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प्रधानमंत्री ने सैन्यकर्मियों को नवाचार प्रमाण पत्र दिये

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नयी दिल्ली 15 जनवरी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नवाचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले सैन्यकर्मियों को आज यहां नवाचार प्रमाण पत्र प्रदान किये। सेना दिवस के मौके पर सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के निवास पर आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के साथ उप राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ,श्री मोदी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने शिरकत की। कार्यक्रम में वायु सेना प्रमुख बी एस धनोआ और नौसेना प्रमुख सुनील लांबा तथा तीनों सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। इससे पहले सुबह सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने सेना दिवस पर 15 सैन्यकर्मियों को वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। श्री मुखर्जी ने वीरता पुरस्कार हासिल करने वाले जवानों और शहीद जवानों के परिजनों से मुलाकात की और उनसे बात की। श्री मोदी ने इस मौके पर नवाचार के क्षेत्र में श्रेष्ठ काम करने वाले सैन्यकर्मियों को नवाचार प्रमाण पत्र प्रदान किये। उन्होंने इन सैन्यकर्मियों के साथ बात भी की।

कोहली-केदार के कहर से भारत की ‘विराट’ जीत

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पुणे, 15 जनवरी, कप्तान विराट कोहली (122) और मैन आफ द मैच केदार जाधव (120) के शानदार शतकों और दोनों के बीच पांचवें विकेेट के लिए हुई रिकॉर्ड 200 रनों की साझेदारी की बदौलत भारत ने पहले वनडे में रविवार को इंग्लैंड को तीन विकेट से हरा दिया। इंग्लैंड से मिले 351 रनों के लक्ष्य को भारत ने 48.1 ओवर में सात विकेट खोकर हासिल कर लिया। रनों का पीछा करते हुए भारत की यह चौथी सबसे बड़ी जीत थी। भारत की जीत के हीरो रहे कप्तान विराट कोहली और केदार जाधव जिन्होंने बेहतरीन शतक लगाकर भारत की जीत सुनिश्चित कर दी। पहली बार वनडे में कप्तानी कर रहे विराट के करियर का यह 27 वां शतक था। उन्होंने 105 गेेंदों में 122 रन की अपनी शतकीय पारी में आठ चौके और पांच छक्के उड़ाए। विराट को तेज गेंदबाज बेन स्टोक्स ने डेविड वेल्ली के हाथों कैच कराया। विराट ने 44 गेंदों में अपना अर्धशतक और 93 गेंदों में शतक पूरा किया। उन्होंने केदार जाधव के साथ पांचवें विकेेट के लिए रिकॉर्ड 200 रनों की साझेदारी की। भारत में पांचवें विकेट के लिये यह अब तक की सबसे बड़ी साझेदारी थी। मैन आफ द मैच केदार ने भी विराट का अच्छा साथ निभाया और अपना शतक पूरा किया। केदार का 13 मैचों में यह दूसरा शतक था। अपने घरेलू मैदान पर खेल रहे केदार ने मात्र 76 गेंदों में 12 चौके और चार छक्के की मदद से 120 रन की दमदार शतकीय पारी खेलकर भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई। केदार जेक बॉल की गेंद पर बेन स्टोक्स के हाथों लपके गए। इंग्लैंड से मिले 351 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी मेजबान भारतीय टीम की शुरुआत ठीक नहीं रही और उसने ओपनर शिखर धवन (1) के रूप में 13 के स्कोर पर अपना पहला विकेट गंवा दिया। इसके बाद केएल राहुल भी कुछ खास नहीं कर सके और आठ रन के स्कोर पर विली की गेंद पर बोल्ड हो गए। लंबे समय बाद भारतीय टीम में वापसी करने वाले सिक्सर किंग युवराज सिंह 12 गेंदों में दो चौके और एक छक्का लगाकर 15 के स्कोर पर स्टोक्स की गेंद पर विकेटकीपर बटलर को कैच थमा बैठे। कप्तानी से इस्तीफा देने के बाद पहली बार बतौर खिलाड़ी खेल रहे महेंद्र सिंह धोनी भी कुछ खास नहीं कर सके और छह गेंदों में एक चौके की मदद से छह रन बनाकर बॉल की गेंद पर विली को कैच दे बैठे। भारतीय टीम एक समय मात्र 64 रन पर चार विकेट गंवाकर मुश्किल हालात में थी। लेकिन कोहली-केदार की जुगलबंदी ने सिर्फ भारत को मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकाला बल्कि मेजबान टीम की जीत भी सुनिश्चित कर दी। कोहली और केदार के आउट होने के बाद अंतिम नौ ओवरों में भारत को 54 रनों की जरुरत थी। लेकिन ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या (नाबाद 40) ने संभलकर खेलते हुए भारत को जीत दिला दी। पांड्या ने रवींद्र जडेजा (13) के साथ सातवें विकेट के लिए 27 अौर रविचंद्रन अश्विन (नाबाद 15) के साथ आठवें विकेट के लिए नाबाद 38 रनों की साझेदारी की। पांड्या ने 37 गेंदों में तीन चौके और एक छक्के की मदद से नाबाद 40 रन बनाए। जडेजा ने 15 गेंदों में दो चौकों की मदद से 13 रनों का योगदान दिया। इसके अलावा अश्विन ने 10 गेंदों में एक छक्के की मदद से नाबाद 15 रन बनाए और छक्का मारकर भारत को जीत दिला दी। इंग्लैंड की तरफ से डेविड विली ने छह ओवर में 47 रन पर दो विकेट, जेक बॉल ने 10 अोवर में 67 रन पर तीन विकेट और बेन स्टोक्स ने 10 ओवर में 73 रन देकर तीन विकेट झटके। 

इससे पहले जेसन रॉय (73), जो रूट (78) और बेन स्टोक्स(62) के शानदार अर्धशतकों से इंग्लैंड ने सात विकेट पर 350 रन बनाकर भारत के सामने 351 रनों का विशाल लक्ष्य रखा। इंग्लैंड का इससे पहले भारतीय जमीन पर सबसे बड़ा स्कोर आठ विकेट पर 338 रन था जो उसने 27 फरवरी 2011 को बेंगलुरू में बनाया था। इंग्लैंड की टीम इस बार इस स्कोर से 12 रन आगे निकल गयी। यह चौथा मौका है जब इंग्लैंड ने भारतीय जमीन पर 300 से ज्यादा रन बनाये हैं। रॉय ने 61 गेंदों पर 73 रन में 12 चौके, रूट ने 95 गेंदों पर 78 रन में चार चौके और एक छक्का तथा स्टोक्स ने मात्र 40 गेंदों पर दो चौके और पांच छक्के उड़ाते हुये 62 रन ठोक डाले। कप्तान इयोन मोर्गन ने 28, जोस बटलर ने 31, मोइन अली ने 28 और डेविड विली ने नाबाद 10 रन बनाए। भारतीय गेंदबाजों ने छह वाइड और चार नो बॉल सहित 22 अतिरिक्त रन भी लुटाये। भारतीय गेंदबाजों में हार्दिक पांड्या और जसप्रीत बुमराह सबसे सफल रहे। पांड्या ने नौ ओवर में 46 रन पर दो विकेट, बुमराह ने 10 ओवर में 79 रन पर दो विकेट, उमेश यादव ने सात ओवर में 63 रन पर एक विकेट और रवींद्र जडेजा ने 10 ओवर में 50 रन पर एक विकेट लिया। टेस्ट सीरीज में जबरदस्त प्रदर्शन करने वाले स्टार ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन खाली हाथ रहे। वह आठ ओवर में 63 रन लुटाकर कोई विकेट नहीं ले पाए। इंग्लैंड ने अच्छी शुरूआत करते हुये पहले विकेट के लिये 39 रन जोड़े। एलेक्स हेल्स(09) को बुमराह ने अपने सीधे थ्रो से रनआउट किया। लेकिन इसके बाद रॉय और रूट ने दूसरे विकेट के लिये 12.1 ओवर में 69 रन की साझेदारी की। रॉय को जडेजा ने पूर्व कप्तान और विकेटकीपर महेंद्र सिंह धोनी के हाथों स्टम्प कराया। रूट ने फिर कप्तान मोर्गन के साथ तीसरे विकेट के लिये 49 रन जोड़े। मोर्गन को पांड्या ने अपना शिकार बनाया और उनका कैच धोनी ने लपका। भारत को तीसरा विकेट मिलने के बावजूद राहत नहीं मिली। रूट ने बटलर के साथ चौथे विकेट के लिये 10.5 ओवर में 63 रन ठोक डाले। बटलर को पांड्या ने आउट किया। इंग्लैंड का चौथा विकेट 220 के स्कोर पर गिरा। बुमराह ने रूट को 244 के स्कोर पर पवेलियन लाैटाया। लेकिन इसके बाद स्टोक्स और अली ने छठे विकेट के लिये मात्र 5.3 ओवर में 73 रन ठोक डाले। इस साझेदारी ने भारतीय गेंदबाजों को बैकफुट पर धकेल दिया। इंग्लैंड ने आखिरी आठ ओवर में 105 रन धुन डाले। इंग्लैंड की टीम 42 ओवर में 245 के स्कोर से 50 ओवर में 350 के स्कोर पर पहुंच गयी। स्टोक्स के पांच छक्कों ने भारतीय गेंदबाजों के सारे समीकरण बिगाड़ दिये। स्टोक्स ने केदार जाधव पर एक छक्का, बुमराह पर दो छक्के, अश्विन पर एक छक्का और उमेश पर एक छक्का लगाया। अली और विली भी पीछे नहीं रहे और उन्होंने भी एक एक छक्का जड़ा। 

मध्य प्रदेश में 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई की सुविधा

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खरगोन 15 जनवरी, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि किसानों को 5 हार्सपॉवर मोटर पंप पर 26 हजार रूपये की सब्सिडी दी जायेगी। प्रदेश के 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाई जायेगी। श्री चौहान आज यहां जिले के ग्राम बिस्टान में 350 करोड़ रूपये लागत की उदवहन सिंचाई परियोजना का भूमि-पूजन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 11 सालों में नर्मदा नदी के जरिये 5 लाख 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाई गई। साथ ही 2400 मेगावाट की बिजली का उत्पादन हुआ है। प्रदेश के 16 जिलों में पेयजल और उद्योग के लिये पानी नर्मदा नदी से दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि खरगोन जिले के हर हिस्से में सिंचाई के लिये पानी सरकार उपलब्ध करवायेगी। 18 जनवरी से प्रदेश में 'चलें स्कूल अपने लिये'अभियान चलेगा। आधिकारिक जानकारी के अनुसार बिस्टान परियोजना से इंदिरा सागर सिंचाई परियोजना की नहरों से खण्डवा, खरगोन और बड़वानी जिले के एक लाख 23 हजार हेक्टेयर कमाण्ड क्षेत्र को सिंचाई सुविधा होगी। इससे ऊँचाई वाले क्षेत्र जहाँ नहर से सिंचाई संभव नहीं है, उन्हें सुविधा प्राप्त होगी। योजना से 22 हजार हेक्टेयर रकबा सिंचित होगा। 

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिये वाम मोर्चा ने जारी की प्रत्याशियों की सूची

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लखनऊ, 15 जनवरी, वाम मोर्चा ने आज उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के 58, मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) के 18 और मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा लेनिनवादी) के 17 उम्मीदवारों की सूची जारी की। भाकपा के उम्मीदवारों में खतौली से ब्रह्म सिंह प्रजापति, छाता से कुलभान कुमार, गोवर्धन से पुरूषोत्तम शर्मा, मथुरा से गफ्फार अब्बास, बरेली से कामरेड तारकेश्वर चतुर्वेदी, बीसलपुर से भीमसेन शर्मा, शाहजहांपुर से कामरेड मनीष चंद्रा, ददरौल से रूपा शर्मा, हरदोई से सुलभ त्रिवेदी, संडीला से योगेन्द्र सिंह सूर्यवंशी, लखनऊ पश्चिम से मोहम्मद अकरम, कायमगंज से हरीशचन्द्र नागर, डिबियापुर से अतर सिंह,कुर्सी से विनोद कुमार यादव और झांसी नगर से लक्ष्मण सिंह परिहार शामिल हैं। इसके अलावा ललितपुर से पर्वत लाल अहिरवार, तिंदवारी से श्याम बाबू तिवारी, बबेरू से हासिब अली, नारायणी से संपत बाल्मिकी, चित्रकूट से अमित यादव, मानिकपुर से महेन्द्र प्रताप वर्मा, हुसैनगंज से राकेश कुमार प्रजापति, खागा से हीरालाल चौधरी, रामपुर खास से कमरूद्दीन, सिराथू से शिव सिंह यादव, इलाहाबाद दक्षिण से आमिर हबीब उर्फ मुन्ना मजदूर, बारा से अयोध्या प्रसाद आदिवासी, सुल्तानपुर से अरविंद कुमार पांडे, बीकापुर से बद्री प्रसाद यादव, जलालपुर से श्याम नारायण पांडेय, नानपारा से कुलराज यादव, तुलसीपुर से कल्लू सिंह चौहान, उतरौला से धर्मेन्द्र मिश्रा, महराजगंज से रामकेवल, फाजिलनगर से मोहन गौड, देवरिया से राकेश कुमार पाठक, रामपुर कारखाना से आनन्द चौरसिया, अतरौलिया से त्रिलोकीनाथ, गोपालपुर से इम्तियाज बेग, सगडी से श्रीकांत सिंह, मुबारकपुर से रामहर्ष यादव, निजामाबाद से जितेन्द्र हरि पांडेय, फूलपुर पवई से रामज्ञा यादव, मधुबन से रामकुवंर सिंह, घोसी से अनीस खान, मोहम्मदाबाद गोहाना से रामकुमार भारती, रसडा से सत्यप्रकाश सिंह, बांसडीह से ओमप्रकाश कुंवर, बेरिया से राम दयाल यादव, मुंगरा बादशाहपुर से सुभाष पटेल, मछलीशहर से सुवाश गौतम, जफराबाद से जयप्रकाश सिंह, जहूराबाद से राम परीक्षा यादव, पिंडरा से श्यामलाल सिंह, वाराणसी कैंट से अजय मुखर्जी, ज्ञानपुर से सुशील कुमार श्रीवास्तव, राबर्टसगंज से सरमा धांगर अौर अोबरा से बहादुर राम पनिया का नाम शामिल है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवारों में स्याना से जगबीर सिंह भाटी, एटा से राजाराम यादव, अमापुर से सालिकराम लोधी, मुरादाबाद(ग्रामीण) से ब्रह्मास्वरुप, ठाकुरद्वारा से अतीक अहमद, बक्शीका तालाब से छोटेलाल रावत, इटावा शहर से अमर सिंह शाक्य, कानपुर से अमर सिंह सैनी, सांडी से संतोष वर्मा, कश्ता से अरविन्द पासवान, फतेहपुर से गया प्रसाद, सराव से फूलचन्द्र, अकबरपुर से राजाराम निषाद, सेवापुरी से डा0 श्यामलाल मौर्या, वाराणसी दक्षिण से शिवनाथ यादव, बस्ती सदर से के के तिवारी, बलिया शहर से शैलेष सिंह और नोएडा से गंगेश्वर दत्त शर्मा का नाम शामिल है। माकपा लेनिन उम्मीदवारों की सूची में चुनार से भक्त प्रकाश श्रीवास्तव, सकलडीहा से रमेश राय, दुद्धी से बीगन राम गोंड, जमनिया से राम प्यारे राम, मोहम्मदाबाद से सगीर अहमद, सिकन्दरपुर से श्रीराम चौधरी, खजनी से श्याम चरण, सिसवा से हरीश जायसवाल, पटरौना से हृदय नारायण कुशवाहा, वारणसी उत्तर से अमन अख्तर, हरगांव से अर्जुन लाल, बिसवां से मनोज रावत, महोली से ज्ञान प्रसाद, पूरनपुर से रामकान्ति, काल्पी से शिव वीर सिंह, कटेहरी से मुनीर अहमद और भोरावल से राम प्रवेश कौल का नाम शामिल है।

दामन पर लगे दंगे के दाग को छुडाना सपा के लिये नहीं है आसान : मायावती

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लखनऊ, 15 जनवरी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने आज कहा कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतों को हासिल करने की लालसा में कांग्रेस के साथ गठबंधन को आतुर सत्तारूढ समाजवादी पार्टी (सपा) को यह नहीं भूलना चाहिये कि उसके दामन पर सांप्रदायिक दंगों का दाग लगा है जो आसानी से धुलने वाला नहीं है। अपने 61वें जन्मदिवस के मौके पर सुश्री मायावती ने यहां आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सपा के शासनकाल के दौरान मुजफ्फरनगर, दादरी और बुलंदशहर में हुये सांप्रदायिक दंगों की टीस और पीडा आज भी लोगों के दिलों में ताजा है। सपा राज में सूबे के बाशिंदों ने कानून व्यवस्था की बदहाली अपनी आंखों से देखी है और वह दोबारा एेसी पार्टी की सरकार को देखना कतई पसंद नहीं करेंगे। सुश्री मायावती ने सवाल किया कि कांग्रेस और अन्य दलों के लोग सपा के लिये वाेट कैसे मांग सकते हैं जबकि सबको पता है कि इस सरकार का असली चेहरा कैसा है। उन्होंने कहा कि चुनाव बाद यदि बसपा की सरकार बनती है तो सपा के कई नेता जेल की सलाखों में होंगे या प्रदेश छोडने को मजबूर होंगेे। उन्होंने दावा किया कि भाजपा शासित प्रदेशों में भी कानून व्यवस्था की हालत अत्यन्त दयनीय है। ललित मोदी और विजय माल्या जैसे भगोडों के मामले में जनता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दरियादिली देख चुकी है।

मायावती के नकदी बांटने की घोषणा चुनाव आचार संहिता का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन : भाजपा

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लखनऊ, 15 जनवरी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज होने पर गरीब तबके को नकदी बांटने की घोषणा से नाराज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करार देते हुये चुनाव आयोग से हस्तक्षेप की मांग की है। भाजपा के प्रदेश महासचिव विजय बहादुर पाठक ने कहा कि बसपा सुप्रीमो नकदी बांटने का एलान कर खुलेआम मतदाताओं को घूस देने की पेशकश कर रही हैं जो आदर्श चुनाव संहिता का सरासर उल्लघंन है। चुनाव आयोग को सुश्री मायावती के बयान को संजीदगी से लेना चाहिये और अविलंब जरूरी कार्रवाई करनी चाहिये। भाजपा नेता ने दावा किया कि सुश्री मायावती ने स्वीकार कर लिया है कि भाजपा उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने जा रही है और इसीलिये उन्होंने भाजपा को रोकने के लिये बसपा को वोट देने की अपील की।

नीतीश हिंदू त्योहारों के प्रति गंभीर नहीं : सुशील मोदी

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पटना 15 जनवरी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गंगा नदी में नौका दुर्घटना में 24 लोगों की हुई मौत को नीतीश सरकार की गंभीर लापरवाही का नतीजा बताया और कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अन्य धर्मो के त्योहारों के प्रति जितने गंभीर रहते है उतने वह हिंदू धर्म के त्योहारों के प्रति नहीं रहते है । भाजपा विधान मंडल दल के नेता और राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हाल में सम्पन्न प्रकाशोत्सव और कालचक्र पूजा के इंतजाम को लेकर मुख्यमंत्री जिस तरह गंभीर थे और कई बार उसकी तैयारियों की वह समीक्षा करते थे उस तरह वह मकर संक्रांति के मौके पर आयोजित होने वाले पतंग उत्सव को लेकर गंभीर नहीं थे । उन्होंने कहा कि पतंग उत्सव का आयोजन राज्य के कला संस्कृति विभाग ने किया था लेकिन मुख्यमंत्री ने इसे भगवान भरोसे छोड़ दिया था । श्री मोदी ने कहा कि प्रकाश पर्व पर राज्य सरकार के खजाने से 200 करोड़ रूपये से भी अधिक खर्च किया गया लेकिन पटना में गंगा नदी के दियारा क्षेत्र में आयोजित होने वाले पतंग उत्सव के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं किया । उन्होंने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि प्रकाशोत्सव और कालचक्र पूजा की व्यवस्था बेहतर हो सकती है तो हिन्दुओं के पर्व की व्यवस्था अच्छी क्यों नहीं हो सकती है । भाजपा नेता ने कहा कि प्रकाशोत्सव और कालचक्र पूजा के अच्छे इंतजाम का श्रेय मुख्यमंत्री ले रहे हैं तो पतंग उत्सव से लौट रहे 24 लोगों की नौका दुर्घटना में हुई मौत की भी जिम्मेवारी उन्हें ही लेनी चाहिए । उन्होंने कहा कि अच्छी प्रशासनिक व्यवस्था का श्रेय यदि मुख्यमंत्री को जाता है तो विफलता के लिए प्रशासनिक पदाधिकारी को जिम्मेवार ठहराना सही नहीं है । श्री मोदी ने कहा कि पतंग उत्सव में एक लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे जिनमें अधिकांश गरीब तबके के थे । इतनी बड़ी भीड़ के लिए किये गये इंतजाम पर नजर रखने के लिए वहां कोई भी वरिष्ठ अधिकारी मौजूद नहीं था । उन्होंने कहा कि प्रकाशोत्सव और कालचक्र पूजा के इंतजाम पर खुद मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव नजर रख रहे थे लेकिन पतंग उत्सव की तैयारियों की समीक्षा मुख्यमंत्री तो क्या मंत्री तक ने नहीं की । भाजपा नेता ने कहा कि पतंग उत्सव स्थल तक लोगों को ले जाने के लिए सरकार की ओर से नि:शुल्क व्यवस्था की गयी थी लेकिन उनके लौटने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी । उन्होंने कहा कि सरकार को जवाब देना चाहिए कि जब दो बजे स्टीमर खराब हो गयी तो फिर वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गयी और लौटने के लिए पर्याप्त नाव की व्यवस्था क्यों नहीं थी । सरकार को यह भी बताना चाहिए कि कार्यक्रम स्थल पर वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी क्यों नहीं मौजूद थे । 

श्री मोदी ने कहा कि सरकार अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए मनोरंजन पार्क के मालिक को जिम्मेवार ठहरा रही है कि उसके कारण ही वहां भारी भीड़ जुटी थी जबकि सच्चाई यह है कि मनोरंजन पार्क अभी वहां शुरू भी नहीं हुआ है । उन्होंने कहा कि अब सारण और पटना जिला प्रशासन एक दूसरे पर लापरवाही का आरोप लगा रहा है । भाजपा नेता ने कहा कि यदि राज्य सरकार ने वर्ष 2012 में छठ के दौरान 22 लोगों और वर्ष 2014 में दशहरा में भगदड़ के दौरान 33 लोगों की हुई मौत से सबक लेकर पर्याप्त व्यवस्था की होती तो कल के हादसे को टाला जा सकता था । उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि पूरा प्रशासनिक महकमा कल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के आवास पर दही चूड़ा भोज और मुख्यमंत्री की अगवानी में व्यस्त था । श्री मोदी ने कहा कि इस हादसे में पटना के महेन्दू मोहल्ला के 11 लोगों की तथा एक परिवार के चार सदस्यों की मौत हुई है । इस दुर्घटना के कारण पूरा बिहार दुखी और मर्माहत है । सरकार ने गंगा नदी पर बने महात्मा गांधी सेतु के जीणोर्द्धार कार्य के कार्यारम्भ का कार्यक्रम और सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने दही-चूड़ा भोज को रद्द कर दिया । उन्होंने कहा कि इस तरह सरकार को चाहिए कि वह 21 जनवरी को नशे के खिलाफ मानव श्रृंखला के कार्यक्रम को कुछ दिनों के लिए टाल दे । भाजपा नेता ने कहा कि बिहार में पिछले एक साल में 1000 लोगों की डूबने से मौत हुई है । इस तरह के हादसे से बचने के लिए सरकार को सुरक्षा के इंतजामों पर विचार करना चाहिए । कुछ लोगों का सुझाव है कि नावों पर सवारी करने वालों के लिए लाइफ जैकेट पहना अनिवार्य किया जाना चाहिए । उन्होंने कहा कि यह सुझाव अच्छा है । सरकार हादसे में मरने पर लाखो रूपये मुआवजे के तौर पर देती है उससे कम रकम पर लाइफ जैकेट को खरीदा जा सकता है और सकड़ों लोगों की जान बचायी जा सकती है । श्री मोदी ने हादसे की जांच के लिए बनायी गयी कमेटी पर भी सवाल खड़ा किया और कहा कि जो लोग हादसे के लिए जिम्मेवार ठहराये जा सकते हैं उन्हें ही जांच का जिम्मा दिया गया है। उन्होंने कहा कि ऐसे अधिकारियों को अपनी कमियों को छुपाने का मौका मिल गया है। आखिर सरकार कैसे यह अपेक्षा करती है कि जिन्हें जांच का जिम्मा दिया गया है वे ही अपनी कमियों को बतायेंगे । इस बीच नाव हादसे के लिए तीन सदस्यीय जांच कमेटी के गठन पर राजद के वरिष्ठ नेता और विधायक भाई वीरेंद्र ने भी सवाल खड़ा करते हुए कहा कि इस हादसे के लिए जिला प्रशासन जिम्मेदार है तो फिर इस कमेटी में जिलाधिकारी संजय अग्रवाल को कैसे शामिल किया है । उन्होंने कहा कि जांच में उनके शामिल होने से जांच की पारदर्शिता प्रभावित हो सकती है । हालांकि उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत को जांच कमेटी में शामिल करना ठीक है लेकिन जिलाधिकारी को इस कमेटी में रखना सही नहीं है । गौरतलब है कि इस पूरे मामले की जांच की जिम्मेदारी आपादा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत, पटना के पुलिस उप महानिरीक्षक शालीन और जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल को दी गयी है । 

नीतीश का नौका दुर्घटना पर विस्तृत जांच रिपोर्ट देने का निर्देश

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पटना, 15 जनवरी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीरबहोर थाना के एनआइटी घाट के निकट कल हुई नौका दुर्घटना के सभी पहलुओं पर विस्तृत जांच रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है । श्री कुमार ने आज अपने आवास पर उच्चस्तरीय बैठक में नौका दुर्घटना के विभिन्न पहलुओं की विस्तार से जानकारी ली और इसी दौरान मुख्यमंत्री ने आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत से घटना की जांच की अद्यतन स्थिति की जानकारी ली तथा उन्हें घटना के सभी पहलुओं पर शीघ्र विस्तृत रिपोर्ट देने का निर्देश दिया । श्री अमृत ने बताया कि जांच रिपोर्ट जल्द ही सौंप दी जायेगी । गौरतलब है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत, पुलिस उप महानिरीक्षक पटना शालीन और जिलाधिकारी पटना संजय कुमार अग्रवाल नौका दुर्घटना के विभिन्न पहलुओं की जांच कर रहे हैं। बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने पर्यटन विभाग की ओर से गांधी घाट के सामने गंगा दियारा क्षेत्र में आयोजित किये गये कार्यक्रम के संबंध में विस्तृत जानकारी पर्यटन विभाग से ली । मुख्यमंत्री को जानकारी दी गयी कि 24 शवों को नदी से निकाला गया है और सबकी शिनाख्त हो चुकी है । अब इस घटना में कोई लापता नहीं है। पटना के जिलाधिकारी श्री अग्रवाल ने बताया कि सभी 24 मृतकों के आश्रितों को चार-चार लाख रूपये का अनुग्रह अनुदान राज्य सरकार के निर्देश के आलोक में उपलब्ध करा दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव आर के महाजन ने बताया कि सभी घायलों का समुचित इलाज हुआ है । उन्होंने बताया कि सभी शवों का पोस्टमार्टम भी सम्पन्न करा दिया गया है। 

मुख्यमंत्री ने सारी बातों की जानकारी लेने के बाद अधिकारियों को सचेत रहने और गाइड लाइन के मुताबिक नावों का परिचालन सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया । उन्होंने कहा कि प्रशासन का मूल मंत्र सावधानी है । सावधानी हटते ही दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। बैठक में पर्यटन मंत्री अनिता देवी, बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार के उपाध्यक्ष व्यासजी, विकास आयुक्त शिशिर सिन्हा, प्रधान सचिव गृह आमिर सुबहानी, पुलिस महानिदेशक पी0के0 ठाकुर, महानिदेशक अग्निशमन सेवायें पी0एन0 राय, प्रधान सचिव आपदा प्रबंधन प्रत्यय अमृत, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव चंचल कुमार, प्रधान सचिव पर्यटन हरजोत कौर, पुलिस उप महानिरीक्षक पटना शालीन, पुलिस उप महानिरीक्षक सारण अजीत कुमार, पटना, सारण एवं वैशाली के जिलाधिकारी, पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक, सारण एवं वैशाली के पुलिस अधीक्षक समेत अन्य वरीय पदाधिकारी उपस्थित थे। 

पेट्रोल 42 पैसे,डीजल 1.03 रुपये मंहगा

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नयी दिल्ली,15 जनवरी, तेल विपणन कंपनियों ने आज आधी रात से पेट्रोल की कीमतें 42 पैसे तथा डीजल के दाम 1.03 रुपये बढ़ाने की घोषणा की है। इसमें राज्यों द्वारा लगाया जाने वाला कर शामिल नहीं है। देश की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कोरपोरेशन(आइओसीएल) ने आज बताया कि दिल्ली में पेट्रोल की कीमत आज आधी रात से 70.60 रुपये से बढ़कर 71.14 रुपये प्रति लीटर हो जायेगी। डीजल भी 57.82 रुपये की जगह अब 59.02 रुपये प्रति लीटर मिलेगा। एक दिसंबर से अब तक पेट्रोल के दाम चार बार तथा डीजल के दाम 17 दिसंबर से अब तक तीन बार बढ़ाये जा चुके हैं। पिछले चार बार में दिल्ली में पेट्रोल के दाम में 4.21 रुपये की बढोतरी हुयी है। एक दिसंबर को इसमें 17 पैसे,17 दिसंबर को 2.84 रुपये और इस साल दो जनवरी को 1.66 रुपये की वृद्धि की गयी थी। इसी प्रकार गत वर्ष 17 दिसंबर को डीजल को 2.11 रुपये और दो जनवरी को 1.14 रुपये मंहगा किया गया था। तीन बार में इसके दाम 4.45 रुपये प्रति लीटर बढ़े हैं। इस वृद्धि के बाद पेट्रोल डीजल के दाम सवा दो साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गये हैं। आइओसीएल ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोल डीजल की कीमतों तथा डॉलर के मुकाबले रुपये के विनिमय दर में पिछले एक पखवाड़े के दौरान हुये बदलावों को देखते हुये कीमतों में वृद्धि जरूरी हो गयी थी। उसने बताया कि आगे भी इन दाेनों कारकों में उतार-चढ़ाव पर नजर रखी जायेगी। 

बिहार : ऐपवा-आइसा और इनौस का चरणबद्ध आंदोलन चलाने का निर्णय

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  • डीका कुमारी के न्याय के सवाल पर 19 जनवरी को ऐपवा-आइसा-इनौस का मुख्यमंत्री के समक्ष प्रदर्शन.
  • 17 जनवरी को रोहित वेमुला की शहादत के मौके पर आइसा-इनौस का डीएम के समक्ष प्रदर्शन.
  • 26 जनवरी को पूरे राज्य में श्रद्धांजलि व उपवास का होगा आयोजन.


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पटना 16 जनवरी 2016, भाकपा-माले की केद्रीय कमिटी सदस्य व ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी, इनौस के राज्य सचिव नवीन कुमार और आइसा के राज्य अध्यक्ष मोख्तार ने संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि हाजीपुर की महादलित छात्रा डीका कुमारी के न्याय के लिए ऐपवा-आइसा और इनौस ने चरणबद्ध आंदोलन चलाने का निर्णय किया है. आगामी 19 जनवरी को तीनों संगठनों ने संयुक्त रूप से मुख्यमंत्री के समक्ष प्रदर्शन का फैसला किया है. ऐपवा महासचिव काॅ. मीना तिवारी ने कहा कि आज पूरा बिहार डीका कुमारी के लिए न्याय की मांग कर रहा है, लेकिन नीतीश सरकार इस पर खामोश बैठी है. छात्राओं को पंख लगाने का दावा करने वाले नीतीश कुमार को यह बताना होगा कि आखिर स्कूल कैंपसों के भीतर छात्राओं के साथ बलात्कार और उनकी निर्मम हत्या क्यों हो रही है? ऐसी जघन्य हत्या के बाद भी प्रशासन चुप क्यों बैठा है? उन्होंने कहा कि 19 जनवरी को मुख्यमंत्री के समक्ष विशाल प्रदर्शन के बाद 26 जनवरी को पूरे राज्य में श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन किया जाएगा और इस दिन उपवास रखा जाएगा.

उन्होंने आगे कहा कि जहां पूरा प्रशासन अपराधियों के बचाव में खड़ा है. छात्रा की हत्या करने कोई बाहर से अपराधी नहीं घुसे थे, बल्कि ऐसे लोग शामिल हैं, जो स्कूल व्यवस्था से जुड़े हुए हैं. जिले के एसपी व डीएम ने ने केवल पहले लापरवाही बरती बल्कि अब भी गैरजिम्मेदार बने हुए हैं. बिहार सरकार को इस मसले पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए. वहीं, आइसा राज्य अध्यक्ष मोख्तार ने कहा कि रोहित वेमुला की शहादत के मौके पर कल दिनांक 17 जनवरी को आइसा-इनौस ने डीएम के समक्ष प्रदर्शन का निर्णय किया है. कल पूरे बिहार में जिला मुख्यालयों पर यह प्रदर्शन किया जाएगा. पटना में कल  कारगिल चैक से 12 बजे मार्च निकलेगा. इसकी तैयारी को लेकर आज अंबेदकर छात्रावास महेन्द्र व सैदपुर, इकबाल व नदवी, रमना रोड के विभिन्न लाॅज आदि जगहों पर हुआ. इसमें विकास, बाबू साहब, हैदर, तौफीक आदि छात्र नेता शामिल थे. इनौस के मनीष कुमार सिंह ने कहा कि नौजवानों के बीच भी कार्यक्रम को लेकर प्रचार अभियान चलाया गया.

ऐपवा-आइसा और इनौस ने मांग की है: 
1. अंबेदकर विद्यालय हाजीपुर में कार्यरत प्रधानाध्यापिका समेत दोषी शिक्षकों को गिरफ्तार किया जाए और इसके लिए जरूरी है कि छात्रा की मां के सामने शिक्षकों एवं स्टाफ की परेड कराई जाए.
2. स्पीडी ट्रायल कर बलात्कारियों हत्यारों की सजा दी जाए.
3. एफआईआर में दलित अत्याचार निवारण अधिनियम, बलात्कार तथ हत्या की धारा जोड़ा जाए.
4. छात्रा के परिजनों को 20 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए.
5. बिहार के सभी अंबेदकर विद्यालयों, कस्तूरबा विद्यालयों में छात्राओं की शिक्षा और स्वस्थ विकास के लिए जरूरी संसाधन मुहैया कराए.
6. बिहार के स्कूल काॅलेजों में पढ़ने वाली लाखों छात्राओं के लिए खुला, लोकतांत्रिक व भयमुक्त वातावरण तैयार करने के लिए ठोस कदम उठाया जाए.
बैठक में 16 जनवरी को हाजीपुर एसपी के समक्ष महिला संगठनों ने प्रदर्शन करने का निर्णय किया है.

आलेख : सपा का घमासान लोकतंत्र पर प्रहार

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उत्तरप्रदेश में चल रहा समाजवादी पार्टी का घमासान देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर करारा प्रहार कहा जा सकता है। राजनीतिक पार्टियां लोकतांत्रिक व्यवस्था का भले ही दम भरती हों, लेकिन इस प्रणाली का राजनीतिक दलों के नेता कितना पालन करते हैं, यह कई बार देखा जा चुका है। पूरी तरह से एक ही परिवार पर केन्द्रित समाजवादी पार्टी अलोकतांत्रिक रुप से आगे बढ़ती हुई दिखाई देने लगी है। समाजवादी पार्टी की खानदानी लड़ाई के चलते पिछले कई दिनों से समाचार पत्रों व विद्युतीय प्रचार तंत्र की मुख्य खबर बनी हुई है। प्रचार माध्यम इस खबर को ऐसे दिखा रहे हैं, जैसे देश में और कोई खबर ही न हो। हो सकता है कि यह सब पश्चिम बंगाल में हो रहे बबाल को दबाने का एक षड्यंत्र हो। हम जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में पिछले कई दिनों से दंगे जैसे हालात बने हुए हैं। जिसमें हिन्दू समुदाय को परेशान किया जा रहा है।

भारत में वंशवाद की राजनीति का खेल लम्बे समय से चल रहा है, इस प्रकार की राजनीति भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर सवालिया निशान खड़ा करने के लिए काफी है। लोकतंत्रीय व्यवस्था को दरकिनार करते हुए राजतंत्रीय व्यवस्था का संचालन करने वाले कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेता इस बात को भूल जाते हैं कि वे लोकतंत्र पर आधारित शासन का संचालन करते हैं। हम जानते हैं कि भारत की वास्तविक सत्ता जनता है, और वह अपने द्वारा ही अपने लिए शासन करती है। चुने हुए नेता जनता के प्रतिनिधि हैं। यानी मुख्यमंत्री और मंत्री या सांसद और विधायक वास्तव में जनता के सेवक हैं। जबकि हमारे देश में इसके विपरीत ही दिखाई देता है। लोकतंत्र की परिभाषा को परे रखकर हमारे राजनेता अपने परिवार को बढ़ाने का ही खेल खेलते हुए दिखाई देते हैं। हालांकि भारतीय राजनीति में वंशवाद को बढ़ावा देने वाला मुलायम सिंह यादव इस प्रकार की राजनीति करने का अकेला उदाहरण नहीं है। हर राज्य में और केंद्र की राजनीति में भी ऐसे अनेक परिवार हैं, जो कई पीढ़ी से राज भोगते आ रहे हैं। किसी लोकतंत्र में वंशवाद की यह राजनीति एक बड़ा प्रश्न खड़ा करती है, परंतु दिक्कत यही है कि सैकड़ों साल तक गुलामी का दंश झेलते-झेलते भारत का आम जनमानस इसे किसी बुराई की तरह देखना और मानना ही भूल गया है। किसी के दादा मुख्यमंत्री थे। फिर पिता बने और उनके बाद पोते को भी मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया। यह व्यवस्था वास्तव में राजतंत्रीय पद्धति को ही बढ़ावा देते हुए दिखाई देती है। जनप्रतिनिधि बनने के बाद राजनेताओं के परिवार की कई पीढिय़ां सत्ता सुख के सहारे अपना भविष्य बना लेती हैं। इनके लिए देश का हित कतई मायने नहीं रखता। आज हमारा देश ऐसे ही कारनामों की वजह से विश्व के कई देशों से बहुत पीछे होता जा रहा है।

वर्तमान में उत्तरप्रदेश में जिस प्रकार की राजनीति का प्रादुर्भाव होता दिख रहा है। उसकी भनक बहुत पहले से ही मिलने लगी थी, लेकिन फिर पहले जैसे ही सवाल उठने लगे हैं कि क्या राजनीति में कोई नैतिक सिद्धांत बचे हैं या फिर अपने स्वार्थ की बलिबेदी पर नैतिकता की राजनीति एक बार फिर से कुर्बान होने की ओर अग्रसर होती जा रही है। हालांकि इस प्रकार के दृश्य पूर्व में भी कई बार देखे जा चुके हैं कि सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दलों ने बेमेल गठबंधन किए हैं। समाजवादी पार्टी के वर्तमान हालात कमोवेश ऐसे दिखाई दे रहे हैं कि उसके साथ वर्षों तक राजनीति करने वाले महारथी आज सपा से उतरने का मन बना रहे हैं। खबरें यह भी आ रही हैं कि समाजवादी पार्टी के कई बड़े राजनेताओं का आज अपनी ही पार्टी से मोहभंग होता हुआ दिखाई दे रहा है। स्वयं मुलायम सिंह के घर में समाजवादी पार्टी की ओर से दो प्रत्याशी मैदान में ताल ठोकते हुए दिखाई दे रहे हैं।

राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ भी नहीं कहा जा सकता। उत्तरप्रदेश में डूबे हुए जहाज की परिभाषा को शत प्रतिशत चरितार्थ करने वाली कांग्रेस के समक्ष इधर कुआ तो उधर खाई जैसी स्थिति बनती हुई दिखाई दे रही है। बाहर से आयात किए गए नेताओं के सहारे के बाद भी उसकी नैया पार होती हुई नहीं दिखाई दे रही। इसके अलावा करोड़ों रुपए व्यय करने के बाद चुनावी रणनीति को अंजाम देने वाली पीके टीम भी अब कांग्रेस से दूर भागती हुई दे रही है। अपनी वाहवाही लूटने की गरज से वह समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने के लिए उतावले होते दिखाई दे रहे। इससे ऐसा ही लगता है कि पीके टीम की देश में जो छवि बनी हुई है उसे बरकरार बनाए रखने के लिए ही येनकेन प्रकारेण कांग्रेस की सीटों की संख्या में विस्तार देखना चाह रहे हैं। वर्तमान में प्रशांत किशोर की राजनीतिक टीम को संभवत: यही लग रहा होगा कि कांग्रेस के रणनीतिक कौशल की जिम्मेदारी लेने में उसने भूल कर दी।

समाजवादी पार्टी के बारे में राजनीतिक अध्ययन किया जाए तो शायद यही कहना तर्कसंगत होगा कि उसके सामने भी भविष्य को लेकर कई प्रकार के अनसुलझे सवाल खड़े होते हुए दिखाई दे रहे हैं। ताजा सर्वेक्षणों से उपजी राजनीतिक स्थितियों के कारण समाजवादी पार्टी के भविष्य को लेकर असमंजस पैदा हो रहा है। यह तो समझ में आता है कि कांग्रेस अपने राजनीतिक पुनरुत्थान के लिए किसी सहारे की तलाश करने के लिए उतावली हो रही थी, उसे होना भी चाहिए, लेकिन समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव गुट के समक्ष भी आज लगभग कांग्रेस जैसी ही स्थिति बनती हुई दिखाई दे रही है। वह स्वयं भी गठबंधन की दिशा में बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। इससे यह साफ पता चलता है कि समाजवादी पार्टी का कोई भी गुट हो अपने अकेले दम पर वह इज्जत बचाने लायक सीट प्राप्त नहीं कर सकती। पिछले कई चुनावों में यह साफ देखा गया है कि जो भी राजनीतिक दल कांग्रेस के साथ गया, वहां पर कांग्रेस का तो भला नहीं हुआ, साथ ही साथी दल को भी अस्तित्वहीन कर दिया। तमिलनाडु में जो कुछ हुआ, वह सबको याद होगा ही। वहां तमाम राजनीतिक आंकलनों ने करुणानिधि और कांग्रेस के गठबंधन को बहुमत दिया था, लेकिन जब परिणाम सामने आए तो कांग्रेस करुणानिधि को भी ले डूबी।

समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल किसको मिलेगा फिलहाल यह बहुत बड़ा सवाल है। लेकिन सपा के दोनों गुटों ने अपने अपने विकल्प तलाश कर लिए हैं। यह समाजवादी पार्टी की राजनीतिक चाल भी हो सकती है कि चुनाव से पूर्व प्रदेश के छोटे दलों को अपने पाले में कर लिया जाए। इससे सपा की ताकत बढ़ेगी। सपा के दोनों गुटों के अलग अलग चुनाव लडऩे की स्थिति में वोटों का विभाजन होगा और सपा एक दम से कमजोर होती जाएगी। इसी आशंका को ध्यान में रखते हुए ही सपा ने कांग्रेस सहित अन्य कई दलों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।

मुलायम सिंह के परिवार में चल रही लड़ाई के बारे में अध्ययन किया जाए तो यही दिखाई देता है कि इस घमासान में केवल उन्ही के परिवार का हित और अहित है, इस लड़ाई से आम जनता को कोई सरोकार नहीं है, फिर भी हमारे देश के प्रचार माध्यम इस लड़ाई को ऐसे प्रस्तुत कर रहा है, जैसे इसी खबर से देश का सब कुछ लेना देना हो। वास्तव में प्रचार माध्यमों को ऐसी सभी खबरों से दूर रहना चाहिए, जिससे केवल एक ही परिवार को बढ़ावा मिल रहा हो। हालांकि देश में जिस प्रकार की पत्रकारिता की जा रही है, उससे यही संकेत मिलता मिलता है कि इस प्रकार की खबरें समाज के सामने परोसना उनकी मजबूरी बन गई हो। इसके पीछे कई प्रकार के निहितार्थ भी हो सकते हैं। कहने वाले तो यह भी कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि इसके पीछे बहुत बड़ा लेनदेन का खेल चल रहा है। एक चैनल के संवाददाता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमने परिश्रम करके समाजवादी पार्टी के विरोध में एक खबर भेजी, लेकिन वह किसी कारण से प्रसारित न हो सकी। आज के समय में ऐसे कारणों की तलाश करना बहुत जरुरी है। देश में वास्तव में लोकतंत्र का शासन है तो फिर प्रचार और प्रसार माध्यमों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सुर्खियों बटोरने की कवायद के चलते कहीं हम अपने देश के सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक ताने बाने को नजरअंदाज तो नहीं कर रहे। राजनीतिक दलों के साथ ही देश के प्रचार माध्यमों को यह भी ध्यान रखना है कि जनता जब किसी को सत्ता सौंप सकती है तो वह सत्ता से उतार भी सकती है। उत्तरप्रदेश में निकट भविष्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जनता सब कुछ देख रहीं हैं। चुनाव के बाद यह पता चलेगा कि प्रदेश की जनता किसे प्रदेश की सत्ता सौंपेगी।





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सुरेश हिंदुस्थानी
मोबाइल 09455099388

विशेष : शहरी कांक्रीट में भटकते जंगली जानवर

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ऐसा लगता है कि अपनी रिहाईश को लेकर  इंसान और जंगली जानवरों के बीच जंग सी छिड़ी हुई है. जंगल नष्ट हो रहे हैं और वहां रहने वाले शेर चीते और तेंदुए जैसे शानदार जानवर कंक्रीट के आधुनिक जंगलों में बौखलाए हुए भटक रहे हैं. उनके लिए जंगल और शहर के बीच का फर्क मिटता जा रहा है. औद्योगीकरण, और विकास के नाम पर पर्यावरण को नष्ट किया जा रहा है, कांक्रीट के जंगल बहुत तेजी से उगाये जा रहे हैं. पूंजीवाद के देवताओं ने अपने विकास और निवेश के दायरे को जंगलों के पार पंहुचा दिया है. इन सबसे जंगलों का पूरा तंत्र छिन्न भिन्न हो गया है वहां की खाद्य श्रृंखला बिखर गई हैं और नदियां सूख रही हैं. अवैध शिकारी और लकड़ी व खनन के ठेकेदार वहां डेरा जमाये हुए हैं. राष्ट्रीय राजमार्गों ने भी जंगलों के भूगोल को बदल डाला है इसकी वजह से जानवर  दुर्घटनाओं के शिकार भी हो रहे  है. इस इंसानी कहर से परेशान होकर जंगली जानवर उन्हीं इंसानों की बस्तियों की तरफ भागने को मजबूर हुए हैं जो इसके लिए जिम्मेदार है. अब वे शहरों में भी पनाह तलाश रहे हैं. उन्हें कहाँ पता होगा कि शहरों में भटकाव को कोई मंजिल नहीं होती हैं. अरावली के जंगलों से मंडावर गावं की तरफ भागे उस तेंदुए  की गुनाह भी यही थी कि वह इंसानी बस्तियों में पनाह तलाश रहा था जहाँ बीते 24 नवम्बर को इंसानों ने उसे पीट-पीटकर मार डाला. इस दौरान पुलिस और वन विभाग की टीम अक्षम होकर तमाशा देखती रही. वे चाहते तो समय पर पहुँच सकते थे और तेंदुए को सुरक्षित पकड़ कर उसे “भीड़ के न्याय” से  बचा भी सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका. गावं वालों का कहना है कि वेदहशत में थे इसीलिए उन्होंने तेंदुए को मार डाला.  इससे पहले 2011 में भी इसी “खतरे” की वजह से फरीदाबाद के खेड़ी गुजरान में भीड़ ने एक तेंदुए को पीट-पीटकर मार डाला था.

लेकिन इंसानों से ज्यादा खतरे में तो अरावली के वन्य जीव हैं. सर्वाच्च न्यायालय के आदेश के बावजुद भी गुडगांव की अरावली पर्वत श्रंखला में अवैध खनन औऱ प्राकर्तिक पेड़ों को काटा जा रहा है जो यहाँ सदियों से रहने वाले वन्य जीवों के जीवन का आधार रहे हैं. अरावली पर बिल्‍डरों ने भी अपना कब्‍जा जमाया हुआ है वहां जगह-जगह निर्माण गतिविधियां जारी हैं जिसकी वजह से तेंदुओं जैसे जंगली जानवर भागे फिर रहे हैं .पिछले दो सालों में वहां कम से कम आधा दर्जन तेंदुए सड़क दुर्घटना और भीड़ की न्याय की वजह से मारे जा चुके हैं. पिछले कुछ सालों में देशभर में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिससे पता चलता है कि जंगली जानवर अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे की वजह से जीने के नए तरीके खोजने को मजबूर है लेकिन यह उपाय भी उनके लिए जानलेवा साबित हो रही है. कुछ दिन पहले ही भोपाल शहर के कोलार क्षेत्र स्थित दानिश हिल्स मे बाघ को देखा गया है जिसने वहां वहां पर एक सुअर का शिकार भी किया. मुंबई जैसे शहरों में जंगली जानवरों का दिखाई दे जाना बहुत आम हो गया है. 2011 में फिल्म अभिनेत्री और राज्य सभा सांसद हेमा मालिनी के मुंबई स्थित बंगले में तेंदुआ घुस गया था. दरअसल मुंबई शहर फैलते-फैलते  जंगलों के पास तक पहुँच  चूका है जहां तेंदुए और दूसरे जंगली जानवर रहते है, बढ़ते दखल के चलते अब वे गाहे-बगाहे शहर में विचरण करने को मजबूर हैं. इसी तरह से पुणे, दिल्ली, ,मेरठ  और गुड़गांव जैसे शहरों में इस तरह की घटनायें सामने आयीं हैं.

गुजरात के जूनागढ़ शहर के बाहरी इलाकों में बब्बर शेरों का देखा जाना बहुत आम हो गया है. पछले साल  भोपाल के कलियासोत क्षेत्र में एक बाघ ने तो अपना इलाका ही बना लिया था . जिसकी वजह से कई महीनों तक शहर में दहशत बनी रही . जाहिर है पूरे देश में ऐसी घटनाएं रूकने की बजाए बढ़ती जा रही हैं, ऐसे में सवाल पुछा जाना चाहिए कि जानवर इसानों की बस्ती में घुस रहे हैं या इंसान जानवरों के क्षेत्र को कब्जा रहे हैं? आज़ादी के वक्त भारत की 70 फीसदी जमीन पर जंगल था लेकिन हम इसे 24 फीसदी तक ले आये हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में साढ़े 12 लाख हेक्टेयर में फैली जंगल की जमीन पर इंसानों ने अपनी अवैध बस्तियां बसा ली हैं. यह आंकड़ा  पर्यावरणीय जरूरतों के हिसाब से भी बहुत कम है  आदर्श स्थिति में देश में कम से कम 33 फीसदी ज़मीन पर जंगल होना चाहिए. इन सबकी की वजह से वन्यजीवों के संख्या में बहुत तेजी से कमी आई है और कई प्रजातियाँ तो विलुप्त भी चुकी है.  वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर 2020 तक वन्य जीवों का दो तिहाई से भी ज्यादा हिस्सा विलुप्त हो जाएगा. इसी तरह से पिछले 100 सालों में बाघों की कुल संख्या में लगभग 96 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. 

तर्क दिया जा सकता है कि मंडावर गावं लोग तेंदुये से डर गये थे इसलिए उसकी भीड़ द्वारा हत्या कर दी गयी .लेकिन अगर अगर गहराई से विचार किया जाए तो इससे कई सवाल उठेंगें जो मौजूदा दौर में इंसानों के जीने के तरीके और और प्रकृति व धरती के दुसरे प्रजातियों के प्रति हमारे व्यवहार को लेकर कई बुनियादी सवाल खड़े करते हैं. सोचने वाली बात ये है कि जंगली जानवरों और इंसानों के बीच यह टकराव एकतरफा है जंगली जानवर हमारे घरों में नहीं बल्कि बल्कि हम उनके घरों में घुस रहे हैं. हम उनके आस्तित्व लिये खतरा बनते जा रहे हैं. दावा तो धरती के सबसे बुद्धिमान प्राणी का है लेकिन हम यही नहीं समझ पा रहे हैं कि जंगल और यहाँ रहने वाले जानवर  हमारी जैव विविधता का अभिन्न हिस्सा हैं. अगर यह खत्म होंगें या इनकी संख्या कम होगी तो इसके असर से हम भी नहीं बच सकेंगें. मानवता को प्रकृति जल , जंगल जमीन और दूसरी प्रजातियों के प्रति अपनी  अवधारणा को लेकर तत्काल विचार करने की जरूरत है.  इस एक इकतरफा टकराव और पर्यावरणीय असंतुलन से होने वाली तबाही को हम इंसान ही टाल सकते हैं. 





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जावेद अनीस 
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हुमा कुरैशी की फिल्म ‘वायसराय हाउस’ का बर्लिन में प्रीमियर

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अभिनेत्री हुमा कुरैशी की पहली अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘वायसराय हाउस’ इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई हैं। यह फिल्म बर्लिने में प्रीमियर के लिए तैय्यार है। ‘बेंड इट लाइक बैकहम’ फेम गुरिंदर चड्ढा व्दारा निर्देशित यह फिल्म एक ऐतिहासिक कहानी हैं। जिसमें एक प्रेम कहानी को दर्शाया गया हैं। फिल्म वायसराय हाउस से हॉलिवुड में हुमा के करीयर की शुरूआत हुई हैं। भारत के आखरी वायसराय के मुस्लिम दुभाषिया आलिया की भुमिका हुमा ने इस फिल्म में निभायी हैं। इस फिल्म में वायसराय की भुमिका में ह्युग बोनाविले और उनकी पत्नी के रूप में गिलीयन एंडरसन नजर आयेंगीं। वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन और उनके समुदाय के बीच के मतभेद और संघर्ष के दौरान खिल रहीं हुमा कुरैशी और ‘100 फुट जर्नी’ फेम अभिनेता मनिष दयाल की प्रेम कहानी नजर आयेंगीं।

इस ऐतिहासिक फिल्म के ट्रेलर को देखने के बाद दर्शकों की फिल्म को लेकर दिलचस्पी ओर बढ गयीं। अंतरराष्ट्रीय समारोह में दिखायी जानेवाली हुमा कुरैशी की यह तीसरी फिल्म होंगी। 2012 के कान्स फिल्म फेस्टिवल में उनकी डेब्यु फिल्म गैंग्स ऑफ वसेपुर दिखायीं जा चुकीं हैं। 2014 के बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में डेढ इश्किया दिखायी गयी थी। बर्लिनेल 2017 में अधिकारिक तौर पर वायसराय हाऊस फिल्म का चयन किया गया हैं। और यहा फिल्म का वल्ड प्रिमीयर हो रहा हैं। हुमा की अगली फिल्म जॉली एल एल बी-2 के प्रमोशन के बाद हुमा अपनी निर्देशिका गुरिंदर और बाकी टिम को बर्लिन में इस फेस्टिवल में शामिल होने के लिए जायेंगीं। सूत्रों के अनुसार, “हुमा हमेशा से ही अपने व्यावसायिक सिनेमा में बेहतरीन कहानी रहीं फिल्में करने में कामयाब रहीं हैं। जॉली एलएलबी 2 के बाद अब वह बर्लिन जाकर अपनी फिल्म बायसराय हाऊस प्रमोट करेंगीं। लगता हैं, हुमा के लिए यह साल काफी रोमांचक रहनावाला हैं। क्योंकि, जॉली एलएलबी 2 और वायसराय हाऊस जैसी उनकी लोकप्रिय और प्रत्याशित फिल्में रिलीज हो रहीं हैं।“

अभिनेता-गायक आयुष्मान खुराना मिले इंडियन आइडल के प्रतिभागियों से

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अभिनेता-गायक आयुष्मान खुराना मिले इंडियन आइडल के प्रतिभागियों से इंडियन आइडल के प्रतिभागी खुदा बख्श और हरदीप सिंह पंजाब के रहने वाले हैं। हाल ही में चंडीगढ एक सूत्र ने बताया, ‘‘आयुष्मान को जब पता चला कि वे इंडियन आइडल के प्रतिभागी हैं, तो वह खड़े हुये और उनका अभिवादन किया। इस तीनों ने संगीत पर बात एवं चर्चा की। आयुष्मान ने इस शो के बारे में बात की और पूछा कि टाॅप 14 में आने पर प्रतिभागियों को कैसा महसूस हो रहा है।‘‘ हरदीप और खुदा बख्श अभिनेता आयुष्मान से मिलकर बेहद खुश हुये। उन्होंने आयुष्मान से फिल्मों और उनके अगले अलबम के बारे में पूछा। इन दोनों का कहना है, ‘‘आयुष्मान काफी विनम्र इंसान हैं और उन्होंने हमसे ऐसे बात की जैसे कि हम उनके दोस्त हैं। उन्होंने हमें संगीत के बारे में कुछ टिप्स भी दिये और इंडियन आइडल 9 के लिये हमें शुभकामनायें दीं।‘‘गौरतलब है कि क्रिकेट की दुनिया की कई दिग्गज हस्तियों ने इंडियन आइडल के प्रतिभागियों की सराहना की है और उन्हें सपोर्ट कर रहे है ं। सचिन तेन्दुलकर ने आइडल प्रतिभागी थुम्पटेन सेरिंग के बारे में ट्वीट किया था और वीरेन्द्र सहवाग ने पंजाबी प्रतिभागियों द्वारा अनु मलिक को इंडियन आइडल के मंच पर डांस कराये जाने के बारे में ट्विटर पर लिखा था।

विशेष : सेना की साख में सुराख होना चिन्तनीय

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कभी-कभी एक आवाज करोड़ों की आवाज बन जाती है। जब कोई मानव का दम घुट रहा हो और वह घुटन से बाहर आना चाहता है तो उसकी आवाज एक प्रतीक बन जाती है। ऐसा ही बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव और सीआरपीएफ के एक जवान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हुआ है। सुरक्षा बलों और सेना के जवान की मनोस्थिति को समझने एवं सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार की गहराई को जानने के लिए यह पर्याप्त हैं। इन वीडियो ने पूरे देश में हलचल मचा दी है, अनेक सवाल खड़े कर दिये हैं, खराब खाने की पोल खोल दी है, नौकरी में एवं दी जाने वाली सुविधाओं में भेदभाव को उजागर कर दिया है। सीआरपीएफ के जवानों को न वेलफेयर मिलता है न समय से छुट्टियां। आर्मी में पेंशन है, हमारी पेंशन थी वो भी बंद हो गई। बीस साल बाद नौकरी छोड़कर जाएंगे तो क्या करेंगे? हमें पूर्व कर्मचारी की सुविधा नहीं, केंटीन की सुविधा नहीं, मेडिकल की सुविधा नहीं, जबकि ड्यूटी हमारी सबसे ज्यादा है। यह भेदभाव क्यों? जवानों को कई स्तर पर भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ रहा है। इन स्थितियों से सैनिकों में बढ़ती उदासीनता और निराशा चिंताजनक है। अगर उनके काम करने की परिस्थितियों को सुधारा नहीं गया तो युवाओं में सशस्त्र बलों का आकर्षण कम होगा तो फिर इनमें भर्ती होने कौन जाएगा। बीएसएफ और सीआरपीएफ के जवानों की व्यथा काफी शर्मसार कर देने वाली है। अगर सीमा सुरक्षा बल और भारतीय सेना में भ्रष्टाचार है तो फिर सरकार को उचित कदम उठाने ही होंगे। अन्यथा प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपना कोरा सपना ही बन कर रह जाने वाला है। 

सेना में भर्ती होने वाले जवानों के पास भी करियर विकल्पों की कमी नहीं हैं। वे चाहे तो आरामदेह जिन्दगी वाली अच्छी नौकरी या छोटा-मोटा धंधा चला सकते हैं लेकिन उन्होंने देश की सुरक्षा का चुनौतीपूर्ण कार्यक्षेत्र चुना। इस चुनाव के पीछे उनमें देशभक्ति की भावना के साथ-साथ देश के लिये मर-मिटने की भावना रही है।  अपनी जान हथेली पर रखकर सियाचिन और कारगिल की चोटियों पर शून्य से कम तापमान में ड्यूटी देकर राष्ट्र रक्षा का जुनून। युद्ध हो या फिर आतंकवाद से जूझने का मामला, जवानों ने अपनी शहादत देकर भारत मां की रक्षा की है। सेना के जवान युद्ध के दौरान  और  सीमाओं पर ही अपने आपको न्यौछावर नहीं करते बल्कि देश में कहीं पर भी किसी भी तरह की आपादा एवं संकट होता है जो यही जवान लोगों की जान बचाने के लिए अपना दिन-रात एक कर दिया था। अर्ध सैन्य बलों और सेना का जीवन चुनौतियों के बीच शानदार जिंदादिल तरीके से जीने का दूसरा नाम है। मुश्किल से मुश्किल समय में भी सेना के जवानों का मनोबल हिमालय से भी ऊंचा रहता है लेकिन अपवाद स्वरूप ऐसे मामले सामने आते हैं जो कहीं न कहीं भारतीय सेना का मनोबल तोड़ते हैं और सुरक्षा बलों की साख को कमजोर करते हैं। हम अपने घरों में निश्चिंत होकर सोते हैं क्योंकि हमारी रक्षा के लिए हमारे जवान देश की सरहदों पर खड़े हैं। 

हर भारतीय को सीमा पर खड़े अपने जवानों पर गर्व है। उनकी मेहनत, देशभक्ति की भावना, जटिल से जटिल दौर में देश की रक्षा के अडिग रहने और कुर्बानी की दुहाई हर हिंदुस्तानी देता है। जवान की तस्वीर देख कर ही  हममें देशप्रेम जाग उठता है। लेकिन जब ऐसा ही एक जवान ने बेबस होकर अपनी आवाज उठाए तो उसके अफसरों को अचानक एक शराबी, अनुशासनहीन, दिमाग से हिला हुआ आदमी दिखने लगा । तेज बहादुर यादव ने बड़ा रिस्क लेकर देश को बताया कि सीमा पर पोस्टिंग के दौरान किस घटिया स्तर का खाना मिलता है। उसकी इस बहादुरी के बदले तेज बहादुर की छवि को धुंधलाने में अधिकारियों ने कोई असर नहीं  छोड़ी है।

देश ऐसे नहीं चल सकता, एक चिन्ताजनक स्थिति उभर कर सामने आयी है। भ्रष्टाचार सिर्फ घूस खाना ही नहीं है, बल्कि किसी का हक मारना भी भ्रष्टाचार है। ऐसी स्थिति में सेना ही नहीं सरकार के हर स्तर पर सरकारी पदाधिकारियों के रूप में एक नया वर्ग पनप रहा है। एक नया राष्ट्रीय रोग जन्म ले चुका है। प्रशासनिक अधिकारियों के रूप में एक नया तबका भ्रष्टाचार को नयी शक्ल में अंकुरित कर रहा है। यह वर्ग अपने आपको सबकुछ मानकर चलता है। यह वर्ग अपने नीचे काम करने वालों का शोषण करता है, उनके अधिकारों का हनन करता है। इसी से वर्ग संघर्ष की बुनियाद पड़ती है। तब सद्भावना और भाईचारे का वातावरण नहीं बन सकता। शोषण और शोषित के रहते तथा व्यापक अभावों के रहते हम राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण की कल्पना भी नहीं कर सकते, जहां अधिकार से पहले कर्तव्य को प्रधानता रहती है। इन अधिकारियों की विचित्र मानसिकता एवं कर्मचारियों के प्रति कर्तव्यहीनता ने दोनों सेना के जवानों को जहर उगलने पर विवश किया हो, पर इसे हमें चुनौती के रूप में स्वीकारना चाहिए। यह चुनौती दीवार पर लिखी हुई दिखाई दे रही है। चुनौतियों को स्वीकार कर हम भारतीयों को अपना होना सिद्ध करना होगा, एक संकल्प शक्ति के साथ चुनौतियांे और समस्याओं से जूझने के लिए। 

देश की सरहदों पर बीएसएफ की तैनाती होती है। फिलहाल बीएसएफ की 188 बटालियन है। 6,385 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा का जिम्मा इन पर होता है। रेगिस्तानों, नदी-घाटियों, बर्फीले इलाकों में सुरक्षा का जिम्मा बीएसएफ के जवानों पर है। इतना ही नहीं बीएसएफ के जवान बॉर्डर पर तस्करी और घुसपैठ भी रोकते है। हर कुर्बानी करके ये आदर्श उपस्थित करते रहे हैं। करोड़ो देशवासियों के लिए ये अनुकरणीय बनें, आदर्श बने हैं। इन्होंने फर्ज और वचन निभाने के लिए अपना सब कुछ होम कर दिया है। ऐसे लोगों का तो मंदिर बनना चाहिए। इनके मंदिर नहीं बने, पर लोगों के सिर इनके सम्मुख श्रद्धा से झुकते हैं। लेकिन आज जिस तरीके से हमारा राष्ट्रीय चरित्र और सोच विकृत हुए हैं, हमारा व्यवहार झूठा हुआ है, चेहरों से ज्यादा नकाबें ओढ़ रखी है। उसने हमारे सभी मूल्यों को धाराशायी कर दिया है। राष्ट्र के करोड़ों निवासी चिंता और ऊहापोह की स्थिति में हैं। दीये की रोशनी मंद पड़ रही है तेल डालना जरूरी है।

सेना की साख में यह पहला सुराख नहीं है। समय-समय पर अनेक सुराख कभी भ्रष्टाचार के नाम पर, कभी सेवाओं में धांधली के नाम पर, कभी घटिया साधन-सामग्री के नाम पर, कभी राजनीतिक स्वार्थों के नाम पर होते रहे हैं। एक बार नहीं कई बार सुराख हो चुके हैं। कभी जीप घोटाला तो कभी घटिया कम्बल खरीदने पर खूब विवाद हुआ था। कभी बोफोर्स तोप खरीद घोटाला तो कभी ताबूत खरीद में हेराफेरी के मामले उछलते रहे हैं। दाल खरीद में घोटाला हुआ तो दूध पाउडर घोटाला, अंडा घोटाला, घटिया जूतों की खरीद घोटाला भी चर्चित हुआ। हर घोटाला हमें शर्मसार करता रहा है, कुछ समय की हलचलों के बाद फिर नये घोटालों की जमीन बनती गयी है। आखिर कब तक यह चलता रहेगा? मंथन करना होगा इस तरह के विष और विषमता को समाप्त करने का। ईमानदारी अभिनय करके नहीं बताई जा सकती, उसे जीना पड़ता है कथनी और करनी की समानता के स्तर तक। ऐसा करके ही हम जवानों के गिरते मनोबल को संभाल पायंेगे।


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ललित गर्ग)
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विशेष : कत्ल हुए ख्वाबों का खून आपके हाथों में हैं,ओबामा!

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दुनिया नहीं बदली,न जाति, धर्म, नस्ल,रंग के नाम नरसंहार थमा है।
 भारत में जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल हिंदुत्व का सबसे घातक हथियार है,जो अब फासिज्म का राजकाज है।मुक्त बाजार भी वही है।
दुनिया यह देख रही है कि भारत ‘हिंदू राष्ट्रवादी उन्माद’ से कैसे निपटता है!
ओबामा साहेब,मोदी से दोस्ती और हिलेरी के साथ दुनिया बदलने का ख्वाब बेमायने हैं।इस धतकरम की वजह से जाते जाते अमेरिका और दुनिया को डोनाल्ड ट्रंप जैसे धुर दक्षिणपंंथी कुक्लाक्सक्लान के नरसंहारी रंगभेदी संस्कृति के हवाले कर गये आप।दुनिया में वर्ण,जाति रंगभेद का माहौल बदला नहीं,आप कह गये।भारत में हिंदुत्व एजंडा और भारत में मनुस्मृति शान बहाल रखने के तंत्र मंत्र यंत्र को मजबूत बनाते हुए आप कैसे डोनाल्ड ट्रंप को रोक सकते थे,सवाल यह है।सवाल यह भी है कि भारत में असहिष्णुता के फासिस्ट राजकाज के साथ नत्थी होकर अमेरिका में फासिज्म को आप कैसे रोक सकते थे?



कत्ल हुए ख्वाबों का खून आपके हाथों में हैं,ओबामा!
दुनिया नहीं बदली,न जाति,धर्म,नस्ल ,रंग के नाम नरसंहार थमा है।

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विदाई भाषण में सबसे गौरतलब रंगभेद पर बाराक ओबामा का बयान है।रंगभेद पर अपने विचार रखते हुए ओबामा ने कहा कि अब स्थिति में काफी सुधार है जैसे कई सालों पहले हालात थे अब वैसे नहीं हैं। हालांकि रंगभेद अभी भी समाज का एक विघटनकारी तत्व है। इसे खत्म करने के लिए लोगों के हृदय परिवर्तन की जरूरत है, सिर्फ कानून से काम नहीं चलेगा। भारत आजाद होने के बाद,बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर का संविधान लागू हो जाने के बाद,दलितों की सत्ता में ऊपर से नीचे तक भागेदारी के बाद हमारे लोग भी दावा करते हैं कि जाति टूट रही है या फिर जाति नहीं है। हद से हद इतना मानेंगे कि जाति तो है,लेकिन साहेब न अस्पृश्यता है और न रंगभेद कहीं है। सच यह है कि भारत में जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल हिंदुत्व का सबसे घातक हथियार है,जो अब फासिज्म का राजकाज है।मुक्त बाजार भी वही है। दुनियाभर के अश्वेतों को उम्मीद थी कि बाराक ओबामा की तख्तपोशी से अश्वेतों की दुनिया बदल जायेगी।मार्टिन लूथर किंग का सपना सच होगा।ओबामा की विदाई के बाद अब साफ हो गया है कि दुनिया बदली नहीं है।दुनिया का सच रंगभेद है। तैंतालीस अमेरिकी श्वेत राष्ट्रपतियों से बाराक ओबामा कितने अलग हैं,अभी पता नहीं चला है।जाते जाते वे लेकिन कह गये कि सभी आर्थिक संकट को अगर मेहनतकश श्वेत अमेरिकी जनता और अयोग्य अश्वेतों को बीच टकराव मान लिया जाये,तो असल समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता।यही रंगभेद है। ओबामा ने यह भी कहा कि कुछ लोग जब अपने को दूसरों के मुकाबले ज्यादा अमेरिकी समझते हैं तो समस्या वहां से शुरु होती है।ओबामा ने मान लिया की अमेरिका में रंगभेद अब भी है।रंगभेद अब भी है।हमारी आजादी का सच भी यही है। 

यह सच जितना अमेरिका का है,उतना ही बाकी दुनिया का सबसे बड़ा सच है यह।यह भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास भूगोल का सच है जो विज्ञान के विरुद्ध है।
मुक्त बाजार में तकनीक सबसे खास है।तकनीक लेकिन ज्ञान नहीं है।हमने तकनीक सीख ली है और सीख भी रहे हैं।
कहने को जयभीम है।
कहने को नमोबुद्धाय है।
हमारी जिंदगी में न कहीं भीम है और न कहीं बुद्ध है।

हमारी जिंदगी अब भीम ऐप है,जिसमें भीम कहीं नहीं है।हमारी जिंदगी मुक्त बाजार है,जिसमें मुक्ति कहीं नहीं है गुलामी के सिवाय।गुलामगिरि इकलौता सच है। दिलोदिमाग में गहराई तक बिंधा है जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल।जो हमारा धर्म है,हमारा कर्म है।कर्मफल है।नियति है।सशरीर स्वर्गवास है।राजनीति वही। गुलामी का टैग लगाये हम आदमजाद नंगे सरेबाजार आजाद घूम रहे हैं। वातानुकूलित दड़बों में फिर हम वही आदमजाद नंगे हैं।लोकतंत्र के मुक्तबाजारी कार्निवाल में भी हमारा मुखौटा हमारी पहचान है,टैग किया नंबर असल है और बाकी फिर हम सारे लोग नंगे हैं और हमें नंगे होने का अहसास भी नहीं है।शर्म काहे की। इसलिए घर परिवार समाज में कहीं भी संवाद का ,विमर्श का कोई माहौल है नहीं।चौपाल खत्म है खेत खलिहान कब्रिस्तान है।देहात जनपद सन्नाटा है।नगर उपनग महानगर पागल दौड़ है अंधी।हमारे देश में हर कोई खुद को ज्यादा हिंदुस्तानी मानने लगा है इन दिनों और इसमें हर्ज शायद कोई न हो,लेकिन दिक्कत यह है कि हर कोई दूसरे को विदेशी मानने लगा है इन दिनों।

हर दूसरा नागरिक संदिग्ध है।हर आदिवासी माओवादी है।हर तीसरा नागरिक राष्ट्रद्रोही है।देशभक्ति केसरिया सुनामी है।बाकी लोग कतार में मरने को अभिशप्त हैं।याफिर मुठभेड़ में मारे जाने वाले हैं।जो खामोश हैं जरुरत से जियादा,वे भी मारे जायेंगे।चीखने तक की आदत जिन्हें नहीं है।असहिष्णुता का विचित्र लोकतंत्र है। अस्पृश्यता अब भी जारी है।अब भी भारत में भ्रूण हत्या दहेज हत्या घरेलू हिंसा आम है।स्वच्छता अभियान में थोक शौचालयों का स्वच्छ भारत का विज्ञापन पग पग पर है और लोग सीवर में जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं।सर पर फैखाना ढो रहे हैं।  अमेरिका में रंगभेद सर चढ़कर बोल रहा है इन दिनों और मारे यहां जाति व्यवस्था  के तहत हर किसी के पांवों के नीचे दबी इंसानियत अस्पृश्य है।रंगभेद से ज्यादा खतरनाक है यह जाति,जिसे मनुस्मृति शासन बहाल करके और मजबूत बनाने की राजनीति में हम सभी कमोबेश शामिल हैं। विज्ञान और तकनीक जाहिर है कि हमें समता न्याय सहिष्णुता का पाठ समझाने में नाकाफी है उसीतरह ,जैसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र में रंगभेद की संस्कृति उसकी आधुनिकता है और हमारे यहां सारा का सारा उत्तर आधुनिक विमर्श और उसका जादुई यथार्थ ज्ञान विज्ञान ,तकनीक वंचितों, दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के विरुद्ध है।असहिष्णुता,असमता,अन्याय और अत्याचार हमारे लोकतंत्र के विविध आयाम है और बहुलता के खिलाफ अविराम युद्ध है विधर्मियों के खिलाफ खुल्ला युद्ध,सैन्यतंत्र जो अमेरिका का भी सच है।इसलिए बाराक ओबामा की विदाई का तात्पर्य भारतीय संदर्भ में समझना अनिवार्य है। यूपी में दंगल के मध्य नोटबंदी के नरसंहार कार्यक्रम को अंजाम देने के बाद जब अमेरिकी मीडिया भी इसे भारतीय जनता के खिलाफ सत्यानाश का कार्यक्रम बता रहा है,जब विकास दर घट रहा है तेजी से और भारत भुखमरी,बेरोजगारी और मंदी के रूबरू लगातार हिंदुत्व के शिकंजे में फंसता जा रहा है,तब अमेरिकी अश्वेत राष्ट्रपति की विदाई के वक्तभारत के बारे में अमेरिकी नजरिया क्या है,गौरतलब है।एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि अगले पांच साल में भारत की ग्रोथ सबसे तेज रहेगी, लेकिन दुनिया यह भी देख रही है कि वह ‘हिंदू राष्ट्रवादी उन्माद’ से कैसे निपटता है, जिसके चलते अल्पसंख्यकों के साथ तनाव बढ़ रहा है। 
हमारे समय के प्रतिनिधि कवि मंगलेश डबराल ने इस संकट पर बेहद प्रासंगिक टिप्पणी की हैः

आप कहाँ से आ रहे हैं?--फेसबुक से.
आप कहाँ रहते हैं?--फेसबुक पर.
आप का जन्म कहाँ हुआ?--फेसबुक पर.
आप कहाँ जायेंगे?--फेसबुक पर.
आप कहाँ के नागरिक हैं?--फेसबुक के.

गौरतलब है कि विश्व के महान धर्मों के मानने वालों में यहूदी, पारसी और हिन्दू अन्य धर्मावलंबियों को अपनी ओर आकृष्ट करके उनका धर्म बदलने में कोई रुचि नहीं रखते। लेकिन दुनिया में संभवतः हिन्दू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो अपने मानने वालों के एक बहुत बड़े समुदाय को अपने से दूर ठेलने की हरचंद कोशिश करता है और उन्हें अपने मंदिरों में न प्रवेश करने की इजाजत देता है, न देवताओं की पूजा करने की। अबाध पूंजी की तरह मुक्त बाजार की गुलामी का यह सबसे बड़ा सच है कि अस्पृश्यता का राजकाज है और रंगभेद बेलगाम है।रंगभेदी फासिज्म संस्कृति है।

मुक्तबाजार में संवाद नहीं है।हर कोई नरसिस महान है।आत्ममुग्ध।अपना फोटो,अपना अलबम,अपना परिवार,अपना यश ,अपना ऐश्वर्य यही है दुनिया फेसबुक नागरिकों की।मंकी बातें कह दीं,लेकिन पलटकर कौन क्या कह रहा है,दूसरा पक्ष क्या है,इसे सुनने ,देखने,पढ़ने की कतई कोई जरुरत नहीं है।लाइक करके छोड़ दीजिये और बाकी कुछभी सोचने समझने की कोई जरुरत नहीं है। घर परिवार समाज में संवादहीनता का सच है फेसबुक,उसके बाहर की दुनिया से किसी को कोई मतलब नहीं है क्योंकि वह दुनिया मुक्तबाजार है।जहां समता, न्याय, प्रेम, भ्रातृत्व,दांपत्य,परिवार,समाज की कोई जगह नहीं है।बाकी अमूर्त देश है। इस्तेमाल करो,फेंक दो।स्मृतियों का कोई मोल नहीं है।संबंधों का कोई भाव नहीं है।न उत्पादन है और न उत्पादन संबंध है।बाजार है।कैशलैस डिजिटलहै।तकनीक है।तकनीक बोल रही है और इंसानियत मर रही है।इतिहास मर रहा है और पुनरूत्थान हो रहा है।लोकतंत्र खत्म है और नरसिस महान तानाशाह है।राजकाज फासिज्म है। 2008 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान हमने याहू ग्रुप के अलावा ब्लागिंग शुऱु कर दी थी।तब हम हिंदी में नेट पर लिक नहीं पा रहे थे और गुगल आया नहीं था।हाटमेल,याहू मेल,सिफी और इंडिया टाइम्स,रेडिफ का जमाना था।अंग्रेजी में ही लिखना होता था।समयांतर में तब हम नियमित लिख रहे थे बरसों से।महीनेभर इंतजार रहता था किसी भी मुद्दे पर लिखने छपने का।थोड़ा बहुत इधर उधर छप उप जाता था।तबसे विकास सिर्फ तकनीक का हुआ है।बाकी सबकुछ सत्यानाश है।निजीकरण,ग्लोबीकरण उदारीकरण विनिवेश का जादुई यथार्थ है। मीडिया तब भी इतना कारपोरेट और पालतू न था।देश भर में आना जाना था। बाराक ओबामा का हमने दुनियाभर में खुलकर समर्थन किया था। हमारे ब्लाग नंदीग्राम यूनाइटेड में बाकायदा विजेट लगा था अमेरिकी चुनाव के अपडेट साथ ओबामा के समर्थन की अपील के साथ। शिकागो में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ओबामा की आवाज में सिर्फ अमेरिका के ख्वाब नहीं थे,रंगभेद,जाति व्यवस्था,भेदभाव और असहिष्णुता के खिलाफ विश्वव्यापी बदलाव के सुनहले दिनों की उम्मीदें थीं। 

वायदे के मुताबिक इराक और अफगानिस्तान के तेल कुओं से अमेरिकी सेना को निकालने का काम ओबामा ने अमेरिकी हितों के मुताबिक बखूब कर दिखाया।2008 की भयंकर मंदी से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पटरी  पर लाने के काम में उनने व्हाइट हाउस में आठ साल बीता दिये।जायनी वर्चस्व के खिलाफ वे वैसे ही नहीं बोले जैसे अनुसूचितों,पिछड़ों,सिखों,ईसाइयों और मुसलमानों के चुने हुए लोग मूक वधिर हैं।  ओबामा की विदाई के बाद सवाल यह बिना जबाव का रह गया है कि अश्वेतों की अछूतों को समानता और न्याय दिलाने के ख्वाबों का क्या हुआ।ओबामा ने कहा,वी कैन,वी डिड।चुनाव जीतने और पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने के बाद उन्हेोंने क्या किया,यह पहेली अनसुलझी है। भारत में गुजरात नरसंहार में अभियुक्त को क्लीन चिट देकर उनसे अंतरंगता के सिवाय भारतीय उपमहाद्वीप को उनके राजकाज से आखिर क्या हासिल हुआ? अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था को बदलने और अमेरिकी राष्ट्र और सत्ता प्रतिष्ठान पर जायनी वर्चस्व को रोकने में ओबामा सिरे से नाकाम रहे। पहले कार्यकाल में उनने इजराइल की ओर से अमेरिकी विरोधी,प्रकृति विरोधी मनुष्यता विरोधी मैडम हिलेरी क्लिंटन को विदेश मंत्री बनाया तो दूसरे कार्यकाल में उनके एनडोर्स मेंट से ही हिलेरी डेमोक्रेट पार्टी की राष्ट्रपति उम्मीदवार बनीं। नतीजा अब इतिहास है।अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन की हार के बाद, द वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा था , 'जिन 700 काउंटियों ने ओबामा का समर्थन करके उन्हें राष्ट्रपति बनाया, उनमें से एक तिहाई डोनाल्ड ट्रंप के खेमे में चले गए। ट्रंप ने उन 207 काउंटियों में से 194 का समर्थन हासिल किया, जिन्होंने या तो 2008 या फिर 2012 में ओबामा का समर्थन किया था'। इसकी तुलना में उन 2200 काउंटियों में जिन्होंने कभी ओबामा का समर्थन नही किया, हिलेरी क्लिंटन को सिर्फ छह का साथ मिल सका। यानी ट्रंप के खेमे से सिर्फ 0.3 फीसद वोट हिलेरी के खाते में आ सके।आप आठ साल तक व्हाइट हाउस में क्या कर रहे थे कि ट्रंप के हक में यह नौबत आ गयी? आठ साल तक फर्स्ट लेडी रही मिशेल ओबामा की विदाई भाषण में अमेरिका में असहिष्णुता की जो कयामती फिजां बेपर्दा हुई,वह सिर्फ अमेरिका का संकट नहीं है क्योंकि दुनिया कतई बदली नहीं है और न मार्टिन लूथर किंग के ख्वाबों को अंजाम तक पहुंचाने का कोई काम हुआ है।जैसे आजाद भारत में बाबा साहेब अंबेडकर का मिशन है।

युद्धक अर्थव्यवस्था होने की वजह से अमेरिकी जनता की तकलीफें ,उनकी गरीबी और बेरोजगारी में निरंतर इजाफा हुआ है।यह संकट 2008 की मंदी की निरंतरता ही कही जानी चाहिए।दूसरी तरफ यह संकट अब विश्वव्यापी है क्योंकि दुनियाभर की सरकारें,अर्थव्यवस्थाएं व्हाइट हाउस और पेंटागन से नत्थी हैं। इस पर तुर्रा यह कि भारत में भक्त मीडिया का प्रचार ढाक डोल के साथ यह है कि व्हाइट हाउस से विदाई के बाद भी ओबामा और मोदी के बीच हाटलाइन बना रहेगा। ओबामा साहेब,मोदी से दोस्ती और हिलेरी के साथ दुनिया बदलने का ख्वाब बेमायने हैं।इस धतकरम की वजह से जाते जाते अमेरिका और दुनिया को डोनाल्ड ट्रंप जैसे धुर दक्षिणपंंथी कुक्लाक्सक्लान के नरसंहारी रंगभेदी संस्कृति के हवाले कर गये आप।दुनिया में वर्ण,जाति रंगभेद का माहौल बदला नहीं,यह भी आप कह गये। भारत में हिंदुत्व एजंडा और भारत में मनुस्मृति शासन बहाल रखने के तंत्र मंत्र यंत्र को मजबूत बनाते हुए आप कैसे डोनाल्ड ट्रंप को रोक सकते थे,सवाल यह है। सवाल यह भी है कि भारत और बाकी दुनिया में असहिष्णुता के फासिस्ट राजकाज के साथ नत्थी होकर अमेरिका में फासिज्म को आप कैसे रोक सकते थे? गौरतलब है कि आठ साल तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा ने आज अपने आखिरी संबोधन में भी महिलाओं, LGBT कम्युनिटी और मुसलमानों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाने के आह्वान के साथ ख़त्म की। ओबामा की ये स्पीच 'Yes We Can'के उसी नारे के साथ ख़त्म हुआ जिससे उनके पहले कार्यकाल के चुनाव प्रचार की शुरूआत हुई थी। ओबामा ने लोगों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा- "मैंने रोज आपसे सीखा। आप लोगों ने ही मुझे एक अच्छा इंसान और एक बेहतर प्रेसिडेंट बनाया।"बता दें कि उनका कार्यकाल 20 जनवरी को खत्म हो रहा है। इसी दिन डोनाल्ड ट्रम्प नए प्रेसिडेंट के रूप में शपथ लेंगे।  उन्होंने कहा, "हर पैमाने पर अमेरिका आज आठ साल पहले की तुलना में और बेहतर और मजबूत हुआ है।"उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में हारने वाली अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी के मनोबल को बढ़ाने की कोशिश में कहा कि बदलाव लाने की अपनी क्षमता को कभी कम ना आंके। इसका समापन उन्होंने अपने चिरपरिचित वाक्य 'यस वी कैन' (हां, हम कर सकते हैं) से किया।

ओबामा ने स्पीच में कई और खास बातें कही थी। उन्होंने कहा था कि अमेरिका बेहतर और मजबूत बना है। पिछले आठ साल में एक भी आतंकी हमला नहीं हुआ।सीरिया संकट और  तेलयुद्ध के साथ दुनियाभर में आतंकवाद के निर्यात की वजह से दुनियाभर में युद्ध और शरणार्थी संकट के बारे में जाहिर है कि उन्होंने कुछ नहीं कहा। हालांकि उन्होंने कहा कि बोस्टन और ऑरलैंडो हमें याद दिलाता है कि कट्टरता कितनी खतरनाक हो सकती है। उन्होंने अमेरिकी चुनाव में रूस के हस्तक्षेप के आरोपों के बीच दावा किया कि अमेरिकी एजेंसियों पहले से कहीं अधिक प्रभावी हैं। फिर उन्होंने दुनिया से फिर वायदा किया कि आईएसआईएस खत्म होगा।कड़ी चेतावनी दी है कि अमेरिका के लिए जो भी खतरा पैदा करेगा, वो सुरक्षित नहीं रहेगा।अमेरिकी सैन्य उपस्थिति और अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप के इतिहास के मद्देनजर,खासतौर पर भारत अमेरिका परमाणु संधि और युद्धक साझेदारी के मद्देनजर भारत के लिए भी यह बयान गौरतलब है जो सीधे तौर पर खुल्ला युद्ध का ऐलान है और ट्रंप के या मोदी के युद्धोन्मादी बयानों से कहीं भी अलग नहीं है। गौर करें,ओबामा ने कहा है कि ओसामा बिन लादेन समेत हजारों आतंकियों को हमने मार गिराया है। भले ही अमेरिका में बहुलता और सहिष्णुता भारत की तरह गंभीर खतरे में है और मिशेल ओबामा ने अपने विदाई भाषण में इसे बेहतर ढंग से इसे रेखांकित भी किया है,अपनी स्पीच में ओबामा ने कहाः मैं मुस्लिम अमेरिकियों के खिलाफ भेदभाव को अस्वीकार करता हूं। मुसलमान भी उतने देशभक्त हैं, जितने हम।ओबामासाहेब आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि आप कितना बड़ा सफेद झूठ बोल रहे हैं। ओबामा ने कहा कि मुस्लिमों के बारे में कही जा रही बातें गलत हैं। अमेरिका में रहने वाले मुस्लिम भी हमारे जितने ही देशभक्त हैं। उन पर किसी तरह का शक करना गलत है। इसी तरह से महिलाओं और समलैंगिकों इत्यादि के बारे में दुराभाव रखना भी गलत है। अपने चुनाव की चर्चा करते हुए ओबामा ने कहा कि तब विभाजनकारी ताकतें अमेरिका में अश्वेत राष्ट्रपति का लोगों को भय दिखाती थीं। लेकिन उनके चुने जाने के बाद वह भय खत्म हो गया। समाज में ज्यादा एकजुटता और मजबूती आई। वैसा कुछ नहीं हुआ-जिसके लिए देश को डराया जाता था। 

बीबीसी के मुताबिकःआठ साल पहले अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा बदलाव और उम्मीद का संदेश लेकर आए थे। आठ साल के बाद अब हवा बदल चुकी है. अमरीका में अब आपसी दरारें और गहरी हो गई हैं। ओबामा के भाषण में बातें तो उम्मीद की, एक बेहतर भविष्य की थी लेकिन काफ़ी हद तक आनेवाले दिनों के लिए एक चिंता की झलक भी थी। शायद इसलिए किसी का नाम लिए बगैर, किसी पर उंगली उठाए बगैर ओबामा ने जनता से अमरीकी लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा के लिए सजग रहने की अपील की। आठ बरस पहले ओबामा ने जहां से शुरुआत की थी, वहीं शिकागो में ये विदाई भाषण दिया। ओबामा ने कहा कि अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण अमेरिका 'ने महामंदी के दौरान फासीवाद के प्रलोभन और अत्याचार का विरोध किया और दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अन्य लोकतंत्रों के साथ मिलकर एक व्यवस्था कायम की। ऐसी व्यवस्था, जो सिर्फ सैन्य ताकत या राष्ट्रीय संबद्धता पर नहीं बल्कि सिद्धांतों, कानून के शासन, मानवाधिकारों, धर्म, भाषण, एकत्र होने की स्वतंत्रताओं और स्वतंत्र प्रेस पर आधारित थी।'अपने गृहनगर से जनता को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा, 'उस व्यवस्था के सामने अब चुनौती पेश की जा रही है।  फिरभी बेहतर है कि शिकागो में अमेरिका के राष्ट्रपति पद से विदाई लेते हुए ओबामा काफी भावुक दिखे। उन्होंने कहा, 'अपने घर आकर अच्छा लग रहा है। मैं और मिशेल वापस वहीं लौटना चाहते थे, जहां से यह सब शुरू हुआ था। मिशेल 25 सालों से मेरी पत्नी ही नहीं, मेरी अच्छी दोस्त भी हैं। उनके साथ के लिए शुक्रिया। ट्रंप को सत्ता का यह शांतिपूर्वक हस्तांतरण है। मैं अमेरिकी नागरिकों की इच्छा के अनुसार 4 साल और पद नहीं संभाल सकता। अमेरिका के लोगों को बदलाव लाने के लिए अपनी क्षमता में विश्वास रखना होगा। अपनी फेयरवेल स्पीच में ओबामा ने मिशेल के लिए कहा कि मिशेल, पिछले पच्चीस सालों से आप न केवल मेरी पत्नी और मेरे बच्चों की मां है, बल्कि मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। ओबामा ने अपनी बेटियों मालिया और साशा से कहा कि अद्भुत हैं। भाषण के दौरान बराक ओबामा भावुक हो गये। यह देख उनकी बेटी और पत्नी मिशेल की आंखों में आंसू आ गए।

ओबामा ने अपने विदाई भाषण में कहा कि जब हम भय के सामने झुक जाते हैं तो लोकतंत्र प्रभावित हो सकता है। इसलिए हमें नागरिकों के रूप में बाहरी आक्रमण को लेकर सतर्क रहना चाहिए। हमें अपने उन मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए जिनकी वजह से हम वर्तमान दौर में पहुंचे हैं। अमेरिका में ट्रंप का अश्वेतों के खिलाफ जिहाद अब अमेरिकी सरकार का राजकाज है तो भारत में हिंदुत्व का पुनरूत्थान है।मनुष्यता के खिलाफ दोनों इजराइल के साथ युद्ध पार्टनर है। भारत में यह युद्ध हड़प्पा औरर मोहनजोदोड़ो के पतन के बाद लगातार जारी है।अब देश आजाद है। बाबासाहेब के सौजन्य से संविधान बाकायदा धम्म प्रवर्तन है।असल में बौद्धमय भारत का वास्तविक अवसान ब्राह्मणधर्म का पुनरूत्थान है।समता और न्याय के उल्टे भारतीय सत्ता वर्ग वंचित मेहनतकशों को अछूत बताकर इनकी छाया से भी दूर रहने की कोशिश करता है और इस क्रम में उन्हें बुनियादी मानवीय अधिकारों से पूरी तरह वंचित करके लगभग जानवरों जैसी स्थिति में रहने के लिए मजबूर करता है।उसको मिट्टी में मिलाकर उसका वजूद खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ता।यही रामराज्य है। कहने की जरुरत नहीं है कि संसद में कानून बनाने से हजारों सालों से चली आ रही मानसिकता नहीं बदली है।बदल भी नहीं सकती क्योंकि संविधान के बदले अब भी मनुस्मृति चल रही है क्योंकि वह पवित्र धर्म है और बहुसंख्य आम जनता की वध्यनियति है। इसलिए आज भी दलित द्वारा पकाए खाने को स्कूल के बच्चों द्वारा न खाने, दलितों को उनकी औकात बताने के लिए उन्हें नंगा करके घुमाने, हिंसा और बलात्कार का शिकार बनाने, उनके घर फूंकने और उनकी सामूहिक हत्या करने की घटनाएं होती रहती हैं,क्योकि पितृसत्ता कायम है और द्रोपदी का चीरहरण जारी है।कैशलैस डिजिटल इंडिया में रोज रोज देश के चप्पे चप्पे पर स्त्री आखेट है।बलात्कार सुनामी है।कही आम जनता की सुनवाई नहीं होती,लोकतंत्र है। हकीकत यह है कि आजादी के लिए हुए संघर्ष के दौरान,उसे भी पहले नवजागरण के दौरान  जो सामाजिक जागरूकता और आधुनिक चेतना पैदा हुई थी, आज उसकी चमक काफी कुछ फीकी पड़ चुकी है। पुरखों का सारा  करा धरा गुड़ गोबर है।इतिहास विरासत मिथक हैं।मूर्तिपूजा और कर्म कांड से बाहर कोई यथार्थ हर किसी को नामंजूर है।अखंड कीर्तन जारी है। शंबूक हत्या का सिलसिला जारी है और संविधान में प्रदत्त वंचितों के लिए तमाम रक्षा कवच, अनेक अधिकार,कायदे कानून  केवल कागज पर ही धरे रह गए हैं। उन पर अमल करने में न तो समाज की ही कोई विशेष रुचि है और न ही राष्ट्र की.राष्ट्र अब रामराज्य है।राष्ट्र अब राममंदिर है।जहां बहुजनों का प्रवेश निषिद्ध है।प्रवेशाधिकार मिला तो बहुजन घुसपैठिये विदेशी हैं।इस सत्ता के आतंक में या फिर इस सत्ता के तिलिस्म में रीढ़ देह से गायब है।रगों में खून नहीं जो खौल जाये और इसीलिए पुरखों के नाम मिशन दुकानदारी है और समता न्याय के आंदोलन अब ठंडे पड़ चुके हैं।

मनुस्मृति के तहत जातिव्यवस्था सख्ती से लागू करने की समरसता है।

जाहिर है कि पारंपरिक रूढ़िग्रस्त चेतना की वापसी हो रही है और इसका प्रमाण खाप पंचायत या उस जैसी ही अन्य पारंपरिक सामाजिक संस्थाओं का बढ़ रहा प्रभाव है। ये संस्थाएं और संगठन आधुनिकता के बरक्श परंपरा को खड़ा करके परंपरा के संरक्षण की बात करती हैं क्योंकि उनकी राय में उसके साथ संस्कृति और धर्म का गहरा नाता है।देश की राजनीति और देश की सरकार खाप पंचायत है। 

हम अमेरिकी उपनिवेश बनकर सचमुच अमेरिका हो गये हैं।
यहां मोदी हैं तो वहां ट्रंप हैं।
यहां भरा पूरा संघ परिवार है तो वह रिपब्लिकन और कुक्लाक्सक्लान हैं।

अमेरिका का सच यह है कि मुसलमान ,शरणार्थी के खिलाफ नये राष्ट्रपति का जिहाद है और जाते हुए राष्ट्रपति  ने अमेरिकी जनता से अपील की कि अमेरिकी मुसलमानों के खिलाफ किसी प्रकार के भेदभाव को नकार दें। भारत का भी सच यही है।कोई मुसलमानों के साथ हैं तो कोई मुसलमानों के खिलाफ हैं और जिहाद में कोई कमी नहीं है।आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों और स्त्रियों का सच यही है।पक्ष विपक्ष की बातें सिर्फ बातें हैं।सूक्तियां हैं और यथार्त विशुध रंगभेद है।नरसंहार का सिलसिला अंतहीन है।अबाध अस्पृश्यता है।सैन्य राष्ट्र है। ओबामा ने कहा कि बदलाव तभी होता है जब आम आदमी इससे जुड़ता है। आम आदमी ही बदलाव लाता है। हर रोज मैंने लोगों से कुछ न कुछ सीखा। हमारे देश के निर्माताओं ने हमें अपने सपने पूरे करने के लिए आजादी दी। हमारी सरकार ने यह प्रयास किया कि सबके पास आर्थिक मौका हो। हमने यह भी प्रयास किया कि अमेरिका हर चैलेंज का सामना करने के लिए तैयार रहे। यह ओबामा का अमेरिकी सपना है और हम भारत में सपनों में सपनों का भारत वही जी रहे हैं।बाकी हमारे हिस्से में भोगे हुए यथार्थ का नर्क है।जिसे हम कहीं भी किसी सूरत में रंगकर्म में, माध्यमों में,विधाओं में,मीडिया में,राजनीति में,साहित्य में,लोक में,कलाओं में कहने तक की हिम्मत नहीं रखते क्योंकि सारा कारोबार रंगबिरंगे सपनों का है और मुफ्त में स्वर्ग का चिटफंड वैभव है।संस्कृति विदेशों में शूटिंग है।फैशन शो है।टीवी की सुर्खियों के यथार्थ में जीने की अंधता सार्वभौम है।यही अंधभक्ति है।

बिना अभिव्यकित का यह मूक वधिर विकलांग लोकतंत्र दिव्यदिव्यांग है।
जिसमें सबसे प्यारी चीज हमारी अपनी जनमजात गुलामी है।गुलामगिरि है।

बाराक ओबामा की विदाई के बाद राष्ट्रपति पद संभालने वाले पूत के पांव पालने में झलकने लगे हैं।अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी संभालने से ठीक 9 दिन पहले प्रेसिडेंट एलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में आर्थिक नीति का खांका रखा। अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने के अपने लक्ष्य का पीछा करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अर्थव्यवस्था में ऑटो, फॉर्मा और डिफेंस सेक्टर में बड़े बदलावों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इन सभी सेक्टर्स में दुनिया को एक बार फिर अमेरिका की बादशाहत कायम होती दिखाई देगी।इसका मतलब भली भांति समझ लें तो बेहतर।

ट्रस्ट गांधी वादी विचारधारा का आधार है।गांधी वादी नहीं है ट्रंप,लेकिन अमेरिका में प्रसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप अपनी पूरी संपत्ति को ट्रस्ट में शिफ्ट करने की योजना पर काम कर रहे हैं। राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपनी पहली प्रेस वार्ता में ट्रंप ने कहा कि भले अमेरिकी संविधान से उनके ऊपर अपने कारोबार से अलग होने की बाध्यता नहीं है, वह ऐसा महज इसलिए कर रहे हैं जिससे कोई उनपर उंगली न उठा सके। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दोनों बेटों के हवाले ट्रंप समूह को करते हुए कहा कि बतौर कारोबारी वह अपनी कंपनी को बेहतर ढ़ंग से चला सकते हैं और साथ ही अमेरिका की सरकार को चला सकते हैं। लेकिन देश के हितों को आगे रखते हुए वह अपनी कंपनी से नाता पूरी तरह से तोड़ लेंगे।बिजनेसमैन राष्ट्रपति के व्हाइटहाउस से जारी फरमानका अंजाम कैसे भुगतेंगे,यह भी समझ लें।हुक्मउदुली भी असंभव है। मसलन अब डोनाल्ड ट्रंप का संकेत है कि आने वाले दिनों में अमेरिका किसी अन्य देश को अप्रूवल देने से ज्यादा वजन वह अमेरिका में दवाओं की मैन्यूफैक्चरिंग पर देंगे। ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा ड्रग्स खरीदता है इसके बावजूद फार्मा सेक्टर में उसका रसूख कम हो रहा है। लिहाजा उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में फार्मा सेक्टर में अमेरिका अक्रामक नीति बना सकता है। गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर भारत इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है । जहां ग्लोबल इंडस्ट्री में ग्रोथ लगभग 5 फीसदी के आसपास है।आईटी सेक्टर तो सिरे से अमेरिकी आउटसोर्सिंग पर निर्भर है,जिसे सिरे से खत्म करने पर ट्रंप आमादा है।खेती को ख्तम करके जो मुक्तबाजार बनाया है,नोटबंदी के बाद गहराती मंदी के आलम में उसका जलवा बहार अभी बाकी है।परमाणु ऊर्जा से लेकर रक्षा आंतरिक सुरक्षा अमेरिकी है। गौर करें कि डोनाल्ड ट्रंप ने उन लोगों को चेतावनी दी है जो अमेरिका से बाहर अपना सामान बनाकर वापस अमेरिका में बेचते हैं। ट्रंप ने कहा कि ऐसी कंपनियों पर सीमा शुल्क लगाया जाएगा। ट्रंप ने कहा ऐसी कंपनियों पर भारी सीमा शुल्क लगया जाएगा। उन्होंने कहा अमेरिका में आप अपनी कंपनी स्थानांतरित कर सकते हैं अगर वह अमेरिका के अंदर है तो मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अमेरिका में कई ऐसे स्थान हैं। इससे पहले ट्रंप ने टोयोटा, जनरल मोटर्स जैसी कंपनियों को कारखाने अमेरिका में स्थानांतरित करने को लेकर दबाव बनाया गया था। 

गौरतलब है कि अमेरिका और मैक्सिको के बीच तनाव बढ़ने के संकेत मिलने लगे हैं. मैक्सिको के राष्ट्रपति एनरिके पेना नीटो ने साफ़ कर दिया है कि उनका देश अमेरिका द्वारा सीमा पर दीवार बनाए जाने का समर्थन नहीं करता है और वह इसके लिए किसी तरह की वित्तीय सहायता भी नहीं देगा। पेना नीटो ने यह बात डोनाल्ड ट्रंप के बुधवार को आए उस बयान के जवाब में कही है जिसमें ट्रंप ने मैक्सिको की सीमा पर दीवार बनाए जाने की बात दोहराई थी। गुरूवार को मैक्सिको सिटी में देश के राजदूतों को संबोधित करते हुए पेना नीटो ने कहा कि मैक्सिको अपने पड़ोसी देश के साथ बेहतर संबंध चाहता है। इसके साथ ही निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर आज सनसनीखेज दावे सामने आए जिनमें कहा गया है कि उनको रूस ने कई वर्षों से 'तैयार'किया है। मॉस्को के पास उनको लेकर नितांत व्यक्तिगत सूचना है। वहीं ट्रंप ने इस दावे को खारिज करते हुए तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि यह नाजी जर्मनी में रहने जैसा है। एफबीआई और सीआईए समेत अमेरिका की चार प्रमुख खुफिया एजेंसियों ने ट्रंप और निवर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा के समक्ष पिछले सप्ताह, वर्ष 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में रूसी हस्तक्षेप पर एक रिपोर्ट पेश की थी जिसमें इन आरोपों का जिक्र था। इस बीच यूएस नैशनल इंटेलिजेंस काउंसिल की ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की इकॉनमी सुस्त पड़ रही है, जबकि भारत की ग्रोथ तेज बनी हुई है। हालांकि, भारत में सामाजिक गैर-बराबरी और धार्मिक टकराव से इकॉनमी पर बुरा असर पड़ सकता है। यह रिपोर्ट चार साल में एक बार आती है। इसमें बीजेपी सरकार की हिंदुत्व नीति से देश के अंदर और पड़ोसी देशों के साथ टकराव बढ़ने की ओर ध्यान दिलाया गया है। रिपोर्ट में लिखा है, ‘भारत की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी हिंदुत्व को सरकारी नीतियों का हिस्सा बनाने को कह रही है। इससे देश में मुस्लिम अल्पसंख्यकों से टकराव बढ़ रहा है। इससे मुस्लिम बहुल पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भी तनाव बढ़ रहा है।’
 
अमेरिकी रिपोर्ट में उन महत्वपूर्ण ट्रेंड्स की पहचान की जाती है, जिनका आने वाले 20 वर्षों में दुनिया पर असर पड़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि टेक्नॉलजी से दुनिया काफी करीब आ गई है, लेकिन इससे आइडिया और पहचान को लेकर मतभेद बढ़ सकते हैं जिससे पहचान की राजनीति को बढ़ावा मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत हिंदू राष्ट्रवादियों से कैसे निपटता है और इजरायल धार्मिक कट्टरपंथ के साथ किस तरह से संतुलन बनाता है, इससे भविष्य तय होगा।’ रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले वर्षों में आतंकवाद का खतरा बढ़ेगा। इस संदर्भ में भारत में ‘हिंसक हिंदुत्व’ के अलावा ‘उग्र क्रिश्चियनिटी और इस्लाम’ का जिक्र किया गया है। सेंट्रल अफ्रीका के देशों में ईसाई धर्म का उग्र चेहरा दिख रहा है। वहां इस्लाम का भी एक ऐसा ही चेहरा है। म्यांमार में उग्र बौद्ध और भारत में उग्र हिंदुत्व है। इससे आतंकवाद को हवा मिलेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवाद और अस्थिरता बनी रहेगी, जबकि भारत छोटे दक्षिण एशियाई देशों को इकनॉमिक ग्रोथ में हिस्सेदार बना सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को पाकिस्तान से रक्षा संबंधी खतरे हो सकते हैं, जो परमाणु हथियार बढ़ा रहा है। वह इनके लिए डिलीवरी प्लैटफॉर्म पर भी तेजी के काम कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान टैक्टिकल परमाणु हथियार और समुद्र से मार करने वाली मिसाइलें तैयार कर रहा है। अगर वह समुद्र में परमाणु हथियार तैनात करता है तो उससे पूरे क्षेत्र के लिए सुरक्षा संबंधी खतरा पैदा होगा। आगे दूसरे विश्वयुद्ध में आखिरकार देखी मंदी है और फिर वही भुखमरी है।
उसके नजारे पर भी तनिक गौर करें।मीडिया से साभार

73 साल पहले बंगाल (मौजूदा बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा) ने अकाल का वो भयानक दौर देखा था, जिसमें करीब 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी थी। ये सेकंड वर्ल्ड वॉर का दौर था। माना जाता है कि उस वक्त अकाल की वजह अनाज के उत्पादन का घटना था, जबकि बंगाल से लगातार अनाज का एक्सपोर्ट हो रहा था। हालांकि, एक्सपर्ट्स के तर्क इससे अलग हैं। अकाल से ऐसे थे हालात… राइटर मधुश्री मुखर्जी ने उस अकाल से बच निकले कुछ लोगों को खोज उनसे बातचीत के आधार पर अपनी किताब में लिखा है कि उस वक्त हालात ऐसे थे कि लोग भूख से तड़पते अपने बच्चों को नदी में फेंक रहे थे। न जाने ही कितने लोगों ने ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी थी। हालात ये थे कि लोग पत्तियां और घास खाकर जिंदा थे। लोगों में सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करने का भी दम नहीं बचा था। इस अकाल से वही लोग बचे जो नौकरी की तलाश में कोलकाता (कलकत्ता) चले आए थे या वे महिलाएं जिन्होंने परिवार को पालने के लिए मजबूरी में प्रॉस्टिट्यूशन का पेशा शुरू कर दिया।

अनाज की नहीं थी कोई कमी
ये सिर्फ कोई प्राकृतिक त्रासदी नहीं थी, बल्कि ये इंसानों की बनाई हुई थी। ये सच है कि जनवरी 1943 में आए तूफान ने बंगाल में चावल की फसल को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन इसके बावजूद अनाज का प्रोडक्शन घटा नहीं था। इस बारे में लिखने वाले ऑस्ट्रेलियन साइंटिस्ट और सोशल एक्टिविस्ट डॉ. गिडोन पोल्या का मानना है कि बंगाल का अकाल ‘मानवनिर्मित होलोकास्ट’ था। इसके पीछे अंग्रेज सरकार की नीतियां जिम्मेदार थीं। इस साल बंगाल में अनाज की पैदावार बहुत अच्छी हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने मुनाफे के लिए भारी मात्रा में अनाज ब्रिटेन भेजना शुरू कर दिया और इसी के चलते बंगाल में अनाज की कमी हुई।

रोकी जा सकती थी त्रासदी
जाने-माने अर्थशात्री अमर्त्य सेन का भी मानना है कि 1943 में अनाज के प्रोडक्शन में कोई खास कमी नहीं आई थी, बल्कि 1941 की तुलना में प्रोडक्शन पहले से ज्यादा था। इसके लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को सबसे ज्यादा जिम्मेदार बताया जाता है, जिन्होंने स्थिति से वाकिफ होने के बाद भी अमेरिका और कनाडा के इमरजेंसी फूड सप्लाई के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इन्होंने प्रभावित राज्यों की मदद की पेशकश की थी। जानकारों का कहना है कि चर्चिल अगर चाहते तो इस त्रासदी को रोका जा सकता था। वहीं, बर्मा (मौजूदा म्यांमार) पर जापान के हमले को भी इसकी वजह माना जाता है। कहा जाता है कि जापान के हमले के चलते बर्मा से भारत में चावल की सप्लाई बंद हो गई थी।




(पलाश विश्वास)

आर्थिक विकास के लिए अक्षय ऊर्जा की क्षमता के दोहन बेहद महत्वपूर्णः टेरी

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नई दिल्ली। भारत के स्थिर आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा दक्षता बढ़ाने, बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने और ऊर्जा क्षेत्र का विकार्बनीकरण करना बेहद जरूरी है। यहाँ अक्षय ऊर्जा की एक महत्वपूर्ण भूमिका है और इसका ग्रिड से एकीकरण सुनिश्चित करना फोकस के मुख्यू बिंदु हैं। यह बात टेरी के महानिदेशक डॉ. अजय माथुर ने कही। वे आज भारत और जापान के बीच तकनीकी सहयोग बनाने के लिए आयोजित 7वें भारत-जापान एनर्जी फोरम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ‘वे विभिन्न क्षेत्र जिनमें भारत और जापान सहयोग कर सकते हैं, उसमें एलएनजी पर फोकस करने वाले भारत के परिवहन क्षेत्र में दिलचस्पीि हो सकती है।’ यह फोरम भारत के सतत विकास के लिए अनुसंधान करने वाले समर्पित शोध संस्थागन दि एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टी ट्यूट, इंडिया और ग्लोरबल साउथ की संयुक्तद मेजबानी में आयोजित किया गया। इसमें जापान के सबसे बड़े शोध एवं विकास प्रबंध संस्थामन न्यू, एनर्जी एंड डंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (नीडो) ने प्रमुख सहयोग दिया। ये दोनों संगठनों पिछले एक दशक से अधिक समय से साथ मिलकर काम कर रहे हैं और वर्तमान में पानीपत(हरियाणा) में एक पायलट परियोजना के तहत स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकियों की तैनाती पर काम कर रहे हैं। यह प्रोजेक्टर अपनी तरह को भारत का पहला प्रोजेक्टस है। भारत सरकार के ऊर्जा, कोयला, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा एवं खनन के राज्यप मंत्री (स्व तंत्र प्रभार) माननीय श्री पीयूष गोयल ने अपने संबोधन में कहा कि “ ऊर्जा क्षेत्र में भारत दुनिया का संभवतरू सबसे बड़ा बाजार है और उम्मीुद है कि अधिक से अधिक लोगों को ग्रिड के साथ जुड़ने से अगले 15 वर्षों में हमारी बिजली खपत चार गुना बढ़ जाएगी। पिछले कुछ वर्षों में जापान के साथ हमारे संबंध मारुति-सुजुकी की साझेदारी से आगे बढ़कर लोक परिवहन के महत्व पूर्ण साधन बुलट ट्रेन के विकास तक पहुंच गया है। हमें उम्मीकद है कि फोरम में आज जो चर्चाएं हुई हैं उससे सरकार को ऊर्जा क्षेत्र को उसी स्तनर पर लेजाने में मदद मिलेगी, जहां कभी बीते दिनों में ट्रांसपोर्ट सेक्टमर था, इसमें स्थारई, सस्ता और गुणवत्तो पर विशेष रूप से फोकस होगा। जापान सरकार में अर्थव्यवस्था, कारोबार और उद्योग मंत्री महामहिम श्री हिरोशिगे शेको भी उद्घाटन सत्र के दौरान उपस्थित थे। उन्होंने कहा, ‘जापानी तकनीक और पूंजी को भारत के उच्च् कौशल वाले मानव संसाधनों और ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को आपस में न सिर्फ परस्पोर लाभ के लिए बल्कि वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा, ऊर्जा की पहुंच और जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कदम उठाने के लिए जोड़ा जा सकता है। एनईडीओ के चेयरमैन श्री काजुओ फुरुकावा ने राष्ट्र  की समृद्धि पर ऊर्जा सक्षमता के प्रभावों को समझाते हुए कहा, 2006 से ऊर्जा पर चल रही चर्चा से ऊर्जा सक्षमता के क्षेत्र में प्रगति हुई है और भारत में प्रत्यहक्ष निवेश में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा, उन्हों्ने ऊर्जा की बढ़ती मांग को सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल तरीके से पूरा करने की महत्ता  के बारे में भी जानकारी दी।

इस चर्चा में भाग लेने वाले गणमान्य लोगों में सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के श्री पंकज बत्रा, एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड के श्री सौरभ कुमार, पीओएसओसीओ के श्री एसके सूनी, रेलवे बोर्ड के श्री ए.के. तिवारी, दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशंस लिमिटेड के श्री ए.के. गुप्ता, नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के डॉ पीसी मैथानी और स्टीलल मंत्रालय के श्री एसके भटनागर शामिल थे। इस चर्चा में जानी मानी जापानी कंपनियों जैसे हिताची, मित्सु बिशी इलेक्ट्रिक, फ्यूजी इलेक्ट्रिक, टीईपीसीओ, नोमुरा आदि के वरिष्ठम प्रतिनिधि शामिल हुए।
टेरी के वरिष्ठ निदेशक श्री गिरीश सेठी ने सत्र की समाप्ति के दौरान दोनों देशों के सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया। खास तौर से जापान के निजी क्षेत्र के साथ जिसने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई ऊंचाईयां छुई हैं और जो भारत की मदद कर सकती हैं क्यों कि भारत स्व्च्छम ऊर्जा समाधानों को त्व रित गति से अपनाने की राह पर चल पड़ा है। 

हस्तशिल्प निर्यात पुरस्कार सम्मान

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नयी दिल्ली। विश्व बाजार में भारत से हस्तशिल्प उत्पाद के निर्यात में लगे 68 निर्यातको को वर्ष 2014-15 के दौरान हस्तशिल्प उत्पाद के निर्यात में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए केन्द्रिय कपडा मंत्री श्रीमति स्मृति जुबिन ईरानी ने दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में नोएडा के राजेश कुमार जैन और प्रीती जैन को एक्सीलेंट अवार्ड से सम्मानित किया।  एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट्स द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में देश भर के दर्जन भर से अधिक निर्यातकों में से राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, शेखावाटी के निर्यातक प्रीती जैन, दिलीप वैद, राज कुमार मल्होत्रा, गौतम नाथानी, गिरीश अग्रवाल को भी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।इस मौके पर राज्यमंत्री अजय टामटा,संस्था के निदेशक राकेश कुमार सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे।

केंद्रीय कपडा मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने निर्यातों को सम्मानित किया

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नयी दिल्ली। विश्व बाजार में भारत से  हस्तशिल्प उत्पाद के निर्यात में लगे राजेश कुमार जैन और प्रीती जैन सहित 68 निर्यातकों को हस्तशिल्प उत्पाद के निर्यात में उत्कर्ष प्रदर्शन के लिए एक पांच सितारा होटल में केंद्रीय कपडा मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने एक्सीलेंट अवार्ड से सम्मानित किया।  एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट्स द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में देश भर के निर्यातकों में राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, शेखावाटी के निर्यातक प्रीती जैन, गौतम नाथानी, गिरीश अग्रवाल , गुडगाँव के राज कुमार मल्होत्रा, को भी पुरस्कार से सम्मानित किया गया । इस अवसर पर  केंद्रीय कपडा मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने निर्यात के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों को सराहना करते हुए सम्मानित निर्यातकों को बधाई दी । उन्होंने भविष्य में निर्यातकों को और प्रोत्साहन देने की बात कही । समारोह में केंद्रीय कपडा राज्यमंत्री अजय टमटा , मंत्रालय के अतिरिक्त इंचार्ज सचिव के. के. जालान , एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट्स के चेयरमैन दिनेश कुमार , एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट्स के कार्यकारी निर्देशक राकेश कुमार भी उपस्थित थे ।

नौका दुर्घटना प्रशासनिक लापरवाही, कुव्यवस्था का परिणाम भाकपा

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पटना, 16 जनवरी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, बिहार राज्य परिषद के सचिव सत्यनारायण सिंह ने मकरसंक्रांति के मौके पर 14 जनवरी को पटना में आयोजित पतंगबाजी महोत्सव के दरम्यान हुई नौका दुर्घटना में करीब 30 लोगों की मौत पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि यह दुर्घटना प्रषासनिक लापरवाही, कुव्यवस्था का परिणाम है। गौरतलब हो कि यह पतंग बाजी महोत्सव सारण जिले के सबलपुर दियारा क्षेत्र में आयोजित हुआ था। पटना से भारी संख्या में लोग इस पतंगमहोत्सव में शामिल होते हैं। राज्य सचिव ने कहा है कि इस आयोजन में लोगों के स पार से उस पार लाने और वापस ले जाने के लिए पर्याप्त संख्या में नावों, स्टीमर आदि की व्यवसथा नहीं थी। पुलिस बल भी जरूरत के मुताबिक नहीं था। एनडीआरएफ को भी नहीं लगाया गया था। इसलिए हादसा के वक्त तुरंत राहत नहीं पहुंचाया जा सका। बचाव कार्य समय पर हो गया रहता तो इतनी जिंदगियां नहीं जाती । भाकपा राज्य सचिव ने कहा है कि बिहार सरकार ने अभी 10 दिन पहले प्रकाषपर्व पर देष-विदेष से आये लाखों श्रद्धालुओं के पटना में जुटने पर ऐसा शानदार इंतजाम किया था, जिसका सर्वत्र गुणगान हुआ था। यह अपने-आप में एक नजीर बन गया था। फिर सवाल यह उठता है कि बिहार सरकार इस छोटे से आयोजन के प्रति वेपरवाह क्यों हो गई? उसका पुलिस-प्रषासन सुस्त, निष्क्रिय क्यों रहा? मुख्यमंत्री या इसके किसी मंत्री ने इसकी तैयारी की समीक्षा क्यों नहीं की ? पर्यटन विभाग और उसके अधिकारी क्या कर रहे थे? ऐसे में हजारों की भीड़ को संभालने में विफलता के लिए सरकार और प्रषासन अपनी जिम्मेवारी से नहीं बच सकता। 
भाकपा राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने राजधानी के पास गंगा नदी में हुई नाव दुर्घटना में जान गंवाने वालों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की है। साथ ही घायलों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने की मांग की है। शोक संतप्त परिवारों को हर संभव मदद पहुँचाने की अपील की है। मृतकों के परिजनों के लिए जो मुआवजा दिया गया है, वह पर्याप्त नहीं है; इसलिए उसमें वृद्धि की जाय। इस घटना की विभागीय नहीं  बल्कि न्यायिक जांच करायी जाय और इसके लिए जिम्मेवार अधिकारियों पर फौरी कार्रवाई की जाय। प्रत्येक मृतक परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाय। 
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