ग्वालियर की अडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज व यौन उत्पीड़न के खिलाफ बनाई गई जिला स्तरीय विशाखा कमिटी की मुखिया मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक जज की 'गंदी नजरों'से खुद को नहीं बचा पाईं। आखिरकार अपनी गरिमा और आत्मसम्मान को बचाने के लिए उन्होंने जुडिशल सर्विस से इस्तीफा देने का फैसला कर लिया। 15 साल तक दिल्ली में वकालत की प्रैक्टिस करने के बाद उन्होंने एमपी हायर जुडिशल सर्विस की परीक्षा पास की और 1 अगस्त 2011 को ग्वालियर में कार्यभार संभाला। अक्टूबर 2012 में वह ग्लावियर में अडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज अपॉइंट की गईं। अप्रैल 2013 में वह जिले की बिशाखा कमिटी की चेयरपर्सन बनाई गईं।
जनवरी 2014 की सालाना कॉन्फिडेंशल रिपोर्ट में उनके काम की काफी तारीफ की गई, लेकिन इतना काफी नहीं था। सेशन जज का आरोप है कि हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच के एक ऐडमिनिस्ट्रेटिव जज ने अपने बंगले पर अकेले मिलने के लिए उन पर दबाव डाला। देश के चीफ जस्टिस आर. एम. लोढ़ा, सुप्रीम कोर्ट के जज एच. एल. दत्तू, टी. एस. ठाकुर अनिल आर. दबे, दीपक मिश्रा, अरुण मिश्रा और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजी गई अपनी शिकायत में उन्होंने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। आरोप के मुताबिक, ऐडमिनिस्ट्रेटिव जज ने उनके मोबाइल पर मेसेज भेजकर अपने घर पर आइटम सॉन्ग पर डान्स करने के लिए बुलाया, लेकिन अपनी बेटी के जन्मदिन का बहाना बनाकर उन्होंने इसे टाल दिया।
चीफ जस्टिस लोढ़ा ने कहा, 'यह एकमात्र ऐसा पेशा है, जिसमें हम अपने सहयोगियों को भाई और बहन के रूप में देखते हैं। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। मेरे पास शिकायत आई है और मैं इस पर उचित कार्रवाई करूंगा।'पीड़ित जज का आरोप है कि घर पर आइटम डान्स करने का मेसेज भेजने के एक दिन बाद आरोपी ऐडमिनिस्ट्रेटिव जज ने उनसे कहा, 'वह एक सुंदर और सेक्सी फिगर वाली महिला का डान्स देखने से चूक गए। वह यह देखने के लिए बेताब हैं।'महिला जज का आरोप है कि हाई कोर्ट के जज के संकेतों और दुर्भावना के सामने घुटने न टेकने की वजह से उन्हें परेशान किया जाने लगा।
महिला जज का कहना है कि मेरे हर काम पर नजर रखी जाने लगी, लेकिन जब कोई गलती नहीं मिली तो वह और चिढ़ गए। 22 जून को महिला जज अपने पति के साथ ऐडमिनिस्ट्रेटिव जज से मिलने पहुंचीं, लेकिन पति के सात देखकर वह और नाराज हो गए। बकौल महिला जज उन्होंने 15 दिन बाद मिलने के लिए कहा लेकिन उससे पहले ट्रांसफर ऑर्डर थमा दिया गया। महिला जज का आरोप है कि एमपी हाई कोर्ट की ट्रांसफर पॉलिसी से उलट उनका ट्रांसफर ग्रामीण इलाके में कर दिया गया। इसके साथ ही बेटी की पढ़ाई के लिए 8 महीने के एक्सटेंशन की उनकी अर्जी भी खारिज कर दी गई। महिला जज का कहना है कि अकैडमिक सेशन के बीच में ट्रांसफर से 12वीं में पढ़ने वाली उनकी बेटी की पढ़ाई पर असर पड़ेगा।
महिला की शिकायत के मुताबिक, सीनियर जज ने महिला जज को धमकी दी कि वह उनका करियर तबाह कर देगा। उन्होंने कहा, 'इसको लेकर मैंने एमपी के चीफ जस्टिस से मुलाकात के लिए समय मांगा, लेकिन उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया और इसके बाद मेरे पास इस्तीफे के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था। इसलिए मैंने 15 जुलाई को अपनी गरिमा, आत्मसम्मान और बेटी का करियर बचाने के लिए इस्तीफा दे दिया।'