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ई है बिहार का ‘इंटरनेशनल’ लिट्टी-चोखा : आमिर खान

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अपनी अगली फिल्म ‘पीके’ के प्रचार के लिए आए बॉलीवुड स्टार आमिर खान ने पटना शहर स्थित संजय गांधी जैविक उद्यान के सामने एक ढाबे पहुंचकर एक बार फिर बिहारी व्यंजन लिट्टी-चोखा का खाया। संजय गांधी जैविक उद्यान के गेट नंबर एक के सामने स्थित राज स्वीट्स में आमिर ने बिहारी व्यंजन लिट्टी-चोखा का खाते हुए ‘भाषा’ को बताया कि पिछली बार यह उन्हें इतना उम्दा लगा था कि यह निर्णय किया था आगे कभी पटना जाएंगे तो जरूर खायेंगे।

राज स्वीट्स के मालिक बिहारी लाल ने कहा कि आमिर द्वारा उनके ढाबे को दोबारा लिट्टी-चोखा खाने के चुने जाने के लिए वह उनके प्रति अनुग्रहित हैं। इससे पूर्व अपनी आने वाली फिल्म ‘पीके’ के प्रोमोशन की बिहार से शुरुआत करते हुए आमिर ने पटना शहर स्थित पीएम माल परिसर के सीनेपालिस में पत्रकारों को संबोधित करते हुए आमिर ने कहा कि बिहार देश का एक महत्वपूर्ण राज्य है। उन्होंने बिहार में बॉलीवुड की फिल्मों की शूटिंग नहीं किए जाने पर अचरज जताते हुए कहा कि अगर उन्हें कभी ऐसा मौका मिलेगा तो जरूर ऐसा करना चाहेंगे।

आमिर ने कहा कि बिहार की यह उनकी तीसरी यात्रा है और वे अपनी पिछली यात्रा के दौरान गया जिला के गहलौर गांव गए थे और वहां जाकर उन्हें बेहद खुशी हुई और यहां के लोगों के बीच उनके प्रति प्यार को देखकर वे जज्बाती हो गये थे। बाहर लंबे समय से इंतजार करने वाले अपने प्रशंसकों से मुखातिब होते हुए आमिर ने कहा कि आप सभी लोगों द्वारा दिए गए प्यार से वह अनुग्रहित हैं। उन्होंने अपने प्रशंसकों से कहा कि उनकी इस फिल्म के आगामी 19 दिसंबर को रिलीज होने के दिन अब उनकी उनसे थियेटर में मुलाकात होगी।

झारखंड में गैर भाजपा सरकार बनेगी : बलमुचू

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कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप कुमार बलमूचु ने कहा है कि चुनाव के बाद झारखंड में गैर भाजपा सरकार बनेगी. श्री बलमुचू ने पत्रकारो सेंकहा कि भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिये झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है । हालांकि गठबंधन पर अंतिम फैसला कांग्रेस आलाकमान का ही होगा 1 उन्होंने कहा कि किस पार्टी का और कौन मुख्यमंत्री बनेगा यह सब चुनाव बाद की परिस्थितियों पर ही निर्भर करेगा 1 कांग्रेस मे मुख्यमंत्री का नाम चुनावो से पहले घोषित करने की परंपरा नहीं रही है । 

उन्होंने कहा कि भाजपा जिस तरीके से विनिवेश के नाम पर कारखानो  कंपनियो और उद्योगो को बेच रही है वह देश के हित में नहीं है और इससे छोटे कारोबारियों को बहुत नुकसान होगा. श्री बलमुचू ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने आप पर भरोसा नहीं रह गया है इसलिये झारखंड में अंतिम समय में आजसू पार्टी के साथ गठबंधन किया है । उन्होंने कहा कि धनबाद मेंपांच सीटोंपर कांग्रेस गठबंधन की स्थिति काफी अच्छी है । कांग्रेस सांसद ने कहा कि ददई दुबे फिलहाल कांग्रेस में नहीं है लेकिन जल्द ही वह कांग्रेस के साथ हो जायेंगे

शिवानंद ने चुनावी राजनीति से लिया सन्यास लेकिन राजनीति से दूरी नहीं

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बिहार के पूर्व मंत्री और राज्यसभा के पूर्व सदस्य शिवानंद तिवारी ने आज चुनावी राजनीति से सन्यास लेने और भविष्य में किसी भी राजनीतिक दल में शामिल नही होने की घोषणा की श्री तिवारी ने आज यहां कहा कि जनता दल यूनाइटेड:जदयू: से निष्कासन के बाद लोग उनके राजनीतिक भविष्य के फैसले का इंतजार कर रहे थे 1 उन्होंने कहा कि कल वह अपने जीवन के 73 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे और काफी सोच विचार कर उन्होंने तय किया है कि अब वह न तो कभी चुनाव लड़ेंगे और न ही किसी राजनीतिक दल में शामिल होंगे लेकिन राजनीति से अलग नही रहेंगे पूर्व सांसद ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ बदलते देखा है । इसलिये उन्होंने तय किया है कि वह अपने संस्मरणों के जरिये इस बदलाव की कहानी को लिखेंगे 1 उन्होंने कहा कि उनके जीवन का अधिकांश समय राजनीतिक कार्यर्कता के रूप में बीता है । इसलिये इस दौरान उन्होंने जो कुछ देखा .सुना और अनुभव किया उसे वह ईमानदारी के साथ लिखने की कोशिश करेंगे

 श्री तिवारी ने कहा कि उनके जीवन में काफी संघर्ष रहा है लेकिन इस संघर्ष में उन्होंने कभी पीठ नही दिखाई। हमेशा उसका सामना किया है । उन्होंने कहा कि अपने जीवन में ज्यादातर फैसला उन्होंने दिमाग से ज्यादा दिल से लिया है।इसके कारण जो लोग जिंदगी को नफाशनुकसान की तराजू पर तौलते हैं उनके मुताबिक उनके :श्री तिवारी: हिस्से में नुकसान ज्यादा आया है । पूर्व सांसद ने कहा कि लोहिया विचार मंच और समता संगठन से हटने के बाद जब वह चुनाव की राजनीति में आये तब से अब तक श्री लालू प्रसाद यादव और श्री नीतीश कुमार के साथ ही रहे. इन दोनों के साथ उनका पुराना रिश्ता रहा है । उन्होंने कहा कि श्री यादव के साथ करीब 50 55 वर्ष तो श्री कुमार के साथ लगभग 40 42 वर्ष से रिश्ता है। 

श्री तिवारी ने कहा कि आज वह इन दोनों नेताों से अलग है । सच कहा जाये तो दोनों ने उन्हें अपने से अलग कर दिया है । उन्होंने कहा कि वह उनकी परेशानी को समझते है । आज की राजनीतिक संस्कृति के अनुसार वह  अपने को ढाल नही पाये इसलिये इन दोनों के गले में अंटकते है । उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का खेद है कि दोनों ने अपने अहंकार की वजह से अपना नुकसान तो किया ही समाज को भी इनसे जितना मिल सकता था वह नही मिला

यह मानना मुश्किल कि श्रीनि के आपसी हितों में टकराव नहीं

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उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि यह स्वीकार करना मुश्किल है कि इंडियन प्रीमियर लीग.आईपीएल. के मालिक होने तथा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड.बीसीसीआई. के अध्यक्ष पद क ो लेकर एन श्रीनिवासन के आपसी हितों में टकराव की स्थिति नहीं है।  न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि क्रिकेट में शुचिता जरूरी है और इससे संबंधित सभी व्यक्तियों को संदेह के दायरे से बाहर रहना चाहिए। 

न्यायालय ने श्रीनिवासन के वकील कपिल सिब्बल से कहा.. हम यह नहीं कह रहे कि आईपीएल फ्रेंचाइजी हासिल करने में कोई धोखाधडी की गई. लेकिन जब आप टीम के मालिक बनते हैं तो आपके हित टीम की भलाई में होते हैैं.जबकि एक प्रशासक के तौर पर आपका झुकाव विपरीत दिशा में होता है। न्यायालय में इस मामले की सुनवाई कल भी जारी रहेगी। 

सत्यम घोटाले में राजू ब्रदर्स को 6 महीने की सजा

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हैदराबाद स्पेशल आर्थिक अपराध अदालत ने सत्यम घोटाले में फैसला सुनाते हुए रामालिंगा राजू और उनके भाई रामा राजू को 4 मामलों में 6 महीने की सजा सुनाई है। पांच केसों में 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। इसके अलावा कंपनी के दूसरे निदेशक राम मिनाम पति को भी दो मामलों में 6 महीने की जेल और 10 लाख जुर्माना लगाया है। बाकी आरोपियों पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। सेबी की ओर से दाखिल किए गए केस में कोर्ट 23 दिसंबर को फैसला सुनाएगा। कॉर्पोरेट जगत के इस सबसे बड़े घोटाले का पर्दाफाश सात जनवरी 2009 को हुआ था। सत्यम कंप्यूटर्स सर्विसेज लिमिटेड के फाउंडर और पूर्व अध्यक्ष बी रामलिंगा राजू ने कंपनी के खाते में छेड़छाड़ कर कई सालों से करोड़ों रुपये मुनाफा कमाने की बात कबूली थी। इसके दो दिनों बाद आंध्र प्रदेश की अपराध जांच शाखा ने उन्हें और उनके भाई बी रामा राजू को गिरफ्तार कर लिया।

सीबीआई ने फरवरी 2009 में जांच शुरू की। उसी साल 7 और 24 अप्रैल और 7 जनवरी 2010 को तीन अलग-अलग आरोप पत्र दाखिल किए। सुनवाई के दौरान सीबीआई ने इससे घोटाले से शेयरधारकों को 14000 करोड़ रुपये नुकसान होने का आरोप लगाया जबकि बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि आरोपी इसके लिए जिम्मेदार नहीं है और इस मामले में सीबीआई द्वारा दाखिल सभी दस्तावेज नकली होने के साथ ही विधिसम्मत नहीं हैं।

इस मामले के दस मुख्य आरोपियों में बी रामलिंग राजू, कंपनी के पूर्व प्रबंध निदेशक बी रामा राजू, पूर्व सीएफओ वडलामणि श्रीनिवास, पूर्व पीडब्ल्यूसी ऑडिटर सुब्रमणि गोपालकृष्णन और टी श्रीनिवास राजू के एक और भाई बी सूर्यनारायण राजू, पूर्व कर्मचारी जी रामकृष्ण डी वेंकटपति राजू और पूर्व इंटरनल चीफ ऑडिटर वी एस प्रभाकर गुप्ता शामिल हैं।

बिहार : संविदा पर बहाल कर्मियों के द्वारा लगातार धरना -प्रदर्शन

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पटना। सूबे में कल्याणकारी सरकार के द्वारा कुशल और अकुशल कर्मियों को कम से कम वेतन और मजदूरी वाला मानदेय देकर कार्य करवाने का धंधा जोरों पर जारी है। यहीं रोग गैर सरकारी संस्था और मिशनरी संस्थाओं में भी लग गया है। उसी रोग के शिकार होने वाले कुशल और अकुशल कर्मी बगावत करने पर उतारू हैं। लगातार संविदा पर बहाल कर्मी प्रदर्शन करने पर उतर गए हैं। उसी सिलसिले में आज संविदा पर बहाल आर.ब्लाॅक चैराहे के पास धरना और प्रदर्शन किए। यह संयोग देखे कि आज ही संविदा पर बहाल ‘ए’श्रेणी के नर्सेस भी आंदोलन के क्रम में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी,पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और स्वास्थ्य मंत्री रामधनी सिंह का पुतला दहन किया। कारगिल चैक के पास पुतला दहन किया गया। 

बिहार में 28 हजार 447 ए.एन.एम.का पद रिक्त है। नवनियुक्त ए.एन.एम.(संविदा) संद्य,बिहार की ओर से कहा गया है कि 10 दिसम्बर 2014 से साक्षात्कार शुरू किया जा रहा है। सरकार से आग्रह करने के क्रम में कहा गया है कि साक्षात्कार लेने वाले राज्य कर्मचारी चयन आयोग को निर्देश दिया जाए कि कुल 28 हजार 447 पद पर साक्षात्कार लिया जाए। अगर ऐसा सरकार के द्वारा नहीं किया जाता है तो 38 जिले के संविदा पर बहाल ए.एन.एम. अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चली जाएगी। बिहार सरकार के प्रधान सचिव को प्रेषित पत्र में हस्ताक्षर करने वालों में नीलम कुमार,लता सिन्हा, रेखा शर्मा, मनोरमा, आरती कुमारी, मधु श्रीवास्तव, उमा कुमारी, उषा कुमारी, रेखा कुमारी, संजू कुमारी आभा सिन्हा,लक्ष्मी आदि हैं। 



आलोक कुमार 
बिहार 

बिहार : आखिरकार अंधेरी रात की सुबह कब होगी?

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  • प्रत्येक दिन सामने वाली रात की आने वाली सुबह को निहारती हैं 148 छंटनीग्रस्त महिलाएं
  • पुस की कड़कड़ाती ठंड और पेट में दाना नहीं रहने से करवटे बदलती काली रात

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पटना। गत बाइस दिनों से सत्याग्रह करने में जुटी हैं बिहार राज्य कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय संद्य की महिलाएं। सरकारी सुविधाओं से महरूम कर दी गयी हैं। पेयजल का प्रबंध नहीं किया जा रहा है। सुख-सुविधाओं को किनारे करके लौह पुरूषों की ही तरह राह पर चल पड़ी हैं लौह महिलाएं। ऐलान कर रखी हैं कि जबतक कल्याणकारी सरकार के द्वारा मांग नहीं मान ली जाती,तबतक पुस की ठंडी रात को झेलते रहेंगी। इस साल की सबसे अधिक ठंड को गया जिले के विभिन्न प्रखंडों में कार्यरत 148 महिलाकर्मी ने सह गयी हैं। इनलोगों को दूध में पड़ी मक्खी की तरह 3 जनवरी 2013 को नियोजन से ही निकाल दी गयी हैं। प्रत्येक दिन सामने वाली रात की आने वाली सुबह को निहारती हैं। आखिरकार अंधेरी रात की सुबह कब होगी वह सुबह होगी?

कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में विभिन्न पदों को लेकर 27 सितम्बर 2007 को साक्षात्कार लिया गया। इसमें 45 शिक्षक, 44 रसोइया, 22 आदेशपाल,20 रात्रि प्रहरी और 17 वार्डेन है। इनको स्थायीकरण करने के बजाए नियोजन से ही अलग कर दिया। घर चले जाने का फरमान जारी कर दिया गया। कहा गया कि जांच के क्रम में अवैध पाया गया तथा जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रारंभिक शिक्षा एवं सर्व शिक्षा अभियान, गया के पत्रांक 03 दिनांक 04 जनवरी 2013 के द्वारा नियोजन रद्द कर दिया है। 

अपने गृह जिले के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के समक्ष 17 नवम्बर 2014 से 24 घंटे का जत्थेवार अनशन पर हैं। प्रत्येक दिन 10 महिलाओं का जत्था 24 घंटे का जत्थेवार अनशन करना शुरू कर देती हैं। रीना कुमारी,मंजू कुमारी,गीता देवी,यशोदा देवी,ममता देवी,फुलकुमारी देवी,प्रमिला कुमारी,विभा कुमारी,हेमलता कुमारी और उषा देवी हैं। इन अनशनकारियों का कहना है कि आपलोगों ने लौह पुरूषों का नाम सुना है। अब आपलोग लौह महिलाओं का भी नाम सुन लें।हमलोग हैं बिहार राज्य कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय संद्य की लौह महिलाएं। 

उनलोगों का कहना है कि सरकार और नौकरशाहों के द्वारा कहा जाता है कि आपलोग सत्याग्रह करने के 72 घंटे पूर्व ही अंग्रिम सूचना दें। हुजूर, हमलोग सूचना देते हैं। 22 दिनों से सूचना दें रहे हैं। मगर हमलोगों की मांग पूर्ण नहीं की जा रही है। हमलोग मांग करते हैं कि कार्यरत कर्मियों की सेवा नियमित करने, छंटनीग्रस्त सेवाकर्मियों को नियोजन में वापस लेने, जनवरी 2014 से बकायी राशि का भुगतान करने,मानदेय में वृद्धि करने,दक्षता परीक्षा के अनिवार्यता को समाप्त करने,पुनः विद्यालय में जाकर सेवा कार्य करने की अनुमति प्रदान की जाए।



आलोक कुमार
बिहार 

विशेष आलेख : एकता जद परिवार की या लोक दल परिवार की

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जनता दल परिवार की फिर से एकजुटता देश को कौन सी नई दिशा देने के लिए है यह प्रश्न विचारणीय है। जनता दल से टूटकर बने दलों के नेताओं ने इस सिलसिले में अभी तक दो बैठकों की हैं जिनमें अलग-अलग पार्टियों का विलय कर नई पार्टी बनाने की सहमति भी हो गई है लेकिन आश्चर्य यह है कि अपनी इस कसरत के औचित्य के बारे में ये नेता यह स्पष्ट करने की स्थिति में नहीं हैं कि कौन सी वैकल्पिक नीतियां और कार्यक्रम हैं जिनके आधार पर वे जनता को यह विश्वास दिलाने में सफल हो सकते हैं कि उन्हें चुनना मोदी से बेहतर विकल्प को चुनना होगा।

जनता दल 1988 में लोक दल से छिटके दलों के फिर एक होने का नतीजा था जिसमें जन मोर्चा के नेता वीपी सिंह ने मुख्य प्रेरक की भूमिका अदा की थी। उनकी छत्रछाया में लोक दल परिवार के नेताओं के जाने की मुख्य वजह यह थी कि बोफोर्स मुद्दे ने उन्हें रातोंरात पूरे देश में जननायक बना दिया था। इसके बावजूद वीपी सिंह ने जनता दल के औचित्य के लिए न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करवाया। इस कार्यक्रम के आधार पर वे जनता दल को व्यापकता प्रदान करते हुए रामो वामो के गठन तक ले गए। रामो वामो के पीछे जो सैद्धांतिक कारक थे उनमें सबसे मुख्य था तत्कालीन राजनीति में उभरी मजबूत क्षेत्रीय शक्तियां जो कि केेंद्रीय सत्ता के द्वारा उनके दमन की भुक्तभोगी होने की वजह से इस मामले में पूरी सुरक्षा चाहती थीं। सरकारिया आयोग राज्यों की स्वायतत्ता को सुनिश्चित करने के लिए ूबनाया गया था लेकिन इसकी सिफारिशों को लागू न करके केेंद्रीय सत्ता ने राज्यों में मनमाने दखल का अपना अधिकार सुरक्षित रखना चाहा था। वीपी सिंह ने देश की व्यवस्था के नए माडल को पेश करते हुए ऐसी संघीय प्रणाली का खाका खींचा जो कि कुछ मामलों को छोड़कर सभी में राज्यों को खुद मुख्तार तरीके से काम करने की गारंटी देता हो। इसी कारण रामो वामो में द्रमुक जैसे दल जुड़े। सामाजिक मामलों में जनता दल वर्ण व्यवस्था को ध्वस्त करके सामाजिक बराबरी की नई व्यवस्था को कायम करने के सपने से अनुप्रेरित था। इसी कारण दलित व पिछड़ी जाति की राजनीतिक शक्तियों के लिए जनता दल अधिक विश्वसनीय बन सका। निजीकरण व कारपोरेट वर्चस्व वाली नीतियों का विरोध करते हुए अर्थव्यवस्था के समाजवादी माडल को कायम करने का जीवट दिखाकर जनता दल वाम दलों को अपना स्वाभाविक साथी बनाने में सफल हुआ था। उक्त वैचारिक सूत्र जनता दल की आत्मा थे।

लेकिन जनता दल परिवार की एकजुटता के नाम से हो रही कसरत में उसकी उक्त वैचारिक आत्मा गायब है। वास्तव में इसे जनता दल परिवार की एकजुटता का नाम देना भ्रामक है। यह लोक दल परिवार की एकजुटता का पर्याय है। इसमें इसी कारण न तो तमिलनाडु का कोई क्षेत्रीय दल दिलचस्पी दिखा रहा है न ही वाम पंथ इसके लिए गर्मजोश है। नवीन पटनायक व ममता बनर्जी भी इस एकता को लेकर  कोई दिलचस्पी नहीं दिखा पा रहे। लोक दल परिवार की भी यह पूरी एकजुटता इस कारण नहीं है क्योंकि चौधरी अजीत सिंह ने इससे दूरी बनाए रखी है।

लोक दल परिवार का राजनीति के मामले में अजीब हाल है। वैसे तो समाजवाद व लोहिया वाद से यह अपना गर्भनाल का संबंध जोड़ता है लेकिन लोहिया वाद से इसका केवल इतना नाता है कि इस परिवार को लोहिया के पिछड़ों ने बांधी गांठ सौ में पावें साठ के नारे मात्र में ही दिलचस्पी है। लोहिया ने जाति तोड़ो आंदोलन चलाया था। लोक दल परिवार ने पिछड़ों से कहा अपना जाति उल्लेख गर्व के साथ करो। यह लोहिया वाद से पूरी तरह विचलन को दर्शाता है। इसी तरह लोहिया जी पश्चिमी तर्ज के उदार लोकतंत्र के लिए समर्पित और संघर्षशील रहे जबकि लोक दल परिवार का चाहे वह चौटाला हों लालू हों या मुलायम सिंह सर्वसत्ता वाद में विश्वास रहा है। जहां तक समाजवाद की बात है तो समाजवाद लोक दल परिवार के लिए केवल भाषणों की शोभा है वैसे इस परिवार के नेताओं को कारपोरेट का वर्चस्व उतना ही गुदगुदाता है जितना कांग्रेस और भाजपा को।

लोक दल परिवार में दल के आंतरिक लोकतंत्र में कभी विश्वास नहीं जताया गया। वोट लूटने की परंपरा इस परिवार में चौधरी चरण सिंह के जमाने से जारी है। इंदिरा गांधी ने इसी कारण चौधरी चरण सिंह के निर्वाचन क्षेत्र में चलित मतदान केेंद्र बनवा दिए थे ताकि अनुसूचित जाति के मतदाताओं को स्वतंत्र होकर मतदान करने का अवसर मिल सके। जनता दल में वीपी सिंह ने आंतरिक लोकतंत्र के तहत ही एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत लागू करना चाहा था जिसकी क्या दुर्दशा की गई यह उस समय उत्तर प्रदेश जनता दल के अध्यक्ष घोषित किए जाने पर रामपूजन पटेल के साथ हुए दुव्र्यवहार की कहानी से स्पष्ट है। सांप्रदायिकता विरोध के मामले में भी लोक दल परिवार को बहुत पक्का नहीं कहा जा सकता। बाबरी मस्जिद के ध्वंस सहित तमाम निर्णायक मौकों पर इस परिवार के नेता रणछोर भाई साबित हुए हैं।

दरअसल जनता दल परिवार के नाम से जो जमावड़ा होने जा रहा है उसकी हैसियत कुछ हिंदी प्रांतों तक सिमटी हुई है। इस वास्तविकता को देखते हुए यह नहीं माना जा सकता कि वास्तव में इस परिवार के छत्रपों में मोदी को शिकस्त देने की कोई इच्छाशक्ति है। सही बात यह है कि जनता दल परिवार की एकता के नाम पर दूसरा खेल चल रहा है। इस एकता के लिए पहल समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की हो रही है जो एक समय जनता दल तोडऩे के मुख्य सूत्रधार थे। मुलायम सिंह यादव गठबंधन सरकारों के युग तक प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने का सपना देखते रहे लेकिन अब वे अपनी सीमाएं पहचानते हैं। उनके पास अब इतनी उम्र और ताकत नहीं बची जिससे वे अपना ख्वाब जारी रखने की सोचें। जाहिर है कि मुलायम सिंह ने स्थितियों से समझौता कर लिया है। अब उनकी दिलचस्पी सिर्फ इसमें है कि उत्तर प्रदेश में उनका पारिवारिक साम्राज्य कई पीढिय़ों तक कायम रहे। मोदी से टकराने की उत्कंठा अब उनमें नहीं है लेकिन उत्तर प्रदेश के अपने किले को सुरक्षित रखने के लिए वे इस प्रदेश में अपने विकल्प को खत्म करने का यह अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहते। जनता दल परिवार की एकता के नाम पर उन्होंने ऐसी प्रतीति कराई है कि धर्मनिरपेक्ष वोटरों में वे महाकाय नेता के रूप में स्थापित हों यानी उन्हें वोटरों का यह तबका भाजपा के एकमात्र विकल्प के रूप में उत्तर प्रदेश में स्वीकारने की मानसिकता बना ले। यह कहीं निगाहें कहीं निशाने का खेल है। मुलायम सिंह का पूरा दांव उत्तर प्रदेश में बसपा के वजूद को खत्म करने का है। इसके बाद अगर भाजपा सत्ता में आ भी जाए तो अगली बार सपा को फिर सत्ता में वापसी की गुंजाइश बनी रहेगी। इस तरह उक्त एकता का एक एंगिल यह भी है कि यह कुलकों की दलित विरोधी एकता के रूप में व्यवहरित होने के खतरे का भी संकेत है। यह संयोग नहीं है कि कुलकों और दलितों के बीच की खाई को भांपते हुए भाजपा दलितों के बीच अपने आधार को विस्तृत करने में लग गई है। चुनाव के पहले रामविलास पासवान व उदित राज का भाजपा में शरणम् गच्छामि होना दलितों में अचेतन तौर पर असुरक्षा की भावना का परिणाम हो सकता है। साथ ही भाजपा ने इस बार अंंबेडकर परिनिर्वाण दिवस मनाने में भी पहले से ज्यादा सक्रियता दिखाई है। अगली अंबेडकर जयंती केेंद्र सरकार द्वारा भारी तामझाम से मनाने की तैयारी की जा सकती है। दलितों और पिछड़ों के बीच अगर द्वंद्व बढ़ता है तो यह उस जनता दल की सबसे बड़ी पराजय होगी जिसके नाम पर कुलकों की एकता हो रही है। जनता दल की प्राथमिकता में वर्ण व्यवस्था को तिरोहित करना सर्वोपरि रहा है। इसी के तहत एक ओर मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की गई थी दूसरी ओर बाबा साहब अंबेडकर को भारत रत्न घोषित किया गया था। कुलकों की राजनीति जाने-अनजाने में वर्ण व्यवस्था की मजबूती का मुहावरा गढ़ती रही है। साथ ही साथ इस राजनीति ने अपने दलित विरोधी रुख से व्यवहारिक तौर पर भी वर्ण व्यवस्था को भी काफी हद तक सुरक्षित किया है। जनता दल परिवार की एकता की कोशिशों की सबसे बड़ी उपलब्धि मुलायम सिंह और लालू यादव के बीच होने जा रही रिश्तेदारी है। जैसा कि ऊपर की पंक्तियों में कहा जा चुका है कि लोक दल परिवार अपनी तासीर में सर्वसत्ता वादी होने से लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता के मामले में पूरी तरह बेवफा है। इस कारण उत्तर प्रदेश से बिहार तक रिश्तेदारों के साम्राज्य का सपना इसमें एकता का मुख्य आधार सिद्ध हो रहा है तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है।



के पी सिंह 
ओरई 

प्रभावित क्षेत्रों में काम करना किसी चुनौती से कम नहींः उपराष्ट्रपति

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उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी ने कहा कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख जैसे दूरदराज़ क्षेत्रों और झारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काम करना किसी चुनौती से कम नहीं है, ऐसी चुनौती को स्वीकार कर चरखा का कार्य सराहनीय है। श्री अंसारी रविवार को नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित चरखा विकास संचार नेटवर्क के 20वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि चरखा संस्थापक स्व. संजोय घोष और संगठन के सदस्यों द्वारा विवादित और दूरदराज़ तथा पिछड़ेे क्षेत्रों में रहने वालों विशेष तौर पर गरीबों और ज़रूरतमंदों की सेवा उल्लेखनीय पहल है। उन्होंने चरखा और इससे जुड़ेे सभी सदस्यों को उनके सराहनीय कार्य के लिए बधाई दी और आने वाले दशकों में भावी प्रयासों की सफलता की कामना भी की।

इस अवसर पर चरखा अध्यक्ष सुमिता घोष ने उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी को चरखा का प्रतीक चिंन्ह भेंट किया। इससे पूर्व चरखा की सहयोगी रही वरिष्ठ पत्रकार और लेखक उषा राय की अध्यक्षता में एक परिचर्चा आयोजित की गई जिसमे चरखा के 20 वर्षों के सफर और चुनौतियों पर चर्चा की गई। इस परिचर्चा में चरखा अध्यक्ष सुमिता घोष, हेल्पेज इंडिया के महानिदेशक और स्व. संजोय घोष के कॉलेज मित्र मैथयू चेरियन तथा संस्था की मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुश्री अंशु मेशक ने भाग लिया। समारोह में जम्मू स्थित पुंछ, बिहार, झारखण्ड, असम और लद्दाख से आये चरखा प्रतिभागियों के अलावा बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। 

ज्ञात हो कि जमीनी स्तर से जुड़े एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने वाले संजोय घोष ने 1994 में एक गैर सरकारी संस्था के रूप में चरखा की स्थापना की थी। जिसका मूल उद्देश्य समाज के गरीब और वंचित वर्गों तक विकास का समुचित लाभ पहुँचाना है। वहीं समाचारपत्रों के माध्यम से उनकी आवाज को नीति निर्धारकों तक पहुँचाना विशेष रूप से शामिल है। वर्तमान समय में चरखा लेखकों के आलेख हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाले देश के तकरीबन सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित किये जा रहे हैं। 1997 में असम के चरमपंथी गुट उल्फा ने संजोय घोष की हत्या कर दी थी।     

विशेष आलेख : औद्योगिकरण के नाम पर झारखण्ड के साथ भद्दा मजाक

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  • औद्योगिकरण के नाम पर झारखण्ड के आदिवासियों,दलितों, शोषितों के साथ किया जा रहा भद्दा मजाक

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प्राकृतिक संसाधनों के दृष्टिकोण से झारखण्ड देश का सबसे अव्वल राज्य माना जाता है। सीसा, कोयला, लोहा, तांबा, जस्ता, बाक्साईड, यूरेनियम, सोना-चाॅदी व अन्य प्रकार के खनिज पदार्थ इस राज्य में प्रचूर मात्रा में उत्पादित होते है, तथापि यह राज्य आर्थिक, व्यापारिक व उद्योगिक मान्यताओं में देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी पिछड़ा राज्य घोषित है। भारी मात्रा में खनिज संपदाओं के पाए जाने व उसके दोहन के बाद भी इस राज्य की तकदीर और तस्वीर नहीं बदली जबकि बिहार से अलग हुए इस राज्य ने साढ़े 12 वर्षों की आयु पूरी कर ली है। खेती, दिहाड़ी मजदूरी व दूसरों की चाकरी पर टिकी रह गइ्र्र है इस राज्य की आदिम जाति/जनजाति, पिछड़ों व दलितों की तकदीर। गैर सरकारी श्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रति वर्ष तकरीबन 40-50 लाख लोग मौसमी रोजगार की खातिर पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मेघालय, सिक्क्मि, मिजोरम व पंजाब-हरियाणा की राह इस प्रदेश से पकड़ लेते हैं। एक फसली खेती पर आधारित इस राज्य की जीवन-व्यवस्था में वर्ष भर पेट की क्षुब्धा मिटाने के लिये नागरिकों को दूसरे-तीसरे राज्यों की ओर पलायन के लिये मजबूर होना पड़ता है। यह बड़ी बिडम्बना नहीं तो और क्या है कि जो राज्य खनिज संपदाओं, वनोपज सामग्रियों, बहुमूल्य लकडि़यों, औषधीय पेड़-पौधों, उत्तम किस्म के पत्थर खदानों व अन्य महत्वपूर्ण चीजों में प्रतिवर्ष केन्द्र सरकार को सबसे अधिक राजस्व का लाभ पहुॅचाता हो, उस राज्य के नागरिकों को दो जून रोटी की खातिर दूसरे राज्यों में भटकना पड़ता है ? इतना ही नहीं दूसरे राज्यो में काम की तलाश में जाने वाली महिला मजदूरों के साथ अमानवीय अत्याचार भी काफी बढ़-चढ़ कर होता है। झारखण्ड से बाहर काम की तलाश में जाने वाली सैकड़ों जवान युवतियाँ जहाँ एक ओर अपनी अस्मत लुटा कर ही वापस घर लौटती हैं वहीं कई-कई लड़कियों का प्रदेश के बाहर जाने के बाद कोई अता-पता तक नहंी चलता। कुछ ऐसे गिरोह के लोग भी इन मजदूरों की टोलियों में शामिल होतें हैं जो प्रलोभन देकर इन्हें इस प्रदेश से अन्य प्रदेशों में ले तो जाते हैं, किन्तु वहाँ से अन्य मूल्कों यथा बंग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान तथा खाड़ी के देशों में अमीरों के यहाँ गिरवी छोड़ जाते हैं। प्रतिवर्ष इस तरह सैकड़ों-हजारों लड़कियों की गुमशुदगी के मामले संबंधित थाने में दर्ज किये जाते हैं लेकिन उसका कोई खास परिणाम सामने नहीं आता। सीपीएम नेता एहतेशाम अहमद के अनुसार-झारखण्ड के संताल परगना  प्रमण्डल अन्तर्गत उप राजधानी दुमका सहित देवघर, गोड्डा, पाकुड़, जामताड़ा व साहेबगंज में इस तरह के मामले समय-असमय दिख ही जाया करती हें। सीपीएम नेता व सामाजिक कार्यकर्ता एहतेशाम अहमद के अनुसार कई लोगों के सगे-संबंधी मौसमी रोजगार की स्थिति में घर से बाहर तो निकलते हैं लेकिन वे लौटकर वापस नहीं आते। कुछ-कुछ ऐसे भी होते हैं जो आधुनिकता की अंधी दौड़ में जिस स्थान के लिये कुच करते हैं वहीं के होकर रह जाते हेैं। क्या कभी इस बात पर गौर करने का प्रयास किया गया कि आखिर झारखण्ड की बहु-बेटियों के साथ ऐसा क्यों हो रहा ? क्या विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में आधी आबादी का सच यही है ? जहाँ महिलाओं को सती सावित्री सीता, सती अनसुईया, दुर्गा, लक्ष्मी, और न जाने किन-किन विशेषणों से विभूषित कर उन्हें सम्मानित किया जाता हो उस देश की ऐसी दुदर्शा।
                             
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राज्य के रुर कहे जाने वाले संताल परगना प्रमण्डल की स्थिति तो और भी बद्तर हो चुकी है। चाहे उद्योग-धंधों की बात हो , व्यवसाय-व्यापार की बात, शिक्षा-संस्कृति की बात हो, सामाजिक संरचना में उत्तरोत्तर विकास यात्रा की बात या फिर एक व्यक्ति से एक परिवार के भरण-पोषण की बात।  राज्य में पूरी आबादी का एक तिहाई हिस्सा आज भी कृषि व वनोपज सामग्रियों पर आधारित है। संताल परगना टिनेंसी एक्ट-(संशोधित) 1949 के विभिन्न धाराओं के अन्तर्गत वर्णित कानून में संताल परगना क्षेत्र के आदिवासियों की जमीन पूरी तरह अहस्तांतरणीय है। 

संताल परगना रेगुलेशन एक्ट -1872 (3) के तहत  ब्रिटीश हुकुमत के तत्कालीन बायसराय ने इस जंगल-तराई क्षेत्र के लिये एक व्यवस्था कायम की थी जिसके अनुसार  आदिवासी अपनी जमीन की बिक्री नहीं कर सकेगें।  इस कानून को बनाने के पीछे उनकी मंशा चाहे जो भी रही हो, कहा तो यही जाता है कि समाज से बिल्कुल कटे इस वर्ग की स्थिति इतनी दयनीय थी कि जो कुछ ही जमीन उनके हिस्से भरण-पोषण के लिये दिये गए थे।  महाजन थोड़े-थोड़े पैसे देकर जमीन की गिरवी अपने नाम करवा लिया करते थे। जरुरत पड़ने पर समय-असमय आदिवासियो को दारु का पैसा देकर उन्हें जमीन से बेदखल कर दिया जाता था। इसी का परिणाम था कि सिदो कान्हु, चाॅद-भैरव के नेतृत्व में साहेबगंज के भोगनाडीह में 30 जून 1855 को ऐतिहासिक संताल-हूल की नींव रखी गई जो शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार  व महाजनी प्रथा के विरुद्ध था। इस हुल ने भारत की स्वतंत्रता क्रांति की नींवें भी तैयार कर के रख दी थी। महाजनों के प्रभाव में आने के बाद आदिवासियो की स्थिति दिन-व -दिन दयनीय होती जा रही थी, परिणामस्वरुप धीरे-धीरे वे हाशिये पर आ गए थे । 
                                
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आदिवासियों में यह मान्यता अभी तक कायम है कि प्रकुति देवता को प्रसन्न रखने, उनकी अराधना में और जीवन के अनिवार्य पेय पदार्थ के रुप में हडि़या (एक प्रकार का परम्परागत पेय पदार्थ, जो भात को गलाकर बनाया जाता है और जिसमें अलग-अलग जड़ी-बुटियों को मिलाकर तैयार बाखर डाला जाता है जो शराब का स्वरुप तैयार कर देता है) का उपयोग करके वे प्राकृतिक आपदाओं से खुद को बचा सकते हैं। (परंपरागत मान्यताओं की वजह से पीने का प्रचलन तो आज भी मौजूद हैं तथापि इस मोह से हटने वालों की संख्या में लगातार इजाफा जारी है) दूसरी इसलिये कि आदिवासी जल-जंगल व जमीन के उपर ही निर्भर होते हैं, जीवन जीने का कोई अन्य विकल्प नहीं रह जाता है इनके लिये। यदि इनकी जमीन हस्तांतरणीय बना दी जाएगी तो आर्थिक रुप से कमजोर व अशिक्षित आदिवासी अपनी अस्मिता को भी खो देगें। उनका अस्तित्व समाप्त हो जाऐगा। अंग्रेजों की बनायी गई नीतियों से आदिवासी समुदाय काफी हद तक अपनी-अपनी जमीन पर आज भी मालिकाना हक बनाए हुए हैं तथाति इस क्षेत्र की अधिकांश आबादी दूसरों पर निर्भर है। प्राकृतिक सम्पदाओें की भरमार से बाहरी पूॅजीपतियों की लगातार दखलंदाजी व सरकार में बैठे लोगों की इन आदिवासियों के प्रति उपेक्षा की भावना से इस क्षेत्र में उद्योगीकरण का सिलसिला लगातार जारी है। यह आॅकड़ा चैकाने वाला है कि अलग राज्य के रुप में अस्तित्व में आने के बाद से लेकर अब तक झारखण्ड में सौ से भी अधिक मेगा एमओयू पर सरकार व अलग-अलग कम्पनियों के समझौते हुए, जिनपर काम व विरोध भी जारी है।  किसी भी हालत में पूॅजीपतियों को जल-जंगल, जमीन न देने की वर्षों से राजनीति करने वाले झारखण्ड के रहनुमाईनो ने भी इस झारखण्ड को शोषण के दलदल में डाल कर अपने साम्राज्य को बढ़ाने का ही काम किया है। यह दिगर बात है कि दुमका में काठीकुण्ड प्रखण्ड के पोखरिया-आमगाछी में आर0पी0जी0 ग्रुप द्वारा पाॅवर प्लान्ट बैठाने की कवायदों पर ग्रामीणों का उग्र आन्दोलन कम्पनी की भावी योजनाओें का मिट्टी पलित कर गया। जिंदल, भूषण, अभिजीत व अन्य ग्रुपों द्वारा तथापि आज भी बड़ी-बड़ी परियोंजनाओं पर काम करने की कोशिशें जारी है। 
                                   
संताल परगना प्रमण्डल अन्तर्गत तीन ऐसे क्षेत्र हैं जहाॅ पाॅवर प्लान्ट के लिये सबसे उत्तम किस्म के कोयले पाए जाते हें। ललमटिया कोल (ईसीएल) परियोजना,गोड्डा  पेेनम कोल परियोजना, पाकुड़ व चितरा कोल माइन्स। 30 नवम्बर 2006 को पूर्व डिप्टी सीएम प्रो0 स्टीफन मरांडी, षाजी जोसेफ व विकास मुर्खजी की उपस्थिति में पाकुड़ के अमरापाड़ा प्रखण्ड में स्थित कुल 11 गाॅवों (सिंहदेहरी, तालझारी, खटलडीह, चिलगो, विशनपुर, डांगापाड़ा, आमझारी, आलूबेड़ा व पाॅचूबाड़ा) में कोयला उत्खनन के लिये राज महल पहाड़ बचाओ आन्दोलन के अध्यक्ष व परगनैत (आलूबेड़ा डाकबंग्ला, ग्राम पाॅचूबाड़ा, पाकुड़) बिनेज हेम्ब्रम के बीच पेेनम कोल परियोजना के संचालक विश्वनाथ दत्ता का कई मुद्दों को ध्यान में रखकर एकरारनामा पर हस्ताक्षर संपन्न हुआ। पंजाब स्टेट इलेिक्ट्रसिटी बोर्ड को कोयला आपूर्ति के लिये इस परियोजना द्वारा पाकुड़ के अमड़ापाड़ा प्रखण्ड स्थित इन तमाम ग्रामों में कोयला उत्खनन का सर्वाधिकार दे दिया गया। कम्पनी ने इस एवज में कई अहम मुद्दों पर काम करने की अपनी बाध्यता रखी।

शर्तो के मुताबिक कम्पनी की बाध्यता यह थी कि वह इस क्षेत्र के  ग्रामीणों को वे सारी सुविधाऐं मुहैया करवाऐगी जो जीवन के लिये अनिवार्य है मसलन रोटी, कपड़ा मकान, शिक्षा, सामाजिक प्रतिष्ठा, उनकी परंपरागत संस्कृति, रीति-रिवाज, खान-पान, वेश-भूषा और भी बहुत कुछ। समझौते के मुताबिक कम्पनी ने कोयला उत्खनन का कार्य व्यापक पैमाने पर तो करना प्रारंभ कर दिया किन्तु कम्पनी हमेशा अपने वायदे से मुकरती रही। जिन क्षेत्रों में कम्पनी कोयला उत्खनन का कार्य कर रही है लोग मुख्य धारा से आज भी पीछे है। न तो रोजगार की पूर्ण व्यवस्था ही कम्पनी कर पायी है और न ही शिक्षा की उचित व्यवस्था। आवासीय व्यवस्था भले ही दिखावे के लिये निर्मित कर दी गई लेकिन न तो विद्युत व्यवस्था ग्रामों में बहाल है और न ही पेयजलापूर्ति की उचित व्यवस्था। सड़के पूरी तरह खराब हैं। न तो स्कूल-काॅलेजों की स्थापना की गई और न मनोरंजन, खेल की कोई व्यवस्था। कम्पनी द्वारा कोयला उत्खनन गाॅव में रोशनी तक लोगों को उपलब्ध करा पाने में उसमर्थ है।  विदित हो पेेनम कोल परियोजना में कुल 400 इम्प्लाईज हैं। जिस खटलडीह ग्राम में इस परियोजना द्वारा  प्रतिदिन 550 डम्फरों के माध्यम कोयला उत्खनन का कार्य किया जा रहा है उक्त ग्राम में तकरीबन 150 घर विस्थापित हैं। इन 550 डम्फरों के माध्यम से प्रतिदिन तकरीबन तीन लाख टन कोयला का उत्खनन कार्य किया जाता है। आॅकड़ांे पर गौर फरमाएंे तो यह बात सामने आती है कि प्रति एक डम्फर में 30 टन कोयला की ढुलाई की जाती है। इस तरह कुल 550 डम्फरों के माध्यम से एक ट्रªीप में 16500 टन कोयला ढोया जाता है। इस तरह तकरीबन प्रतिदिन 5-6 रैक कोयला उत्खनन कर उसे पंजाब भेजा जाता है। प्राप्त आॅकड़ों के मुताबिक एक रेलगाड़ी में कुल 55 से 60 बोगियाॅं होती हैं, और प्रतिदिन तकरीबन 5 से 6 रैक कोयला उत्खनन कर उसे पंजाब भेजा जाता है। 

इस तरह पेेनम कोल परियोजना कर्मचारियों के वेतन-भत्ते, डीजल-पेट्रªोल, इस बड़ी व्यवस्था के सारे खर्च के बाद तकरीबन 2 करोड रुपये प्रतिदिन कम्पनी को शुद्ध मुनाफा होता है। मासिक आय की गणना करें तो यह मुनाफा 60 करोड़ व वार्षिक  720 करोड़ रुपये कम्पनी को शुद्ध मुनाफा प्राप्त होता है। जो कम्पनी प्रति वर्ष 720 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाती है उसकी स्थिति यह है कि विस्थापितों के लिये जो सुविधाऐं-व्यवस्थाऐं  संवैधानिक तौर पर किया जाना चाहिऐ उससे कोसों दूर है। कम्पनी भी अंग्रेजों की पाॅलिसी पर काम करती है। जो दबंग हैं उन्हें या तो ठेकेदारी दे दी गई या फिर कम्पनी में उनके आदमी को बिना काम रख लिया गया ताकि विरोध का स्वर पनप न सके। कुछ को प्रति माह एक बड़ी राशि का पैकेज प्राप्त है बिना हाथ-पाॅव डुलाऐ। कृछ नेताओं का वरदहस्त भी कम्पनी को है क्योंकि नेताओं की बड़ी-बड़ी  ट्रªान्सपोर्ट कम्पनियाॅ भी कार्यरत है जिनकी सैकड़ों डम्फरों को कम्पनी में चलाया जाता है। बाहर की कम्पनियाॅ झारखण्ड आकर करोड़ों-अरबों रुपये प्रतिमाह कमाती है लेकिन झारखण्ड की अवाम को न तो दो जून की रोटी नसीब है और न ही पूरी तरह तन ढकने के लिये कपड़ा। आवास की बात तो जुदा ही है। पहाड़ और जंगल जो आदिवासियों की जीवन-संस्कृति का अभिन्न अंग है और जिसकी मौजूदगी से ही उनका अस्तित्व झलकता है, अपने कुनबे से लगातार बेदखल किये जा रहे, ऐसा क्यॅू ?  जंगलो-पहाड़ों का प्रतिदिन बलात्कार किया जा रहा किसलिये ? यह तो वही हुआ जिस थाली में खाना खा रहे उसी में कर रहे छेद ? जिन गवाहों की मौजूदगी में पेेनम कोल परियोजना और परगनैत के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुए उन गवाहों का  भी इससे कुछ लेना-देना नहीं रहा। उन्होनें तो एक साजिश के तहत समझौते करवाऐ ताकि बैठे-बिठाऐ ही उनकी जीवन की बैलगाड़ी चलती रहे। प्रति वर्ष दिल्ली के लाल किला की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की अवाम के नाम महामानवों का संदेश जाता है। आदिवासियों, दलितों, शोषितों, पिछड़ों व अन्य  आहत वर्गों की बेहतरी के लिये योजनाओं को अमल में लाने की बातें कही जाती है और इन्हें हर तरह की सुविधाओं से परिपूर्ण रखने की घोषणाऐं दुहरायी जाती है तो फिर धरातल पर इस तरह की दोहरी नीति आखिर क्यों ? झारखण्ड की अवाम जानना चाहती है सूबे व केन्द्र के रमनुमाईयों से कि क्यों नहंी उन्हें उनके वास्तविक अधिकार लौटाये जा रहे ?




अमरेन्द्र सुमन
दुमका 
(झारखण्ड)

बैठक में श्रीनिवासन के होने से खफा कोर्ट, मयप्पन के खिलाफ कार्रवाई करे बीसीसीआई

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स्पॉट फिक्सिंग के मामले में फंसे पूर्व बीसीसीआई प्रमुख एन श्रीनिवासन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट सख्त हो गया है। क्रिकेट प्रशासक के तौर पर किनारा करने के बावजूद एन श्रीनिवासन के तमिलनाडु क्रिकेट संघ की बैठकों में भाग लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतराज जताया है। इस पर श्रीनिवासन ने भी अपनी गलती स्वीकार की है और कोर्ट से कहा है कि उन्हें बैठकों में भाग नहीं लेना चाहिए था। 

वहीं, आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह चाहता है कि क्रिकेट बोर्ड गुरुनाथ मयप्पन के खिलाफ तुरंत ऐक्शन लें। चैन्ने सुपर किंग फ्रेंचाइजी और मयप्पन के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाए, इसके लिए कोर्ट ने दो बजे तक की समयसीमा तक की है। कोर्ट ने एन श्रीनिवासन को कहा है कि मयप्पन के खिलाफ यह भी एक कार्रवाई हो सकती है कि श्रीनिवासन इंडियन क्रिकेट बोर्ड से दूर रहें। गौरतलब है कि गुरुनाथ मयप्पन श्रीनिवासन के दामाद हैं। 

स्पॉट फिक्सिंग के मामले में विवादों में घिरे क्रिकेट प्रशासक और आईसीसी के चेयरमैन श्रीनिवासन ने जवाब दिया है कि वह अपने दामाद के खिलाफ किसी भी जांच से दूर रहेंगे। वहीं, आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में जांच कमेटी के प्रमुख जस्टिस मुकुल मुद्गल ने हमारे सहयोगी चैनल 'टाइ्म्स नाउ'से बातचीत में कहा कि इस केस में फैसला बुधवार को आएगा। 

टाइम 'पर्सन ऑफ द ईयर'खिताब की दौड़ से मोदी हुए बाहर

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टाइम पत्रिका के सालाना 'पर्सन ऑफ द ईयर'के खिताब के लिए चुनी गई आठ हस्तियों में जगह नहीं बना सके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्रिका द्वारा कराए गए ऑनलाइन पोल में इसके पाठकों ने यह उपाधि दी है। मोदी को पोल में पड़े करीब 50 लाख वोटों में से 16 फीसदी से ज्यादा वोट मिले और वह टाइम 'पर्सन ऑफ द ईयर'के लिए इस साल हुए पाठकों के पोल के विजेता रहे। अमेरिका में अगस्त में निहत्थे अश्वेत किशोर माइकल ब्राउन की गोली मारकर हत्या करने के आरोपी श्वेत पुलिस अधिकारी डेरन विल्सन पर मुकदमा नहीं चलाने के ग्रैंड ज्यूरी के फैसले के खिलाफ फर्ग्युसन में विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों को 9 प्रतिशत वोट मिले। टाइम ने कहा, 'भारत के पाठकों की मजबूत हिस्सेदारी'से मोदी को पहले स्थान पर पहुंचने में मदद मिली। पत्रिका ने कहा, 'किसी अन्य देश से ज्यादा वोट भारत के लोगों ने किया, इसमें केवल अमेरिका अपवाद है।'ऑनलाइन पोल में तकरीबन 200 देशों के पाठकों ने भाग लिया। अमेरिकियों ने 37 प्रतिशत वोट डाले, जिसके बाद भारतीयों ने 17 प्रतिशत और रूस ने 12 फीसदी वोट डाले। हालांकि मोदी टाइम के संपादकों द्वारा 2014 के पर्सन ऑफ द ईयर के खिताब के लिए चुने गए आठ लोगों की सूची में जगह नहीं बना सके जिसकी घोषणा बुधवार को होगी।

टाइम संपादक नैन्सी गिब्स ने आज आठ फाइनलिस्ट के नाम की घोषणा की। इनमें अलीबाबा समूह के संस्थापक और सीईओ जैक मा, एपल के सीईओ टिम कुक, पॉप स्टार टेलर स्विफ्ट, फग्यरुसन प्रदर्शनकारी, रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन, इबोला चिकित्सक, नेशनल फुटबॉल लीग के कमिश्नर रोजनर गुडेल और इराक के कुर्दिस्तान क्षेत्र के राष्ट्रपति मसूद बरजानी हैं। साल 1927 से दिया जाने वाला यह सालाना सम्मान उस साल में अच्छे या बुरे के लिए खबरों को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले शख्स को दिया जाता है। मोदी इस सम्मान के 50 अंतरराष्ट्रीय दावेदारों में शुमार थे। एक अलग 'फेस-ऑफ'पोल में मोदी का मुकाबला इंडोनेशिया के नये राष्ट्रपति जोको विदोदो से था। इस पोल में भी मोदी ने अच्छी खासी बढ़त बनाई और विदोदो के 31 प्रतिशत वोटों के मुकाबले भारतीय प्रधानमंत्री को 69 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला।

कश्मीर मुद्दे के हल में सहयोग को हूं तैयार : बान की मून

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संयुक्त राष्ट्र प्रमुख बान की मून ने भारत और पाकिस्तान से अनुरोध मिलने पर कश्मीर मुद्दे का हल करने में उनका सहयोग करने की इच्छा प्रकट की है और दोनों से एक ऐसे करार पर पहुंचने के लिए वार्ता बहाल करने का आह्वान किया है, जो उनके एवं इस क्षेत्र के सुरक्षा हितों को पूरा करें। संरा महासचिव ने कहा, जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं कि यदि दोनों देश अनुरोध करते हैं तो मैं इस मुद्दे के हल में और सहयोग के लिए तैयार हूं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में शांति के लिए वार्ता की जरूरत पर बल देते हुए कहा, मैं एक बार फिर सरकारों को वार्ता बहाल करने और विश्वास बहाली के उपायों की पहचान करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं ताकि कश्मीर पर समझौता हो और वह दोनों देशों एवं इस क्षेत्र के सुरक्षा हितों को पूरा करें।

उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में कश्मीरियों को साथ लेने और उनके अधिकारों का सम्मान करने की जरूरत है। वह संघर्षविराम उल्लंघन को लेकर दोनों देशों के बीच हाल के तनाव को लेकर उनके अधिकारियों के संपर्क में हैं। पाकिस्तान द्वारा भारतीय सैन्य चौकियों और गांवों को निशाना बनाए जाने से कई भारतीय नागरिक मारे गए एवं कई अन्य घायल हुए। पाकिस्तान का कहना है कि उसे भी नागरिक मोर्चे पर नुकसान उठाना पड़ा।

भारत एवं पाकिस्तान संरा महासभा में वाकयुद्ध में शामिल रहे हैं। इस विश्व निकाय में कश्मीर के बारे में पाकिस्तान की टिप्पणी भारत को बेहद नागवार गुजरी थी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने सीमा पर तनाव को लेकर बान की मून को पत्र लिखा था और संरा के हस्तक्षेप की मांग की थी।

भाजपा की हकीकत को जनता समझ चुकी है : हेमंत सोरेन

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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा  है कि भारतीय जनता पार्टी .भाजपा.ने झूठे सपने दिखा कर पिछले लोकसभा चुनाव में जीत र्दज करने का काम किया था लेकिन इस बार के राज्य विधानसभा के चुनाव में जनता उनकी हकीकत को समझ चुकी है और झारखंड मुक्ति मोर्चा.झामुमो. को पूर्ण बहुमत देने का मन बना लिया है । श्री सोरेन ने आज  कहा कि झारखंड का निर्माण झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने किया है और इस प्रदेश को संवारने का काम भी झामुमो ही करेगा 1 उन्होंने कहा कि भाजपा के झूठे होर्डिंग और बैनर को अच्छी तरह राज्य की जनता समझ चुकी है और देश में काले धन का अभी तक एक भी पैसा नहीं आया है। उन्होंने कहा कि 14 वर्ष बनाम 14 महीनें की उपलब्धियों की बदौलत वह इस बार का चुनाव लड़ रहे है और राज्य की जनता उनके 14 महीने के काम के आधार पर झामुमो को विजय बनायेगी। श्री सोरेन ने कहा कि भाजपा का दोहरा चरित्र है और भाजपा के नेता झारखंड में बाप बेटे की बात करते है जबकि उन्हें बताना चाहिये कि पंजाब में वह बाप बेटे की सरकार को क्यों समथरन कर रहे है । उन्होंने कहा कि भाजपा महाराष्ट्र में भी बाप बेटे की पार्टी  की बदौलत सरकार मे है और केन्द्र में भी पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा को क्यों टिकट दिया और क्यो मंत्री बनाया।

श्री सोरेन ने कहा कि भाजपा बाप बेटे के नाम पर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को भी अपमानित करने का काम कर रही है और राज्य की जनता इस अपमान का बदला बैलेट से  लेगी और झामुमो की राज्य में सरकार बनाकर भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देगी। उन्होंने कहा ..श्री शिबू सोरेन आंदोलनकारी रहे है। अपना बचपन    जवानी और बुढापा उन्होंने झारखंड के लोगों के कल्याण और झारखंड निर्माण के लिये लगाया है और ऐसे व्यक्ति पर टिप्पणी करना भाजपा की ओछी राजनीति है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आंदोलनकारियोंको अपशब्द कहना  शहीदो को अपमानित करना भाजपा का शगल है और इसी लिये वह दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर बयानबाजी कर रही है। उन्होंने कहा कि अपने पूर्वजो को याद रखना    उनके आर्दशो पर चलना तथा शहीदो को सम्मान देना झामुमो की परंपरा रही है और हम इस परंपरा से हट नहीं सकते है चाहे इसके लिये हमे कोई भी कुर्बानी देनी पड़े। श्री सोरेन ने कहा कि भाजपा परिवार वाद की बात करती है लेकिन उसे बताना चाहिये कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और हिमाचल के सांसद अनुराग ठाकुर किसके परिवार के है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अगर  अपना परिवार नहीं बढ़ाया है तो इसमें मेरा क्या कसूर है और इसके लिये झामुमो क्या कर सकता है।

श्री सोरेन ने कहा कि उनके दुमका और बरहेट विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने पर भी लोग प्रतिक्रिया दे रहे है लेकिन प्रधानमंत्री श्री मोदी को यह बताना चाहिये कि उन्होंने लोकसभा का चुनाव बडोदरा और वाराणसी से क्यों लड़ा था। उन्होंने कहा कि झारखंड में भी राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी गिरिडीह और धनवार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे है तो उनके दो स्थान से चुनाव लड़ने पर लोगों को क्यो आपत्त्ि है । उन्होंने नक्सलियों से मुख्य धारा में जुड़ने का अनुरोध करते हुये कहा कि लोकतंत्र मे गोली का कोई महत्व नहीं है और बातचीत से ही हर समस्या का निदान निकाला जा सकता है । उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने मुख्य धारा मेंलौटे नक्सलियों को नौकरी देने का काम किया है और इसके अलावा झामुमो गठबंधन सरकार ने आंदोलनकारियोंको भी नौकरी दी है । उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने महिलाों को नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण  और खिलाडि़यो को नौकरी देने का काम किया है । श्री सोरेन ने कहा कि झारखंड मे भाजपा के शासनकाल में झारखंड लोकसेवा आयोग घोटाला    राष्ट्रीय खेल घोटाला    अलकतरा घोटाला और न जाने कितने घोटाले हुये है जबकि उनकी सरकार के 14 महीने के कार्यकाल में राज्य का र्सवांगीण विकास हुआ है । उन्होंने कहा कि भाजपा झारखंड में अपने दस वर्ष के शासनकाल का हिसाब दे वह भी अपने 14 महीने के मुख्यमंत्रित्व काल का हिसाब देने को तैयार है । एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सीएनटी एक्ट और एसपीटी एक्ट समाप्त करने की किसी भी साजिश को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा और भाजपा को यह समझ लेना चाहिये कि झारखंड गुजरात    हरियाणा और महाराष्ट्र नहीं है । यहां आंदोलनकारियो की जमात है और यहां के हर घर घर में क्रांतिकारी पैदा लेता है ।

सोनाक्षी के साथ रोमांस करना चुनौती थी :रजनीकांत

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दक्षिण भारतीय फिल्मों के महानायक रजनीकांत का कहना है कि फिल्म लिंगा में सोनाक्षी सिन्हा के साथ रोमांस करना उनके लिये बहुत बड़ी चुनौती थी। रजनीकांत ने तमिल पिंल्म लिंगा में सोनाक्षी सिन्हा के अपोजिट काम किया है। के.एस.रवि कुमार के निर्देशन में बनी इस फिल्म में रजनीकांत ने दोहरी भूमिका निभायी है।लिंगा रजनीकांत के जन्मदिन के अवसर पर 12 दिसंबर को प्रर्दशित हो रही है। 

रजनीकांत ने कहा कि लिंगा में उम्र में उनसे बहुत छोटी अिभनेत्री सोनाक्षी सिन्हा के साथ रोमांस करना उनके लिए एक चुनौती थी। रजनीकांत ने कहा कि उन्हें जितनी घबराहट सोनाक्षी के साथ युगल गीत की शूटिंग करते समय हुई उतनी तो पहली बार कैमरे का सामना करते समय भी नहीं हुई थी। 

रजनीकांत ने कहा भगवान मेरे जैसे 60 वर्षा के अभिनेताओं को जो सबसे बड़ी सजा दे सकता है वो है युगल गीत गाना। मुझे सोनाक्षी के साथ युगल गीत की शूटिंग करना चलती ट्रेन पर स्टंट करने से भी ज्यादा मुश्किल लगा।मैं सोनाक्षी को उसके बचपन से जानता हूँ और वह मेरी बेटियों के साथ बड़ी हुई है।

कैब सेवा पर प्रतिबंध लगाना समस्या का हल नहीं : गडकरी

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सडक परिवहन और राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि कैब सेवा पर प्रतिबंध लगाना समस्या का हल नहीं है । उन्होंने कहा कि प्रतिबंध लगाने की बजाय नियमों को सुधार कर इनको कडाई से लागू करने की जरुरत है । श्री गडकरी ने आज यहां संवाददाताों से बातचीत में कहा कि कैब सेवा पर रोक लगाने का कोई मतलब नहीं है । उन्होंने कहा कि जरुरत इस बात की है कि नियमों को बेहतर बनाकर इसे पूरी सख्ती से अमल में लाया जाये. उन्होंने कहा यदि कल बस में कुछ हो जाता है तो बस सेवा बंद नहीं की जा सकती तंत्र को बदलने की जरुरत है।  श्री गडकरी ने कहा कि दिक्कत इस बात की है जिस तंत्र ने ड्राईवर को लाईसेंस दिया उसमें कमी है। उन्होंने कहा एक नये डिजिटलाईज तंत्र की जरुरत है जिसमें प्रत्येक के ट्रैक रिकार्ड का अध्ययन किया जा सके उबर कैब बलात्कार कांड के बाद दिल्ली सरकार ने इस टैक्सी सेवा पर प्रतिबंध लगा दिया है । दिल्ली सरकार ने उबर के अलावा ओला और टैक्सी फार स्योर पर भी मौजूदा परिवहन नियमों का पालन नहीं करने पर रोक लगा दी है। उधर केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को पत्र लिखकर सलाह दी है कि ऐसी सभी वैब आधारित कैब सेवाों को बंद कर दिया जाये जिनके पास परिचालन का लाइसेंस नहीं है।

ऐसी भी खबरें हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने उबर कैब बलात्कार मामले में हस्तक्षेप करते हुए दिल्ली पुलिस के उच्च अधिकारियों की बैठक बुलाई श्री डोवाल ने इस मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों से बातचीत की और वह घटना के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अवगत करायेंगे  दिल्ली पुलिस आयुक्त भीम सेन बस्सी ने कहा आरोपी कैब ड्राईवर के खिलाफ फर्जी चरित्र प्रमाणपत्र को लेकर प्राथमिकी र्दज की गई है । उन्होंने कहा कि ड्राईवर ने जो चरित्र प्रमाणपत्र दिया वह फर्जी है। प्रमाणपत्र पर जिस अधिकारी के हस्ताक्षर दिखाये गए हैं उस तिथि को वह ड्यूटी पर ही नहीं थे। फर्जीवाडे का मामला र्दज कर जांच शुरु कर दी गई है । राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है और 15 दिन में रिपोर्ट मांगी है । उबर को भी इस मामले में नोटिस जारी किया गया है । श्री बस्सी ने बताया उबर के खिलाफ आपराधिक लापरवाही का मुकदमा भी र्दज कर सकती है । इस पर कानूनी सलाह ली जा रही है । उन्होंने कहा कि उबर जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती है । उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जायेगा कि सभी वाणिज्यिक वाहनों के ड्राईवरों का वेरीफिकेशन हो। दिल्ली में उबर कैब सेवा पर प्रतिबंध लगाये जाने के बावजूद मुंबई पुलिस के प्रमुख राकेश मारिया ने कहा कि अभी शहर में उबर और किसी अन्य एप कैब सेवा पर रोक लगाने की योजना है। उन्होंने कहा कि पुलिस सभी कैब ड्राईवरों का वेरीफिकेशन करेगी। 

स्वागत से अभिभूत फेडरर ने कहा , फिर भारत आयेंगे

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भारत में मिले बेपनाह प्यार से अभिभूत स्विस टेनिस स्टार रोजर फेडरर ने कहा कि वह भविष्य में इस खूबसूरत देश के लंबे दौरे पर आएंगे। इंडियन प्रीमियर टेनिस लीग के आखिरी दिन साफ जाहिर था कि भारतीय टेनिस प्रेमी किस कदर फेडरर के दीवाने हैं जब उन्होंने दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी नोवाक जोकोविच को एक सेट के मुकाबले में हराया। उन्होंने दिल्ली प्रवास के दो दिन कोर्ट पर और होटल में ही बिताए, लेकिन अपने स्वागत से वह अभिभूत हो गए। उन्होंने भारत से रवानगी से कुछ घंटे पहले आज तड़के ट्विटर पर लिखा, जो शानदार पल मैंने यहां बिताए, वे हमेशा मेरी यादों में रहेंगे। शुक्रिया नई दिल्ली। दर्शकों का जबर्दस्त सहयोग मिला। मैं हमेशा आभारी रहूंगा। इससे पहले उन्होंने भारत में अपने अनुभव के बारे में कहा, फोटोशाप का अनुभव जबर्दस्त रहा। टाइमलाइन पर इसे पढ़कर अच्छा लगा। मुझे भारत में काफी मजा आया। मैं इस तरह के दौरे ज्यादा नहीं करता, लेकिन एक दिन लंबे दौरे पर भारत आऊंगा। उम्मीद है कि कुछ स्थानीय लोगों का मुझे साथ मिलेगा। मुझे भारत में बहुत कुछ देखना है और मैं अपने परिवार के साथ आऊंगा। मैं इस खूबसूरत देश में घूमना चाहता हूं।

यह पूछने पर कि क्या उन्हें अहसास था कि भारत में उन्हें इस तरह का समर्थन मिलेगा, फेडरर ने कहा, बिल्कुल। मैं इंडियन एसेस टीम में हूं। उन्होंने कहा, मेरे प्रशंसक हमेशा मेरा साथ देते हैं। उन्हें पता है कि मैं उनके समर्थन को कितना महत्व देता हूं। मैं हर बार इसके बारे में नहीं बोलता, लेकिन उन्हें पता है। यदि उन्हें लगता है कि मैं इसकी दाद नहीं देता या उनके बैनर, झंडे, टीशर्ट नहीं देखता तो मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि मैं देखता हूं और मुझे बहुत अच्छा लगता है। यही वजह है कि मैं यहां आया और मुझे बहुत अच्छा लगा।

सत्रह बार के ग्रैंडस्लैम चैम्पियन फेडरर ने कहा, उम्मीद है कि इनमें से कुछ को टूर पर मिलूंगा और जो वहां नहीं आएंगे, उन्हें यहां या भारत के किसी और शहर में मिलूंगा। जोकोविच के खिलाफ मैच के बारे में उन्होंने कहा, यह शानदार मैच था। हम दोनों ने बेहतरीन खेल दिखाया। पहले दो गेम में उसे परेशानी हुई, लेकिन बाद में उसने बेहतरीन खेला। दर्शकों में जबर्दस्त उत्साह था। भारत दौरे के लिए दी गई रकम के बारे में पूछने पर फेडरर ने कहा, अगला सवाल। पैसे के बारे में बात न करें। यह बोरिंग होता है। उन्होंने भारत में फिर खेलने की इच्छा जताई लेकिन कहा कि वह आईपीटीएल के भविष्य के बारे में कयास नहीं लगा सकते। उन्होंने कहा, मैं भविष्य के बारे में नहीं बता सकता। यह आंकड़ाविदों का काम है। मैं यहां सिर्फ दो दिन के लिए आया था। देखते हैं कि फिर आता हूं या नहीं। 12 महीने काफी लंबा समय है। मेरे चार बच्चे हैं और मैं 33 साल का हो गया हूं। इस सत्र में 85 मैच खेल चुका हूं। अभी कुछ कह नहीं सकता।

फेडरर ने कहा, मुझे अगले साल चोटों से बचना है। मैं यहां फिर खेलने पर विचार करूंगा, लेकिन इसके लिए परिवार और आयोजकों से बात करनी होगी। अभी हां या ना कहना मुश्किल है। विम्बलडन 2012 के बाद से एक भी ग्रैंडस्लैम नहीं जीत सके फेडरर की नजरें 18वें ग्रैंडस्लैम खिताब पर है। उन्होंने कहा, मैं विम्बलडन फिर जीतना चाहता हूं। वहीं से शुरुआत हुई थी जहां मैं स्टीफन एडबर्ग और बोरिस बेकर को खेलते देखता था। उन्हें देखकर ही मुझे टेनिस खेलने की प्रेरणा मिली। वह सत्र की शुरुआत ब्रिसबेन से करेंगे, जिसके बाद अगले महीने ऑस्ट्रेलियाई ओपन खेलना है।

मुम्बई पर नियंत्रण महाराष्ट्र सरकार के पास ही रहना चाहिए : शिवसेना

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को मुम्बई के विकास के लिए उच्चाधिकार समिति संबंधी उनके सुझाव को लेकर सचेत करते हुए शिवसेना ने कहा कि इस शहर का नियंत्रण राज्य सरकार के पास ही रहना चाहिए। भाजपा की अगुवाई वाली राज्य सरकार में हाल ही में शामिल हुई शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में लिखा है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुम्बई का विकास होना चाहिए, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इलाज कहीं मर्ज से ज्यादा गंभीर न हो जाए। शिवसेना मानती है कि मुम्बई को महाराष्ट्र से अलग नहीं किया जा सकता और इस शहर पर नियंत्रण को राज्य सरकार के पास ही रहना चाहिए।

पार्टी ने कहा, यदि प्रधानमंत्री बस मुम्बई पर ही विशेष ध्यान देते हैं तो उन पर पक्षपात का आरोप लगेगा। विपक्षी दलों को सरकार पर निशाना साधने के लिए हथियार मिल जाएगा और वे कहेंगे कि बड़े उद्योगपति भाजपा के करीब है, अतएव प्रधानमंत्री इस शहर पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। उसने कहा कि राज्य में मुम्बई जैसे अन्य शहरों जैसे नागपुर को भी विश्वस्तरीय बनाया जाना चाहिए। योजना आयोग के स्थान पर नये निकाय के गठन के लिए हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा बुलायी गयी मुख्यमंत्रियों की एक बैठक में फडणवीस ने केंद्र को सुझाव दिया था कि मुम्बई के विकास के लिए मोदी की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार समिति बनायी जाए।

इस वर्ष पाकिस्तान ने 555 बार किया उल्लंघन

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पाकिस्तान ने इस वर्ष 555 बार सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है । रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने आज राज्य सभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि इस वर्ष तीन दिसंबर तक नियंत्रण रेखा पर 150 बार तथा अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर 405 बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया गया।पिछले वर्ष नियंत्रण रेखा पर 199 बार तथा अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर 148 बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया गया था। 

 उन्होंने बताया कि सीमा पार से गोलीबारी में इस वर्ष 30 नवंबर तक पांच सुरक्षार्कमी शहीद हुये तथा।4 नागरिक मारे गये। वर्ष 2013 में सीमा पार से गोलीबारी में 12 सुरक्षा र्कमी शहीद हुए थे

पुरखों की घर वापसी के नाम पर 57 मुस्लिम बने हिन्दू

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उत्तर प्रदेश के आगरा में 57 मुस्लिम परिवारों ने धर्म परिवर्तन कर सनातन धर्म अपना लिया है। पुरखों की घर वापसी.. नाम से आयोजित समारोह में इन मुस्लिम परिवारों ने हवन पूजन और मंत्रोच्चारण किया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे धर्म जागरण समन्वय विभाग ने यह समारोह आयोजित कर इन मुस्लिम परिवारों को बाकायदा हिन्दू धर्म में वापसी की घोषणा की। एक दो दिन में इनका नया नाम रख दिया जाएगा 

संघ के स्वयंसेवक राजेश्वर सिंह के अनुसार मधुनगर क्षेत्र के करीब 200 मुस्लिम परिवार सनातन धर्म में आने के लिए तैयार हैं 1उन्होंने कहा कि इसी तरह करीब पांच हजार मुस्लिम और ईसाई अलीगढ में 25 दिसम्बर को सनातन धर्म की दीक्षा लेंगें।अलीगढ में यह समारोह माहेश्वरी कालेज में आयोजित किया जायेगा। धर्म परिवर्तन के बाद सभी 57 मुस्लिम परिवारों ने अपने घरों पर भगवा झण्डा लगा लिया. उन्होंने माथे पर टीका लगाया और प्रसाद भी खाये. संघ और बजरंग दल के लोगों ने बाद में इन्हें मंत्र दिया. संघ के अनुसार इन्हें जल्द ही इनके नये नाम से मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड उपलब्ध करा दिये जाएंगे।   धर्म परिवर्तन ने बाद 40 वर्षीय शारिफा ने अपने पूत्रवधू अफसा के साथ एक मंदिर में पूजा अर्चना की।उसने मंदिर में काली प्रतिमा की भी स्थापना की। 

छिहत्तर वर्षीय सूफिया बेगम का कहना है कि वह कुरान पढने के साथ ही पंचवक्ता नमाजी हैं 1 उसने गणेश आरती भी पढी है । दोनों धर्मो के मूल तत्व में बहुत ज्यादा अन्तर नहीं है । सने कहा कि संघ के लोगों ने आश्वस्त किया है कि वे उन्हें और उसके परिवार की रहने खाने की बेहतर व्यवस्था करेंगें 1 बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढवाएंगे इसलिए उसे धर्म परिवर्तन करने पर कोई दुख नहीं है। दूसरी ओर समारोह का आयोजन करने वालों पर लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया जा रहा है ।मुस्लिम लीग के प्रदेश अध्यक्ष नजमुल हसन का कहना है कि ये परिवार गरीब हैं और इन्हे लालच दिया गया है।
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