हाल में रीलिज फिल्म ‘हवाईजादे’ में आयुष्मान खुराना एक गीत गाते नजर आ रहे हैं। वो गीत है ‘दिले नादां तुझे हुआ क्या है. .।’ यह गाना 1954 की क्लासिक फिल्म ‘मिर्जा गालिब’ का है जिसे सुरैया और तलत महमूद ने गाया था। आज भी संगीत प्रेमी इस गाने के माधुर्य में खो जाते हैं कि उन्हें अहसास ही नहीं होता कि ये जमाना उस सदी का है जहां मौलिकता गायब है और रचनात्मकता तथा कुछ नया और अलग हटकर करने के नाम पर एक भौंडा सा प्रयास किया जाने लगा है। आयुष्मान ने इस गाने को एक नया ही अंदाज दे दिया है जिसे क्लासिक गीत की श्रेणी में तो नहीं रखा जा सकता। इससे पहले उन्होंने अपनी फिल्म ‘नौटंकी साला’ में भी दो पुराने श्रेष्ठ गानों को रीमिक्स में पेश किया था जिसे दर्शकों ने खास पसंद नहीं किया था
पुराने गीतों को नए कलेवर में पेश करने का सिलसिला जारी है। आलोचना-प्रत्यालोचना से बचने के लिए जब भी संगीतकार पुराने सदाबहार गीतों को अपनी फिल्म में नए कलेवर के साथ पेश करना चाहते हैं, तो उसे रीमिक्स नहीं, बल्कि ट्रिब्यूट का नाम दे देते हैं। अक्षय कुमार की फिल्म ‘बॉस’ में ‘हर किसी को नहीं मिलता’ गीत को नए संयोजन और नए अंदाज में पेश किया गया था। उस समय जब इसकी आलोचना हुई थी तो कहा गया था कि इस गीत से अक्षय कुमार स्वर्गीय फिरोज खान को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते थे। एक और गीत आपको याद होगा जो ’वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा’ में पेश किया गया था। इसका गीत ‘तैयब अली प्यार का दुश्मन’ को सुनते ही श्रोताओं की आंखों के सामने ‘अमर अकबर एंथनी’ में ऋषि कपूर पर फिल्माए गए इसी कव्वाली की तस्वीरें घूम गयी थी। इसे देख उन दर्शकों ने सिर पीट लिया था जिन्होंने ‘अमर अकबर.’ में ओरिजनल इस कव्वाली का लुत्फ लिया था। ऋषि कपूर का नीतू सिंह के प्रति जिस दीवानेपन को इस गाने के माध्यम से अभिनीत किया गया था उसका अंश मात्र भी इमरान खान नहीं कर पाए थे। साजिद खान की ‘हिम्मतवाला’ के तो सभी गीत मूल ‘हिम्मतवाला’ से ज्यों के त्यों ले लिए गए थे। बस, वाद्य यंत्रों का संयोजन और और पाश्र्व गायक-गायिका नए थे। एक बार लोकप्रियता का परचम छू चुके ’नैनों में सपना’ और ‘ताकीताकी’
जैसे गीत दोबारा अपना जादू नहीं चला पाए। संगीतमय सफल फिल्म ‘आशिकी’ की रीमेक ’आशिकी 2’ के सभी गीत मौलिक थे। ‘आशिकी 2’ की सफलता में काफी हद तक उसके मौलिक संगीत का योगदान है। हां, कभी- कभी पुरानी फिल्म के फ्लेवर के लिए एकदो गीतों को रीमेक में नए कलेवर में ढालकर पेश जरूर किया गया है, पर शेष गीत मौलिक ही रहे हैं। ऑडियंस को पसंद नहीं ‘नौ टंकी साला’ में दो पुराने और लोकप्रिय गीतों को रीमिक्स अंदाज में पेश किया गया। ये गीत थे ‘सो गया ये जहां’ और ‘धक-धक करने लगा’। ये दोनों ही गीत श्रोताओं के एक वर्ग को ही लुभा पाए। हालांकि, इस फिल्म के अन्य मौलिक गीतों ने श्रोताओं के कानों में लंबे समय तक मधुर रस घोला। संभवतः ‘तेजाब’ और ‘बेटा’ के इन लोकप्रिय गीतों का जादू आज भी बरकरार है। इसलिए ‘नौटंकी साला’ में उनके नए रूपांतर लुभा नहीं पाए।
‘चालबाज’ के गीत ‘न जाने कहां से आई है’ से प्रेरित होकर ‘आई मी और मैं’ में ‘ना जाने कहां से आया है’ की रचना की गयी। धुन वही रखी गयी, बोल बदल दिए गए। इस तरह तैयार हो गया दो दशक पूर्व के लोकप्रिय गीत से प्रेरित नए जमाने का एक हिप-हॉप गीत। नए कलेवर में ढले इस गीत को युवा श्रोताओं ने पसंद किया। रचनाशीलता का अभाव पुराने गीतों को रिसाइकल करने पर प्रश्न चिन्ह लगाए जाते रहे हैं। फिल्मी दुनिया से जुड़ी कई शख्सियतें इस संदर्भ में अपना विरोध जाहिर करती रही हैं। अरशद वारसी कहते हैं, मैं खूबसूरत पुराने गानों का नए फिल्मों में इस्तेमाल करने पर खुश नहीं हूं। मुझे पुराने गानों के रिमिक्स पसंद नहीं है।‘ आजकल ऐसे गाने कम हैं, जो श्रोताओं की जुबां पर चढ़े हों। इसलिए पुराने सदाबहार गानों को नयी फिल्मों में लिया जाता है।’ तर्क जो भी हो इतना तो तय है कि जब तक संगीतकार अपनी रचनाशीलता को नयी चुनौतियों के लिए नहीं तैयार करते तब तक उनके सामने पुराने गीतों को तथाकथित रूप से नए अंदाज में पेश करने का विकल्प मौजूद रहेगा साधना शर्मा अरशद वारसी कहते हैं- मैं खूबसूरत पुराने गानों का नए फिल्मों में इस्तेमाल करने पर खुश नहीं हूं। मुझे पुराने गानों के रिमिक्स पसंद नहीं हैं।‘ संगीत पारखी निर्माता-निर्देशक सुभाष घई अपनी बात रखते हुए कहते हैं, ‘पर्सनली मुझे पसंद नहीं है कि किसी पुराने क्लासिक गीत को नए सिरे से किसी फिल्म में लिया जाए। लेकिन आजकल ऐसे गाने कम हैं, जो श्रोताओं की जुबां पर चढ़े हों। इसलिए पुराने सदाबहार गानों को नयी फिल्मों में लिया जाता है।’