- दीपों की रोशन से जगमग हुआ शहर, खूब चला आतिशबाजी का दौर
- 84 घाटों पर रोशन किए गए 51 लाख से भी अधिक जले दीप
- इस अलौकिक छटा को निहारने उमड़े लाखों देशी-विदेशी सैलानी
- गंगा आरती के बाद भोजपूरी गायक मनोज तिवारी के गीतों पर थिरके श्रद्धालु
- कार्तिक स्नान के लिए सुबह से शाम तक लाखों आस्थावानों ने लगाई गंगा में डूबकी
- गंगा तट पर जीवंत हुआ इंडिया गेट और अमर जवान ज्योति का सेट
देव के देव महादेव की नगरी काशी में गुरुवार को सुबह से दोपहर तक कार्तिक स्नान के लिए लाखों आस्थावानों ने गंगा में डूबकी लगाई। जबकि गोधूली बेला में जब 84 घाटों पर 51 लाख से अधिक दीपों की लड़ी जली तो लगा सचमुच देवताओं की टोली पृथ्वी पर आ गयी है। इस अलौकिक व अद्भुत मनोहारी छटा देखने लाखों देशी-विदेशी सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ा। चारों तरफ मुंड ही मुंड दिखाई दी। काफी संख्या में लोगों ने मां गंगा में दीपदान भी किए। घाट किनारे गूजते वैदिक मंत्र, संख के बीच घंट-घडि़यालों की ध्वनि व भजन से पूरा वातावरण भक्तिरस से सराबोर हो गया। एक साथ जलते दीपों से तो ऐसा लगा जैसे दीपों की गंगा बह रही है। इसके अलावा मंदिर व आसपास के भवनों को विद्युत झालरों से भी सजाया गया था। हर घाट पर करीब 50 से 60 हजार दीप जलाएं गए। शहर के कुंड व तालाबों पर भी करीब 25 लाख से भी अधिक दीप जगमग हुए। देश के अनूठे शहीद स्मारक इंडिया गेट की प्रतिकृति भी दीपों की रोशनी से नहा उठी। अमर जवान ज्योति में सिर्फ दीपों की लौ दिख रही थी। इस जगमग रोशनी के बीच भोजपुरी गायक मनोज तिवारी के गीतों पर न सिर्फ घंटों दशाश्वमेघ घाट स्रोता जमे रहे, बल्कि झूमने पर भी विवश हो गए। करीब-करीब हर घाटों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते दिखाई पड़ा।
गंगा स्नान करने वाले सुबह से घाटों पर पहुंचने लगे थे। स्नान का सिलसिला त़ड़के से शुरु होकर दोपहर तक चला। इसके बाद आयोजकों की टोली काशी के 84 अर्धचंद्राकार गंगा घाट करीब 51 लाख दीपों जलाने की तैयारी में जुट गए। गोधूलि बेला में जब इस छोर से उस ओर तक एक साथ दीपों ने रोशनी बिखेरी तो देखने वालों की आंखे इस अद्भूत नजारे को एकटक निहारती ही रही।
दशाश्वमेध घाट गंगा आरती के बीच शंखनाद की गूंज लोगों को झूमने पर विवश कर दी। गंगा को नमन करती युवतियां अपनी हर मुराद को पूरा करने की प्रार्थना करतीं नजर आईं। महिलाएं जितनी ज्यादा से ज्यादा दिए मां गंगा में प्रवाहित कर सकें इसके लिए दिए तैयार करने में व्यस्त दिखीं। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने देवताओं कि प्रार्थना पर सभी का उत्पीड़न करने वाले राक्षस त्रिपुरा सुर का वध किया था। इसके बाद देवताओं ने खुशी मनाने के लिए स्वर्ग को दीपक से जगमगा दिया था। यह भी माना जाता है कि बनारस में भगवान भोले नाथ साक्षात विराजते हैं और हर साल देव दीपावली के दिन सभी देवता बनारस आकर दीप जलाते हैं। इसी लिए इस त्योहार को देव दीपावली कहा जाता है। जीवंत प्रमाण है घाट पर दीपोत्सव को भव्यता देने के लिए इंदौर की तत्कालीन महारानी अहिल्याबाई द्वारा सन् 1720 के आसपास बनवाया गया लाल पत्थर का वह अनूठा दीप स्तंभ जो पूरे एक हजार पथरीली दीप शिखाओं से सुसज्जित है। ठेठ बनारसी संबोधन में इसे ‘हजारा’ के नाम से पुकारा जाता है। आज भी देव दीपावली के अवसर पर हजारा की दीप शिखाएं प्रज्जवलित होने के बाद ही काशी के चैरासी घाटों पर दीप जलाने का क्रम शुरू होता है। दीपस्तंभ की सहस्त्र दीप शिखाओं के एक साथ प्रकाशित होने के बाद यह विशाल स्तंभ एक धधकते धूमकेतु सा आभामंडित हो जाता है। काशी में चैदहवीं सदी से ही ‘देव विजय’ के उपलक्ष्य में घाट किनारे राजाओं-महाराजाओं की ओर से राजकीय स्तर पर भव्य दीपोत्सव के दृष्टांत मिलते हैं। त्रिपुर नाम के दुर्दात असुर पर भगवान शिव की विजय गाथा की पौराणिक कथा को जानने वाली कुछ श्रद्धालु महिलाएं पूर्णिमा पर गंगा घाटों तक आती और कुछ दीप जलाकर लौट जाती थीं। उत्साही कुछ युवाओं ने पौराणिक पृष्ठों को पलटा और नारायण गुरु के नेतृत्व में धीरे-धीरे रंगत निखारने की कसम खाई। वर्ष 1986 में पंचगंगा सहित कुल छह घाट जब दीप मालाओं से जगमगाए तो नगर तक उल्लास की लहरें ले आए। श्रीमठ पीठाधीश्वर स्वामी रामनरेशाचार्य का इसे प्रोत्साहन-संरक्षण मिला।
(सुरेश गांधी)