इतिहास गवाह है कि पाकिस्तानी हुक्मरान चाहे सेना के प्रमुख रहे हो या चुन कर आने वाले, अपने शासन के औचित्य को सही साबित करने के लिए भारत विरोधी भावना का सहारा लेते रहे है। इतिहास की इन नकारात्मक परछाइयों से उबरने व पड़ोसी देशों के साझेपन से बनने वाले एक खुशहाल दक्षिण एसिया की राह चलने में पाकिस्तान हमेसा अपने को नाकाम पाता है। इस बार भी यही हुआ। पाक की तरफ से घुसपैठ या अकारण गोलाबारी की इस साल करीब 50 घटनाएं हो चुकी है
पाकिस्तान में छिड़ा अंदरुनी कलह को देखते हुए भारत को पल-पल सजग रहना होगा। क्योंकि पाकिस्तानी सेना आतंकवाद का खुलेआम एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहती है और नवाज शरीफ के बने रहते संभव नहीं। ऐसे में भारत को दोमुंहे पाकिस्तान से सामना होगा। मतलब पाकिस्तान में विस्फोटक होती हालात को ध्यान में रखते हुए सीमा पर कड़ा पहरेदारी की सख्त जरुरत है। पाकिस्तान द्वारा लगातार संघविराम का उल्लंघन, उसके नापाक इरादों को साफ दर्शाता है। बार-बार इस तरह की हरकत से बिल्कुल साफ है कि पाकिस्तान की सरकार का उसकी सेना व सरहद पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है।
पाकिस्तानी सरकार व उसकी सेना के आपसी तालमेल के बिना सरहद पर घुसपैठ की हरकत हो ही नहीं सकती। सरहद पर गोलीबारी में हमारे बीर सैनिक शहीद हो रहे है। पाकिस्तान की छिपकर हमले करने की अपनी आदत से बाज नहीं आ रहा। धोखे से हमारे सैनिकों को मारना, उनका सिर काट ले जाना आदि कब तक सहता रहेगा भारत। आखिर कब तक हमारे बीर सैनिक शहीद होते रहेंगे। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी गतिविधियों और छद्म युद्ध से भारत में शांति भंग करने की कोशिश में लगा रहता है। उसका मकसद सिर्फ यहां के अमन-चैन में खलल व विकास में बाधा पहुंचाना होता है। उसकी गतिविधियों के मद्देनजर अब भारत को अपना रुख कड़ा करते हुए जवाबी हमले को हर वक्त तैयार रहना होगा। चुनावी दौर में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा देने व सैनिकों पर हमले बर्दाश्त नहीं आदि दावों की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सत्ता पाने के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को शपथग्रहण में बुलाने और दोस्ती का हाथ बढ़ाने का मामला तो ठीक था, शांति बहाली की हरसंभव कोशिश करना लाजिमी भी था, लेकिन अब ज बवह दोस्ती की आड़ में गुर्रा रहा है तो हमें फूंक-फूंक कर कदम रखनी होगी। मोदी के प्रधानमंत्री बनने सेे अबतक पाकिस्तानी सेनाओं ने कुल 19 बार युद्धविराम का उल्लंघन किया है। यह जगजाहिर है कि बिना उसकावे के किए गए इस तरह के हमले मुख्यतः घाटी में अतिवादियों व आतंकवादियों की घुसपैठ से ध्यान हटाने के लिए किए जाते है।
घाटी में आई आतंकवादी हमलों में तेजी इस बात की चीख-चीख कर गवाही दे रहे है। गत दिनों दक्षिण कश्मीर में सीमा सुरक्षा बल के काफिले पर किया गया आतंकी हमला इसका प्रमाण है। इस आतंकी हमले हमारे सुरक्षा के 6 जवान घायल हुए। इस घटना के बाद फिर से श्रीनगर आतंकी हमला किया गया। स्वीसफायर का उल्लंघन हो रहा है। फिर भी हमारे सुरक्षा जवान जान की परवाह किए बगैर आतंकी हमले का मुकाबला कर रहे है। लेकिन जवाबी कार्रवाई या हमले के लिए उन्हें सरकार की भी अनुमति का इंतजार होता है, जो नहीं दिख रही है। रक्षा मंत्री अरुण जेटली के चेतावनी का पाकिस्तान पर कोई असर नहीं दिख रहा, उल्टे लगातार हमलें हो रहे है। वर्ष 2013 में भी 25 अगस्त जैसे शर्तो पर बैठक होनी थी, लेकिन सीमा पर उस वक्त भी लगाार उल्लंघन होते चले जा रहे थे, जिससे बैठक स्थगित करनी पड़ी। सवाल यह है कि जब पूर्व में भी इस तरह के हरकत होते रहे है तो सरकार को फिर से पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करना चाहिए था। हकीकत तो यही है कि भारत के संबंध में नवाज सरीफ का एजेंडा या तो वहां की सेना या आइ्रएसआई तय करती है या हाफिज सईद जैसी कट्टरपंथी ताकतें। नौकरशाही के स्तर पर बातचीत का मतलब ही था कि हमेशा की तरह इस बार भी मुकर जाना या बातों को न मानना। भारत सरकार द्वारा बातचीत को रद्द करने जैसा कठोर कदम उठाने के बावजूद उच्चायुक्त कश्मीरी अलगाववादियों के साथ मुलाकातें जारी रखते है और अपने कदम का बचाव करते है तो समझा सकता है कि स्लामाबाद ने भारत के खिलाफ कितना कुछ अपना दाव पर लगा रखा है। और यह भी कि पाकिस्तानी एस्टैब्लिेसमेंट भारत की नाराजगी तो बर्दास्त करने को तैयार है, पर कश्मीर के अलगाववादी तत्वों का नहीं।
इसका इलाज दो ही है या तो दोस्ती या युद्ध। इस पर विचार कर लेना चाहिये दोस्ती निभ नहीं रही है तो युद्ध हो जाना चाहिये। राजदूत व दूतावासों को दुनिया भर में विशेष सुरक्षा व्यवस्था मुहैया है, होने भी चाहिए, लेकिन देश की एकता व अखंडता को नुकसान पहुंचाने वालों को तो कोई सुरक्षा नहीं दी जानी चाहिए। भारत सरकार ने 24 घंटे पहले जो संदेश दिया वह तभी सार्थक होगा जब पाकिस्तान को इस कदम का करारा कुटनीतिक जवाब दिया जाएं। भले ही वह ज्यादा कड़ा कदम क्यों न हो। यदि वह गैर दोस्ताना और भड़काउ व्यवहार के लिए खेद व्यक्त नहीं करे तो भारत को पाकिस्तानी उच्चायुक्त को वापस भेजने जैसे कदम पर भी विचार करना चाहिए। पाकिस्तान के अब तक की सफलता का राज यहीं है कि चाहे वह बाजपेयी रहो या यूपीए सभी ने दो टूक जवाब देने के बजाएं घिघियाते ही नजर आ रहे थे, लेकिन मोदी ने साहसी कदम उठाकर जो जवाब दिया है उससे पाकिस्तान की चूलें हिल गई है। जैसा कि पाकिस्तान के विदेश विभाग की प्रवक्ता तसनीम असलम ने कहा, पाकिस्तान भारत का गुलाम नहीं है जो उसे खुश करने के लिए हर कदम उठाए। पाकिस्ताजन एक आजाद देश है। कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है। कश्मीर एक विवादास्पद जगह है और उस विवाद में पाकिस्तान की भी वाजिब हिस्सेदारी है, जैसे बयानों से तो यही संदेश मिलता है कि वह अपने हरकतों से बाज नहीं आयेगा। पाकिस्तान की तरफ से सीजफायर उल्लंतघन का ताजा मामला जम्मू-कश्मीेर के मेंढर का है। गत दिनों यानी मंगलवार रात करीब 12 घंटे की शांति के बाद पाकिस्तानी रेंजर्स ने मेंढर के हमीरपुर स्थित भारतीय चैकियों पर गोलीबारी की। हालांकि भारतीय सेना ने भी जबावी फायरिंग की।
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तानी हुक्मरान चाहे सेना के प्रमुख रहे हो या चुन कर आने वाले, अपने शासन के औचित्य को सही साबित करने के लिए भारत विरोधी भावना का सहारा लेते रहे है। इतिहास की इन नकारात्मक परछाइयों से उबरने व पड़ोसी देशों के साझेपन से बनने वाले एक खुशहाल दक्षिण एसिया की राह चलने में पाकिस्तान हमेसा अपने को नाकाम पाता है। इस बार भी यही हुआ। पाक की तरफ से घुसपैठ या अकारण गोलाबारी की इस साल करीब 50 घटनाएं हो चुकी है। ऐसे में नवाज सरीफ के साथ हुई बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए होेने वाली 25 अगस्त की बैठक का भविष्य वैसे भी ठीक नहीं दिख रहा था। इसमें रोड़ा भी पाकिस्तान ही बना और पहले पहल भी शुरु किया। सवाल यह है कि पाकिस्तान अगर भारत से सहमत तो अलग क्यों होता। उसकी विसात ही भारत दुश्मनी पर टिकी है। भारत का पाकिस्तान के प्रति रवैया बिल्कुल सही है, मुहतोड़ जवाब देने का।
(सुरेश गांधी)