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उत्तराखंड की विस्तृत खबर (23 जुलाई)

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देवभूमि बनी जमीन घोटालों की मंडी, अरबों की जमीन चहेतों को कौडि़यों के दाम 

uttrakhand news
देहरादून, 23 जुलाई (राजेन्द्र जोशी) ।गुजरात में अडानी बंधुओं को एक रुपये की दर से सरकारी जमीन देने का मामला हो या फिर राजस्थान में रावर्ट वाड्रा की जमीनों की खरीद-फरोख्त। दोनों की मामले लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे देश में गूंजे। भले ही ये मामले देशभर में चर्चा का विषय बने रहे। लेकिन इस देवभूमि में हो रहे जमीनों के घोटालों पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। आलम यह है कि यह देवभूमि जमीन घोटालों की मंडी सा बनता जा रहा है। कांग्रेस हो या फिर भाजपा दोनों ही राज्य में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाते रहे हैं। लेकिन विपक्षी दल के रूप में दोनों ही दलों की भूमिका इन घोटालों पर महज विरोध की रस्म अदायगी तक ही सीमित रही है। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि हमाम में सब नंगे हैं। इसी का नतीजा है कि अरबों की सरकारी जमीन को कौडि़यों में लुटाने का यह सिलसिला उत्तराखंड में थमता नहीं दिख रहा है। एक आरटीआई कार्यकर्ता  ने ऐसे ही एक मामले का आरटीआई के जरिए खुलासा किया। सरकार के स्तर पर कोई सुनवाई होने की संभावना न के बराबर ही देख इस मामले में जनहित याचिका के जरिए उत्तराखंड हाईकोर्ट की शरण ली गई है। अगल राज्य बनने के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला। कांग्रेस ने राज्य को नई दिशा देने के लिए अपने कद्दावर नेता और विकास पुरुष के रूप में पहचान रखने वाले नारायण दत्त तिवारी को सरकार का मुखिया बनाया। एनडी ने राज्य में औद्योगिकीकरण की दिशा में काम किया। इस बीच केंद्र की तत्कालीन अटल सरकार ने उत्तराखंड को खास औद्योगिक पैकेज भी दे दिया। राज्य सरकार ने औद्योगिक विकास के लिए सिडकुल नामक सरकारी संस्था का गठन किया। हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जनपदों में उद्योगों के लिए जमीन का अधिग्रहण करके सिडकुल को दे दिया गया। ऊधमसिंह नगर जिले में तो पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय की खेती जमीन ली गई। इसके लिए महज 125 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से विवि को भुगतान किया गया। दूसरी तरह हरिद्वार में बीएचईएल (भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड) की जमीन का तो मुफ्त में ही अधिग्रहण कर लिया। ये जमीन सिडकुल को मुफ्त में ही दे दी गईं। इसके साथ ही सिडकुल नामक यह संस्था नेताओं और अफसरों के गठजोड़ से लिए मोटी कमाई का जरिया सा बन गई है। उद्योगों के लिए मुफ्त में ली गईं इन जमीनों को बड़े बिल्डर्स को आवासीय कालोनी के लिए बेचा जा रहा है। यह सिलसिला अब तक बदस्तूर जारी है। उस वक्त की बची जमीन को बेचा जा रहा तो नई जमीनों का अधिग्रहण भी किया जा रहा है। उद्योगपतियों को जमीन देने में तमाम तरह के खेल किए जा रहे हैं। कहीं जमीन का लैंड यूज बदले बिना ही बेची जा रही है तो कहीं मिलीभगत करके अरबों की जमीन को कौडि़यों के मोल बेचा जा रहा है। अफसरों, नेताओं और उद्योगपतियों के इस गठजोड़ का सीधा नुकसान राजस्व का हो रहा है। जिस जमीन को बेचकर उद्योगपति अरबों कमा रहा है, उसी जमीन के एवज में राज्य सरकार को राजस्व के रूप में चंद करोड़ रुपये ही मिल रहे हैं। ताजा मामला हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में दो बड़े बिल्डरों को औद्योगिक क्षेत्र में ही आवासीय कालोनी के लिए जमीन बेचने का सामने आया है। यह मामला सीधे तौर पर रियल स्टेट कारोबार से जुड़ी बड़ी कंपनी सुपरटेक और अंतरिक्ष बिल्डर्स से जुड़ा है। 2012 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस खेल का तानाबाना बुना गया। सिडकुल उस वक्त हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर के पंतनगर स्थित औद्योगिक क्षेत्र में आवासीय कालोनी के जमीन बेचने की शुरुआत की। इसके साथ ही शुरू किया गया सेटिंग और गेटिंग का खेल। यह खेल जब अंजाम तक पहुंचा तो नतीजे के रूप में सुपरटेक कंपनी के हिस्से में पंतनगर में 23 एकड़ और अंतरिक्ष के हिस्से में भी 23 एकड़ जमीन हरिद्वार में (पेंटागन माल के पास) आई। यह कोई पहला और आखिरी मामला नहीं है। इससे पहले देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर के सिडकुल (औद्योगिक आस्थान) मामले सामने आते रहे हैं। हरिद्वार में ही होंडा कार्प की स्टांप चोरी का खुलासा भी अभी हाल में ही हुआ है। इसकी जांच के बाद वहां के डीएम ने इस कंपनी पर 117 करोड़ का राशि मय स्टांप शुल्क और जुमार्ने के वसूलने का आदेश दिया है। कुछ मामले तो सामने आए है। लेकिन बताया जा रहा है कि सिडकुल की फाइलों में तो इस तरह के तमाम घोटाले कैद है। अब पत्रकार दीपक आजाद ने इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराने के लिए हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। हाईकोर्ट को पहली नजर में घोटाला दिख भी रहा है। शायद यही वजह है कि हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के साथ ही कौड़यों में जमीन खरीदने वाली दोनों कंपनियों को भी नोटिस जारी करके जवाब मांगा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश कर दिया तो कई बड़े सफेदपोशों का असली चेहरा सामने आ सकता है। इस मामले में एक अहम सवाल यह खड़ा हो रहा है कि उद्योगों के लिए अधिग्रहीत इन जमीनों को निजी बिल्डर्स को बेचने के लिए हो रहे इन घोटालों का मास्टर माइंड आखिर है कौन और किसकी दम या फिर शह पर इन सरकारी राजस्व को अरबों का नुकसान घाटा कराया जा रहा है। सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि क्या सूबे की अफसरशाही आंख बंद करके काम कर रही है या फिर मिलीभगत के तहत ऐसा किया जा रहा है। सरकार चाहें किसी भी दल की रही हो या कोई भी सरकार का मुखिया रहा हो, सिडकुल की जमीनों में घोटाले होते रहे हैं और यह सिलसिला जारी है। बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर इस मनमानी पर अंकुश कौन लगाएगा और क्या इस तरह के घोटालेबाज सरकार में इसी तरह से अपना दबदबा बनाए रखेंगे।

कम कर दी सरकारी कीमत 
जमीन की इस बिक्री में करोड़ों की हेराफेरी का अनुमान है। सिडकुल ने हरिद्वार की इस जमीन का बेस प्राइस (न्यूनतम कीमत) 5500 रुपये प्रति वर्ग मीटर निर्धारित किया और बाद में 65 सौ रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से बेच दिया। इतना ही नहीं, सौदा पक्का होने के बाद महज एक आदेश करके अंतरिक्ष से 66 सौ रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से पैसा देने को कहा गया। अहम बात यह है कि इससे पहले यह सिडकुल सुपरटेक कंपनी को 2007 में इसी जगह पर जमीन 20.556 रुपये प्रतिवर्ग मीटर की दर से बेच चुका है। सिडकुल की इस बिक्री राशि को पाकसाफ मानें तो गुजरे सात सालों में इस जमीन का कीमत एक चैथाई ही रह गई है। उस वक्त इलाका विकसित भी नहीं था। लेकिन आज पूरी तरह से चमचमा रहा है। तमाम अवस्थापना सुविधाओं का जाल बिछ चुका है। इसके बाद भी जमीन की कीमत में इतनी गिरावट किसी के गले नहीं उतर रही है। सत्यता यह है कि इस जमीन का बाजारी कीमत आज 28 से 30 हजार प्रति वर्ग मीटर हो गया है। सिडकुल से जमीन खरीदने वाली कंपनियां इसी कीमत पर जरूरतमंदों को जमीन बेच रही हैं।

ऐसे किया गया खेल
आरटीआई के तहत सिडकुल से मिले कागजात साफ इशारा कर रहे हैं कि सब कुछ मिली भगत से ही किया गया है। जमीन बेचने के लिए सिडकुल ने 2012 में टेंडर मांगे। इस पर सुपरटेक और अंतरिक्ष कंपनी के अलावा दो गुमनाम सी कंपनियों ने टेंडर डाले। हरिद्वार की जमीन के लिए भी इन्हीं चार कंपनियों के टेंडर आए। टेंडर के साथ अरनेस्ट मनी यानि धरोहर राशि भी जमा करनी थी। यहीं से शुरू हुआ बड़ा खेल। इस जमीन के लिए केवल अंतरिक्ष कंपनी ने ही अरनेस्ट मनी जमा की। बाकी तीन कंपनियों ने यह राशि जमा नहीं की। ऐसे में बोली लगाने के लिए एक मात्र अंतरिक्ष कंपनी ही अधिकृत थी। लिहाजा सिडकुल ने अंतरिक्ष द्वारा लगाई गई कीमत 65 सौ रुपये प्रति वर्ग फुट पर जमीन बेच दी। नियमानुसार बोली लगाने के लिए कम से कम तीन कंपनियों का होना जरूरी था। लेकिन सिडकुल ने इस नियम को दरकिनार करके जमीन अंतरिक्ष बिल्डर्स के नाम कर दी। ऐसे ही खेल पंतनगर की जमीन पर भी किया गया। चार टेंडर आए। अंतरिक्ष समेत तीन ने अरनेस्ट मनी जमा नहीं की। इस जमीन के लिए केवल सुपरटेक ने ही धरोहर राशि टेंडर के साथ जमा की थी। एकमात्र वैध निविदादाता सुपरटेक को उसकी मुंहमांगी कीमत 58 सौ रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से जमीन बेच दी गई।  

करोड़ लगाए, अरबों में कमाई 
बिल्डरों से सिडकुल की जमीन करोड़ों में खरीदी है और अब अरबों कमा रहे हैं। अंतरिक्ष में हरिद्वार में 66 सौ रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से लगभग 93.800 वर्ग मीटर जमीन खरीदी है। इसके ऐवज में सिडकुल को लगभग 55.30 करोड़ रुपया दिया गया है। अब अंतरिक्ष इस जमीन को 28 से तीस हजार रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से बेच रहा है। अगर कीमत 28 हजार ही मान ली जाए तो अंतरिक्ष को इस जमीन की बिक्री से लगभग 2.60 अरब रुपये की कमाई होगी। मतलब लगभग दो अरब रुपये से ज्यादा का सीधा मुनाफा। इसी तरह सुपरटेक ने पंतनगर सिडकुल में 59 सौ रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से लगभग 96.190 वर्ग मीटर जमीन महज 55.80 करोड़ रुपये में सिडकुल से खरीदी है। इस जमीन का बाजार रेट इस समय 32 हजार रुपये प्रति वर्ग मीटर है। इस लिहाज से इस जमीन की बिक्री से सुपरटेक को लगभग तीन अरब रुपये की कमाई होगी। यानि लगभग ढाई अरब रुपये का मुनाफा सुपरटेक के हिस्से में आने वाला है।

तीन अरब का एक यह भी घोटाला
हरिद्वार सिडकुल में हीरो मोटो कार्प का घोटाला भी खासा चर्चित हो रहा है। इस कंपनी ने 2006 में अपनी फैक्टरी लगाने के लिए सिडकुल से 214 एकड़ जमीन का सौदा किया। एमओयू होने के बाद कंपनी से अपनी फैक्टरी लगाई और उत्पादन शुरू कर दिया। लेकिन जमीन की रजिस्ट्री नहीं कराई। कंपनी सात साल तक उत्पादन करती रही। रजिस्ट्री के लिए न तो कंपनी ने रुचि दिखाई और न ही सरकारी तंत्र ने इस अनियमितता की ओर कोई ध्यान दिया। घोटालेबाजों की नजर इस मामले की ओर फरवरी-2014 में गई। कंपनी पर रजिस्ट्री कराने का दबाव बनाया गया। फिर एक सौदे के तहत खेल किया गया। 2006 में इस जमीन की कीमत एक हजार रुपये प्रति वर्ग मीटर थी। उस वक्त नौ फीसदी की दर से स्टांप शुल्क अदा करना होता था। रजिस्ट्री के वक्त जमीन की सरकारी कीमत 3812 रुपये प्रति वर्ग मीटर हो चुकी थी और स्टांप शुल्क घटकर पांच फीसदी हो गया था। बस यहीं से शुरू हुआ खेल। रजिस्ट्री के लिए जमीन की कीमत तो 2006 वाली ही तय की गई। लेकिन स्टांप शुल्क के लिए 2014 की दरों का इस्तेमाल किया गया। इससे सरकार को राजस्व का दोतरफा नुकसान हुआ है। सूत्रों की मानें तो यह घोटाला तीन अरब रुपये के आसपास का है। मामला मीडिया में छाया तो हरिद्वार के डीएम ने हीरो मोटो कार्प से 22.86 लाख रुपये स्टांप शुल्क में चोरी के साथ ही 88.25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। यानि इस कंपनी से लगभग 111 करोड़ की वसूली की जानी है। इसके अलावा जमीन के सर्किल रेट के आधार पर सरकार को ढाई अरब यानि 250 करोड़ का चूना अलग से लग रहा है। बताया जा रहा है कि घोटालेबाज अब इस मामले को भी फाइलों में ही दबाने की कोशिश में जुट गए हैं। देखने वाली बात यह होगी कि सरकार इस कंपनी से 111 करोड़ के साथ ही 250 करोड़ रुपये वसूलने में कामयाब होती है या फिर दूसरे मामलों की तरह ही इसे भी फाइलों में ही कैद कर दिया जाने वाला है।

उत्तराखंड सहित हिमालयी राज्यों को मिले अतिरिक्त ग्रीन बोनस: निशंक

देहरादून, 23 जुलाई (निस)। वन एवं पर्यावरण के बजट को सुरक्षित एवं संतुलित बताते हुए डा निशंक ने कहा कि इसमें वनों के संरक्षण और संवर्धन का भी अनुपम पहल की गयी है। गत वर्ष की तुलना में इस महत्वपूर्ण मंत्रालय के महत्वपूर्ण कार्यों के निष्पादन हेतु सैंकड़ों करोड़ रूपए की अतिरिक्त धनराशि का प्रावधान इस बात का पुख्ता प्रमाण है। देश के पर्यावरण को संतुलित रखने में हिमालयी राज्यों का विशेषकर उत्तराखंड का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। पूरे हिमालयी क्षेत्र में 60 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र हैं। भारत सरकार की वन नीति में इसका उल्लेख है। डा. निशंक ने कहा हिमालय का क्षेत्र देश को पानी भी देता है तो देश की जवानी देता है क्योंकि हिमालय से सारी नदियां निकलती हैं। देश को पानी उपलब्ध होता है और औसतन एक परिवार से एक व्यक्ति सेना में भर्ती होकर राष्ट्र की सीमाओं पर कुर्बानी देता है तो जवान भी देश का है। इसके अतिरिक्त 60 प्रतिशत से अधिक वन पर्यावरण देश को प्राण वायु से भर देते हैं। जिससे लोग जिंदा रहते हैं। हिमालय पर्यावरण वन संरक्षण के दिशा में गंभीरता से सोचा जाना चाहिए और पर्यावरण, वन के साथ वहां के जनसहभागिता को भी जोड़ा जाना था। वह कार्य नही हो पाया और इसी के परिणाम है कि वनों का कटान हुआ। अव्यवस्थित नियोजन से पर्यावरण को खतरा पैदा हुआ है। देश और दुनिया को सबसे बड़ी चुनौती है कि ग्लेशियर पीछे जा रहा है। उन्होने कहा ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। अमेरिका की एक शोध पत्रिका ने स्पष्ट लिखा है कि यदि इस गति से ग्लेशियर सिकुडते रहे तो ये 40 साल में सूखे हो जाएंगे। पूरा भारत वर्ष ही पूरी दुनिया को संकट झेलना पड़ेगा। सारी दुनिया जानती है कि हिमालय के ये ग्लेशियर समाप्त हुए तो पृथ्वी  आग की गोला बन जाएगी। एक-एक बंूद पानी के लिए दुनिया तरस जाएगी। पूरा पर्यावरणीय संकट मनुष्य मात्र के लिए जीवन संकट में बदल जाएगा। इस पर गंभीरता से भारत सरकार हिमालय राज्यों के साथ विचार विमर्श का समाधान ढूंढे।  उन्होने कहा उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में स्पर्श गंगा बोर्ड का गठन  हुआ जिसमें केवल गंगा तथा उससे मिलने वाली जलधाराओं का संरक्षण और संवर्धन की ही बात नही की थी बल्कि उससे भी आगे हिमनद प्राधिकरण बनाकर हिमालय की सुरक्षा का भी एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी। वर्तमान में उत्तराखंड सरकार उसके महत्व को नही समझ सकी। ये दोनों ही अभियान भारत सरकार को देश के हित में अपने हाथों में लेनी चाहिए। तभी पर्यावरण की रक्षा हो सकेगी और उत्तराखंड का वह वन पंचाायतों का अभिनव प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए महिलाओं की तथा नौजवानों की सहभागिता को और तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए। वनों के सरंक्षण की दिशा में उसे व्यवसायिक तौर पर बन पंचायतों के साथ समन्वय और कार्य योग्यता भी जरूरी है। उत्तरखंड में दर्जनों वन वार्क हैं, वन्य जन्तु पाए जाते हैं अरबों-खरबों की सम्पत्ति पर पर्यावरण की रक्षा में वन अधिनियम के तहत हाथ भी नहीं लगाता। उन्होने मांग की कि उत्तराखंड सहित हिमालय राज्यों को पर्याप्त ग्रीन बोनस मिलना चाहिए। उत्तराखंड में जिस तरह अभी गत वर्ष केदारनाथ में भयंकर त्रासदी हुई थी। देश के 24 राज्यों के 20 हजार से भी अधिक लोगों के गायब होने या हताहत होने की आशंका है और जिसे तरह 1998 में मालदा की त्रासदी हो या 1991 में उत्तरकाशी-चमोली भूकंप, भूस्खलन की घटनाएं हों, दिल दहला देने वाली प्रलयकारी आपदाएं आती हैं जो खेत खलिहान को ही मटियामेट नहीं करती अपितु जनहानि और पशु हानि सवाहि तमाम हानियों को बुरी तरह से बेदर्दी से कर जाती हैं। उत्तराखंड की हमेशा मांग रही है कि बादलों के फटने से ये त्रासदियां बढ़ जाती है। डॉप्लर रडार पूरे उत्तराखंड में लगते हैं तो पांच घंटा पहले किसी भी बादल के उक्त स्थान पर फटने की पूर्व में सूचना से हजारों लोगों की जान को बचाया जा सकता है। उन्होंने इस व्यवस्था के लिए वन मंत्री का आभार भी जताया। बजट में सीमावर्ती क्षेत्र में 100 कि-मी- तक बिना पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति से ही राज्य सरकारों को निर्माण कार्य करने की अनुमति दी है तथा वन प्रभावित इन रा’यों में 5 हैक्टेयर तक वन भूमि हस्तान्तरण का अधिकार राज्’य स्तर पर ही करने का निर्णय लिया है। यह ऐतिहासक कार्य है ; वनों से आच्छादित इस क्षेत्र मे अलग से योजना बनाई जाए ताकि वनों से प्रभावित या उन पर आश्रित लोग गांवों से पलायन न करें। वन्य जंतु संरक्षण अधिनियम के तहत भी जो गांव बुरी तरह प्रभावित होकर पुनर्वास के लिए भटक रहे हैं उन्हें तत्काल प्रभाव से पुनर्वासित किया जाए और पहले लोगों को पुनर्वास कर किसी भी योजना को लागू किया जाए। पहाड़ों पर आपदा भूकंप भूस्खलन और हरिद्वार जैसे जिले में जहां गंगा के बढ़ते पानी या टिहरी सहित अन्य जल विद्युत परियोजनाओं के द्वारा छोड़े जाने वाले पानी से दर्जनों गांव डूब जाते हैं। खेत-खलिहान ध्वस्त हो जाते हैं और किसान की खेती नष्ट हो जाती है। उसको तत्काल प्रभाव से योजना बनाई जाए और हरिद्वार के इन समस्त गांवों के लोगों को राहत प्रदान की जाए। उन्होने कहा उत्तराखंड में जहां 65 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र है तथा  12500 से अधिक वन पंचायतें हैं। इस साढ़े बारह हजार वन पंचायतों में ढाई लाख से अधिक महिला पुरूष नौजवान अपने प्राणों को हथेली पर रखकर इन अपने निजी वनों को सुरक्षित करते हैं और यहां के लोग वनों को बनो की तरह पालते-पोषते हैं। जंगलों में आग लगाने पर लोग जान हथेली पर रखकर लोग गांव से आग बुझने के लिए आगे आते हैं। जंगलों में आग बुझाते समय सैकड़ों महिला पुरूष ने अपने प्राणों की आहुति तक दी है। दुनिया का ऐसा उदाहरण शायद बिरला ही होगा कि अपने से भी बच्चाों से भी ज्यादा उत्तराखंड के लोग अपने जंगलों क ी रक्षा करते है। चिपकों आंदोलन का जन्म उत्तराखंड से ही होता है। गौरादेवी जो इस आंदोलन की प्रेरणा थीं। 

जगत मर्तोलिया ने छोड़ी भाकपा माले

पिथौरागढ़ 23 जुलाई(निस)।साढ़े सात वर्षों से कम्युनिस्ट राजनीति कर रहे जगत मर्तोलिया ने आज भाकपा माले छोड़ दी। उन्होंने कहा कि अब वे गैर राजनितिक हो कर कार्य करते रहेगें। इसके लिए शीघ्र ही उत्तराखण्ड स्तर के एक फोरम का गठन किया जायेगा। राजनीति छोड़कर पुनः पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करने की बात भी कही। उन्होने कहा कि विषेशकर धारचूला और मुनस्यारी की जनता ने उन्हें जो प्रेम और सहयोग दिया है उसका साथ वे कभी भी नहीं छोड़गे। जिला पंचायत कैम्पस पत्रकारों से वार्ता करते हुए जगत मर्तोलिया ने कहा कि वे निजी कारणों से राजनीति छोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि पत्रकार राजनीति से आम राजनीति में आकर उन्होंने बहुत कुछ सीखा है। इसका फायदा अब वे अपनी लेखनी, जनता और पत्रकारों के सामाजिक, आर्थिक और सास्कृतिक आन्दोलनों को आगे बढाने के लिए उठायगें। उन्होंने भाकपा माले की प्राथमिक सदस्यता, जिला सचिव और राज्य कमेटी सदस्य तीनों से त्यागपत्र पार्टी के राज्य सचिव को भेज दिया है। मर्तोलिया ने कहा कि उन्होंने एक्टू से जुड़ी विभिन्न यूनियनों से भी अपना नाता तोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक जीवन के अनुभवों और तमाम आन्दोलनों में रही उनकी सकी्रयता को वे किताब की षक्ल भी देगें। एक समय में पत्रकारिता में दखल रखने वाले मर्तोलिया ने कहा कि पुनः वे पत्रकारिता के कार्य को षुरु कर रहे हैं। षीघ्र ही वे दैनिक समाचार पत्र से जुड़ने के अलावा अपने संपादन में पत्रिका भी निकालगे। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में एक संघर्श करने वाले फोरम की आवष्यकता है राज्य के तमाम हिस्सों से उनके पास इस तरह का सुझाव आता रहा है। इसलिए वे अपने सहयोगियों से बातचीत करने के बाद षीघ्र ही एक राज्य स्तरीय फोरम की घोशणा करेगे। इस फोरम के माध्यम से उत्तराखण्ड में जनता के आन्दोलनों को संचालित करने और उत्तराखण्ड को षहीदों के सपनों का राज्य बनाने के लिए कारगार हस्तक्षेप किया जायेगा। उन्होंने कहा कि राज्य में जारी लूट-खसौट और भश्टाचार के खिलाफ एक बड़े सर्व स्वीकार आन्दोलन की आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि धारचूला और मुनस्यारी के प्रत्येेक गांव के हर परिवार से उनका साढ़े सात वर्शों का रिष्ता रहा है। धनबल और बाहुबल के खिलाफ इस क्षेत्र की जनता ने उनका साथ दिया इसलिए वे धारचूला और मुनस्यारी की जनता के प्रति अपनी जबाबदेही को कभी भूल नहीं सकते। उन्होंने कहा कि हर सुख दुख में वे जनता के साथ खड़े रहगें। 

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