जम्मू कश्मीर राज्य के जम्मू प्रांत में पड़ने वाले सांबा जिले के विजय पुर शहर में 12 बटे 12 के वर्गाकार कमरे में एक लकड़ी की मेज जिस पर फाइलें अटी पड़ी हैं, कुछ प्लास्टिक की कुर्सियां, कुछ अलमारियां अ©र छत पर लगा मंद गति से चलने वाला पंखा ज¨ बमुश्किल हवा दे पा रहा था, यह सबकुछ मिलाकर ज¨ तस्वीर बनती है वह लाभ राम गांधी का कार्यालय है। लाभ राम गांधी पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी कार्य समिति, 1947 के अध्यक्ष हैं। हर र¨ज इस छ¨टे से कार्यालय के बाहर कितने ही पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी अपनी अनगिनत समस्याअ¨ं क¨ लेकर यहां पर आते हैं। जम्मू कश्मीर राज्य के लाइट इंफेंटरी से हवलदार के त©र पर सेवानिवृŸा सŸार वर्षीय लाभ राम गांधी ने सेवानिवृŸिा के बाद से ही खुद क¨ पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थिय¨ं की समस्याअ¨ं पर काम करने के लिए समर्पित कर दिया था। ये शरणार्थी 1947 में भारत पाकिस्तान के बंटवारे के द©रान पश्चिमी पाकिस्तान से भागकर जम्मू शरण लेने आए थे। लाभ राम कहते हैं,‘‘जाके पैर न फटी बिवाई, व¨ क्या जाने पीर पराई। चूंकि मैं खुद एक शरणार्थी हूं इसलिए मैं उनकी पीड़ा अ©र दुर्भाग्य क¨ अच्छी तरह समझ सकता हूं। हालांकि मैं क¨ई बहुत बड़ा आदमी नहीं हूं फिर मैं अपने तन-मन से इन शरणार्थिय¨ं की छ¨टी-म¨टी समस्याअ¨ं का हल निकालने के प्रयास करता रहता हूं।’’
1947 के बंटवारे के द©रान करीब 1020 परिवार, जिनमें 90 प्रतिशत हिंदु अ©र 10 प्रतिशत सिक्ख थे, पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन कर जम्मू क्षेत्र में आए थे। ये परिवार ज्यादातर निचले वर्ग से थे। तब से ही ये परिवार जम्मू क्षेत्र में बेहद दयनीय स्थिति में रह रहे हैं। 67 साल बीत जाने के बाद भी आज भी वह अपने नागरिक अ©र राजनीतिक अधिकार¨ं से वंचित हैं जिससे उनकी जीवन की परिस्थितियां बदतर हालात¨ं में हैं। शरणार्थी आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा अधिकŸार मामल¨ं में अपने अधिकार¨ं से महरूम है जिनमें विधान सभा अ©र पंचायत चुनाव¨ं में मतदान, राज्य शासकीय सेवाअ¨ं में चयन अ©र राज्य क¨ अनुच्छेद 370 के तहत मिले विशेष संवैधानिक दर्जे के कारण अचल संपŸिा खरीदने का अधिकार शामिल है। इस अनुच्छेद का खण्ड 6 केवल उन्हीं ल¨ग¨ं क¨ स्थाई निवासी मानता है जिनके पुरखे 14 मई 1954 तक 10 साल के लिए जम्मू कश्मीर राज्य में रहे ह¨ं। लाभ राम बताते हैं,‘‘चूंकि हमें इस राज्य का निवासी नहीं माना जाता है, इसलिए हमें स्थाई निवास प्रमाण-पत्र नहीं दिया जाता है। यह प्रमाण-पत्र किसी भी व्यक्ति के लिए सरकारी न©करी प्राप्त करने के लिए, अचल संपŸिा खरीदने के लिए अ©र अन्य फायदे उठाने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।’’
चूंकि पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी अपने शरणार्थी दर्जे की वजह से अचल सम्पŸिा नहीं खरीद सकते हैं इसलिए मंत्रीमंडल की आदेश संख्या 1954 की 578-सी के तहत सरकार द्वारा आवंटित जमीन¨ं पर मालिकाना हक नहीं मिलता है। जिसकी वजह से वह न इन जमीन¨ं क¨ बेच सकते हैं अ©र नहीं ऋण लेने के लिए गिरवी रख सकते हैं। उनके लिए किसी सरकारी तकनीकि संस्थान में प्रवेश पाना या फिर राशन कार्ड बनाना बहुत ही टेढ़ी खीर है क्य¨ंकि द¨न¨ं ही मामल¨ं में स्थाई निवास प्रमाण पत्र एक अत्यंतावश्यक दस्तावेज है। लाभ राम ने बताया,‘‘हर र¨ज विभिन्न शरणार्थी इलाक¨ं से अनेक¨ं ल¨ग अलग-अलग तरह की समस्याएं मेरे कार्यालय में लेकर आते हैं जैसे तकनीकि संस्थान¨ं में छात्र¨ं क¨ प्रवेश न मिलना, राशन कार्ड जारी करने में अधिकारिय¨ं की तरफ से की जाने वाली आना-कानी इत्यादि।’’ हालांकि मानव संसाधन मंत्रालय ने चेतावनी पत्र संख्या एफ21-68/2008-टीएस तारीख 27 अगस्त 2008 के जरिए जम्मू कश्मीर राज्य में स्थित पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थिय¨ं कुछ छूट देने के लिए आवश्यक प्रावधान उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए थे। इन छूट¨ं में जम्मू कश्मीर के बसे पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थिय¨ं के बच्च¨ं क¨ प्रवेश देने के लिए स्थाई निवास प्रमाण पत्र की अनिवार्यता क¨ खत्म करना शामिल है। लेकिन वह बताते हैं कि अधिकारी ऐसे निर्देश¨ं की तरफ बहुत ही तिरस्कारपूर्ण रवैया रखते हैं।
अस्सी वर्षीय देव राज भीगी आंख¨ं से बताते हैं,‘‘ ‘‘1947 में जब हम अपने पुरख¨ं के गांव शकरपुर (ज¨ अब पाकिस्तान में है) क¨ छ¨ड़कर भागे थे तब मैं केवल 15 साल का था। तब से 67 साल गुजर चुके हैं लेकिन अभी भी मुझे वह पहचान नहीं मिली है ज¨ शकरपुर में थी। यहां पर दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र के गुमनाम अ©र अधिकारविहीन नागरिक हैं।’’ लगभग कुछ ऐसी ही राय रखते हुए अस्सी वर्षीय पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी, दया राम कहते हैं,‘‘मैं मरने से पहले कम से एक बार अपनी उंगली पर विधानसभा चुनाव¨ं के द©रान लगने वाली स्याही का निशान देखना चाहती हूं। यहां पर यह बता देना जरूरी है कि कि राज्य की 15 विधान सभा क्षेत्र¨ं में बंटे हुए करीब 50 हजार मतदाता हैं ज¨ विधानसभा चुनाव¨ं के द©रान मतदान का अधिकार न ह¨ने की वजह से मतदान नहीं करते। ज्यादातर पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थिय¨ं की युवा पीढ़ी बेर¨जगार है अ©र वह घर पर रह कर सब्जियां उगाने का काम करती है ज¨ उनकी मानसिक अवस्था पर बहुत ही घातक प्रभाव छ¨ड़ रहा है अ©र उनके बीच एक अलगाव की भावना पनप रही है। जम्मू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान की प्र¨फेसर डाॅ. सपना के. सांगरा बताती हैं,‘‘यह देखा जा रहा है कि विस्थापित¨ं में बेर¨जगारी की समस्या उनके मानसिक स्वास्थ्य क¨ प्रभावित कर रही है। शराबख¨री उनके बीच में आम प्रचलन बन गया है अ©र क्य¨ंकि वह जानते हैं कि उन्हें सरकारी न©करी नहीं मिल सकती है इसलिए वह हाई-स्कूल के मुश्किल से ही अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं।’’ कुछ शरणार्थी परिवार¨ं ने राजस्व अधिकारिय¨ं क¨ रिश्वत देकर स्थाई निवास प्रमाण पत्र त¨ बनवा लिया है लेकिन वे भी लगातार भय के साए में जी रहे हैं। उन्हें हमेशा यह डर सताता रहता है कि कब क¨ई जाकर शिकायत करदे अ©र वह मुसीबत में फंस जाएं।
एक शांत पश्चिमी पाकिस्तान की शरणार्थी युवा स्नातक महिला नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताती हैं कि एक बहुत ही लंबी अ©र कष्टकर प्रक्रिया से गुजरने के बाद सरकारी न©करी प्राप्त करने की उम्मीद में उन्ह¨ंने स्थाई निवास प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लिया अन्यथा उन्ह¨ंने अपनी पढ़ाई पर ज¨ इतने साल¨ं की मेहनत की थी वह सब व्यर्थ जाती। लेकिन उन्हें इस बात का भी डर कि यह अवैधानिक तरीका उनके भविष्य पर खतरा भी बन सकता है। वर्ष 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने जीडी वाधवा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था जिसे शरणार्थिय¨ं की समस्याअ¨ं पर विचार करना था। इस समिति ने उनके पक्ष में बहुत सी सिफारिशें की लेकिन आज तक उनमें से मुश्किल से क¨ई लागू किया गया है। म©जूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र म¨दी ने अपने चुनाव अभियान के द©रान जम्मू कश्मीर के बहुत से मुद्दे हल करने का वायदा करते वक्त पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थिय¨ं की म©जूदा हालात क¨ सुधार कर उनके पुनर्वास अ©र उन्हें नागरिक कहलाए जाने का हक देना का भी वायदा किया था। अब देखते हैं कि जिस काम क¨ 67 वषर्¨ं तक विभिन्न राज्य तथा केंद्र सरकार¨ं ने अपनी राजनीतिक स्वाथर्¨ं के चलते नहीं किया उसे नरेंद्र म¨दी कर पाएंगें। या फिर उनके भी ये वायदे महज चुनावी हथकण्डे साबित ह¨ंगे। अब यह त¨ वक्त ही बताएगा कि क्या पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थिय¨ं अ©र उनके बच्च¨ं के भी..अच्छे दिन आएंगे।’’
गुलज़ार अहमद भट्ट
(चरखा फीचर्स)