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सरकार ने लोकपाल खोज समिति गठित की

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नयी दिल्ली, 27 सितंबर, केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार रोधी संस्था लोकपाल के अध्यक्ष और इसके सदस्यों के नामों की सिफारिश करने के लिए आठ सदस्यीय एक खोज समिति का गुरूवार को गठन किया। समिति की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई करेंगी। कार्मिक मंत्रालय द्वारा जारी एक आधिकारिक आदेश के मुताबिक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की पूर्व अध्यक्ष अरूंधति भट्टाचार्य, प्रसार भारती के अध्यक्ष ए सूर्य प्रकाश और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) प्रमुख ए एस किरन कुमार खोज समिति के सदस्य हैं। उनके अलावा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सखा राम सिंह यादव, गुजरात पुलिस के पूर्व प्रमुख शब्बीर हुसैन एस खंडवावाला, राजस्थान कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ललित के. पवार और पूर्व सॉलीसीटर जनरल रंजीत कुमार समिति के अन्य सदस्यों में शामिल हैं। आठ सदस्यीय खोज समिति को लोकपाल और इसके सदस्यों की नियुक्ति के लिए नामों की एक सूची की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया है। कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने घटनाक्रम के बारे में पूछे जाने पर बताया, ‘‘लोकपाल चयन की प्रक्रिया लोकपाल अधिनियम में निर्धारित दिशानिर्देशों के मुताबिक आगे बढ़ रही है।’’ 

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह कदम काफी मायने रखता है क्योंकि सरकार ने खोज समिति के गठन के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया है जबकि लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली लोकपाल चयन समिति की बैठकों का बहिष्कार किया है।  उन्होंने कहा कि लोकपाल के गठन की दिशा में खोज समिति एक बड़ा कदम है। समिति जल्द ही अपना कामकाज शुरू करेगी। लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम को 2013 में पारित किए जाने के चार साल बाद खोज समिति का गठन करने का फैसला किया गया है। खड़गे इस आधार पर चयन समिति की बैठकों का बहिष्कार करते आ रहे थे कि उन्हें समिति का पूर्णकालिक सदस्य नहीं बनाया गया था। उन्होंने चयन समिति की बैठकों में शामिल होने के लिए ‘‘विशेष आमंत्रित’’ के तौर पर इस साल छह मौकों (एक मार्च, 10 अप्रैल, 19 जुलाई, 21 अगस्त, चार सितंबर और 19 सितंबर) पर उन्हें दिए गए न्यौते को खारिज कर दिया। 

गौरतलब है कि खड़गे ने सरकार से लोकपाल अधिनियम में संशोधन करने का अनुरोध किया था, ताकि लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को चयन समिति में शामिल किया जा सके और इस सिलसिले में एक अध्यादेश लाया जाए।  दरअसल, लोकपाल अधिनियम के मुताबिक लोकसभा में विपक्ष के नेता ही चयन समिति के सदस्य हो सकते हैं जबकि खड़गे को यह दर्जा हासिल नहीं है, इसलिए वह समिति का हिस्सा नहीं हैं।  लोकपाल चयन समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। इसके सदस्यों में लोकसभा स्पीकर, निचले सदन (लोकसभा) में विपक्ष के नेता, देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) या उनके द्वारा नामित शीर्ष न्यायालय के कोई न्यायाधीश और राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाने वाले एक प्रख्यात न्यायविद या अन्य शामिल हैं। 

न्यायालय ने कहा; व्यभिचार अब अपराध नहीं, महिला पति की संपत्ति नहीं

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नयी दिल्ली, 27 सितंबर, व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया और कहा कि यह महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाता है और इस प्रावधान ने महिलाओं को ‘‘पतियों की संपत्ति’’ बना दिया था। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त कर दिया। शीर्ष अदालत ने इस धारा को स्पष्ट रूप से मनमाना, पुरातनकालीन और समानता के अधिकार तथा महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर. एफ. नरिमन, न्यायमूर्ति ए. एम.खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने एकमत से कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है। संविधान पीठ ने जोसेफ शाइन की याचिका पर यह फैसला सुनाया। यह याचिका किसी विवाहित महिला से विवाहेत्तर यौन संबंध को अपराध मानने और सिर्फ पुरूष को ही दंडित करने के प्रावधान के खिलाफ दायर की गयी थी। व्यभिचार को प्राचीन अवशेष करार देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि मानव जीवन के सम्मानजनक अस्तित्व के लिए स्वायत्ता स्वभाविक है और धारा 497 महिलाओं को अपनी पसंद से वंचित करती है। प्रधान न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि व्यभिचार आपराधिक कृत्य नहीं होना चाहिए लेकिन इसे अभी भी नैतिक रूप से गलत माना जाएगा और इसे विवाह खत्म करने तथा तलाक लेने का आधार माना जाएगा। घरों को तोड़ने के लिये कोई सामाजिक लाइसेंस नहीं मिल सकता। भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार यदि कोई पुरूष यह जानते हुये भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह परस्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा। यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा। इस अपराध के लिये पुरूष को पांच साल की कैद या जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान था।  शाइन की ओर से दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि कानून तो लैंगिक दृष्टि से तटस्थ होता है लेकिन धारा 497 का प्रावधान पुरूषों के साथ भेदभाव करता है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 :समता के अधिकारः , 15 : धर्म, जाति, लिंग, भाषा अथवा जन्म स्थल के आधार पर विभेद नहींः और अनुच्छेद 21:दैहिक स्वतंत्रता का अधिकारः का उल्लंघन होता है। न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति खानविलकर ने अपने फैसले में कहा, ‘‘विवाह के खिलाफ अपराध से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 को हम असंवैधानिक घोषित करते हैं।’’ न्यायमूर्ति नरिमन ने धारा 497 को पुरातनकालीन बताते हुए प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति खानविलकर के फैसले से सहमति जतायी। उन्होंने कहा कि दंडात्मक प्रावधान समानता का अधिकार और महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन है। वहीं न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि धारा 497 महिला के सम्मान को नष्ट करती है और महिलाओं को गरिमा से वंचित करती है। पीठ में शामिल एकमात्र महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने अपने फैसले में कहा कि धारा 497 संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और इस प्रावधान को बनाए रखने के पक्ष में कोई तर्क नहीं है। अपनी और न्यायमूर्ति खानविलकर की ओर से फैसला लिखने वाले प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने कहा कि व्यभिचार महिला की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाती है और व्यभिचार चीन, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपराध नहीं है। उन्होंने कहा, संभव है कि व्यभिचार खराब शादी का कारण नहीं हो, बल्कि संभव है कि शादी में असंतोष होने का नतीजा हो। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि महिला के साथ असमान व्यवहार संविधान के कोप को आमंत्रित करता है। उन्होंने कहा कि समानता संविधान का शासकीय मानदंड है। संविधान पीठ ने कहा कि संविधान की खूबसूरती यह है कि उसमें ‘‘मैं, मेरा और तुम’’ शामिल हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं के साथ असमानता पूर्ण व्यवहार करने वाला कोई भी प्रावधान संवैधानिक नहीं है और अब यह कहने का वक्त आ गया है कि ‘पति महिला का स्वामी नहीं है।’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि धारा 497 जिस प्रकार महिलाओं के साथ व्यवहार करता है, यह स्पष्ट रूप से मनमाना है। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई सामाजिक लाइसेंस नहीं हो सकता है जो घर को बर्बाद करे परंतु व्यभिचार आपराधिक कृत्य नहीं होना चाहिए। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि धारा 497 को असंवैधानिक घोषित किया जाये क्योंकि व्यभिचार स्पष्ट रूप से मनमाना है। पीठ ने कहा कि व्यभिचार को विवाह विच्छेद के लिये दीवानी स्वरूप का गलत कृत्य माना जा सकता है।

प्रधानमंत्री जो परिवर्तन लाये हैं, उससे देश का नाम रोशन हुआ है - नायडू

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रांची, 27 सितंबर, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने गुरूवार को यहां कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वच्छता समेत विभिन्न मोर्चों पर देश में जो क्रांतिकारी परिवर्तन लाये हैं उससे पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन हुआ है। उपराष्ट्रपति ने यहां नामकुम इलाके में ‘स्वच्छता ही सेवा’ कार्यक्रम में अपने संबोधन में यह बात कही। उन्होंने कहा कि हमारा देश सबसे पहले ‘क्लीन इंडिया’ होना चाहिए। भारत में स्वच्छता अभियान से यहां के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आये हैं और इसकी चर्चा पूरे विश्व में हो रही है। उन्होंने कहा कि वह हाल में अनेक देशों की यात्रा पर गये थे और उन सभी स्थानों पर भारत में हो रहे परिवर्तनों की चर्चा और प्रशंसा हो रही थी। नायडू ने अपने भाषण में मनुष्य द्वारा मल उठाने की कुप्रथा पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा “इस अमानवीय प्रथा को तत्काल समाप्त होना ही चाहिये। कानून होते हुए भी इस प्रथा का जारी रहना हमारे समाज की नैतिकता और कानून के प्रति शासन की प्रतिबद्धता पर प्रश्न खड़े करता है।’’  उन्होंने कहा कि नाली साफ करने वाले सफाईकर्मियों की मृत्यु, हमारे सभ्य होने पर संशय पैदा करती है। नायडू ने कहा कि स्वच्छ जनांदोलन, एक कृतज्ञ राष्ट्र की अपने आदर्श पुरुष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि है। उन्होंने कहा कि “गांधी जी ने स्वच्छता को शुभता और ऐश्वर्य का पर्याय माना। एक समाज सुधारक के रूप में, गांधी जी का मानना था स्वच्छता राजनैतिक आजादी से महत्वपूर्ण है।” उपराष्ट्रपति ने आयुष्मान भारत योजना की सराहना करते हुए कहा “रोग के उपचार से बढ़कर रोग का प्रतिकार, स्वास्थ्य की अधिक प्रभावी गारंटी है। रोगों के प्रतिकार के लिये सामुदायिक और निजी स्वच्छता, शुचिता, सस्ता और प्रभावी माध्यम है।” यूनीसेफ के अध्ययन का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि “स्वच्छता और शुचिता से एक परिवार प्रतिवर्ष उपचार आदि पर होने वाले 50,000 रुपये के खर्च की बचत कर सकता है। भारत में ही प्रतिवर्ष एक लाख बच्चे अस्वच्छता के कारण डायरिया जैसी बीमारी के शिकार हो जाते हैं।’ नायडू ने विश्व बैंक के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि “मलिनता के कारण प्रतिवर्ष हमारी विकास दर प्रभावित होती है।” उपराष्ट्रपति ने आह्वान किया “यदि हममें से प्रत्येक यह संकल्प ले कि अपने घर, कार्यालय, पार्कों या सार्वजनिक स्थानों पर बिखरे प्लास्टिक के कुछ ही थैलों को कूड़ेदान में डालेगा, तो आप पायेंगे कि आपका यह छोटा सा कार्य ही प्रेरणा बनकर शनै: शनै: समाज में सामुदायिक स्वच्छता का संस्कार बन जायेगा। एशियन डेवेलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) द्वारा झारखंड में किये गये अध्ययन का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा “महिला समूहों में सामुदायिक और निजी शुचिता के प्रति जागरूकता और आग्रह बढ़ा है। महिलायें अपने परिवारों में भी शुचिता को लेकर जागरूक हुई हैं। गत वर्षों में दस्त के मामलों में 23 प्रतिशत और अनीमिया के मामलों में 10 प्रतिशत की कमी आयी है। ये निष्कर्ष भविष्य के प्रति आशान्वित करते हैं।” शौचालयों के रखरखाव के विषय में उपराष्ट्रपति ने कहा “शौचालयों का रखरखाव, मरम्मत और गुणवत्ता इस जन आंदोलन की स्थायी सफलता के लिये आवश्यक हैं। ऐसी शिकायतें मिली हैं कि शौचालय सिर्फ सरकारी कागजों पर ही हैं, वास्तविकता में नहीं। इस संशय को दूर करने के लिये नवनिर्मित शौचालयों को वेबसाइट पर अपलोड किया जा रहा है।”  नायडू ने कहा, ‘‘हमने 2019 में राष्ट्रपिता बापू की 150वीं जयंती तक स्वच्छ भारत के स्वप्न को साकार करने का संकल्प लिया है और यह संकल्प ही हमारे स्वच्छ जनांदोलन की प्रेरणा है।’’

मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं, इसे पांच सदस्यीय पीठ को भेजने से इंकार

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नयी दिल्ली, 27 सितंबर, उच्चतम न्यायालय ने ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं’ के बारे में शीर्ष अदालत के 1994 के फैसले को फिर से विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से गुरुवार को इनकार कर दिया। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ ने 2:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि दीवानी वाद का फैसला सबूतों के आधार पर होना चाहिए और पहले आये फैसले की यहां कोई प्रासंगिकता नहीं है। प्रधान न्यायाधीश मिश्रा और अपनी ओर से फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा कि उसे देखना होगा कि 1994 में पांच सदस्यीय पीठ ने किसी संदर्भ में फैसला दिया था। उन्होंने कहा कि मौजूदा मामले में 1994 का फैसला प्रासंगिक नहीं है क्योंकि उक्त निर्णय भूमि अधिग्रहण के संबंध में सुनाया गया था। हालांकि न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर अपने फैसले में पीठ के अन्य दो सदस्यों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना है कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है, इस विषय पर फैसला धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, उसपर गहन विचार की जरूरत है। न्यायमूर्ति नजीर ने मुसलमानों के दाऊदी बोहरा समुदाय में बच्चियों के खतने पर न्यायालय के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मौजूदा मामले की सुनवाई बड़ी पीठ द्वारा की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि भूमि विवाद पर दीवानी वाद की सुनवाई नये सिरे से गठित तीन सदस्यीय पीठ 29 अक्टूबर को करेगी क्योंकि वर्तमान खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश मिश्रा दो अक्टूबर को सेवा निवृत्त हो रहे हैं। वर्तमान में यह मुद्दा उस वक्त उठा जब प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ अयोध्या मामले में 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने राम जन्म्भूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर अपने फैसले में जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया था। अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाये।

मोदी ने देशवासियों का अपमान किया : राहुल गांधी

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सतना, 27 सितंबर, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यहां गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देशवासियों का अपमान करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि इस देश को वह बना रहे हैं, उनके (मोदी) पहले हाथी सो रहा था, उन्होंने (मोदी) आकर जगाया। ऐसा कहकर उन्होंने इस देश के वासियों का अपमान किया है। मध्यप्रदेश के दो दिनी दौरे पर पहुंचे राहुल ने चित्रकूट के कामतानाथ मंदिर में पूजा करने के बाद में एक नुक्कड़ सभा को और सतना में जनसभा को संबोधित किया। कांग्रेस प्रमुख ने कहा, "इस देश को किसी प्रधानमंत्री, कांग्रेस या भाजपा ने नहीं बनाया, बल्कि यहां की जनता, किसानों, नौजवानों, माताओं, बहनों ने खून-पसीना बहाकर हर रोज संघर्ष करके बनाया है। अगर हम किसानों का कर्ज माफ करते हैं, नौजवानों को रोजगार देते हैं, महिलाओं की सुरक्षा करते हैं और गरीबों का विकास करते हैं तो उन्हें कोई तोहफा नहीं देते, बल्कि उनका वाजिब हक देते हैं।"उन्होंने कहा, "आप खून-पसीना बहाते हैं, हर रोज संघर्ष करते हैं। आपकी मेहनत को अनदेखा कर अगर प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश को वह बना रहे हैं तो यह देश की मेहनतकश जनता का अपमान है।"राहुल ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि उन्होंने हर व्यक्ति को 15 लाख रुपये देने और हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, जो झूठा निकला। कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे कहा, "इस समय देश में दो मशीनें चलती हैं। एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झूठ बोलने की मशीन और दूसरी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज िंसंह चौहान की घोषणाओं की मशीन। इन्होंने इन मशीनों में अपने उत्पादन से देश की जनता का भरोसा खो दिया है।"

राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार सूट-बूट वालों की सरकार है। वे 15 बड़े लोगों का एक लाख 30 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर देते हैं, लेकिन किसानों का कर्ज माफ करने से इनकार कर देते हैं। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, "यह सही है कि राज्य के मुख्यमंत्री चौहान ने प्रदेश को कई मामलों में पीछे छोड़ दिया है, राज्य किसान आत्महत्या, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, बदहाल शिक्षा व्यवस्था के मामले में देश में सबसे आगे है।"राहुल ने कहा, "इस राज्य में व्यापम घोटाले ने शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया है, यहां ई-टेंडिरिंग का सबसे बड़ा घोटाला हुआ है। लेकिन राज्य में कांग्रेस की सरकार आते ही किसानों के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे, युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए सरकार पूरा दम लगा देगी और व्यापारियों का राहत देने के लिए जीएसटी की दर कम की जाएगी।"महिलाओं के खिलाफ अपराध की बढ़ती घटनाओं और कई मामलों में भाजपा नेताओं के नाम सामने आने पर 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ'नारे का जिक्र करते हुए कांग्रेस प्रमुख ने प्रधानमंत्री पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के एक भाजपा विधायक पर युवती के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा, उस पर प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं बोला, बल्कि उस विधायक को बचाने की कोशिश की गई। वे नारा तो देते हैं, बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का, जबकि होना चाहिए बेटी पढ़ाओ, मगर भाजपा के विधायकों से बचाओ। राहुल ने महिलाओं से वादा किया कि उनकी सरकार आते ही महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान देगी, उन्हें किसी तरह का डर नहीं होगा। कांग्रेस का मुख्यमंत्री इन सारे हालात को बदल देगा।

उन्होंने राफेल खरीदी का मुद्दा उठाते हुए कहा, "राफेल लड़ाकू विमान की खरीदी में गड़बड़ी हुई है, मोदी ने अपने मित्र अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने के लिए भारत सरकार की कंपनी 'हिंदुस्तान एरेनोटिकल लिमिटेड' (एचएएल) से ठेका छीनकर एक प्राइवेट कंपनी, अंबानी की नई कंपनी को दिलाया है, कांग्रेस काल में यह विमान 526 करोड़ रुपये का था, मगर अब इसे प्रति विमान 1600 करोड़ रुपये की दर पर खरीदा जा रहा है।"कांग्रेस प्रमुख कहा, "देश का चौकीदार चोरी कर रहा है, यही कारण है कि उनकी देश के युवाओं की आंख में आंख मिलाने की हिम्मत नहीं पड़ रही है।"राहुल ने कहा कि सरकार राफेल का दाम बताने को तैयार नहीं है। फ्रांस से हुए समझौते की शर्त का हवाला दिया जाता है, मगर फ्रांस के राष्ट्रपति कहते हैं कि भारत सरकार चाहे तो विमान के दाम बता सकती है, फ्रांस की ओर से दाम न बताने की कोई बाध्यता या शर्त नहीं है।"देश में बढ़ती बेरोजगार की जिक्र करते हुए राहुल गांधी ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "देश में बेरोजगारी बढ़ रही है, मोदी बात तो मेड इन इंडिया की बात करते हैं, मगर सरदार पटेल की प्रतिमा चीन के लोग बना रहे हैं। रोजगार चीन के युवाओं को मिला है, भारत का युवा बेरोजगार है।"उन्होंने आगे कहा, "मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार आते ही सबसे पहले किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा, युवाओं को रोजगार देने के प्रयास होंगे। हमारे देश में अब मेड इन चाइना नहीं, बल्कि मेड इन इंडिया, मेड इन चित्रकूट दिखेगा।"राहुल ने इससे पहले, चित्रकूट के कामतानाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की। मंदिर में उनके साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित अन्य नेता मौजूद रहे। कांग्रेस प्रमुख बस में बैठकर सतना से रीवा के लिए रवाना हो गए। वह शुक्रवार को रीवा जिले में होने वाले कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे।

तनुश्री के आरोपों पर नाना पाटेकर ने कहा, कानूनी कार्रवाई कर सकता हूं

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मुंबई, 27 सितम्बर, अभिनेता नाना पाटेकर ने गुरुवार को अभिनेत्री तनुश्री दत्ता द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं। तनुश्री द्वारा एक दशक बाद इस सप्ताह फिर से लगाए गए आरोपों पर अपनी पहली प्रतिक्रिया देते हुए नाना ने कहा, "आप मुझे बताइए कि एक व्यक्ति के कुछ कहने पर मैं क्या कर सकता हूं? यौन उत्पीड़न से क्या मतलब है?"तनुश्री ने 2008 में 'हॉर्न ओके प्लीज'की शूटिंग के दौरान नाना के खिलाफ पहली बार आरोप लगाए थे और हाल ही में उन्होंने एक साक्षात्कार में फिर से नाना पर आरोप लगाए हैं। नाना ने  कहा, "हम सेट पर थे और उस वक्त 200 लोग हमारे सामने बैठे हुए थे। मैं क्या कह सकता हूं?"क्या वह कोई कानूनी कदम उठाएंगे, इस सवाल पर उन्होंने कहा, "मैं देखूंगा कि कानूनी तौर पर क्या हो सकता है। देखते हैं। आपके (मीडिया के) साथ बात करना भी गलत/अनुचित होगा क्योंकि आप कुछ भी छाप सकते हैं।"राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता का एक अलग चेहरा होने के आरोप के सवाल पर नाना ने कहा, "लोग कुछ भी कह सकते हैं। मैं अपनी जिंदगी में वो काम करना जारी रखूंगा, जो मैं करता रहा हूं।"

मात्र: 2 दिनों के बाद जन आंदोलन 2018 शुरू

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आम चुनाव 2009 के पहले जनादेश 2007आम चुनाव 2014 के पहले  जन सत्याग्रह 2012आम चुनाव 2019 के पहले  जन आंदोलन 2018युवाओं को नेतृत्व करने का गुर सिखाते
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ग्वालियर  :लगातार तीसरी बार महानायक बने राजगोपाल पी.व्ही.युवाओं को नेतृत्व का गुर सिखा रहे हैं. ऐतिहासिक जन आंदोलन 2 अक्टूबर से शुरू होगा. तीसरी बार ग्वालियर मेजबानी करने को तैयार है. पहली बार 2007 में जनादेश 2007 सत्याग्रह किया गया.इसमें  25 हजार वंचित समुदाय हिस्सेदारी दिए. ग्वालियर से दिल्ली तक पदयात्रा किए. दूसरी बार 2012 में जन सत्याग्रह 2012 में सत्याग्रह किया गया. 80 हजार अधिक लोग चले.दिल्ली जाने के पहले ही आगरा में ही समझौता हो गयी.अब तीसरी बार 2018 में जन आंदोलन होने वाला है.25 हजार वंचित समुदाय तैयार हैं आंदोलन में कूदने को.

इन मांगों को लेकर जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा
> राष्ट्रीय भूमि प्राधिकार की स्थापना
>समस्त भूमिहीनों को भूमि का अधिकार
>वनभूमि पर काबिजों को मालिकाना हक
>ग्रामीण बेरोजगार उन्मूलन रोजगार नीति को कानून के दायरे में लाना
>सीमांत कृषक समर्थित कृषि नीति
>आदिवासी -दलित और वंचित समर्थित जन -अधिकार नीति
>किसान समर्थित उत्पादन आधारित मूल्य निर्धारित 
>महिला ,दलित व आदिवासियों के साथ विभिन्न सरकारी विभागों ,अधिकारियों ,कर्मचारियों विशेषकर वन विभाग और पुलिस के द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न की समाप्ति 
>भूमि सुधार की प्रक्रिया को सभी राज्यों में लागू करना
>कृषि योग्य भूमि का गैर कृषि कार्यों के लिए उपयोग पर पूर्ण पांबदी. पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ.रद्युवंश प्रसाद सिंह थे.प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह.राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति नहीं बना सकें.राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद तो बनाएं पर बैठक नहीं बुलाएं.

सत्ता में द्वितीय बार यूपीए सरकार
वर्ष 2009 आम चुनाव में फतह कर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह कुर्सी पर आसीन हुए.केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश बने.अपने कार्यकाल में राज्य सरकारों को एडवाइजरी प्रेषित किया.भूमि संबंधी कार्य व मसले को सटलाने का सुझाव था.मगर अंतिम कार्य राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति नहीं बना सकें.

2014 में पूर्ण बहुमत से एनडीए सत्तासीन
बहुप्रचारित और बहुआयामी नरेंद्र भाई मोदी प्रधानमंत्री बने.केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर है.उनको जन आंदोलन 2018 झेलना है.वहीं एनडीए सरकार की उपलब्धि गिनाना है.मुरैना में आमसभा रख दी गयी.वहीं पर आरपार की जंग होगी.फोटो में दाहिनी और डॉ.रद्युवंश प्रसाद सिंह और बायीं ओर जयराम रमेश हैं.दोनों सत्ता से बाहर होने पर पटना में मिले थे.ऊपर में नरेंद्र सिंह तोमर हैं.इनको 6 सूत्री मांग पूर्ण करने की जिम्मेवारी है. इस बाबत एकता परिषद के उपाध्यक्ष प्रदीप प्रियदर्शी का कहना है कि प्रथम और द्वितीय आंदोलनों की मांग को लद्यु बना दिया है.हां एकता परिषद व सम्मान विचार वाले जन संगठनों ने 6 सूत्री मांग रखेंगे है. जो इस प्रकार है राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार कानून की द्योषणा एवं क्रियान्वयन, राष्ट्रीय कृषक हकदारी कानून की द्योषणा एवं क्रियान्वयन,राष्ट्रीय भूमि नीति की द्योषणा व क्रियान्वयन, भारत सरकार द्वारा पूर्व में गठित राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और राष्ट्रीय भूमि सुधार कार्यबल समिति को सक्रिय करना,वनाधिकार कानून -2006 और पंचायत (विस्तार उपबन्ध) अधिनियम -1996 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय  व प्रांतीय स्तर पर निगरानी तंत्र की स्थापना और भूमि संबंधी विवादों के शीघ्र समाधान के लिए त्वरित न्यायालयों का संचालन हो.

सम्पादकीय : प्रधानमंत्री जी आप चुप क्यों हैं ?

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विजय सिंह ,आर्यावर्त डेस्क ,28 सितम्बर,2018, राफेल  नाम उफान पर है. गली मोहल्ले चौक चौराहे तक में ज्ञानी अज्ञानी सब राफेल की चर्चा में व्यस्त हैं. पक्ष विपक्ष तर्क वितर्क में मशगूल है. राफेल नाम का ठीक से उच्चारण नहीं करने वाले भी डील का विवेचन कर रहे हैं. राफेल किस चिड़िया का नाम है,यह न जानने वाले भी ज्ञान का प्रदर्शन कर रहे हैं. देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष राहुल गाँधी  तो राफेल डील को 2019 के आसन्न लोकसभा चुनावों के मद्धेनजर महत्वपूर्ण मुद्धा बनाने का प्रयास करने के क्रम में सरकार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न सिर्फ व्यक्तिगत रूप से घेरने का कोई मौका छोड़ रहे हैं अपितु प्रधानमंत्री मोदी के लिए असंसदीय भाषा तक का प्रयोग करने में गुरेज नहीं किया. हालाँकि प्रत्युत्तर में सरकार के मंत्रियों और भाजपा टीम ने राहुल गाँधी और कांग्रेस को उन्हीं शब्दों में जवाब देकर हिसाब बराबर करने की कोशिश की,लेकिन देश के प्रधानमंत्री पर सीधे आरोप लगाते हुए विपक्ष हमलावर होते हुए अमर्यादित भाषा-शब्द का प्रयोग करे और प्रधानमंत्री चुप रहें तो यह जरूर देश के सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए चिंतनीय है. जिस देश के साथ राफेल की डील हुई ,उस देश का पूर्व राष्ट्रपति आरोप प्रत्यारोप की कड़ी में जुड़ा हो, प्रधानमंत्री पर खुद सरकारी रक्षा, विमान निर्माता कम्पनी की अनदेखी कर निजी गैरअनुभवी कम्पनी को ठेका दिलाने और फायदा पहुँचाने का सीधा आरोप लग रहा हो ,फिर भी प्रधानमंत्री चुप हैं. पेट्रोल डीजल की कीमतें हर रोज बढ़ रही हैं, गैस सिलिंडर की कीमतें बढ़ गयीं हैं,लोग परेशान हैं पर प्रधानमंत्री चुप हैं. बेरोजगारी के रोज नए आंकड़े गिनाये जा रहे हैं पर प्रधानमंत्री चुप हैं. सामाजिक सद्भाव की मूर्तरूप से परे अब दलित और सवर्ण की अवधारणा जोर पर हैं,बिखराव ,टकराव आशंकित हैं पर प्रधानमंत्री चुप हैं. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बारे में सर्वविदित था कि वो कम बोलते हैं पर नरेंद्र मोदी तो बोलने वाले प्रधानमंत्री हैं. फिर बोलिये न,राफेल पर. देश की जनता सुनना चाहती है आपसे इस डील की हकीकत. जिस ईमानदार कर्मठ छवि की बदौलत देश की जनता ने आपको प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया,भरोसा जताया,वो आपकी तरफआशान्वित है.आपके बोलने का इंतजार कर रही है. आपको याद होगा संसद की सीढ़ियों को नमन करते हुए जब आपने कहा था कि सवा सौ करोड़ जनता मालिक है और आप प्रधान सेवक.आज उसी प्रधान सेवक से जनता पूछ रही है कि बताईये सच क्या है ? राफेल का हिंदी मतलब गोलाबाजी होता है, उम्मीद है देश की जनता को "गोला बाजी"से आत्मसात होने का अवसर नहीं मिलेगा.

बेगूसराय : युवा संस्कार सप्ताह में जुटे बजरंग-दल के युवा।

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बेगूसराय (अरुण शाण्डिल्य) विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू सांस्कृतिक संगठन-विश्व हिन्दू परिषद के युवाओं का आयाम बजरंगदल के द्वारा युवा संस्कार सप्ताह पिछले 25 सितम्बर से 2 अक्टूबर  तक पूरे देश भर में सभी जिले के कई प्रखंड तक के सड़क मार्ग से जा रहे हैं यात्रियों को निवेदन पूर्वक पुष्प से सम्मानित करते हुए ट्रैफिक नियम का पालन करने तथा शराब और ड्रग्स का सेवन नहीं करने के लिए निवेदन पूर्वक आग्रह किया जा रहा है।इस निमित्त आज बेगूसराय जिले के बलिया प्रखंड में बजरंग दल के द्वारा एनएच 31 मामू भांजा पावर हाउस के पास बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के द्वारा चल रहे यात्रियों को पुष्प के मालो से सम्मानित कर कहा गया की पूरे भारतवर्ष में प्रतिवर्ष लगभग एक लाख 20 हजार से अधिक युवाओं की असमय मृत्यु नशा करके वाहन चलाने से होता है  ।  तथा नशे की ओवरडोज के कारण समाज में अभद्र प्रतिक्रिया देता है । ऐसा कहते हुए यात्रियों को पुनः हाथ जोड़कर प्रार्थना कर दो पहिया वाहन को चलाते समय हेलमेट पहनने के लिए तथा ट्रिपल लोडिंग से सफर नहीं करने के लिए निवेदन करता है।चार चक्के बाहन वाले भाइयों से सीट बेल्ट लगा के तथा ऊंची ध्वनि में गाना नहीं बजाकर,गाड़ी के अंदर सिगरेट या अन्य नशे का सेवन नहीं करने के लिए प्रार्थना करता है। मौके पर बजरंग दल बेगूसराय जिला संयोजक राजकुमार शाह ने कहा कि बजरंग दल का सर्वप्रथम मुख्य तीन कार्य सेवा,सुरक्षा,संस्कार इस निमित्त इसी युवा संस्कार सप्ताह दिवस में युवाओं को संस्कारित करने के लिए पूरे देश भर में बड़ी पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है।इसलिए आप सबों भारतवासियों से विनम्र निवेदन है कि इस अभियान आइए और हम सब मिलकर संकल्प लें कि जीवन में किसी भी प्रकार का नशा नहीं करेंगे,और वाहन चलाते समय यातायात नियमों का पालन करेंगे और भारत माता के समक्ष चुनौतियों को समाप्त कर पुनः विश्व गुरु बनाने के लिए जीवन प्रयत्न समर्पित रहेंगे। इस कार्यक्रम में उपस्थित प्रखंड संयोजक अमित रस्तोगी,प्रखंड मंत्री अजय,हिंदू सहसंयोजक अरविन्द रस्तोगी,जयंत मिश्र,राहुल,कुन्दन,अवधेश,संतोष जी,  मनीष एवं अन्य बजरंगी भाई इस कार्यक्रम में शामिल हैं।

मधुबनी : कृषि सांख्यिकी का वार्षिक प्रषिक्षण का आयोजन

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मधुबनी (आर्यावर्त डेस्क) 28,सितंबर, जिला पदाधिकारी,मधुबनी की अध्यक्षता में कृषि सांख्यिकी का वार्षिक प्रषिक्षण का आयोजन किया गया। जिला सांख्यिकी पदाधिकारी,मधुबनी श्री सोमेष्वर प्रसाद ने कृषि सांख्यिकी में किये जा रहे कार्याें की जानकारी प्रषिक्षण में उपस्थित पदाधिकारियों को दी। उन्होेंने बताया की कृषि सांख्यिकी अंतर्गत विभिन्न प्रकार के कार्य संपादित किये जाते हैं। यथा- खेसरा पंजी का संधारण,वर्षापात, जिन्सवार तैयार करना, फसल कटनी प्रयोग का आयोजन, भूमि उपयोग विवरणी तैयार करना,नेत्रांकन प्रक्षेत्र मूल्य इत्यादि। मास्टर  प्रषिक्षक, श्री सच्चिदानन्द झा, एवं श्री चन्द्रभूषण राय द्वारा सभी विषयों पर विस्तारपूर्वक से चर्चा की गई। पावर प्रेजेन्टेषन के माध्यम से सभी उपस्थित प्रषिक्षणार्थियों को प्रपत्र भरने के तरीकों के बारे में बताया गया। प्रषिक्षण में जिले के सभी प्रखंड विकास पदाधिकारी, सभी अंचल अधिकारी, सभी प्रखंड कृषि पदाधिकारी, सभी प्रखंड सांख्यिकी पर्यवेक्षक एवं सभी अंचल निरीक्षक उपस्थित थे।

स्वास्थ्य : दिल से कीजिए दिल की हिफाजत

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नयी दिल्ली, 28 सितंबर, दिल, हृदय या हार्ट के मायने अलग अलग मिजाज के लोगों के लिए अलग हो सकते हैं, लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि सीने के बाईं ओर धड़कता पान के आकार का यह छोटा सा अंग शरीर में खून साफ करने का काम करता है, पर अगर इसकी हिफाजत ढंग से न की जाए तो यह ठप होकर इनसान को ही दुनिया से साफ कर सकता है।  दिल की हिफाजत की जरूरत तो हर कोई समझता है, लेकिन इसके लिए प्रयास करने वाले लोग कम ही हैं। यही वजह है कि एक समय वृद्धावस्था में घेरने वाली दिल की बीमारी आज छोटी उम्र के लोगों को भी अपना शिकार बना रही है। एक शोध के अनुसार भारत में पिछले 15 वर्षो में हृदयघात से मरने वालों की संख्या में 34% का इजाफा देखा गया है। हालत यह है कि लगभग हर घर में दिल की बीमारी के मरीज मौजूद हैं और यही वजह है कि सरकार को रूकी धमनियों को खोलने के लिए लगाए जाने वाले स्टेंट की कीमत निर्धारित करनी पड़ी ताकि इसका इलाज सबकी पहुंच में हो।दरअसल भारत में ख़राब जीवन शैली, तनाव, शारीरिक गतिविधियों की कमी और अनियमित खानपान की वजह से लोगों को दिल से संबंधित गंभीर रोग होने लगे हैं। हृदय रोग, दुनिया में मृत्यु और विकलांगता का प्रमुख कारण है, और ह्रदय रोगों के किसी और रोग की तुलना में अधिक मौतें होती हैं। 

पीएसआरआई हार्ट इंस्टीट्यूट के चेयरमैन डॉ टीएस क्लेर का कहना है कि दिल की संभाल में लापरवाही बरतना जान पर भारी पड़ सकता है। एक बार हार्ट अटैक झेल चुके लोगों को और अधिक सावधानी से अपनी जीवन शैली में बदलाव करना चाहिये। लोगों को इस संबंध में जागरूक करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल 29 सितंबर को विश्व हृदय दिवस मनाता है। धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के डायरेक्टर, कार्डियो थोरेसिक अवं वैस्कुलर सर्जन, डॉ मितेश बी शर्मा बताते है कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर व्यक्ति तनाव से घिरा हुआ है, जो हृदयाघात को मुख्य कारण है। इसके अलावा अधिक मीठा या मसालेदार भोजन, धूम्रपान, शारीरिक गतिविधियों का अभाव दिल को कमज़ोर बना रहे हैं और प्रदूषण भी इसमें अपना योगदान दे रहा है। उन्होंने बताया कि दिल के मरीजों की बढ़ती तादाद को देखते हुए उनका अस्पताल ह्रदय दिवस पर नि:शुल्क हृदय जांच की सुविधा प्रदान कर रहा है, जिसमें इको स्क्रीनिंग, टीएमटी, ईसीजी, आदि की निशुल्क जांच कर लोगों को इस समस्या की रोकथाम और लक्षणों के बारे में जानकारी और परामर्श दिया जा सके।

श्रीबालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ अमर सिंघल का कहना है कि लोग कई बार दिल की बीमारी के बारे में पर्याप्त जानकारी न होने पर इसके लक्षणों की अनदेखी कर देते हैं और जानलेवा स्थिति तक पहुंच जाते हैं।  उनका कहना है कि धमनियों में रूकावट होने पर सीने में दबाव और दर्द के साथ खिंचाव महसूस होगा। कई बार मितली, सीने में जलन, पेट में दर्द या फिर पाचन संबंधी दिक्कतें भी आने लगती हैं। बाएं कंधे में दर्द भी दिल की बीमारी की दस्तक हो सकता है। पैरों में दर्द, सूजन पसीना आना और घबराहट होना भी खतरे की घंटी हो सकता है। वह कहते हैं कि खुद को या आपके किसी परिजन को इस तरह के लक्षण महसूस हों तो उसे गंभीरता से लें। मेडिकवर फर्टिलिटी की क्लिनिकल डायरेक्टर और सीनियर कंसलटैंट, डॉ श्वेता गुप्ता के अनुसार महिलाओं में विभिन्न कारणों से माहवारी का अनियमित होना, गर्भ धारण करने में असमर्थता, मोटापा, चेहरे और छाती पर ज़्यादा बाल आदि जैसे लक्षण दिल की बीमारियों की आशंका बढ़ाते है। ऐसे में पौष्टिक आहार, सही जीवन शैली और समय समय पर जांच करवाने से बीमारी का शुरूआती अवस्था में ही पता लगाकर इसका उपचार संभव है।

राजस्थान में 40 हजार दवा दुकानें बंद रहीं

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जयपुर, 28 सितम्बर, आल इंडिया केमिस्ट एसोसियेशन के आह्वान पर दवाइयों की आनलाइन बिक्री के विरोध में आयोजित बंद के समर्थन में शुक्रवार को राज्य में दवा की करीब 40 हजार दुकानें बंद रहीं ।राजस्थान केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष आर बी पुरी ने 'भाषा'को बताया कि प्रदेश की करीब 40 हजार दवा विक्रेताओं ने अपनी दुकानें बंद रखी है। हालांकि आपातकाल की स्थिति में उपभोक्ता भंडार द्वारा उपभोक्ताओं को दवाईयां उपलब्ध करा कर राहत प्रदान की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस बंद से करीब 75 लाख से एक करोड़ रूपये का कारोबारी नुकसान हुआ है । पुरी ने बताया कि दवाओं की आनलाइन बिक्री बिना चिकित्सक की पर्ची से हो सकेगी और नियामक प्राधिकार दवाओं की बिक्री पर कोई निगरानी नहीं रख सकेगा जिससे कानून का दुरूपयोग संभव है। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को ज्ञापन भेज कर दवाओं की आनलाइन बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।

बिहार के मुंगेर जिले से 12 क्लाशनिकोव राइफल जब्त

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मुंगेर (बिहार), 28 सितंबर, मुंगेर जिले के बरदह गांव में छापेमारी के दौरान 12 एके 47 राइफल जब्त की गई हैं। पुलिस ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।  मुंगेर के पुलिस अधीक्षक बाबू राम ने बताया कि गोपनीय सूचना के आधार पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ऑपरेशन्स) राणा नवीन के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम ने गुरुवार रात छापेमारी की और एक कुएं से इन हथियारों को जब्त किया।  उन्होंने बताया कि गांव के निवासी तनवीर को इस संबंध में गिरफ्तार कर हिरासत में भेज दिया गया।  एएसएपी (ऑपरेशन्स) ने बताया कि यह सभी रूस में बने हुए हथियार हैं और अच्छी स्थिति में है। इससे कुछ समय पहले भी जिले में की गई तीन छापेमारियों में आठ एके 47 राइफलें जब्त की गई थीँ।

अलीगढ फर्जी मुठभेड प्रकरण में नया मोड

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अलीगढ :उप्र:, 28 सितंबर, दो संदिग्ध अपराधियों से कथित फर्जी मुठभेड को लेकर विवाद ने शुक्रवार को नया मोड ले लिया । पुलिस ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के एक समूह के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज किया है । इनमें अधिकांशतया एएमयू और जेएनयू के छात्र नेता हैं । इन कार्यकर्ताओं पर आरोप लगा है कि उन्होंने 22 वर्षीय मुस्तकीम की मां और दादी का अपहरण किया था । मुस्तकीम पिछले हफ्ते मुठभेड में मारा गया था मामला कल अतरौली थाने में दर्ज किया गया । तहरीर बजरंग दल के सचिव राम कुमार आर्य और मुस्तकीम की पत्नी हिना की ओर से दी गयी थी । रिपोर्ट में जो नाम हैं, उनमें यूनाइटेड अगेन्स्ट हेट फोरम के कार्यकर्ता शामिल हैं ।

सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति : न्यायालय

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नयी दिल्ली, 28 सितंबर, उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अपने फैसले के माध्यम से केरल के सबरीमाला स्थित अय्यप्पा स्वामी मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश से रोकना लैंगिक आधार पर भेदभाव है और यह परिपाटी हिन्दू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि धर्म मूलत: जीवन शैली है जो जिंदगी को ईश्वर से मिलाती है। न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने प्रधान न्यायाधीश तथा न्यायमूर्ति ए. एम.खानविलकर के फैसले से सहमति व्यक्त की जबकि न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा का फैसला बहुमत के विपरीत है। संविधान पीठ में एक मात्र महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने कहा कि देश में पंथनिरपेक्ष माहौल बनाये रखने के लिये गहराई तक धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति मल्होत्रा का मानना था कि ‘सती’ जैसी सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं। न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने कहा कि समानता के अधिकार का भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालुओं के पूजा करने के अधिकार के साथ टकराव हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस मामले में मुद्दा सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं है। इसका अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा। पांच सदस्यीय पीठ ने चार अलग-अलग फैसले लिखे। पीठ ने केरल के सबरीमाला स्थित भगवान अय्यप्पा मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ये फैसले सुनाये।  प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि भक्ति में भेदभाव नहीं किया जा सकता है और पितृसत्तात्मक धारणा को आस्था में समानता के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भगवान अय्यप्पा को मानने वाले किसी दूसरे सम्प्रदाय/धर्म के नहीं हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से प्रतिबंधित करने की परिपाटी को आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं माना जा सकता और केरल का कानून महिलाओं को शारीरिक/जैविक प्रक्रिया के आधार पर महिलाओं को अधिकारों से वंचित करता है। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि 10-50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं को प्रतिबंधित करने की सबरीमला मंदिर की परिपाटी का संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 समर्थन नहीं करते हैं। अपने फैसले में न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि महिलाओं को प्रवेश से रोकना अनुच्छेद 25(प्रावधान 1) का उल्लंघन है और वह केरल हिन्दू सार्वजनिक धर्मस्थल (प्रवेश अनुमति) नियम के प्रावधान 3(बी) को निरस्त करते हैं। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि महिलाओं को पूजा करने के अधिकार से वंचित करने धर्म को ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और यह मानवीय गरिमा के विरूद्ध है। उन्होंने कहा कि गैर-धार्मिक कारणों से महिलाओं को प्रतिबंधित किया गया है और यह सदियों से जारी भेदभाव का साया है।

कोरेगांव-भीमा प्रकरण में न्यायालय का गिरफ्तारी के मामले में हस्तक्षेप से इनकार

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नई दिल्ली, 28 सितंबर, उच्चतम न्यायालय ने कोरेगांव-भीमा हिंसा प्रकरण के सिलसिले में पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में हस्तक्षेप करने से शुक्रवार को इंकार करने के साथ ही इन गिरफ्तारियों की जांच के लिये विशेष जांच दल गठित करने का आग्रह भी ठुकरा दिया। महाराष्ट्र पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं को पिछले महीने गिरफ्तार किया था परंतु शीर्ष अदालत के अंतरिम आदेश पर उन्हें घरों में नजरबंद रखा गया था।  प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 2:1 के बहुमत के फैसले से इन कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई के लिये इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की याचिकायें ठुकरा दीं। बहुमत के फैसले में न्यायालय ने कहा कि आरोपी इस बात का चयन नहीं कर सकते कि मामले की जांच किस एजेन्सी को करनी चाहिए और यह सिर्फ राजनीतिक दृष्टिकोण में भिन्नता का मामला नहीं है। न्यायमूर्ति खानविलकर ने अपनी और प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाया जबकि न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ ने कहा कि वह दो न्यायाधीशों के दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने अपने असहमति वाले फैसले में कहा कि इन पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी सत्ता द्वारा असहमति की आवाज दबाने का प्रयास है और यह अहसमति सजीव लोकतंत्र का प्रतीक है। गिरफ्तार किये गये पांच कार्यकर्ता वरवरा राव, अरूण फरेरा, वर्नेन गोन्साल्विज, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा शीर्ष अदालत के आदेश पर 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं। महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसबंर को ‘‘एलगार परिषद’’ के आयोजन के बाद कोरेगांव-भीमा गांव में हुयी हिंसा के मामले में दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में इन पांच कार्यकर्ताओं को 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था। बहुमत के निर्णय में न्यायालय ने कहा कि इन कार्यकर्ताओं की घरों में नजरबंदी का संरक्षण चार सप्ताह और लागू रहेगा ताकि आरोपी उचित कानूनी मंचों से उचित कानूनी राहत का अनुरोध कर सकें। न्यायालय ने कहा कि ये गिरफ्तारियां असहमति वाली गतिविधियों की वजह से नहीं हुयीं बल्कि पहली नजर में प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन से उनके संपर्क दर्शाने वाली सामग्री है। न्यायमूर्ति खानविलकर ने इस मामले में और कोई टिप्पणी करने से गुरेज करते हुये कहा कि इससे आरोपी और अभियोजन का मामला प्रभावित हो सकता है। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ का कहना था कि यदि समुचित जांच के बगैर ही पांच कार्यकर्ताओं पर जुल्म होने दिया गया तो संविधान में प्रदत्त स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं जायेगा। उन्होंने कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिये याचिका को सही ठहराते हुये महाराष्ट्र पुलिस को प्रेस कांफ्रेस करने और उसमें चिट्ठियां वितरित करने के लिये आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज के कथित पत्र टीवी चैनलों पर दिखाये गये। पुलिस द्वारा जांच के विवरण मीडिया को चुन-चुन कर देना उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है।

न्यायाधीशों ने बताया कि भारत में कैसे बना यह आपराधिक कृत्य

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नई दिल्ली, 28 सितंबर, व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक कानूनों को असंवैधानिक घोषित करते हुए उन्हें निरस्त करने का फैसला गुरुवार को पढ़ते हुए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने भारत में व्यभिचार को आपराधिक कृत्य की श्रेणी में रखने संबंधी पुराकालीन कानून के उद्भव और विकास के पूरे घटनाक्रम का जिक्र किया है। फैसला सुनाने वाले पांच सदस्यीय संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने अपने-अपने फैसलों में इसका जिक्र किया कि आखिरकार व्यभिचार भारत में अपराध कैसे बना। दोनों ही न्यायाधीशों ने 1860 के कानून के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 497 में शामिल इस पुराकालीन कानून को निरस्त करने का फैसला दिया। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि प्रावधान का असल रूप तब सामने आता है जब वह कहता है कि पति की सहमति या सहयोग से यदि कोई अन्य व्यक्ति विवाहित महिला के साथ यौन संबंध बनाता है तो वह व्यभिचार नहीं है। यह रेखांकित करते हुए कि 1955 तक हिन्दु जितनी महिलाओं से चाहें विवाह कर सकते थे, न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, 1860 में जब दंड संहिता लागू हुई, उस वक्त देश की बहुसंख्यक जनता हिन्दुओं के लिए तलाक का कोई कानून नहीं था क्योंकि विवाह को संस्कार का हिस्सा समझा जाता था। पीठ में शामिल एकमात्र महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने भी अपने फैसले में यह रेखांकित किया कि भारत में मौजूद भारतीय-ब्राह्मण परंपरा के तहत महिलाओं के सतीत्व को उनका सबसे बड़ा धन माना जाता था। पुरूषों की रक्त की पवित्रता बनाए रखने के लिए महिलाओं के सतीत्व की कड़ाई से सुरक्षा की जाती थी। न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने कहा, इसका मकसद सिर्फ महिलाओं के शरीर की पवित्रता की सुरक्षा करना नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि महिलाओं की यौन इच्छा पर पतियों का नियंत्रण बना रहे। न्यायमूर्ति नरीमन ने अपने फैसले में कहा, ऐसी स्थिति में यह समझा पाना बहुत मुश्किल नहीं है कि एक विवाहित पुरूष द्वारा अविवाहित महिला के साथ यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं था। उस वक्त तलाक के संबंध में कोई कानून ही नहीं था, ऐसे में व्यभिचार को तलाक का आधार बनाना संभव नहीं था। उस दौरान हिन्दू पुरूष अनके महिलाओं से वकवाह कर सकते थे, ऐसे में अविवाहित महिला के साथ यौन संबंध अपराध नहीं था, क्योंकि भविष्य में दोनों के विवाह करने की संभावना बनी रहती थी। उन्होंने कहा कि हिन्दू कोड आने के साथ ही 1955-56 के बाद एक हिन्दू व्यक्ति सिर्फ एक पत्नी से विवाह विवाह कर सकता था और हिन्दू कानून में परस्त्रीगमन को तलाक का एक आधार बनाया गया। न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने अपने फैसले में इस तथ्य का जिक्र किया कि 1837 में भारत के विधि आयोग द्वारा जारी भारतीय दंड संहिता के पहले मसौदे में परस्त्रीगमन को अपराध के रूप में शामिल नहीं किया गया था।

सबरीमाला पर उच्चतम न्यायालय का फैसला निराशाजनक : प्रमुख पुजारी

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कोच्चि, 28 सितंबर, सबरीमाला के प्रमुख पुजारी कंडारारू राजीवारू ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने वाला उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘‘निराशजनक’’ है लेकिन ‘‘तंत्री परिवार’’ इसे स्वीकार करेगा। तंत्री केरल में हिंदू मंदिरों का वैदिक प्रमुख पुजारी होता है। त्रावणकोर देवोस्वोम बोर्ड के अध्यक्ष ए पद्मकुमार ने पीटीआई-भाषा को बताया कि उच्चतम न्यायालय के फैसले का विस्तृत अध्ययन किया जाएगा और उसके बाद आगे की कार्रवाई के बारे में निर्णय लिया जाएगा। पद्मकुमार ने कहा कि बोर्ड ने न्यायालय को सूचित किया था कि वे मौजूदा नियम को जारी रखना चाहते हैं लेकिन अब इस फैसले को लागू करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि बोर्ड शीर्ष न्यायालय के आदेश को लागू करने के लिए कदम उठाएगा। उन्होंने कहा कि फैसले का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करेंगे। अयप्पा धर्म सेना के अध्यक्ष राहुल ईश्वर ने कहा कि वे पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे। ईश्वर सबरीमाला के पुजारी दिवंगत कंडारारू महेश्वरारू के पोते हैं। महेश्वरारू का इस साल मई में निधन हो गया था।

रोटरी मधुबनी ने किया निःशुल्क जाँच शिविर, मुफ्त हार्ट आपरेशन के लिए तीन बच्चों का चयन

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मधुबनी (आर्यावर्त डेस्क) 28 सितम्बर, आज दिनांक 28 सितंबर को रोटरी क्लब मधुबनी द्वारा आयोजित हृदय रोग से ग्रसित बच्चों के लिए निःशुल्क जाँच शिविर का आयोजन मधुबनी प्राइड हॉस्पिटल, किशोरी लाल चौक हुआ जिसमें तीन बच्चों सिद्धार्थ कुमार, उम्र 7 महिना, रोशनी कुमारी, उम्र 14 वर्ष और ज्योति कुमारी,उम्र 7 वर्ष का डॉ एस एन सिन्हा एवम् डॉ रोशन कुमार के द्वारा शल्य चिकितसा के लिए चयनित किया गया। रोटरी मधुबनी के अध्यक्ष डॉ प्रकाश नायक ने बताया कि इनका निर्णायक निःशुल्क जाँच शिविर मेडिकेयर हॉस्पिटल ,पटना में 2 अक्टूबर को देश के विख्यात डॉक्टर द्वारा जाँच कर अमृता हॉस्पिटल,कोच्ची में मुफ्त आपरेशन रोटरी इंटरनेशनल के गिफ्ट ऑफ लाइफ कार्यक्रम के तहद कराया जाएगा।पिछले वर्ष केवल बिहार और झारखंड के 300 बच्चों का मुफ्त आपरेशन कराया गया। कार्यक्रम में रोटरी मधुबनी के सदस्य बिमल किशोर जायसवाल, नबीन कुमार,सप्पू बैरोलिया, अजय धारी सिंह,बिश्वनाथ कारक एवम् आकर्षण कुमार मौजूद थे।

विशेष आलेख : जीवन की राह: शांति की चाह

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आज हर व्यक्ति चाहता है - हर दिन मेरे लिये शुभ, शांतिपूर्ण एवं मंगलकारी हो। संसार में सात अरब मनुष्यों में कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं होगा जो शांति न चाहता हो। मनुष्य ही क्यों पशु-पक्षी, कीट-पंतगें आदि छोटे-से-छोटा प्राणी भी शांति की चाह में बेचैन रहता है। यह ढ़ाई अक्षर का ऐसा शब्द है जिसे संसार की सभी आत्माएं चाहती हैं। यजुर्वेद में प्रार्थना के स्वर है कि स्वर्ग, अंतरिक्ष और पृथ्वी शांति रूप हो। जल, औषधि वनस्पति, विश्व-देव, परब्रह्म और सब संसार शांति का रूप हो। जो स्वयं साक्षात् स्वरूपतः शांति है वह भी मेरे लिए शांति करने वाली हो।’’ यह प्रार्थना तभी सार्थक होगी जब हम संयम, संतोष व्रत को अंगीकार करेंगे, क्योंकि सच्ची शांति भोग में नहीं त्याग में है। मनुष्य सच्चे हृदय से जैसे-जैसे त्याग की ओर अग्रसर होता जाता है वैसे-वैसे शांति उसके निकट आती जाती है। शांति का अमोघ साधन है-संतोष। तृष्णा की बंजर धरा पर शांति के सुमन नहीं खिल सकते हैं। मानव शांति की चाह तो करता है पर सही राह पकड़ना नहीं चाहता है। सही एवं शांति की राह को पकड़े बिना न मंजिल मिल सकती है और न शांति की प्राप्ति हो सकती। महात्मा गांधी ने शांति की चाह इन शब्दों में की है कि मैं उस तरह की शांति नहीं चाहता जो हमें कब्रों में मिलती है। मैं तो उस तरह की शांति चाहता हूं जिसका निवास मनुष्य के हृदय में है।

मनुष्य के पास धन है, वैभव है, परिवार है, मकान है, व्यवसाय है, कम्प्यूटर है, कार है। जीवन की सुख-सुविधाओं के साधनों में भारी वृद्धि होने के बावजूद आज राष्ट्र अशांत है, घर अशांत है, यहां तक कि मानव स्वयं अशांत है। चारों ओर अशांति, घुटन, संत्रास, तनाव, कुंठा एवं हिंसा का साम्राज्य है। ऐसा क्यों है? धन और वैभव मनुष्य की न्यूनतम आवश्यकता-रोटी, कपड़ा और मकान सुलभ कर सकता है। आज समस्या रोटी, कपड़ा, मकान की नहीं, शांति की है। शांति-शांति का पाठ करने से शांति नहीं आएगी। शांति आकाश मार्ग से धरा पर नहीं उतरेगी। शांति बाजार, फैक्ट्री, मील, कारखानों में बिकने की वस्तु नहीं है। शांति का उत्पादक मनुष्य स्वयं है इसलिए वह नैतिकता, पवित्रता और जीवन मूल्यों को विकसित करे।  पाश्चात्य विद्वान टेनिसन ने लिखा है कि शांति के अतिरिक्त दूसरा कोई आनंद नहीं है। सचमुच यदि मन व्यथित, उद्वेलित, संत्रस्त, अशांत है तो मखमल एवं फूलों की सुखशय्या पर शयन करने पर भी नुकीले तीखे कांटे चूभते रहेंगे। जब तक मन स्वस्थ, शांत और समाधिस्थ नहीं होगा तब तक सब तरह से वातानुकूलित कक्ष में भी अशांति का अनुभव होता रहेगा। शांति का संबंध चित्त और मन से है। शांति बाहर की सुख-सुविधा में नहीं, व्यक्ति के भीतर मन में है। मानव को अपने भीतर छिपी अखूट संपदा से परिचित होना होगा। आध्यात्मिक गुरु चिदानंद के अनुसार शांति का सीधा संबंध हमारे हृदय से है सहृदय होकर ही शांति की खोज संभव है। 

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शांतिपूर्ण जीवन के रहस्य को प्रकट करते हुए महान दार्शनिक संत आचार्यश्री महाप्रज्ञ कहते हैं-‘‘यदि हम दूसरे के साथ शांतिपूर्ण रहना चाहते हैं तो हमारी सबसे पहली आवश्यकता होगी-अध्यात्म की चेतना का विकास। ‘हम अकेले हैं’, ‘अकेले आए हैं’-हमारे भीतर यह संस्कार, यह भावना जितनी परिपक्व होगी, हम उतना ही परिवार या समूह के साथ शांतिपूर्ण जीवन जी सकेंगे। समयासार का यह सूत्र शांतिपूर्ण सहवास का भी महत्त्वपूर्ण सूत्र है। अध्यात्म की उपेक्षा कर, धर्म की उपेक्षा कर कोई भी व्यक्ति शांतिपूर्ण जीवन नहीं जी सकता।  शांति के लिए सबसे बड़ी जरूरत है-मानवीय मूल्यों का विकास। सत्य, अहिंसा, पवित्रता और नैतिकता जैसे शाश्वत मूल्यों को अपनाकर ही हम वास्तविक शांति को प्राप्त कर सकते हैं। हर मनुष्य प्रेम, करुणा, सौहार्द, सहिष्णुता, समता, सहृदयता, सरलता, सजगता, सहानुभूति, शांति, मैत्री जैसे मानवीय गुणों को धारण करे। अपना समय, श्रम और शक्ति इन गुणों के अर्जन में लगाये। ऐसे प्रयत्न वांछित है जो व्यक्ति को शांत, उत्तरदायी व समाजोन्मुखी बना सके। वर्तमान जीवन पद्धति में पारस्परिक दूरी, कथनी और करनी में जो अन्तर पैदा हो गया है उसपर नियंत्रण स्थापित किया जाए। जब तक मनुज जीवन की हंसती-खिलती ऊर्वर वसुन्धरा पर शांति के बीज, स्नेह का सिंचन, अनुशासन की धूप, नैतिकता की पदचाप, मैत्री की हवा, निस्वार्थता का कुशल संरक्षण/संपोषण नहीं देगा तब तक आत्मिक सुख-शांति की खेती नहीं लहराएगी।

शांति का शुभारंभ वहीं से होता है जहां से महत्वाकांक्षा का अंत होता है। चाणक्य नीति के अनुसार शांति जैसा तप नहीं है, संतोष से बढ़कर सुख नहीं है, तृष्णा से बढ़कर रोग नहीं है और दया के बढ़कर धर्म नहीं है।’’ इसलिए शांति की स्थापना के लिए संयम की साधना जरूरी है।  शांति सभी धर्माें का हार्द है। इसके लिए हिंदू गीता पढ़ता है, मुसलमान कुरान। बौद्ध धम्मपद पढ़ता है, जैन आगम-शास्त्र। सिक्ख गुरुग्रंथ साहिब पढ़ता है, क्रिश्चियन बाइबिल। नाम, रूप, शब्द, सिद्धांत, शास्त्र, संस्कृति, संस्कार की विभिन्नताओं के बावजूद साध्य सबका एक है-शांति की खोज। हर इंसान इस खोज को सार्थक आयाम देते हुए सच्चा इंसान बने, यही जीवन की सार्थकता को सिद्ध कर सकता है। लेकिन जीवन का बड़ा अजीब वाकया है, जहां शिकायत औरों से, परिवार से, पड़ौस से, बेटे और बहुओं से हो सकती है। पर सच यह भी है कि यह कटु सोच हमारी ऊर्जा का क्षरण करती है। ऐसी सोच संभावनाओं के द्वार बंद कर देती है, प्रगति पर ब्रेक लगाती है। यह नेगेटिव थिकिंग जहां जिधर से गुजरती है, हर डाली पत्ते, फूल और फल की विनाश लीला रचती है। इसीलिये भगवान महावीर ने कहा है- अंतर्मुखी बनो यदि शांति से जीना चाहते हो।

शांति केवल शब्द भर नहीं है, यह जीवन का अहम् हिस्सा है। शांति की इच्छा जहां भी, जब भी, जिसके द्वारा भी होगी पवित्र उद्देश्य और आचरण भी साथ होगा। शांति की साधना वह मुकाम है जहां मन, इन्द्रियां और कषाय तपकर एकाग्र और संयमित हो जाते हैं। जिंदगी से जुड़ी समस्याओं और सवालों का समाधान सामने खड़ा दिखता है तब व्यक्ति बदलता है बाहर से भी और भीतर से भी, क्योंकि बदलना ही शांति की इच्छा का पहला सोपान है। वर्षों तक मंदिर की सीढ़ियां चढ़ी, घंटों-घंटों हाथ जोड़े, आंखे बंद किए खड़े रहे, प्रवचन सुनें, प्रार्थनाएं कीं, ध्यान और साधना के उपक्रम किए, शास्त्र पढ़े, फिर भी अगर मन शांत न हुआ, चिंतन शांत न हुआ तो समझना चाहिए कि सारा पुरुषार्थ मात्र ढ़ोंग था, सबके बीच स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने का बहाना था। हमारा शांतिपूर्ण जीवन का संकल्प कोरा बहाना नहीं, बल्कि दर्पण बने ताकि हम अपनी असलियत को पहचान सकंे, क्योंकि जो स्वयं को जान लेता है, उसे जीवन के किसी भी मोड़ पर जागतिक प्रवंचनाएं ठग नहीं सकती।

शांति हमारी संस्कृति है। संपूर्ण मानवीय संबंधों की व्याख्या है। यह जब भी खंडित होती है, आपसी संबंधों में दरारे पड़ती हैं, वैचारिक संघर्ष पैदा होते हैं। निजी स्वार्थों को प्रमुखतः मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को सही और दूसरे को गलत ठहराता है। काॅलटन ने कहा है शांति आत्मा का सान्ध्यकालीन तारा है, जबकि सद्गुण इसका सूर्य है। ये दोनों कभी एक-दूसरे से पृथक नहीं होते हैं। इससे ही आत्मिक सुखानूभूति एवं सच्ची शांति फलित होती है। विकास की समस्त संभावनाओं का राजमार्ग है शांति। शांति ही जीवन का परम लक्ष्य है और इसमें सुख और आनंद का वास है। जरूरी है हम स्वयं के द्वारा स्वयं को देखें, जीवनमूल्यों को जीएं और उनसे जुड़कर शांति के ऐसे परकोटे तैयार करें जो जीवन के साथ-साथ हमारे आत्मिक गुणों को भी जीवंतता प्रदान करें। हम अपनी अपार आंतरिक सम्पदा से ऊर्जावान बने रह सकते हैं। लेकिन इसके लिये हमारी तैयारी भी चाहिए और संकल्प भी। हमारा संकल्प हो सकता है कि हम स्वयं शांतिपूर्ण जीवन जीयेंगे और सभी के लिये शांतिपूर्ण जीवन की कामना करेंगे। ऐसा संकल्प और ऐसा जीवन सचमुच जीवन को सार्थक बना सकते हैं। संकल्प में जो पाॅजेटिव आकर्षण शक्ति होती है वह न केवल बाह्य वातावरण को सरसब्ज बनाती है, अपितु प्रयोक्ता की संपूर्ण बाॅयकेमेस्ट्री को भी आनंदमय बनाती है। निःसंदेह जिंदगी को उम्दा परिवेश देने के लिए सोच का शांतिपूर्ण होना जरूरी है। जिसके जरिए सुखी बनने के ख्वाब को सच में गढ़ा जा सके।
     




(ललित गर्ग)
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