Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all 74338 articles
Browse latest View live

छतरपुर (मध्यप्रदेश) की खबर (17 मई)

$
0
0
इंजीनियरिंग काॅलेज में कैंपस सिलेक्शन 27 को

छतरपुर। पं. देवप्रभाकर शास्त्री इंजीनियरिंग काॅलेज में कम्पयूटर साइंस, इलैक्ट्रानिक एंड कम्यूनिकेशन तथा इन्फार्मेशन टेक्नाॅलाजी ब्रांच के अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों के लिए कैंपस सिलेक्शन 27 मई को आयोजित किया जाएगा। काॅलेज की टीपीओ सुश्री मेघना मिश्रा ने तदाशय की जानकारी देते हुए बताया कि संस्थान के डायरेक्टर अशोक दीक्षित, सचिव श्रीमती सरोज जैन एवं नवागत प्राचार्य डा. जीतेंद्र सोनी के मार्गदर्शन में होने जा रहे कैंपस सिलेक्शन में लाईव सत्यमटेक कंपनी के पदाधिकारी उपस्थित होंगे।इस दौरान तीनों ब्रांचों के अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों की लिखित परीक्षा, ग्रुप डिस्कशन के पश्चात साक्षात्कार होंगे।काॅलेज प्राचार्य डा. जीतेंद्र सोनी ने बताया कि संस्थान के विद्यार्थियों के सौ फीसदी प्लेसमेंट के लिए प्रबंधन द्वारा पहल की जा रही है।टीपीओ के अनुसार अभी तक 30 से 40 प्रतिशत तक प्लेसमेंट हो चुके है।शेष लक्ष्य हासिल करने के लिए आगामी महीनों में विभिन्न ख्यातिप्राप्त कंपनियां संस्थान में आएंगी।

मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के अन्तर्गत नगर पालिका नौगांव में हुये 11 जोडो के विवाह
  • नगर के लोगो ने लिया बडचड कर हिस्सा 
chhatarpur news
नौगांव/आज नगर पालिका नौगांव द्वारा नगर पालिका प्रागंण में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के अन्तर्गत 11 जोडो का विवाह सम्पन्न कराया गया । बारात नगर पालिका गाडी खाना से शहर में डी.जे. घोडे, पालकी, बैण्ड बाजो सहित भ्रमण करती हुई नगर पालिका प्रागंण पहुची । जहाॅं पर नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती अभिलाषा शिवहरे, सांसद प्रतिनिधि धीरेन्द्र शिवहरे मुख्य नगर पालिका अधिकारी इम्तियाज हुसैन ने बरात का स्वागत कर आगवानी की और फिर विवाह कार्यक्रम संपन्न कराया गया नगर पालिका की ओर से बारात मे आये बारातियों का जोरदार स्वागत किया स्वागत में फल फू्रण्डर्स, ठंडा शरबत, पानी के पाऊच, और खाना की समुचित व्यवस्था की । इस मौके पर क्षेत्री विधायक मानवेन्द्र सिंह, एस.डी.एम. एस.एल. प्रजापति, तहसीलदार भास्कर गाचले, पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष दमोदर प्रसाद तिवारी, उपाध्यक्ष आशारानी तिवारी, उपयंत्री आलोक जायसवाल, पार्षद अंजना राजपूत, मुरारी जाटव, जीतेन्द्र सिंह यादव, योगेन्द्र यादव, जीतेन्द्र ईसाई, प्रेमनारायण चंदेल, अमित रैकवार, कमलेश अरजरिया, निर्मला सक्सेना, सुधा शिवहरे, मुन्नी राईन, मीरा कुशवाहा, सरोज यादव, रूकमणि अहिरवार, आशा सिंह, संदीप गुप्ता, प्रदीप द्विवेदी, मनीष साहू, जमुनी देवी, विधायक प्रतिनिधि पंकज पाठक, दौलत तिवारी, सूरज देव मिश्रा, सन्नो सक्सेना, अरविन्द्र शर्मा, आशूू पियूष शिवहरे, श्याम सुन्दर अरजरिया, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष अंजुल सक्सेना, अशोक साहू, राजेन्द्र सिंह राठौर, आशीष गुप्ता, सनातन रावत, प्रतुल सक्सेना, पंकज अग्निहोत्री, विपिन गंगेले एवं समस्त नगर पालिका परिवार ने बडचड कर हिस्सा लिया । कार्यक्रम का संचालन में पूर्व पार्षद ने लिया एवं अभार व्यक्त नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती अभिलाषा शिवहरे ने किया ।
 
इन्होने किया दिल खोलकर सहयोग
श्रीमती अभिलाषा-धीरेन्द्र शिवहरे, 11 पलंग, श्रीमती आशारानी तिवारी उपाध्यक्ष 11 पंखा, कल्याण विल्डर्स नौगांव ने 11 गैस चूल्हा मय सिलेण्ड के, संदीप गुप्ता पार्षद 11 शूटकेस, सनातन रावत 11 दीवाल घडी, लखन शिवहरे पूजा इलेक्टिक 11 जेडर्स घडी, सैय्यद ब्रदर्स नसीम भाई बसीम भाई, 11 लेडीज घडी, राईन ब्रदर्स फू्रड काउण्डर, जीतेन्द्र सिंह यादव पार्षद आतीशबाजी, मुरारी जाटव पार्षद/दशरथ जाटव 11 प्रेस ऊषा यादव 11 कलश, निविदता शिवहरे 11 टिफिन सेट कांच के, रैकवार समाज द्वारा 11 स्ट्रील की टंकिया, लायस क्लब की बहनों द्वारा 11 ज्वैलरी वाॅक्स उपहार स्वरूव वर वधु को दिये गये । 

इन्होने किया नगद सहयोग 
पारस डवलपर्स कमलेश जैन 11000 रूपये, श्रीराम, पप्पू, अनीस छतरपुर 10,000, बीरू नौगरिया 5100 रूपये गोकरनदास जायसवाल, 5100, रज्जू विश्वकर्मा 5000, अजीत जैन 5000 रूपये बल्लन अग्रवाल 2100 रूपये तिवारी प्रिटिंग प्रेस, 2100 रूपये अट्टू चैरसिया 2100 रूपये शुक्ला जी पंप वालो 2100 रूपये रज्जन किराना स्टोर 2100 रूपये सिल्वर सिटी अशोक अहिरवार 2100 रूपये, रमाशंकर मिश्र तक्षशिला परिवार 1100 रूपये, जीतेन्द्र जैन एलआईसी 1100 रूपये, सुक्की राजा 1100 रूनये मुन्ना साहू लोहा वाले 1100 रूपये.

शौचालय मांगने वाली दुल्हन को 10 लाख का इनाम

$
0
0

girl-wanted-toilet-in-home-awarded-by-shulabh
अपने विवाह में पिता से गहनों के बजाय शौचालय की मांग करने वाली युवती को सुलभ इंटरनेशनल ने 10 लाख रुपये का इनाम दिया है। महाराष्ट्र के अकोला जिले की रहने वाली चैताली गलाखे को अपनी शादी के कुछ दिनों बाद यह पता चला कि उनके ससुराल में शौचालय की सुविधा नहीं है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित चैताली ने यह मामला अपने पिता के समझ उठाया। उन्होंने अपने पिता से कहा कि बुनियादी स्वच्छता की जरूरत उसके लिए बहुत आवश्यक है। 

चैताली ने कहा, "मैं शौच के लिए हर शाम खेतों में नहीं जाना चाहती। मैं अपने पिता की आभारी हूं कि उन्होंने मेरा साथ दिया और मुझे एक पूर्व निर्मित शौचालय दिया।"भारत में स्वच्छता के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था सुलभ इंटरनेशनल को चैताली की स्थिति के बारे में जानकारी मिली और उसने दुल्हन को 10 लाख रुपये का नकद पुरस्कार देने की घोषणा की। 

विश्व बैंक के अनुसार, भारत में 53 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। ग्रामीण महिलाएं शाम होने का इंतजार करती हैं और अंधेरा होने पर सड़क किनारे शौच करने जाती हैं। किसी गाड़ी की रोशनी पड़ते ही कुछ देर के लिए खड़ी हो जाती हैं। यह इक्कीसवीं सदी के भारत का सच है।

नेपाल में भूकंप के झटके जारी, अब तक 8,567 की मौत

$
0
0

earth-quack-continue-in-nepal-toll-reaches-8567
नेपाल में 25 अप्रैल और 12 मई को आए भीषण भूकंप और उसके बाद के झटकों में मरने वालों की संख्या 8,567 पहुंच गई है। नेपाल के गृहमंत्रालय ने रविवार को यह जानकारी दी। भूकंप में मानवीय क्षति की दृष्टि से सिंधुपालचौक जिला सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है, यहां पर अभी तक 3,423 लोगों की जान जा चुकी है। इसी प्रकार काठमांडू में 1,214 लोग, नुवांकोट में 1,024, धाडिंग में 728, रासुवा में 579, गोरखा में 414, भक्तपुर में 326, कावरे में 318, ललितपुर में 181 और डोलखा में 154 लोगों की मौत हुई है। 

भूकंप में घायलों की संख्या 22,000 पहुंच गई है। भीषण जलजले के कारण आम जनता के कुल 488,788 घर पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं, जबकि 267,282 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं।  नेपाल में रविवार को दो झटकों ने मध्य क्षेत्र को हिला दिया। 25 अप्रैल को आए इस भूकंप के बाद से अभी तक 240 से अधिक झटके आ चुके हैं। 

राष्ट्रीय भूकंप केंद्र के अनुसार 239वें झटके की रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 4.4 मापी गई और यह तड़के सुबह पांच बजे महसूस किया गया था। इसका केंद्र डोलखा में था। वहीं 240वें झटके ने पूर्वाह्न 11.30 बजे मध्य क्षेत्र को हिला दिया। इसका केंद्र रामेछाप जिले में था। नेपाल में 25 अप्रैल को 7.9 तीव्रता के भूकंप के बाद से अब तक 240 झटके लग चुके हैं और सभी की तीव्रता 4 से अधिक थी। 

प्रधानमंत्री के दफ्तर पर अनशन करें भाजपा सांसद : नीरज शेखर

$
0
0
bjp-mp-do-dharna-on-pm-office-said-niraj-shekhar
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे और राज्यसभा सांसद नीरज शेखर ने यहां रविवार को क्षेत्रीय समस्याओं को लेकर केंद्र सरकार और भाजपा के सांसदों पर शाब्दिक प्रहार किया। उन्होंने कहा कि बलिया के सांसद को अगर कटान पीड़ितों की इतनी ही चिंता है तो वह प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने अनशन पर बैठ जाएं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी कटाक्ष किया और कहा कि देश में कुछ नहीं कर पाने पर मोदी अब विदेश में भाषणबाजी करने लगे हैं, वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दौरों को भी उन्होंने दिखावा करार दिया। 

बैरिया स्थित विद्युत उपकेंद्र के प्रांगण में पांच एमबीए का सब विद्युत केंद्र एवं ठेकहा स्थित लोकधाम में 33/11 केबी सब विद्युत केंद्र के उद्घाटन के मौके पर नीरज शेखर ने कहा, "बलिया के सांसद को अगर इब्राहीमाबाद, नौबरार (अठगांवा) के कटान पीड़ितों की इतनी ही चिंता है तो वह प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने अनशन पर बैठें। मैं भी उनका साथ दूंगा, लेकिन मुझे पता है कि वह ऐसा कभी नहीं कर सकते।"सपा सांसद ने कहा कि कटान कार्य में केंद्र व प्रदेश दोनों सरकार का धन लगता है, लेकिन केंद्र अपने हिस्से का धन नहीं दे रहा है। 

उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री को यह अहसास है कि उन्होंने एक साल में देश के लिए भी कुछ नहीं किया, इसलिए वह अब देश में भाषण न देकर विदेश में दे रहे हैं। इसी तरह कांग्रेस के 'युवराज'राहुल गांधी किसानों को दिखावे के लिए एक दिन का दौरा कर रहे हैं तो दो दिन एसी में आराम कर रहे हैं। सपा सांसद ने कहा कि बैरिया को टाउन एरिया बनाने के लिए नोटिफिकेशन हो गया है। केवल घोषणा होना बाकी है। इस मौके पर बैरिया के विधायक जेपी अंचल ने कहा कि इसी वर्ष के अंत तक बैरिया में सब्जी मंडी का निर्माण करा लिया जाएगा। 

राजद से निष्कासित पप्पू यादव ने नई पार्टी बनाई

$
0
0

pappu-yadav-fim-new-party
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से छह साल के लिए निष्कासित लोकसभा सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने रविवार को नई पार्टी 'जन क्रांति अधिकार मोर्चा'गठित करने की घोषणा की। मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से सांसद पप्पू यादव ने संवाददाताओं से कहा, "बिहार की राजनीति में तीसरा विकल्प बनने के लिए हमने एक नई पार्टी गठित करने का निर्णय लिया है।"

उन्होंने कहा कि नई पार्टी लालू प्रसाद के राजद एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल (युनाइटेड) से भिन्न होगी।  उन्होंने दावा किया राजद में सैकड़ों कार्यकर्ता एवं नेता अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और वे उनकी पार्टी से जुड़ेंगे। 

इस महीने की शुरुआत में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी एक नई पार्टी 'हिंदुस्तान अवामी मोर्चा'गठित की। उन्होंने कहा था कि इस साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। 

विशेष : पुण्यसलिला सरित्श्रेष्ठ सरस्वती आखिर कहाँ गई ?

$
0
0
भारतीय जीवन एवं साधना में अप्रतिम महत्व रखने वाली सरस्वती भारतीय सभ्यता के उषाकाल से लेकर अद्यपर्यन्त अपने आप में ही नहीं,प्रत्युत अपनी अर्थ,परिधि एवं सम्बन्धों के विस्तार के कारण भी अत्यन्त महत्वपूर्ण रही हैlसरस्वती शब्द की व्युत्पति गत्यर्थक सृ धातु से असुन प्रत्यय के योग से निष्पन्न होता है शब्द सरस,जिसका अर्थ होता है गतिशील जलlसरस का अर्थ गतिशीलता के कारण जल भी हो सकता है,लेकिन केवल जल ही गतिशील नहीं होता,ज्ञान भी गतिशील होता हैlसूर्य-रश्मि भी गतिशील होती हैlअतः सरस का अर्थ ज्ञान, वाणी (अन्तःप्रेरणा की वाणी), ज्योति, सूर्य-रश्मि, यज्ञ ज्वाला, आदि भी किया गया हैlज्ञान के आधार पर सरस्वती का अर्थ सर्वत्र और सर्वज्ञानमय परमात्मा भी हो जाती हैlआदिकाव्य ऋग्वेद में सरस्वती नाम देवता (विभिन्न वैदिक देवता एक ही देव के भिन्न-भिन्न दिव्यगुणों के कारण अनेक नाम अर्थात सरस्वती मात्र देवता,परमात्मा का सूचक नाम मात्र है,दृश्य रूप भौतिक नदी विशेष नहीं है) तथा नदी वत दोनों ही रूपों में प्रयुक्त हुआ हैlसरस्वती शब्द का अर्थ करते हुए यास्क ने निरुक्त में लिखा है-

वाङ नामान्युत्तराणि सप्तपञ्चाशत् वाक्क्स्मात् वचेः l तत्र सरस्वतीत्येत्स्य नदीवद् देवतावच्चा निगमा भवन्ति l
तद्यद् देवतावदुपरिष्टातद् व्याख्यास्यामः l अथैतन्न्दीवत ll
-निरूक्त २/७/२३ 
अर्थात- वाक् शब्द के सत्तावन रूप कहे गये हैंlवाक् के उन सत्तावन रूपों में एक रूप सरस्वती हैlवेदों में सरस्वती शब्द का प्रयोग देवतावत् और नदीवत् आया हैlनदीवत् अर्थात नदी की भान्ति (नदी नहीं) बहने वालीlसायन एवं निघण्टुकार ने भी सरस्वती के नदी एवं देवता दोनों दोनों रूप स्वीकार किये हैंlयास्काचार्य की उक्ति सरस्वती – सरस इत्युदकनाम सर्तेस्तद्वती (निरूक्त ९/३/२४) से यह स्पष्ट नहीं होता कि उनका अभिप्राय नदी विशेष है अथवा सामान्य नदियों से अथवा जलाशयों से परिपूर्ण भूमि सेl फिर कतिपय विद्वानों ने इसे सरस्वती नाम की नदी विशेष अर्थ (रूप) में स्वीकार किया हैlऋग्वेद में यास्कानुसार केवल छः मन्त्रों में ही सरस्वती नदी रूप में वर्णित है,शेष वर्णन उसके देवता रूप विषयक हैंlऋग्वेद में सरस्वती का नाम प्रथम वाक् देवता के रूप में प्रयुक्त हुआ है या नदी के लिये यह आज भी विद्वानों के मध्य विवाद के विषय बना हुआ हैlयद्यपि मनुस्मृति १/२१ के अनुसार सरस्वती के देवता रूप की कल्पना ही पहले होनी चाहिये तथापि कतिपय विद्वानों के अनुसार बाद में देवता रूप के आधार पर ही नदी विशेष के लिये सरस्वती नाम प्रचलित हुआlउनके अनुसार ऋग्वेद की सरस्वती मात्र एक दिव्य अन्तःप्रेरणा की देवी, वाणी की देवी ही नहीं वरन प्राचीन आर्य जगत की सात नदियों में से एक भी हैl

वैदिक विचार 
विद्वानों का विचार है कि ऋग्वैदिक काल में सिन्धु और सरस्वती दो नदियाँ थींlऋग्वेद में अनेक स्थलों पर दोनों नदियों का साथ-साथ वर्णन तो उल्लेख है ही विशालता में भी दोनों एक सी कही गईं हैंlफिर भी सिन्धु के अपेक्षतया सरस्वती को ही अधिक महिमामयी एवं महत्वशालिनी माना गया हैlऋग्वेद के अनुसार सरस्वती की अवस्थिति यमुना और शतुद्रि (सतलज) के मध्य (यमुने सरस्वति शतुद्रि) थीlऋग्वेद में सरस्वती के लिये प्रयुक्त विशेषण सप्तनदीरूपिणी, सप्तभगिनीसेविता, सप्तस्वसा, सप्तधातु आदि हैंlसरस्वती से सम्बद्ध ऋग्वेद में उल्लिखित स्थान अथवा व्यक्ति सभी भारतीय हैंlऋग्वेद ७/९५/२ में सरस्वति का पर्वत से उद्भूत हो समुद्रपर्यन्त प्रवाहित होने का उल्लेख मिलता हैlभूमि सर्वेक्षण के कई प्रतिवेदनों अर्थात रिपोर्टों से प्रमाणित होता है कि लुप्त सरस्वती कभी पँजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान से प्रवाहित होने वाली विशाल नदी थीlस्पेस एप्लीकेशनसेंटर और फिजिकल लेबोरेट्री द्वारा प्रस्तुत लैंड सैटेलाईट इमेजरी एरियल फोटोग्राफ्स से भी सरस्वती की ऋग्वैदिक स्थिति की पुष्टि होती हैl

ऋग्वेद में सरस्वती के उल्लेखों वाले मन्त्रों को दृष्टिगोचर करने से इस सत्य का सत्यापन होता है कि ऋग्वैदिक सभ्यता का उद्भव एवं विकास सरस्वती के काँठे में ही हुआ था,वह सारस्वत प्रदेश की सभ्यता थीlबाद में यह सभ्यता क्षेत्र विस्तार के क्रम में मुख्यतः पश्चिमाभिमुख होकर एवं कुछ दूर तक पूर्व की ओर बढती हैlसभ्यता का केन्द्र सरस्वती तट से सिन्धु एवं उसके सहायिकाओं के तट पर पहुँचता है और इस सिलसिले में इसकी व्यापारिक गतिविधियों का व्यापक विस्तार होता हैlकहा जाता है कि सारस्वत प्रदेश के अग्रजन्माओं की आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति का श्रेय सरस्वती नदी को ही थाlपशुपालक व कृषिजीवी जहाँ सरस्वती के तटीय वनों और उपजाऊ भूमि से आधिभौतिक उन्नति कर रहे थे,वहीँ ऋषि-मुनिगण इसके तट पर सामगायन कर याजिकीय अनुष्ठानों द्वारा आध्यात्मिक उत्कर्ष कर रहे थेl

ऋग्वेद के सूक्तों से इस सत्य का सत्यापन होता है कि सरस्वती नदी नाहन पहाड़ियों से आगे आदिबदरी के निकट निकलकर पँजाब, हरियाणा, उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान में प्रवाहित होती हुई समुद्र में प्रभाष क्षेत्र में मिलती हैlइसकी स्थिति यमुना और शतुद्रि के मध्य (ऋग्वेद १०/७५/५) किन्तु दृषद्वती (चितांग) के पश्चिम (ऋग्वेद ७/९५/२) कही गई हैlइसकी उत्पति दैवी (असुर्या ऋग्वेद ७/९६/१) भी मानी गई हैlब्राह्मण ग्रन्थों,श्रौतसूत्रों एवं पुराणादि ग्रन्थों में सरस्वती का उद्गम स्थान प्लक्ष प्राश्रवण कहा गया हैlयमुना नदी के उद्गम स्थल को प्लाक्षावतरण कहा गया हैlऋग्वेद में सरस्वती सम्बन्धी (करीब) पैंतीस मन्त्र अंकित हैं,जिनमें से तीन ऋग्वेद ६/६१,ऋग्वेद ७/९५ और ७/९६ स्तुतियाँ हैंlविविध मन्त्रों में सरस्वती की अपरिमित जलराशि,अनवरत बदलती रहने वाली प्रचण्ड वेगवती धारा,भयंकर गर्जना,उससे होने वाले संभावित खतरों,महनीयता आदि के भी जीवन्त वर्णन हैंl(ऋग्वेद ६/६१/३, ६/६१/८, ६/६१/११,६/६१/१३)सरस्वती प्रचण्ड वेगवाली होने के साथ ही सर्वाधिक जलराशि वाली होने के कारण बाढ़ के समय इसका पाट इतना चौड़ा और विस्तृत हो जाता है कि यह आक्षितिज फैली हुई प्रतीत होती हैlऋग्वेद६/६१/७ में अंकित है कि सरस्वती कूल किनारों को तोड़ती हुई बहुधा अपना प्रवाह बदल लेती हैl

प्रसविणी सरस्वती 
ऋग्वेद १०/६४/९ में में सरस्वती,सरयू सिन्धु की गणना बड़े नदों में हुई है जिसमें ऋग्वेद ७/३६/३ में सरस्वती ही सरिताओं की प्रसविणी कही गई हैlऋग्वेद ६/६१/१२ में अंकित है कि सरस्वती में सात नदियों के मिलने के कारण सप्तधातु एवं ऋग्वेद ६/६१/१० में सप्तस्वसा कही गई हैlऋग्वेद ७/९६/३ के अनुसार सरस्वती सदा कल्याण ही करती हैlसरस्वती का जल सदा और सबको पवित्र करने वाला हैlयह पूषा की तरह पोषक अन्न देने वाली हैlअन्यान्य नदियों की तुलना में यह सबसे अधिक धन-धान्य प्रदायिनी हैlऋग्वेद ७/९६/३ में यह अन्नदात्री, अन्न्मयी एवं वाजिनीवती कही गई हैlधन, समृद्धि, ज्ञान प्रदायिनी होने के कारण ही सरस्वती को वाजिनीवती कहा गया हैlसरस्वती के माध्यम से नहुष ने अकूत धन-सम्पदा अर्जित की थीlइसी कारण धन-धन्य प्राप्ति के लिये सरस्वती की प्रार्थना करने की परिपाटी बाद में चल पड़ीlसरस्वती का जल स्वच्छ एवं सुस्वादु होने के कारण अन्नोत्पादिका होने के परिणामस्वरूप यह कल्याणकारिणी एवं धन-धान्य प्रदायिनी कही गई हैlसरस्वती अग्रजन्माओं की भूमि प्रदायिनी कही गई हैlऋग्वेद ६/६१/३ एवं ८/२१/१८ के अनुसार सारस्वत प्रदेश की प्राचीनता सिद्ध होती हैlसरस्वती के तट पर एक प्रसिद्द राजा और पञ्चजन निवास करते हैं जिन तटवासियों को सरस्वती स्मृद्धि प्रदान करती हैlऋग्वेद ६/६१/७ के अनुसार वृत्र का संहार सरस्वती तट पर हुआ था जिसके कारण इसकी नाम वृत्रघ्नी भी हुईlसर्वप्रथम यज्ञाग्नि सरस्वती तट पर प्रज्वलित हुई थीlतटवासी भरतों ने सर्वप्रथम अग्नि जलाई थीlइसी कारण सरस्वती का एक नाम भारती भी हुईlसरस्वती तट से ही अग्नि का अन्यत्र विस्तार भी हुआlफलतः सरस्वती के साथ ही दृषद्वती और आपया के तटों पर भी यज्ञों का संपादन होने लगाlनदियों में सरस्वती की इतनी महिमा मणि गई है कि इसे नदीतमे ही नहीं अम्बितमे और देवितमे भी घोषित करते हुए कहा गया है – 
अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वती l
प्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिम्ब नस्कृधि ll
-ऋग्वेद २/४१/६

ऋग्वेद ७/९६/१ में सरस्वती की महता गायन करने वशिष्ठ को आदेश देते हुए ऋषि कहते हैं, हे वशिष्ठ! तुम नदियों से बलवती सरस्वती के लिये वृहद स्तोत्र का गायन करोlऋग्वेद ६/६१/१० के अनुसार सरस्वती के स्तुतिगायकों ने अपने पूर्वजों द्वारा भी इसके स्तुति का उल्लेख किया है l इससे भी सरस्वती तट पर वैदिकों के निवास की प्राचीनता का संकेत मिलता हैlकतिपय विद्वान कहते हैं, भरतों की आदिम वासभूमि सरस्वती तटवर्त्ती भूमि (सारस्वत प्रदेश) ही थी जहाँ उन्होंने सर्वप्रथम यज्ञाग्नि जलाई थीlमैकडानल के अनुसार भी सूर्यवंशियों की प्राचीन वासभूमि भी जलाई थी, किन्तु विद्वानों के अनुसार सरस्वती के उद्गम स्थान पर हिमराशि का गलकर समाप्त हो जाने, जलग्रहण क्षेत्र से ही अन्य नदियों के द्वारा सरस्वती के जल का कर्षण कर लिये जाने आदि भौगोलिक कारणों से ख्य्यातिप्राप्त और पुण्यतमा सरस्वती का प्रवाह बहुधा परिवर्तित होता रहता थाlसम्भवतः उद्गम स्थल से सरस्वती का जल यमुना ने ही सबसे अधिक कर्षित किया होगाlइसी कारण यह मान्यता बनी कि प्रयाग में यमुना के साथ ही गुप्त रूप से सरस्वती भी गंगा में मिलती हैlभौगोलिक कारणों से सरस्वती वैदिक काल में ही क्षीण होते-होते सूखने भी लगी थीlफलतः उस समय तक उसका जो धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व कायम हो चुका था वह तो आगे भी मान्य रहा,परन्तु उसका सामाजिक-आर्थिक,आधिभौतिक महत्व घटता गयाlउत्तर वैदिक कालीन साहित्यों में धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टियों से सरस्वती एवं उसके तटवर्ती स्थानों के उल्लेख अंकित हैं,लेकिन आधिभौतिक महत्व के साक्ष्यों का प्रायः अभाव ही हैlलाट्टायानी श्रौतसूत्र में कहा है –

सरस्वती नाम नदी प्रत्यकस्त्रोत प्रवहति, तस्याः प्रागपर भागौसर्वलोके प्रत्यक्षौ ,
मध्यमस्तभागः भूम्यन्तःनिमग्नः प्रवहति,नासौ केनचिद् तद्धिनशनमुच्यते ll
-लाट्टायन श्रौतसूत्र १०/१५/१
अर्थात - सरस्वती पश्चिमोभिमुख हो प्रवाहित होती हैlउसका आरम्भिक एवं अन्तिम भाग सबके लिये दृश्य हैlमध्यभाग पृथ्वी में अन्तर्निहित है जो किसी को भी दिखलाई नहीं पड़ताlलाट्टायन श्रौतसूत्र में उद्धृत इस सन्दर्भ से सरस्वती के लुप्त होने का संकेत मिलता हैlसरस्वती के मरुभूमि में समाहित होने अथवा सूखने के काल के सम्बन्ध में विद्वानों का अनुमान है कि ब्राह्मण ग्रन्थों के काल में रेतीले स्थलों में अन्तर्निहित हो गईlकुछ विद्वान यह भी कहते हैं कि ऐतरेय ब्राह्मण के काल में अथवा उसके पूर्व ही सरस्वती सुख चुकी थीlविज्ञान के अनेकानेक नवीन सोच भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैंlब्राह्मण ग्रन्थों एवं श्रौत सूत्रों से ज्ञात होता है कि सरस्वती के तट पर धार्मिक-आध्यात्मिक कृत्यों का संपादन भी किया जाता है,थाlसरस्वती एवं दृषद्वती (चिनांग)के संगम पर भी अपां नपात इष्टि में पक्वचरू की आहुति देने का विधान भी अंकित हैlकात्यायन श्रौतसूत्र २४/६/६ के अनुसार सरस्वती दृषद्वती का संगम दृशद्वात्याय्यव कहा जाता थाlकात्यायन श्रौतसूत्र के ही २३/१/१२-१३ में अंकित है कि उक्त संगम पर ही अग्निकाम इष्टि भी संपादित होती थीlताण्ड्य ब्राह्मण २५/१६/११-१२ आपस्तम्ब के अनुसार सरस्वती तट पर तीन सारस्वत सत्र मित्र एवं वरुण के सम्मान में, इन्द्र एवं मित्र के सम्मान में, अर्यमा के सम्मान में किये जाते थेl

उद्गम स्थान 
सरस्वती का उद्गम स्थान जैमिनीय ब्राह्मण ४/२६/१२ के अनुसार प्लक्ष प्रास्त्रवन, एवं आश्वलायन श्रौतसूत्र १२/६/१ के अनुसर प्लाक्ष प्रस्त्रवन कहा जाता हैlयमुना का उद्गम स्थल प्लाक्षावतरणभी इसके पास ही थाlमहाभारत वनपर्व १२९/१३-१४-२१-२३ से स्पष्ट भाष होता है कि यमुना क्ले उद्गम स्थल प्लाक्षातरण के निकट ही सरस्वती भी प्रवाहित थी, जसी स्थान पर सरस्वती भूमि के गर्त्त में अन्तर्निहित हुई वह ताण्डय ब्राह्मण २५/१०/६ के अनुसार विनशन (सम्प्रति कोलायत, बीकानेर के दक्षिण-पश्चिम-दक्षिण) कहा जाता थाlसरस्वती-प्रवाह के लुप्त होने को विनशन तथा कई बार इसकी धारा पुनः प्रकट हो जाती थी,जिसे उद्भेद कहा जाता थाlसरस्वती प्रवाह के लुप्त हो जाने की स्थिति में सरस्वती के सूखे तट पर विनशन में किसी धार्मिक अनुष्ठन अथवा यज्ञादि के दीक्षा लेने का विधान थाlकात्यायन श्रौतसूत्र में अंकित है कि दीक्षा शुक्ल पक्ष की सप्तमी को होती थीlसरस्वती के लुप्त होने के स्थान विनाशन से प्लक्ष प्रास्त्रवन की दूरी उन दिनों घुड़सवारी के माध्यम से चौवालीस दिनों में पूरी की जाती थीlअनुष्ठान करने वाले प्लक्ष प्रास्त्रवन पहुँच कर ही अनुष्ठान समाप्ति एवं कारपचव देश में प्रवाहित यमुना में (सरस्वती में जल होने पर भी उसमें नहीं) अवभृथ स्नान करने का विधान थाlकात्यायन श्रौतसूत्र १०/१०/१ के अनुसार कुरुक्षेत्र के परीण नामक समुद्रतटीय स्थान पर श्रौतयज्ञ किये जाते थेlआश्वलायन श्रौतसूत्र के अनुसार विनशन से प्रक्षिप्त शय्या की दूरी पर यजमानों के द्वारा एक दिन में व्यतीत किया जाता थाlऐतरेय ब्राह्मण ८/१ की गाथानुसार सरस्वती तट विनशन पर ऋषियों द्वारा सम्पादित सत्र से  जन्म लिये (उत्पन्न) कवष नामक दासीपुत्र को प्यास से तड़प-तड़प कर मर जाने के लिये मरुभूमि में छोड़ दिए जाने पर कवष ने अपां नपात (ऋग्वेद १०/३०) स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर उसके रक्षार्थ सरस्वती उसे घेरते हुए प्रकट हुई उसे परिसरक नाम से जाना जाता हैlमहाभारत वनपर्व ८३/७५ एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य १५/२० में सरक कहा गया हैlमहाराज मनु के समय में सरस्वती एवं दृषद्वती के मध्य का प्रदेश देवकृतयोनि के नाम से जाना जाता हैl

पुराणादि ग्रन्थों में सरस्वती के नदी रूप की अपेक्षा देवतारूप को अत्यधिक महत्व प्रदान करते हुए कहा गया है कि सरस्वती का प्रवाह हालाँकि सूख गया था फिर भी उसका परम्परागत महत्व पौराणिक काल में भी कायम थाlभौगोलिक कारणों से सरस्वती के प्रवाह क्रम में हुए परिवर्तन को पुराणादि ग्रन्थों में शाप तथा वरदान की कथाओं से महिमामण्डित करने के साथ ही धार्मिक स्वरुप प्रदान किया गया हैlसरस्वती तटवर्ती कई स्थानों को तीर्थ रूप में वर्णन करते हुए उनके यात्राओं का जिक्र किया गया हैlमहाभारत में धौम्य पुलस्त्य, पाण्डव और बलराम की तीर्थयात्राएँ भी पुराणों की साक्ष्यता को ही प्रमाणित एवं पुष्ट करती हैlसरस्वती के नदी रूप का वर्णन महभारत वनपर्व अध्याय ८३, ८४, १२९ एवं शल्य पर्व अध्याय ३५-५५, एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य, ब्रह्म पुराण,कूर्म पुराण , पद्म पुराण, वृह्न्नारदीय पुराण, स्कन्द पुराण, वृह्द्धर्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृति खण्ड) आदि ग्रन्थों में अंकित हैंlमहभारत में पाण्डव तीर्थयात्रा के क्रम में कहा गया है कि यमुना के उद्गम स्थल प्लाक्षवतरण से पुण्यसलिला सरस्वती दिखलाई पडती हैlइससे स्पष्ट पत्ता चलता है कि सरस्वती का उद्गम स्थल प्लक्ष प्रास्त्रवण यमुना के उद्गम स्थल प्लाक्षावतरण के नजदीक ही थीlवामन पुराण सरोवर महात्म्य ११/३ एवं महाभारत वनपर्व ८४/७ एवं शल्य पर्व ५४/११ के अनुसार सरस्वती की उत्पति के सम्बन्ध सौगन्धिक वन के आगे प्लक्ष (पांकड़) वृक्ष की जड़ की बांबी प्लक्ष प्रास्त्रवण से कही गई हैl महाभारत शल्य पर्व ४२/३० एवं वामन पूर्ण सरोवर महात्म्य १९/१३ में सरस्वती को ब्रह्मा की सरोवर से उत्पन्न होना भी कहा हैl

पुराणों में वेदों की भान्ति प्लक्ष प्रास्त्रवण तीर्थरूप में स्वीकृत है लेकिन ब्रह्मा का सरोवर इस रूप में मान्य न हो सका हैlब्रह्म पुराण में सरस्वती नदी को अग्नि ने स्पष्टतः ब्रह्मा की कन्या तान्देवान्कन्या कहा है इसके साथ ही ब्रह्मा ने इसे स्वीकार भी किया हैl(ब्रह्म पुराण १०/२०१, २०३, २०४) l महाभारत शल्य पर्व ३५/७७ एवं वन पर्व ८२/६० के अनुसर ब्रह्मा के सरोवर से उद्भुत पश्चिमाभिमुख हो प्रवाहित होती हुई सरस्वती पश्चिमी समुद्र में जिस स्थान पर मिलती थी,वह सरस्वती समुद्र संगम तीर्थ के नाम से विख्यात थाlब्रह्म पुराण १०१/२१० के अनुसार भी अग्नि को समुद्र तक ले जाने की पौराणिक आख्यान से भी सरस्वती का समुद्र से मिलना सिद्ध होता हैlसरस्वती के द्वारा अग्नि को समुद्र तक पहुँचाये जाने की यह कथा थोड़े अन्तर से ब्रह्मपुराण में भी अंकित है तथा सरस्वती के सूखने का एक कारण अग्नि को समुद्र तक पहुँचाया जाना भी माना गया हैl

ऋग्वेद की भान्ति ही पुराणों में भी सरस्वती को महानदी,हजारों पर्वतों को विदीर्ण करने वाली,सर्व लोगों की माता आदि कहा गया हैlमहाभारत शल्य पर्व ३८/२२ एवं वृहन्नारदीय पुराण १/८४/८० के अनुसार सरस्वती का उद्गम स्थल हिमालय किवां हिमालय का रमणीय शिखर हैlवामन पुराण सरोवर महात्म्य १३/६-८ एवं वृहन्नारदीय पुराण २/६४/१९ मे अंकित है कि सरस्वती पहाड़ों से उत्तर द्वैतवन से होती हुई कुरुक्षेत्र के रन्तुक नामक स्थान से पश्चिमोभिमुख होकर प्रवाहित होती हैlकुरुक्षेत्र में प्रवाहित होने वाली अन्य नदियाँ बरसाती हैं लेकिन सरस्वती में सालों भर जल प्रवाहित रहता हैlविद्वानों के अनुसार कुरुक्षेत्र से पश्चिमी समुद्र के बीच सरस्वती का प्रवाह रेगिस्तान में खो चुका था,फिर भी अनेकानेक स्थलों पर उपलब्ध उसके अवशेषों को तीर्थों की मान्यता मिल चुकी थीlप्राचीन समय में द्वारावती से कुरुक्षेत्र तक जाने का प्रमुख मार्ग सरस्वती तट के साथ-साथ ही थाlभागवतपुराण में दो बार श्रीकृष्ण के हस्तिनापुर से द्वारिका और दूसरी बार द्वारिका से हस्तिनापुर आने के समय इस मार्ग का वर्णन अंकित हैlबलराम की द्वारिका से कुरुक्षेत्र की तीर्थयात्रा का मार्ग भी यही रहा हैlइन यात्राओं के क्रम में प्रभास तीर्थ, चमसोद्भेद, शिवोद्भेद, नागोद्भेद, शशयान,उद्पान अथवा सरस्वती कूप,विनशन, सुभूमिक अथवा गन्धर्ववती तीर्थ, गर्गस्त्रोत, शंखतीर्थ, द्वैतवन,नागधन्वा, द्वैपायन सरोवर तीर्थ आदि का नाम महाभारत के वनपर्व एवं शल्य पर्व में अंकित हैंlइन तीर्थों में चमसोद्भेद,शिवोद्भेद और नागोद्भेद ऐसे स्थल हैं जहाँ लुप्त सरस्वती पुनः प्रकट हुई थीlविद्वान कहते हैं, सरस्वती का पराचिन मार्ग यही है जो सूख जाने पर भी कतिपय विशिष्टताओं के कारण तीर्थ रूप में मान्य हो गयेlउद्पान अथवा सरस्वती कूपतीर्थ के सम्बन्ध में महाभारत शल्य पर्व ३५/९० के अनुसार वहाँ औषधियाँ (वृक्ष लताओं) की स्निग्धता और भूमि आर्द्रता से सरस्वती का अनुमान होता हैl शल्य पर्व के अध्याय ४२ के अनुसार वशिष्ठोद्वाह (सरस्वती-अरुणा संगम) से सरस्वती तीर्थ (विश्वामित्र आश्रम) तक सरस्वती द्वारा वशिष्ठ को प्रवाहित कर ले जाने से इसके वेगवती होने का प्रमाण मिलता है लेकिन विश्वामित्र के शाप से वशिष्ठोद्वाह में सरस्वती का जल एक वर्ष के लिये अपवित्र एवं रक्तयुक्त हो जाता हैlमहाभारत शल्यपर्व ४३/१६ एवं वामन पुराण (स० म०) १९/३० के अनुसार ऋषियों के वरदान से सरस्वती नदी पुनः पवित्र और शुद्ध हो गईlइसी प्रकार महाभारत शल्य पर्व ४३/६ एवं वमन पुराण सरोवर महात्म्य १९/३० में पश्चिम-दक्षिण अभिमुखी सरस्वती के वैसे ही किसी घटना के कारण नागधन्वा तीर्थ से पूर्वाभिमुख होने की कथा भी अंकित हैlइसे आलंकारिक रूप में नैमिषारण्यवासी ऋषियों पर सरस्वती की कथा के रूप में महाभारत शल्य परत्व ३७/३६-६० में कहा गया हैl 


विद्वानों के अनुसार सरस्वती-प्रवाह के किन्हीं भौतिक कारणों के परिणामस्वरुप सूख जाने, दूषित एवं शुद्ध होने की कथाओं को पुराणों में शाप एवं वरदान की कथाओं से महिमामण्डित किया गया हैlब्रह्मपुराण १०१/११ के अनुसार उर्वशी के आग्रह पर ब्रह्मसुता सरस्वती पुरुरवा से मिलीlपुरुरवा के साथ सरस्वती के मेल-जोल और उनके घर आने-जाने की बात ब्रह्मा )पिता को अनुचित लगीlइस पर उन्होंने सरस्वती को महानदी होने का शाप दे दियाlइसी अध्याय के सोलहवें श्लोक में ब्रह्मा के शाप से शाप-मोचन हेतु प्राप्त वरदान के कारण सरस्वती के दृश्य एवं अदृश्य दो रूपों की हो जाने की कथा हैlब्रह्मवैवर्त पुराण में अंकित है कि देवी सरस्वती को गंगा के शाप के कारण नदी रूप में अवतरित होना पद थाlमहाभारत शल्य पर्व ३७/१-२ में विनशन तीर्थ के वर्णन में सरस्वती-प्रवाह के सूखने का कारण दुष्कर्म परायण शूद्रों और आभीरों के प्रति द्वेष की कथा अंकित हैlशान्ति पर्व १८५/१५ में सरस्वती के चारों वर्णों के लिये एकमात्र देवी कहा गया हैlमहाभारत में ही अन्यत्र सरस्वती के सूखने का कारण उतथ्य ऋषि का शाप भी कहा हैlमहाभारत पुराणादि ग्रन्थों में ऋषियोंके आह्वान पर विभिन्न स्थानों पर सरस्वती के प्रकट होने की कथा कही गई हैlइसके साथ ही विविध स्थानों प्रकट उन छोटी नदी-कल्याओं को सरस्वती नदी की पवित्रता, महता आदि के साथ जोड़ा गया हैlमहाभारत शल्य पर्व अध्याय ३८ एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य अध्याय १६ में ब्रह्मा के आह्वान पर पुष्कर में सुप्रभा,सत्रयाजी मुनियों के कहने पर नैमिशारण्य में कांचनाक्षी, गय के आह्वान पर गया में विशाला, उद्दालक आदि ऋषियों के आह्वान पर उत्तर कोशल में मनोरमा, कुरु के आह्वान पर कुरुक्षेत्र में सुरेणु तथा दक्ष के आह्वान पर गंगाद्वार, वाशिष्ठ के आह्वान पर कुरुक्षेत्र में ओधवती तथा ब्रह्मा के आह्वान पर हिमालय में विमलोदका नाम से सरस्वती के प्रकट होने की कथा अंकित हैlमंकणक ऋषि ने उपर्युक्त सातों सरस्वतियों (नदियों) को कुरुक्षेत्र में आह्वान कर जिस स्थान पर स्थापित किया था वह सप्त सरस्वती तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हैl

वैदिक साहित्यों में अंकित सरस्वती नदी को पौराणिक काल में सूख जाने के पश्चात पुराणादि ग्रन्थों में अनेकानेक स्थानों पर पुण्यसलिला एवं सरित्श्रेष्ठ कहते हुए अत्यन्त महता प्रदान की गई है तथा पुराणों में ही सरस्वती के देवी रूप में मान्यता भी पूर्णता को प्राप्त होती हैlअनेक ऋषियों के स्तुति इसके प्रमाण ही हैंlमहाभारत शल्य पर्व अध्याय ४२ एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य अध्याय १९ में वशिष्ठ ऋषि सरस्वती नदी को स्तुति करते हुए उसे पुष्टि,कीर्ति, धृत्ति, बुद्धि, उमा,वाणी और स्वाहा,क्षमा, कान्ति,स्वधा आदि जगत् को अपने अधीन रखने वाली एवं सभी प्राणियों में चार रूपों- परा, पश्यन्ति, मध्यमा और बैखरी में निवास करने वाली कहा हैlयह स्तुति सरस्वती को नदी रूप की अपेक्षा देवता रूप को ही महिमामण्डित करता हैl

वेद-पुराणादि ग्रन्थों में अंकित इन वर्णनों से कतिपय विद्वानों के अनुसार सरस्वती मूलतः नदी थी जो हिमालय से निकलकर  पश्चिमी समुद्र में जा मिलती थीlकालान्तर में भौगोलिक कारणों से सरस्वती सूख गई फिर भी उसकी दृश्य भौतिक नदी रूप से होने वाले अनगिनत लाभों को देखते हुए वैदिक एवं पौराणिक श्लोकों में उसे नदीतमे और अम्बितमे ही नहीं देवितमे भी स्वीकार किया गया हैlधीरे-धीरे सरस्वती नदी रूप की अपेक्षा देवता रूप में ही अधिक स्वीकृत, अंगीकृत और आत्मार्पित की गई,इसके साथ ही सरस्वती की देवी रूप ही प्रमुखता प्राप्त कर लोक आराध्या बन गई और वर्तमान में मार्ग शीर्ष अर्थात माघ मास के पञ्चमी,जिसे वसन्तपञ्चमी के नाम से जाना जाता है, को अत्यन्त धूम-धाम के साथ समारोहपूर्वक देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चा की जाती है l





live aaryaavart dot com

अशोक “प्रवृद्ध”
गुमला
झारखण्ड 

आलेख : झारखण्ड के जनजातीय नृत्य पर पाश्चात्य प्रभाव

$
0
0
jharkhand tribal dance
गीत - संगीत की कलाएं जीवन में रस उत्पन्न करने के लिए आवश्यक होती हैं l इसका आकर्षण जानवर तक को अपनी ओर खिंच लेता है l वंशी की सुमधुर सुरीली आवाज सुनकर गाय , बैल तथा गोपियों का मुरली मनोहर श्रीकृष्ण की ओर बरबस खींचे चले आना , इसका सख्त उदाहरण है l यही हाल  मधुर गानों का भी है . अपनी सुध - बुध खोकर मानव इसके वश में हो जाता है l अगर गीत - संगीत के साथ नृत्य का भी समावेश हो , तो फिर कहने ही क्या ?

समस्त विश्व के साथ हमारे देश भारतवर्ष के अन्य प्रदेशों की भान्तिही झारखण्ड और सीमावर्ती प्रदेशों के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाली बनवासी जनजातियाँभी अपने गीत - संगीत एवं नृत्य की चिरंतन - परम्परा पर गर्व कर सकती है , और इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं ही l पुरातन काल से ही नृत्य वनजातीय अथवा जनजातीय  परम्पराओं में आदिवासियों की आदिवासियों की संस्कृति तथा उनके जीवन का एक आवश्यक अंग रहा है l कहा जाता है कि , एक वनजाति जो नाचना जानती है , कभी मर नहीं सकती l इसके मूल में यही रहा है कि व्यक्ति और जाति के अस्तित्व की रक्षा ही इसका कार्य है l नृत्य आदिवासी - संस्कृति का एक अविभाज्य अंग है l वनजाति अर्थात आदिवासी समाज में नृत्य की प्रधानता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक मौसम में , जीवन के प्रत्येक क्षण नृत्य से ओत - प्रोत होते हैं l प्रसन्नता , उदासी , जुदाई , पूजा ,आदि प्रत्येक अवसरों पर जनजातीय समाज में गीत , संगीत , नृत्य का प्रचलन है l ये नृत्य जनजातियों के प्रायः हरेक पक्षों , यथा , सामाजिक , धार्मिक , आर्थिक एवं राजनितिक आदि में उद्भासित होते रहते हैं और इस तरह उनकी सांस्कृतिक विरासत उनके नृत्यों की लंबी परम्परा में अक्षुण बनी रहती है l आदिवासी समाज और संस्कृति यथार्थ रूप में जानने के लिए उनके जीवन के अविभाज्य अंग के रूप में सम्मिलित उनकी नृत्य – परम्परा का अध्ययन समीचीन जान पड़ता है l 

गीत - संगीत एवं नृत्यप्रियता वनवासी आदिवासियों का एक स्वाभाविक गुण है जो उतने ही प्राचीन हैं जितना कि  मानव समाज तथा यह उसी तरह विस्तृत है जिस तरह उनकी जाति l आधुनिक युग के वनवासी जनजातीय समुदायों में भी नृत्य की यह प्राचीन परम्परा बड़े ही विस्तृत रूप में देखने को मिलती है ,फिर भी समय - समय पर इनमें गीत - संगीत - नृत्य को कर्णप्रिय , आकर्षक एवं मनोहारी बनाने के लिए अथवा अन्यान्य प्रेरणाओं के आधार पर जनजातियों के संगीत - नृत्य की भावनाओं में तीव्र बदलाव देखने को मिला है तथा ये पाश्चात्य एवं लोक धुनों से , संगीतों से लबरेज हो रहे हैं l जनजातीय लोग नृत्य को अत्यन्त महत्व देते हैं तथा प्रतिदिन रात्रि को स्त्री - पुरूष गाँव के अखाड़े में एकत्रित होते हैं और नाचते - गाते हैं l ऐसा प्रायः प्रत्येक रात्रि को होता है .पर्व - त्योहारों एवं अन्य अवसरों पर जनजातियों का यह मस्ती भरा आलम और भी कई दिनों तक चलता रहता है l लडकियाँ और महिलायें भी इस नृत्य में बढ़ - चढ कर भाग लेती हैं और पूरा अखाड़ा स्त्री - पुरूष और युवक - युवतियों से सहसा भर उठता है l 

वनजातीय आदिवासी नृत्य - संगीत स्वर एवं पद की स्वाभाविक गतियों पर आधारित होते हैं l इन संगीत - नृत्यों के पीछे एक शक्तिशाली संवेगात्मक भाव होता है l प्रकृति की सुरम्य वादियों से चित्रित वातावरण एवं जनजातीय जीवन की सरलता के परिणामस्वरूप इन संगीत एवं नृत्यों के शक्तिशाली संवेगात्मक भाव और भी उद्दीप्त हो उठते हैं l जनजातियों के गाँवों में  धुमकुरिया अर्थात युवा गृह और अखाड़े ये दो संस्थाएं महत्वपूर्ण होती हैं , जिनमें आदिवासी नृत्य शैली व गीत- संगीत के उद्भव - विकास , पोषण एवं परस्पर सम्बद्धता बनाये रखने के लिए अनेक कार्य संचालित किये जाते हैं l युवा गृह जनजातियों के सामाजिक जीवन का एक प्रमुख नाग है , जिसका प्रचलन प्रायः सभी जनजातियों में देखने को मिलता है l विभिन्न जनजातियों में इस संस्था का अलग - अलग नाम है l उराँव जनजाति में युवा गृह को कुँवारों का घर , कुडुख भाषा में जोख - अरपा , मुण्डा तथा हो में गतिओरा अथवा गितिओरा और खड़िया , बिरहोर और एवं तीनों प्रकार के नागाओं में भी युवा गृह के अपने प्रचलित नाम हैं l अनेक जनजातियों के बस्तियों में लड़के एवं लड़कियों का युवा गृह अलग - अलग होता है l लड़कियों के युवा गृह की देख – बहाल वृद्धा अथवा विधवाएं करती हैं l जनजातियों के अनेक परम्परागत पर्व - त्योहार , उत्सव - समारोह नृत्य के साथ इस प्रकार सम्बंधित हो चुके हैं कि उन्हें एक – दूसरे से अलग कर इनका लुत्फ़ उठा पाना , मजा ले पाना अत्यन्त कठिन है l वस्तुतः जनजातियों के उत्सव एवं समारोह इनसे सम्बंधित नृत्य के ही परिप्रेख्य में समझे जा सकते हैं l चावल से निर्मित एक प्रकार का परम्परागत नशीला पेय पदार्थ हड़िया और अविवाहित - विवाहित वनवासी आदिवासी युवक - युवतियों का उन्मुक्त मिलन के साथ इनके नृत्य ,गीत तथा  संगीत के वाद्य में अतिरिक्त उत्साह , मस्ती के आलम तथा उमंग को दुगुने जोश से भर देते हैं l 

jharkhand tribal dance
समस्त जनजातीय समुदाय की भान्ति ही झारखण्ड और इसके सीमावर्ती प्रान्तों यथा , छतीसगढ़ , मध्यप्रदेश और उडीसा आदि प्रान्तों में  निवास करने वाली एक प्रमुख जनजाति उराँव जनजाति के लोग भी नृत्य के साथ गीत - संगीत को काफी महत्व देते हैं तथा नृत्य इनके जीवन का एक प्रमुख साधन है l दिनभर की कठोर हाड़ –तोड़ परिश्रम के पश्चात प्रतिदिन रात्रि को अखाड़े में उराँव नाचते - गाते हैं l पर्व – त्योहारों के अवसरों पर इनका यह नाच – गान का सिलसिला कई दिनों तक चलता ही रहता है l विभिन्न वय के युवक – युवती , स्त्री – पुरूष पंक्तियों में पृथक – पृथक नृत्य करते हैं तथा भान्ति – भान्ति के गाने गाते हैं l मनोरंजन के साथ ही उराँव लोग नाचते समय वर्षा के लिए , बीमारी से मुक्ति , पशुओं की रक्षा तथा कृषि की उन्नति के लिए भी प्रार्थना भी करते हैं l उराँव प्रत्येक पर्व – त्योहार पर अलग – अलग प्रकार का नृत्य तथा तरह – तरह के गाने गाते हैं l उराँव के साथ ही अन्य जनजाति में भी प्रत्येक पर्व- त्योहार पर इनके अलग - अलग नृत्य तथा तरह - तरह के गाने हैं l मुण्डा , खड़िया , हो , बिरहोर एवं संथाली आदि जनजातियों में भी पर्व - त्योहार पर किस्म - किस्म के गाने , वाद्य - यंत्रों की धमधमाती गूंज के मध्य भान्ति - भान्ति के नृत्य होते हैं l प्रायः सभी जनजातियों में वर्षा एवं कृषि की उन्नत्ति , बीमारियों से रक्षा आदिके लिए प्रार्थना करने की परिपाटी है l इस प्रकार नृत्य जनजातीय संस्कृति का एक अविभाज्य अंग है तथा यह गाँव की कुछ संस्थाओं और रीति - रिवाजों से सम्बंधित है l

उराँव गाँवों की संस्था धुमकुरिया एवं अखाड़ा तथा उनके रीति – रिवाज एवं परम्पराओं के साथ उराँव नृत्य इस भान्ति सम्बंधित हो चुका है कि इनमे किसी भी प्रकार का तनिक भी परिवर्तन उराँवों के नृत्य शैली में व्यापक अन्तर लाने में समर्थ होता है l हालांकि आज धुमकुरिया एवं अखाड़ा उराँव बस्तितों से लुप्त होने लगे हैं , तथापि आज भी जिन उराँव बस्तियों में धुमकुरिया एवं अखाड़े की परम्परा बची हुई है , वहाँ के उराँव अपने परम्परागत उत्सवों – पर्वों में शुद्ध आत्मीय भाव सीभाग लेते हैं , युवक – युवतियों के नृत्य हेतु मिलन के लिए कोई नियंत्रण नहीं है . जिसके कारण वहाँ उराँव नृत्य – गीत – संगीतकी अखण्डता तथा शुद्धता पर्याप्त सुरक्षित रह सकी है l कतिपय उराँव इसमें जातीय पेय हड़िया पर किसी प्रकार का बंधन नहीं होने का योगदान भी मानते हैं l उराँव गाँवों में मौसमी तथा धार्मिक और राजनितिक अवसरों के नृत्य सामाजिक परिवेश में बड़े ही जोश – खरोश और धूम धाम के साथ आयोजित किये जाते हैं l गाँव के धुमकुरिया में रहने वाले लड़के – लड़कियों के लिए तो यह नित्यप्रति का दैनिक दिनचर्या ही रहता है , जहाँ वे दिनभर की परिश्रम के पश्चत सायंकाल में अखाड़ा में एकत्रित हो देर रात्रि तक नृत्य की मदिरा में डूबे रहते हैं l सरहुल , करमा , जतरा , हरबोरी , जितिया  आदि उत्सावों , पर्व – त्योहारों , विवाह और शिकार आदि शुभ अवसरों के साथ ही फसलों की बोआई एवं कटनी एवं अन्यान्य कृषि – कर्मों के अवसरों पर सभी ग्रामीण मिल - जुल खाते - पीते तथा रत – दिन नाचते – गाते हैं l झारखण्ड के छोटानागपुर के गाँवों में ऐसे नृत्य को खेल कहा जाता है l ऐसा खेल वयस्कों के लिए विशेष तथा बूढ़े – बुढियों के लिए सामान्य महत्व का होता है l

अपने बाल्यकाल से ही अपनी माँ अथवा बहन के साथ नृत्य सीखता बालक पूर्ण जवान होने तक नृत्य की बारीकियों से परिचित हो जाता है l वैसे भी तीन – चार वर्ष के उरांव तथा अन्यान्य जनजातियों के बच्चों के पैर नृत्य के अवसरों पर गीत – संगीत के ताल से तालबद्ध होकर स्वयं गतिमान हो उठते है क्योंकि ये बच्चे – बच्चियां धुमकुरिया में दीक्षा लेते हैं l वस्तुतः धुमकुरिया उराँव , मुण्डा , खडिया एवं अन्य जनजातियों के गीतों , वाद्यों एवं नृत्य के विकास एवं शिक्षा का केन्द्र वह संस्था है , जहाँ जनजातियों की इन परम्परागत कलाओं का विकास के साथ ही आदान – प्रदान भी होता है l हालाँकि अन्य जनजातियों की भान्ति ही उराँव गाँवों से आज धुमकुरिया का अस्तित्व समाप्त हो चुका है फिर भी छोटानागपुर के कतिपय क्षेत्रों में धुमकुरिया आज भी देखने को मिलता है l हाँ , अखाड़ा आज भी उराँव के साथ ही सभी जनजातियों की प्रायः सभी जनजातियों में पाया जाता है l सरकार एवं स्थानीय प्रशासन ने भी जनजातीय बस्तियों में अखाड़ा के निर्माण में काफी मदद की है l 

उराँव लोगों के लिए अखाड़े का काफी महत्व है क्योंकि अखाड़ा ही वह जगह है जहाँ ये एकत्रित होकर नाचते गाते हैं l हालाँकि धुमकुरिया के अभाव में अखाड़ा का अस्तित्व भी कमजोर पड़ जाता है फिर भी अखाड़ा का अपना एक लग महत्व है l जहाँ धुमकुरिया के अभाव में गाँव के उत्साही युवक - युवतियाँ उराँव नृत्य - गीत - संगीत को अपनी संस्कृति के अनुरूप अक्षुण बनाये रखने में संलग्न रहते है l हालाँकि झारखण्ड के उराँव जनजाति के लोग बेहतर भविष्य और रोजगार की तलाश में अन्य प्रदेशों की नगरों की ओर पलायन कर रहे हैं , परिणामस्वरूप उराँव बस्तियाँ वीरान हो रही हैं l रोजी -रोटी से निरन्तर जूझ रहे उराँव कृषि - कार्य से अवकाश के दिनों में रोजगार की तलाश में अन्य प्रदेशों की ओर रवाना हो जाते हैं l इस अस्थायी पुनर्वास - पलायन के कारण दिनानुदिन उराँव नृत्यों के साथ ही गीत - संगीत के स्तर में ह्रास होता जा रहा है l यही स्थिति मुण्डा , खड़िया , हो आदि जनजातियों के नृत्य - गीत - संगीत की भी है l

 उराँव जनजाति के साथ ही समस्त जनजातियों की परम्परागत नृत्य शैली गीत - संगीत में बदलाव का एक प्रमुख कारण धर्म - परिवर्तन भी है l धर्म – परिवर्तन नहीं करने वाले श्मशार उराँव के जनजाति के लोगों में भी 

धर्म - परिवर्तन करने वाले उराँव अपने परम्परागत नृत्य शैली और गीत - संगीत को त्याग कर ईसा मसीह के गुण - गान करने और पाश्चात्य गीत -संगीत के ईसा भजन सुनने - गाने लग जाते है l धर्म - परिवर्तन नहीं करने वाले उराँव और अन्य जनजातियों के लोगों में भी आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा - पद्धति के कारण नृत्य – गीत – संगीत के प्रति एक नये पाश्चात्य दृष्टिकोण का निरन्तर विकास हो रहा है , जिससे बहुत अंशों में उराँव गाँवों की चिरकालीन परम्परागत नृत्य शैली प्रभावित होती जा रही है l विगत सदी के अंतिम वर्षों में योजना आयोग के द्वारा मुण्डा और उराँव जनजाति की संस्कृति में परिवर्तन पर किये गए एक अध्ययन  के क्रम में भी इस तथ्य की पुष्टि हो चुकी है l कतिपय विद्वान धुमकुरिया आदि संस्थाओं को यौन - विकृति एवं अनैतिकता का केन्द्र मानते हैं और कहते हैं कि "दरअसल अखाड़ा और धुमकुरिया अब पारंपरिक सांस्कृतिक संस्था नहीं रहीं l इसने जनजातीय समाज की शुद्धता एवं पवित्रता को समाप्त करने और चोट पहुँचाने में मदद की है l अंग्रेजी शिक्षा नीति के परिणामस्वरूप हमारे धुमकुरिया आदि जनजातीय संस्थाओं में भी स्वतंत्र रहने वालों विशेषकर लड़कियों की पवित्रता नष्ट कर दी है और लड़कों को भी चरित्र - भ्रष्ट कर दिया है l धुमकुरिया में साथ रहने के कारण इन पर पारिवारिक - सामाजिक नियंत्रण नहीं रखा जा सका तथा रक्त - शुद्धता भी बची नहीं रह सकी l सगोत्र अथवा गोत्र के अंदर ही विवाह इसी बात का द्योत्तक है l"

आधुनिक शिक्षा के परिणामस्वरूप उरांव एवं अन्य जनजातियों के पारम्परिक मूल्यों में अंतर आ रही है तथा नैतिकता के प्रति उनकी जन भावनाओं में व्यापक बदलाव आ रहा है और इस प्रकार उराँव अथवा ने वनवासी आदिवसी बस्तियों के अखाड़े अथवा धुमकुरिया को एक सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक कार्य- कलापों की परम्परागत केन्द्र के बजाय व्यभिचार तथा पापों का अड्डा समझा जाने लगा है l कतिपय स्वार्थी और चरित्रहीन युवक - युवतियों के ऐसे कुत्सित प्रयास के परिणामस्वरूप परम्परागत जनजातीय बस्तियों में में भी उनकी सांस्कृतिक अस्मिता को चोट पहुँची है , तथा उनके सामूहिक सामाजिक गतिविधियों के विकास में बाधा उत्पन्न हुई है l जिसके कारण जनजातियों के परम्परागत नृत्य शैली के साथ गीत - संगीत भी पर्याप्त शिक्षा और आर्थिक तंगी के परिणामस्वरूप प्रभावित हुई है l उराँव जनजाति के साथ अन्यान्य जनजातियों के पर्व - त्योहार , उत्सव व समारोहों आदि पर नृत्य  शैली एवं गीत - संगीत में सामान्यतः अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है फिर भी इनके परम्परागत नित्यप्रति के नृत्य - गीत आदि बिलकुल ही कमजोर स्थिति तक पहुँच चुके हैं , तथा इनके परम्परागत शैलियों में काफी ह्रास हुआ है l इस ह्रास का प्रमुख कारण ईसाईयत का प्रचार तथा शहरी जीवन का प्रभाव के कारण पाश्चात्यकरण भी है l. 

अंग्रेजों के शासन काल में ही झारखण्ड के छोटानागपुर इलाके सुदूर जंगली - पहाड़वर्ती क्षेत्रों में ईसाईयत के प्रचार - प्रसार के पश्चात उराँव नृत्य शैली के गीत एवं संगीत के वाद्य - यंत्रों में व्यापक परिवर्तन हुए हैं l ईसाईयत के प्रचार वाले गाँवों उराँव एवं अन्य जनजातीय बस्तियों में धुमकुरिया तथा अखाड़ा का अस्तित्व लुप्तप्राय हो गया है तथा उनका स्थान मिटटी मिटटी अथवा सीमेंट - गारे - से बने कच्चे - पक्के भवन वाले गिरजाघरों ने ले लिया l ऐसे गाँवों में नृत्य के लिए अखाड़ा भी नहीं है , लेकिन गाँवों के मध्य अथवा सर्वगामी स्थानों पर खुले स्थान आज भी देखने को मिलते हैं , जिन स्थानों का उपयोग यदा - कदा ही  विवाह समारोह आदि के अवसरों पर नृत्य के लिए किया जाता है l ऐसे गाँवों के परंपरागत उत्सवों का जगह ईसाई उत्सवों क्रिसमस , ईस्टर , स्वर्गारोहण , ख्रीष्टदेव पर्व तथा अन्य उत्सवों ने ले लिया है l ऐसे गाँवों के लोग अब सरहुल , करमा , जितिया तथा अन्य सरना पर्वों - उत्सवों का आयोजन करना भी अपनी शान के खिलाफ समझते हैं l अब छोटानागपुर सहित सम्पूर्ण झारखण्ड के ऐसे जनजातीय उत्सवों के आयोजनों में भी राजनितिक रंग गहराने लगा है .जिसके कारण इन अवसरों पर क्रिश्चियन प्रतिरूप अर्थात ईसाईयत मॉडल की ही झाँकी देखने को मिलती है l उराँव नृत्य शैली को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में ईसाईयत के प्रचार के कारण धुमकुरिया तथा अखाड़ा जैसी संस्थाओं का विनाश , परम्परागत पर्व -त्योहारों - उत्सवों के सांस्कृतिक ह्रास तथा लूथेरान मिशन में नशीले पेय यहाँ तक कि हड़िया पर भी पूर्ण प्रतिबन्ध तथा कैथोलिक मिशनों में अल्प छूट और शिक्षा के कारण आये चरित्रिक ह्रास को देखते हुए युवक - युवतियों के उन्मुक्त मिलन पर प्रतिबन्ध आदि हैं l जिसके कारण उराँव एवं अन्य जनजातियों की पारंपरिक नृत्य शैली पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है l कई ईसाई गाँवों में ईसाई धर्म संस्थाओं द्वारा सिर्फ इससे पर्व उत्सवोंके अवसरों पर ही नाचने की छूट दी जाती है l ऐसा गुमला , सिमडेगा , राँची जिले के साथ ही झारखण्ड के कई ईसाई बहुल क्षेत्रों में देखने को मिलता है कि शिक्षित युवक युवक तथा नौकरी पेशे वाले आदिवासी नृत्य आदि समारोहों में भाग नहीं लेते l ऐसे गाँवों के क्रिसमस , ईस्टर आदि अवसरों पर भी आयोजित होने वाले नृत्य आयोजनों में उराँव जनजाति नृत्य के कलात्मक तथा स्वभावात्मिकता का अभाव ही देखने को मिलता है l विद्वानों के अनुसार , अभ्यास की कमी , परम्परागत पद , स्वर , योजना , ताल की शैलियों पर नवीन पद शैलियों का स्थानांतरण , पुराने पारम्परिक गीतों के स्थान पर नई गीतों की योजना और परम्परागत वाद्य - यंत्रोंके स्थान पर नए वाद्य - यंत्रों को अपनाए जाने के परिणामस्वरूप इन सबों ने मिल - जुलकर उराँव एवं अन्य जनजातीय नृत्य शैली को तितर - बितर कर दिया है तथा नित्यप्रति के साथ ही उत्सवों एवं सामाजिक अवसरों पर परम्परागत गीतों के स्थान पर बाइबिल कापाथ अथवा प्रार्थना ने ले लिया है l आज जनजातीय लोग अपने पारम्परिक विश्वासों को भूलकर कुडुख तथा सदानी , नागपुरी बोली निर्मित बाइबिल के भजन के बोलों से ही प्रातः प्रभु - स्मरण किया करते हैं तथा नृत्य उनके लिए महज एक खेल की वस्तु बनकर रह गई है l

गाँवों के साथ ही शहरी बस्तियों में निवास करने वाली उराँव एवं अन्यान्य जनजातीय लोगों के द्वारा भी परम्परागत नृत्यों का विशेष पर्व - त्योहारों के माध्यम से रक्षित किए जाने प्रयत्न किया जा रहा है , फिर भी जनजातियों के नृत्य की पदक्रम शैली , संगीत तथा वाद्य - यंत्रों - शैलियों में में काफी ह्रास हुआ है तथा हो रहा है l कला के रूप में यह ह्रास उनके आर्थिक व्यवसाय , शैक्षणिक योग्यता तथा शहरी जीवन में परिवर्तन के फलस्वरूप हुआ l गाँवों अथवा  शहरों में शिक्षित अथवा नौकरी शुदा लोग इन पारम्परिक नृत्यों में भाग नहीं लेते l ऐसे अवसरों पर कृषकों , श्रमिकों अथवा अन्यान्य घरेलू काम - धंधों में लगे आदिवासी मुख्य रूप से हाथ बंटाते हैं तथा बाकी सब मात्र दर्शक ही बने रहते हैं l साधारण शिक्षित अच्छे आर्थिक स्थितिवाले , धार्मिक चेतना वाले , जनजातीय ईसाई इनकी आवश्यकता किसी धार्मिक अवसरों पर भी नहीं मानतेl

इस प्रकार जनजातीय संस्कृति का एक अविभाज्य अंग नृत्य गाँव की कतिपय संस्थाओं तथा रीति - रिवाजों से सम्बंधित है , जिनमें समय के साथ ही बदलाव दृष्टिगोचर हो रहा है , जिनका शास्त्रीय दृष्टिकोण से नृत्य के ह्रास के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन - मनन आवश्यक है l तकनीकी दृष्टिकोण से नृत्य में परिवर्तन की प्रकृति तथा दुरी को समझना आवश्यक है जिससे आदिवासियों के परम्परागत नृत्य शैली एवं गीत - संगीत को लुप्त होने और मूल से बदलाव को रोका जा सके l नृत्य सांस्कृतिक संवेग और आवश्यकताओं की अभिव्यक्ति का संकेत है l इस दृष्टि से वनवासी आदिवासी नृत्य के विभिन्न दृष्टिकोणों से समग्र अध्ययन की आवश्यकता है l इसके लिए नृतत्वशास्त्रियीं , कलाकारों एवं न्रिर्ट विशेषज्ञों के द्वारा मिल - जुलकर सम्मिलित प्रयास के बिना किसी सार्थक पहल और कारर्वाई की उम्मीद नहीं की जा सकती l      






अशोक “प्रवृद्ध”
गुमला 
झारखण्ड 

महिलाओं में उम्र के साथ बढ़ती है सेक्स की चाहत

$
0
0

growing-age-increase-sex-desire-in-woman
महिलाओं में यौन स्वास्थ्य को लेकर किए गए एक ताजा सर्वेक्षण में हुए खुलासे ने उस आम धारणा को उलट दिया, जिसमें माना जाता रहा है कि बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं में सेक्स के प्रति अरुचि पैदा होने लगती है। इस सर्वेक्षण में खुलासा किया गया है कि आम धारणा के उलट बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं में सेक्स की इच्छा बढ़ने लगती है और वे यौनक्रिया को अधिक मजेदार बनाना चाहती हैं।

यह सर्वेक्षण न्यूयार्क की विपणन सेवा प्रदान करने वाली कंपनी 'लिप्पे टेलर'ने वेबसाइट 'हेल्दीवुमेन डॉट ऑर्ग'के साथ संयुक्त रूप से किया। 18 वर्ष से लेकर वृद्ध वय की 1,000 महिलाओं के बीच किए गए सर्वेक्षण में 54 फीसदी प्रतिभागियों ने माना कि बढ़ती उम्र के साथ सेक्स का आनंद बढ़ने लगता है। इस सर्वेक्षण में सबसे दिलचस्प पहलू यह निकलकर आया कि 45 से 55 वर्ष के आयुवर्ग के बीच की महिलाएं सेक्स को लेकर सर्वाधिक प्रयोगधर्मी पाई गईं।

मिलेनियम मेडिकल ग्रुप से संबद्ध चिकित्सकों में मिशिगन की नर्स प्रैक्टिशनर नैंसी बर्मन ने कहा, "महिलाएं जैसे-जैसे उम्रदराज होती जाती हैं तथा अपने पति या साथी के साथ उनकी नजदीकी बढ़ती जाती है, तो उन्हें सेक्स में ज्यादा मजा आने लगता है, साथ ही वे उसे अधिका मजेदार बनाने पर भी ध्यान देने लगती हैं।"

सर्वेक्षण में 28 फीसदी महिला प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि वे एक सप्ताह में दो बार से लेकर सात बार तक सेक्स करती हैं। लिप्पे टेलर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मौरीन लिप्पे ने कहा कि सर्वेक्षण के मुताबिक इस उम्र में चूंकि महिलाओं को अपने साथी के साथ वक्त गुजारने का अधिक समय मिलता है, ऐसे में यह समय उनके लिए अपनी सेक्स अभिरुचियों को सार्थक करने और अपने साथी के साथ अपने रिश्तों को पुनर्जीवित करने के लिए सबसे मुफीद होता है।

बिहार : डीटीओ आॅफिस: नाम बड़े, दर्शन छोटे...!

$
0
0

  • - जिला परिवहन कार्यालय में स्मार्ट कार्ड की है किल्लत, पिछले तीन चार माह से विभाग को उपलब्ध नहीं हो सका स्मार्ट कार्ड कार्य प्रभावित
  • - ससमय कंप्यूटर सामग्री, स्मार्ट कार्ड, रिबन आदि की आपूर्ति नहीं करने के कारण आपूर्तिकर्ता श्री इंफोकाॅम प्राइवेट लिमिटेड को काली सूची में दर्ज करते हुए उनकी सुरक्षित राशि को किया गया जब्त, बकाये राशि के भुगतान पर लगी रोक
  • - पिछले तीन माह के दरम्यान यहां तकरीबन 4000 ड्राइविंग लाइसेंस और 10 हजार के आस पास रजिस्ट्रेशन के कार्य स्थगित हैं 

सहरसा: कहने को तो सहरसा को प्रमंडलीय मुख्यालय का दर्जा प्राप्त है लेकिन यहां मौजूद परिवहन कार्यालय की शिथिलता और लापरवाही के कारण आमजनों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बात यदि जिला परिवहन कार्यालय, सहरसा की करें तो यहां की स्थिति नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली जैसी है। पिछले कई माह से यहां महज खानापूर्ती का दौर जारी है। छोटे बड़े वाहन मालिकों को गाड़ी के कागजात दुरूस्त कराने में यहां कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। स्मार्ट कार्ड की सप्लाई नहीं होने के कारण आमजनों को ड्राइविंग लाइसेंस के लिए चक्कर काटना पड़ रहा है। साथ ही कमर्शियल ड्राइविंग लाइसेंस निर्गत संबंधी आदेश नहीं मिलने के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को पटना की ओर मुंह ताकना पड़ता है। 

बता दें कि पिछले तीन माह के दरम्यान यहां तकरीबन 4000 ड्राइविंग लाइसेंस और 10 हजार के आस पास रजिस्ट्रेशन के कार्य स्थगित हैं। लिहाजा लोगों की परेशानी दिनोंदिन जहां बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर विभागीय पदाधिकारी इस दिशा में कुछ सार्थक कदम नहीं उठा रहे हैं। विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार यहां प्रति माह 500-600 ड्राइविंग लाइसेंस के आवेदन प्राप्त होते हैं जबकि 500-700 आवेदन रजिस्ट्रेशन से संबंधित प्राप्त होते हैं। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि पिछले तीन चार माह से बाधित कार्य से आमजनों की परेशानी कितनी बढ़ी होगी। हालांकि सूत्रों का कहना है कि इस बाबत परिवहन विभाग, बिहार सरकार को संचिका संख्या-02/विविध-32/2014 परिवहन 1349 के तहत तमाम कमियों के बारे विस्तार से जानकारी दे दी गई है लेकिन अब तक स्थिति यथावत है। 

जब्त की गई राशि: मिली जानकारी अनुसार जिला परिवहन कार्यालय एवं क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार कार्यालय में ससमय कंप्यूटर सामग्री, स्मार्ट कार्ड, रिबन आदि की आपूर्ति नहीं करने के कारण आपूर्तिकर्ता श्री इंफोकाॅम प्राइवेट लिमिटेड को काली सूची में दर्ज करते हुए उनकी सुरक्षित राशि को न सिर्फ जब्त कर लिया गया है बल्कि बकाये राशि भुगतान पर भी रोक लगा दिया गया है। सामग्रियों की ससमय आपूर्ति नहीं होने के कारण जहां कार्य प्रभावित हो रहा है वहीं प्रशासनिक कठिनाई को देखते हुए वैकल्पिक व्यवस्था को भी अपनाया जा रहा है और केंद्रीय मोटर वाहन नियमावली 1989 के नियम 16/2 के प्रावधानों के अंतर्गत ड्राइविंग लाइसेंस को तत्काल पेपर मोड में ही निर्गत करने का निर्णय लिया गया है। बता दें कि यह लाइसेंस फार्म 07 पर निर्गत होगी और यह छह माह के लिए ही मान्य होंगे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि दो माह के अंदर स्मार्ट कार्ड की सप्लाई नहीं हो सकी तो ऐसे चालक जिनका लाइसेंस दो तीन माह पूर्व पेपर मोड में निर्गत किए गए थे उनकी परेशानी एक बार फिर बढ़ेगी और उन्हें दोबारा डीटीओ कार्यालय का चक्कर काटना पड़ेगा। 

निर्गत नहीं होता है कमर्शियल लाइसेंस: जिला परिवहन कार्यालय सहरसा से कमर्शियल लाइसेंस निर्गत नहीं हो रहा है। इस आशय जानकारी देते हुए कार्यालय के कर्मी ने कहा कि कमर्शियल लाइसेंस निर्गत नहीं होने से कई आवेदनों पर विचार तक नहीं किया जाता है। जबकि सुपौल व मधेपुरा में यह सुविधा लोगों को मिल रही है। ऐसे में सहरसा के लोगों को कमर्शियल लाइसेंस के लिए महिनों इंतजार करना पड़ता है और इस कार्य के लिए उन्हें पटना के आदेशों का इंतजार करना पड़ता है। 

कहते हैं डीटीओ: इस संबंध में डीटीओ, सहरसा का कहना है कि तमाम कमियों के बारे विभाग के उच्चाधिकारियों को अवगत करा दिया गया है और जल्द ही स्मार्ट कार्ड समेत कई अन्य कमियों को दूर कर लिया जाएगा।   





live aaryaavart dot com

कुमार गौरव, 
सहरसा

विशेष आलेख : भारतवर्ष पर इस्लाम का प्रथम आक्रमण

$
0
0
विक्रमी संवत् 769 (ईसवी सन 712) में भारतवर्ष (हिन्दुस्थान) पर इस्लाम का प्रथम आक्रमण हुआ था, जिसे कुछ अंशों में ही सफल आक्रमण कहा जा सकता है। यह आक्रमण समुद्र मार्ग से किया गया था और भारत के पश्चिमी भाग सिन्ध देश पर हुआ था। भारतवर्ष में मुहम्मद बिन कासिम का नाम प्रथम मुस्लिम आक्रमणकारी के रूप में इतिहास में अंकित मिलता है। मुहम्मद बिन कासिम द्वारा भारतवर्ष के पश्चिमी भागों में चलाये गये जिहाद का विवरण, एक मुस्लिम इतिहासज्ञ अल क्रूफी द्वारा अरबी के ‘चच नामा’ इतिहास प्रलेख में लिखा गया है। इस प्रलेख का अंग्रेजी में अनुवाद एलियट और डाउसन ने किया था। इससे पूर्व भी इस देश पर विदेशी आक्रमण होते रहे थे, किन्तु इस्लाम का यह आक्रमण उन सबसे भिन्न था। इस आक्रमण का उद्देश्य केवल भारत देश की धन सम्पत्ति पर अधिकार करना, मात्र नहीं अपितु इससे कहीं अधिक था। देश पर अधिकार करना, उस आक्रमण का एक उद्देश्य होने पर भी उसका कारण कुछ और ही था। वह कारण था, इस देश में ‘इस्लाम’ का प्रचार करना। यही कारण है कि यह आक्रमण बगदाद स्थित इस्लाम के खलीफा की ओर से किया गया था।

खलीफा न केवल बगदाद का शासक ही था अपितु वह इसके अतिरिक्त इस्लाम, जो महजब के रूप में विद्यमान है, का कर्णधार भी था। वास्तव में बगदाद में उसकी नियुक्ति भी इसी प्रकार द्विविध उद्देश्य के लिए की गई थी। एक तो उस प्रदेश पर शासन करना और दूसरे उस प्रदेश में इस्लाम का प्रचार-प्रसार करना।

इस्लाम एक मजहब है इस महजब का प्रचलन मक्का निवासी मोहम्मद ने किया था, जो स्वयं को परमात्मा का पैगाम लानेवाला-सन्देशवाहक कहता था। इसी कारण वह कालान्तर में पैगम्बर कहलाने लगा और आज वह इसी नाम से जाना जाता है।

मोहम्मद साहब का यह सौभाग्य था कि उनका विवाह एक धनी महिला से हुआ था। इस कारण उनको आजीविका की किसी प्रकार की कोई चिन्ता नहीं रही। परिणामस्वरूप उनके मस्तिष्क में भाँति भाँति की कल्पनाएँ उड़ान भरने लगीं। इस प्रकार कई वर्ष तक चिन्तन करने के उपरान्त उन्होंने स्वयं को परमात्मा का सन्देश वाहक अर्थात् पैगम्बर घोषित कर दिया। इस घोषणा के साथ ही उन्होंने अपने कल्पित परमात्मा और उसके सन्देश को सुनाना आरम्भ किया। इस पर वह पैगम्बर के रूप में विख्यात हो गया।

अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ उसने अपनी एक निजी सेना भी गठित करनी आरम्भ कर दी और समय पाकर वह इसके लिए युद्ध भी करने लगा। इस प्रकार मोहम्मद साहब ने परमात्मा और मनुष्य के रहन-सहन आदि-आदि के विषय में अपनी एक धारणा बनाई और अपने विचारों को अपनी उस निजी सेना के बल पर जन-साधारण पर थोपना आरम्भ कर दिया।

आरम्भ में जैसा कि स्वाभाविक है, मोहम्मद साहब को अपने इस कार्य में अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हुई। इसके विपरीत उनको अपने पैतृक स्थान मक्का से भागकर मदीना जाना पड़ा था। वहाँ जाकर उन्होंने अपनी स्थिति पर विचार किया और फिर अपने सैनिकों को अधिक प्रोत्साहन देने के लिए उनको अपने प्रकार की सुविधाएँ देने का आश्वासन दिया। उसका पारिणाम यह हुआ कि उनके सैनिक अधिक उत्साह से जन साधारण पर बल प्रयोग करने लगे।

मोहम्हद ने, जो अब हजरत मोहम्मद कहे जाने लगे थे, अपनेसैनिकों को आदेश दिया कि जिस किसी नगर, कबीला आदि के लोग उसको पैगम्बर रूप में स्वीकार नहीं करते; वे उन पर आक्रमण कर दें। उनको यह अधिकार दिया गया कि वे उस स्थान से धन सम्पत्ति, मकान खेमे, आभूषण अथवा औरतें, जो कुछ भी देखें अपने अधिकार में कर लें, उन्हें लूट लें, जिस प्रकार चाहें और जो चाहें वे सब अपने अधिकार में कर लें। उस लूट और अधिकार का पाँचवाँ भाग वे हजरत मोहम्मद को नजर कर शेष सब कुछ को परमात्मा की ओर से दिया गया समझकर उस पर अपना पूर्ण अधिकार समझें।

इस घोषणा से मोहम्मद साहब के सैनिकों के मन उछल पड़े। उनके लिए यह बहुत बड़ा आकर्षण था और मोहम्मद साहब के लिए यह बहुत बड़ी सफलता का कारण सिद्ध हुआ। मोहम्मद साहब की ओर से उनको किसी प्रकार का वेतन नहीं मिलता था। जो भी मोहम्मद को परमात्मा का पैगम्बर स्वीकार कर लेता उसको ही सेना में भरती होने का अवसर प्राप्त हो जाता था। अतः मदीना में बेकार घूमनेवाले सभी मोहम्मद के सेवक बन गए और फिर झुण्ड-के-झुण्ड बनाकर आसपास के नगरों, कबीलों, गाँवों और घरों पर आक्रमण करने लगे। धन सम्पत्ति और महिलाओं को लूटने का ऐसा आकर्षण था कि वे बेकार लोग प्राण प्रण से आक्रमण करते और जितना अधिक से-अधिक लूट मचा सकते थे, अत्याचार कर सकते थे, वह सब करते। इस आक्रमण और लूट में उनको जो कुछ भी प्राप्त होता था उसका पाँचवाँ भाग वे मोहम्मद को नजर कर देते और शेष भाग के स्वयं स्वामी बनकर उसका उपभोग करते।

इस प्रकार मोहम्मद साहब का राज्य-वृद्धि करने लगा। जो भी क्षेत्र मोहम्मद के अधीन हो जाता उसके निवासियों को न केवल मोहम्मद को अपना शासक स्वीकार करना पड़ता था, अपितु उनको मोहम्मद के मजहबी विचारों को भी मानना पड़ता था। उन विचारों में जो मुख्य बात थी वह यह कि ‘मोहम्मद रसूले इलाही है’ अर्थात् मोहम्मद इस संसार में परमात्मा के पैगम्बर के रूप में प्रकट हुआ है। मोहम्मद के ऐसे कृत्यों के आधार पर ही प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक ‘गिब्बन’ ने लिखा है-इस्लाम एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुरान लेकर विस्तार पा रहा है।’

इस आक्रमण और विचार-प्रसार का यह परिणाम हुआ कि मोहम्मद साहब का राज्य ही स्थापित हो गया था। मोहम्मद की दृष्टि में अपना राज्य और अपना दीन मजहब दोनों एक ही बात थे। मिस्र देश में एक लेखक हुए हैं-प्रो. इनान। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘दि डिसाइसिव मोमेंट्स इन दि हिस्ट्री ऑफ इस्लाम’1 में लिखा है कि जब मोहम्मद साहब का राज्य स्थापित हो गया तो उन्होंने अपने आसपास के राज्यों को लिखा कि वे उसके राज्य से सम्बन्ध स्थापित कर लें। किन्तु उसमें उन्होंने यह शर्त भी रख दी थी कि वे ‘दीने-इस्लाम’ को भी स्वीकार करें। यदि वे मोहम्मद को परमात्मा का दूत स्वीकार करें तो यह मान लिया जाएगा कि उस राज्य की मोहम्मद के राज्य से मित्रता है। अन्यथा उस राज्य को शत्रु राज्य माना जाएगा।इससे स्पष्ट लक्षित होता है कि मोहम्मद अपने जीवनकाल में स्वयं ही राज्य और मजहब को एक ही बात मानता था। प्रो. इनान ने यह तो नहीं लिखा कि मोहम्मद साहब की मित्रता के इस निमन्त्रण को उसके समीपवर्ती किस-किस राज्य ने स्वीकार कर लिया और किस-किस ने इसको अस्वीकार किया। किन्तु उसने यह अवश्य लिखा है कि अपने किस-किस पड़ोसी देश को हजरत मोहम्मद ने इस प्रकार का मैत्री सन्देश अथवा निमन्त्रण भेजा था। मोहम्मद के देहान्त के उपरान्त उसके राज्य के प्रबन्धकर्ता को ‘खलीफा’ की उपाधि दी गई और उसका यह कर्त्तव्य माना गया कि वह मोहम्मद साहब के पद चिन्हों पर चलकर उनके राज्य पर शासन करे और उसकी वृद्धि भी करे।

इस प्रकार खलीफाओं का शासन चलने लगा। कुछ कालोपरान्त, जब तीसरे खलीफा के शासनकाल में इराक में इस्लामी राज्य स्थापित हुआ तो खलीफा ने अरब के रेतीले प्रदेश को छोड़ दिया और इराक की राजधानी बगदाद को ही अपनी राजधानी घोषित कर दिया। खलीफा हारूँ रशीद के शासनकाल में उसके राज्य सिपहसालार मोहम्मद- बिन-कासिम ने भारत के सिन्ध प्रदेश पर आक्रमण किया। भारत पर यह उसका प्रथम सफल आक्रमण सिद्ध हुआ। यद्यपि इससे पूर्व भी भारत को धन-धान्य से सम्पन्न देश मानकर इस्लामी आक्रमण का असफल प्रयास हुआ था।

live aaryaavart dot com

अशोक "प्रवृद्ध"
गुमला
झारखण्ड 

हरियाणा के पत्रकारों की मांग पर जल्द विचार करेंगे सीएम खट्टर

$
0
0
khattar-will-see-journalist-issues
चड़ीगढ़। हरियाणा यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स का एक प्रतिनिधिमंडल प्रदेश अध्यक्ष संजय राठी के नेतृत्व में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मिला। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को प्रदेश के पत्रकारों के शोषण तथा उनकी मांगों से अवगत करवाया। मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया कि पत्रकारों की मांगों पर जल्द ही कार्यवाही की जायेगी।प्रदेश अध्यक्ष संजय राठी ने मुख्यमंत्री को बताया कि मीडियाकर्मियों की कुल संख्या का लगभग 20 प्रतिशत ही मान्यता प्राप्त हैं, जिसके चलते अधिकांश मीडियाकर्मियों को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं एवं नीतियों का लाभ नहीं मिल पाता। अत: नियमों में बदलाव कर पूर्णकालिक मीडियाकर्मियों की एक नयी श्रेणी बनाई जाये, जिसके तहतकर उन्हें योजनाओं के लाभ के लिये पात्रता प्रदान की जाये। इसके अलावा मीडियाकर्मियों तथा उनके परिजनों के लिये सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर निःशुल्क स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जाए ताकि बीमारी की स्थिति में उचित इलाज सम्भव हो सके। निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं बेहद महंगी हैं, जिसका खर्च उठाने में अधिकांश मीडियाकर्मी सक्षम नहीं हैं।

संजय राठी ने मुख्यमंत्री को बताया कि मीडियाकर्मी दिन-रात चुनौतियों के बावजूद अपने दायित्व का निर्वहन कर समाचारों के संकलन करते हैं। कई बार दुर्घटनाओं के चलते उनकी मृत्यु तक हो जाती है। जिससे उनके परिवारों के सामने भरण-पोषण का भारी संकट पैदा हो जाता है, संस्थान उनकी भविष्य निधि, ग्रेच्यूटी तथा बीमा आदि नहीं करवाते। न ही उनके परिजनों के लिये पेन्शन आदि की सुविधाएं मिल पाती हैं। अत: सरकार की ओर से मीडियाकर्मियों के लिये दस-दस लाख रूपये का सामूहिक दुर्घटना बीमा करवाया जाये। हरियाणा सरकार द्वारा 50 लाख रूपये की राशि से जरूरतमंद मीडियाकर्मियों की सहायता के लिये कोष स्थापित किया गया है। इसकी राशि में वृद्धि कर इसे 5 करोड़ रूपये किया जाये।

प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि प्रदेश में स्वस्थ पत्रकारिता के विकास के लिये मीडियाकर्मियों के कौशल तथा ज्ञान को बढ़ाने के लिये एक स्वतन्त्र आयोग के गठन की आवश्यकता है, जहां मीडियाकर्मी अपनी शिकायतें तथा समस्याएं भेज सकें । इसके अलावा समाज के अन्य वर्ग भी मीडियाकर्मियों की शिकायतें आयोग से कर सकें। मीडियाकर्मियों पर निरन्तर बढ़ रहे हमलों के मद्देनजर मीडिया प्रोटेक्शन एक्ट बनाया जाए। जिस प्रकार सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी में बाधा डालने पर कानूनी कार्यवाही की जाती है, उसी तर्ज पर मीडियाकर्मियों के कार्य में बाधा डालने, धमकी देने तथा मारपीट करने आदि की घटनाओं को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा जाये।

उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा मीडियाकर्मियों के लिये पांच हजार रूपये मासिक पैन्शन दिये जाने का प्रावधान है। लेकिन सरकार के जटिल नियमों के कारण मीडियाकर्मियों को इस योजना का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। अत: सरकार पैन्शन सम्बन्धित नियमों का सरलीकरण करे ताकि इस योजना के तहत अधिकांश मीडियाकर्मियों को लाभ मिल सके। इसके अलावा पेन्शन राशि को बढ़ाकर दस हजार रूपये किया जाए।

संजय राठी ने मांग की कि प्रदेश में मान्यता प्रदाय समिति का पुनर्गठन किया जाए तथा किसी वरिष्ठ पत्रकार को इसका अध्यक्ष व उपाध्यक्ष बनाया जाए। सचिव का दायित्व किसी प्रशासनिक अधिकारी को सौंपा जा सकता है। इस कमेटी की नियमित बैठकें प्रति तीन माह के अन्तराल में प्रदेश के विभिन्न जिला मुख्यालयों पर आयोजित की जायें। इसके अलावा प्रदेश में टोल बैरियरों पर मीडियाकर्मियों के वाहनों को निशुल्क आवागमन की सुविधा प्रदान की जाये। इससे मीडियाकर्मियों को काफी राहत मिल सकेगी।

प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि मीडियाकर्मियों के लिये मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को अविलम्ब लागू करवाया जाये। अधिकांश मीडिया समूहों के प्रबन्धक श्रम नियमों की अवहेलना कर अपने कर्मचारियों का शोषण करते हैं। श्रम नियमों की कडाई से अनुपालना सुनिश्चित की जाये ताकि पत्रकारिता के स्तर के गुणात्मक सुधार सम्भव हो सके।

संजय राठी ने जोर देकर कहा कि हरियाणा प्रदेश से प्रकाशित होने वाले स्थानीय समाचार पत्रों के लिये विशेष विज्ञापन नीति बनाकर उन्हें प्रोत्साहन एवं संरक्षण प्रदान किया जाये। इसके अलावा प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण मीडिया सेन्टर स्थापित किये जायें, ताकि मीडियाकर्मियों को आधुनिक सुविधाओं का लाभ समाचार संकलन और प्रेषण के लिये मिल सके।

हरियाणा में सरकार की ओर से हाऊसिंग बोर्ड के मकानों में डेढ़ प्रतिशत मकान मीडियाकर्मियों के लिये आरक्षित हैं। इन्हें बढ़ाकर पांच प्रतिशत किया जाये ताकि मीडियाकर्मियों की सस्ती एवं सुलभ आवासीय सुविधाएं उपलब्ध हो सकें। अभी तक मीडियाकर्मियों को आवास बोर्ड के मकानों में आरक्षण मात्र घोषणा तक ही सीमित है। हरियाणा में हुड्डा विभाग द्वारा विकसित सेक्टरों में वकीलों के पांच प्रतिशत प्लाट आरक्षित हैं। इसी तर्ज पर मीडियाकर्मियों को भी पांच प्रतिशत प्लाट आरक्षित किये जायें, ताकि मीडियाकर्मियों को सस्ती तथा सुलभ आवास सुविधाएं मिल सकें। हरियाणा में प्रत्येक जिला मुख्यालय पर मीडियाकर्मियों की ग्रुप हाऊसिंग सोसायटीज को दो एकड़ के भूखण्ड पर नियमों में राहत लाइसेन्स प्रदान किये जायें, ताकि मीडियाकर्मियों को सस्ते और सुलभ आवास उपलब्ध करवाये जा सकें। हरियाणा में पत्रकारिता के शिक्षण, प्रशिक्षण, विकास एवं शोध के लिये पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना की आवश्यकता है। अत: किसी उचित स्थान पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना की जाये।इस प्रतिनिधिमंडल में मुख्यमंत्री के ओ.एस.डी. मीडिया अमित आर्य, राजकुमार भारद्वाज, एचयूजे के कार्यकारी अध्यक्ष संदीप मलिक, संजय राय, सुरेन्द्र दुआ, अजय भाटिया, गुरमीत सग्गू, वेद अदलखा आदि मुख्य रूप से शामिल थे।

झाबुआ (मध्यप्रदेश) की खबर (17 मई)

$
0
0
डीजल पेट्रोल के भावों मे बढोत्तरी का कांग्रेस ने किया विरोध 

jhabua map
झाबुआ---प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  की कथनी एवं करनी अब लोगों के सामने आने लगी है । अच्छे दिन आने का प्रलोभन देकर सत्ता में आने वाली भाजपा ने सरकार बनते ही आम जनता के लिये एक के बाद एक परेषानिया खडी करने का काम किया है । महंगाई को नियंत्रण करने में यह सरकार पूरी तरह नाकाम रही है । एक तरफ  गरीबों की थाली का भोजन उनसे दूर होता जारहा है वही दूसरी और उद्योग पतियों एवं धनाड्यो को करोडों का लाभ देने की सरकारी नीतियां लागू की जारही है । मोदी सरकार के एक साल में कई बार मूल्य वृद्धि की गई तथा षिवराजसिंह मुख्यमंत्री द्वारा वेट टेक्स के नाम पर आम उपभोक्ताओं की जेब पर डाका डालने का काम किया गया है । आज मूल्य वृद्धि दिन ब दिन सूरसरा के मुंह की तरह बढ रही है । गरीब वर्ग एवं किसान सरकार की इन नीतियों के चलते उनका जीना दुभर हो गया है । एक पखवाडे में ही  दूसरी बार डीजल एवं पेट्रोल में 2-2 बार बढोत्तरी करके देष में महंगाई को सांतवे आसमान पर पहूंचा दिया है ।  अभी तक झाबुआ में पेट्रोल पंपों पर  डीजल 56.99 पैसे तथा पेट्रोल 69.98 पैसे लीटर की दर पर मिलता था वह बढ कर क्रमषः 60.05 रू. एवं 73.40 पैसे हो गया है । प्रदेष के मुख्यमंत्री भी गरीबों एवं आम जनों को वेट टेक्स कम करने की बजाय बढाने में लगे हुए है तथा अपना खजाना भरने में भीडे हुए है । उक्त आरोप जिला कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल मेहता, जिला पंचायत अध्यक्ष कलावती भूरिया, युवानेता डा. विक्रांत भूरिया, जिला महामंत्री जितेन्द्रप्रसाद अग्निहौत्री, हेमचंद डामोर,षंकरसिंह भूरिया,राजेष भटृ एवं प्रवक्ता हर्षभटृ एवं आचार्य नामदेव ने संयुक्त रूप से लगाते हुए केन्द्र सरकार की गरीब एवं किसान विरोधी नीति का विरोध करते हुए कहा कि लोगों को हमेषा भ्रमित करने वाली मोदी सरकार के राज में जनता के अच्छे दिन कब आवेगें ? कांग्रेस नेताओं ने कहा कि डील-पेट्रोल के भाव बढने से परिवहन मंहगा होने के कारण साग सब्जियों के भाव आसमान पर पहूंच गये है तथा लोगों को  जीना दुर्भर हो गया है । जिला कांग्रेस ने केन्द्र सरकार की जन विरोधी नीतियों के कारण आज हर वर्ग परेषान है । तथा पूरा देष अब उपरवाले के ही भरोसे चल रहा है । कांग्रेस ने चेतावनी देते हुए कहा कि महंगाई पर तत्काल अंकुष नही लगाया गया तो जिला कांग्रेस जंगी आन्दोलन कर जनता की अदालत में जाकर विरोध दर्ज कराने में पीछे नही रहंगी।

22 हजार की अवैध शराब जप्त आरोपी गिरफ्तार 
    
झाबुआ---थाना रानापुर के द्वारा आरोपी शम्भु पिता दलसिंह मचार उम्र 35 वर्ष निवासी काकरदरा के कब्जे से 48 बीयर ब्लैक फोर्ट कंपनी की शराब कीमती 4800/-रू0 व 3 पेटी आईबी कंपनी की शराब कीमती 17280/-रू0, कुल कीमत 22080 रू0 की जप्त की गयी। थाना रानापुर में अपराध क्रमांक 231/2015, धारा 34-ए आबकारी एक्ट का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

मर्ग का प्रकरण कायम 
  
फरियादी प्रदीप पिता मेसू भूरिया, उम्र 24 वर्ष तैनात झाबुआ चिकित्सालय ने बताया कि मृतक पासुबाई पति राहुल गामड, उम्र 24 वर्ष निवासी खेडी थाना कल्याणपुरा की एक्सीडेंट में आयी चोंटों के कारण ईलाज के दौरान मृत्यु हो गयी। प्र्रकरण में थाना थांदला में मर्ग क्रमांक 28/15, धारा 174 जाफौ का कायम कर विवेचना में लिया गया।

दुकान के समाने खडे ट्रक की हुई चोरी 

झाबुआ--- फरियादी मनीष पिता गिरधारी उम्र 38 वर्ष निवासी पेटलावद ने बताया कि उसने अपने ट्रक क्र0 एमपी-11-9911 को दुकान के सामने खडा किया था। अज्ञात बदमाश चुराकर ले गये। प्र्रकरण में थाना पेटलावद में अपराध क्रमांक 185/15, धारा 379 भादवि का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

अप्राकृतिक कृत्य का अपराध पंजीबद्ध
         
झाबुआ---फरियादिया ने बताया कि आरोपी अर्जुन पिता माधु डामोर, विशाल पिता खुमसिंह निवासीगण चैखवाडा अन्य 02 ने उसके पोता को घर के अंदर ले जाकर जबरन पकडकर खोटा काम किया। भील पंचायत में समझौता नही होने पर कायमी की गयी। प्र्रकरण में थाना काकनवानी में अपराध क्रमांक 96/15, धारा 377-घ, 213,34 भादवि एवं 3/4 लै.अप.बा.संर.अधि. का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

पशुवध का अपराध पंजीबद्ध 
         
झाबुआ---फरियादी जामिया पिता धारिया सिंगाड़ उम्र 35 वर्ष निवासी देवल ने बताया कि आरोपी राजु पिता मगन हरिजन निवासी अंधारवड एवं अन्य 02 ने एक गाय को कु्ररता पूर्वक मारकर हत्या कर लोहे के हथियार से काट रहे थे। गांव वाले किशान सिंगाड को पकड लिया व अन्य भाग गये। प्र्रकरण में थाना रानापुर में अपराध क्रमांक 230/15, धारा 429 भादवि एवं 4/9 गौ वंश प्रति0 अधि0 का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

वाहन दुर्घटना में गंभीर चोट लगने से मोत
        
झाबुआ--- फरियादी रामा पिता भावजी मैडा उम्र 45 वर्ष निवासी आमलीफलिया ने बताया कि वाहन क्रमांक एमपी 45 डी 0477 का चालक अपने वाहन को तेज गति व लापरवाही पूर्वक चलाकर लाया व मुकेश की मो0सा0 को टक्कर मार दी, जिससे गंभीर चोंट आने से मुकेश की मृत्यु हो गयी। प्र्रकरण में थाना कोतवाली झाबुआ में अपराध क्रमांक 343/15, धारा 304-ए, 279,337 भादवि का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

भारत के प्रति दुनिया का नजरिया बदला : मोदी

$
0
0

world-change-their-mindset-for-india
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले एक साल में भारत के प्रति दुनिया का नजरिया बदला है। प्रधानमंत्री मोदी ने सियोल में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा, "पिछले एक साल में भारत के प्रति दुनिया का नजरिया बदला है। मोदी के संबोधन के दौरान लोग मोदी, मोदी के नारे लगा रहे थे।

उन्होंने ट्वीट कर कहा, "आज लोग भारत आने के लिए उत्सुक हैं। यही वह रुझान है, जिसमें बदलाव आया है। आखिरकार, लोगों से ही राष्ट्र बनता है। भारत को दुनिया की सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है।"मोदी अपने तीन देशों के दौरे के अंतिम पड़ाव के तहत सोमवार सुबह ही दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल पहुंचे हैं। इससे पहले मोदी ने चीन और मंगोलिया की यात्रा की थी।

बलात्कार के 42 साल बाद नर्स अरुणा की मौत !!

$
0
0

nurse-aruna-death-after-42-year-of rape
किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्पताल में ज्यादती के बाद 42 साल तक कोमा में रहीं नर्स अरुणा शानबाग की सोमवार को मौत हो गई। अरुणा के निधन की जानकारी केईएम के डीन अविनाश सुपे ने दी। उन्होंने बताया कि अरुणा का अंतिम संस्कार सोमवार को दिन में होना है। इसके लिए पुलिस से इजाजत ली जा रही है व अन्य औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं। सुपे ने जनता से अरुणा के परिचितों या किसी भी जानने वाले तक पहुंचने में मदद करने की अपील की है, ताकि वे लोग तुरंत अस्पताल से संपर्क कर सकें।

उल्लेखनीय है कि केईएम अस्पताल में जूनियर नर्स का काम करने वाली अरुणा शानबाग 27 नवंबर, 1973 को ड्यूटी पर आई थी। वहीं काम करने वाले एक संविदा सफाईकर्मी सोहनलाल बी. वाल्मीकि ने अरुणा को अकेले पाकर बदनीयत से उन पर हमला किया। उन्हें जंजीरों से बांधकर उनके साथ दुष्कर्म किया। 

यही नहीं, जंजीर से उनका गला घोंटने की कोशिश भी की, जिससे उनके मस्तिष्क तक ऑक्सीजन की आपूर्ति रुक गई। नतीजतन, अरुणा की मस्तिष्क नलिका (ब्रेन स्टेम) चोटिल हो गई। उनकी ग्रीवा रज्जू (सर्विकल कॉर्ड) में भी गंभीर चोटें आईं थीं। वह उसी दिन से कोमा में थीं।

भारत ने चीन को जीडीपी के मामले में पछाड़ा : जयंत सिन्हा

$
0
0

india-beat-chaina-in-gdp-said-jayant-sinha
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने सोमवार को यहां कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में भारत ने पहली बार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया है। बिहार के दरभंगा रवाना होने से पहले सिन्हा ने यहां संवाददाताओं से बातचीत में कहा, "भारत ने पहली बार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया है। आने वाले समय में भारत आर्थिक विकास के मामले में भी चीन से आगे निकल जाएगा।"

उन्होंने कहा कि देश के विकास के लिए सभी का सहयोग चाहिए। उन्होंने कहा कि आगामी मानसून सत्र में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को पारित करा लिया जाएगा तथा अप्रैल 2016 से इसे पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा। झारखंड में हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से सांसद सिन्हा ने दावा किया कि केन्द्र सरकार ने महंगाई को भी काबू में लाया है।

सिन्हा दरभंगा में भूकंप प्रभावित इलाकों का दौरा कर वहां चल रहे राहत कार्यो का निरीक्षण करेंगे तथा प्राकृतिक आपदा से प्रभावित लोगों से मिलेंगे और स्थिति की रपट केन्द्र सरकार को सौंपेंगे। उन्होंने अगले विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में भाजपा की सरकार बनने का दावा किया और कहा कि जिस राज्य में भाजपा की सरकार बनी है, वहां विकास की गति तेज हुई है। उन्होंने कहा कि झारखंड में स्थिति सुधरी है। विकास योजनाओं पर काम तेजी से हो रहा है।

सरकार को बदला लेना है तो उनसे लें, वह किसानों को क्यों प्रताड़ित कर रहे हैं : राहुल

$
0
0

why-government-tourturing-farmers-rahul-blame-modi
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के दौरे की शुरुआत बेहद आक्रामक तरीके से की। उनके निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहे। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को बदला लेना है तो उनसे लें, वह किसानों को क्यों प्रताड़ित कर रहे हैं? राहुल ने आरोप लगाया कि अमेठी में बनने वाला फूड पार्क मोदी ने ही किसानों से छीना है। राहुल लखनऊ से सड़क मार्ग से हैदरगढ़ और सुल्तानपुर के जगदीशपुर होते हुए अमेठी पहुंचे। इसी बीच हैदरगढ़ में उनका जोरदार स्वागत किया गया, जहां उन्होंने कहा कि हम तो अमेठी के विकास का काम वर्षो से कर रहे हैं। कहीं न कहीं लोग अडं़गा जरूर लगाते रहते हैं। हमने अमेठी के लिए मेगा फूड पार्क दिया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजरें टेढ़ी हो गईं। उन्होंने मेगा फूड पार्क अमेठी से छीन लिया।

जगदीशपुर में राहुल ने कहा, "मैंने मेगा फूड पार्क दिया, जिसे केंद्र में बैठी पूंजीपतियों की सरकार ने छीन लिया। इसके निर्माण से अमेठी के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों को भी काफी लाभ मिलता। भाजपा प्रतिशोध की राजनीति कर रही है।"राहुल ने कहा, "मोदी विदेश जाते हैं, लेकिन किसान के घर नहीं जाते। उन्होंने कहा कि यदि केंद्र की मौजूदा सरकार संसद के दोनों सदनों से भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित करा लेती है, तब भी इसके खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा।"इसके बाद वह मेगा फूड पार्क के शिलान्यास स्थल की ओर रवाना हो गए।  उल्लेखनीय है कि तीन दिवसीय दौरे के तहत राहुल गांधी सोमवार को अमेठी पहुंचे हैं। 

नरकटियागंज (बिहार) की खबर (18 मई)

$
0
0
मदरसा बोर्ड की फौंकानिया परीक्षा 2015 में लडकियांे की संख्या बढ़ी 

bihar map
नरकटियागंज(पश्चिम चम्पारण) नरकटियागंज में बिहार स्टेट मदरसा बोर्ड पटना ने फौंकानिया इम्तेहान 2015 के लिए नरकटियागंज उच्च विद्यालय में परीक्षा केन्द्र बनाया है। इस परी़क्षा में कुल 1049 परीक्षार्थी शामील हो रहे है। जिनमें 673 लड़कियाँ और 376 लड़के शामिल है। उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त परीक्षा बुधवार 20 मई 2015 से प्रारंभ होगी। जिसमें रामनगर, गौनाहा, मैनाटांड,सिकटा, लौरिया और नरकटियागंज प्रखण्ड के डैनमरवा, बखरी, दिउलिया, बसवरिया, भतौड़ा, गोईठही, धूमनगर, सितवापुर, पोखरिया, पिपरा, भेडि़हरवा, मेघवल-मठिया, अहरार पिपरा, गढबहुअरी, और पररसौना के विभिन्न मदरसा के परीक्षार्थी शामिल होंगें।

सुन चम्पा सुन तारा, विधान सभा चुनाव को लेकर चढा राजनीति का पारा

नरकटियागंज(पश्चिम चम्पारण) बिहार में नवम्बर पूर्व चुनाव होंगे की घोषणा से राजनीति का पारा भूकम्प के शोर शराबे के बीच चढने लगा है। विभिन्न दल के लोग अपनी डफली अपना राग अलापने लगे है। इसी बीच एक नई खबर यह कि भारतीय जनता पार्टी का दिल्ली से यह ऐलान कि सबका पासा देख पार्टी देगी टिकट पर कई नेता टिकट की कयास लगाने लगे है। वैसे नरकटियागंज में पहली बार एक पार्टी अपना प्रत्याशी खडा करेगी। जिससे भाजपा गठबंधन व बिहार के संयुक्त समाजवादी गठबंधन को झटका लग सकता है। ऐसा चेहरा लोगों के सामने होगा जो सभी अवाक रह जाएंगे। इसके अलावे भाजपा, कांग्रेस, जद यू, राजद, बसपा, माले व जदरा अपने प्रत्याशी खड़ा करेंगी। सभी दल अपने अपने प्रत्याशियों के लिए कमर कसे हुए है। वर्तमान मंे भाजपा की विधायक रश्मि वर्मा है, जो अपने अल्प समय में तीव्र गति से कार्य करने के लिए जानी जाती है। अब देखना यह है कि भारतीय जनता पार्टी आगामी चुनाव में कौन सी रणनीति तैयार करती हैं। सŸााधारी गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाता में है जहाँ टिकट के लिए सबसे ज्यादा मारा मारी है, एक ही राजनीति घराने के कई दावेदार टिकट पाने वालों की कतार में दिख रहे हैं। अब देखना यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस किसे अपना उम्मीद्वार बनाती है। पार्टी के किसी पुराने कार्यकर्ता को टिकट देती है अथवा पूर्व की भाँति किसी पैरासूट से उतरे नेता को टिकट देती हैं।

द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली जनजातीय महिला राज्यपाल

$
0
0

dropdi-murmu-jharkhand-new-governor
झारखंड में द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को राज्य के नौवें राज्यपाल के रूप में पद व गोपनीयता की शपथ ली। वह राज्य में इस पद पर आसीन होने वाली पहली जनजातीय महिला हैं। मुर्मू को राजभवन में झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। उन्होंने पूर्व राज्यपाल सैयद अहमद की जगह ली है, जिन्हें मणिपुर का राज्यपाल बनाया गया है। शपथ-ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री रघुबर दास और अन्य लोग उपस्थित थे।

मुर्मू का जन्म 20 जून, 1958 को हुआ था। वह सबसे पहले वर्ष 2000 में ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर निर्वाचित हुई थीं। वह ओडिशा से दो बार विधायक रह चुकी हैं। मुर्मू ने 1979 में भुवनेश्वर के आर.बी. वीमेन्स कॉलेज से स्नातक किया। उन्होंने राजनीति में आने से पहले कुछ वर्षो तक राज्य सचिवालय में बतौर क्लर्क भी काम किया। वह 1996-1998 में रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद की उपाध्यक्ष भी रहीं। उन्हें मई 2013 में भाजपा की मयूरभंज जिला इकाई की अध्यक्ष मनोनीत किया गया।

मदर टेरेसा अगले साल संत घोषित होंगी

$
0
0

mother-teressa-will-be-sant-next-year
विश्व विख्यात समाज सेविका मदर टेरेसा (दिवंगत) को सितंबर, 2016 में संत घोषित किया जाएगा। सायरो मालाबार चर्च के प्रवक्ता और वरिष्ठ पादरी पॉल थेलेकट ने सोमवार को यह जानकारी दी। पोप जॉन पॉल द्वितीय ने अक्टूबर 2003 में मदर टेरेसा को 'धन्य'घोषित किया था। थेलेकट ने बताया, "एक ईसाई होने के नाते मैं मदर टेरेसा को संत घोषित किए जाने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं। वह लाखों भारतीयों, खासकर गरीबों और बेसहारा लोगों की मां थीं।"

उन्होंने आगे कहा, "ईसाई लोग और मदर टेरेसा के अनुयायी मानवता के लिए शुरू किए गए उनके कार्यो को जारी रखेंगे। अफसोस की बात है कि कट्टरपंथी हिंदू टेरेसा को नहीं समझ पाए। अगर मान लिया जाए कि ईसाई मिशनरी धर्म परिवर्तन कराती है, तो यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वह मानवता सिखाती है, जिसकी भारत को सख्त जरूरत है।"

अल्बेनिया में जन्मीं टेरेसा समाजसेवा के लिए नन बनी थीं। वह भारत आईं और उन्हें 1948 में भारतीय नागरिकता दी गई। उन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की और अपनी पूरी जिंदगी गरीब व बेसहारा लोगों, खासकर कुष्ठ रोगियों की सेवा में लगा दी। मदर टेरेसा का जन्म 5 सितंबर 1997 को कोलकाता में हो गया था।

केजरीवाल व जंग के बीच टकराव चरम पर

$
0
0

kejriwal-jung-fight-on-peack
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तथा उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच जारी टकराव चरम पर पहुंच गया है। दोनों के बीच तल्खी ने उस समय और विकराल रूप ले लिया, जब सरकार ने अनिंदो मजूमदार की जगह नौकरशाह राजेंद्र कुमार को प्रधान सचिव (सेवा) नियुक्त कर दिया। इससे पहले, मजूमदार को दिल्ली सचिवालय के कार्यालय में घुसने पर रोक लगा दी गई थी। उन्होंने शकुंतला गामलिन के कार्यवाहक मुख्य सचिव के पद पर नियुक्ति के लिए आदेश जारी किया था। 

दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने कहा, "राजेंद्र कुमार को दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (सेवा) का कार्यभार सौंपा गया है।"इस पर दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि उन्हें उप राज्यपाल का पत्र मिला है। सिसोदिया ने ट्वीट किया, "माननीय एलजी का पत्र 2.35 बजे मिला।"पत्र के मजमून का हालांकि खुलासा नहीं किया गया।  यह टकराव 15 मई को उस वक्त सामने आया, जब गामलिन की नियुक्ति कार्यवाहक मुख्य सचिव के पद पर की गई। मुख्यमंत्री ने उनपर बिजली वितरण कंपनियों के लिए लॉबिंग करने का आरोप लगाया है।
Viewing all 74338 articles
Browse latest View live




Latest Images