धर्म की नगरी क्योटों की तर्ज पर शिव की नगरी काशी सहित कई नगरों में स्मार्ट सिटी व बुलेट टेªन के सपनों को पंख लगे है। मतलब साफ है मोदी के ये शुरुवाती आगाज एक बेहतर कल की ओर इशारा कर रहे है। इन सबके बावजूद जनता की सबसे बड़ी डिमांड महंगाई पर काबू पाना सरकार को चुनौती के रुप में लेनी ही होगी, क्योंकि यह आम आदमी की गरीबी से जुड़ा सवाल है। आंकड़ों की बाजीगरी में कहा जा रहा है कि पिछली सरकारों की तुलना में महंगाई वृद्धि दर घटी है, लेकिन जनता तो केवल इतना देखती है कि बाजार में उसकी झोला व जेब कितनी हल्की हो रही है। मोदी अपने मेक इन इंडिया नारे को साकार करना चाहते है तो उन्हें सबसे पहले देश के बदहाल बुनियादी ढ़ाचे को दुरुस्त करना होगा। जापान द्वारा भारत में अगले 5 वर्ष में 35 अरब डाॅलर के निवेश समझौता करना बहुत बड़ी कामयाबी है। ये भी सच है कि भारत में विश्वस्तरीय बुनियादी ढ़ाचा तैयार करने के लिए जापान के पास तकनीक है, संसाधन है, अनुभव है और इच्छाशक्ति भी है, लेकिन क्या भारत भ्रष्टाचार लालफीताशाही ओर पारदर्शिता के अभाव को समाप्त करने के लिए तैयार है? अब जब जापान ने हथियारों के निर्यात संबंधी खुद पर आरोपित प्रतिबंध हटा लिया है तो इससे प्रतिरक्षा क्षेत्र में भारत के लिए नई संभावनाएं खुल गई है।
बेशक, प्रधानमंत्री जिस तरह देश में छाएं तमाम संकटों से उबारने के लिए एक के बाद एक सफलता हासिल कर रहे है या की है, वह काबिले तारीफ है। चाहे विदेश नीति रही हो या फिर देश की सुरक्षा या फिर लालफीताशाही की जकड़न से लेकर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश व डब्ल्यूटीओं के समझौतों से इनकार मोदी की व्यावहारिक सोच व सकारात्मक दृष्टिकोण का परिचायक है। रोजगार का सवाल उद्योगों व निर्माण की बढ़ोत्तरी से जुड़ा है, जिसकी शुरुवात जापान की सफल यात्रा से हो चुकी है। आधारभूत संरचना के विकास के साथ-साथ नयी कार्य संस्कृति की बहाली, रोजगार सृजन व कौशल निर्माण का जो वादा मोदी ने किया था वह पूरा होता नजर आ रहा है। धर्म की नगरी क्योटों की तर्ज पर शिव की नगरी काशी सहित कई नगरों में स्मार्ट सिटी व बुलेट टेªन के सपनों को पंख लगे है। मतलब साफ है मोदी के ये शुरुवाती आगाज एक बेहतर कल की ओर इशारा कर रहे है। पांच दिवसीय जापानी दौरा भारत के लिए कई मायनों में काफी लाभदायक रहा, लेकिन असैन्य परमाणु समझौते की दिशा में सहमति न हो पाना जरुर खटकाने वाला है। हो सकता है पड़ोसी देशों व संयुक्त राष्ट संघ के किन्हीं कानूनी कायदों से ऐसा फिलवक्त फौरी तौर पर न हो पाया, पर उम्मींदे अब भी बरकरार है। इन सबके बावजूद जनता की सबसे बड़ी डिमांड महंगाई पर काबू पाना सरकार को चुनौती के रुप में लेनी ही होगी, क्योंकि यह आम आदमी की गरीबी से जुड़ा सवाल है। इन हालातों के बीच अमेरिका केन्द्रित एकध्रुवीय विश्व के बरक्स बहुध्रुवीय दुनिया रचने की दिशा में भारत-जापान मैत्री का यह नया अध्याय महत्वपूर्ण साबित होगा।
जापान का प्रौद्योगिक कौशल व पूंजी प्रबंधन भारत के विनिर्माण क्षेत्र को वह जरुरी गति दे सकता है, जिसके बूते मोदी का विश्व बाजार को भारतीय सामानों से पाटने का सपना देखा है। बात सिर्फ निवेश की मात्रा और उसकी प्रकृति या फिर द्विपक्षीय व्यापारिक हितों की वृद्धि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासत आध्यात्मिक रिश्ते को मजबूती प्रदान करने का भी काम किया है। क्योटो की तर्ज पर काशी को विकसित करने की योजना बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। हालांकि दकियानूसी विचारधारा व मानसिकता वाले ताना मार कह रहे है-हुंह बड़े आएं काशी को क्योटो बनाने वाले! काशी को उसके हाल भी छोड़ दे तो मेहरबानी होगी। लेकिन यहां सवाल यह है कि काशी में सिर्फ दो-चार व्यंगकार ही नहीं रहते। काशी बड़ी आबादी वाला शहर है और मोदी को इसी विश्वास के साथ काशीवासियों ने अपनाया कि वह सालों पुरानी काशी को विश्व के मानचित्र पर पर्यटक के क्षेत्र में पहचान दिलायंगे। इस देश का युवा मोदी को चाहता है और उनके राग में राग मिलाया तो सिर्फ इसलिए कि वह भारत को उंचाईयों तक ले जाने में एक सार्थक कोशिश करेंगे। जो अब नयी संचार क्रांति के रुप में दिखने लगा है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि जब राजीव गांधी ने संचार के क्षेत्र में मोबाइल, लैपटाॅप आदि की लाॅचिंग कराकर भारत को 21वीं सदी का सपना दिखाया था तब भी यही दकियानूसी मानसिकता वाले बड़ी विरोध दर्ज कराएं, लेकिन आज आप देख सकते है बगैर लैपटाॅप मोबाइल आदि के मानों जीवन अधूरा है। विकास के रास्ते अगर हम क्योटो से सीखना व लेना चाहते है तो इन्हें पता नहीं क्यूं मिर्ची लग रही है। हम गंगा को मां कहते है, लेकिन उसके पानी को इतना गंदा करके रखते है कि भक्ति भाव हटा दे ंतो पांव रखने में भी हिचक होती है। ऐसे में अगर जापान या यूरोप के देशों से यह सीखा जा सके कि उद्योगों और बड़े शहरो के कचरे के बोझ से गंगा को मुक्त कैसे मुक्त किया जा सकता है तो इसमें कैसा अहंकार? काशी जिस प्रकार रंग-बिरंगे मेलों, उत्सवों व त्यौहारों की नगरी है, उसी प्रकार यहां से हजारों किमी दूर जापान का क्योटो शहर भी मेलों व उत्सवों का मुरीद है। त्योहारों और मेलों की थाती समेटे काशी की आभा को गंगा की धारा चमकाती है तो क्योटो भी त्योहारों और मेलों को अपने में समेटे है। एक बात और क्योटो में गोजन आकुरिवी उत्सव में बेकार पड़ी वस्तुओं को घर से दूर ले जाकर अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है। यह ठीक वैसे ही है जैसे यहां दीपावली में ‘दरिद्दर’ खेदना और होलिका का दहन। काशी के लक्खा मेलों को लें तो यहां की चेतगंज की नक्कटैया, तुलसीघाट की नाग नथैया, नाटी इमली का भरत मिलाप और रथयात्र का मेला अपने से जोड़ता है ठीक वैसे ही क्योटो में अवोई मत्सुरी, जियोन मत्सुरी, जिदाई मत्सुरी और गोजन आकुरिवी जैसे उत्सव-पर्व वहां के लोगों को अपने से बांधे रखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जापान से समझौते के मर्म में छिपी धार्मिक पृष्ठभूमि नवीन अनुभूतियां तो देगीं ही।
काशी के लोगों का कहना है कि धार्मिक समानता में दोनों शहर इतने करीब हैं तो वहां की तकनीकी यहां के श्रद्धालुजन को स्वयं उनकी ही धारा में, विचारधारा में ‘ज्ञान विज्ञान’ के लाभ से निःसंदेह लाभान्वित करेगी। क्योटो जिस प्रकार तकनीक, परंपरा और उत्सवों की त्रिवेणी से उन्नत है उसी प्रकार काशी उत्सवों व ‘विद्याओं’ से समुन्नत है। वैसे भी जापान के ऐतिहासिक शहर व पूर्व राजधानी क्योटो को शानदार और रमणीक शहर बनाने में विद्यार्थियों व आम युवाओं की भूमिका अहम रही है। काशी के छात्र-युवा भी अपने शहर की साज-संभाल में अपनी भूमिका को साबित करने को आतुर हैं। मां गंगा के लिए हुए आंदोलन में छात्र-छात्रओं की सक्रियता इस बात का प्रमाण है कि वे अपनी काशी के लिए भी कहीं से पीछे नहीं रहेंगे। जरूरत पड़ी तो गंगा निर्मलीकरण संग शेष शहर की सफाई से भी जुड़ेंगे। भौगोलिक विषमताओं के बावजूद क्योटो और काशी में धार्मिक समानता तो है ही। वहां से आने वाली तकनीक, विशेषज्ञता नया तेवर देगी ही। रही बात स्कूली बच्चों की तो हमारे बच्चे अपनी मां गंगा और शहर की शुचिता के लिए कहीं से पीछे नहीं थे और न रहेंगे। बस उन्हें दिशा देने की जरूरत है। काशी का उत्थान काशी के ज्ञान से है। ईंट-पत्थरों से नहीं। विद्वतजनों द्वारा ही काशी विश्वगुरु का रुतबा पा सका था। गीता में तो इसका संपूर्ण प्रमाण है। भगवान कृष्ण की वाणी श्रीमद् भागवत गीता की तमाम टिकाएं की गई हैं लेकिन यथार्थ गीता में यथार्थ को दर्शाया गया है। काशी की मिठाईयां, बुनकरी, प्रसिद्ध व एतिहासिक मंदिर व स्मारकों के बाबत विस्तृत जानकारी दी गई है। यहां के कुंड व तालाब आदि की महत्ता का भी उल्लेख किया गया है।
’जापान ने अहमदाबाद-मुंबई मार्ग के लिए हाई स्पीड रेलवे ‘शिंकानसेन सिस्टम’ का निर्माण करने, पीपीपी ढांचागत परियोजना के लिए इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी (आईआईएफसीएल) को 50 अरब येन (47.9 करोड़ डॉलर) का ऋण जापान की विदेशी विकास सहायता (ओडीए) के तहत देने, पश्चिमी समर्पित माल परिवहन गलियारा (डीएफसी), दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा रूडीएमआईसी और चेन्नई-बेंगलूरू औद्योगिक गलियारा रूसीबीआईसी जैसी चालू महती परियोजनाओं की प्रगति और इनके क्रियान्वयन में तेजी लाने की प्रतिबद्धता, उर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने, भारत और जापान वैश्विक तेल व प्राकृतिक गैस बाजार में रणनीतिक गठबंधन को और उच्च स्तर पर ले जाने, अत्यधिक कार्यकुशल व पर्यावरण अनुकूल कोयला चालित बिजली उत्पादन प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में सहयोगव दुर्लभ अर्थ क्लोराइड्स की आपूर्ति एवं विनिर्माण के लिए एक वाणिज्यिक अनुबंध पर महत्वपूर्ण समझौता भारत के लिए काफी लाभदायक साबति होगा। भारत में इलेक्ट्रानिक्स औद्योगिक पार्कों की स्थापना, कंपनियों ने निवेश प्रोत्साहनों के साथ ‘जापान औद्योगिक टाउनशिप’ एवं अन्य औद्योगिक टाउनशिप विकसित करने, टाउनशिप सेज, राष्ट्रीय निवेश व विनिर्माण क्षेत्र (निम्ज) जैसे क्षेत्रों के लिए मौजूद नीतिगत ढांचे से किसी मायने में कमतर नहीं होंगे।
हालांकि लोग जब मोदी सरकार के 100 दिन में तीन बार पेट्रोल के दाम कम करने के साथ ही साल में 12 सिलेंडर कभी भी लेने की छूट, जन-धन योजना में बैंक अकाउंट खुलवाकर गरीबों के लिए बचत की दिशा में कारगर कदम उठाया जाना, स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन का करार, नागपुर मेट्रो की आधारशिला, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, झारखंड में बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन लाइन की बड़ी योजना शुरू करने, विदेशों में जमा काले धन को लाने के लिए एसआईटी का गठन, जजों की नियुक्ति के लिए चले आ रहे कॉलेजियम सिस्टम की जगह 6 सदस्यों वाला न्यायिक आयोग का गठन आदि को एक सराहनीय काम बताते है। यह मोदी के कामकाज ही नतीजा है कि उनके द्वारा लाल किले की प्राचीर से घोषित जनधन योजना की बारीकियों को जबतक लोग समझ पाते दो हफ्ते के अंदर वह शुरु भी हो गया और पहले ही दिन पौने 2 करोड़ खाते खुलने का रिकार्ड तो बना ही, देश को संदेश गया कि अब लालफीताशाही की मनमानी नहीं चलेगी। इस सरकार में किसी भी मामले में तुरंत निर्णय करने की क्षमता है, जो अब तक नहीं हो पा रहा था। उसका काम करने का अंदाज अलग है। रायसीना हिल्स की कार्य संस्कृति में आएं बदलाव का ही नतीजा है कि जितने वक्त में सरकारी फाइले पहले एक टेबल से दुसरे टेबल पर जाती थी, उतने समय में यहां परिणाम दिखने लगता है। सीमा पर चाहे सीजफायर का उल्लंघन का मामला रहा हो या जन धन योजना की शुरुवात। इन दोनों मामलों में सरकार ने तत्परता दिखाई है। दो टूक जवाब में कह दिया है कि अशांति के बीच समझौता संभव नहीं। लेकिन खटकाने वाला मामला यह है कि महंगाई के मुद्दे पर सरकार अभी तक कोई प्रत्यक्ष परिणाम नहीं दिखाई है। जबकि महंगाई पर नियंत्रण मोदी की प्राथमिकता है। हालांकि आंकड़ों की बाजीगरी में कहा जा रहा है कि पिछली सरकारों की तुलना में महंगाई वृद्धि दर घटी है, लेकिन जनता तो केवल इतना देखती है कि बाजार में उसकी झोला व जेब कितनी हल्की हो रही है। महंगाई में कोई खास कमी न आने की दशा में समाज के निचले तबके में निराशा छा रही है। मोदी को जान लेना चाहिए कि आम आदमी ने महंगाई व सपा के माफियाराज के उत्पीड़न से खींझकर ही यूपी में 73 सीटे दी है। आलू-प्याज को आवश्यक वस्तु अधिनियम में शामिल करना सराहनीय है तो है लेकिन जमाखोरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए यूपी सरकार पर निर्भर रहना घातक होगा, क्योंकि उसे लगता है कि महंगाई ही मोदी को यानी पार्टी को बेकफूट पर लायेगी। शायद यही वजह है टमाटर सहित सब्जियों के दाम आड़तियों की मनमानी के चलते आसमान छू रही है और इलाकाई सरकार तमाशबीन बनी है।
सरकार के पहले बजट की आलोचना करने वाले भले ही उसे यूपीए के बजट की काॅपी बता रहे लेकिन उसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर स्पष्ट नीति है। देश में गरीब-वंचितों और निम्न मध्यम वर्ग के लिए सरकारी संरक्षण बड़ी जरुरत है। शायद इसीलिए सरकार ने विश्व व्यापार संगठन के उन तमाम समझौतों पर हामी भरने से इनकार कर दिया, जो देश के किसानों और गरीबो के हितों के लिए नुकसानदेह थे। अगस्त महीने में मारुति 29 फीसदी, हुंडई 19 फसीदी और होंडा 88 फीसदी ज्यादा बिकी है। मारुति ने अकेले करीब दस लाख कारें बेची हैं। नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा में असैनिक परमाणु सहयोग समझौते का संपन्न न होना एक कमी रही, तो इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि संभवतः इस देश के साथ रक्षा संबंधों को मिली मजबूती है। द्वितीय विश्वयुद्ध से जुड़े इतिहास के कारण जापान गुजरे दशकों में अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में रक्षा सौदों से दूर रहा, परमाणु हथियार हमेशा उसके लिए संवेदनशील मुद्दा रहे अब वह अपने उस अतीत से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है, तो उसका भारत के साथ रक्षा आदान-प्रदान सौदों और साझा रक्षा उत्पादन पर राय-मशविरे के लिए तैयार होना महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। यह अकारण नहीं है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने जापानी भूमि पर मौजूद रहते हुए यह टिप्पणी की कि विस्तारवाद की 18वीं सदी की मानसिकता आज भी दुनिया में नजर आ रही है। कुछ देश कहीं दूसरों की सीमा का अतिक्रमण, तो कहीं समुद्र में घुसपैठ कर रहे हैं स्पष्टतः ये बातें जापानियों को कर्णप्रिय लगी होंगी, क्योंकि इनसे स्वाभाविक रूप से जिस देश पर ध्यान जाता है, वह चीन है बहरहाल, जापान और चीन का पेंच ऐसा है, जो भारत के लिए भी बड़ी चुनौती है ये दोनों पूंजी और तकनीक समृद्ध देश हैं भारत अपने विस्तृत एवं संभावनापूर्ण बाजार के साथ इन दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मोदी की टिप्पणी से संदेश गया कि उनकी प्राथमिकता जापान से संबंधों को नए मुकाम पर ले जाना है। अब देखना दिलचस्प होगा कि बहुत जल्दी जब उनका चीनी नेताओं से संपर्क होगा, तब वे इस पैगाम के संभावित असर को कैसे संतुलित करते हैं? फिलहाल, परमाणु सहयोग समझौते को छोड़ दें, तो यह साफ है कि जापान में अपने उद्देश्य में नरेंद्र मोदी कामयाब रहे हैं। अपनी एक यात्रा के बूते 5 सालों के लिए किसी देश से तकरीबन 35 अरब डालर निवेश हासिल करने करिश्मा कोई और प्रधानमंत्री अब तक नहीं कर पाया था। जापान ने भारत में अगले पांच वर्षों के दौरान 35 अरब डॉलर के निवेश का संकल्प जताया है। यह रकम भारत में स्मार्ट शहर विकसित करने, गंगा सफाई, तेज रफ्तार ट्रेनों को चालू करने और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में बदलाव लाने में काफी हद तक सफल होगी। मोदी अपने मेक इन इंडिया नारे को साकार करना चाहते है तो उन्हें सबसे पहले देश के बदहाल बुनियादी ढ़ाचे को दुरुस्त करना होगा। जापान द्वारा भारत में अगले 5 वर्ष में 35 अरब डाॅलर के निवेश समझौता करना बहुत बड़ी कामयाबी है। ये भी सच है कि भारत में विश्वस्तरीय बुनियादी ढ़ाचा तैयार करने के लिए जापान के पास तकनीक है, संसाधन है, अनुभव है और इच्छाशक्ति भी है, लेकिन क्या भारत भ्रष्टाचार लालफीताशाही ओर पारदर्शिता के अभाव को समाप्त करने के लिए तैयार है?
भारत और जापान के बीच घनिष्ठ होते रिश्ते को चीन पचा नहीं पाता है। चीन को लगता है कि दुश्मन से दोस्त की दोस्ती कहीं उसके लिए दूरगामी संकट का कारण न बन जाए। जापान और चीन की दुश्मनी जग जाहिर है। नरेंद्र मोदी से पहले जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जापान दौरे पर गए थे, तब भी चीन को यह काफी खला था और अब पीएम मोदी का जापान दौरा भी चीन के पेट में मरोड़ पैदा कर रहा है। भारत दरअसल जापान को एशिया में स्थिरता और शांति के लिए एक स्वाभाविक और अपरिहार्य भागीदार के तौर पर देखता है। इससे चीन को कोई परेशानी भला क्यों होनी चाहिए? याद होगा कि पूर्व पीएम मनमोहन के दौरे के समय जापान के पीएम शिंजो एबे ने अपील की थी कि चीन से मुकाबला करने के लिए जापान, इंडिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका को मिलकर एक डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड बनाना चाहिए। जापान तभी से चीन की नजरों पर चढ़ा हुआ है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान दौरे में कुछ देशों की विस्तारवादी प्रवृत्ति विषयक टिप्पणी करके फिर से चीन को मिर्ची लगा दी है। जापान में अपने संबोधन में हालांकि मोदी ने किसी देश का नाम नहीं लिया है, लेकिन जिस प्रकार उन्होंने कहा कि दुनिया विस्तारवाद और विकासवाद की धारा में बंटी है और हमें तय करना है कि विश्व को विस्तारवाद के चंगुल में फंसने देना है या विश्व को विकासवाद के मार्ग पर ले जाकर नई ऊंचाइयों के अवसर पैदा करना है, इस टिप्पणी को चीन के संदर्भ में देखा जा रहा है, जो भारत सहित जापान व वियतनाम आदि कई पड़ोसियों के साथ क्षेत्रीय सीमाई विवाद में उलझा हुआ है। लेकिन मोदी की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जल्द ही नई दिल्ली यात्रा प्रस्तावित है।
देखा जाए तो चीन शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पंचशील सिद्धांतों की हिमायत और अनुसरण का वादा तो करता है, लेकिन वास्तव में वह भारत सहित दूसरे देशों की सीमाओं में जब-तब अतिक्रमण कर विस्तारवाद में लगा रहता है। हालांकि ब्रिक्स सम्मेलन में भारत और चीन की पहल पर ही ब्रिक्स देशों को अपना खुद का विकास बैंक स्थापित करने में सफलता मिली है। माना जा रहा है कि इस बैंक के माध्यम से भारत-चीन रणनीतिक सहयोग के नए ऐतिहासिक युग का सूत्रपात करने जा रहे हैं। ऐसे में जापान का कांटा चीन को कभी पसंद नहीं आएगा। स्वाधीनता दिवस के दिन स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करना एक अच्छा विचार था यदि सचमुच ऐसा हो सका तो एक अच्छी बात होगी प्रायः अन्य दूसरे नेता भी शौचालय अथवा सफाई की बात करते रहे हैं हालांकि वे यह सब कभी एक पिता जैसे भाव से कहते रहे हैं तो कभी दुःख व्यक्त करते हुए यदि और कुछ नहीं तो मोदी की एक बड़ी उपलब्धि साफ-सफाई के विषय को राजनीति और प्रशासन की मुख्यधारा में लाना रही है उन्होंने पूरी स्पष्टता, प्रतिबद्धता और एक चेतावनी वाले अंदाज में यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं किया कि कोई भी देश तब तक महान नहीं हो सकता, जब तक कि वह अपनी गंदगी को साफ नहीं करता उन्होंने पहले ही कह रखा है कि भारत की मुख्य विफलता बाजार की विफलता अथवा राज्य की विफलता नहीं है, बल्कि यह सामाजिक विफलता है यह विफलता तब और दुःखद नजर आती है, जब यह देश में लैंगिक हिंसा के तौर पर सामने आती है प्रधानमंत्री ने हमें ये बातें याद दिलाकर बहुत अच्छा काम किया यह प्रजातंत्रवादी मजबूत शासन की ताकत ही है कि चीजें अथवा कार्य उसी दिशा में हो रहे हैं। महंगाई से लड़ने के लिए कोई ठोस पहल न किए जाने को लेकर लोगबाग थोड़ा परेशान जरुर है, लेकिन सड़क, बिजली, बुनियादी ढांचे के लिए प्रयासरत रहना अच्छे संकेत है। भारत जिस एक बड़ी राजनीतिक चुनौती का सामना कर रहा है, वह है बढ़ती सांप्रदायिकता अधिक स्पष्ट रूप में उत्तर प्रदेश की समस्या सपा की देन है, लेकिन भाजपा भी इस राज्य के माहौल को सांप्रदायिक आधार पर ध्रवीकृत करने में पीछे नहीं है।
(सुरेश गांधी)