भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ नेताजी सुभाष चंद्र बोस को दिए जाने के कयासों के बीच नेताजी के परिजनों ने यह कहते हुए इसे अस्वीकार कर दिया कि नेताजी और महात्मा गांधी जैसी हस्तियां इन पुरस्कारों से ऊपर हैं.
नेताजी के प्रपौत्र और तृणमूल कांग्रेस सांसद सुगत बोस ने कहा, 'दलीय राजनीति से नेताजी को अलग रखें. उनका दर्जा भारत रत्न से बड़ा है. राजीव गांधी के बाद नेताजी को भारत रत्न कैसे दिया जा सकता है? इतिहास बोध वाला कोई भी शख्स मुझसे सहमत होगा.'हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे और नेताजी की जीवनी लिख चुके बोस ने हैरत जताई कि कैसे उन्हें भारत रत्न दिया जा सकता है जब उनसे पहले 43 लोगों को यह दिया जा चुका है. उन्होंने कहा, 'नेताजी और गांधी भारत रत्न से ऊपर हैं. पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न के आदर्श उम्मीदवार हैं नेताजी नहीं. नेताजी का नाम आगे नहीं लाएं.'
नेताजी के एक अन्य प्रपौत्र चंद्र कुमार बोस ने दावा किया कि परिवार के अधिकतर सदस्य नेताजी को यह सम्मान प्रदान किए जाने के खिलाफ हैं. इसके बजाय उनकी मांग है कि पहले उनके लापता होने की गुत्थी सुलझायी जाए. बोस ने पीटीआई से कहा, 'नेताजी वर्ष 1945 से ही लापता हैं. जब आप उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करेंगे, आपको यह कहना होगा कि उनकी मौत कब हुई, लेकिन सबूत कहां हैं? उन्हें सम्मानित करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका उन सरकारी फाइलों को सार्वजनिक किया जाना है, जिससे उनके लापता होने के पीछे की सच्चाई उजागर हो.'बोस ने कहा कि उन्होंने महान नेता के परिवार के करीब 60 सदस्यों से बात की है. उनमें से कोई भी नेताजी की ओर से सम्मान स्वीकार करने को तैयार नहीं है.
चंद्र बोस ने कहा, ‘हम सभी का मानना है कि भारत रत्न उनके लिए उचित पुरस्कार नहीं होगा. हममें से कोई भी उनकी तरफ से यह पुरस्कार प्राप्त करने नहीं जाएगा.'नेताजी के परिवार के सदस्यों और ‘ओपन प्लेटफॉर्म फॉर नेताजी’ ने हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर नेताजी के लापता होने की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान न्यायाधीश के निर्देशन में एक विशेष जांच दल गठित करने की मांग की थी.'
नेताजी 1941 में अंग्रेजों की नजरबंदी में थे. तभी, वह देश की आजादी के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग जुटाने चुपके से भारत से निकल गए थे. 1945 में नेताजी लापता हो गए, जो कि भारत का सबसे चर्चित रहस्य बन गया. मुखर्जी आयोग ने उनके लापता होने की जांच की थी और इस विचार को खारिज कर दिया था कि ताईवान में 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी थी.