Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all 74336 articles
Browse latest View live

आमंत्रण यात्रा के बहाने शत्रुघ्न और कीर्ति को जोड़ने की कवायद में कांग्रेस

$
0
0
congress-wants-to-add-shatrughan-kirti
पटना 29 दिसम्बर, बिहार कांग्रेस, पार्टी को और सशक्त बनाने के उद्देश्य से अगले माह शुरु हो रही ‘आमंत्रण यात्रा ’ के बहाने पुराने साथियों के अलावा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नाराज चल रहे सांसद कीर्ति झा आजाद और शत्रुघ्न सिन्हा को जोड़ने की कवायद में जुट गयी है। कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी ने आज यहां बताया कि 19 जनवरी से उनकी पार्टी भूले बिसरे कांग्रेसी साथियों की खोज एवं बुजुर्गों के सम्मान के लिए बिहार में आमंत्रण यात्रा निकालेगी। इस यात्रा की शुरुआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि पश्चिम चंपारण से होगी। उन्होंने कहा कि इस दौरान किसी कारणवश पार्टी छोड़कर या फिर अन्य कारणों से अन्य दलों में गये नेताओं को वापस लाये जाने की कोशिश की जायेगी। श्री कादरी ने कहा कि ऐसे नेताओं से किराये के मकान को छोड़कर अपने घर में वापस आने का आग्रह किया जायेगा। सांसद श्री आजाद का परिवार शुरू से ही कांग्रेस की विचारधारा में विश्वास करता रहा है और उनके पिता भागवत झा आजाद बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे थे। इसी तरह सांसद श्री सिन्हा ने अपने एक बयान में कहा था कि यदि श्रीमती इंदिरा गांधी जीवित होती तो वह आज कांग्रेस में होते। इससे उनका कांग्रेस के प्रति झुकाव दिखता है। उल्लेखनीय है कि श्री सिन्हा और श्री आजाद हाल के दिनों में पार्टी लाइन से अलग हटकर बयान देते रहे हैं।


नवंबर तक आमदनी 8,66,710 करोड़, व्यय 14,78,815 करोड़

$
0
0
नयी दिल्ली 29 दिसंबर, चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीने में केंद्र सरकार को 8,66,710 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका कुल व्यय 14,78,815 करोड़ रुपये रहा। वित्त मंत्रालय ने आज बताया कि नवंबर तक कुल आमदनी बजट अनुमान का 54.2 प्रतिशत यानी 8,66,710 करोड़ रुपये रही है। इसमें 6,99,392 करोड़ रुपये कर के रूप में, 1,05,469 करोड़ रुपये गैर-कर राजस्व और 61,849 करोड़ रुपये गैर-कर पूँजीगत प्राप्ति के रूप में मिले हैं। गैर-कर पूँजीगत प्राप्ति में 9,471 करोड़ रुपये की ऋण वसूली और 52,378 करोड़ रुपये सार्वजनिक कंपनियों के विनिवेश से प्राप्त आय है। मंत्रालय ने बताया कि 3,85,286 करोड़ रुपये कर में हिस्सेदारी के रूप में राज्य सरकारों को दिये गये हैं। कुल व्यय बजट अनुमान के 68.9 प्रतिशत यानी 14,78,815 करोड़ रुपये पर पहुँच गया है। इसमें 3,09,799 करोड़ रुपये ऋण पर ब्याज के मद में और 2,06,068 करोड़ रुपये सब्सिडी के मद में खर्च किये गये हैं।

सिडनी में समुद्री विमान दुर्घटनाग्रस्त, छह लोगों की मौत

$
0
0
seaplane-crashed-in-sydny
सिडनी 31 दिसंबर, आस्ट्रेलिया में सिडनी से 50 किलोमीटर उत्तर में आज एक सिंगल इंजन वाले समुद्री विमान के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से छह लोगों की मौत हाे गयी। यह हादसा कोवान उप शहर के समीप हाॅक्सबेरी नदी में हुआ। न्यू साउथ वेल्स पुलिस ने बताया कि अब तक नदी से तीन लोगों के शव बाहर निकाले जा चुके हैं और विमान का मलबा 13 मीटर की गहराई में पड़ा है। इस हादसे में मारे गए लाेगों की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है। यह विमान सीनिक फ्लाइट कंपनी सिडनी सीप्लेनस का है। कार्यकारी पुलिस अधीक्षक माइकल गोरमान ने बताया कि अभी अन्य हताहतों की खोजबीन का काम चल रहा है और पुलिस के गोताखोराें ने तीन शव बाहर निकाल लिये हैं। अपुष्ट खबराें के अनुसार मृतकों में एक 11 वर्षीय बच्चे के अलावा एक पायलट और चार ब्रिटिश नागरिक शामिल हैं इस बीच ब्रिटिश विदेश कार्यालय ने कहा है,“ ब्रिटिश दूतावास के अधिकारी सिडनी के निकट दुर्घटनाग्रस्त हुए विमान के संबंध में स्थानीय अधिकारियों के संपर्क में है।”

यूनान में भूकंप के झटके

$
0
0
earthquake-in-greece
एथेंस 31 दिसंबर, यूनान की राजधानी एथेंस सहित देश के पश्चिमी इलाकों में आज भूकंप के मध्यम दर्जे के झटके महसूस किये गये।नेशनल ऑबजर्वेटरी ने अपनी वेबसाइट पर बताया कि भूकंप देश के पश्चिमी इलाके की कोरिंथ की खाड़ी में रिकॉर्ड किया गया। सुबह छह बजकर दो मिनट पर आये भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 4.6 दर्ज की गयी। अमेरिकी भूगर्भ सर्वे के अनुसार भूकंप का केन्द्र राजधानी से 79 किलोमीटर पश्चिमोत्तर में पांच किलोमीटर की गहराई में था। भूकंप से जान माल के नुकसान की फिलहाल सूचना नहीं है। एक व्यक्ति ने यूरोपियन ‘मेडिटेरियन साइज़्मालजिकल सेंटर की बेवसाइट पर लिखा,“ मुझे एक साथ जैसे दो बार भूकंप के झटके लगे। यह काफी तेज थे।

कश्मीर में फिदायीन हमले की उमर ने की कड़ी निंदा

$
0
0
omar-condemns-for-fidayeen-attack-in-kashmir
श्रीनगर 31 दिसंबर, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आज कश्मीर में फिदायीन हमले में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान के शहीद होने पर दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि यह बात स्मरण कराती है कि घाटी में किस तरह बुरी चीजें हाे रही हैं। श्री अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा,“ साल का समापन होने वाला है और हमें एक बार फिर यह भयानक एहसास हुआ है कि कश्मीर घाटी में हालात बहुत बुरे हैं। इस हमले में सीआरपीएफ का जो जवान शहीद हुआ है उसके परिजनों के प्रति मेरी संवेदनाएं।”

नीतिन पटेल के मामले से विरोधियों के मुंह में आ गया था पानी - मुख्यमंत्री रूपाणी

$
0
0
vijay-rupani-speaks-on-nitin-patel
गांधीनगर 31 दिसंबर, मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने आज कहा कि उपमुख्यमंत्री नीतिन पटेल को लेकर पिछले दो दिनो तक पैदा हुए विवाद को देख कर विरोधियों के मुंह में पानी आ गया था पर अब घी के वापस घी के कनस्तर में मिल जाने से उनके मंसूबे विफल हो गये हैं। श्री रूपाणी ने आज यहां पत्रकारों से कहा कि पार्टी आलाकमान ने श्री पटेल की भावना को देखते हुए मंत्रियों के विभागों में थोड़ा फेरबदल कर उन्हें वित्त विभाग देने का फैसला किया है और ऐसा कर दिया गया है। यह माला अब सुलझ गया है। अब सब मिल कर पांच साल तक लोगों की अधिक से अधिक सेवा करेंगे।  विभाग को लेकर श्री पटेल की कथित नाराजगी के बीच कांग्रेस तथा पास नेता हार्दिक पटेल की ओर से उन्हें लुभाने की कोशिशें तथा भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव देने की ओर इशारा करते हुए श्री रूपाणी ने कहा कि घी वापस घी के कनस्तर में आ गया है, बड़े परिवार में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं। पिछले दो दिन में जो हुआ उससे विरोधियों के मुंह में पानी आ गया था (कि भाजपा की सरकार चली जायेगी और उनकी सरकार बन जायेगी) पर यह मंसूबा विफल हो गया। बाद में श्री पटेल ने स्वयं अपने गृहनगर महेसाणा में पत्रकारों से कहा कि कांग्रेस ने भाजपा के इस अंदरूनी मामले को सत्ता हासिल करने के एक मौके के तौर पर देखा था पर उसे शायद पता नहीं था कि नीतिन पटेल भाजपा के एक कट्टर कार्यकर्ता हैं और वह कांग्रेस में जाने की बात की कल्पना तक नहीं कर सकते।

फिदायीन हमले में चार जवान शहीद, दो आतंकवादी मारे गये

$
0
0
four-jawan-dead-in-fidaayeen-attack
श्रीनगर 31 दिसंबर, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में आज तड़के केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानाें पर आतंकवादियों के फिदायीन हमले में चार जवान शहीद हो गए और सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में दो आतंकवादी मारे गए। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि आतंकवादी संगठन जैश-ए-माेहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है और यह हमला पुलवामा में इसी संगठन के शीर्ष कमांडर नूर मोहम्मद तांतरे के मारे जाने के पांच दिन बाद हुआ है। सूत्रों ने बताया कि दो से तीन आतंकवादियों के समूह ने पुलवामा में लाथपोरा स्थित सीअारपीएफ की 185 बटालियन के मुख्य गेट के समीप हथगोले फेंके और अंधाधुंध गोलीबारी की। इसमें चार जवान घायल हो गए। यह हमला रात करीब दो बजे किया गया और इसके बाद आतंकवादी अंधेरे का फायदा उठाकर भाग गए। घटना के बाद इन जवानों को सैन्य अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गयी। सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए दो आतंकवादियों को मार गिराया है। इलाके में सुरक्षा बलों का अभियान अभी जारी है और यह माना जा रहा है कि यहां अभी भी दो से तीन आतंकवादी छिपे हैं। सूत्रों ने बताया कि आतंकवादियों के सफाया अभियान में राज्य पुलिस के विशेष अभियान दस्ते के अलावा, 50 राष्ट्रीय रायफल्स, और सीआरपीएफ के जवान लगाए गए हैं। इस क्षेत्र को चारों तरफ से घेर लिया गया है ताकि आतंकवादी बचकर न भाग जाएं और न ही दोबारा हमला कर सकें। इसके अलावा अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए इंटरनेट सेवा को क्षेत्र में बंद कर दिया गया है। पुलिस और सेना के वरिष्ठ अधिकारी माैके पर पहुंच कर अभियान की निगरानी कर रहे र्है।

21वीं सदी की शुरुआत में जन्मे युवाओं के लिए खास होगा यह नववर्ष : मोदी

$
0
0
new-year-will-be-special-for-the-youth-born-in-the-beginning-of-the-21st-century-says-modi
नई दिल्ली 31 दिसम्बर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि आगामी नया साल बेहद खास होगा क्योंकि इसमें वह लोग वोट देने लायक हो जाएंगे जिनका जन्म 21वीं सदी की शुरुआत वाले वर्ष में हुआ था। मोदी ने अपने मासिक व 2017 के आखिरी मन की बात कार्यक्रम में कहा, "कल (सोमवार) एक खास दिन होगा। जिन लोगों का जन्म 21वीं सदी की शुरुआत वाले वर्ष में हुआ था, वे 18 साल के हो जाएंगे और अपना वोट डाल सकेंगे।" प्रधानमंत्री ने 2018 में 18 साल के होने वाले सभी लोगों से खुद को मतदाता के तौर पर पंजीकृत कराने और 21वीं सदी के भारत के निर्माण में सहायता करने की अपील की।मोदी ने कहा, "आपका वोट नए भारत की नींव बनेगा..आप सिर्फ खुद को वोट देने का अधिकार नहीं देंगे, बल्कि खुद को कल के भारत का संस्थापक भी बनाएंगे।" उन्होंने युवाओं को राज्य तंत्र की जानकारी देने के लिए जिला स्तर पर 'मॉक पार्लियामेंट'सत्र आयोजित करने का भी सुझाव दिया। उन्होंने युवाओं को अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर देश के विकास के लिए जन क्रांति लाने के लिए प्रोत्साहित किया।


मोदी ने स्मार्ट सिटी के लिए सिर्फ 7 फीसदी खर्च किए : राहुल

$
0
0
modi-spent-only-seven-percent-on-smart-city-says-rahul
नई दिल्ली 31 दिसम्बर, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर खोखले नारे देने को लेकर हमला बोला। राहुल गांधी ने कहा कि सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना के लिए आवंटित 9,860 करोड़ रुपये का सिर्फ 7 फीसदी इस्तेमाल किया है। राहुल गांधी ने ट्वीट किया, "प्यारे मोदी भक्तों स्मार्ट सिटी के लिए 9,860 करोड़ रुपये में से सिर्फ 7 फीसदी का इस्तेमाल किया गया है। चीन हमसे प्रतिस्पर्धा कर रहा है जबकि आपके मालिक हमें खोखले नारे दे रहे हैं। कृपया यह वीडियो देखिए और उन्हें प्रमुख मुद्दे-'भारत के लिए रोजगार सृजन'पर ध्यान देने की सलाह दें।" उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री 'शेन्झेन : द सिलीकान वैली ऑफ हार्डवेयर'का लिंक भी संलग्न किया। कांग्रेस नेता की यह टिप्पणी सरकार के उस आंकड़े के सामने आने के बाद आई है, जिसके अनुसार उसकी महत्वाकांक्षी परियोजना स्मार्ट सिटी योजना के लिए आवंटित राशि का बेहद कम इस्तेमाल किया गया है। आवास व शहरी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अब तक स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत 60 शहरों के लिए आवंटित किए गए 9,860 करोड़ रुपये में से सिर्फ सात फीसदी यानी 645 करोड़ रुपये का ही इस्तेमाल किया गया है।

आध्यात्मिक राजनीति करेंगे, तमिलनाडु में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे : रजनीकांत

$
0
0
rajnikant-t-contest-from-all-the-seats-of-tamilnadu
चेन्नई 31 दिसम्बर, तमिल सुपरस्टार रजनीकांत ने रविवार को कहा कि वह एक राजनीतिक पार्टी का गठन करेंगे जो 'आध्यात्मिक राजनीति'करेगी। रजनीकांत ने कहा कि पार्टी अगले विधानसभा चुनावों में राज्य के सभी 234 निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ेगी। बस कंडक्टर से तमिल सिनेमा की धड़कन बने रजनीकांत (68) ने सालों की अनिश्चिन्तता के बाद अपने उल्लासित समर्थकों से कहा कि उनका यह फैसला 'समय की जरूरत है।' देश में 'बहुत गलत राजनीति'होने का आरोप लगाते हुए रजनीकांत ने तमिल भाषा में कहा, "लोकतंत्र की आड़ में राजनीतिक दल अपने ही लोगों को लूट रहे हैं।" उन्होंने कहा कि इस तरह की व्यवस्था को बदलने की जरूरत है। रजनीकांत ने कहा कि पार्टी समय कम होने के कारण स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ेगी, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनावों में 234 निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवारों को उतारेगी। रजनीकांत ने अपनी पार्टी के नाम का खुलासा नहीं किया। उन्होंने कहा कि 2019 के संसदीय चुनाव में भाग लेने का फैसला उचित समय पर किया जाएगा। सत्तारूढ़ एआईएडीएमके पर प्रत्यक्ष रूप से हमला करते हुए रजनीकांत ने कहा कि मुख्यमंत्री जे.जयललिता के दिसम्बर 2016 में निधन के बाद से तमिलनाडु के साल भर के घटनाक्रम ने राज्य को हस्यास्पद स्थिति में डाल दिया है। रजनीकांत ने अपने प्रशंसकों से उनकी राजनीतिक पार्टी के गठन तक राजनीति या दूसरी पार्टियों के बारे में बात नहीं करने का आग्रह किया। साधारण मराठा परिवार में जन्मे रजनीकांत का वास्तविक नाम शिवाजी राव गायकवाड़ है। वह कुली व बढ़ई जैसे काम करने के बाद बस कंडक्टर बने। एक बार तमिल फिल्मों में आने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। तमिलनाडु ने उन्हें गले लगाया और कभी उन्हें बाहरी के तौर पर नहीं देखा और रजनीकांत तमिल फिल्म उद्योग के प्रतीक बन गए। उनकी फिल्में को देखने जबर्दस्त भीड़ उमड़ती है।रविवार को उन्होंने कहा कि उनका पहला कार्य अपने बहुत से अपंजीकृत प्रशंसक क्लबों को मूल संस्था के साथ पंजीकृत करना है। रजनीकांत ने कहा कि वह राजनीति में सत्ता के लिए नहीं आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि 45 साल की उम्र में उनकी राजनीतिक सत्ता में रुचि नहीं थी और अब 70 की उम्र में कोई नहीं कह सकता कि उन्हें सत्ता की चाह है। रजनीकांत ने कहा कि कई पार्टियों वाले राज्य में राजनीतिक पार्टी का गठन और चुनाव लड़ना आसान कार्य नहीं है। उन्होंने कहा, "यह गहरे समुद्र से मोती निकालने जैसा है।" अभिनेता ने कहा कि सत्ता में आने के तीन सालों के भीतर यदि उनकी पार्टी अपने चुनावी वादों को पूरा नहीं कर पाती है तो वह इस्तीफा दे देंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें भरोसा है कि उन्हें लोगों से सहयोग मिलेगा और वह आम आदमी के प्रतिनिधि हैं। सालों से रजनीकांत से राजनीति में उतरने को लेकर सवाल पूछे जाते रहे हैं। उन्होंने एक बार कांग्रेस को समर्थन दिया था, लेकिन कांग्रेस के एआईएडीएमके के साथ गठजोड़ से वह फिर पीछे हट गए। इसके बाद उन्होंने डीएमके-टीएमसी गठबंधन का समर्थन किया, जो चुनाव जीत गया। रजनीकांत ने 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में अन्ना हजारे का समर्थन किया था। रजनीकांत कई फिल्म पुरस्कारों सहित पद्म भूषण (2000) व पद्म विभूषण (2016) से सम्मानित हो चुके हैं। वह अपने परोपकारी गतिविधियों व आध्यात्मिक कार्यो के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने युवा अवस्था में आध्यात्मिक रास्ता अपना लिया था, उनके परिवार ने उन्हें रामकृष्ण मठ में शामिल होने में सहयोग दिया। वह सामान्य तौर पर देश भर के तीर्थस्थानों व चेन्नई के कई मंदिरों में जाते रहते हैं। रजनीकांत के फैसले का अभिनेता कमल हासन, अमिताभ बच्चन और अनुपम खेर ने स्वागत किया है। तमिलनाडु के ही कमल हासन भी राजनीति में आने की बात कह चुके हैं।

बिहार में 815 कार्टन विदेशी शराब बरामद ,दो गिरफ्तार

$
0
0

815-cartons-of-liquor-seized-in-bihar
हाजीपुर 31 दिसम्बर, बिहार के वैशाली जिले में अलग-अलग थाना क्षेत्रों से पुलिस ने भारी मात्रा में विदशी शराब बरामद कर दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस सूत्रों ने आज यहां बताया कि जिले के सराय थाना क्षेत्र के लालकोठी गांव के निकट से पुलिस ने कल देर रात ट्रक पर लदा 535 कार्टन विदेशी शराब बरामद कर दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया।सूचना मिली थी कि लालकोठी गांव के निकट ट्रक पर भारी मात्रा में विदेशी शराब लदा हुआ है। इसी आधार पर पुलिस ने छापेमारी कर ट्रक पर लदा 535 कार्टन विदेशी शराब बरामद कर लिया। बरामद शराब पंजाब निर्मित है जिसकी कीमत करीब 25 लाख रूपये है। मौके से पुलिस ने ट्रक चालक भूपेन्द्र सिंह और सह चालक राकेश कुमार को गिरफ्तार कर लिया । दोनों पंजाब के गुरसाही गांव के निवासी है। पुलिस दोनों से पूछताछ कर रही है। वहीं जिले के महनार थाना क्षेत्र के वासुदेवपुर चंदेल गांव के पंचायत सरकार भवन से पुलिस ने आज 280 कार्टन विदेशी शराब बरामद किया है। बरामद शराब मध्य प्रदेश निर्मित है। बरामद शराब की कीमत करीब दस लाख रूपया है। मौके से किसी को गिरफ्तार नही किया गया है।

विशेष : जीवन से खिलवाड़ करती मिलावट की त्रासदी

$
0
0
mixing-goods-and-life
मिलावट करने वालों को न तो कानून का भय है और न आम आदमी की जान की परवाह है। दुखद एवं विडम्बनापूर्ण तो ये स्थितियां हंै जिनमें खाद्य वस्तुओं में मिलावट धडल्ले से हो रही है और सरकारी एजेन्सियां इसके लाइसैंस भी आंख मूंदकर बांट रही है। जिन सरकारी विभागों पर खाद्य पदार्थों की क्वॉलिटी बनाए रखने की जिम्मेदारी है वे किस तरह से लापरवाही बरत रही है, इसका परिणाम आये दिन होने वाले फूड प्वाइजनिंग की घटनाओं से देखने को मिल रहे हैं। मिलावट के बहुरुपिया रावणों ने खाद्य बाजार जकड़ रखा है। नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में देश के खाद्य नियामक एफएसएसएआई के हालात का जो ब्योरा दिया है, वह आंखें खोल देने वाला है। इसके मुताबिक एफएसएसएआई में लापरवाही का यह आलम है कि होटलों-रेस्तरांओं या भोजन व्यवसाय से जुड़ी अन्य गतिविधियों के लिए लाइसैंस देते समय सारे दस्तावेज जमा कराने की औपचारिकता भी यहां पूरी नहीं की जाती, बल्कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हानिकारक एवं अस्वास्थ्यकर अखाद्य पदार्थों को स्वीकृति देकर मिलावट के खिलाफ बने कानूनों का मखौल उड़ाया जाता है। जीवन से खिलवाड़ करती इन त्रासद घटनाओं के नाम पर आम से लेकर खास तक कोई भी चिन्तित नहीं दिखाई दे रहा है, यह स्वास्थ्य के प्रति लोगों की स्वयं की उदासीनता को तो दर्शाता ही है, लेकिन सरकार भी कोई ठोस कार्रवाई करती हुई दिखाई नहीं दे रही है। यह भी प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार का एक घिनौना स्वरूप है।

सीएजी ऑडिट के दौरान जो तथ्य उजागर हुए हैं, वे भ्रष्टाचार को तो सामने लाते ही है साथ-ही-साथ प्रशासनिक लापरवाही को भी प्रस्तुत करते हैं। जीवन से जुडे़ इस मामले में भी गंभीरता नहीं बरती जा रही और आधे से ज्यादा लाइसैंस देने के मामलों में दस्तावेज आधे-अधूरे पाए गए। इसकी जांच की गुणवत्ता भी संदेह के दायरे में है, क्योंकि सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक एफएसएसएआई के अधिकारी जिन 72 लैबरेट्रियों में नमूने जांच के लिए भेजते हैं, उनमें से 65 के पास आधिकारिक मान्यता भी नहीं है। उन्हें यह मान्यता नैशनल अक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लैबरेट्रीज प्रदान करता है। सीएजी ऑडिट के दौरान जिन 16 प्रयोगशालाओं की जांच की गई उनमें से 15 में योग्य खाद्य विश्लेषक भी नहीं थे। सोचा जा सकता है कि ऐसी हालत में देश में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बनाए रखने का काम करने वाली सरकारी एजेन्सी की दशा कितनी दयनीय है और वहां कितनी लापरवाही बरती जा रही है। मिलावट रोकने के लिए कई कानून बने हुए हैं। सरकार के कई विभाग एवं अधिकारी इस कार्य के लिये जुटे हुए हैं। अगर सरकार चाहे तो मामलों को गंभीरता से लिया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है। मिलावट की स्थितियां त्यौहारों के समय विकराल रूप धारण कर लेती है। क्योंकि लोग त्योहार के नाम पर सब कुछ स्वीकार कर लेते हैं। वे सोचते हैं कि एक दिन के पर्व को हंसी-खुशी में बिताया जाए, मिठाई या अन्य खाद्य पदार्थों के लिए क्यों हल्ला मचाया जाए। उपभोक्ताओं की इसी मानसिकता का लाभ व्यापारी उठाते हैं और सरकार भी उदासीन बनी रहती है। हमें सोचना चाहिए कि शुद्ध खाद्य पदार्थ हासिल करना हमारा मौलिक हक है और यह सरकार का फर्ज है कि वह इसे उपलब्ध कराने में बरती जा रही कोताही को सख्ती से ले।

चाहे प्रचलित खाद्य सामग्रियों की निम्न गुणवत्ता या उनके जहरीले होने का मततब इंसानों की मौत भले ही हो, पर कुछ व्यापारियों एवं सरकारी अधिकारियों के लिए शायद यह अपनी थैली भर लेने का एक मौका भर है। खाद्य सामग्रियों में मिलावट के जिस तरह के मामले आ रहे हैं, उससे तो लगता इंसान के जीवन का कोई मूल्य नहीं है। पिछली दिवाली पर छापेमारी में बड़ी मात्रा में सिंथेटिक दूध और खोया जब्त किया तो पता चला कि मिलावट करने वाले किस तरह हमारी जान के साथ खिलवाड़ करने में लगे हुए हैं। वे मावे में चाॅक पाउडर से लेकर डीजल तक मिला रहे हैं। इसके अलावा वे मिठाई बनाने में सिंथेटिक कलर और साबुन बनाने के काम में आने वाले तेल का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसी मिलावटी मिठाइयां खाने से अपच, उलटी, दस्त, सिरदर्द, कमजोरी और बेचैनी की शिकायत हो सकती है। इससे किडनी पर बुरा असर पड़ता है। पेट और खाने की नली में कैंसर की आशंका भी रहती है। बात केवल त्यौहारों की ही नहीं है बल्कि आम दिनों में भी हमें शुद्ध मिठाइयां या खाद्य सामग्रियां मिलती है, इसकी कोई गारंटी नहीं है। दिल्ली में तो उन मंडियों की ढंग से मानिटरिंग तक नहीं हो पा रही है जहां मावा बिक रहा है। सरकार फूड इंस्पेक्टरों की कमी का रोना रोती है। हालत यह है कि बाजारों में धूल-धक्कड़ के बीच घोर अस्वास्थ्यकर माहौल में खाद्य सामग्रियां बेची जा रही है। 

अभी हमारे देश में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की प्रचलन विदेशों की तुलना बहुत कम है, यह राहत की बात है। यदि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का प्रचलन अधिक होता तो मिलावट का कहर ही बरस रहा होता। आज भी हमारे यहां आमतौर पर लोग घरों में बनाए भोजन को ही प्राथमिकता देते हैं लेकिन बदलती जीवनशैली के साथ इस चलन में बदलाव भी आ रहा है। कामकाजी दम्पतियों के लिए घर में खाना बनाना मुश्किल होता है लिहाजा ऐसे घरों में बाहर से खाना पैक करवाना आम बात है। अन्य घरों में भी धीरे-धीरे पैक्ड फूड प्रॉक्ट्स का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। मिलावट की तमाम खबरों, जागरूकता अभियानों और सरकारी सख्ती के बावजूद स्थिति संतोषजनक नहीं है। ऐसे में खाद्य नियामक की ऐसी जर्जरता, लापरवाही एवं खस्ताहालात बहुत चिंताजनक है। आज हमारे पास यह जांचने का भी कोई जरिया नहीं है कि बाजार में प्रचलित खाद्य सामग्रियों के रूप में कितनी खतरनाक चीजें हमारे शरीर में पहुंच रही हैं। कई असाध्य बीमारियों का महामारी का रूप लेते जाना जरूर हमें स्थिति की भयावहता का थोड़ा-बहुत अंदाजा करा देता है। देशवासियों की स्वास्थ्य के साथ ऐसा खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। बेहतर होगा कि सरकार तत्काल सक्रिय हो और युद्ध स्तर पर सारे जरूरी कदम उठाकर इस बदइंतजामी को दूर करे। 

मिलावट एक ऐसा खलनायक है, जिसकी अनदेखी जानलेवा साबित हो रही है। इस मामले में जिस तरह की सख्ती चाहिए, वैसी दिखाई नहीं दे रही है। ऐसा होता तो सीएजी ऑडिट रिपोर्ट में ऐसे खौफनाक तथ्य सामने नहीं आते। अगर स्थिति को और बिगड़ने ना दिया जाए, तो कम-से-कम भविष्य में मिलावट से होने वाली बीमारियों के कारण मरने वाले लोगों की संख्या को और बढ़ने से रोका जा सकता है। ऐसा किया जाना जरूरी भी है। लोगों को मरने भी तो नहीं दिया जा सकता। विडम्बनापूर्ण तो यह है कि भारत में सरकार और जनता, दोनों के लिये यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया है। दुखद तो यह भी है कि राजनीतिक दलों के लिये तो इस तरह के मुद्दे कभी भी प्राथमिकता बनते ही नहीं।  मिलावट के नाम पर खतरे की घंटी बनने वाली ये ऐसी विनाशकारी स्थितियां हैं, जिनका आम लोगों के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है, जिस पर ध्यान देना जरूरी है, अन्यथा आए दिन भयानक परिणाम सामने आते रहेंगे। भविष्य धुंधला होता रहेगा। देश में ऐसा कोई बड़ा जन-आन्दोलन भी नहीं है, जो मिलावट के लिये जनता में जागृति लाए। राजनीतिक दल और नेता लोगों को वोट और नोट कबाड़ने से फुर्सत मिले, तब तो इन मनुष्य जीवन से जु़ड़े बुनियादी प्रश्नों पर कोई ठोस काम हो सके। 




livearyaavart dot com

(ललित गर्ग)
60, मौसम विहार, तीसरा माला, 
डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली-110051
फोनः 22727486, 9811051133

यादें : वक्त ने किया क्या हसी सितम

$
0
0
madhubala
फिल्म 'शोले 'के मशहूर फिल्म निर्माता रमेश सिप्पी ने एक साक्षात्कार में स्वीकार किया कि बड़ी सफलता बड़ा मानसिक दबाव भी लेकर आती है।  कभी कभी यह सफलता इतनी जबरदस्त होती है कि फ़िल्मकार के लिए सहज रह पाना आसान नहीं होता।  सफलता उसकी रचनात्मकता का मानक तय कर देती है। . चाहे कुछ भी हो जाए अगली बार उसे उस मानक तक तो पहुंचना ही है , अन्यथा उसकी सफलता को महज संयोग मान लिया जाएगा।  यद्धपि प्रदर्शन को आंकने का यह तरीका जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी लागू होता है। परन्तु चूँकि फिल्मे सबसे ज्यादा सार्वजनिक आकर्षण के केंद्र में होती है तो दर्शक की 'एक्सरे 'नजरों से उन्हें ही गुजरना होता है। स्वयं रमेश सिप्पी शोले से पूर्व 'सीता और गीता 'के रूप में बड़ी हिट दे चुके थे। परन्तु उसके बाद की उनकी फिल्मे शोले की तराजू में ही तोली गई। टेलीविज़न के शुरूआती दौर में देश के बंटवारे की पृष्ठभूमि पर बना सिप्पी का धारावाहिक 'बुनियाद 'आज  'एन एस डी 'और पुणे फिल्म इंस्टिट्यूट में पढ़ाया जाता है परन्तु बावजूद इस उपलब्धि के उनका जिक्र सिर्फ और सिर्फ 'शोले 'के लिए ही होता है। 

madhubala
सिनेमाई विशेषणों 'ग्रेट 'फाइनेस्ट 'क्लासिक  से सजी 'मुग़ले आजम 'के लिए के आसिफ ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित काल्पनिक कहानी में इतिहास के अलावा हरेक बिंदु सर्वश्रेष्ठ था। भारतीय सिनेमा के इतिहास की बात मुग़ले आजम के बगैर अधूरी रहेगी। मुग़ले आजम के बाद के आसिफ ने गुरुदत्त और निम्मी के साथ 'लव एंड गॉड 'आरम्भ की परन्तु गुरुदत्त के अवसान से फिल्म अटक गई।  बाद में संजीव कुमार को लेकर पुनः शूट की गई।  फिल्म मुकाम पर पहुँचती उसके पहले आसिफ साहब का इंतेक़ाल हो गया। आधी अधूरी फिल्म को 1986 में जैसे तैसे रिलीज किया गया परन्तु इसमें आसिफ का वह जादुई स्पर्श नहीं था जिसने मुग़ले आजम 'को शीर्ष पर पहुँचाया था। कभी कभी फिल्मकार ही फ़ैल नहीं होते दर्शक भी फ़ैल हो जाता है। गुरुदत्त कितने महान निर्देशक थे यह बताने की आवश्यकता नहीं है। उनकी बाजी (1951 ) जाल (1952) आरपार (1954 ) मि एंड मिसेस 55 (1955 ) प्यासा (1957) आज भी शिद्दत से देखि जाती है। सिनेमा की बारीक समझ विकसित करने वालों के लिए गुरुदत्त की फिल्मे एक यूनिवर्सिटी की तरह है। अफ़सोस इस महान फिल्मकार की अंतिम फिल्म 'कागज के फूल '(1959) की असफलता ने गुरुदत्त को अंदर से तोड़ दिया। दर्शको को बाद में समझ आया कि गुरुदत्त असफल नहीं हुए थे वरन वे खुद ही उस फिल्म को समझने में चूक गए थे। फिल्म आज क्लासिक का दर्जा हासिल कर चुकी है।  

gurudutt-whida-rahman
शाहजहां ने अपनी पत्नी के लिए ताज महल बनाया था कमाल अमरोही ने अपनी पत्नी के लिए 'पाकीजा 'बनायी - 14 वर्ष में पूर्ण हुई इस कालजयी फिल्म को मीना कुमारी की अंतिम फिल्म कहा जाता है। कमाल अमरोही ने इस फिल्म को ब्लैक एंड वाइट के जमाने में शूट करना आरम्भ किया था और हर बार  नई  तकनीक के साथ री शूट करते रहे। कास्टिंग , एडिटिंग , सेट्स , मधुर गीत -संगीत , फोटोग्राफी के पैमाने पर सौ प्रतिशत देती पाकीजा 'कल्ट क्लासिक 'बन गई है। अमरोही साहब ने 'रजिया सुलतान (1983) में खुद को दोहराने का प्रयास किया परन्तु बात नहीं बनी। उस दौर की सदाबहार जोड़ी धरम / हेमा के बावजूद फिल्म डूब गई। 'ऐ दिल नादान - लता का गाया यह गीत ही इस फिल्म का नाम याद दिला देता है अन्यथा दर्शक कब का इसे बिसार चुके होते। 

meena kumari
सुभाष घई एक्टर बनने मुंबई आए थे।  बन न सके , और निर्देशक बन गए।  सुभाष घई ने कोई महान फिल्म बनाने का प्रयास नहीं किया ,उन्होंने दर्शकों के टेस्ट के मुताबिक़ सिनेमा रचा।  कालीचरण ' 1976'  कर्ज 1980 '  हीरो 1983 'कर्मा 1986 'रामलखन 1989 'सौदागर 1991 'खलनायक 1993 'जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मे घई को सफलतम निर्देशक की लीग में शामिल करती है। परन्तु घई का जादू 'खलनायक 'के बाद चूक गया।  परदेस (1993 ) 'ताल (1997 ) आते आते वे पूरी तरह से निष्प्रभावी हो गए। ऋतिक रोशन करीना स्टारर 'यादें 'उनकी घोर असफल फलम मानी जाती है।  इस हादसे ने घई का आत्मविश्वास इतनी बुरी तरह हिलाया कि उसके बाद उन्होंने किसी नई फिल्म को हाथ नहीं लगाया।  ऐसी इंडस्ट्री जहां शुक्रवार का दिन तय करता है कि कोनसा सितारा कहाँ बैठेगा , कौन और कितनी ऊपर जाएगा , किस का समय समाप्त होने वाला है।यक़ीनन  कहानी बनाने वालों की भी अपनी कहानी होती है और सभी की बात करने के लिए यह कॉलम बहुत छोटा है। 



liveaaryaavart dot com

--रजनीश जैन--
सुजालपुर सिटी

स्पेशल फास्ट ट्रैक के माध्यम से सांसदों/ विधायकों के विरुद्ध लंबित मामलों का हो निष्पादन : सुको

$
0
0
suko-apel-fast-track-action-jharkhand
दुमका (अमरेन्द्र सुमन) राजनीति मंें बढ़ते अपराधीकरण को घ्यान में रखते हुए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से लंबित मुकदमों का निष्पादन जरुरी है। 01 नवम्बर 2017 को सुप्रिम कोर्ट साफ-साफ कहा है कि लोक सभा व विधान सभा सदस्यों के विरुद्ध लंबित मामलों का निष्पादन त्वरित गति से होना चाहिए। एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्मस (झारखण्ड इलेक्शन वाच) के सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान विधायकों द्वारा जो शपथपत्र दाखिल किया गया था, उसके मुताबिक प्रदेश के कुल 81 विधायकों में से 52 विधायकों ने कोर्ट में खुद के विरुद्ध लम्बित मामलों का जिक्र किया है। इस तरह 64 प्रतिशत विधायकों के विरुद्ध कोर्ट में मामले लंबित हैं। एडीआर (एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्मस-इलेक्शन वाच) व मंथन युवा संस्थान, राँची के संयुक्त तत्वावधान में सर्किट हाउस, दुमका में आहुत प्रेसवार्ता में एडीआर के राष्ट्रीय प्रमुख व सेवानिवृत्त मेजर जनरल अनिल वर्मा ने कहा कि 31 मार्च 2018 तक फास्ट ट्रेक कोर्ट के माध्यम से मुकदमों के निष्पादन का निदेश सुको द्वारा जारी किया गया है। मंथन युवा संस्थान, राँची के सीईओ सुधीर पाल के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता में एडीआर के राष्ट्रीय प्रमुख व सेवानिवृत्त मेजर जनरल अनिल वर्मा ने कहा कि उपरोक्त 52 एमएलए में से 41 एमएलए के विरुद्ध सिरियस क्रिमिनल केसेज दर्ज है इस प्रकार वर्तमान में कुल 51 प्रतिशत विधायकों  के विरुद्ध गंभीर मुकदमें दर्ज हैं। एडीआर के राज्य प्रमुख सुधीर पाल के अनुसार झारखण्ड में भाजपा के सर्वाधिक 22 विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं। झामुमों के 13 व झाविमों के 5 विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं। मालूम हो झारखण्ड विधान सभा में सर्वाकिध 37 विधायक (वर्ष 2014 के विस चुनाव के बाद के परिणाम के अनुसार) भाजपा के हैं। झामुमों के 19, झाविमों (प्रजा) के 8, आईएनसी के 7, आजसू पार्टी के 4, मार्किस्ट को-आॅर्डिनेशन के 1, झारखण्ड पार्टी के 1, सीपीआई एम (एल) के 1, बीएसपी के 1, नवजीवन संघर्ष मोर्चा के 1 व जय भारत समानता पार्टी के 1 विधायक हैं। 2014 के विस चुनाव के के वक्त प्रत्याशियों द्वारा उपलब्ध करायी गई जानकारी के सर्वे से, झारखण्ड इलेक्शन वाच ने जो आँकड़े तैयार किये हैं उसके मुताबिक भाजपा के 59 प्रतिशत विधायकों के विरुद्ध मामले लंबित हैं जबकि जेएमएम के 68 प्रतिशत, जेवीएम (प्रजा) के विरुद्ध 63 प्रतिशत, आईएनसी विधायकों के विरुद्ध 57 प्रतिशत, आजसू पार्टी विधायकों के विरुद्ध 50 प्रतिशत, मार्सिस्ट को-आॅर्डिनेशन के विधायक के विरुद्ध 100 प्रतिशत, झारखण्ड पार्टी विधायक के विरुद्ध 100 प्रतिशत, सीपीआई (एमएल) विधायकों के विरुद्ध 100 प्रतिशत, बीएसपी विधायक के विरुद्ध 100 प्रतिशत, नौजवान संघर्ष मोर्चा के विधायक के विरुद्ध 100 प्रतिशत, व जय भारत समानता पार्टी के विधायक के विरुद्ध 100 प्रतिशत मामले लम्बित हैं। इस प्रकार झारखण्ड के 52 विधायकों के विरुद्ध 64 प्रतिशत मामले लम्बित हैं जिनमें से 41 विधायकों के विरुद्ध 51 प्रतिशत गंभीर अपराध के मामले लम्बित हैं। इसी तरह झारखण्ड के कुल 14 लोकसभा सदस्यों में से भाजपा के कुल 12 सांसदों में से 4 सांसदों ने अपने-अपने घोषणा पत्रों में आपराधिक मामलों को दर्शाया है। दो सांसदों के विरुद्ध गंभीर अपराध के मामले लम्बित हैं जिन्हें दर्शाया गया है। एडीआर के राष्ट्रीय प्रमुख    व सेवानिवृत्त मेजर जनरल अनिल वर्मा ने कहा कि 70 के दशक में अपराध का ग्राफ अचानक बढ़ गया था। उनके अनुसार नाॅमिनेशन के वक्त विभिन्न राजनीतिक पाट्रियो के अभ्यर्थी 50 प्रतिशत से अधिक व्यय नहीं दिखलाते। अश्विनी उपाध्याय ने इससे संबंधित पीआईएल दायर किया था। 

आलेख : क्या यह प्रधानमंत्री पद की गरिमा का अपमान नहीं है

$
0
0
pm-post-and-politics
वर्तमान में चल रहे संसद के शीतकालीन सत्र में भारतीय लोकतंत्र की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा माफी की मांग पर सदन की कार्यवाही में लगातार बाधा डालने का काम कर रही है। वैसे ऐसा पहली बार नहीं है कि कांग्रेस के द्वारा संसद की कार्यवाही ऐसे मुद्दों के लिए बाधित की जा रही हो जिनका देश से कोई लेना देना नहीं हो। इससे पहले भी वह कई देशहित से परे स्वार्थ की राजनीति से प्रेरित मुद्दे उठाकर संसद सत्र को ठप्प करने का काम कर चुकी है। चाहे नैशनल हेराल्ड का मामला हो, या फिर सुषमा स्वराज द्वारा ललित मोदी की कथित मदद का मुद्दा हो, अथवा मोदी द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर उनका "बाथरूम में रेनकोट पहन कर नहाने"वाला बयान हो। ताजा हंगामा गुजरात चुनाव के दौरान पाक के एक पूर्व मंत्री और कुछ पूर्व भारतीय राजनयिक के साथ मणिशंकर अय्यर द्वारा आयोजित रात्रि भोज में देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शामिल होने पर दिया गया उनके बयान को लेकर किया जा रहा है। और इन परिस्थितियों में जब काँग्रेस प्रधानमंत्री पद की गरिमा की बात करती है तो वह भूल जाती है कि इस पद की गरिमा का जितना अपमान खुद उसके द्वारा हुआ उतना आजाद भारत के इतिहास में शायद पहले कभी नहीं हुआ।

आश्चर्य तो यह है कि स्वयं मनमोहन सिंह को जिस "मान सम्मान"का बोध विपक्ष में रहते हुए हुआ उसका एहसास या फिर उसके ‘अभाव का एहसास’ वो प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए कभी क्यों नहीं कर पाए। शायद इसलिए  कि वे काँग्रेस और गाँधी परिवार को ही भारत समझने की भूल करते आए हैं और अपनी निष्ठा का दायरा इस परिवार से परे कभी बढ़ा नहीं पाए। नहीं तो क्या वजह है कि जो व्यक्ति आज उनके एक मीटिंग में शामिल होने के प्रधानमंत्री के वक्तव्य से "आहत"है उसने इससे पहले स्वयं को कभी "अपमानित"भी महसूस नहीं किया? और प्रधानमंत्री पद की गरिमा का प्रश्न काँग्रेस या फिर स्वयं उनके समक्ष इससे पहले कभी क्यों उत्पन्न नहीं हुआ? न तब जब 2004 में  प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने के तुरंत बाद सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाते हुए उस नैशनल एडवाइजरी काउंसिल का गठन किया गया जिसके पास केंद्रीय मंत्रिमंडल के समान अधिकार थे। न तब जब 2005 में मनमोहन सिंह ने पूरे देश के प्रधानमंत्री होते हुए भी लाल किले से अपने सम्बोधन में कहा था कि इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। न तब जब 2006 में उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री होते हुए कहा था कि पाकिस्तान भी भारत की ही तरह  "आतंकवाद का शिकार है"। न तब जब 2013 में भरे पत्रकार सम्मेलन में राहुल गाँधी  ने मनमोहन सरकार का एक अध्यादेश फाड़ दिया था।

pm-post-and-politics
न तब जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारतीय पत्रकारों के सामने उन्हें देहाती औरत कहा था।
न ही तब जब देश में एक के बाद एक घोटालों का पर्दाफाश हो रहा था। आश्चर्य का विषय है कि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान जो काँग्रेस प्रधानमंत्री मोदी पर चुनावों के मद्देनजर संसद के शीतकालीन सत्र को देर से शुरू करने को लेकर निशाना साधती रही ( यह भुलाकर कि उसके कार्यकाल में भी पहले 2008 और फिर 2011 में संसद के सत्र टाले गए थे) आज सत्र चलने ही नहीं दे रही। इसके अलावा यह बात भी समझ से परे है कि प्रधानमंत्री के पद की गरिमा की दुहाई देकर जब एक प्रधानमंत्री से ही माफी की मांग उनके द्वारा की जा रही है तो क्या उस प्रधानमंत्री पद की गरिमा नहीं गिराई जा रही? वैसे बात तो यह भी देश के गले नहीं उतर रही, जैसा कि उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि जो बयान सदन के बाहर दिया गया उसकी माफी की मांग सदन में करना कहाँ तक उचित है। आज जो काँग्रेस प्रधानमंत्री पद की गरिमा की बात कर रही है उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि उसने सबसे पहले ऐसी किसी मीटिंग से ही इंकार करके देश को गुमराह करने की नाकाम कोशिश की थी लेकिन मीडिया में खबरें आने के बाद मजबूरन स्वीकार करना पड़ा।

सोचने वाली बात यह है कि इस कथित "भोज"को "ऐसी कोई मीटिंग नहीं हुई, और यह केवल प्रधानमंत्री मोदी के दिमाग की उपज है लोगों को गुमराह करके चुनाव में फायदा उठाने के उद्देश्य से", ऐसा कहकर उसे गोपनीय रखने की सर्वप्रथम कोशिशें तो कांग्रेस की ही तरफ से की गईं लेकिन अगले ही दिन अखबार में पूरी खबर छप जाने के बाद उसे स्वीकार करना अपने आप में बहुत कुछ कहता है। प्रश्न तो यह भी उठता है कि जिस "भोज"में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व सेनाध्यक्ष, पूर्व विदेश मंत्री, कई पूर्व राजनयिक, पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के साथ पाकिस्तान की मुशर्रफ सरकार के पूर्व विदेश मंत्री मौजूद हो, वो एक "साधारण भोज"हो भी कैसे सकता है? माना कि खुर्शीद कसूरी (पूर्व पाक विदेश मंत्री) मणिशंकर के पुराने दोस्त हैं लेकिन उन्हें अकेले ही अपने घर भोजन पर बुलाकर अपनी दोस्ती की पुरानी यादें ताजा करके इसे पूर्ण रूप से एक व्यक्तिगत मिलन न रखते हुए पूर्व राजनयिकों, सेनाध्यक्ष और प्रधानमंत्री जैसे व्यक्तित्व बुलाकर इसे राजनैतिक रंग तो उन्हीं की ओर से दिया गया। प्रश्न तो यह भी है कि "दोस्ती"के नाते ही इस प्रकार का आयोजन किया गया था तो  फिर जनरल कपूर की ओर से क्यों कहा गया कि मीटिंग के दौरान भारत पाक रिश्तों पर बात हुई थी गुजरात चुनाव पर नहीं? तो अब मुद्दा यह है कि क्या ऐसे नाजुक विषय पर पाक के (भूतपूर्व ही सही) मंत्री पद के व्यक्ति से बात करने का औचित्य (और नीयत) वे समझा पाएंगे?

वो भी तब जब सोशल मीडिया में मणिशंकर का  पाकिस्तान में "मोदी को हटवाने"वाला वीडियो वाइरल हो रहा हो। काँग्रेस इस समय वाकई बुरे दौर से गुजर रही है, क्योंकि वो समझ ही नहीं पा रही कि प्रधानमंत्री के जिस बयान पर गुजरात की जनता अपनी मुहर लगा चुकी है, उसी बयान के लिए मोदी से माफी की मांग करना कांग्रेस के लिए एक और घाटे का सौदा ही सिद्ध होगी। अपनी इन हरकतों से काँग्रेस लगातार अपने पतन की ओर अग्रसर है। इसलिए नहीं कि वो लगातार चुनाव हार रही है बल्कि इसलिए कि वो यह समझ नहीं पा रही कि वो बार बार देश की जनता के द्वारा क्यों नकारी जा रही है। इसलिए नहीं कि मोदी देश को अपने "जुमलों"से बहका रहे हैं जैसा कि वो समझ रही है बल्कि इसलिए कि वे देश के सामने स्वयं को मोदी के विकल्प के रूप में नहीं पेश ही कर पा रही। इसलिए नहीं कि वो अपनी पूरी ताकत मोदी की इमेज बिगाड़ने में लगा रही हैं बल्कि इसलिए कि वो अपनी इमेज सुधारने की दिशा में कोई कदम ही नहीं उठा रही । इसलिए कि वो लगातार नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ देकर सकारात्मक परिणामों की आकांक्षा कर रही है। इसलिए कांग्रेस के लिए बेहतर होगा कि वह भूतपूर्व प्रधानमंत्री के पद की गरिमा के बजाय एक समझदार और जागरूक विपक्ष की अपनी गरिमा पर ज्यादा ध्यान दे।



liveaaryaavart dot com

--डाँ नीलम महेंद्र--

विशेष : ढोंगी बाबाओं का फैलता मकड़जाल

$
0
0
आस्था के नाम पर पाखंड, ढोंग और आडंबर का खेल भारत में जारी हैं। एक ऐसा ही ढोंग का खेल रचने वाला तथाकथित बाबा फिर सुर्खियों में हैं। दिल्ली के रोहिणी में आध्यात्मिक विश्वविद्याालय चलाने वाले तथाकथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित पर उसी की शिष्या ने दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बाबा सोलह हजार एक सौ आठ लड़कियों के साथ कुकर्म करना चाहता था। आश्रम के अंदर सुरंग में बने कमरे में लड़कियों को गुप्त प्रसाद देने के बहाने बाबा दुष्कर्म व अश्लील हरकतों पर उतर आता था। आश्रम में मिली कई ऐसी चीजें इस बात की ओर इशारा करती है कि दाल में कुछ तो काला हैं ! इतना ही नहीं, इससे पहले भी बाबा पर अब तक अलग-अलग थानों में 10 एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। इनमें से ज्यादातर बलात्कार के मुकदमे हैं। ये शिकायतें 1998 से लेकर अब तक पुलिस थानों में दर्ज की गई हैं। अलग-अलग थानों में दर्ज 10 एफआईआर के अलावा पुलिस की डायरी एंट्री में एक महिला की आत्महत्या का मामला भी दर्ज है। बहरहाल, बाबा भूमिगत है और देश के विभिन्न राज्यों में चल रहे वीरेंद्र देव दीक्षित के आश्रमों को पुलिस सील करके इनमें फंसी लड़कियों को बाहर निकल रही हैं। अब ही थोड़े दिनों पहले ही तथाकथित बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह के आश्रम में चल रही काली करतूतों का काला चिट्ठा सार्वजनिक हुआ था। ओर अब आरोपित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित की आधी सच्चाई तो बाहर आ चुकी है और आधी सच्चाई जल्दी ही बाहर आ जाएंगी। 

श्रद्धा और विश्वास के नाम पर चल रहे इन आश्रमों में ऐसा भी कुछ हो सकता हैं ! इसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। ऐसे में ये दोनों घटनाएं तो ज्वलंत उदाहरण मात्र है, बाकि भारत में ऐसे ढोंगी बाबाओं का एक लंबा इतिहास दृष्टिपात होता है। इन फर्जी, ढोंगी एवं स्वयंभू बाबाओं की सूची में आसाराम उर्फ आशुमल शिरमानी, आसाराम का बेटा नारायण साईं, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, नित्यानंद, रामपाल, स्वामी असीमानंद, ऊं नमः शिवाय बाबा, कुश मुनि, बृहस्पति गिरि, वृहस्पति गिरी और मलकान गिरि समेत कई लोगों के नाम शमिल हैं। 

ये सब वे बाबा हैं जो खुद को भगवान मानने से परहेज नहीं करते हैं। धर्म के नाम पर अधर्म का पाठ पढाकर लूट की दुकान चलाने वाले ये बाबा जितने दोषी हैं, उतने ही इनके भक्त भी दोषी हैं। स्मरण रहे कि गुरमीत राम रहीम सिंह की गिरफ्तारी के वक्त उसके अंधभक्तों ने किस तरह फसाद खड़ा करके सरकारी कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास किया था। उसी तरह आशाराम के गिरफ्तार होने के बाद भी उसके अंधभक्तों की जरा भी श्रद्धा उस पर से कम नहीं हुई है। सच है कि अंधभक्त सिर्फ नेताओं के ही नहीं बल्कि इन बाबाओं के भी है। जो इनके संरक्षण में अपनी जान तक न्यौछावर करने से पीछे नहीं हटते है। इन्हीं अंधभक्तों की अंधश्रद्धा का फायदा उठाकर ये ढोंगी बाबा और स्वयंभू साधु-संत व मौलाना गेरूए, काले व हरे वस्त्रों को धारण करके हर गलत काम को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहे हैं। यहीं कारण है कि भारत में सड़क से लेकर बड़े-बड़े आलीशान आश्रमों में आस्था को अपने-अपने ढंग से बेचा और खरीदा जा रहा है। गौर करने वाली बात तो यह है कि इन बाबाओं की शरण में जाने वाले अधिकत्तर लोग पढे-लिखे हैं। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि हमारी शिक्षा प्रणाली क्या इतनी सक्षम नहीं हैं कि गलत और सही का फर्क बता सके ? 

बाबाओं की संख्या भारत में तेज गति से बढ रही हैं। यहां के लोग तरह-तरह के बाबा बनकर लोगों को बाबा बना रहे हैं। एक ओर हमारा ज्ञान लज्जित हो रहा है, तो दूसरी विज्ञान की धज्जियां उड़ रही हैं। चांद पर जाने वाला और बडे-बड़े उपग्रह प्रक्षेपित करने वाला भारत अब तक इन ढोंगी और पाखंडी बाबाओं की दलदल से बाहर नहीं निकल पाया हैं ? क्या इस तरह हम विकासशील से विकसित हो पाएंगे ? क्या अब ये अज्ञान का अंधेरा नहीं हटना चाहिए ? यह भी सच है कि हर संत ऐसा नहीं हैं। लेकिन, आजकल सामने आ रहे कुछ ढोंगी बाबाओं और संतो के कारण इन सच्चे सामजिक सुधारक संतों को भी कलंकित होना पड़ रहा हैं। सोचनीय है कि हम किस समाज में जी रहे है ? जहां अभी तक ईश्वर और अल्लाह की सही समझ लोगों नहीं हो चुकी हैं। जहां आज भी लोग तावीज, रूद्रास और मालाओं पर सबसे अधिक भरोसा करते है । जहां आज भी औरतों को मासिक धर्म के दिनों में रसोई घर से बाहर रखा जाता हैं। कई मंदिरों और मस्जिदों में इनके प्रवेश पर रोक लगायी जाती हैं। हाल के वर्षो में ऐसे कितने संत और बाबा हुए है, जिन्होने राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर कोई सुधार व जन-जागृति का काम किया हो ? केवल और केवल धर्म का हवाला देकर ये बाबा कभी हिन्दू को मुस्लिम से तो कभी मुस्लिम को ईसाई से लड़वाकर अशांति और कोलाहल पैदा करते हुए पाये गए है। इनके आगे धर्म और मजहब की बलिहारी जनता सबकुछ तमाशबीन की तरह देखती आ रही है।

चमत्कारी बाबाओं और भगवानो द्वारा महिलाओं के शोषण की बातें हमेशा से प्रकाश में आती रही हैं और धन तो इनके पास दान का इतना आता है कि जिसे यह खुद भी नहीं गिन सकते। इसके दोषी केवल यह बाबा, मुल्ला या भगवान नहीं बल्कि हमारा यह भटका हुआ  समाज है जो किरदार की जगह चमत्कारों से भगवान को पहचानने की गलती किया करता है। आज जरूरत है कि भारत में फैलते आडंबर और अंधविश्वास के लिए धार्मिक सुधार आंदोलन चलाया जाएं। लोगों को आस्था और अंधश्रद्धा के बीच का अंतर बताया जाएं। भाग्यवाद और नसीब के जगह कर्मवाद पर भरोसा करने की नसीहत दी जाएं। धर्म और ईश्वर के नाम पर लूटने व नारी अस्मिता के साथ खेलने वाले इन तथाकथित बाबाओं के लिए कठोर से कठोर सजा का प्रावधान किया जाएं।



live aaryaavart dot com

- देवेंद्रराज सुथार, 
बागरा, जालोर, राजस्थान। 
मोबाइल - 8107177196
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में अध्ययनरत। 

बिहार विशेष : गांव, गोईठा और गोवार

$
0
0
bihar-villege-goitha-gowar
बी एन वाई न्यूज़ , औरंगाबाद जिले के गोह विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक रामशरण यादव का संबंध सीपीआई से था। वे सामाजिक आंदोलनों से भी जुड़़े हुए थे। यादव जाति में समाज सुधार के प्रमुख नेता भी थे। 1990 के आसपास की बात होगी। वे हमारे ओबरा प्रखंड के डिहरा में आए थे। उनकी रिश्‍तेदारी गांव में थी। हमारी उनसे मुलाकात हुई। अपने आंदोलनों के संबंध में उन्‍होंने बताया कि जब हम लोग सामाजिक कार्यों के लिए निकलते थे तो ठहरने की कोई दिक्‍कत नहीं थी। जिस घर की दीवार गोबर ठोकल मिल गया, उस घर में ठहर लेते थे। क्‍योंकि जिस दीवार पर गोबर होगा, वह यादव का ही होगा। उनका यह अनुभव करीब 50 साल पहले का होगा। लेकिन 50 साल बाद भी गोबर और दीवार का संबंध बदला नहीं है। दीवार मिट्टी की जगह ईंट की बन गयी है। खपड़ैल मकान की जगह छत बन गयी है। घर यादव का है तो गोबर से पीछा नहीं छूटा है। कुकिंग गैस भले घर-घर तक पहुंचने का दावा किया जा रहा है, लेकिन गोईठा का इस्‍तेमाल बंद नहीं हुआ।

अपने नये प्रोजेक्‍ट मासिक पत्रिका ‘काराकाट न्‍यूज’ को लेकर 22 दिसंबर को हम बिक्रमगंज गये हुए थे। वीरेंद्र यादव न्‍यूज के साथ जनवरी से ‘काराकाट न्‍यूज’ भी प्रकाशित कर रहे हैं। इस पत्रिका का विषय काराकाट लोकसभा क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक परिवेश ही होगा। हालांकि औरंगाबाद व रोहतास जिले के अन्‍य प्रखंडों से जुड़ी खबरों को भी जगह दी जा सकती है। बिक्रमगंज की नोनहर पंचायत में एक गांव है पड़रिया। काई नदी के पास स्थित है और इंटर कॉलेज से करीब दो किलो मीटर की दूरी पर होगा। बिक्रमगंज प्रमुख संजय सिंह लाली से मुलाकात के बाद हम पड़रिया गये थे। इस गांव में पानी टंकी से पानी की आपूर्ति सुबह-शाम की जाती है, लेकिन हर घर में चापाकल भी है। बिजली की आपूर्ति भी होती है। यह गांव यादव व कोईरी का बहुलता वाला है। दानापुर के बीएस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. राम अशीष सिंह का गांव पड़रिया ही है।

गांव में ही कुछ लोगों से मुलाकात हुई। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। आसपास का पूरा माहौल पशु-पालन का था। बगल की जमीन पर भैंस बांधी हुई थी। दीवार पर गोर्इठा भी ठोका हुआ था। बांस और तरकुल की भरमार है। गांव के रास्‍ते में शिशम के पेड़ का पूरा जंगल है। मुहल्‍ला यादव का था, इसलिए चर्चा का विषय भी लालू यादव ही थे। गांव में कभी-कभार अखबार भी आ जाता है। कोईरी जाति सब्‍जी की खेती के साथ मुर्गी फॉर्म के पेशे से तेजी से बढ़ रही है। गांव में कई बड़े-बड़े मुर्गी फॉर्म भी बने हुए हैं।

गांवों में पानी, सड़क, बिजली और अन्‍य सुविधाएं पहुंच रही हैं और पहुंचाने की कोशिश जारी है। पड़रिया शहर के नजदीक है, इसलिए कुछ ज्‍यादा सुविधाएं दिखती भी हैं। सरकार गांवों को स्‍मार्ट बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन प्रतिभाओं को रोकने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है। हर आदमी उच्‍च शिक्षा, बेहतर रोजगार और संतोषजनक जीवन शैली के लिए गांवों से शहर और शहरों से महानगरों की ओर पलायन कर रहा है। पड़रिया एक उदाहरण है। बिहार के हर गांव की यही हालत है। गांव का नाम बदल जाता है, चौहदी बदल जाती है, भूगोल बदल जाता है, लेकिन संस्‍कार और संस्‍कृति नहीं बदल रही है। गांव, गोईठा और गोवार (इसे जाति के बजाये समाज की समग्रता के रूप में देंखे) का संबंध 50 वर्षों में भी नहीं बदला है। जिस व्‍यक्ति या समा‍ज में बदलाव की लालसा है, वह खुद गांव में वापस लौटने को तैयार नहीं है। यही गांव-गांव की कहानी है।

नववर्ष की राह: शांति की चाह

$
0
0
new-year-nd-peace
नया वर्ष है क्या? मुड़कर एक बार अतीत को देख लेने का स्वर्णिम अवसर। क्या खोया, क्या पाया, इस गणित के सवाल का सही जवाब। आने वाले कल की रचनात्मक तस्वीर के रेखांकन का प्रेरक क्षण। क्या बनना, क्या मिटाना, इस अन्वेषणा में संकल्पों की सुरक्षा पंक्तियों का निर्माण। ‘आज’, ‘अभी’, ‘इसी क्षण’ को पूर्णता के साथ जी लेने का जागृत अभ्यास। नयेवर्ष की शुरूआत हर बार एक नया सन्देश, नया संबोध, नया सवाल लेकर आती है। एक सार्थक प्रश्न यह भी है कि व्यक्ति ऊर्जावान ही जन्म लेता है या उसे समाज ऊर्जावान बनाता है? तब मस्तिष्क की सुन्दरता का क्या अर्थ रह जाता है। मनुष्य जीवन की उपलब्धि है चेतना, अपने अस्तित्व की पहचान। इसी आधार पर वस्तुपरकता से जीवन में आनन्द। अपनी अपार आंतरिक सम्पदा से हम वर्षभर ऊर्जावान बने रह सकते हैं। लेकिन इसके लिये हमारी तैयारी भी चाहिए और संकल्प भी। इस वर्ष का हमारा भी कोई-न-कोई संकल्प हो और यह संकल्प हो सकता है कि हम स्वयं शांतिपूर्ण जीवन जीये और सभी के लिये शांतिपूर्ण जीवन की कामना करें। ऐसा संकल्प और ऐसा जीवन सचमुच नये वर्ष को सार्थक बना सकते हैं।

आज हर व्यक्ति चाहता है - नया वर्ष मेरे लिये शुभ, शांतिपूर्ण एवं मंगलकारी हो। संसार में छः-सात अरब मनुष्यों में कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं होगा जो शांति न चाहता हो। मनुष्य ही क्यों पशु-पक्षी, कीट-पंतगें आदि छोटे-से-छोटा प्राणी भी शांति की चाह में बेचैन रहता है। यह ढ़ाई अक्षर का ऐसा शब्द है जिसे संसार की सभी आत्माएं चाहती हैं। यजुर्वेद में प्रार्थना के स्वर है कि स्वर्ग, अंतरिक्ष और पृथ्वी शांति रूप हो। जल, औषधि वनस्पति, विश्व-देव, परब्रह्म और सब संसार शांति का रूप हो। जो स्वयं साक्षात् स्वरूपतः शांति है वह भी मेरे लिए शांति करने वाली हो।’’ यह प्रार्थना तभी सार्थक होगी जब हम संयम, संतोष व्रत को अंगीकार करेंगे, क्योंकि सच्ची शांति भोग में नहीं त्याग में है। मनुष्य सच्चे हृदय से जैसे-जैसे त्याग की ओर अग्रसर होता जाता है वैसे-वैसे शांति उसके निकट आती जाती है। शांति का अमोघ साधन है-संतोष। तृष्णा की बंजर धरा पर शांति के सुमन नहीं खिल सकते हैं। मानव शांति की चाह तो करता है पर सही राह पकड़ना नहीं चाहता है। सही राह को पकड़े बिना मंजिल कैसे मिल सकती है। शांति की राह पकड़े बिना शांति की प्राप्ति कैसे हो सकेगी। महात्मा गांधी ने शांति की चाह इन शब्दों में की है कि मैं उस तरह की शांति नहीं चाहता जो हमें कब्रों में मिलती है। मैं तो उस तरह की शांति चाहता हूं जिसका निवास मनुष्य के हृदय में है। मनुष्य के पास धन है, वैभव है, परिवार है, मकान है, व्यवसाय है, प्रिफज है, कुलर है, कम्प्यूटर है, कार है। जीवन की सुख-सुविधाओं के साधनों में भारी वृद्धि होने के बावजूद आज राष्ट्र अशांत है, घर अशांत है, यहां तक कि मानव स्वयं अशांत है। चारों ओर अशांति, घुटन, संत्रास, तनाव, कुंठा एवं हिंसा का साम्राज्य है। ऐसा क्यों है? धन और वैभव मनुष्य की न्यूनतम आवश्यकता-रोटी, कपड़ा और मकान सुलभ कर सकता है। आज समस्या रोटी, कपड़ा, मकान की नहीं, शांति की है। शांति-शांति का पाठ करने से शांति नहीं आएगी। शांति आकाश मार्ग से धरा पर नहीं उतरेगी। शांति बाजार, फैक्ट्री, मील, कारखानों में बिकने की वस्तु नहीं है। शांति का उत्पादक मनुष्य स्वयं है इसलिए वह नैतिकता, पवित्रता और जीवन मूल्यों को विकसित करे। 

new-year-nd-peace
पाश्चात्य विद्वान टेनिसन ने लिखा है कि शांति के अतिरिक्त दूसरा कोई आनंद नहीं है। सचमुच यदि मन व्यथित, उद्वेलित, संत्रस्त, अशांत है तो मखमल, फूलों की सुखशय्या पर शयन करने पर भी नुकीले तीखे कांटे चूभते रहेंगे। जब तक मन स्वस्थ, शांत और समाधिस्थ नहीं होगा तब तक सब तरह से वातानुकूलित कक्ष में भी अशांति का अनुभव होता रहेगा। शांति का संबंध चित्त और मन से है। शांति बाहर की सुख-सुविधा में नहीं, व्यक्ति के भीतर मन में है। मानव को अपने भीतर छिपी अखूट संपदा से परिचित होना होगा। आध्यात्मिक गुरु चिदानंद के अनुसार शांति का सीधा संबंध हमारे हृदय से है सहृदय होकर ही शांति की खोज संभव है। शांतिपूर्ण जीवन के रहस्य को प्रकट करते हुए महान दार्शनिक संत आचार्यश्री महाप्रज्ञ कहते हैं-‘‘यदि हम दूसरे के साथ शांतिपूर्ण रहना चाहते हैं तो हमारी सबसे पहली आवश्यकता होगी-अध्यात्म की चेतना का विकास। ‘हम अकेले हैं’, ‘अकेले आए हैं’-हमारे भीतर यह संस्कार, यह भावना जितनी परिपक्व होगी, हम उतना ही परिवार या समूह के साथ शांतिपूर्ण जीवन जी सकेंगे। समयासार का यह सूत्र शांतिपूर्ण सहवास का भी महत्त्वपूर्ण सूत्र है। अध्यात्म की उपेक्षा कर, धर्म की उपेक्षा कर कोई भी व्यक्ति शांतिपूर्ण जीवन नहीं जी सकता। 
शांति के लिए सबसे बड़ी जरूरत है-मानवीय मूल्यों का विकास। सत्य, अहिंसा, पवित्रता और नैतिकता जैसे शाश्वत मूल्यों को अपनाकर ही हम वास्तविक शांति को प्राप्त कर सकते हैं। हर मनुष्य प्रेम, करुणा, सौहार्द, सहिष्णुता, समता, सहृदयता, सरलता, सजगता, सहानुभूति, शांति, मैत्री जैसे मानवीय गुणों को धारण करे। अपना समय, श्रम और शक्ति इन गुणों के अर्जन में लगाये। ऐसे प्रयत्न वांछित है जो व्यक्ति को शांत, उत्तरदायी व समाजोन्मुखी बना सके। वर्तमान जीवन पद्धति में पारस्परिक दूरी, कथनी और करनी में जो अन्तर पैदा हो गया है उसपर नियंत्रण स्थापित किया जाए। जब तक मनुज जीवन की हंसती-खिलती ऊर्वर वसुन्धरा पर शांति के बीज, स्नेह का सिंचन, अनुशासन की धूप, नैतिकता की पदचाप, मैत्री की हवा, निस्वार्थता का कुशल संरक्षण/संपोषण नहीं देगा तब तक आत्मिक सुख-शांति की खेती नहीं लहराएगी। शांति का शुभारंभ वहीं से होता है जहां से महत्वाकांक्षा का अंत होता है। चाणक्य नीति के अनुसार शांति जैसा तप नहीं है, संतोष से बढ़कर सुख नहीं है, तृष्णा से बढ़कर रोग नहीं है और दया के बढ़कर धर्म नहीं है।’’ इसलिए शांति की स्थापना के लिए संयम की साधना जरूरी है। शांति सभी धर्माें का हार्द है। इसके लिए हिंदू गीता पढ़ता है, मुसलमान कुरान। बौद्ध धम्मपद पढ़ता है, जैन आगम-शास्त्र। सिक्ख गुरुग्रंथ साहिब पढ़ता है, क्रिश्चियन बाइबिल। नाम, रूप, शब्द, सिद्धांत, शास्त्र, संस्कृति, संस्कार की विभिन्नताओं के बावजूद साध्य सबका एक है-शांति की खोज। नया वर्ष इस खोज को सार्थक आयाम देते हुए हर इंसान को सच्चा इंसान बनाये, यही काम्य है। 

शांति केवल शब्द भर नहीं है, यह जीवन का अहम् हिस्सा है। शांति की इच्छा जहां भी, जब भी, जिसके द्वारा भी होगी पवित्र उद्देश्य और आचरण भी साथ होगा। शांति की साधना वह मुकाम है जहां मन, इन्द्रियां और कषाय तपकर एकाग्र और संयमित हो जाते हैं। जिंदगी से जुड़ी समस्याओं और सवालों का समाधान सामने खड़ा दिखता है तब व्यक्ति बदलता है बाहर से भी और भीतर से भी क्योंकि बदलना ही शांति की इच्छा का पहला सोपान है और बदलना या बदलाव ही नववर्ष के संकल्पों की बुनियाद भी है। वर्षों तक मंदिर की सीढ़ियां चढ़ी, घंटों-घंटों हाथ जोड़े, आंखे बंद किए खड़े रहे, प्रवचन सुनें, प्रार्थनाएं कीं, ध्यान और साधना के उपक्रम किए, शास्त्र पढ़े, फिर भी अगर मन शांत न हुआ, चिंतन शांत न हुआ तो समझना चाहिए कि सारा पुरुषार्थ मात्र ढ़ोंग था, सबके बीच स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने का बहाना था। नववर्ष कोरा बहाना नहीं, बल्कि दर्पण बने ताकि हम अपनी असलियत को पहचान सकंे, क्योंकि जो स्वयं को जान लेता है, उसे जीवन के किसी भी मोड़ पर जागतिक प्रवंचनाएं ठग नहीं सकती।

शांति हमारी संस्कृति है। संपूर्ण मानवीय संबंधों की व्याख्या है। यह जब भी खंडित होती है, आपसी संबंधों में दरारे पड़ती हैं, वैचारिक संघर्ष पैदा होते हैं। निजी स्वार्थों को प्रमुखतः मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को सही और दूसरे को गलत ठहराता है। काॅलटन ने कहा है शांति आत्मा का सान्ध्यकालीन तारा है, जबकि सद्गुण इसका सूर्य है। ये दोनों कभी एक-दूसरे से पृथक नहीं होते हैं। इससे ही आत्मिक सुखानूभूति एवं सच्ची शांति फलित होती है। विकास की समस्त संभावनाओं का राजमार्ग है शांति। शांति ही जीवन का परम लक्ष्य है और इसमें सुख और आनंद का वास है। जरूरी है हम स्वयं के द्वारा स्वयं को देखें, जीवनमूल्यों को जीएं और उनसे जुड़कर शांति के ऐसे परकोटे तैयार करें जो जीवन के साथ-साथ हमारे आत्मिक गुणों को भी जीवंतता प्रदान करें।यही नये वर्ष का सच्चा स्वागत है।      





new-year-nd-peace

(ललित गर्ग)
60, मौम विहार, तीसरा माला, 
डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली- 11 0051
फोन: 22727486ए मोबाईल: 9811051133

बिहार : 13 वार्ड के सदस्यों ने 31 जनवरी 2018 तक पोआरी को किया ओडीएफ करने का निश्चय

$
0
0
  • 160 घरों में   शौचालय बनाना है और ओडीएफ हो जाना है

bihar-toilet-harnaut
हरनौत  (नालंदा). नालंदा  जिले में  है हरनौत प्रखंड. इस प्रखंड में है पोआरी पंचायत.  इस पंचायत की  मुखिया हैं  ज्योति कुमारी. यहां  पर  13 वार्ड है. मुखिया  जी के पति हैं   सुनील कुमार. मुखिया पति सुनील कुमार की अध्यक्षता में वार्ड सदस्यों की बैठक की गयी.संचालन जीवा के कार्यकर्ता अरविंद कुमार ने किया. इस महत्वपूर्ण बैठक में 13 वार्ड सदस्य 2 पंच और 1 विकास मित्र शामिल रहे.कुल 11हजार घरों में रहने वालों में 160 घरों में शौचालय नहीं है. 31 जनवरी 2018 तक 160 शौचालय निर्माण करने की कार्ययोजना बनायी गयी है. इसमें वार्ड नं.1  की वार्ड सदस्या ललिता देवी हैं . वार्ड नं. 2 का वार्ड सदस्य रामू कुमार हैं.वार्ड नं.3  का वार्ड का सदस्य हैं सिक्कू कुमार. वार्ड नं. 4 की वार्ड का सदस्या हैं संगीता देवी. वार्ड नं. 5 की वार्ड का सदस्या है दीलिप तांती. वार्ड नं. 6 की वार्ड का सदस्या हैं संगीता देवी. वार्ड नं. 7 का वार्ड का सदस्य हैं धीरज कुमार. वार्ड नं.8 का वार्ड सदस्य हैं राजीव रंजन. वार्ड नं.9 का वार्ड सदस्य हैं श्रीकृष्णा कांत. वार्ड नं.10 की वार्ड सदस्या उषा देवी हैं. बढ़चढ़ कर हिस्सा लिये.बबलू मांझी हैं विकास मित्र.उन्होंने भी विचार व्यक्त किये. मुखिया पति सुनील कुमार ने कहा कि सीएम नीतीश कुमार के सात निश्चय के तहत हर घर नल का जल पहुंचाने की व्यवस्था की गयी.जलार्पूति केंद्र से पानी मिलेगा.दो-तीन दिनों में लोगों को नल से जल मिलने लगेगा.

बिहार : हुजूरमन कम से कम दिव्यांग को सुन ही लीजिए

$
0
0
divyang-apeal-to-nitish
हरनौत (नालंदा). हुजूरमन कम से कम राजो राम नामक दिव्यांग को सुन लीजिए.इनका न बाल और न ही बच्चा है. हां, और तो और जीवनभर साथ निभाने का वादा करने वाली अर्द्धागिनी भी साथ छोड़कर चली गयी. वे अकेले से दुकेले हो गये और अब तन्हा रह गये. तब ऐसी परिस्थिति में अनुज उमेश राम सामने आकर  से दिव्यांग भाई की सुध ले रहे हैं. नालंदा जिले में हरनौत प्रखंड हैं लोहरा ग्राम पंचायत.इस पंचायत में है लोगरा गांव. इसी गांव में रहते हैं स्व.श्रीराम के पुत्र राजो राम.जब 9 साल के थे तब मोतियाबिंद से राजो राम प्रभावित हो गये. काफी खर्च किये पर ठीक नहीं हो सके.आँखों से दिव्यांग हो गये.  तब अनुज उमेश राम और उनकी पत्नी कंचन देवी सामने आयी.गरीबी के दलदल में परिवार के 7 बच्चे हैं. 4 बच्चे मर गये. 3 लड़के जीर्वित हैं. उमेश राम कहते हैं कि भाई साहब की शादी के 6 साल हुई थी कि भाभी की मृत्यु हो गयी. कोई संतान नहीं हुआ. भइया की परवरिश कर रहा हूं. भाभी के मरे 10 हो गया है. उमेश राम कहते हैं कि हमलोग 9 हजार रू.देकर पट्टा पर 1बीघा जमीन लेकर खेती करते हैं. गरीबी कमरभर है.किसी तरह से गृहस्थी चल रही हैं.लोहरा पंचायत के मुखिया ने टोला वाइज शौचालय निर्माण कराया गया है. इसमें 'दुसाध'जाति के लोगों का शौचालय बना ही नहीं.पासवान और राम के सैकड़ों परिवारों का शौचालय बना ही नहीं है. यहां के लोग खुले में शौच कर रहे हैं.
Viewing all 74336 articles
Browse latest View live




Latest Images