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मध्य प्रदेश स्थापना दिवस पर स्वच्छ भारत अभियान और हमारे कर्तव्य

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परमाणु परीक्षण से लेकर मंगलयान की यात्रा से हमारा नाम विष्व पटल पर रोषन हुआ । जिसका श्रेय हमारे महानतम विज्ञानिकों को जाता है । हमारे विज्ञानिकों का कार्य कर्मठता के साथ श्रेष्ठ आचरण को दर्षाता हे । उनकी लगनषीलता  रातदिन की मेहनत से ही हमने आई टी के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाई है । जब सब इतना कर सकते है तो एक जमीनी कार्य क्यों नही कर सकते है । बर्तमार समय में भारत देष के अंदर युवा ऊर्जा का संचार हो रहा है । देष के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी व मध्य प्रदेष के मुख्य मंत्री श्री षिवराज सिंह जी चैहान अपनी करनी -कथनी में अंतर नही लाने वाले है । स्वच्छ भारत अभियान का विगुल बज गया है, अब भारत स्वच्छता के साथ विष्व में अपना स्थान बनाने में जुट गया है । 

प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी व्दारा चलाया गया 2 अक्टूवर 2014 से स्वच्छ भारत अभियान, एक महत्व पूर्ण अभियान है । यह हमारी जिन्दगी में बदलाव का अद्भुत समय है । गंदगी किसी को भी कभी अच्छी नही लगती है ....  लगेगी भी क्यों ? क्यों कि वह तो गंदगी जो है । हर इंसान जिस तरह स्वच्थ्य ष्षरीर के साथ साफ सुथरा रहना चाहता है, उसी तरह हमारी धरती पर्यावरण प्रगति भी स्वच्छ रहना चाहती है ।  प्रगति जो पैदा करती है वह उसे अपने समयानुसार मृदा उर्वरक के रूप में समाप्त भी कर देती है । ऐही प्रकृति का नियम है । किन्तु हमारा कचरा निष्पादन का कोई भी मृदा उर्वरक भूमि नही है । हम जहां चाहते वहां कचरा गंदगी कर देते है । भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देष के अंदर चमत्कारी चुनाव परिणाम भी दिए है । इसीलिए आम आदमी उनके कर्मयोगी की आस्था और विष्वास के कारण भारत की तस्वीर व तक्दीर बदलने का सपना साकार होते देखना चाहता है । प्रधानमंत्री  जी ने भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों की मर्यादाओं का पालन करते हुये अपना नया कार्य ष्षुरू किया है । आने वाला समय देष के अंदर स्वच्छ भारत का निर्माण होगा । 

हमारा भारत देष गाॅव का देष है ।  आप जिस किसी भी गाॅव में जाओगे तो रास्ते में आपको गंदगी का अंबार मिलेगा ।  इसमें सबसे बड़ी समस्या ष्षैाचालय से होती है ।  जब घर में ष्षोचालय नही है तो इसके परिणाम स्वरूप हमें आम रास्ता, सड़कों पर भीषड़़ गंदगी ही मिलती है । ऐसा क्यों है  ? ष्ष्याम जो योजनाऐं ऊपर से आती है वह भृष्ट आचरण के कारण आम लोगो तक नही पहुॅच पाती है ।  आज गाॅव मंें लोगो को जानकारी भी नही है कि सरकारें ष्षौचालय हेतू मदद भी कर रही है ।  सरकारी मषीनरी के तहत जो लोग इसमें जुड़ें हुए  होते है वह भृष्टाचार से लिप्त होकर अकर्मण्डता का परिचय देते है ।  सरकारी योजनाओं के साथ आम आदमी का भी कर्तव्य बनता है  िकवह उसे अपनायें ।  लेकिन व्यक्त् िआर्थिक मजबूरी के तहत अगर घर में षौचालय नही बना पाता और सरकारें प्रत्येक घर में ष्षौचालय निर्माण कराने में असफल रहती है तो यह एक बिफल अभियान माना जायेगा ।  सरकारें चाहेें तो ष्षहरों की भाॅति ही गाॅव में सार्वजनिकि ष्षुलभ ष्षौचालय का निर्माण कर सकती है ।  इस प्रक्रिया में गाॅव के रोजगार के साधन सृजन होगें ।  राष्ट्रपिता महात्मा गाॅधी जी ने  कहा था कि बुरा न देंखों, बुरा न कहों, बुरा न सुनों ....  मैं यह कहना चाहता हॅू  ।  न गंदे रहो, न गंदगी करों, न गंदगी करने दो !  जब हम स्वतः साथ सुफरे रहेगें तो लोगों को भी प्रोत्साहन के रूप में हम कहने के हकदार है ।  स्वच्छ भारत अभियान के तहत राजा हो या रंक सभी ने झाड़ू उठाकर यह सावित कर दिया है कि अब हम स्वच्छ भारत, निर्मल भारत का निर्माण करेगे । जो सपने हमारे महापुरूषों ने देखें थें वह आज साकार होते नजर आ रहे है । इस अभियान में युवा, व्यस्यक, बृध्द सभी ष्षामिल होकर स्वच्छ भारत का निमार्ण करे । 

जरा सोचो कि आज से करीब बीस साल पहिले हमारे जन स्त्रोत हमारे खुले मैदान कितने साफ सुत्रे रहा करते थें , कि हम नदियों से पानी भर कर दाल -रोटी लिया करते थें ।  किन्तु आज वहीं नदी, नाला क्यो बन जाती है ?  हमारे कुओं के पनघट क्यों सूख गए है ।  तालावों के घाट क्यों गंदगी से अटं पड़ेंह ै । कारण हमारी भौतिकवादी विलासता संस्कृति हमने सुख सुविधाओं हेतू पाॅलीथिन प्लास्टिक उत्पादन को इतना बढ़ावा दिया कि उसके प्रयोग ने पर्यावरण के साथ साथ हमें भी पंगॅू बना लिया है । आज हमारे घर का कचरा पाॅलीथिन के माध्यम से संग्रह करके सीधा नालियों में फंेंका जान लगा है ।  चाय की दुकानों से लेकर हमारे घर तक प्लाॅस्टिक का सीधा प्रभाव है ।  ष्षहरों के कचरों को उठाकर, ष्षहरों से बाहर सड़क किनारें फेंका जाता है ।  यह खेंद का ही बिषय है कि उस कचरें को समाप्त करने के लिए कोई तकनीक सिस्टम क्षेत्रीय स्तर पर नही होता है ।   जहां भी देखों नालियों, तालावों के किनारों को बसाहट कर दी गई है ।  जो नदी सदा , सदा बहार कल कल बहा करती थी , उस नदी को चारों ओर से मकान बनाकर घरों के पानी को सीधा नालियों के व्दारा डाला जाता है ।  इसके परिणाम नदियों का आस्तित्व समाप्त होकर नालें में परिवर्तित हो गई है । और नदियाॅ विलुप्त होने की कगार पर है ।  अगर गाॅधी जी के सपने का पूरा करना है तो हमें स्वयं सेवी सफाई अभियान को आन्दोालन में बदल कर समाज के सामने लाना होगा । 
     








santosh gangele

( संतोष गंगेले  ) 


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