- गुरू-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है -संतोष गंगेले
छतरपुर - शिक्षक दिवस गुरू की महत्ता बताने वाला प्रमुख्य दिवस है । भारत में शिक्षक दिवस पेत्येक बर्ष 5 सितम्बर को ही मनाया जाता है । शिक्षक का समाज में आदारणीय व सम्माननीय स्थान होता है । भारत के व्दितीय राष्ट्रपति डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस और उनकी स्मृति के उपलक्ष्य में मनाया जाने बाला शिक्षक दिवस एक पर्व की तरह है, जो शिक्षक समुदाय के मान-सम्मान को बढ़ाता है । शिक्षक उस समान है, जो एक बगींचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के बृक्षों,पौधों को लगाकर उनमें उगने बाले फूल-फलों को उगाकर स्वयं खुषी होकर समाज व देष को खुषी, सुखी व विकाष से जोड़ता है । शिक्षक बच्चों के मन व विचारों को परिवर्तन करते हुये उन्हे काॅटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रेात्साहित करने का साहक रखता है । गुरू-षिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है , जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं । लेकिन बर्तमान समय में कई ऐसे लोग भी है, जो अपने अनैतिक चरित्र, कारनामों और लालची स्वभाव के कारण शिक्षक समाज में कंलकित भी कर आघात पहुॅचाने में भी पीछे नही है । षिक्षा सभ्यता का प्रतीक ष्षव्द को बर्तमान में व्यापार समझकर बैचा जाने लगा है । ऐसे शिक्षकों को छात्र/छात्रायें या षिष्य भी अपने जीवन में गुरू का स्थान नही दे पाते है । जिस कारण शिक्षक को आर्थिक लाभ तो प्राप्त हो सकता है लेकिन सम्मान नही ।
उपरोक्त विचार गणेष षंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब के प्रान्तीय अध्यक्ष संतोष गंगेले ने षिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर रखें । उन्होने कहा कि बर्तमान में जो घटनायें प्रदेष व देष के अंदर देखने व सुनने में आ रही है जिसमें षिक्षक अपने पवित्र रिष्तों को कलंकित करते हुए षिक्षा की आड़ में ष्षारीरिक और मानसिक ष्षोषण करने को अपना अधिकार मान बैठे है । किन्तु आज भी समाज में ऐसे गुरू भी है , जिन्होने हमेषा समाज के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण पेष किए है । प्रत्येक युवा के जीवन में जीवन का दिषा देने बाले गुरू षिक्षक मिलते है । षिष्य को भी अपने गुरू व षिक्षक के बिचारों व चरित्र को परख कर ही षिक्षा ग्रहण करने का समय आ गया है । बचपन से ही गुरूओं व षिक्षकों का सम्मान देने की प्रेरणा हम आप को बच्चों को देना चाहिए । घर-परिवार व समाज में सम्मान देने व लेने की परम्पकरायें विघटित हो रही है उन्हे बचाने के लिए हम सुधरेगें, युग सुधरेगा के विचार को प्रमुख्य स्थान देना होगा ।
गणेष षंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब के प्रान्तीय अध्यक्ष संतोष गंगेले ने अपने जीवन के अनुभव को ष्षामिल करते हुए कहा कि उनके अध्यापन में उनके गुरू-षिक्षकों का बहुत बड़ा योगदान रहा जिस कारण बिषम परिस्थितियों में भी वह उच्च षिक्षा ग्रहण कर सके । इसी कारण वह हर बर्ष नौगाॅव क्षेत्र के अपने गुरूजन व षिक्षकों को एक मंच के माध्यम से सम्मान देते आ रहे है । प्रत्येक व्यक्ति को अपने अपने गुरूजनों को सम्मान देने की परम्परा जारी रखना चाहिए । छात्र के जीवन में ्रपकाष लाने वाले ऐसे षिक्षकों के लिए ही महापुरूषोां ने लिखा है कि-गुरू गोविंद दोउ खड़ंे काके लागू पाय । बलिहारी गुरू आपने गोविंद दिये बताय ।। इससे आगे गुरू के सम्मान के लिए लिखा है -गुरू ब्रम्हा, गुरू विंष्णु, गुरूदेंवों महेष्वरः । गुरूः साक्षत परब्रम्ह तस्मैः श्री गुरूवे नमः ।। संसार के जो भी महापुरूष हुए है उन्होने गुरू की महिमा के कारण ही उच्च स्थान प्राप्त किया है कई ऋषि-मुनियों ने अपने गुरूओं से तपस्या की षिक्षा को पाकर जीवन को सार्थक बनाया । बर्तमान युग में गुरू-षिष्य की परम्पराऐं टूट रही है जो भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों के पतन का कारण बन रही है इस बिषय को लेकर गुरू-षिष्यों को अपनी संस्कृति का अध्ययन कर जीवन जीने की कला सीखना होगी ।