- प्री बजट रैली के तर्ज पर बाजार में प्री इलेक्शन रैली की उम्मीद करना निराशा के माहौल में अपने आप को सांत्वना देने जैसा है
चुनाव पूर्व अर्थव्यवस्था को संजीवनी मिल जायगी, उम्मीद कम है। भारतीय अर्थव्यस्था बुरे दौर से गुजर रहा है और बाज़ार में सुस्ती का माहौल है। बजट पूर्व रैली के तर्ज पर बाजार में चुनाव पूर्व रैली की कयास लगाई जा रही है। आर्थिक आंकड़ों से साफ़ संकेत मिल रहा है कि आर्थिक संकट अभी जारी रहेगा। रिज़र्व बैंक ने कर्ज सस्ता करने के बजाय रेपो दर में वृद्धि कर दी। इसके साथ ही बुनयादी उद्योगों की वृद्धी दर करीब दस साल के निचले स्तर पर है । अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के बांड खरीद में कटौती के फैसले ने भी आर्थिक सुस्ती को बढ़ाने का काम किया है।
इस समय सरकार और हर छोटी - बड़ी विरोधी पार्टिओं की नजर अर्थव्यस्था के बजाय लोकसभा की अधिक से अधिक सीटें जीतने पर होगी, जिससे की नई सरकार में उनका वर्चस्व कायम हो। वायदे पर अमल तो नई सरकार के आने के बाद ही सम्भव हो पायेगा। फिर वो कौन सी बात है जो बाजार को रफ़्तार देगी। नई सरकार से उम्मीदों को भी मार्केट पहले ही हजम कर चूका है । इस बीच देशी और विदेशी निवेशकों में निराशा का माहौल साफ देखा जा रहा है।
अप्रैल में चुनाव की सम्भावनाएं है और इसी दौरान कंपनियों के चौथी तिमाही के नतीजे भी आयेंगे। अच्छे नतीजों या अनुकूल ख़बरों पर आधारित तेजी हमेशा बाजार में बनी रहती है और इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है। रूपये में मजबूती और कच्चे तेल में नरमी से हमेशा बाजार को बल मिलता रहा है लेकिन ये सारी बातें भविष्य के गर्त में होती है और इन सब के लिए घरेलू के बजाय इंटरनेशनल मार्केट ज्यादा जिम्मेदार होता है। इंटरनेशनल ख़बरों के दम पर बाजार में तेजी की उम्मीद की जा सकती है लेकिन ये तेजी समय के साथ ही ठंढी हो जायेगी और इस तेजी को प्री इलेक्शन रैली नहीं कहा जा सकता है।
चुनाव के तारीख का औपचारिक एलान होते ही आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला और तेज हो जायेगा। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए निजी हमले भी किये जायेंगे। धर्म, जाति और समुदाय के नाम पर वोटरों को विभाजित करने की कला का प्रदर्शन होगा। माहौल को कुछ ऐसा बनाया जायेगा जिसमे आर्थिक मुद्दे हासिये पर छूट जायेंगे।
यह बिलकुल साफ है कि इलेक्शन के बाद ही नई सरकार आर्थिक विकास की रफ़्तार को बढ़ाने पर ध्यान देगी और नई आर्थिक परियोजनायों का रोडमैप तैयार करेगी। इसलिए अगले वित्तीय वर्ष के दूसरे तिमाही से पहले बाजार में स्थाई तेजी की उम्मीद बेमानी है। इस बीच बाजार सीमित दायरे में घूमता नजर आयेगा।
( राजीव सिंह)
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