निर्जला व्रत रख मांगी जाती है सुख-समृद्धि, सुखद वैवाहिक जीवन, संपन्नता और पुत्ररत्न प्राप्ति का वरदान। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन अखंड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियां यह व्रत रखती हैं। पूरे सोलह श्रृंगार के साथ तैयार होकर शंकर-पार्वती की पूजा में हिस्सा लेती हैं महिलाएं। सुयोग्य, सुन्दर, मनोवांछित, सुशील और स्वास्थ्य जीवन साथी की चाहत में कुंवारी युवतियां तो कुछ ज्यादा ही इस व्रत को रखने में विश्वास रखती है।
हरतालिका तीज मतलब सुहाग की सलामती के लिए की जाने वाली पूजा। निर्जल व्रत रख मांगी जाती है सुहाग की लंबी उम्र की कामना। मांगा जाता है सुख-समृद्धि, सुखद वैवाहिक जीवन, संपन्नता और पुत्ररत्न प्राप्ति का वरदान। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन अखंड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियां यह व्रत रखती हैं। पूरे सोलह श्रृंगार के साथ तैयार होकर शंकर-पार्वती की पूजा में हिस्सा लेती हैं महिलाएं। सुयोग्य, सुन्दर, मनोवांछित, सुशील और स्वास्थ्य जीवन साथी की चाहत में कुंवारी युवतियां तो कुछ ज्यादा ही इस व्रत को रखने में विश्वास रखती है। साल भर होने वाले अन्य व्रतों की तुलना में तीजा व्रत सबसे कठिन माना जाता है। मान्यता है कि यह व्रत संसार के सभी क्लेश, कलह और पापों से मुक्ति दिलाता है। इस बार यह पर्व 28 अगस्त को है। यह व्रत हस्त नक्षत्र में होता है। यह शिव-पार्वती की आराधना का सौभाग्य व्रत है, जो केवल महिलाओं के लिए है। निर्जला एकादशी की तरह हरितालिका तीज का व्रत भी निराहार और निर्जल रहकर किया जाता है। महिलाएं व कन्याएं भगवान शिव को गंगाजल, दही, दूध, शहद आदि से स्नान कराकर उन्हें फल समर्पित करती है। रात्रि के समय अपने घरों में सुंदर वस्त्रों, फूल पत्रों से सजाकर फुलहरा बनाकर भगवान शिव और पार्वती का विधि-विधान से पूजन-अर्चन किया जाता है। धार्मिक दृष्टि से यह व्रत सौभाग्य प्रदायक और मंगल दाता है। ब्रह्म (शिव) की ओर अग्रसर होने पर सांसारिक विभूति (विष्णु) उधर से हटाने का प्रयत्न करती है। किंतु पूर्ण निश्चय पर दृढ़ रहने पर मानव की सखी बुद्धि की सहायता से मनोरथ सफल हो जाता है।
किदवंतियों के अनुसार एक बार शंकर-पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठकर सृष्टि के कल्यार्ण मंथन कर रहे थे। तभी पार्वती ने शंकर जी से पूछ लिया कि सभी व्रतों में श्रेष्ठ व्रत कौन-सा है और मैं आपको पत्नी के रूप में कैसे मिली। शंकर जी ने कहा जिस प्रकार नक्षत्रों में चंद्रमा, ग्रहों में सूर्य, चार वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में विष्णु, नदियों में गंगा श्रेष्ठ है उसी तरह व्रतों में हरितालिका व्रत सर्वश्रेष्ठ है। विवाह के बारे में भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा- एक बार जब तुमने हिमालय पर्वत पर जाकर गंगा के किनारे, मुझे पति रुप में प्राप्त करने के लिये कठिन तपस्या की थी, उसी घोर तपस्या के समय नारद जी हिमालय के पास गये तथा कहा की विष्णु भगवान आपकी कन्या के साथ विवाह करना चाहते है। इस कार्य के लिये मुझे भेजा है। नारद की इस बनावटी बात को आपके पिता ने स्वीकार कर लिया, तत्पश्चात नारदजी विष्णु के पास गये और कहा कि आपका विवाह हिमालय ने पार्वती के साथ करने का निश्चय कर लिया है। आप इसकी स्वीकृ्ति दें। नारद जी के जाने के पश्चात पिता हिमालय ने तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया। यह जानकर तुम्हें, अत्यंत दुःख हुआ और तुम जोर-जोर से विलाप करने लगी। एक सखी के साथ विलाप का कारण पूछने पर तुमने सारा वृतांत सुनाया, कि मैं भगवान शंकर के साथ विवाह करने के लिए कठिन तपस्या प्रारंभ कर रही हूं, उधर हमारे पिता भगवान विष्णु के साथ संबन्ध तय करना चाहते थे। मेरी कुछ सहायता करों, अन्यथा मैं प्राण त्याग दूंगी। सखी ने सांत्वना देते हुए कहा -मैं तुम्हें ऐसे वन में ले चलूंगी की तुम्हारे पिता को पता न चलेगा। इस प्रकार तुम सखी सम्मति से घने जंगल में गई। इधर तुम्हारे पिता हिमालय ने घर में इधर-उधर खोजने पर जब तुम्हें नहीं पाएं तो बहुत चिंतित हुए, क्योकि नारद से विष्णु के साथ विवाह करने की बात वो मान गये थे। वचन भंग की चिन्ता नें उन्हें मूर्छित कर दिया। तब यह तथ्य जानकर तुम्हारी खोज में लग गयें। इधर सखी सहित तुम सरिता किनारे की एक गुफा में मेरे नाम की तपस्या कर रही थी।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृ्तिया तिथि का उपवास रहकर तुमने शिवलिंग पूजन तथा रात्रि जागरण भी किया। इससे मुझे तुरंत आपके पूजा स्थल पर आना पडा। आपकी मांग और इच्छानुसार अपकों, अर्धांगिनी रुप में स्वीकार करना पडा। प्रातःकाल में जब तुम पूजन सामग्री नदी में छोड रही थी तो उसी समय हिमालय राज उस स्थान पर पहुंच गयें। वे अपको देखकर पूछने लगे कि बेटी तुम यहां कैसे आ गई तब तुमने विष्णु विवाह वाली कथा सुना दी। यह सुनकर वे तुम्हें लेकर घर आयें और शास्त्र विधि से तुम्हारा विवाह मेरे साथ कर दिया। अर्थात श्रद्धा-विश्वास के द्वारा हरितालिका तीज का व्रत जो भी स्त्री करती है, उसे इस संसार व स्वर्ग लोक के सभी सुख-वैभव प्राप्त होते हैं, उसका सुहाग अखण्ड रहता है। तभी से यह हरितालिका तीज के रुप में जाना जाने लगा। पार्वतीजी ने इस व्रत को 64 वर्षों तक बेलपत्री खाकर फूलों की मंडप में तपस्या की थी। इसलिए तीज की रात्रि में बेलपत्री और फूलों का फुलेहरा भी व्रती महिलाओं द्वारा बांधा जाता है। फुलहरा बांधकर पार्वती जी के इसी स्वरूप की पूजा की जाती है। पार्वती ने भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्ति नक्षत्र में बालू की शिव मूर्ति स्थापित कर निराहार व्रत करके बड़ी श्रद्धा से पूजन कर रात को प्रेम वन्दना के गीत गाते हुआ जागरण किया। इससे शंकर जी का आसन हिल गया और उन्होंने प्रसन्न होकर पार्वती को अपनी अद्र्धागिनी बनाने की स्वीकृति दे दी। पार्वती जी की सखी उन्हे हरण कर सघन वन में ले गई थी अतः इस व्रत का नाम हरितालिका अर्थात हरतालिका पड़ गया। इस व्रत को करने से कुंआरी युवतियों को मनचाहा वर मिलता है और सुहागिन स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि होती है तथा शिव-पार्वती उन्हें अखंड सौभाग्यवती रहने का वरदान देते हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन को बूढ़ी तीज भी कहा जाता हैं। सास अपनी बहुओं को सुहागी का सिंधारा देती हैं। पूर्वकाल में जब दक्ष कन्या सती पिता के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव की उपेक्षा होने पर भी पहुंच गई, तब उन्हें बडा तिरस्कार सहना पडा था। पिता के यहां पति का अपमान देखकर वह इतनी क्षुब्ध हुईं कि उन्होंने अपने आप को योगाग्नि में भस्म कर दिया। बाद में वे आदिशक्ति ही मैना और हिमाचल की तपस्या से संतुष्ट होकर उनके यहां पुत्री के रूप में प्रकट हुईं। उस कन्या का नाम पार्वती पड़ा।
पूजन विधि
छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। सुबह चार बजे उठकर बिना बोले नहाना और फिर दिन भर निर्जल व्रत रखना होता है। हरतालिका तीज पर रात भर भजन होते हैं जागरण होता है। इस व्रत से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और पति के रूप में प्राप्त हुए, तभी से सखियां श्रेष्ठ पति प्राप्त होने के लिए निर्जल रहकर हरितालिका व्रत करती हैं। व्रती स्त्री को पहले नित्य कर्म स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर प्रसन्नतापूर्वक वस्त्राभूषणों से श्रृंगार करती है। व्रत के दौरान किसी पर क्रोध नहीं करने का विधान है। तामसिक आहार व अन्न, चाय, दूध, फल, जूस आदि का सेवन नहीं करना होता है।
व्रत के समय हरि चर्चा व भजन, कीर्तन करते रहना चाहिए और सायंकाल में माँ पार्वती व भगवान शिव की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए, अर्थात्ा शिव व पार्वती को उनसे संबंधित श्रृंगार की वस्तुएँ, फल, दक्षिणा अर्पित कर आरती करें। व्रत की कथा सुनें, अपराध क्षमा प्रार्थना कर भगवान को प्रणाम करें और बड़ों व ब्राह्मणों को प्रणाम कर भोजन व दक्षिणा दें, जिससे व्रत पूर्णतया सफल रहता है। कठिन व त्याग के इस व्रत में महिलाएं द्वितीया की रात को ही दातून व मंजन करके, नाना प्रकार के सुहाग से सज और कन्या अपने यथावत रूप में उनके लिए जो मान्य है उन अलंकारों से सज तृतीया के दिन निर्जला व्रत रखती हैं। जिसमें अन्न, जल, फल आदि खाद्य पदार्थों को त्याग कर पूरे दिन व्रत रखा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि उपवास रखने वाली जो स्त्री इस दिन मीठा खाती हैं वह अगले जन्म में चींटी बनती है। फल खाने वाली वानरी, सोने वाली अजगर की योनी प्राप्त करती है। जो दूध का सेवन करती है तो अगले जन्म में वह सांपनी बनती है। बदलते समय के साथ-साथ इसमें कई बहुत तेजी से परिवर्तन आया है। तीज के दिन कई घरों में गुजिया, खखरिया, पपड़ी और भी ढेर सारे पकवान बनने लगे हैं।
तीज में महिलाएं जब अपने पीहर आती हैं, तब घर में भी रौनक होती है। सहेलियां पीहर में मिलती हैं और तीज की पूजा एक साथ मिलकर करती हैं। तीज पर्व में पीहर आने वाली महिलाओं को भाई की तरफ से तोहफा दिया जाता है साथ ही साथ उनके बच्चों को भी तोहफा दिया जाता है। इस दौरान वर्षों का सुख दुख मायके में महिलाएं बांटती है। मान्यता के अनुसार विवाहित पुत्री को सौंदर्य सामग्री देने की परंपरा है।
अतएवं सृष्टि के विकास व निर्माण हेतु एक उत्तम व सुयोग्य जीवन साथी की तलाश युवा अवस्था की आहट आते ही शुरू हो जाती है। एक ऐसा साथी जो कि गृहस्थ आश्रम के दायित्वों व पति-पत्नी के कर्तव्यों को बाखूबी निभाएँ। दोनों एक-दूसरे के प्रति समर्पित हो, भारत वर्ष में रिश्तों की पवित्रता व मधुरता जग जाहिर है। जहाँ धर्म ग्रंथों में त्रिदेव समूहों के विवाह की कथाओं व जनश्रुतियों का बड़ा ही रोचक उल्लेख मिलता हैं।
कैसे करें हरतालिका व्रत
सर्वप्रथम उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये मंत्र का संकल्प करके मकान को मंडल आदि से सुशोभित कर पूजा सामग्री एकत्र करें। घर की लिपाई-पुताई करके केले के खंभे गाड़कर तोरण पताकाओं से मंडप बनाएं। संध्या समय स्नान करके शुद्ध व उज्ज्वल वस्त्र धारण करें। तपश्चात पार्वती तथा शिव की सुवर्णयुक्त (यदि यह संभव न हो तो मिट्टी की) प्रतिमा बनाकर विधि-विधान से पूजा करें। इसके बाद सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी सामग्री सजा कर रखें, फिर इन वस्तुओं को पार्वतीजी को अर्पित करें। शिवजी को धोती तथा अंगोछा अर्पित करें और तपश्चात सुहाग सामग्री किसी ब्राह्मणी को तथा धोती-अंगोछा ब्राह्मण को दे दें। इस प्रकार पार्वती तथा शिव का पूजन-आराधना कर हरतालिका व्रत कथा सुनें। इसके साथ गणेश की स्थापना कर चंदन, अक्षत, धूप-दीप, फल-फूल आदि से षोडशोपचार पूजन भी करनी चाहिए। मेवा मिष्ठान, पकवान आदि का प्रसाद तथा गौरी जी पर सिंदूर, चूड़ी, बिन्दी, चुनरी, महावर, पायल, बिछुआ आदि सुहाग की सारी सामग्री चढ़ाया जाना चाहिए। शिव-पार्वती विवाह की कथा सुनना चाहिए। वस्त्र, स्वर्ण और गौ का दान करना चाहिए। सुहाग की चढ़ाई गई सामग्री ब्राह्मण को दान देकर कुछ अपने पास सौभाग्य की रक्षा हेतु रख लेनी चाहिए। शिव से प्रार्थना करनी चाहिए कि मेरे पति दीर्घायु हों, मेरा सुहाग अटल हो। कुंवारी कन्याएं शिव से विनम्र प्रार्थना कर वर मांगे कि उनका होने वाला पति सुंदर और सुयोग्य हो। इस प्रकार चतुर्थी को स्नान पूजा कर सूर्योदय के बाद वे पारण कर व्रत तोड़ना चाहिए। पावस की हरियाली और प्रकृति के मनोहारी सौन्दर्य में कजली गाई जाती है। इसलिए इसे कजली तीज भी कहा जाता है।
(सुरेश गांधी)