जजों की नियुक्ति के कोलेजियम सिस्टम को बदलने वाला ज्युडिशियल अप्वाइंटमेंट बिल आज लोकसभा में पास हो गया। लोकसभा में हुई वोटिंग में इस बिल के विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा। कुल 367 वोट बिल के समर्थन में डाले गए। इस बिल के कांग्रेस का समर्थन हासिल था।
दरअसल सरकार चाहती है कि कॉलेजियम सिस्टम के स्थान पर जजों की नियुक्ति के लिए नेशनल ज्यूडिशियल एपॉइन्टमेंट्स कमीशन (एनजेएसी) बनाया जाए। इसीलिए संविधान संशोधन बिल लाया गया है। इस बिल पर मंगलवार को भी लोकसभा में चर्चा हुई। पक्ष हो या विपक्ष, सभी इस व्यवस्था को बदलने के लिए एकमत हैं। कुछ सांसदों ने विधेयक में थोड़े बहुत बदलाव की सलाह दी तो कुछ ने हाईकोर्ट में नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए अलग से राज्य न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाने का सुझाव दिया। चर्चा के दौरान सांसद यह कहने से भी नहीं चूके कि न्यायपालिका जब चाहती है उन पर (राजनीतिज्ञों पर) आलोचनात्मक टिप्पणियां करती है।
बिल में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव का प्रस्ताव है। बिल पास होने के बाद जजों की नियुक्ति न्यायिक आयोग करेगा। 6 सदस्यीय न्यायिक आयोग में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, सुप्रीम कोर्ट के दो जज, कानून मंत्री और दो ऐसी शख्सियत होगी जिन्हें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस चुनेंगे। न्यायिक आयोग के छह में से अगर किसी दो लोगों को किसी नाम पर आपत्ति हुई तो उस जज की नियुक्ति रोक दी जाएगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति अभी तक कोलेजियम सिस्टम से होती रही है। कोलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के जज होते हैं और वही हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति मिलकर करते हैं। जजों की नियुक्ति को लेकर अतीत पर गौर करें तो 1993 से पहले सुप्रीम कोर्ट के जजों की सलाह से कानून मंत्री नए जजों की नियुक्ति करते थे।
1993 के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम बना। किसी भी हाई कोर्ट जज की नियुक्ति के लिए संबंधित हाई कोर्ट के कॉलेजियम की सहमति अनिवार्य होती थी। हाई कोर्ट कॉलेजियम से नाम तय होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों का कॉलेजियम अंतिम मुहर लगाता था और सरकार के पास भेजता था।