राज्यसभा में बुधवार को सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक पेश करने के प्रयास में सरकार विफल रही। विधेयक के विरोध में संपूर्ण विपक्ष एकजुट हो गया जिससे सरकार को अपना कदम वापस खींचना पड़ा। विधेयक पेश करने में विफल में रहने से सरकार को भारी शर्मिदगी का सामना करना पड़ा। केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने यह टिप्पणी की कि यह विधेयक गुजरात में जैसा हुआ था उस तरह राज्य सरकार कानून एवं व्यवस्था के विरुद्ध काम करने लगे तो उस स्थिति से निपटने के लिए अनिवार्य है। सिब्बल के इतना कहते ही सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सदस्यों के बीच तीखी नोकझोंक होने लगी।
सिब्बल ने कहा, "यह विधेयक उस स्थिति में जब राज्य कानून एवं व्यवस्था को बाधित करने में संलिप्त हो..जैसा गुजरात में हो चुका है, यदि राज्य सांप्रदायिक गतिविधि को प्रोत्साहन दे तब की जरूरत है।"इस टिप्पणी से भाजपा के सदस्य भड़क गए और दोनों पक्षों से भारी हंगामा होने लगा। विपक्षी पार्टियों ने दलील दी कि सांप्रदायिक हिंसा रोकने संबंधी यह विधेयक संघीय ढांचा के खिलाफ है और राज्य सरकार के अधिकारों पर कुठाराघात है। उपसभापति पी. जे. कुरियन ने इसके बाद विधेयक को टाल दिया। इस विधेयक का वाम मोर्चा, डीएमके, एआईएडीएमके, और तृणमूल कांग्रेस ने भी विरोध किया।
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बुधवार को राज्यसभा में सांप्रदायिक हिंसा रोकने से संबंधित एक विधेयक पेश करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों के विरोध के कारण सदन की कार्यवाही दूसरी बार अपराह्न् दो बजे तक के लिए स्थगित करनी पड़ी। सदन की बैठक दोपहर में जब दोबारा शुरू हुई तो शिंदे ने विधेयक सदन में पेश करना चाहा। इसके पहले सदन की बैठक शुरू होने के साथ ही कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी।
विपक्ष के नेता अरुण जेटली विधेयक का विरोध करने के लिए खड़े हुए। कुछ अन्य दलों के सदस्यों ने भी अपने मुद्दे उठाने की कोशिश की। जिसके कारण हंगामे की स्थिति पैदा हो गई। राज्यसभा के उपसभापति पी.जे. कुरियन ने उसके बाद सदन की कार्यवाही अपराह्न् दो बजे तक के लिए स्थिति कर दी।