Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all 74336 articles
Browse latest View live

बिहार : अपने प्रभारी को चालक सिपाही ‘चाभी’सौपा

$
0
0
  • बिहार पुलिस संविदा चालक सिपाही संघ कारगिल चैक के बगल में आंदोलनरत
  • इकलौता मांग है कि सभी 399 को स्थायी करके वेतनमान निर्गत करें

bihar-police
पटना।कारगिल चैक के बगल में जमे हैं बिहार पुलिस चालक सिपाही। बिहार पुलिस संविदा चालक संघ के धनंजय कुमार कहते हैं कि पुलिस महानिदेशक का कार्यालय,बिहार पटना के विज्ञापन सं0- 01/2010 के अंतर्गत 610 पदों का विज्ञापन निकला।इसमें हजारों की संख्या में योग्य अभ्यर्थी परीक्षा और परीक्षण में शामिल हुए।इसमें केवल 399 अभ्यर्थी ही परीक्षण में उत्र्तीण हुए। अभी सभी सफल अभ्यर्थी सूबे के 38 जिले में कार्यरत हैं।अपने विभाग से छुट्टी लेकर बेमियादी धरना पर बैठे हैं।एक सूत्री हैं कि सभी को स्थायी करके वेतनमान निर्गत हो। 

प्रवीण कुमार का कहना है कि हमलोग विहित प्रपत्र में आवेदन दिए थे। न्यूनतम उम्र सीमा 18 वर्ष एवं अधिकतम 65 वर्ष तय की गयी। शैक्षणिक योग्यता 10वीं पास। पुलिस विभाग में चालक सिपाही के स्वीकृत पदों के विरूद्ध 610 रिक्तियाँ है जिनका रोस्टर गृह (आरक्षी) विभाग के पत्र सं0-4/ब02-10-04/2010 गृ0आ0-4184 दिनांक 20.05.2010 के द्वारा किया गया। अनुसूचित जाति- 98 पद,अनुसूचित जनजाति 06 पद, अत्यन्त पिछड़ा वर्ग 110 पद, पिछड़ा वर्ग 73 पद, पिछड़ा वर्ग महिला 18 पद एवं सामान्य वर्ग 305 पद। 

अनुबंध के आधार पर सिपाही चालकों को मात्र 11 माह के लिए नियुक्ति की गयी। 2010 से ही कार्यरत सिपाही चालकों से 12 माह कार्य लिया जाता है और मानदेय 11 माह का ही दिया जाता है। जो पटना शहरी क्षेत्र में कार्यरत हैं उनको 10,500 रू.एवं अन्य स्थानों पर कार्यरत को 9,900 रूपए प्रतिमाह पारिश्रमिक दिया जाता है। 5 साल के बाद भी सरकार के द्वारा मानदेय में फुट्टव्ल कौड़ी भी इजाफा नहीं की गयी है। बढ़ती मंहगाई से परेशान सिपाही चालक असंतुष्ट हैं।अपने न्यायोचित मांगों के समर्थन में 9 मार्च 2015 से चरणबद्ध आंदोलन कर रहे हैं।जब प्रतिनिधियों ने 21 मार्च 2015 को सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात किए तो उनका कहना है कि पूर्व में अपनाई गई प्रक्रिया के बाद दोबारा कोई जांच/परीक्षा नहीं ली जाएगी। रिक्ति के विरूद्ध में प्राथमिकता के आधार पर नियुक्ति ली जाएगी। तीन माह बीत जाने के बाद सिपाही चालकों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। 

गृह (आरक्षी) विभाग के अवर सचिव कृष्ण मुरारी प्रसाद ने महालेखाकार ,बिहार, पटना को पत्र सं0-4/पी03-10-01-2013 गृ0आ0 के माध्यम से जानकारी दी है कि बिहार राज्य अन्तर्गत पुलिस बल के अधीन चालक संवर्ग में 52 प्रारक्ष पुलिस निरीक्षक (परिवहन) सूबेदार, 100 प्रारक्ष पुलिस अवर निरीक्षक (परिवहन)जमादार,469 चालक हवलदार एवं 2410 चालक सिपाही सहित कुल 3031 पदों के सृजन किया गया है। 

अजीत कुमार का कहना है कि 2410 चालक सिपाही पद के विरूद्ध में निकट भविष्य में 1602 पदों का विज्ञापन होने जा रहा है। इस विज्ञापन में शैक्षणिक योग्यता इंटरमीडिएट और उम्र 18 से 30 कर दी गयी है। इनको केवल 1 किलोमीटर की दौड़ में भाग लेना है। वर्ष 2010 में बहाल 399 चालक सिपाही को 5 अंक दिया जा रहा है। ऐसा करने से 80 प्रतिशत कार्यरत चालक सिपाही छट जाएंगे। 2010 में न्यूनतम उम्र सीमा 18 वर्ष एवं अधिकतम 65 वर्ष तय की गयी। शैक्षणिक योग्यता 10वीं पास थी। निलेश कुमार कहते हैं कि हमलोग शैक्षणिक योग्यता और उम्र ना होने के चलते अभ्यर्थी नहीं बन सकेंगे। दुर्भाग्य है कि तब हमलोग आजीवन अनुबंध पर ही कार्य करते रह जाएंगे।सीएम नीतीश कुमार से आग्रह कर रहे हैं कि हमलोगों की इकलौता मांग है कि सभी 399 को स्थायी करके नियमित वेतनमान निर्गत करें।

बिहार : सैप के जवानों को ‘शहीद’का दर्जा नहीं

$
0
0
  • अपाहिजों को तत्काल प्रभाव से अनुबंध रद्द करने की प्रक्रिया समाप्त हो
  • सरकार नौ सूत्री मांग को पूर्ण करने की पहल करें

sap-force-not-martyred-in-bihar
पटना।बिहार में नक्सलियों से आमने-सामने होने से 261 सैप जवान मारे जा चुके हैं।सरकार के द्वारा प्रत्येक मृतकों के परिजनांे को बतौर मुआवजा 19 लाख रूपए दिए जाते हैं। इस दौरान 100 से अधिक सैप के जवान द्यायल हो गए। उनका तत्काल अनुबंध रद्द कर दिया जाता है। द्यायलों को राहत और मुआवजा के नाम पर ‘ठेंगा’ दिखा दिया जाता है।

सीएम नीतीश कुमान के कार्यकाल में 4 अप्रैल 2006 में 12 हजार सैप जवानों को बहाल किया गया। मानदेय के रूप में बतौर 10 हजार रू. दिए गए। इनके मानदेय में 4 साल के बाद 2 हजार रू. की वृद्धि 2010 में की गई। इसके 3 साल के बाद 3 हजार रू.की वृद्धि 2013 में की गई। संविदा के आधार पर 1 साल के लिए बहाल किया गया। इसके बाद 3 साल तक संविदा बढ़ाने पर हस्ताक्षर किए। 2014 से बिना संविदा पर हस्ताक्षर किए ही कार्यरत हैं। इस बीच मामूली आरोप लगाकर 5.5 हजार सैप जवानों को हटा दिया गया। अभी सिर्फ 6.5 हजार सैप कार्यशील हैं। इनको एसडीआरएफ,रेलवे मंत्रालय,उत्पाद विभाग और जेल में कार्य दिया जाता है।  

सैप जवानों को नक्सली क्षेत्र रोहतास,जमुई,बांका,गया,औरंगाबाद,भभुआ,मुंगेर आदि जिले में स्थापित किया जाता है। सैपर्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश महासचिव ठाकुर प्रमोद कुमार का कहना हैं कि हमलोग फौजी हैं। 35 से 45 साल की उम्र में अवकाश ग्रहण कर जाते हैं। इसके बाद सैप में बहाल कर लिए जाते हैं।हमलोग नक्सली क्षेत्र में कार्य करते हैं। सबसे पहले सैप के ही जवानों को मौर्चा पर भेज दिया जाता है। इसके बाद ही अन्य बटालियन आगे बढ़ते हैं। नक्सलियों के निशाने चढ़कर 261 सैप के जवान मारे गए। मृत सैप के जवानों को ‘शहीद’द्योषित नहीं किया जाता है। बतौर 19 लाख रू.का मुआवजा दिया जाता है। यहाँ पर मृतकों के परिजनों को अनुकम्पा के आधार पर प्रतिनियुक्त नहीं किया जाता है।सबसे दुखद पक्ष यह है कि मुठभेड़ में मौत को गला लगाने वाले सैप का रिवार्ड पुलिस वाले उठा लेते हैं। सरकार इन्हीं को महिमामंडित भी करती है। श्री कुमार ने कहा कि द्यायल सैप जवानों को तत्काल संविदा रद्द कर दिया जाता है। इसके साथ ही मानदेय बंद कर दिया जाता है। किसी तरह की सहायता नहीं दी जाती है। 

सैपर्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष धर्मदेव सिंह ने कहा कि हमलोग कारगिल चैक के बगल में महाधरना पर बैठे हैं। सैप के जवान 12 जून से बिहार सरकार के द्वारा निर्गत राईफल और गोली को अपने-अपने विभागों में जाकर जमा कर रहे हैं। 9 सूत्री मांग को लेकर हड़ताल जारी है। हमलोगों की मांग है कि हटाये गये सैप जवानों को पुनः नियुक्त किया जाए। मनमाने ढंग से दोषारोपन करके अनुबंध समाप्त करने की प्रक्रिया पर पूर्ण रूपेण रोक लगाई जाए। सैप के चुने हुए पदाधिकारियों को प्रोटेक्टडेड वर्क मैन द्योषित किया जाए। अनुबंध समाप्ति की प्रक्रिया में एसोसिएशन के पदाधिकारियों से विचार विमर्श किया जाए। मंहगाई के हिसाब से मानदेय में उचित बढ़ोतरी 32 हजार रू.कर दिया जाए। समान काम के लिए समान भत्ता दिया जाए। जीवन सुरक्षा पाॅलिसी लागू किया जाए। नौकरी की उम्र सीमा 60 साल किया जाए। आश्रितों को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी दी जाए। 

जितेंद्र तोमर की पुलिस हिरासत 2 दिन बढ़ी

$
0
0

tomar-remand-extend
राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने शनिवार को दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की पुलिस हिरासत अवधि दो दिनों के लिए बढ़ा दी। तोमर को दिल्ली पुलिस ने फर्जी डिग्री के मामले में गिरफ्तार किया था। अदालत में मामले की जांच कर रहे अधिकारियों ने कहा कि तोमर से जालसाजी कर दस्तावेज तैयार करने वाले गिरोह का पर्दाफाश करने के संबंध में पूछताछ करने की जरूरत है। इसके बाद न्यायालय ने उनकी पुलिस हिरासत की अवधि बढ़ा दी। 

महानगर दंडाधिकारी पूजा अग्रवाल ने दिल्ली पुलिस को तोमर से 15 जून तक पूछताछ करने की अनुमति दे दी। पुलिस ने आम आदमी पार्टी (आप) नेता तोमर को 11 दिनों की हिरासत में सौंपने की मांग की थी। दिल्ली पुलिस ने अदालत को बताया कि उसे जालसाजी कर दस्तावेज तैयार करने वाले लोगों का पता लगाने और इस साजिश का पर्दाफाश करने के लिए तोमर की हिरासत जरूरी है। पुलिस ने कहा कि तोमर के खिलाफ भ्रष्टाचार रोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है, क्योंकि संभव है कि फर्जी डिग्री तैयार करने के लिए उनकी सहायता करने में सरकारी अधिकारी भी शामिल हों।

पुलिस ने यह भी कहा कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जो जवाब मिला है उसे भी जालसाजी कर तैयार किया गया है। आरटीआई के उस जवाब में तोमर को क्लीन चिट दे दी गई थी। पुलिस इससे संबंधित दस्तावेज अदालत में पेश कर चुकी है। पुलिस ने अदालत को बताया कि जांच के दौरान यह प्रकाश में आया है कि तोमर ने कथित तौर पर चार महाविद्यालयों स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। दिल्ली पुलिस ने तोमर को मंगलवार को गिरफ्तार किया था और उनके खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश रचने का मामला दर्ज किया था।

पत्रकार की मौत के मामले में 5 पुलिसकर्मी निलंबित

$
0
0

policeman-suspanded-in-journalist-death
उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ फेसबुक पोस्ट लिखने के बाद शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिए जाने के मामले में पांच पुलिसकर्मी निलंबित कर दिए गए हैं। इसमें कोतवाल सहित पांच पुलिसकर्मी शामिल हैं। इस मामले में आरोपी बनाए गए उप्र के दुग्ध विकास मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है, लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। 

ज्ञात हो कि एक जून को एक मामले में दबिश के लिए पुलिस टीम पत्रकार के घर पहुंची थी। पत्रकार के परिवार वालों का कहना है कि मंत्री के इशारे पर पुलिसवालों ने उन्हें जिंदा जला दिया।  पुलिस टीम का कहना था कि उन्हें देखकर पत्रकार ने खुद को आग लगा ली। गंभीर रूप से झुलसे पत्रकार की 8 जून को अस्पताल में मौत हो गई। इस सिलसिले में मंत्री वर्मा और 9 अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। 

वहीं, पत्रकार की मौत पर सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने मंत्री का बचाव करते हुए शुक्रवार को कहा था कि सिर्फ एफआईआर दर्ज होने से कोई अपराधी नहीं हो जाता।

भोजन में छिपकली की खबर झूठी : एयर इंडिया

$
0
0

air-india-clearify-food-rumor
देश की सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया ने शनिवार को उन खबरों का खंडन किया, जिनमें कहा गया है कि नई दिल्ली से लंदन की एक उड़ान में सवार एक यात्री की भोजन की थाली में एक छिपकली पाई गई थी। विमानन कंपनी ने इसे छवि खराब करने वाली झूठी खबर बताया है। एयर इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "ऐसा कभी हुआ ही नहीं। इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, लंदन में, दिल्ली में या विमान में भी कोई शिकायत नहीं दर्ज कराई गई थी। चालक दल के किसी सदस्य या विमान में सवार किसी अन्य यात्री को इसके बारे में जानकारी नहीं है और कोई भी अभी तक इस मामले में शिकायत दर्ज कराने के लिए सामने नहीं आया है।"

अधिकारी ने कहा, "यह स्पष्ट तौर पर झूठी खबर है। यह सब ट्विटर पर एक चित्र आने के साथ शुरू हुआ। हम मामले की जांच कर रहे हैं कि यह चित्र किसने डाला और उस व्यक्ति का क्या दावा है।"विमानन कंपनी ने चेताया है कि यदि मामला वाकई में झूठा साबित हुआ, तो इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

अधिकारी ने कहा, "हमारा भोजन देश की सर्वश्रेष्ठ आतिथ्य श्रृंखला ताज द्वारा तैयार किया जाता है। द ताज स्टैट्स बढ़िया और पुरस्कार विजेता भोजन की आपूर्ति करता है। यह सब हमारी छवि खराब करने के लिए किया जा रहा है।"सूत्रों के अनुसार, यह मामला उस समय प्रकाश में आया, जब ट्विटर पर एक चित्र पोस्ट किया गया, जिसमें एक यात्री की भोजन की थाली में एक छोटी छिपकली दिख रही है। उसके बाद से यह चित्र वायरल हो गया है।

अन्य सूत्रों ने कहा कि घटना एआई-111 में घटी थी। इस बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमान ने गुरुवार को नई दिल्ली के आईजीआई हवाईअड्डे से लंदन के लिए उड़ान भरी थी।

विमानन कंपनी ने 10 घंटे की उड़ान के दौरान कई बार स्नक्स और दो बार भोजन परोसे थे। 

'बढ़ चला बिहार'अभियान के जरिए बनेगा विजन डॉक्यूमेंट

$
0
0

badh-chala-abhiyan-bihar
जनता दल (युनाइटेड ) के वरिष्ठ नेता और बिहार के सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री विजय कुमार चौधरी ने शनिवार को कहा कि 'बढ़ चला बिहार'अभियान को दलीय भावनाओं से नहीं देखा जाना चाहिए। यह अभियान वर्ष 2015 को ध्यान में रखकर विजन डॉक्यूमेंट तैयार करने के मकसद से चलाया गया है। पटना में आईएएनएस के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का मकसद यह जानने की है कि बीते 10 वर्षो के दौरान राज्य में जो विकास कार्य हुए हैं, उसके विषय में जनता क्या सोचती है और जनता आगे क्या चाहती है।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को 'बढ़ चला बिहार'अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान के तहत गांव-गांव जाकर सरकार के कामकाज के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया ली जाएगी तथा जनसंवाद का आयोजन कर बिहार के विकास के बारे में लोगों से राय ली जाएगी।  अभियान में आने वाले 10 वर्षो में बिहार के विकास के लिए लोगों से राय ली जाएगी और उसके आधार पर एक 'विजन डाक्यूमेंट'तैयार किया जाएगा। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस अभियान में सरकारी राशि का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है। 

मांझी के राजग में आते ही लालू-नीतीश की खुशी गायब : शाहनवाज

$
0
0
manjhi-take-nitish-happiness-said-sahnawaz
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने यहां शनिवार को कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल होते ही लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की खुशी गायब हो गई है। पटना में पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "कौन कहता है कि उनके पास कोई मंत्रालय नहीं है। उनके पास 'लालू-नीतीश हटाओ'मंत्रालय है। जब यह काम पूरा हो जाएगा, तब आगे की सोचेंगे।" 

कश्मीर में पाकिस्तानी और आतंकी झंडा लहराए जाने के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि जिस तरह दीया बुझने से पहले फड़फड़ाता है, वही हाल आतंकियों की हो गई है। यह बात पाकिस्तान को भी अब समझ लेनी चाहिए।  दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल की सरकार पहले भाजपा शासित दिल्ली नगर निगम का पैसा रुकवाती है और अब सफाई का नाटक कर रही है। 

योग के नाम पर 'ड्रामा'कर रही भाजपा : नीतीश

$
0
0

yoga-modi-drama-said-nitish
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार को कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) योग के नाम पर ड्रामा कर रही है, जिस कारण विवाद खड़ा हो गया। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अगर घर में ही नियमित योग करेंगे तो उनका स्वास्थ्य और मन दोनों अच्छा रहेगा। पटना में पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "योग दिखावा के लिए नहीं, बल्कि स्वयं अपनाने की चीज है। भारत में लोग वर्षो से योग करते आ रहे हैं, लेकिन कभी विवाद खड़ा नहीं हुआ।" 

उन्होंने कहा कि समाचारपत्रों से मालूम हुआ कि भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह योग दिवस के मौके पर योग करने पटना आ रहे हैं। मुख्यमंत्री ने शाह को नसीहत देते हुए कहा कि शाह अगर घर पर नियमित रूप से योग करेंगे तो उनका स्वास्थ्य और मन बढ़िया होगा। योग से आंतरिक परिवर्तन भी आएगा। 

नीतीश ने कहा, "एक तरफ योग की बात की जा रही है और दूसरी तरफ इसके विरुद्ध आचरण किया जा रहा है।"जम्मू एवं कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा बार-बार फहराए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए नीतीश ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि देश में '56 इंच का सीना वाले'सरकार चला रहे हैं, इसके बावजूद ऐसी घटनाएं देश के लिए चिंता का विषय है। 

राहुल ने सफाईकर्मियों से कहा, 'आपके अधिकारों के लिए लडूंगा'

$
0
0

rahul-gandhi-said-will-fight-for-mcd-employee
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को दिल्ली के सफाईकर्मियों के प्रति अपना समर्थन दोहराते हुए कहा कि समाज के वंचित तबके के अधिकारों के लिए वह अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर देंगे। पूर्वी दिल्ली नगर निगम के दफ्तर में राहुल गांधी की सफाईकर्मियों से यह लगातार दूसरी मुलाकात थी।  उन्होंने कहा, "मैं अकेले सफाईकर्मियों की बात नहीं कर रहा, बल्कि जहां कहीं भी गरीब लोगों को दबाया जा रहा है मैं उनकी भी बात कर रहा हूं। चाहे लोग सूट-बूट में हो अथवा वे आम आदमी पार्टी (आप) से हों, उनका (गरीबों) काम नहीं कर रहे हैं और मैं उनके साथ खड़ा हूं।" राहुल ने शुक्रवार को भी सफाईकर्मियों से मुलाकात की थी और उन्हें अपना समर्थन देने की बात कही थी। 

उन्होंने कहा, "मैं उनके साथ खड़ा हूं और भविष्य में भी उनके साथ खड़ा रहूंगा। मैं उनमें से हर किसी के साथ खड़ा होने के लिए तैयार हूं। मैंने उनसे कहा कि जब भी उन्हें मेरी जरूरत पड़ेगी मैं उनके साथ रहूंगा।"कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा, "कल (शुक्रवार) मैं उनके साथ 15 मिनट रहा था, लेकिन मैं घंटे, दिन, महीने, साल और अपनी पूरी जिंदगी उन्हें समर्पित करने के लिए तैयार हूं।"राहुल ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार और दिल्ली की राज्य सरकार दोनों अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही हैं। 

उन्होंने कर्मचारियों से कहा, "आप शहर को साफ रखते हैं.. उन्हें कोई परवाह नहीं है। अगर आप केंद्र सरकार के पास जाएंगे तो वह आपसे दिल्ली सरकार के पास जाने के लिए कहेंगे, वे कि दोबारा आपसे केंद्र सरकार के पास जाने के लिए कहेंगे.. ये सब बहाने हैं। मैं आपके साथ हूं.. आप मुझे बुला सकते हैं और मैं आपके साथ 10-15 दिनों तक बैठने के लिए तैयार हूं।"वेतन का भुगतान न होने के कारण नगर निगम के तकरीबन 15,000 कर्मचारी 10 दिनों से हड़ताल पर थे। राज्यपाल द्वारा उनके वेतन के लिए 493 करोड़ रुपये जारी करने के बाद सफाई कर्मचारियों ने शुक्रवार को हड़ताल वापस ले ली। 

कांग्रेस ने दावा किया था कि राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद राज्यपाल ने आखिरकार उनके वेतन के लिए धनराशि जारी की।  कांग्रेस प्रवक्ता अजय कुमार ने यहां पर एक प्रेस वार्ता में कहा, "राहुल गांधी ने स्पष्ट रूप से कहा कि दिल्ली के सफाई कर्मचारी शहर को साफ रखते हैं और वे सेना के जवानों की तरह हैं।"उन्होंने कहा, "अब सड़कों पर ढेर सारे कूड़े का अंबार लग गया है। प्रधानमंत्री का स्वच्छ भारत मिशन और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की झाडू़ अब देखने को नहीं मिलती।"

अमित शाह, पासवान ने बिहार चुनाव पर चर्चा की

$
0
0

amit-shah-ramvilas-paswan-meet
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष अमित शाह ने शनिवार को यहां पर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेता राम विलास पासवान से मुलाकात की। यह बैठक आने वाले बिहार चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के गठबंधन दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर हुई चर्चा का हिस्सा थी। पासवान ने बैठक के बाद कहा कि राजग के घटक दल, भाजपा, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और लोजपा राज्य में एक साथ चुनाव प्रचार करेंगे। 

सूत्रों ने बताया कि बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से लोजपा 50 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि भाजपा 35-40 सीटें ही देने को तैयार है। लेकिन पासवान ने एक सवाल के जवाब में कहा कि सीटों के बंटवारे को लेकर राजग में कोई लड़ाई नहीं है। उन्होंने कहा, "नरेंद्र मोदी राजग के नेता हैं। जब चुनावों की घोषणा होगी तब हम इसका फैसला करेंगे।"

पासवान के साथ इस दौरान लोकसभा सांसद चिराग पासवान भी मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल-यूनाइटेड और लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय लोकदल के बीच हुए 'अपवित्र गठबंधन'का राजग पर्दाफाश करेगी। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के राजग में शामिल होने के संबंध में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए लाभकारी होगा। अमित शाह ने गुरुवार को केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात की थी। उपेंद्र की पार्टी केंद्र और बिहार में राजग का हिस्सा है।

आलेख : शाकाहार के संकल्प के साथ गौशाला के रुप में बढते कदम

$
0
0
vegiterian-to-non-vegiterian
जलगांव शहर के कुसूंबा परिसर में अहिंसा तीर्थ के नाम से बनाये गये गो सेवा अनुसंधान केंद्र की ख्याती आज देश विदेश में शाकाहार के संकल्प के साथ फैलती दिखाई दे रही है। आभुषण व्यवसाय से जुडे रतनलाल सी बाफना द्वारा १९५४ में जलगांव में रतनलाल सी बाफना स्वर्ण तीर्थ का निर्माण करते हुए सराफा व्यवसाय प्रारंभ किया गया। परिपक्वता, विश्वसनीयता के चलते श्री बाफनाजी द्वारा सराफा व्यवसाय के अलावा सामाजिक क्षेत्र व खास तौर से शाकाहार सदाचार क्षेत्र में अच्छी ख्याती प्राप्त की गयी। व्यवसाय व समाज सेवा कार्य को अलग रखते हुए रतनलाल बाफनाजी द्वारा अपने व्यवसाय की बागडोर अगली पीढी को सौंपते हुए स्वयं को गौ माता के सेवा कार्य में झौंक दिया गया।

जिसके परिणाम स्वरुप जलगांव से औरंगाबाद जानेवाले मार्ग पर स्थित कुसूंबा परिसर में अहिंसा तीर्थ के रुप में रतनलाल सी बाफना गो सेवा अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गयी। इतना ही नहीं इस ईश्वरिय कार्य के प्रसार के लिए श्री बाफनाजी को जब भी अवसर प्राप्त हुआ तो उन्होने शाकाहार, सदाचार के संकल्प के साथ गौ-माता की रक्षा व संवर्धन का देशभर में प्रचार प्रारंभ कर दिया। अहिंसा तीर्थ के रुप में श्री बाफनाजी की जीवनभर की सामाजिक सोच व मेहनत दिखाई देती है। जिसके परिणाम स्वरुप इस पवित्र स्थल को देखने के लिए देशभर के नामी-गिरामी नामों के अलावा मीडिया क्षेत्र से जुडे दिग्गज, सामाजिक कार्यकर्ता, राज्यस्तरीय व केंद्रीय मंत्री, आदि सभी के द्वारा अपनी उपस्थिती दर्ज करायी गयी। जिसके अंतर्गत जैन संत तरुण सागरजी महाराज, विजय रत्न सुंदर सुरीजी महाराज, प्रिती सुधा महाराज साहब, भैय्युजी महाराज, श्रीश्री रविशंकर, विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल, प्रवीण तोगडीया, सुभाष गोयल दैनिक भास्कर समूह के संचालक अमित अग्रवाल आदि नाम प्रमुख है। इतना ही नहीं गौशाला व यहां चल रहे संवर्धन के कार्यों को देखने पाकिस्तान से लगभग १५० लोगों का एक पर्यटन दल भी अहिंसा तीर्थ आया था। श्री बाफना जी द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार पाकिस्तान से आये पर्यटन दल की यह विशेषता रही कि, अहिंसा तीर्थ आकर गाय से जुडी अधिकतम जानकारी के चलते इस दल में से लगभग १०० लोगों द्वारा मांसाहार छोड दिया गया। 

vegiterian-to-non-vegiterian
इतना ही नहीं यह लोग आज भी समय-समय पर पत्र या इंटरनेट के माध्यम से अपने इस संकल्प की जानकारी देते रहते है। शाकाहार के प्रणेता मानेजानेवाले रतनलालजी बाफना द्वारा निर्माण किये गये इस गो रक्षा संपर्क केंद्र अहिंसा तीथ में आज में लगभग २९०० गाय मौजूद है। इन प्राणियों के पालन व देखरेख के लिए २५० कर्मचारी निरंतर सेवारत रहते है। कुसूंबा परिसर में गौ शाला के भीतर ही प्राणियों के उपचार के लिए एक उपचार केंद्र भी निर्माण किया गया है। जिसमें ४ उच्च शिक्षित डाक्टरों द्वारा तनमन से गौ सेवा कार्य किया जाता है। अहिंसा तीर्थ के अंतर्गत गौ मूत्र से लेकर गाय के  विभिन्न गुणों से जुडी एक दवाई का भी निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा गोबर पर आधारित खाद का निर्माण करते हुए किसानों को उनकी भूमि के लिए अमृतबाण उपलब्ध कराया जा रहा है। श्री बाफनाजी ने बताया कि, अहिंसा तीर्थ में किसानों को गौ खाद बनाये जाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। ताकि आनेवाले समय में गौ पालन, गौ संवर्धन, गौ रक्षा के साथ-साथ भारतमाता की उपजाऊ भूमि को उर्वरा बनाया जा सके। 

इस अवसर पर श्री बाफनाजी ने मांसाहार को लेकर चैकानेवाले आंकडे प्रस्तुत करते हुए गौ रक्षा के लिए जागृत होने का आवाहन किया। श्री बाफनाजी ने बताया कि, वर्ष २००६-०७ में भारत से लगभग ५ लाख मेट्रिक टन गौ मास निर्यात किया गया था। जबकी भारतीय संस्कृति के जागृत होने व दबाव के चलते २००७-८ में ४ लाख ८३, वर्ष २००८-९ में ४ लाख ६२ एवं वर्ष २००९-१० में ३ लाख ११ मेट्रिक टन एवम् वर्ष 2012 में 3. 265 मिलियन टन गौ माँस का निर्यात किया गया। यह आंकडे भारत की बहुमूल्य गौ संपदा की विनाश की कहानी कह रहे है। इन्हे रोकने के लिए ही देश भर के कोनों में जलगांव के रतनलाल सी बाफना जैसे लोग निर्माण करने होंगे।

आलेख : मैं गैस सब्सिडी क्यों छोडुं ?

$
0
0
why-quit-subsidy
आजकल सरकार ने एक नया षगुफा छोड रखा है कि राष्ट्रहित में गैस सब्सिडी छोडो। मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि जब सरकार ने पहले अखबारों में टीवी पर बडे बडे विज्ञापन देकर व्हाट्सअप, फेसबुक सहित तमाम सोषल मीडिया पर उपभोक्ता को प्रेरित किया एवं गैस एजेंिसयों पर इस बात के लिये दबाव डाला कि वह उपभोक्ता को सब्सिडी के लिए बैंक में खाता खोलने के लिए कहे, बैंक खाते का नम्बर गैस एजेंसी पर दें, उपभोक्ता के खाते में गैस सब्सिडी सीधे जमा होगी। उपभोक्ता को अधिक कीमत नहीं देनी पडेगी। बेचारे लोग भाग-भाग कर सारी औपचारिकताएं पूरी करने लगे। जिनका बैंक में खाता नहीं था उन्होनंे बैंक में खाता खुलवाया। जिसके नाम से गैस कनेक्षन है उसी का खाता होना अनिवार्य था। 

किसी के राषनकार्ड के लिये दौडाया तो किसी को वोटर और आधार कार्ड के लिये। फिर बैंकों के खाते को गैस एजेंसी के नम्बर से लिंक किया। बावजुद इसके कि उपभोक्ता को इन सारी प्रक्रियाएं पूरी करने में कई कई दिनों तक गैस एजेंसी और बैंकों के बीच चक्कर काटने पडे। खासकर उस आम आदमी को जो कम पढा लिखा था जिसे उनके फार्म भरना नहीं आ रहा था। महीनों तक गैस एजेंसियों पर लाईनें लगी रहीं। धीरे धीरे खातों में सब्सिडी की रकम जमा होने लगी। पहले की तुलना में देखें तो आई हुई सब्सिडी और चुकाई गई राषि मिलाने पर पहले से 35-40 रूपये ज्यादा ही चुकाने पड रहे थे। परन्तु उपभोक्ता अपना मन मार के इसलिये बैठ रहा था कि चलो सब्सिडी तो आ रही है। 

अब कह रहे हैं कि सब्सिडी छोडो। अगर नहीं छोडोगे तो हो सकता है कि बाद में इसकी अनिवार्यता कर दी जाए। अब गैस सब्सिडी छोडने को सरकार का अनुरोध मानें या धमकी। कहने का अर्थ है कि आज नहीं तो कल उपभोक्ता को गैस की पूरी कीमत चुकानी ही है। सरकार ने कभी अम्बानी और रिलायंस कम्पनी को तो यह नहीं कहा कि आप अपना थोडा मुनाफा कम कर उसका लाभ जनता को दे दो। 

यह तो पता है कि यह सरकार पूंजीपतियों, औद्योगिक घरानों के हितों की सरकार है। दस लाख का सूट भी तो यही भेंट करते हैं। विदेष यात्राओं में भी वे ही साथ जाते हैं। आम आदमी तो इनके एजेण्डे में वोट देने तक ही है। चुनाव जीतने के बाद सारी बातें एजेण्डे से बाहर हो जाती हैं।

मैंने आज जब गैस एजेंसियों से जानकारी एकत्र की तो मुझे एक आष्चर्यजनक तथ्य पता चला कि नीमच में सब्सिडी छोडने वाले केवल पचास लोग हैं वे भी कोई बडे नेता, जनप्रतिनिधि (विधायक, पार्षद इत्यादि) उच्च अधिकारी या सत्ता में बैठी पार्टी के पदाधिकारी नहीं थे। जब ये लोग सब्सिडी नहीं छोड रहे तो मैं क्यों छोडूं। महज इसलिये कि मैं एक आम आदमी हूं जिसके पास न पद है न सत्ता न कोई ओहदा। छोडने वाले वे 50 आदमी आम आदमी ही हैं।  

किसी ने सच ही कहा है कि छुर्रा खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छूरे पर कटना खरबूजे को ही है। सरकार सब्सिडी दे या छुडवाये तकलीफें तो आम आदमी की ही है। 



किशोर जेवरिया, 
मो. 9425108612

आलेख : किसान और मनरेगा अधिनियम

$
0
0
farmer-and-narega
गोंदल सिंह गाँव का एक लघु कृषक था और अपने गाँव में रहकर खेती एवं पशुपालन करते हुए अपनी आजीविका मजे में चला रहा था। संपन्न नही था फिर भी खुशहाल जीवन जी रहा था। गोंदल सिंह को खेती से बहुत प्यार था और किसान होने पर उसे गर्व था। वह कहता था - हम किसान अनाज न पैदा करें तो दुनिया भूख से मर जायेगी, जीवन में भोजन की आवश्यकता सबसे पहले और बाकी चीजें बाद में होती है। सत्य ही है, इतनी बडी दुनिया को अगर अनाज न मिले तो लोग पेट की आग शान्त करने के लिये एक दूसरे को मार कर खाने लगेंगे । गोंदल सिंह स्वयं अपनी और बच्चों की तरक्की के लिये नित नये सपने देखता रहता था। कहता बच्चों को पढा लिखा कर बडा आदमी बनाउंगा, चाहे मुझे जितनी मेहनत करनी पडे लेकिन मुझे अपनी गरीबी दूर करना ही है, बच्चों को पढ़ा - लिखाकर शिक्षित करना है।

सन 2006 में भारतवर्ष की कांग्रेसी सरकार ने विदेशियों के इशारे पर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा) अधिनियम देश में लागू की तो गोंदल सिंह बडा प्रसन्न हुआ कि अब गाँव के लडकों को शहरों मे मजदूरी करने और ईंट - भट्ठा में काम करने जाने की बजाय गाँव में ही रोजगार मिल सकेगा और गाँव की उन्नति भी होगी, लेकिन मनरेगा धरातल पर आते ही अन्य सरकारी योजनाओं की तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ गयी । गाँव के लोग पंचायत सचिव , ग्राम प्रधान और मुखिया की मिली भगत से योजना में अपना नाम लिखवा लेते और बिना काम किये ही आधी मजदूरी झटक लेते और केन्द्र सरकार का गुणगान करते न थकते।

इधर योजना के दुष्प्रभाव के कारण गोंदल सिंह जैसे किसानों को खेती के लिये मजदूर मिलना मुश्किल होता जा रहा था, गाँव के मजदूर अब मनरेगा के बराबर मजदूरी व काम में ज्यादा सहूलियत माँग रहे थे । मरता क्या न करता ?  गोंदल सिंह ने भी मजदूरों की बात मानते हुए उन्हे ज्यादा मजदूरी देनी शुरु कर दी । जिससे खेती की लागत तो बढ ही गयी, समय से काम भी न हो पाता। खेती में लगातार घाटा होने से गोंदल सिंह जैसे न जाने कितने किसान मनरेगा की भेंट चढ गये। मजदूरों की दिनानुदिन बढती हुई माँगो से तंग आ गोंदल सिंह और बहुत से अन्य किसानों ने अपने - अपने खेत साझा अधबटाई ( खेत को दुसरे कृषक को खेती करने के लिए दे देने पर किसान के द्वारा फसलोपाज में से आधा फसल अथवा उसका बाजार मूल्य जमीन मालिक को देने की प्रथा अधबटाई कहते हैं।)पर दे दिये। जब खेती बंद हुई तो जानवरों के लिये भूसा-चारा मिलना भी महंगा हो गया, लिहाजा गोंदल सिंह ने अपने पालतू जानवरों को भी एक -एक कर बेच दिया।

गोंदल सिंह के पास अब कोई विशेष काम नहीं था, तो उसकी संगति भी गाँव के नेता टाईप लोगों से हो गयी, उन लोगों ने कुछ ले - दे कर गोंदल सिंह का नाम पहले मनरेगा में निबंधन करवाया और फिर बीपीएल सूची में दर्ज करवा दिया । अब बिना कुछ किये आधी मजदूरी और लगभग मुफ्त मिलने वाले अनाज से उसके जीवन की गाडी चलने लगी थी। जो गोंदल सिंह अपने परिवार की उन्नति बच्चों की तरक्की की बात करता था, वह अब सरकारी योजनाओं से कैसे लाभ लिया जाये इसकी बात करता था। बच्चों को उसने उनके हाल पर छोड दिया था, कहता इनके भाग्य में लिखा होगा तो कमा-खा लेंगे।

मनरेगा ने गोंदल सिंह जैसे लाखों किसानों का जीवन जीने का तरीका बदल दिया ,जो गोंदल सिंह पहले मेहनत से अपने परिवार का जीवन बदलना चाहता था, वह अब भाग्य भरोसे बैठ गया था।





-अशोक “प्रवृद्ध”

जितनी चुनौतियां मिलेंगी, कला उतनी निखरेगीः रोजलीन

$
0
0
roseline-on-act
फिल्म ‘‘धमा चैकडी ’ में अपने हाॅट किरदार से  पहचान बनाने वाली रोजलीन अब ‘जी लेने दो पल’ के अलावा कुछ फिल्मों में भी नजर आने वाली हैं। सेक्स बॉम्ब रोजलीन खान ने भी जैकलीन की राह को अपना लिया है। कहानीकार और निर्देशक संजीव राय की फिल्म ‘जी लेने दो एक पल’ मे दिये सेक्स सीन्स को देखकर लगता है कि आने वाले समय में वह बालीवुड की सबसे ज्यादा हाॅट हीरोइन होगीं। वह अपनी फिल्म और फिल्मी करियर को लेकर क्या सोचती है,जानते है उनकी जुबानी:

जिस तरह आप इस फिल्म में सेक्सी और हॉट सीन्स दे रही है क्या यह ओवरनाइट सफल होने का शॉर्टकट स्टंट तो नहीं है? 
‘मैं कोई पब्लिसिटी स्टंट नहीं रच रही हूँ और ना ही किसी किस्म की सस्ती पब्लिसिटी में यकीन रखती हूँ! मैंने जो भी हॉट और सेक्सी सीन्स शूट किये  है, उनका ताल्लुक फिल्म की स्क्रिप्ट की डिमांड रही है! एक मामूली लड़की रिमी की फिल्मों में हीरोइन बनने की लालसा रखने का पूरा सफरनामा है, स्ट्रगल है। उसे अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए किन -किन रास्तों से गुजरना पड़ता है... यही मेरे किरदार रिमी की एप्रोच है।

हॉट और सेक्सी और इंटिमेट सींस करने की वजह कही आप सनी लियोन की कैटेगरी वाली गरमा-गरम हीरोइन बनना चाहती  हैं? 
हां....यदि लोग मुझे सनी लियोनी से कम्पेयर करना चाहे तो यह मेरे लिए कॉम्प्लीमेंट होगा। आज जिस तरह का सिनेमा ऑडियंस पसंद कर रही है उसमें तो रेखा और स्मिता पाटिल बनना किसी भी न्यू कॉमर के लिए पॉसिबल नहीं  है जबकि....दिली....तौर पर रेखा मेरी रोल मॉडल है और मैं उसी हाइट पर जाना चाहती हूँ ।

फिल्म में आपके आपोजित नवोदित अभिनव कुमार है उनके साथ का अनुभव कैसा रहा ?
बहुत ही बढिया। उनमें टैलेंट है और सेट पर हंसी माजाक करते है। पता ही नहीं चला कि कब फिल्म पूरी हो गयी। उनके साथ काम हुए कहीं भी उनके नये का अहसास नहीं हुआ।

फिल्म की कहानी क्या है?
फिल्म कहानी शेखर नामक संवेदनशील, भावुक इंसान की है। वह अपनी पत्नी सुधा (सुखबीर लाम्बा) से बेतहाशा मोहब्बत करता है... मगर जब उसकी मर्दानगी को रिमी चैलेंज करती है, तो वो ऐसा कुछ कर गुजरता है जो उसके दाम्पत्य जीवन को  हिला कर रख देता है। यही से कहानी नया मोड लेती है। मेरे कैरेक्टर में विविध  शेड्स है। 

फिल्म आपके आपोजिट कौन है?
इस फिल्म में अभिनव कुमार,के अलावा सुखबीर लाम्बा विरजेश हिरजी,टीनू आनंद,जरीना वहाब,अंजन श्रीवास्तव, शकीला मजीद,प्रतिष्ठा विज, राज शाही, सूरज शाह और एहसान  खान भी हैं।

आपने अब तक निगेटिव, पॉजिटिव हर तरह के रोल किये। किसे करना सबसे अच्छा लगा?
सच बताऊं तो मैं एक गिरगिट की तरह हूं। मुझे जो रंग दिया जाये वही रंग ले लेती हूं। एक एक्टर के रूप में मुझे जिस रूप में देखते हैं मेरा विश्वास करें कि मुझे उसके लिए ही बनाया गया था। पर्सनली मुझे कॉमेडी बहुत पसंद है। इसके अलावा एक्शन बहुत पसंद है। मारधाड़ बहुत पसंद है। मैच्योर रोमांस बहुत पसंद है।

आप काफी समय से इंडस्ट्री में हैं तो आज की इंडस्ट्री में पहले से कितना चेंज महूसस करती हैं?
मुझे लगता है कि चीजें अच्छी हुई हैं। लेकिन थोड़ा क्वालिटी पर कंट्रोल नहीं है। सब कुछ डिलीवरी पर निर्भर है। इसी बात का मलाल लगता है। 

विशेष आलेख : समाजवादी पार्टी में आखिर क्यों है इतनी बेचैनी

$
0
0
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को भले ही झटका लगा हो लेकिन इसके बाद हुए उप चुनावों में एक के बाद एक समाजवादी पार्टी को ही फतह मिली। लखनऊ उत्तरी जैसी सीटें अगर उसने हारी भी तो स्वेच्छा से। मुलायम सिंह सभी पार्टियों में निजी संबंध बनाए रखते हैं और इन्हीं संबंधों के नाते उन्हें लखनऊ उत्तरी की सीट लालजी टंडन को तोहफे में देनी थी सो उन्होंने इस सीट पर जानबूझकर जोर नहीं लगाया।

उप चुनावों में मिली सफलता के आधार पर समाजवादी पार्टी जहां यह दावा कर रही है कि उत्तर प्रदेश में उसे किसी से कोई खतरा नहीं रहा है वहीं लगातार नए विवादों के सामने आने से पार्टी नेतृत्व में जिस तरह की हड़बड़ी दिखाई देती है उससे लगता है कि ऊपर से जितना लगता है उतनी आसान स्थितियां समाजवादी पार्टी के लिए प्रदेश में हैं नहीं। यह दूसरे लोग नहीं खुद पार्टी के नेतृत्व की भी धारणा है इसीलिए बार-बार सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह के आवास पर उनकी पारिवारिक कोर कमेटी की बैठक होती रहती है। ताजा बैठक तो इतने गोपनीय ढंग से हुई कि उसमें नौकर चाकर तक नहीं फटकने दिए गए। दीवारों के भी कान होते हैं और दीवारें भी रहस्य की बातें न सुन लें ऐसी सतर्कता का मतलब है कि स्थितियां कुछ ज्यादा ही संगीन हैं। आखिर कौन सी चुनौतियां हैं जो मुलायम सिंह और उनके परिवार को चैन नहीं आने दे रहीं।

उप चुनाव प्राय सत्तारूढ़ पार्टी के ही होते हैं। उस पर समाजवादी पार्टी के हाथ में जब सत्ता हो तब तो किसी भी सीट का उप चुनाव उसके हाथ से फिसल ही नहीं सकता। 2007 में जब विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने सत्ता गंवाई थी उसके ठीक पहले भी उत्तर प्रदेश में जितने चुनाव हुए थे उन सबके नतीजे समाजवादी पार्टी के ही पक्ष में रहे थे यानी उप चुनाव संचारी भाव है स्थाई भाव नहीं। समाजवादी पार्टी दबाव अच्छा डाल लेती है और चुनाव जीतने के लिए कोई भी हथकंडा अपनाने में उसे संकोच नहीं होता। उस पर फिलहाल तो उसके लिए स्थितियां इस कारण बहुुत अनुकूल हैं कि मुख्य प्रतिद्वंद्वी दल बहुजन समाज पार्टी ने किसी उप चुनाव में उम्मीदवार न उतारने का फैसला कर रखा है। समाजवादी पार्टी भी यह बात जानती है कि उप चुनावों के परिणामों से प्रदेश की राजनीति की वास्तविक आवोहवा का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इस कारण प्रदेश में जो विवाद इस समय तूल पकड़ रहे हैं उससे पार्टी नेतृत्व का संजीदा होना लाजिमी है।

विधान परिषद में कला, संस्कृति, साहित्य, सहकारिता, समाजसेवा आदि क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान करने वालों को नामित करने के तहत अखिलेश सरकार ने जिस सूची को राजभवन भिजवाया था उसे कई तथ्यपूर्ण आपत्तियां लगाकर राज्यपाल ने वापस भेज दिया। इसके बाद विदेश यात्रा से लौटते ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फिर ज्यों की त्यों वही सूची राजभवन भेज दी। इसके पहले मुलायम सिंह यादव खुद राजभवन में राज्यपाल से मिलने गए ताकि दूसरी बार लिहाज करके वे सूची में अड़ंगा न डालें लेकिन लगता है कि राज्यपाल पर इसका कोई असर नहीं है। इस समय जनमत जिस दिशा में जा रहा है उसे देखते हुए लोकलाज के सवाल अनदेखे करने की स्थितियां मुश्किल होती जा रही हैं। मुलायम सिंह को पता है कि ऐसे संवेदनशील मौके पर विधान परिषद के लिए प्रस्तावित नामों को लेकर राजभवन से झगड़ा करना अखिलेश सरकार की छवि के लिए भारी पड़ सकता है। यह भी उनकी चिंता का एक कारण है। लोकायुक्त द्वारा बसपा सरकार के जिन मंत्रियों के खिलाफ रिपोर्टें दी गई हैं उन्हें बचाने के प्रयास में भी राज्यपाल ने अड़ंगा लगा दिया है। 

इस बीच आगरा के जालसाज शैलेंद्र अग्रवाल के बयानों से मुलायम सिंह यादव के चहेते रहे दो पूर्व पुलिस महानिदेशक गंभीर जांच के घेरे में आ गए हैं। अखिलेश सरकार से यह मामला न उगलते बन रहा है न निगलते बन रहा है। शाहजहांपुर के पत्रकार जागेंद्र सिंह की जलाकर हत्या के मामले में पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ दर्ज मुकदमा भी अखिलेश सरकार के गले की हड्डी बन गया है। इस मामले में राममूर्ति वर्मा के खिलाफ आवाज उठा रहे पार्टी के कद्दावर पूर्व विधायक देवेंद्र सिंह को अखिलेश से निष्कासित कर दिया है। राज्यपाल इस मुद्दे पर भी सरकार से जवाब तलब की मुद्रा में हैं। यह स्पष्ट हो चुका है कि सपा सुप्रीमो राममूर्ति वर्मा का नुकसान नहीं होने देंगे लेकिन इसकी उन्हें कितनी बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी इसका अंदाजा लगाने में भी उन्हें पसीना छूट रहा है। सबसे गंभीर बात तो यह है कि परिवार के अंदर चल रही उठापटक की चर्चा अब सड़कों पर होने लगी है। यह परिवार पार्टी और राज्य की सरकार तीनों की ही साख के लिए खतरनाक है। इस बीच पारिवारिक संतुलन के लिए ही शिवपाल यादव के वर्चस्व को मान्यता देने को राजेंद्र सिंह की जगह उन्हें पार्टी और सरकार का प्रवक्ता बनाने का फैसला किया गया है। अमर सिंह यादव की वापसी को लेकर मुलायम सिंह के सामने धर्मसंकट की स्थितियां अभी भी बरकरार हैं। साथ ही नगर विकास मंत्री मो. आजम खां का वाचाल रवैया अब अखिलेश तक को खलने लगा है।

लेकिन इन सबसे ऊपर समाजवादी पार्टी में बढ़ रही सरगर्मी के पीछे जो बात है वो है त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव और स्थानीय निकाय चुनाव में चक्रवर्ती सफलता प्राप्त करने का उसका लक्ष्य। इन चुनावों से भी बसपा ने अपने को पीछे रखने की नीति घोषित कर दी है लेकिन भारतीय जनता पार्टी जरूर इन चुनावों को पूरी ताकत से लडऩे की मंशा बनाए हुए है। ऐसी स्थितियों में कुछ भी करके एक-एक ग्राम पंचायत और एक-एक नगर पंचायत जीतने की समाजवादी पार्टी की कटिबद्धता से प्रदेश में कौन सी गजब ढाने वाली स्थितियां बनेंगी यह तो पहले से अनुमान तक नहीं किया जा सकता। स्थानीय संस्थाओं का होने वाला चुनाव युद्ध केेंद्र और राज्य सरकार के बीच सीधे टकराव के हालात तैयार कर सकता है जबकि मुलायम सिंह ऐसी अंडरस्टैंडिंग भाजपा के साथ बनाने के प्रयास में हैं जिसमें अलग-अलग पार्टियों के रहते हुए भी भाजपा समझ ले कि संकट में सपा केेंद्र में उसके साथ होगी जबकि राज्य में अपने एजेंडे को लागू करने के लिए वह सपा पर भरोसा करना ही वर्तमान राजनीतिक स्थितियों में उपयुक्त समझेगी। फिलहाल ऐसा चल भी रहा है लेकिन स्थानीय चुनाव का महासमर इस दुरभिसंधि को तोड़ कर रख सकता है। ऐसे में सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे का रास्ता निकालने के लिए मुलायम सिंह बहुत फिक्रमंद हैं और शायद बार-बार पार्टी की कोर ग्रुप का मंथन इसी का नतीजा है।




live aaryaavart dot com

के  पी  सिंह
ओरई 

बिहार : केवल रूखासूखा मानदेय ही मिलता है चालक सिपाहियों को

$
0
0
  • मानदेय से ही वर्दी खरीदकर वर्दी पहनते हैं चालक सिपाही, 5 साल से मानदेय में वृद्धि नहीं

police-driver-bihar
गया। इस जिले के शेरघाटी अनुमंडल के रोशनगंज थाना में कार्यरत चालक सिपाही उदय पासवान कहते हैं कि दो मुहान के आगे मगध यूर्निवसिटी थानान्तर्गत मार्ग पर पूर्व डी.आई.जी.उमेश कुमार के स्काॅट में दुर्घटना होने वाले संजीव कुमार की मौत 2011 में हो गयी। चालक सिपाही संजीव कुमार के परिजनों को सरकार के द्वारा मुआवजा नहीं दिया गया। केवल रूखासूखा मानदेय ही मिलता है। किसी तरह का भत्ता देय नहीं होता है।  

बिहार पुलिस एवं बिहार सैन्य पुलिस में चालक सिपाही के पद पर नियुक्ति हेतु चयन प्रक्रिया के संशोधन का प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन है। नई चयन प्रक्रिया की अधिसूचना अप्राप्त रहने के कारण चालक सिपाही की नियमित नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ करने में विलंब हो रहा है। 2010 में संविदा के आधार पर चालक सिपाही की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की गयी। पुलिस विभाग में चालक सिपाही के स्वीकृत पदों के विरूद्ध 610 पदों का रोस्टर गृह (आरक्षी) विभाग के पत्र सं0- 4/ ब02-10-04/2010 गृ0आ0-4184 दिनांक 20 मई 2010 है। 

विदित है कि पुलिस आधुनिकीकरण योजनान्तर्गत काफी संख्या में नये वाहनों का क्रय किया जा चुका है। बिहार पुलिस में गृह विभाग के उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार 2013 से 2015 के बीच करीब 1 हजार गाडि़यों की क्रय की गई। पहले से ही बिहार पुलिस संवर्ग में छोटी गाडि़यों की संख्या में 3470 और बड़ी गाडि़यों की संख्या में 721 विराजमान है। इसके आलोक में चालकों की संख्या में भारी कमी रहने के कारण उक्त वाहन के संचालन एवं रख-रखाव में घोर कठिनाई हो रही है। उक्त परिस्थितियों के समाधान के लिए संविदा के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया एक मात्र विकल्प रह जाता है। संविदा के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया वहीं होगी जो नियमित नियुक्ति के लिए निर्धारित है।

पुलिस मुख्यालय के मापदंड के अनुसार अभ्यर्थियों को 6 मिनट में 1600 मीटर की दौड़, 12 फीट लम्बी कूद, 4 फीट ऊँची कूद,16 पौण्ड का गोला फेंक कर शारीरिक मापदंड पेश करना पड़ा। इसके बाद गाड़ी चलाने की टेस्ट प्रक्रिया,यातायात के चिन्हों, संकेतों, मोटर गाड़ी के नियमों से संबंधित पार्ट-पूर्जे, रख-रखाव, लूब्रिकेटिंग आदि का सामान्य ज्ञान तथा वाहनों में यांत्रिक तकनीकी त्रुटियों का परीक्षण भी लिया गया। इसके बाद मेडिकल टेस्ट और थाने से सत्यापन भी कराया गया। 610 अभ्यर्थियों में 399 ही सफल हो घोषित किए गए। 

इस संदर्भ में अजीत कुमार का कहना है कि संविदा के आधार पर नियुक्त होने वालों को मानदेय निर्धारित किया गया। पटना शहरी क्षेत्र में 10,500 और अन्य जगहों में कार्य करने वालों को 9,900 रू.मानदेय दिया गया। 5 साल के बाद भी मानदेय में वृद्धि नहीं किया गया। 12 महीने कार्य करते हैं और 11 महीने का मानदेय दिया जाता है। और तो और चालक सिपाहियों को वर्दी भत्ता देय नहीं किया जाता है। खुद ही हमलोगों को वर्दी खरीदकर वर्दी पहनना पड़ता है। 

आलेख : किसानों के देश में किसान आत्महत्या

$
0
0
उत्पादन करने वाला किसान आज आत्महत्या करने पर क्यों मजबूर है? अन्नदाता को दोहरी मार पड़ी है। प्रकृति ने कहर बरपाया, असमय बारिश से फसलें तबाह हुई। सरकार ने भूिम अधिग्रहण का राग छेड़ा तो तिलमिलाये किसानों के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा। हम तो अपने घर में पसर कर कुछ शब्दों और विचारों का गठजोड़ करते रहते हैं, लिखते रहते हैं। हम सिर्फ चिंता व्यक्त करते हैं। कई बार तो समस्याओं के ढेर में कुछ और समस्या जोड़ देते हैं। हमारे पास कोई समाधान नहीं रहता या हम जिस व्यवस्था में जी रहे हैं वहां समाधान की बात नहीं होती। रैलियां होती हैं, आंदोलन होते हैं, लेकिन उनके पीछे व्यकितगत हित साधना सर्वोपरि दिखता है। आज जिस तरह के विकास माडल की चर्चा हो रही है उसमें प्रकृति को संसाधन कहा जा रहा है, मानव को भी और पूंजीपति वर्ग को लाभ पहुंचाने का तानाबाना बुना जा रहा है। राज्य सभा में हमारे सांसद किसानों की दुर्दशा पर चर्चा कैसे हो, पर ही उलझ कर रह जाते हैं। इस साल सैकड़ों की संख्या में देष के हर कोने से किसान आत्महत्याएं की खबरें सुनने को मिल रही हैं। अच्छे दिनों की उम्मीद में किसान फसलों पर प्रकृति की मार से परेशान है। दूसरी ओर सरकार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को बसाने के फेर में किसानों की भूिम पर गिद्ध जैसी दृश्ट्रि गढ़ाये हुए हैं। 
          
प्रधान मंत्री देश में कम विदेश दौरों में ज्यादा व्यस्त हैं, किसान मरे तो मरे। ठेट बिजनैस मैन की तरह पार्टी और उसकी नीतियों को मीडिया में परोसना एक विज्ञापन ही तो है। कब तक सिर्फ विज्ञापन ही परोसे जायेंगे? उत्तरप्रदेश में एक किसान की 70 प्रतिशत फसल नष्ट हो गई। टीवी न्यूज में किसान की बाइट और उस क्षेत्र के पटवारी की बाइट साथ में ली जाती है। किसान कहता है कि-‘‘70 प्रतिशत फसल नष्ट हो गई कैमरा खेत की ओर घूमता है, जहां गेहूं की बालियां मिट्टी में समाने को आतुर दिख रही हैं। इसके बाद कैमरा पटवारी की ओर घूमता हैं वह अपनी बाइट में कहता है कि नुकसान ज़्यादा नही हुआ है। अब इससे ज्यादा नुकसान और क्या होगा? इतनी असंवेदनशीलता क्यों? सरकार की ओर से जारी मुआवजा त्वरित रूप से किसानों तक क्यों नहीं पहुचता है? नुकसान के अनुपात में मुआवजा क्यों नहीं दिया जाता है? सवाल तो यह भी है कि इस देश के अन्दर कई तरह के देश पनप रहे हैं। किसानों के भी कई वर्ग हैं। छोटे किसान जिनको, साहूकार और बैंक का कर्ज आत्म हत्या को मजबूर करता है। बड़े किसान तमाम सरकारी कृषक हित की नीतियों को चुपचाप हड़प जाते हैं। मौसम की मार एक बात है लेकिन सरकार की नीतियों की मार सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। 
            
रेडियो पर मन की बात कहने वाले प्रधानमंत्री और हर मुददे पर रैली-धरना करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री के साथ-साथ दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए आत्म मंथन करने का समय है। किसान के साथ खड़े होने का समय है। त्वरित प्रभाव से किसानों के कर्ज माफ हों, उनको उचित मुआवजा दिया जाये, जिला प्रशासन बिना किसी संकोच के फील्ड विजिट करे और किसानों के जख्मों पर मरहम लगाया जाये। उनको सुना जाये। संसद की बहस से ज्यादा जरूरी है कि जनप्रतिनिधि वहां का दौरा करें जहां फसलें बर्बाद हुई हैं, जहां से सबसे ज़्यादा आत्महत्या की खबरें आ रही हैं। सर्वेक्षण करने वाले कर्मचारी गांव की किसी चाय की दुकान में बैठ कर खाना-पूर्ती ना करें। एक-एक घर में जाकर किसानों की स्थिति के बारे में जानें। किसानों को शीघ्र उचित मुआवजा मिले और नीतियां उनके हक में बने। 
         
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, वर्ष 1995 से 2013 के बीच तीन लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। वर्ष 2012 में 13,754 किसानों ने विभिन्न वजहों से आत्महत्या की थी और 2013 में 11,744 ने। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर 30 मिनट में एक किसान आत्महत्या करता है यानि अन्नदाता की भूमिका निभाने वाला किसान अब अपनी जान भी बचाने में असमर्थ है। वर्ष 2014 में भी आत्महत्या की दर में तेजी आई है। 2015 में मार्च के महीने में असमय बारिष के कारण फसल बर्बाद हो गयी है। किसानों की फसलों को  भारी नुकसान हुआ। आय का कोई साधन और परिवार का बोझ उठाने में असमर्थ किसान  ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया। देष के किसी न किसी कोने से हर रोज़ किसी न किसी किसान की आत्महत्या की खबर मिल रही है।           
           
हमारा देष भारत कृर्शि प्रधान देष है पर यहां किसानों की स्थिति सबसे ज़्यादा खराब है। कृर्शि क्षेत्र डूब रहा है किसान खेती छोड़ रहे हैं और जीवन भी। असमय बारिष से गेहंू के अलावा चना, सरसों और अरहर की फसलोें को बड़ा नुकसान है। यह फसलें कटने को तैयार खड़ी थी कि बारिष ने सारी फसल स्वाहा कर दिया। पिछले साल बारिश नहीं हुई थी इसलिए खरीफ की फसल चैपट हुई थी। जानकार कहते हैं कि सरकार को संकट की इस घड़ी में किसानों के आंसुओं को पोंछना होगा। यह देश की बदनसीबी है कि रबी के सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र मौसम की भारी मार का शिकार हो रहा है। मौसम की इस मार का खामियाजा सिर्फ किसान को ही नहीं भुगतना पड़ेगा वरन शहरी मध्यवर्ग भी खाद्यान्नों की बढ़ी कीमतों के लिए और भुगतान को तैयार रहे। सरकार अभी से चेत जाए तो किसान और मध्यवर्ग दोनों के नुकसान की कुछ भरपाई तो की ही जा सकती है। 





live aaryaavart dot com

विपिन जोशी 
(चरखा फीचर्स)

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर ललित मोदी को ट्रैवल वीजा दिलाने का आरोप

$
0
0
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी की मदद का आरोप लगा है। ऐसी खबरें हैं कि सुषमा स्वराज ने ललित मोदी को ब्रिटेन में ट्रैवल वीज़ा दिलाने में मदद की थी। हालांकि इस ख़बर के बाद सुषमा ने ये माना है कि उनकी ललित मोदी से बात हुई थी, लेकिन ये सिर्फ़ मानवीय आधार पर थी।

सुषमा स्वराज की तरफ़ से कहा गया है कि ललित मोदी को कैंसर से पीड़ित अपनी पत्नी के इलाज़ के लिए पुर्तगाल जाना था, लेकिन ट्रेवल वीज़ा नहीं होने की वजह से वो इंग्लैंड से पुर्तगाल नहीं जा पा रहे थे। सुषमा ने यह भी साफ किया कि ब्रिटिश सरकार ललित मोदी को वीजा देना चाहती थी, लेकिन पहले की यूपीए सरकार ने इंग्लैंड से ललित मोदी को वीजा देने पर कड़ी आपत्ति जताई थी और यही उनके लिए बड़ी रुकावट बन रही थी।


ACB प्रमुख मीणा के दफ्तर में जासूसी उपकरण मिला

$
0
0
दिल्ली एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) प्रमुख एम के मीणा के कार्यालय में जासूसी उपकरण मिलने का मामला सामने आया है। सूत्रों ने बताया कि मीणा के कार्यालय में एक जासूसी उपकरण मिला। यह उपकरण एक पेन रिकॉर्डर है। इसके बाद से एंटी करप्शन ब्यूरो में हड़कंप मचा गया। इस बात की जांच की जा रही है कि यह जासूसी उपकरण किसने और क्यों रखा।

गौरतलब है कि एसीबी प्रमुख एम के मीणा की नियुक्ति को लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग और दिल्ली सरकार के बीच मतभेद चल रहा है। नजीब जंग ने मीणा को एसीबी का प्रमुख नियुक्त किया था, जिस पर एसएस यादव कार्यरत थे। केजरीवाल यादव को ही एसीबी प्रमुख बनाए रखना चाहते थे। इसके साथ ही उपराज्यपाल ने दिल्ली पुलिस के सात निरीक्षकों का स्थानांतरण एसीबी में किया था। इसके पहले केजरीवाल ने बिहार के पांच पुलिस अधिकारियों को एसीबी में शामिल किया था।

वन रैंक, वन पेंशन की मांग को लेकर पूर्व सैनिकों का जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन

$
0
0
'वन रैंक, वन पेंशन'पर पूर्व सैनिकों ने सरकार के खिलाफ रविवार को जंतर-मंतर पर अपनी मांग को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. पूर्व सैनिकों का सरकार पर आरोप है कि वादा करने के बावजूद 'वन रैंक, वन पेंशन'पर वादा पूरा नहीं किया है. पूर्व सैनिकों ने कहा कि अगर सरकार ने मांग नहीं की पूरी तो 15 जून से राष्ट्रव्यापी हड़ताल की जाएगी. विरोध जताते हुए रिटायर्ड अधिकारी, जूनियर कमिश्नड ऑफिसर और सैनिकों से 40 संस्थाएं 'खून से लिखा'ज्ञापन मोदी सरकार को सौंपेंगे.

 पिछले हफ्ते 15 पूर्व सैनिक और ग्रुप रिटायर्ड कैप्टन वीके गांधी ने वन रैंक, वन पेंशन को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकल से मुलाकात की थी. पूर्व सैनिकों का विरोध प्रदर्शन सुबह 10 बजे से शाम 3.30 बजे तक किया जाएगा. वीके गांधी ने कहा कि सरकार ने उन्हें प्रदर्शन करने से रोकने के लिए कोई कोशिश नहीं की. याद रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि सरकार सैनिकों को 'वन रैंक, वन पेंशन'देने के लिए प्रतिबद्ध है.

वन रैंक, वन पेंशन का मतलब है कि सशस्‍त्र बलों से रिटायर होने वाले समान रैंक वाले अफसरों को समान पेंशन, भले वो कभी भी रिटायर हुए हों. यानी 1980 में रिटायर हुए कर्नल और आज रिटायर होने वाले कर्नल को एक जैसी पेंशन.

Viewing all 74336 articles
Browse latest View live




Latest Images