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नरकटियागंज (बिहार) की खबर (24 जुलाई)

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उपविकास आयुक्त बेतिया ने किया नरकटियागंज अनुमण्डल कार्यालय का दौरा

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नरकटियागंज(पच) अनुमण्डल में समाजिक, जाति व आर्थिक गणना की दावा आपत्ति का निराकरण 25 जुलाई 2014 तक सम्पन्न कर लेना है। इस मामले को लेकर जिला उप विकास आयुक्त ने नरकटियागंज का दौरा किया। उन्होंने मामले की पूरी जानकारी अनुमण्डल पदाधिकारी शंभू कुमार से ली। अनुमण्डल पदाधिकारी शंभू कुमार ने बताया कि क्षेत्र में सम्पन्न हुए समाजिक, आर्थिक और जातिगत गणना के दौरान भारी अनियमितता के कारण लोगों को काफी परेशानी हुई हैं। उन्होंने बताया कि इस संबंध में जिला में एक टीम बनाई गयी है और पूरी टीम इसमें प्राप्त दावा के निपटारा में लगी हुई हैं। उल्लेखनीय अनुमण्डल से समाजिक, जाति व आर्थिक गणना मे हुई त्रुटि को लेकर 29871 आपत्ति दर्ज कराये गये है और कुछ ने दावापत्र दाखिल किया हैं। हालाकि नरकटियागंज में विधान सभा उपचुनाव होना है, उसको लेकर भी उपविकास आयुक्त प्रशासनिक तैयारी का जायजा लेकर बेतिया गये और सभी मामलों से जिला पदाघिकारी को अवगत करायेगे। उपचुनाव को लेकर प्रशासनिक गतिविधियाँ भी तेज हो जाएँगी।

नरकटियागंज विधान सभा उप चुनाव के बाद से बढी राजनीति सरगर्मी

नरकटियागंज(अवधेश कुंमार शर्मा) पश्चिम चम्पारण के किसान हमेशा बिहार की राजनीतिक दिशा तय करते है। 2010 के पूर्व नरकटियागंज विधान सभा क्षेत्र शिकारपुर के नाम से जाना जाता रहा है। विधान सभा क्षेत्र की राजनीति इस्टेट के पक्ष व विपक्ष की घुरी पर घूमती रही है। इस्टेट मुख्यतः कांग्रेस की राजनीति करता रहा है। 1990 से कांग्रेस के गढ में जनता दल उसके बाद राजद का एकछ़त्र गढ बना रहा। हमेशा इस क्षेत्र में जनसंघ ने कांग्रेस को सीधा टक्कर दिया हैं। भारतीय जनता पार्टी जिसे जनसंघ की प्रतिछाया माना गया है, ने इस क्षेत्र से शिकारपुर इस्टेट को हमेशा चुनौती दिया हैं। सर्व प्रथम जनसंघ के समर्थन से नरसिंह बैठा चुनाव जीते उसके बाद, काफी दिनों तक सुबोध कुमार भाजपा की टिकट पर रनर अप रहे। जैसे ही वे पार्टी छोड़ अलग हुए भाजपा के भाग्योदय हुआ और पार्टी की टिकट पर भागीरथी देवी ने 2000 में जीत का परचम लहरा दिया। फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की टिकट पर सुबंोध पासवान ने अभूतपूर्व विधान सभा में विधायक तो बने लेकिन विधान सभा की चैखट के भीतर नही जा सके उस चुनाव में शिकारपुर इस्टेट के आलोक प्रसाद वर्मा के सहयोग से उन्होंने भागीरथी देवी के 19161 मतो के विरूद्ध 30421 मत प्राप्त किया था। उसके बाद फिर हुए चुनाव में भागीरथी ने सुबोध को पटखनी दे दी और विधायक निर्वाचित हुई। 2010 में भारतीय जनता पार्टी के विधायक निर्वाचित हुए सतीश चन्द्र दूबे, जिन्होंने आलोक प्रसाद वर्मा(ओम बाबू) शिकारपुर इस्टेट को पराजित किया। 2014 में हुई संसदीय चुनाव में सतीश चन्द्र दूबे के सांसद निर्वाचित होने के बाद होने जा रहे उपचुनाव में भाजपा को अपना गढ बचाने की चुनौति है। उम्मीद्वारों की लम्बी फेहरिस्त के बावजूद पार्टी नेतृत्व का फैसला सर्वमान्य होगा। वैसे जद यू से भाजपा में शामिल हुई जिला परिषद पश्चिम चम्पारण की अध्यक्ष रेणु देवी और भाजपा के पुराने शांत नेता राजीव जायसवाल के नाम की चर्चा है, अब देखना यह कि टिकट लेने मे कौन सक्षम होता है अथवा पैरासूट से प्रत्याशी उतारे जाएँगे। इन दिनो पैराट्रूपर उम्मीद्वारों की संख्या बढती जा रही है। उधर जदयु, राजद, सीपीआई और कांगे्रस गठबंधन में नरकटियागंज सीट कांग्रेस के पल्ले पड़ने की चर्चा है। दूसरी ओर क्षेत्र के एक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की महात्वाकांक्षा उनकी पत्नी को राजनीति में स्थापित करना है। इसी बात को लेकर वे विधानसभा चुनाव में अपनी पत्नी मंजूबाला पाठक को उतार सकते है। विगत विस चुनाव में दूसरे नम्बर पर रहे शिकारपुर इस्टेट के युवा तुर्क आलोक प्रसाद वर्मा की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी रश्मि वर्मा इस चुनाव में भाजपा को पटखनी देने की सोच रखी, इसी उम्मीद से उन्होंने जद यु का दामन हाल ही में थामा था। फिलहाल ऐसा कोई अन्य उम्मीद्वार ऐसा नहीं है जो भारतीय जनता पार्टी और उसके रणनीतिकारों के  आक्रामक तेवर का जवाब दे सके। वैसे सभी जानते है कि सतीशचन्द्र दूबे मोदी लहर में सांसद बने है। भाजपा को पराजित करना आसान नहीं होगा संयुक्त विपक्ष के लिए, अब देखना यह है कि सभी एकजुट हुई पार्टियाँ भाजपा को पराजित करने के लिए चुनाव लड़ेगी या उनके जीत का मार्ग प्रशस्त करने को। वैसे भाकपा माले अपने किसी युवा नेता को उपचुनाव में अपना प्रत्याशी बनाने की सोच रखे हुए हैं। उनका कहना है कि युवा राजनीति को गति दे सकने में सक्षम होते है। बिहार में नीतीश, लालू और अशोक चैधरी को यदि भारतीय जनता पार्टी से यदि नरकटियागंज विस सीट हथियाना है तो कोई दमदार प्रत्याशी को समर्थन देना होगा अन्यथा भाजपा को कोई प्रत्याशी जीत दिला सकता है। भाजपा के लिए मात्र एक ही चुंनौती है कि लालू-नीतीश गठबंधन को चारो खाने कैसे चित्त किया जाए।

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