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आलेख : संगति से पहचानें कौन कैसा है?

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किसी भी इंसान की जन्मकुण्डली और परिवार की जानकारी न भी हो तब भी उसके चिंतन, कर्म और व्यवहार के बारे में सटीक जानकारी उसके संगी-साथियों से प्राप्त की जा सकती है। आमतौर पर व्यक्ति का संपर्क किसी से भी हो सकता है लेकिन निकटता उन्हीं लोगों के साथ होती है जैसी उसकी मानसिकता होती है।

अच्छे इंसान अच्छे लोगों की निकटता पसंद करते हैं और बुरे इंसानों को हमेशा अपनी ही तरह के बुरे इंसानों की तलाश बनी रहती है और इनके साथी भी बुरे ही होते हैं। अच्छे और बुरे इंसानों का पारस्परिक प्रत्यक्ष संबंध तभी तक रहता है जब तक कोई स्वार्थ सामने न हो। अन्यथा इन दोनों में स्वाभाविक और सहज मैत्री का होना कभी संभव है ही नहीं।

इंसान जैसा सोचता है, जिस प्रकार के संस्कार या कुसंस्कारों से भरा होता है, जिन लक्ष्यों को लेकर वह चलता है, उसी प्रकार की विचारधारा वाले लोग उसे पसंद आते हैं और इन्हीं को अपने साथ रखना, इन्हीं के साथ खाना-पीना, उठना-बैठना और रहना वह पसंद करता है।

आजकल जनसंख्या के भारी विस्फोट के साथ ही उदारीकरण, वैश्वीकरण और मिक्स व मिक्चर कल्चर के घालमेल का दौर है जिसमें दूर-दूर के प्रदेशों और क्षेत्रों से आकर लोग अन्यान्य क्षेत्रों में नौकरी-धंधा आदि करते हैं। ऎसे में सभी की पारिवारिक पृष्ठभूमि की जानकारी पाना सहज संभव नहीं है। इस स्थिति में यही संभव है कि इन लोगों के संस्कारों, चरित्र, काम करने की शैली, व्यवहार और लक्ष्यों की थाह पाने के साथ ही इनके साथियों के बारे में जानकारी पाई जाए।

संगी-साथियों की गतिविधियों और उनके चरित्र से किसी के भी बारे में सटीक जानकारी पाना सर्वाधिक आसान है और इस विधा से पायी गई जानकारी सत्य और यथार्थ के एकदम करीब होती है। यों भी आजकल किसी भी इंसान के परिवार को आधार मानकर उसके अच्छे-बुरे कर्मों की थाह पाना संभव नहीं है क्योंकि इंसान अब वंश परंपरा, परिवार के अनुशासन तथा मर्यादा परिधियों अथवा सामाजिक नियंत्रण से अपने आपको अलग मानकर स्वच्छन्द और मनमाना जीवन जीने का आदी होता जा रहा है।

इन हालातों में उसकी पाक-नापाक गतिविधियों, चाल-चलन और चरित्र की थाह पाना हो तो उसके संगी-साथियों की हरकतों को ही आधार मानने की विवशता है। यह एक ऎसा खरा पैमाना है जो सही-सही और सटीक बैठता है। किसी का किसी से भी किसी न किसी कारण को लेकर संपर्क जरूर हो सकता है लेकिन घनिष्ठता और आत्मीयता के साथ मैत्री समान विचारों और समान कर्मों का ही परिणाम होती है।

जो जैसा होता है वैसा ही ढूँढ़ लेता है और उसी माहौल को पाने का आकांक्षी सदैव बना रहता है। आजकल की दुनिया का अधिकांश व्यापार इसी प्रकार की पारस्परिक मैत्री के आधार पर चल रहा है। किसी व्यक्ति के चाल-चलन और चरित्र को जानना चाहें तो उसके साथियों के बारे में जान लें, इससे अपने आप पूरा चिट्ठा मिल जाएगा। यही कारण है कि अकस्मात कोई बुरा आदमी किसी अच्छे के साथ मिल जाए, अथवा अच्छा आदमी किसी नालायक के साथ पाया जाए, तो लोग आश्चर्यचकित होकर देखते हैं कि आखिर ये अकस्मात समीकरण कैसे हो गया।

बुरे लोग हमेशा बुरे लोगों के साथ रहना और जीना पसंद करते हैं जबकि अच्छे लोग सदैव इसी बात के आकांक्षी रहते हैं कि अच्छे लोगों का साथ मिले। अच्छे लोगों को बुरे लोग कभी नहीं सुहाते। इसी प्रकार बुरे लोग अच्छे लोगों को कभी पसंद नहीं करते। अच्छे लोग अपने कामों में रमे रहते हैं, वे इस बात के कभी प्रयास नहीं करते कि जो बुरे, निकम्मे, विघ्नसंतोषी और नालायक हैं, वे अच्छे हो जाएं लेकिन बुरे लोग हमेशा यह प्रयास जरूर करते रहते हैं कि जो अच्छे लोग हैं वे भी उन्हीं की तरह बुराइयों में रमना आरंभ कर दें और बुरे लोगों की जमात में शामिल हो जाएं। इसके लिए ये बुरे लोग प्रलोभन, भय और दबावों का सहारा भी लेते हैं।

लेकिन यह भी सच है कि नैष्ठिक तौर पर श्रेष्ठ लोग कभी इन गणिकाचरित्र से भरे-पूरे और बहुरूपियों, नालायकों के दबाव में नहीं आते और अपनी ईमानदारी तथा कत्र्तव्यनिष्ठा की मुख्य धारा को नहीं छोड़ते। कुछ स्वार्थी किस्म के लोग इनके झाँसे में जरूर आ जाते हैं। फिर जब एक बार आदमी बुराइयों के दलदल में फंस जाता है तब उसे बिना कुछ परिश्रम किए आनंद की अनुभूति होती रहती है, उलटे-सीधे कर्म भी करने लगता है, इससे वह गहरे तक फँसता ही चला जाता है जहाँ से निकल पाना न उसके लिए सहज संभव है और न ही वह निकलना चाहता है क्योंकि एक बार दूषित खान-पान, हराम की कमाई और प्रदूषित पैसा तथा उपहार आदि आ जाने के बाद उसका चित्त और मस्तिष्क से लेकर शरीर सब कुछ प्रदूषित एवं विकृत हो जाता है और नाली के कीड़े की तरह उसे गंदगी में पड़े रहने में ही आंनद आता है।

एक बार जिस व्यक्ति को दुर्बुद्धि घेर लिया करती है तो फिर उसका सहज स्वाभाविक होना कठिन है। यही कारण है कि दुर्बुद्धि वाले लोगों की तादाद काफी बढ़ती जा रही है। इन लोगों के सोच-विचार तथा कर्म भी मलीन ही होते हैं और उद्देश्य तथा लक्ष्य भी पवित्रता खो देते हैं।

समाज और देश आज जितना बाहरी शत्रुओं से हैरान-परेशान नहीं है उतना इन मलीन बुद्धि वाले लोगों से है जिनकी बढ़ती जा रही संख्या मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा होकर उभरने लगी है। हर इलाके में कुछ लोग तो ऎसे हैं ही जो सारी हदों को पार कर मानवता के नाम पर कलंक बने हुए हैं। इन लोगों की शक्ल और सूरत देखकर ही हर कोई इनके पैशाचिक स्वरूप और आसुरी व्यवहार के बारे में ठोस भविष्यवाणी कर सकता है। 

इंसान को पहचानने की क्षमता आज के युग में सबसे बड़ा हुनर है जिससे कि कई आपदाओं और समस्याओं से बचा जा सकता है। और कोई कसौटी हो न हो, संगी-साथियों और चेले-चपाटों के आधार पर किसी भी इंसान के बारे में साफ-साफ मूल्यांकन किया जा सकता है। ये संगी-साथी ही होते हैं हमारा आईना, जिनसे हमारे व्यक्तित्व की ठीक-ठीक और गहरी थाह पायी जा सकती है। समाज-जीवन में जो कुछ करें अच्छे-बुरे की पहचान कर ही करें, अन्यथा पछतावा हमारा पीछा कर ही रहा है।




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---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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