़ रहा है क्योंकि न हमारे कर्म में शुद्धता है, न हमारी नीयत में। हमारे साधन, संसाधन और द्रव्य सब कुछ दूषित हैं या फिर हराम की कमाई से भरे हुए। देवी-देवताओं या इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए हम हवन यज्ञ आदि भी कर रहे हैं, उजण्णी, अनुष्ठान, शिवालयों में पानी भरकर शिव-पार्वती को डूबोने से लेकर आमिष-निरामिष सभी प्रकार की दक्षिणमार्गी और वाममार्गी साधनाओं में रमे हुए हैं । इन सबके बावजूद न देवी-देवता खुश हो रहे हैं, न इन्द्र या शची, पर्जन्य यज्ञ भी बेकार हो गए हैं।

इसका मूल कारण यह है कि देवताओं तक हवि नहीं पहुंच पा रही है क्योंकि दूषित हवि को देवता कभी स्वीकार नहीं करते। एक जमाना था जब पर्जन्य यज्ञ की पूर्णाहुति होते ही पानी बरसना शुरू हो जाता था। आज ऎसा कुछ नहीं हो पा रहा। अनुष्ठान करने और करवाने वालों दोनों पक्षों में धंधेबाजी मानसिकता घर कर  गई है, किसी को दान-दक्षिणा और भोज की पड़ी है, किसी को लोकप्रियता की।

हमारे सारे कर्म मनुष्यों को प्रसन्न करने और आडम्बरी दिखावों भरे होकर रह गए हैं, ऎसे में सुवृष्टि और खुशहाली के लिए देवताओं को प्रसन्न करने की बातें बेमानी हैं।हमारे यज्ञों की पूर्णाहुति ऎसे लोगों के हाथों होने लगी है जिनके हाथ में धर्म और इंसानियत की लकीरें गायब हैं।

जल तत्व से जुड़े परंपरागत स्रोतों के प्रति आदर-सम्मान, संरक्षण भाव रखे बगैर हम जलदेवता को खुश नहीं कर सकते। पर्यावरण को उजाड़कर हरियाली की कल्पना नहीं कर सकते। पानी बरसाने के लिए हमारे सारे परंपरागत टोने-टोटके, यज्ञ अनुष्ठान और ढोंग बेमानी हो चले हैं।

ये अनुष्ठान या प्रयोगों अथवा वैदिक ऋचाओं-पौराणिक मंत्रों का दोष नहीं है। दोष हमारा ही है। सफलता पाने के लिए कर्ता और सहयोगियों का मन और मस्तिष्क तथा लक्ष्य पवित्र होना चाहिए। उनका चित्त एकमेव ईष्ट केन्दि्रत होना चाहिए। धार्मिक अनुष्ठानों में जो पैसा लगे, सामग्री प्रयुक्त हो, वह सब शुद्ध होनी चाहिए। यहां शुद्धता से अर्थ साफ-सुथरा ही होना नहीं है बल्कि इसमें ईमानदारी और पुरुषार्थ का पैसा होना चाहिए तभी ये टोने-टोटके, यज्ञ और अनुष्ठान आदि का असर सामने आ सकता है। इसके बिना हमारे सारे प्रयास नौटंकी से बढ़कर कुछ नहीं हैं। इस सत्य को ईश्वर भी जानता है, और हमारी आत्मा भी।

अपने आपको जानें, नीयत साफ रखें और प्रकृति के प्रति दोहन या शोषण की बजाय पंचतत्वों के लिए आदर-सम्मान व श्रद्धा का भाव रखें। देवता अच्छे कर्म से प्रसन्न होते हैं, अभिनय और नौटंकियों से नहीं। नौटंकियों से मनुष्यों का मनोरंजन हो सकता है, इससे ईश्वर को भरमाया नहीं जा सकता।








live aaryaavart dot com

---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com


Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>