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विशेष आलेख : बिन पानी सब सून...

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water and kashmir
शायद ही यह ज़माना उस ज़माने से बेहतर है जब हिंदुस्तान अंग्रेज़ों की गुलामी में था। ग्रामीण क्षेत्रों की हालत को देखकर आज भी आज़ादी से पहले का वक्त याद आ जाता है जब बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और षिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव था। आज़ादी के 67 सालों के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। बदला है तो सिर्फ समय का चक्र। जम्मू प्रांत के सीमावर्ती क्षेत्रों में आज भी विकास की किरन नहीं पहुंच पायी है। केंद्र सरकार की ओर से इन क्षेत्रों में विकास के पहिए को गति देने वाली योजनाएं यहां पहुंचते पहुंचते दम तोड़ देती है। हिंदुस्तान और पकिस्तान की सरहद पर होने की वजह से खतरे में रहने वाले पुंछ जि़ले की मंेंढ़र तहसील के बालाकोट, संजोट, रेलां, खलादरमन आदि इलाके किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। सरहद पर होने की वजह से यह इलाके अक्सर समाचार पत्रों की सुर्खियां बनते रहते हैं। इन क्षेत्रों में रह रहे लोगों को सरहद पर रहने का गम तो मिला लेकिन साथ में केंद़्र और राज्य की पूर्ववर्ती सरकारों की अनदेखी का सामना भी करना पड़ा जिन्होंने यहां के लोगों की समस्याओं को जानने की तनिक भी कभी कोषिष नहीं की। सरहद पार से होने वाली गोलाबारी में यहां के लोग अपनी जान माल का नज़ारा पेष करते रहते हैं। जम्मू एवं कष्मीर के अलावा षायद ही देष के दूसरे क्षेत्रों में रह रहे लोगों को इस तरह की परेषानी का सामना करना पड़ रहा हो जिन कठिन परिस्थितियों में यहां के लोग जीवन गुज़ार रहे हैं। इन सारी कठिनाईयों के बावजूद यहां के लोग तमाम मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। 
           
पुंछ जि़ले की तहसील मेंढ़र के सरहदी इलाकों में गर्मियों के दिनों में पानी की समस्या एक विकराल रूप ले लेती है क्योंकि गर्मियों के दिनों में चष्मों से पानी या तो कम निकलता है या फिर सूख जाता है। मेंढ़र के सीमावर्ती क्षेत्रों में आबाद लोगों को दो किलोमीटर दूर से सरों पर पानी के बर्तन रखकर पानी लाना पड़ता है। 21 वीं सदी में भी यहां के लोगों की कठिनाईयां कम होने के बजाय बढ़ रही हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि मूलभूत सुविधाओं में सबसे बड़ी समस्या पानी की है लेकिन हमें सबसे ज़्यादा पानी से ही महरूम रखा गया है। गोहलद मोहल्ला नावनी की रहने वाली एक स्थानीय महिला तनवीर बी ने बताया कि पानी उचित मात्रा में न मिलने की वजह से हमें तरह तरह की मुष्किलात का सामना करना पड़ता है क्योंकि यह इलाका सरहद पर आबाद है। सरहद पर होने की वजह से फैन्स से आधा किलोमीटर की दूरी पर माइन्स लगाए गए हैं। इसके बावजूद हम अपनी जान हथेली पर रखकर पानी लेने के लिए जाते हैं। उन्होंने आगे बताया कि हम ने बरसात के पानी को इकट्ठा करने के लिए गड्ढे़ खोदे हुए हैं। जब भी बारिष होती है तो पानी गड्ढ़ों में इकठ्ा हो जाता है जो माल मवेषियों के लिए इस्तेमाल होता है। अगर दो तीन महीने बारिष नहीं होती है तो हम अपने माल मवेषियों को बेचने पर मजबूर हो जाते हैं। इससे हमें काफी नुकसान होता है। अपनी बेबसी का इज़्हार करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि 2009 के चुनाव में विधान परिशद के डिप्टी चेयरमैन जावेद राणा यहां आए थे और उन्होंने वोट की खातिर जनता से झूठे वादे किए थे।  जावेद राणा ने कहा कि अगर तुम मुझे वोट दोगे तोे, मैं कामयाब हंू या न हंू , आपको वाटर लिफ्ट ज़रूर दिलवाऊंगा। मगर उनके वादे भी खाक में मिल गए। उन्होंने साफ साफ यह बात कहीं कि कोई वोट मांगने की खातिर यहां न आए। यहां पर मैंन जितने भी लोगों से बात की सभी ने पानी की समस्या को सबसे बड़ी समस्या करार दिया। 
           
पिछले साल एक दैनिक अखबार में छपी राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम की एक रिप¨र्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर की केवल 34.7 प्रतिशत आबादी क¨ नल¨ं के जरिए पीने का साफ पानी उपलब्ध है, जबकि बाकी की 65.3 प्रतिशत आबादी क¨ हैंड पंप, नदिय¨ं, नहर¨ं तालाब¨ं अ©र धाराअ¨ं का असुरक्षित अ©र अनौपचारिक पानी मिलता है। ऐसे में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के पेय जल एवं स्वच्छता विभाग के 2011-2022 की रणनीतिक य¨जना के अनुसार वर्ष 2017 तक, 55 प्रतिशत ग्रामीण परिवार¨ं क¨ पाइप¨ें के जरिए पानी उपलब्ध करवा देने का दावा दिवास्वप्न सा ही लगता है। राश्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की समस्या को दूर करने के मकसद से षुरू की गई थी लेकिन बालाकोट, धराटी जैसे दूरदराज़ इलाकों में इस स्कीम की हकीकत खुल जाती है। सूत्र¨ं के मुताबिक राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के तहत सरकार क¨ बिना कवर हुए या आंशिक रूप से कवर किए गए स्थानों  क¨ सुरक्षित पीने का पानी उपलब्ध करवाना ह¨ता है, पानी की गुणवŸाा बढ़ानी ह¨ती है, ग्रामीण स्कूल¨ं क¨ कवर करना ह¨ता है, परिय¨जनाअ¨ं क¨ सही दिशा देने के अलावा स्र¨त¨ं एवं प्रणालिय¨ं की स्थिरता क¨ बनाए रखना ह¨ता है अ©र य¨जनाअ¨ं का प्रबंधन सुनिश्चित करना ह¨ता है।
           
इस रिप¨र्ट में ताजातरीन अधिकारिक आंकड़¨ं का उल्लेख भी किया गया है जिसके अनुसार, राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के तहत कवर किए जाने वाले 14,028 परिवार¨ं में से पिछले चार साल¨ं में केवल 8525 परिवार¨ं क¨ ही पीने का साफ पानी मिल पाया है जबकि 5504 परिवार अभी पीने के साफ पानी से वंचित हैं। पीने के पानी क¨ तरसते सरहद पर बसे यह ल¨ग तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि उनके लिए क्या ज्यादा खतरनाक ह,ै सरहद पार से ह¨ने वाली ग¨लाबारी या उनकी अपनी सरकार की उनके प्रति उपेक्षा।





मज़हर इकबाल खान
(चरखा फीचर्स)

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