दुष्कर्म के अपराध मे महेश श्रीवास्तव को 10 वर्ष का कारावास
दतिया। जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री राजीव शर्मा की न्यायालय से पुलिस थाना कोतवाली दतिया के अपराध क्रमांक 232/2013, सत्र न्यायालय दतिया का विशेष प्रकरण क्रमांक 01/2013 मे महेश श्रीवास्तव (आयु 30 वर्ष) पुत्र प्रेम नारायण श्रीवास्तव निवासी ग्राम पालीनूर (तहसील व जिला दतिया) को धारा 376 भा.द.वि. के अपराध मे 10 वर्ष का सश्रम करावास एवं 10,000/- रूपये अर्थ दण्ड़, धारा 4 बच्चों के यौन अपराधों से सुरक्षा अधिनियम के अपराध मे 3 वर्ष का सश्रम करावास एवं 5,000/- रूपये अर्थ दण्ड़, धारा 366-क भा.द.वि. के अपराध मे 5 वर्ष का सश्रम करावास एवं 5,000/- रूपये का अर्थ दण्ड़, धारा 363 भा.द.वि. के अपराध मे 3 वर्ष का सश्रम करावास एवं 5,000/- रूपये के अर्थ दण्ड़ से दण्डि़त किया गया है। अभियोजन पक्ष की ओर से शासकीय अभिभाषक श्री राजेन्द्र तिवारी एवं बचाव पक्ष की ओर से श्री अरविन्द लिटोरिया, श्री महेन्द्र यादव व श्री चन्द्र शेखर दुबे ने पैरवी की है। अपराध की उक्त घटना के विवरण इस प्रकार हैं कि दिनांक 22 जून 2013 को शाम लगभग 6ः00 बजे पीडि़त लड़की (आयु 17 वर्ष) पीताम्बरा पीठ दतिया पर अपनी नानी के साथ दर्शन करने के लिये आयी थी और उसी समय अभियुक्त उसे मिला तथा उसने पीडि़त लड़की से यह कहा कि चलो तुम्हें हम घर पर छोड़ देते हैं, मेरे पास जीप है। चूंकि अभियुक्त पीडि़त लड़की के मकान मे पूर्व मे किराये से रहता था इस कारण उससे परिचित भी थी, अतः लड़की अपनी नानी को पीताम्बरा पीठ पर छोड़कर उसके साथ जीप मे बैठ गई। इधर पीडि़त लड़की की नानी घटना दिनांक को अकेली जब घर पहुंची तो उसने लड़की के पिता को बताया कि पीताम्बरा पीठ पर महेश श्रीवास्तव उसे दिखा था और उसी के साथ लड़की गायब हो गई है। तब लड़की के पिता ने पहले तो आस-पास तलाश के बाद पुलिस थाना कोतवाली दतिया मे अभियुक्त के बिरूद्ध रिपोर्ट लिखाई थी। उधर पीडि़त लड़की को अभियुक्त जीप से झांसी ले गया था और झांसी से ललितपुर और वहां से छिन्दवाड़ा के पास किसी गांव मे लिवा ले गया और वहां 8 दिन तक लड़की को रखा और उसके साथ बलात्कार किया था। आठ दिन बाद लड़की को लेकर अभियुक्त बापिस आया। पुलिस ने लड़की को रेल्वे स्टेशन दतिया से बरामद कर उसका मेडीकल परीक्षण कराया था। यद्यपि मेडीकल परीक्षण मे लड़की के शरीर पर चोटों के कोई निशान नहीं पाये गये परन्तु उसके साथ संभोग होना पाया गया। एफ.एस.एल. जांच रिपोर्ट मे भी लड़की की वेजाईनल एवं सर्वाईकल स्लाइड व उसके अन्दर के कपड़े पर एवं अभियुक्त के अन्दर के कपड़े पर शुक्राणु होना पाये गये थे। पीडि़त लड़की स्कूल मे पढ़ती थी जहां उसकी जन्म दिनांक 02 सितम्बर 1996 लेख थी इस प्रकार लड़की घटना दिनांक को 16 वर्ष 9 माह की थी। परन्तु मेडीकल आॅसीफिकेशन परीक्षण मे लड़की को 18 वर्ष से अधिक और 20 वर्ष से कम होना बताया गया और इस प्रकार बचाव पक्ष की ओर से मुख्यतः न्यायालय मे यह कहा गया था कि दतिया से छिन्दवाड़ा तक आरोपी के साथ लड़की गई और रास्ते मे उसने कोई बिरोध नहीं किया और न ही चिल्लाई तथा अपनी सहमति से आरोपी के साथ गई थी और सहमति से ही उसके साथ संभोग हुआ था। यद्यपि पीडि़त लड़की ने अपने न्यायालयीन कथन मे सहमति से जाना और सहमति से सहवास होने को इन्कार किया, बल्कि उसके द्वारा बलात्कार किया जाना कहा गया है। अभियुक्त पूर्व से शादी-शुदा था और उसके बच्चा भी है एवं पीडि़त लड़की उसे अंकल कहती थी व उसके मकान मे किराये से रहता था, इस कारण आरोपी पर वह विश्वास भी करती थी। अभियोजन पक्ष की ओर से न्यायालय मे क्रिमिनल लाॅ अमेन्डमेन्ट एक्ट 2013 के तहत साक्ष्य अधिनियम की धारा 114-ए पर बल देते हुये यह कहा गया कि बलात्कार के अपराध मे पीडि़ता की सहमति के संदर्भ मे बचाव पक्ष की ओर से भले ही कैसी भी परिस्थितियां प्रकट की गई हों, परन्तु यदि न्यायालयीन कथन मे पीडि़ता यह कहती है कि संभोग हेतु उसकी सहमति नहीं थी तब ऐसी स्थिति मे न्यायालय को यही अवधारणा निर्मित करना होगी कि पीडि़ता के साथ सहवास उसकी सहमति से नहीं हुआ। पीडि़ता की आयु के संदर्भ मे न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के इस तर्क से सहमत होते हुये मान्य किया है कि जब स्कूल के प्रमाणपत्र के अनुसार पीडि़ता का अव्यस्क होना प्रमाणित है और उसकी जन्म दिनांक उसके पिता द्वारा भी न्यायालय मे यथावत बताई गई है तब ऐसी स्थिति मे मेडीकल परीक्षण के माध्यम से आयु का निर्धारण चिकित्सक का सिर्फ एक मत मात्र है जो निश्चयात्मक नहीं होता है। परिणामतः माननीय न्यायालय ने पीडि़त लड़की को घटना के समय अव्यस्क होना मान्य किया है।