म्यांमार में पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन (ईएएस) और इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में जी 20 शिखर सम्मेलन में भारतीय मीडिया को खूब लुभाया, लेकिन जब यही लोकप्रियता विदेशी मीडिया और लोगों में भी दिखाई दे तो यह किसी नवनिर्वाचित नेता की वैश्विक मंच पर राॅक स्टार की पहचान नहीं तो और क्या कहेंगे। इंग्लैंड के गाजिर्यन में छपी दिलचस्प टिप्पणी मोदी की लोकप्रियता में चार चांद लगाने के लिए काफी है, जिसमें कहा गया है कि सबसे बड़े लोकतंत्र के नए प्रधानमंत्री के रूप में इस 64 साल के व्यक्ति में कुछ ऐसा जज्बा है, जिसकी दुनियाभर के नेतागण गुणगान सप्ताह भर करते दिखा। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने खुद भारत को उभरता सुपर पावर कहा तो ओबामा ने एक्शन मैन की उपाधि दे डाली। कहा जा सकता है कि मोदी का मेक इंडिया भारत ही नहीं सात समुंदर पार भी हिट हो चला है। इसके सार्थक परिणाम अब दिखने भी लगा है।
सात समंदर पार विश्व की आर्थिक राजधानी ऑस्ट्रेलिया के सिडनी-ऑलफांसो एरेना में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दहाड़ भारत के विकास में कितना कारगर होगी, यह तो वक्त बतायेगा। लेकिन लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव व नीतिश सहित कांग्रेसियों की पैंट अभी से ढिली हो चली है। ममता बनर्जी को अपने सारे गिले-शिकवे भुलभालकर सोनिया गांधी से मुलाकात करनी पड़ रही है। मतलब मोदी की बढ़ती लोकप्रियता का खौफ इन सबों की नींद उड़ा दी है। इन्हें अपना वजूद बनाएं रखने की चिंता खाएं जा रही है। तभी तो पटना में लालू व नीतिश ने मोदी पर हमला बोलते हुए एनआरआई करार दिया तो अखिलेश काशी में मिनी सीएमओं की स्थापना व काशी को संवारने की दुहाई दी तो मुलायम ने हार का ठिकरा अपने जाबांज विधायकों के माफिया गठजोड़ों के बजाए लैपटाप वितरण को ही लोकसभा चुनाव को हार का कारण बता डाला तो सलमान खुर्शीद अपनी भीड़ जुटाने की संस्कृति को भूल कहा किराए पर भारतीयों को ले जाया गया है विदेश की सैर कराने व ताली बजवाने के लिए। फिलवक्त इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबट द्वारा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए भारत को यूरेनियम की आपूर्ति करने के लिए इच्छुक है और सामाजिक सुरक्षा, कैदियों की अदला-बदली, मादक पदार्थों के व्यापार पर लगाम लगाने तथा पर्यटन, कला एवं संस्कति को बढ़ाने की वचनवद्धता दुहराई तो यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि नहीं तो और क्या है।
यहां जिक्र करना जरुरी यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हर विदेश की तरह आस्टेलिया-म्यांमार यात्रा भी सफल है। इस यात्रा से स्पष्ट हो गया है कि एक तरफ ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एबाॅट भारत के साथ मौजूदा 15 अरब डालर सालाना का व्यवसाय ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने को आतुर है तो मोदी की मंशा है कि ऑस्ट्रेलिया उनके मेक इन इंडिया में भरपूर सहयोग करें। ऑस्ट्रेलिया हिन्द महासागर में भारत की ताकत बढ़ता देखना चाहता है, जबकि भारत आतंकवाद विरोधी गतिविधियों, मादक पदार्थो के अवैध व्यापार पर लगाम तथा सीमा संबंधी जरुरतों में दोनों देशों की भागीदारी। हालांकि इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर दोनों में समझौते भी हुए है। कहा जा सकता है कि आगामी दिनों में ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के संबंध में प्रगाढ़ता आने के साथ ही कौशल निर्माण, सैन्य सुरक्षा व उर्जा जैसे क्षेत्र में मजबूती आयेगी। इन सबके बीच खटकाने वाली बात यह है कि सौदागर के रुप में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मोदी से एक हाथ आगे निकल गए है। कहा जा सकता है कि भारत और चीन की टक्कर सीमा पर ही नहीं बल्कि विदेशी जमीन पर भी दिखा। खासकर उस वक्त जब नरेन्द्र मोदी आस्ट्रेलिया की सरजमी पर मोदी अलग-अलग सार्वजनिक काय्रक्रमों व खास मुलाकामों में मशगूल थे तो जिनपिंग चुपचाप आस्ट्रेलिया के साथ बिजनेस डील में लगे थे और फ्री ट्रेड समझौता के तहत अगले 4 से 11 सालों में टैक्स घटवाने में वह सफल भी रहे। हालांकि भारत ने ऑस्ट्रेलिया में चीन को पूरी टक्कर दी। अगर जिनपिंग ने ऑस्ट्रेलिया के संसद को संबोधित किया तो मोदी ने भी वहां के निवासियों का दिल जीतने में सफल रहे। व्यापार मामले में ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का भी ऐसा ही डील साल के आखिर तक होना है और अगर ऐसा हुआ तो मोदी जिनपिंग से ज्यादा पीछे नहीं रहेगे लेकिन शुरुवाती दौर में चीन ने तो बाजी मार ही ली है। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि मोदी को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि टोनी एबाॅट उनके अकेले भाई है। टोनी एबाॅट ने अगर मोदी के साथ तस्वीरें खिचवाई तो मार्निंग वाॅक के दौरान डेविड कैमरान के साथ भी फोटो खिचवाकर यह बताने की कोशिश किया कि इंटरनेशनल नेता के रुप में उनके और भी भाई है। जहां तक विदेशी जमीन पर भारत व चीन की मुकाबले की बात है तो दोनों की चुनौतियां व दिक्कते अलग-अलग है। चीन पहले से उत्पादन के क्षेत्र में बड़ा काम रहा है। ऐसे में अचानक भारत के लिए इंटरनेशनल में खिलाड़ी बनना आसान नहीं है। इसके लिए भारत को संयम व संघर्ष का लंबा रास्ता तय करना होगा।
ऑस्ट्रेलिया में जिस तरह मोदी का स्वागत हुआ है और नएं संबंध बनाएं है उससे दुनिया में भारत के अच्छे दिनों की उम्मीद जगी है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति व व्यापार की दुनिया में चीन एक बहुत बड़ा नाम है। भारत को चीन से आगे निकलने में अभी बहुत कछ करना है, लेकिन कहा जा सकता है कि मोदी की अगुवाई में शुरुवात हो चुकी है। चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए सबसे अहम मुक्त व्यापार समझौते के तहत ऑस्ट्रेलियाई किसानों, वाइन उत्पादकों और डेयरी उत्पादों के उत्पादकों को चीन के बाजार तक पहुंच बनाना आसान हो जाएगा। अगले चार से 11 वर्ष में इन क्षेत्रों में टैक्स पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे। ऑस्ट्रेलियाई वाइन उत्पादक 30 प्रतिशत तक टैक्स देने के बावजूद हर वर्ष 20 करोड़ डॉलर की वाइन चीन को निर्यात करते हैं। टैक्स छूट के बाद इसमें भारी इजाफा होने की संभावना है। इसके बदले चीन को ऑस्ट्रेलिया में निवेश रुकावटों से निजात मिलेगी। यहां जिक्र करना जरुरी है कि ऑस्ट्रेलिया में चीनी मूल के लोगों की संख्या भारतीय मूल के लोगों से बहुत अधिक है। ऑस्ट्रेलिया ब्यूरो ऑफ स्टेटिक्स के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया की कुल दो करोड़ 35 लाख लोगों की आबादी में चीनी मूल के लोगों की संख्या 1.8 प्रतिशत, जबकि भारतीय मूल के लोगों की संख्या 1.6 प्रतिशत है। मतलब चीन निवेश के लिए ऑस्ट्रेलिया के बाजार को आजमाना चाह रहा है और जिनपिंग की इस यात्रा में उसे कुछ हदतक यह सफलता हासिल भी हुई। ऐसे में अब मोदी को इस यात्रा में कितने सफल होंगे अभी कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी। फिलवक्त मोदी और टोनी एबॉट के बीच द्विपक्षीय बातचीत के बाद जिन पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए उसमें शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए भारत को यूरेनियम की आपूर्ति करने की इच्छा के साथ साल के अंत तक निर्यात शुरु करने और सामाजिक सुरक्षा, कैदियों की अदला-बदली, मादक पदार्थों के व्यापार पर लगाम लगाने तथा पर्यटन, कला एवं संस्कति को बढ़ाने की वचनवद्धता दुहराई तो यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। यह उपलब्धि भारत के लोगों की उत्थान को लेकर जगी आशाओं को पूरा करने के लिए कौशल विकास, हर परिवार को घर, बिजली आपूर्ति, स्वास्थ्य सुविधा, ऐसी उर्जा जो हमारे ग्लेशियरों को नहीं पिघलाए, परमाणु उर्जा और व्यवहार्य व रहने योग्य शहर बनाने में ऑस्ट्रेलिया भागीदार बन सकता है। 2015 में ऑस्ट्रेलिया में मेक इन इंडिया शो का आयोजन, अगले वर्ष फरवरी तक सिडनी में भारत का सांस्कृतिक केंद्र खोलने सहित सामाजिक सुरक्षा का समक्षौता बेहद महत्वपूर्ण है जो विशेष रूप से सेवा क्षेत्र से जुड़ा है। इसके अलावा सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग क्षेत्रीय शांति, विभिन्न देशों के बीच अपराधों पर लगाम लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण होगा। ऑस्ट्रेलिया, भारत के साथ उर्जा, सुरक्षा के अलावा इंटेलिजेंस, सैन्य सहयोग, आतंकवाद के विरूद्ध सहयोग और द्विपक्षीय एवं त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास में सहयोग से दोनों देशों में अधिक रोजगार और समृद्धि आयेगी।
जी-20 की जीडीपी में 2018 तक कम से कम दो प्रतिशत तक अतिरिक्त वृद्धि का महत्वाकांक्षी लक्ष्य पेश किया गया। इसमें कहा गया-दो प्रतिशत की वृद्धि से वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2000 अरब डॉलर जुड़ जाएंगे और करोड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा। बड़ी बात तो यह है कि विश्व की शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं के नेता वृहद आर्थिक नीतियों में समन्वय लाने पर एकमत हुए हैं ताकि विकास में सहयोग मिल सके और समावेशी विकास संभव हो सके। इससे असमानता और गरीबी उन्मूलन में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा भारत के परिप्रेक्ष्य में और घरेलू प्राथमिकताओं के मद्देनजर कर चोरी और काला धन का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण रहा, जिसमें एक अहम राजकोषीय वचनबद्धता की गई कि लाभ पर कर उन देशों में ही लगना चाहिए जहां आर्थिक गतिविधियां की जा रही हैं और जहां मूल्यवर्धन किया जाता रहा है। लेकिन बात तब बनेगी जब काले धन संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान में तेजी लाई जाएगी। फिरहाल इस प्रस्ताव से यह उम्मीद जगती है कि साल 2015 तक कोई न कोई ऐसा वैश्विक राजकोषीय ढांचा तैयार हो जाएगा जो बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (बीईपीएस) की कार्ययोजना के तहत विद्यमान अंतरराष्ट्रीय कर नियमों में सुधार कर पाएगा। क्योंकि भारत के पूरे तंत्र में कैंसर की तरह फैले भ्रष्टाचार और इसकी उपज काले धन पर अंकुश लगाना है तो कुछ इसी तरह के फैसले लेने ही पड़ेगे, जिसमें मोदी सफल होते दिखाई दे रहे है। कहा जा सकता है कि करचोरी और काले धन पर अंकुश लगाने संबंधी जी-20 की प्रतिबद्धता सराहनीय है। इसके अलावा मोदी द्वारा म्यांमार में जुटे सभी राष्टाध्यक्षों के बीच अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के नियमों का पालन करने कराने के जिक्र में चीन की मनमानी पर रोक की बात कही गयी, जो काफी सराहनीय है तो है ही जी-20 सम्मेलन में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति से भारतीय प्रधानमंत्री ने बता दिया है कि वह बहुपक्षीय मंचों पर अपनी छाप छोड़ने में सक्षम हैं।
मोदी ने सीधे तो नहीं पाकिस्तान पर परोक्ष हमला करते हुए दुनिया को बताने की कोशिश भी किया कि उन देशों को अलग-थलग करना होगा जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। धर्म और आतंकवाद को जोड़ने के सभी प्रयासों को विफल करना होगा। इंटरनेट के जरिए भर्ती, फिरौती वसूली, हथियारों की तस्करी के जरिए आतंकवाद पैर फैला रहा है। सभी देशों को मिलकर इसके खिलाफ कदम उठाने होंगे। चीन का उल्लेख किए बिना मोदी ने यह बताने की कोशिश किया कि प्रशांत और हिंद महासागर दोनों देशों की जीवन रेखा है। भारत और आस्ट्रेलिया भागीदार बनकर इस क्षेत्र की सुरक्षा को बेहतर कर सकता हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऑस्ट्रेलिया दौरे में कूटनीति के अलावा क्रिकेट भी चर्चा का केंद्र बिंदु बना हुआ है। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में अगले वर्ष आयोजित होने वाले क्रिकेट वर्ल्डकप भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच टूर्नामेंट का फाइनल मुकाबला होने की भी उन्होंने हामी भरवा ली। जो अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। यह ठीक है कि भारतीय नेतृत्व के लिए सभी देशों की यात्रा करना संभव नहीं, लेकिन यह भी अजीब है कि आस्ट्रेलिया सरीखे महत्वपूर्ण देश की अनदेखी कर दी जाए। इस संदर्भ में यह भी ध्यान रहे कि मोदी के पहले तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने पिछले 16 वर्षो में पड़ोसी देश नेपाल का भी दौरा नहीं किया था। यह संयोग ही है कि चंद दिनों बाद मोदी फिर से नेपाल में होंगे। इस बार वह दक्षेस शिखर सम्मेलन में शामिल होने जा रहे हैं। नेपाल और आस्ट्रेलिया के उदाहरण यही सवाल खड़ा करते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि संप्रग शासन के वक्त विदेश नीति संबंधी प्राथमिकताएं कुछ धुंधली पड़ गई थीं?
भारत के संदर्भ में आस्ट्रेलिया का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि वहां सक्षम भारतीयों की अच्छी-खासी आबादी है और वह भारत के आर्थिक विकास में उल्लेखनीय योगदान दे सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आस्टेलिया में रह रहे भारतीय मूल के लोगों का जैसा उत्साहवर्धन किया वह उनके साथ-साथ भारत के लिए भी लाभकारी है। उनकी फिजी यात्र के संदर्भ में भी यह खास तौर पर देखा जाना चाहिए कि वह एक ऐसे देश जा रहे हैं जहां करीब 37 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है। इस देश में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्र दशकों बाद हो रही है। यह संभवतः पहली बार है जब भारत सरकार विदेश में बसे भारतीय मूल के लोगों से अपने लगाव को रेखांकित करने के साथ उन्हें पर्याप्त महत्ता दे रही है। यह काम अन्य देशों और यहां तक कि दुनिया भर में बसे भारतीय मूल के लोगों के संदर्भ में किया जाना चाहिए, क्योंकि उनके द्वारा जो धन स्वदेश भेजा जाता है वह अर्थव्यवस्था को एक बड़ी ताकत प्रदान करता है। मोदी की विदेश नीति का मूल्यांकन होना अभी शेष है, लेकिन इससे इन्कार नहीं कि उन्होंने उसे कुछ नए आयाम प्रदान किए हैं और उसके उल्लेखनीय नतीजे मिलने के बारे में उम्मीद की जा सकती है। आश्चर्य है कि भारत में कुछ विरोधी दलों को नरेंद्र मोदी का विदेश दौरा रास नहीं आ रहा है। कई राजनीतिक दलों ने मोदी के म्यांमार और आस्ट्रेलिया दौरे में खोट निकाल ली है। क्या उस वक्त भी प्रधानमंत्री की आलोचना करना जरूरी है जब वह विदेश यात्रा पर हों? आखिर यह काम उनकी स्वदेश वापसी पर क्यों नहीं हो सकता? यानी कुल मिलाकर देखा जाएं तो मोदी की शपथ ग्रहण के 6 महीने के भीतर हुई विदेश यात्राएं न सिर्फ आर्थिक प्रगति बल्कि ढ़ाचागत बदलाव लाने की दृष्टि से प्रेरित तो है ही वैश्विक आर्थिक परिवेश का भी योगदान दिखता है। 21वीं सदी में वैश्विक व द्विपक्षीय संबंधों की प्राथमिकताएं नए सिरे से तय हो रही है। ऐसे में राष्ट्राध्यक्षों के साथ-साथ रक्षा, वित और विदेश मंत्रियों के लिए जरुरी हो गया है कि वे कुशल व्यापारिक दूत की भांति वैश्विक मंच पर उपस्थिति दर्ज कराकर विदेशी निवेश को बढ़ावा दें, आतंकवाद विरोधी पहल में भागदार बने, जलवायु पािवर्तन से लेकर खाद्य सुरक्षा तक के मोर्चे पर कूटनयिक व नीतिगत बातचीत में देशहित को ध्यान में रखकर संधि-समझौता करें। यानी विदेश नीति का क्षेत्र अब बेहतर अर्थव्यवस्था व विकास है, जिसमें प्रधानमंत्री सफल होते दिखाई पड़ रहे है।
इतना ही नहीं मोदी ने म्यांमार में पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन (ईएएस) और इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में जी 20 शिखर सम्मेलन में भारतीय मीडिया को खूब लुभाया, लेकिन जब यही लोकप्रियता विदेशी मीडिया और लोगों में भी दिखाई दे तो यह किसी नवनिर्वाचित नेता की वैश्विक मंच पर राॅक स्टार की पहचान नही ंतो और क्या कहेंगे। इंग्लैंड के गाजिर्यन में छपी दिलचस्प टिप्पणी मोदी की लोकप्रियता में चार चांद लगाने के लिए काफी है, जिसमें कहा गया है कि सबसे बड़े लोकतंत्र के नए प्रधानमंत्री के रूप में इस 64 साल के व्यक्ति में कुछ ऐसा जज्बा है, जिसकी दुनियाभर के नेतागण गुणगान सप्ताह भर करते दिखा। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने खुद भारत को उभरता सुपर पावर कहा है। साथ में भरोसा भी दिया कि अगर सब ठीक रहा तो ऑस्ट्रेलिया जल्द उपयुक्त सुरक्षा उपायों के साथ भारत को यूरेनियम का निर्यात शुरू कर देगा। अब देखना है कि मोदी व जिनपिंग में कौन ऑस्ट्रेलिया के साथ मजबूत रिश्ता बनाने में सफल होगा। कहा जा सकता है चीन की ऑस्ट्रेलिया निवेश का रास्ता साफ हो गया है, लेकिन भारत को अभी इंतजार करना होगा। क्योंकि यूरेनियम निर्यात का भरोसा तो मिला है, लेकिन इसके लिए काफी प्रयास करने होंगे। मोदी व टोनी के बीच हुए समझौते के तहत साल के अंत तक भारत फ्री ट्रेड एग्रीमेंट करने के साथ ही यूरेनियम निर्यात का करार होने से आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा दोनों देशों ने सितम्बर में एक-दुसरे को वर्क और हरवे बीजा देने की भी सहमति हो जाने के बाद नागरिकों की आवाजाही आसान हो जायेगा।
मोदी का मानना है कि छोटे-मोटे बातों को लेकर पड़ोसियों से पंगा ठीक नहीं। दुश्मनों को करारा जवाब देने के लिए पड़ोसियों का साथ मिले कामयाबी संभव नहीं। भारत में नासूर बनता जा रहा आतंकवाद, रोज-रोज पाकिस्तानी सेनाओं का सीजफायर उल्लंघन व चीन के अतिक्रमण को करारा जवाब तभी संभव है जब विश्व की महाशक्तियां साथ हो। असलहा-औजारों से लैस हो और अंतर्राष्टीय स्तर पर झूठे बातों का बहाना बनाकर भारत की छबि को कोई बट्टा न लगा सके और भारत का सिर पूरी दुनिया में उंचा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रयासरत भी है। यह तभी संभव है जब भारत आर्थिक व रोजगार के मोर्चे पर बेहतर व सुदृढ़ हो। बेशक मोदी के इस फौलादी विचारों को एक के बाद पंख लगते ही जा रहे है। पहले भूटान, नेपाल, जापान, अमेरिका और अब म्यांमार का दिल जीतने के बाद आसियान सहित पूर्वी एसियाई देशों से निवेश व कारोबार के साथ-साथ ठप पड़ी पूर्व की योजनाओं को त्वरित गति से पूरा करने की सहमति बन गयी। मतलब 12वें आसियान-भारत शिखर वार्ता में छा गए है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। बड़ी बात तो यह है कि अब सात समुंदर पार भी मोदी का मेक इन इंडिया कंसेप्ट हिट हो गया है, तो बराक ओबामा मोदी की तारीफ करते फिर रहे है। यहां तक कि मोदी को ओबामा ने यू आर एक्शन मैन आफ इंडिया की संज्ञा दे डाली तो खाद्य खुरक्षा के उद्देश्य से सार्वजनिक खाद्यान्न भंडारण के मुद्दे पर सहमती बनाते हुए प्रतिबंध हटा ली है, जो भारत के लिए अच्छी खबर है।
जहां तक विदेश नीति की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की धमक अब पूरी दुनिया में दिखाई दे रही है, लेकिन सही मायने में जमीन पर ये धमक भारत के विकास में कितना काम आयेगी, रोजगार व इकोनामिक ग्रोथ में कितना बढ़ावा देगी व हमारी रणनीतियां कितनी मजबूत होगी यह तो वक्त बतायेगा। लेकिन शिखर सम्मेलन में मौजूद हर राष्ट्राध्यक्ष जिस तरह उनके काम की सराहना करते दिख रहा है, उससे तो कहा जा सकता है कूटनीतिक व राजनीतिक मामलों में प्रधानमंत्री मोदी की ग्लोबल छबि पूरी दुनियाभर में डिमांड बन गयी है। थाइलैंड के प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओ-चा ने मोदी को समर्थन देते हुए उनकी अवधारणा को वह अपने देश में भी लागू करने की बात कह रहे है। तभी तो एक झटके में न सिर्फ सभी राष्ट्राध्यक्ष द्विपक्षीय मामलों में भारत के रिश्ते मजबूत हों गए बल्कि 2015 तक आसियान देशों और भारत के बीच व्यापार 100 विलियन डालर विनिवेश के साथ भारत-म्यांमार-थाइलैंड को जोड़ने वाले 3200 किमी लंबे हाईवे के निर्माण में तेजी लाने की सहमति बनी। यहां यह बता देना जरुरी है कि पड़ोसी देश होने के बावजूद इंफाल व मांडले के बीच बस सेवा शुरु होने का सपना ही देखा जा रहा था। पिछले पांच सालों से सड़क की बात की जा रही है, लेकिन अभी तक अमली-जामा नहीं पहनाया जा सका। जबकि दोनों शहरों के बी मात्र 500 किमी की दूरी है। यही हाल हवाई यात्रा का भी है। भारत से सीधे म्यांमार नहीं पहुंचा जा सकता। मलेशिया, सिंगापुर या थाइलैंड के जरिए ही पहुंचना पड़ता है, इंडियन एअरलाइंस सप्ताह में सिर्फ दो ही दिन उड़ान भरती है। वह भी दिल्ली नहीं कोलकाता से जाना पड़ता है। शायद इसीलिए मोदी मयांमार के राष्टपति से मुलाकात के दौरान सांस्कृतिक व वाणिज्यिक संबंध बढ़ाने के साथ ही यातायात संपर्क बढ़ाने पर जोर दिया। इतना ही नहीं शिखर सम्मेलन में बड़े ही सधे अंदाज में प्रतिद्वंदी देश का नाम लिए बगैर मोदी ने आतंकवाद को धर्म से दूर रखने की वकालत तक कर डाली। मोदी ने भारत आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट के संबंध में पूर्वी एशिया सम्मेलन की घोषणा का पूरी तन्मयता से समर्थन किया। और दो टूक में बता दिया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद के खतरों के खिलाफ भी साथ होना चाहिए। आज आतंकवाद और उग्रवाद की चुनौतियां बढ़ रही हैं। नशे और हथियारों की तस्करी और मनी लॉन्डरिंग का इनसे करीब का संबंध है।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि भारत में आर्थिक विकास, औद्योगिकरण, वाणिज्य, कनेक्टिविटी तथा कारोबार का एक नया युग शुरु हो चुका है। विश्व को आज मजबूत भारत-आसियान साझेदारी की जरुरत है। तेजी से विकसित होता भारत और आसियान एक-दूसरे के महत्वर्पूण साझीदार हो सकते है। व्यापार की राजधानी म्यांमार, थाईलैंड-मलेसिया, साउथ कोरिया, फिजी आदि देशों राष्ट्राध्यक्षों ने मेक इंडिया की सराहना कर विनिवेश पर भी अपनी इच्छा जताई है। भारत की उर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए भारत-अमेरिका परमाणु समझौते की तरह आस्ट्रेलिया का भी यूरेनियम यानी परमाणु समझौता की हरी झंडी मिल ही गयी है, जिसे मोदी की बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है। बतौर पीएम मोदी की पहली धमक जापान में दिखी। जापान ने भारत में करीब 35 अरब डालर निवेश के साथ ही भारत के स्मार्ट सीटी प्रोजेक्ट में मदद का भरोसा भी दिया। मोदी की काशी को क्योटो की तर्ज पर स्मार्ट बनाने का काम शुरु भी हो चुका है। मोदी की विदेश नीति का अहम् पड़ाव रहा अमेरिका, जहां मोदी का जादू सिर चढ़कर बोला। अमेरिका में एडिसन सुभाष से लेकर निवेशकों ने मोदी की बातों को गौर से सुनी और निवेश की इच्छा भी जताई। दोनों देशों के बीच कई समझौते भी हुए। भारत और अमेरिका ने रक्षा समझौते को अगले 10 साल तक बढ़ाने की सहमति भी जताई तो अमेरिका ने भारत के साथ 20 हजार करोड़ से भी ज्यादा रक्षा सौदे करने की इच्छा भी जाहिर कर चुका है। व्यक्तिगत तौर मादी व ओबामा के बीच दोस्ती की जो झलक दिखी उससेएक नयी उम्मीद भी जगी है। मोदी ने उस देश के मन को भी मोहने की कोशिश की जो भारत का पड़ोसी है लेकिन सामरिक और आर्थिक तौर पर भारत का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी है। यह मोदी की ही करिश्मा है कि अमेरिका के ओबामा ने खाद्य सुरक्षा मामले में सहमति बन गयी और प्रतिबंध हटा लिया गया। ओबामा को समझ में आ गया कि भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश के लिए खाद्य सुरक्षा वास्तव में एक जमीनी हकीकत है, क्योंकि कोई भी सरकार भारत में हो, वह खाद्यान्न के मामले में अपने नागरिकों को पूरी तरह बाजार के हवाले नहीं कर सकती। अब खाद्यान्न सुरक्षा के मुद्दे पर भारत और अमेरिका के बीच खाद्यान्न के सार्वजनिक भंडारण पर सहमति बन गई है। जाहिर है कि इससे विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सुगमता करार के कार्यान्वयन को लेकर बना गतिरोध दूर हो गया है। असल में भारत में खाद्यान्न सुरक्षा कितनी जरूरी है, यह इसी से समझा जा सकता है कि आज भी देश में पांच वर्ष की उम्र के साढ़े छह करोड़ बच्चे भुखमरी व कुपोषण की चपेट में हैं। एक सर्वे के अनुसार भारत में कुपोषित बच्चों की कुल संख्या 21.30 करोड़ है। हालांकि हमारे यहां खेतीवाली जमीन का रकबा 17 करोड़ हेक्टेयर है और आंकड़े बताते हैं कि खाान्न के उत्पादन में किसी प्रकार की कोई कमी भी नहीं है, फिर भी विडंबना है कि करोड़ों लोग भूख के शिकार हैं।
इसके अलावा मोदी ने चीन के राष्टपति का अपनी सरजमी पर भव्य स्वागत भी किया लेकिन यह मोदी की कूटनीति एकतरफा नहीं रही बल्कि ग्लोबल लीडर के तौर पर उभर रहे प्रधानमंत्री मोदी ने चीन की चालबाजी पर नकेल कसने की कोशिशे भी जारी रखी। सरकार बनने के कुछ ही दिनों बाद नेपाल दौरा इसी कोशिश की एक कड़ी भी है। चीन के नजदीक जाने के बाद मोदी ने नेपाल की सड़क से संसद तक हर किसी को नेपाल के विकास में साझीदार बनने का भरोसा भी दिलाया। आर्थिक मदद का एलान भी किया। मोदी ने वियतनाम से भी दोस्ती गांठने शुरु कर दी है। समुद्र से तेलों के उत्खनन के लिए भारत व बियतनाम के बीच समझौतों पर दस्तखत भी किए। यह खनन उसी समुद्र के हिस्से पर होगा, जिस पर चीन अपना दावा करता रहा है। मोदी देश की विकास व विस्तार को उसी तर्ज पर कर रहे है जिससे देश के विकास की रफतार आगे बढने के साथ ही दुश्मनों को करारा जवाब मिलता रहे। म्यांमार इंटरनेशनल कांफ्रेंस सेंटर में मेदवेदेव ने भारत-रूस रिश्तों की प्रगाढ़ता के लिए मोदी को करीबी और मूल्यवान साझेदार बता रहे है तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उन्हें कर्मठ व्यक्ति मैन ऑफ ऐक्शन बता डाला। यह सब मोदी का करिश्मा ही कहा जा सकता है। उन्हें भरोसा है कि दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत होंगे। बात भी सही है क्योंकि वर्तमान में दोनों देशों की संघीय इकाइयों-राज्यों और क्षेत्रों के और अधिक सहयोग की जरूरत है। जुलाई में ब्राजील में ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन से इतर पुतिन के साथ अपनी पहली मुलाकात में मोदी ने परमाणु, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों में रूस के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने की वकालत की थी। अगर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुरीद हो गए हैं तो यह अपने आप में एक बड़ी बात है। मोदी ने थाइलैंड और मलेशिया के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक मुद्दे उठाकर थाइलैंड के प्रधानमंत्री को भारत आने का न्योता दिया तो भारत में निवेश की संभावना ऐसे ही बढ़ गयी है। इसके बाद मोदी आज ही आस्ट्रेलिया के लिए रवाना हा जायेंगे। वैसे भी दक्षिण प्रांत सागर में 13 देशों का समूह संयुक्त राष्ट्र संध का बड़ा वोट बैंक है। इस वोट बैंक को भी मोदी अपना मुरीद बनाने में सफल रहे, जो संयुक्त राष्ट्र परिषद में भारत की सदस्यता वाले सुप्त एजेंडे के वक्त काम आयेगा।
मोदी पिछली सरकारों की विफलता को भलीभांति समझ रहे है, वह समझ रहे है कि अगर रिश्ते अच्छे रहे तो 3200 किमी भारत-म्यांमार कब का बन चुका होता। इन सबके बावजूद मोदी ने न सिर्फ अच्छे रिश्ते बनाने में सफल हो गए बल्कि थाइलैंड में संस्कृत सम्मेलन और पूर्वी एशिया के 10 देशों को बौध सर्किट से जोड़ने के लिए उन्हें राजी भी कर लिया है। माना जा रहा है भारत-म्यांमार राजमार्ग 2017 तक हरहाल में बनकर तैयार हो जायेगा। कलादान मल्टीमाॅडल ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट का भी अब पूर्ण होना लगभग तय माना जा रहा है, जबकि इस प्रोजेक्ट को 2014 में ही पूर्ण होना था। इस काम में भी अब तेजी आयेगी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि पूर्वी एसिया में उर्जा का भंडज्ञर है। व्यापार की असीम संभावनाएं है। यूरोप से 15 गुना बड़ा यह इलाका दुनिया की अर्थव्यवस्था का राजधानी कहा जाता है। मोदी की यह पहल जरुर भारत के मेक इन इंडिया के लिए कारगर साबित होगी। एपेक में भी यह तय हुआ कि एसिया में चीन और अमेरिका सन्य प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगे। प्रधानमंत्री का अगला पड़ाव फीजी है जहां 42 प्रतिशत भारतीय है। इस इलाके में अमेरिका, फ्रांस और आस्ट्रेलिया के असर को चीन ने निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिए काफी कम जरुर किया है फिर भी मोदी यहां से कुछ नया ही करने वाले है। आस्ट्रेलिया ने भारत को यूरेनियम की आपूर्ति के लिए प्रशासनिक प्रबंध अगले साल की पहली छमाही तक देने की बात कही है। दोनों देशों ने सितम्बर में यहां आस्ट्रेलिया प्रधानमंत्री टाॅनी एबाॅट यात्रा के दौरान असैन्य परमाणु करार पर दस्तखत किए थे। ब्रिटेन के उप प्रधानमंत्री नीक क्लेग ने दक्षिण एसिया में इस वर्ष अनुमानित बेहतर आर्थिक वृद्धि, रोजगार व निवेश में वृद्धि का श्रेय मोदी को ही दिया है। इस साल भी यह वृद्धि 6 प्रतिशत से अधिक रहने की बात कही गयी है। इस लिहाज से पूर्वी एसिया तथा प्रशांत क्षेत्र के बाद यह दुसरा तीब्र वृद्धि वाला क्षेत्र बन जायेगा।
अधिकांश मामलों में सभी देश अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार ही द्विपक्षीय या बहुपक्षीय संबधों को स्थापित करने निर्णय लेते है लेकिन आस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है। ये देश उन्हीं देश के साथ खड़ा होता है जिसके साथ अमेरिका होता है। वैसे आस्ट्रेलिया भी भारत और अमेरिका के साथ उसी तरह का त्रिपक्षीय संवाद चाहता है जिस तरह भारत-जापान-अमेरिका के बीच है। लेकिन भारत और चीन के कडुवाहट को समझते हुए वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहता जिससे उसके सामने किसी तरह की कठिनाई आड़े आ रही हो। चूकि जापान और अमेरिका भारत से मित्रता के लिए बेताब है तो आस्ट्रेलिया की भी झिंझक अब खत्म हो रही है। जो भी हो भू रणनीतिक एवं आर्थिक लिहाज से भारत की एसिया प्रशांत नीति की अहम् कड़ी है। इसलिए उसके बगैर भारत की एक्ट-इस्ट नीति समर्थ और पूर्णफलदायी नहीं हो पायेगी। आस्ट्रेलिया के साथ दुनियाभर के व्यापार के साझीदार के रुप में पांचवा स्थान है लेकिन भारतीय निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2016 के आखिर तक इसके 40 लाख विलियन डालर होने की उम्मीद है जबकि 2013 में 17 विलियन डालर था। भारत और आस्ट्रेलिया के बीच उर्जा सुरक्षा सहयोग की सहमति पहले ही बन चुकी थी इसे मोदी ने और मजबूत कर दिया है। इस दृष्टि से दोनों देशों के सहयोग क्षेत्र कोयला, एलएनजी, नवीकरण्ीय एवं यूरेनियम, लौह, अयस्क, तांबा, स्वर्ण आदि होंगे। इसके अतिरिक्त दोनों देश घटते जल संसाधनों और नदी बेसिन प्रबंधन की चुनौतियों का सामाना करने के लिए साझा रणनीति तय करेंगे। उद्यम क्षेत्र में सहयोग के साथ दोनों देश संयुक्त रुप से युवा कौशल विकास पर साक्षा प्रयास करने के लिए वचनबद्धता दोहराई है। इस लिहाज से आस्ट्रेलिया का न्यू कोलंबो प्लान भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
एक तरफ जहां म्यांमार का भारत के साथ कारोबार और आर्थिक जुड़ाव काफी कम है वही चीन के साथ कई गुना अधिक है। इसका बड़ा उदाहरण खुद म्यांमार की राजधानी नेपीटो शहर है जिसे खड़ा करने में चीन की सबसे अधिक भूमिका रही है। म्यांमार में सबसे अधिक विदेशी निवेश इंफ्रास्टक्चर सेक्टर में हो रहा है और इसमें प्रभुत्व चीन की कंपनियों का है, सड़क, एअरपोर्ट, इमारतें बनाने से लेकर पुल, बांध बनाने तक। यहीं हाल तेल और प्राकृतिक गैस के मामले में है। चीन के अलावा यहां अमेरिका, रुस, कोरिया, मलेशिया, थाइलैंड और ब्रिटेन की कंपनियों की भरमार है। लेकिन बगल में मौजूद भारत की नुमांइदगी गिनी-चुनी कंपनिया ही करती है। मसलन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में टाटा मोटर्स तो तेल और प्राकृतिक गैस में एस्सार। ऐसी दशा में भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने का सपना देख रहे प्रधानमंत्री मोदी को पता है कि अगर भारत को आगे बढ़ाना है तो उन बाजारों में भी भारत और उसकी कंपनियों को प्रवेश कराना होगा जिसमें विकास की संभावनाएं काफी अधिक है। ऐसे बाजारों में म्यांमार प्रमुख है, जो बाकी दुनिया के लिए धीरे-धीरे खुल रहा है और इंफ्रास्टक्चर से लेकर तेल, प्राकृतिक गैस और पर्यटन के क्षेत्र में यहां संभावनाएं अधिक है। इसी के मद्देनजर म्यांमार के राष्टपति ने जैसे ही मोदी को द्विपक्षीय वार्ता के लिए अगले साल म्यांमार आने का न्योता दिया उन्होंने तुरंत उसे लपक लिया। मोदी बेहतर संबंधों की जमीन भी तैयार करने में लग गए है। जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। आर्थिक तौर पर नजदीकी संस्कृति और सड़क दोनों के जरिए आती है, इसका अहसास है मोदी को। इसलिए वो एक तरफ जहां अगले म्यांमार दौरे में एतिहासिक मंदिरों वाले शहर बगान में जाने की योजना बना चुके है तो भारत, म्यांमार और थाइलैंड के बीच प्रस्तावित सड़क परियोजनाओं को भी गति देने की कोशिश के साथ भारत-म्यांमार संबंधों को नयी उंचाई पर ले जाने की कवायद में जुटे है।
(सुरेश गांधी)